Vibes : 22 साल की सिमरन को औफिस की वाइब्स अच्छी नहीं लगीं इसलिए उस ने उस जौब को छोड़ कर दूसरी कंपनी जौइन कर ली. वहां भी केवल 6 महीने काम किया. वहां भी वाइब्स मैच नहीं हुईं और उसे छोड़ कर अब घर बैठी है तथा नई जौब की तलाश कर रही है. यहां सिमरन से जब पूछा गया कि वाइब्स हैं क्या? तब वह केवल इतना बता पाई कि पता नहीं लेकिन वाइब्स के मैच न करने पर काम करना मुश्किल होता है.
यह रही सिमरन की बात जो औफिस वाइब्स सही न होने की वजह से बारबार जौब छोड़ रही है, जबकि स्मिता की पिछले 4 साल से एक लड़के से दोस्ती है, जब उस के परिवार वालों ने स्मिता से उस लड़के से शादी करने की बात कही तो उस ने सिरे से मना कर दिया और पेरैंट्स को बताया कि उस लड़के के साथ उस की वाइब्स मैच नहीं कर रही हैं, इसलिए वह उस के साथ शादी कर घर नहीं बसा सकती.
वाइब्स का अर्थ
वाइब्स आखिर यह शब्द है क्या जिसे आज की जैन जी बहुत अधिक प्रयोग करती है? अकसर हमें सुनने को मिलता है कि यार फलां से मेरी वाइब्स मैच नहीं हुईं. फलां औफिस में वाइब्स अच्छी नहीं थीं. फलां से गुड वाइब्स आती हैं. ऐसे वाक्य काफी आम हो गए हैं.
आइए, जानते हैं असल जिंदगी में इस का अर्थ और इस के पीछे की साइकोलौजी जानने की कोशिश करते हैं:
कई बार ऐसा देखा गया है कि कभीकभी कोई इंसान, कोई कमरा, कोई औफिस या कोई माहौल अजीब सा लगता है. बिना किसी ठोस वजह के हम कह देते हैं कि यहां वाइब्स अजीब हैं या फिर इन से मिल कर बहुत अच्छा फील हुआ, पौजिटिव ऐनर्जी मिली. क्या ये फीलिंग्स एक भ्रम हैं या इन का कोई वैज्ञानिक आधार भी है?
क्या कहती है रिसर्च
एक नई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि वाइब्स केवल कल्पना नहीं बल्कि हमारे ब्रेन और नर्वस सिस्टम की एक अनदेखी प्रक्रिया का हिस्सा हैं. डा. हेडी मौवार्ड ने ठ्ठद्गह्वह्म्शद्यशद्द4द्यद्ब1द्ग.ष्शद्व की लेख में लिखा है कि हमारा दिमाग हमारे आसपास के लोगों के हावभाव, आवाज के उतारचढ़ाव और माइक्रो ऐक्सप्रैशंस से ढेर सारी अनकही बातें पकड़ लेता है. यह प्रक्रिया इतनी जल्दी होती है कि हमें इस का पता नहीं चल पाता, बस व्यक्ति कह देता है कि यह मुझे सही नहीं लग रहा है या बहुत अच्छा महसूस हो रहा है.
मनोवैज्ञानिक आधार
इस बारे में मनोवैज्ञानिक हेमलता ठाकुर कहती हैं कि वाइब्स का अर्थ किसी के साथ खुद को कनैक्ट कर पाना होता है, अगर ऐसा नहीं हो पाता तो आज की जेनरेशन आसान शब्दों में वाइब्स कह देती है, जो उन के साथ मैच नहीं होती क्योंकि इमोशनली वे उस परिस्थिति से जुड़ नहीं पाते, जिस में उन के विचार आसपास के परिवेश से मेल नहीं खाते.
हेमलता आगे कहती है कि जैसा अकसर सुनने में आता है कि फलां लाइक माइंडेड है, फलां नहीं. असल में उस व्यक्ति के जीवन में कुछ ऐसी घटना पास्ट में हुई होगी, जिस से उस सामने वाले व्यक्ति के साथ वाइब्स मैच नहीं कर रहा है और यह उस का इंटरप्रिटेशन है जो किसी दूसरे का साथ अलग हो सकता है. इसे समझना और व्याख्या करना आसान नहीं. किसी के लिए पांव छू कर रिसपैक्ट दिखानी होती है, जबकि कुछ बिना पांव छूए ही अदब से पेश आने को रिस्पैक्ट मानते हैं. इस में आप का सैंसरी आर्गन किसी बात को कैसे इंटरप्रेट करता है, यह देखना पड़ता है.
अनुभूति मस्तिष्क की
दरअसल, हमारे दिमाग की यह वह अनुभूति है जो अतीत के अनुभवों और वर्तमान की इनपुट्स को मिला कर एक इमोशनल निष्कर्ष निकालती है. यह कई बार अवचेतन मन से आता है, जब हम किसी व्यक्ति या जगह से पहली बार मिलते हैं तो उन की सोच या परिवेश से अनभिज्ञ रहते हैं. ऐसे में सामने वाले का रहनसहन और व्यवहार उस स्थान को परिचित बनाता है. कई बार एक स्थान किसी के लिए सकारात्मक तो किसी के लिए नकारात्मक भी हो सकता है.
लड़कियों में संवेदनशीलता
नीदरलैंड में हुई एक स्टडी में यह सामने आया कि इंसानों के पसीने और आंसुओं में मौजूद रासायनिक संकेत दूसरों के मूड पर असर डाल सकते हैं, जबकि वह इंसान वहां पर होता भी नहीं है. एक ऐक्सपैरिमैंट में डर के समय लिया गया बौडी ओडर सूंघने पर वालंटियर्स की बौडी लैंग्वेज भी डर जैसी हो गई. हमारा मस्तिष्क महज आंखकान तक सीमित नहीं है. हमारी त्वचा, नाक, कान और आंतें भी इमोशनल सिग्नलस को पकड़ती हैं. कुछ लोग इसे आसानी से सम?ा लेते हैं, कुछ नहीं खासकर लड़कियों में यह संवेदनशीलता अधिक होती है. इन्हें हम इंट्यूटिव कह सकते हैं और यही अधिकतर वाइब्स शब्द का प्रयोग करते हैं.
जब हम किसी नैगेटिव माहौल में होते हैं तो खुद को थका हुआ, चिड़चिड़ा या लो महसूस कर सकते हैं. वहीं पौजिटिव माहौल में ऊर्जा, उत्साह और प्रेरणा महसूस होती है, इसे इमोशनल कंटैजियन यानी भावनाओं का फैलाव कहा जा सकता है, जिस में एक हंसता हुआ इंसान पूरी मीटिंग को हलका कर सकता है.
बदल सकती हैं वाइब्स
जब हम अपने आसपास पौजिटिव बातचीत, अच्छी खुशबू, प्रकृति का स्पर्श और अच्छी लाइटिंग करते हैं तो वाइब्स चेंज होने का एहसास होता है. इस के अलावा हमारे विचार, बोलचाल और बौडी लैंग्वेज भी एक ऐनर्जी फील्ड बनाते हैं जो हमारे कार्यक्षेत्र और आसपास के माहौल को बदल सकती है.
मनोवैज्ञानिक हेमलता कहती हैं कि वाइब्स कोई जादुई चीज नहीं. इस में अपनी सोच को बदल कर इसे बदला जा सकता है. आज इस शब्द को नई जैनरेशन बहुत प्रयोग करती है लेकिन इस में जैन जी के अंदर पेशंस और टौलरैंस को बढ़ाने की जरूरत है. जो चीज उन्हें कुछ समय के लिए सही नहीं लग रही है, थोड़े समय के बाद करने पर वह अच्छी लग सकती है. इसे कार्यक्षेत्र के अलावा रिलेशनशिप में भी दिखाना आवश्यक है, जो आज उन्हें करना जरूरी है क्योंकि बौर्डर पर लड़ने वाला अगर आप के बर्थडे पर विश नहीं करता है तो उस की समस्या को समझें और औफिस में जौब करने वाली ने अगर किसी दिन खाना नहीं भी बनाया तो उस की समस्या को समझने की कोशिश करें क्योंकि ये परिस्थितियां आज की जैनरेशन के साथ हैं.
इस प्रकार वाइब्स हमारे मस्तिष्क और शरीर का एक कोलाज है, जिसे ध्यान देने पर व्यक्ति खुद ही इसे अपने लिए हो या दूसरों के लिए बेहतर बना सकता है और यह आज के समय में जैन जी को आगे बढ़ने के लिए समझना बहुत जरूरी है.