Job vs Household Chores: चीन की एक अदालत ने कुछ समय पहले तलाक से जुड़े एक मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया. कोर्ट ने एक व्यक्ति को निर्देश दिया कि वह 5 साल तक चली अपनी शादी के दौरान पत्नी द्वारा किए गए घरेलू काम के बदले में उसे मुआवजा दे. इस मामले में महिला को 5.65 लाख दिए जाने का फैसला हुआ. इस फैसले ने चीन समेत दुनियाभर में बड़ी बहस को जन्म दिया.
कुछ लोगों का मानना था कि महिला घर के काम के बदले में मुआवजे के रूप में कुछ भी लेने की हकदार नहीं है. वहीं कुछ लोगों के अनुसार जब महिला अपने कैरियर से जुड़े अवसरों को त्याग कर रोज घंटों घरेलू काम करती है तो उसे मुआवजा क्यों नहीं मिलना चाहिए.
इस से कुछ समय पहले भारत की सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में लिखा था कि घर का काम परिवार की आर्थिक स्थिति में वास्तविक रूप से योगदान करता है और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में भी योगदान करता है.
दरअसल, चीन से ले कर भारत और पश्चिमी दुनिया के देशों में भी अदालतें बारबार महिलाओं द्वारा की गई अनपेड लेबर को आर्थिक उत्पादन के रूप में स्थापित करने वाले फैसले देती रही हैं. लेकिन इस के बावजूद घर के काम को जीडीपी में योगदान के रूप में नहीं देखा जाता है. यही नहीं समाज घर के काम को वह अहमियत नहीं देता है जितनी नौकरी या व्यवसाय में किए गए काम को देता है.
सवाल अहम है
ऐसे में सवाल उठता है कि महिलाएं घर के अनप्रोडक्टिव काम छोड़ कर नौकरी या व्यवसाय क्यों न शुरू करें? जब उन के पास स्किल है, काबिलीयत है तो वे क्यों न ऐसे काम करें जिन में वे अपनी स्किल दिखा कर अच्छी कमाई कर आत्मनिर्भर बन सकें? घर के कामों में पूरे दिन समय बरबाद कर के जब उन्हें कुछ हासिल नहीं हो रहा तो वे इन कामों को हाउस हैल्प के द्वारा करा कर अपने समय का सदुपयोग कर सकती हैं, पैसे कमा सकती हैं और अपनी कमाई के कुछ रुपए हाउस हैल्प को दे कर अपने काम का बोझ हलका कर सकती हैं.
उधर जिन कामों के लिए उन्हें सैलरी नहीं मिल रही थी वही काम जब हाउस हैल्प यानी कामवाली करती है तो उसे भी कमाई का अवसर मिलता है. यानी वही काम एक स्त्री अपने घर पर करे तो वह प्रोडक्टिव काम नहीं जबकि कामवाली करे तो वह प्रोडक्टिव हो जाता है.
घरेलू काम की अहमियत नहीं
दुनिया की अधिकांश महिलाएं इस सवाल से जूझती हैं कि समाज एक गृहिणी के रूप में उन के द्वारा किए गए घर के कामों को वह सम्मान क्यों नहीं दिया जाता जो पुरुषों द्वारा किए गए कामों को दिया जाता है, जबकि एक गृहिणी के रूप में महिलाओं के काम के घंटे पुरुषों के किए गए काम के घंटों की तुलना में कहीं अधिक होते हैं? नौकरी की तरह उन्हें कभी संडे नहीं मिलता. वे सातों दिन सुबह से रात तक काम में जुटी होती हैं.
भले ही वे बीमार क्यों न हों पर वे छुट्टी नहीं ले पातीं क्योंकि ये बहुत जिम्मेदारी वाले काम होते हैं. मसलन, घर पर अगर किसी को तय समय पर दवा देनी है तो वह काम छोड़ा नहीं जा सकता है. खाना तय समय पर बनना है तो वह भी बनना जरूरी है. सब को भूखा नहीं छोड़ा जा सकता.
घर के काम करने वाली महिला को ‘अलादीन का चिराग’ समझा जाता है. अगर कभी सहयोग की मांग की भी जाए तो कहा जाता है कि करती ही क्या हो. आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि भारत में घर में महिलाएं पुरुषों की तुलना में काफी ज्यादा काम करती हैं.
ताजा टाइम यूज सर्वे के मुताबिक महिलाएं हर दिन घर के कामों, जिन के लिए उन्हें कोई सैलरी नहीं मिलती, में 299 मिनट लगाती हैं. वहीं भारतीय पुरुष दिन में सिर्फ 97 मिनट घर के कामों में लगाते हैं. इस सर्वे में येहभी सामने आया है कि महिलाएं घर के सदस्यों का खयाल रखने में रोज 134 मिनट लगाती हैं, वहीं पुरुष इस काम में सिर्फ 76 मिनट खर्च करते हैं. महिलाओं के किए गए बिना सैलरी वाले घर के काम का मूल्य 3 तरह से निकाला जा सकता है:
अपौर्च्युनिटी कौस्ट मैथड, रिप्लेसमैंट कौस्ट मैथड, इनपुट/आउटपुट कास्ट मेथड.
पहले फौर्मूले के मुताबिक अगर कोई महिला बाहर जा कर 50 हजार रुपए कमा सकती है और इस के बावजूद वह घर के काम करती है तो उस के काम की कीमत 50 हजार रुपए मानी जानी चाहिए.
दूसरे फौर्मूले के मुताबिक एक महिला द्वारा किए गए ‘घर के काम’ का मूल्य उन सेवाओं के लिए किए किए जाने वाले खर्च के आधार पर तय होता है. सरल शब्दों में कहें तो अगर एक महिला की जगह घर पर कोई और काम करता है तो जो खर्च उस की सेवाएं लेने के बदले में होगा, वही उस महिला के द्वारा किए गए काम का मूल्य होगा. इसी तरह तीसरे फौर्मूले में एक महिला द्वारा घर पर किए गए काम की मार्केट वैल्यू निकाली जाती है.
अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान
अंतर्राष्ट्रीय संस्था औक्सफेम के एक अध्ययन के मुताबिक महिलाओं द्वारा किए गए ‘घर के काम’ का मूल्य भारतीय अर्थव्यवस्था का 3.1 फीसदी है. 2019 में महिलाओं द्वारा किए गए ‘घर के काम’ की कीमत 10 ट्रिलियन अमेरिकी डौलर से भी ज्यादा थी. ये फौर्च्यून ग्लोबल 500 लिस्ट की 50 सब से बड़ी कंपनियों जैसे वालमार्ट, ऐप्पल और अमेजन आदि की कुल आमदनी से भी ज्यादा थी.
सरल शब्दों में कहें तो एक महिला अपने पति के कपड़े धोने, प्रैस करने से ले कर उन के खानेपीने, शारीरिक एवं मानसिक सेहत आदि का खयाल रखती है ताकि औफिस जा कर काम कर सके. वह बच्चों को पढ़ाती है ताकि वे बाद में देश के मानव संसाधन का हिस्सा बन सकें. वह अपने मातापिता और सासससुर की सेहत का ध्यान रखती है जो देश की आर्थिक प्रगति में अपना योगदान दे चुके होते हैं. अब अगर इस पूरे समीकरण में से गृहिणी को निकाल दिया जाए तो सरकार को बच्चों का ध्यान रखने के लिए बाल कल्याण सेवाओं, वरिष्ठ नागरिकों का ध्यान रखने के वृद्धाश्रम, केयर गिवर आदि पर बेतहाशा खर्च करना पड़ेगा. यदि महिलाएं घर के काम ही बंद कर दें तो यह सिस्टम पूरी तरह ठप हो जाएगा.
हमें समझना होगा कि विकास तब होगा जब सभी लोग अपने मन का काम कर सकें. जो महिला डाक्टर बनना चाहे वह डाक्टर बन सके, जो महिला इंजीनियर बनना चाहे वह इंजीनियर बन सके. लेकिन पुरुषप्रधान समाज ने महिलाओं पर घर के काम थोप दिए हैं. इस से उन के पैरों में एक तरह की बेडि़यां पड़ गई हैं. उन पर ये दबाव होता है कि वे पहले घर के काम करें फिर कोई अन्य काम.
घरेलू कामों के बोझ के चलते भारतीय शहरों में भी लगभग आधी महिलाएं दिन में एक बार भी घर से बाहर नहीं निकल पातीं. यह चौंकाने वाला तथ्य है ‘ट्रैवल बिहेवियर ऐंड सोसायटी’ नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र का.
काम का बोझ बनाता है बीमार
जो महिलाएं नौकरी या कामकाज के सिलसिले में घर से बाहर निकलती हैं उन्हें नौकरी से घर लौट कर दूसरी ‘कामकाजी शिफ्ट’ में जुटना पड़ता है. भारत सरकार के नैशनल सैंपल सर्वे औफिस ने 2019 में दैनिक जीवन को ले कर कई आंकड़े जुटाए थे. आईआईएम अहमदाबाद के एक प्रोफैसर ने इन आंकड़ों का विश्लेषण कर के बताया कि 15 से 60 साल की स्त्रियां रोजाना औसतन 7.2 घंटे घरेलू काम करती हैं. पुरुषों का योगदान इस का आधा भी नहीं है. यही नहीं कमाने वाली महिलाएं भी कमाऊ पुरुषों की तुलना में घर के कामों को दोगुना वक्त देती हैं.
यह सिर्फ काम के घंटों की बात नहीं है क्योंकि ये महज काम होते तो इन के पूरे हो जाने के बाद आराम भी मिल जाता. परंतु ये तो जिम्मेदारियां हैं जिन में से कुछ स्त्री को विरासत में मिली हैं और कुछ उस ने खुद ओढ़ रखी हैं. मसलन, रात तक सारे काम निबटा कर सोते समय भी महिला के दिमाग में यह चल रहा होता है कि सुबह जल्दी उठ कर बच्चे को तैयार कर के टिफिन बनाएगी. घर में हफ्तेभर बाद मेहमान आने वाले हों तो उस के मन में तैयारी उसी समय से शुरू हो जाती है.
देखा जाए तो कामवाली या औफिस वालों को भी छुट्टी मिल जाती है परंतु घरेलू महिला के लिए हर दिन कामकाजी होता है. इस का असर शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य के साथसाथ उस के व्यवहार और रिश्तों पर भी पड़ता है. काम का तनाव अवसाद या ऐंग्जाइटी की तरफ भी ले जा सकता है. व्यवहार में नकारात्मकता आ सकती है. कामों का बो?ा स्वयं को अन्याय का शिकार मानने की मानसिकता बना सकता है. महिला चिड़चिड़ी हो सकती है. छोटीछोटी बातों पर गुस्सा आ सकता है. इस तरह के व्यवहार से पारिवारिक सदस्यों से रिश्ते खराब होने की आशंका बढ़ती है.
काम के चक्कर में महिलाएं न तो समय पर खाती हैं और न ही पौष्टिक आहार लेती हैं. सैर, योग, ध्यान जैसी गतिविधियों के लिए समय निकालने की कल्पना भी नहीं की जा सकती. ये सारी बातें कुछ समय बाद शारीरिक स्वास्थ्य को बुरी तरह बिगाड़ देती हैं.
क्या है उपाय
कामों का बंटवारा करें: सभी को घर के कामों में मदद करनी है ऐसा नियम बनाएं. जब सब हाथ बंटाएंगे तो हर काम समय पर होगा और सब की आप पर छोटीछोटी बातों के लिए निर्भरता कम होगी. बेटी के साथ बेटे को भी बराबर काम सौंपें. वैसे भी अब खाना बनाना जैसे घरेलू काम लाइफ स्किल बन चुके हैं जो सब को आने ही चाहिए. जब बच्चे बड़े होते हैं तो उन्हें जौब के लिए कई दफा दूसरे शहर में अकेले रहना होता है. पति के साथ भी ऐसा मौका आ सकता है. एकल परिवारों में पत्नी कभी बीमार है या कहीं गई है तब खाना बनाना आता हो तो सबकुछ आसान हो जाता है.
परफैक्शन की चाह छोड़ें: परफैक्शन अच्छी चीज है परंतु हर काम में नहीं. कुछ छोटेमोटे कामों में हर किसी से परफैक्शन की उम्मीद न रखें. आप को लगता है कि हर चीज जगह पर होनी चाहिए इसलिए धीरेधीरे आप को सब की अव्यवस्था सुधारने की आदत हो जाती है. बच्चे स्कूल से आने के बाद कपड़े इधरउधर फेंक देते हैं तो उन्हें आप उठाती हैं. आप को लगता है कि जितनी देर में उन्हें कहेंगी आप खुद बेहतर ढंग से काम कर देंगी. मगर इस आदत से बाहर निकालिए. आप ऐसे काम मत करीए फिर देखिए कभी न कभी वे खुद सब संभालना सीख जाएंगे.
गैजेट्स खरीदें: जिन घरों में तरहतरह के घरेलू काम निबटाने वाले गैजेट्स होते हैं वहां महिलाओं का काफी समय बचता है. घरेलू कामकाज में सहायक गैजेट्स खरीदना अपनी प्राथमिकता बनाएं. उदाहरण के लिए डिशवाशर, रोटी मेकर, प्रैशर कुकर, राइस कुकर, स्टीमर, एअर फ्रायर, जूसर, वैक्यूम क्लीनर, रोबोटिक स्वीपर, वौशिंग मशीन आदि कुछ ऐसे गैजेट हैं जो घर के काम को आसान और अधिक कुशल बना सकते हैं. अपनी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुसार गैजेट चुन सकते हैं. इन से आप का बहुत सा समय और मेहनत बचेगी और तनाव घटेगा.
वाशिंग मशीन घर में हो तो आप को घंटों कपड़े धो कर निकालने की मेहनत नहीं करनी होगी. बस मशीन में डाले और सही समय पर निकाल लिए. यह काम घर का कोई भी सदस्य कर सकता है. इसी तरह डिशवाशर में बरतनों को धोने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी. कोई भी यह काम कर सकता है. इसी तरह रोटी मेकर से रोटियां पकाना या जूसर से जूस निकालना, कुकर में चावल पकाना जैसे काम कोई भी कर सकता है. स्त्री खुद भी करती है तो उस का बहुत सारा समय बचता है.
अपना ध्यान रखें: औफिस जाने और घर संभालने के साथसाथ अपने शौक, मनोरंजन और नींद के लिए समय अवश्य निकालें. यह समय की बरबादी नहीं है. इन से सुकून और आराम मिलता है, जिस के बाद आप कम समय में बेहतर काम कर सकती हैं. समय की कमी लगे तो घर के काम घटाएं पर अपना आराम नहीं.
हाल में ही एक ऐसा शोध आया है जिस में यह बात सामने आईं है कि कई लोग खासतौर पर महिलाएं घर से ज्यादा औफिस में रिलैक्स फील करती हैं. उन्हें औफिस में कम तनाव महसूस होता है.
वैज्ञानिकों ने स्टडी में शामिल 122 प्रतिभागियों का पूरा सप्ताह कार्टिसोल यानी स्ट्रैस हारमोन के लैवल की जांच की और साथ ही उन्हें दिन के अलगअलग समय पर अपने मूड को रेट करने के लिए भी कहा. इस स्टडी के नतीजे बताते हैं कि अपनी वर्कप्लेस पर घर की तुलना में लोग कम तनाव में दिखे. जांच की गई तो रिसर्चर्स ने पाया कि महिलाएं घर की तुलना में औफिस में ज्यादा खुश रहती हैं तो वहीं पुरुष औफिस से ज्यादा घर पर खुश रहते हैं.
एक महिला घर से औफिस आनेजाने के लिए रोज करती है फ्लाइट का इस्तेमाल
हर महिला के लिए घर और औफिस दोनों को संभालना एक बड़ी चुनौती होती है. कुछ महिलाएं इस से थक कर हार मान लेती हैं तो कुछ सभी कठिनाइयों का सामना कर अपनी जिम्मेदारियों को पूरी लगन से निभाती हैं. ऐसी ही एक महिला है मलयेशिया में रहने वाली भारतीय मूल की रेशेल कौर जिन के बारे में सोशल मीडिया पर तारीफों के पुल बांधे गए. वे अपने अद्भुत संघर्ष और अनुशासन के कारण सुर्खियों में आईं. रेशेल कौर एअर एशिया के फाइनैंस औपरेशन डिपार्टमैंट में असिस्टैंट मैनेजर हैं. उन का डेली रूटीन इतना कठिन है कि लोग उसे देख कर हैरान रह जाते हैं.
रेशेल रोजाना सुबह 4 बजे उठती हैं और तैयार हो कर अपने काम के लिए निकल जाती हैं. वे हफ्ते में 5 दिन मलयेशिया से सिंगापुर फ्लाइट से सफर करती हैं. पूरा दिन औफिस में काम करने के बाद शाम को वापस अपने घर लौट आती हैं. इस पूरी दिनचर्या के बावजूद वे अपने बच्चों के साथ समय बिताने को प्राथमिकता देती हैं. उन के अनुसार, यह तरीका न केवल किफायती है बल्कि उन्हें अपने बच्चों के साथ समय बिताने का मौका भी मिलता है.
पहले के कुआलालंपुर में औफिस के पास ही रहती थीं लेकिन वहां रहना बहुत महंगा था और वे घर में सिर्फ एक बार अपने बच्चों से मिल पाती थीं. इसलिए, उन्होंने रोजाना अपडाउन करने का फैसला किया ताकि वे घर और औफिस दोनों को अच्छे से मैनेज कर सकें.
सुबह 4 बजे उठना और तैयार होना. इस के बाद 5.55 बजे की फ्लाइट से सिंगापुर के लिए रवाना होना. फिर पूरा दिन औफिस में काम करना और शाम को दूसरी फ्लाइट से वापस मलयेशिया लौटना. फिर रात 8 बजे तक घर पहुंच कर बच्चों के साथ समय बिताना. यानी स्त्री चाहे तो कुछ भी कर सकती है. औफिस की डगर कितनी भी कठिन हो, वर्किंग वूमन बनने का रास्ता कितना भी चुनौती भरा क्यों न हो, अपने स्वाभिमान से कभी समझता नहीं करना चाहिए.
एक स्त्री को कुछ भी हो जाए अपना काम नहीं छोड़ना चाहिए. क्योंकि यही काम उस के वजूद को स्थापित करता है. वह कमाती है तो अपनेआप पर भरोसा कर पाती है.
महिलाएं औफिस के घरेलू काम ज्यादा करती हैं
रिसर्च बताती हैं कि महिलाएं कार्यालय के घरेलू कामों के लिए भी अधिक जिम्मेदार होती हैं. पार्टियों की योजना बनाना, भोजन का और्डर देना और बैठकों में नोट्स लेना कुछ ऐसे काम हैं जो महिलाओं को अकसर काम पर करने पड़ते हैं. अकसर ‘औफिस हाउस वर्क’ कहे जाने वाले ये काम कार्यस्थल के सुचारु संचालन में योगदान करते हैं लेकिन जब पदोन्नति या वेतन वृद्धि की बात आती है तो इन पर ध्यान नहीं दिया जाता.
कार्यालय के घरेलू काम में आप के कार्यस्थल को सुचारु रूप से चलाने के लिए आवश्यक सभी प्रशासनिक कार्य, छोटेमोटे काम और कम मूल्य वाले असाइनमैंट शामिल हैं.
हालांकि वे समय और ऊर्जा लेते हैं और उन्हें पूरा करने की आवश्यकता होती है लेकिन उन्हें आमतौर पर कार्यस्थल में तुच्छ या महत्त्वहीन योगदान माना जाता है. यह अनुमान लगाया गया है कि महिलाएं श्वेत पुरुषों की तुलना में 29% अधिक कार्यालय घरेलू काम करती हैं.
अध्ययनों से पता चलता है कि इन कार्यों को पूरा करने के लिए महिलाओं से संपर्क किए जाने की संभावना अधिक होती है और पुरुषों की तुलना में उन के द्वारा स्वयंसेवा करने के लिए सीधे अनुरोध स्वीकार करने की संभावना अधिक होती है. महिलाएं स्वयंसेवा इसलिए नहीं करती हैं क्योंकि वे इन कार्यों में बेहतर हैं या उन्हें करने में उन्हें मजा आता है. इस के बजाय गहराई से स्थापित लैंगिक रूढि़वादिता ही इस की वजह है. Job vs Household Chores