Instant Food: आज का जमाना तेजी से बदल रहा है. पहले जहां रसोई का काम महिलाओं की सब से बड़ी जिम्मेदारी माना जाता था, वहीं अब वक्त और जरूरतें दोनों बदल चुके हैं. महिलाएं अब सिर्फ घर तक सीमित नहीं रहीं. वे नौकरी कर रही हैं, पढ़ाई कर रही हैं, बच्चों की देखभाल कर रही हैं और साथ ही खुद के लिए भी कुछ कर रही हैं. ऐसे में उन के लिए सब से बड़ा बोझ होता है रोजरोज का खाना बनाना. यही वजह है कि अब इंस्टैंट फूड और फूड वैंडिंग मशीनें एक नया विकल्प बन कर उभरी हैं जो न सिर्फ समय बचाती हैं बल्कि उन्हें रसोई के बंधन से कुछ हद तक फ्री भी करती हैं.

इंस्टैंट फूड का मतलब होता है ऐसा खाना जिसे बहुत जल्दी, कम मेहनत में तैयार किया जा सके. जैसे रैडीमेड उपमा मिक्स, नूडल्स, इंस्टैंट खिचड़ी, रैडी टू कुक परांठा जिसे सिर्फ गरम करना हो और उसी बरतन में खाना हो. ये सब चीजें अब हर मिडल क्लास घर में दिखने लगी हैं. पहले लोग इन्हें बाजारू और बिना पोषण वाला मानते थे लेकिन अब कंपनियां भी इन्हें हैल्दी, स्वादिष्ठ और घरेलू स्टाइल में बनाने लगी हैं ताकि महिलाओं को लगे कि ये भी घर के बने जैसे ही हैं. अब बात करें वैंडिंग मशीनों की तो ये मशीनें पहले सिर्फ चायकौफी या स्नैक्स देने के लिए जानी जाती थीं लेकिन अब इस में भी बड़ा बदलाव आ गया है.

आजकल ऐसी फूड वैंडिंग मशीनें तैयार हो चुकी हैं जो गरम खाना जैसे छोलेकुलचे, राजमाचावल, डोसा, यहां तक कि बिरयानी तक सर्व करती हैं. इन्हें इस्तेमाल करना भी बेहद आसान है. बस स्क्रीन पर और्डर सलैक्ट करो, पेमैंट करो और मिनटों में गरमगरम खाना सामने. इस से न तो बरतन गंदे होते हैं, न ही रसोई का झंझट होता है. औरतों के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं. घरों के लिए कारगर इस का एक अच्छा उदाहरण है दिल्ली का ‘चख दे छोले.’ इसे सागर मल्होत्रा नाम के युवक ने शुरू किया जो पहले एक बैंक में नौकरी करता था और बाद में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई भी की थी.

उस ने देखा कि लोगों को जल्दी में स्वादिष्ठ, साफ और हैल्दी खाना नहीं मिलता. इसी बात को ध्यान में रख कर उस ने छोलेकुलचे की वैंडिंग मशीन बनाई जो सिर्फ 60 सैकंड में गरमगरम छोलेकुलचे सर्व करती है. इस में औटोमैटिक सिस्टम है जो न तो खाने में हाथ लगाता है और न ही गंदगी करता है. आज दिल्ली के कई इलाकों में उस की मशीनें चल रही हैं और बहुत लोग इस से खाना खा कर संतुष्ट हैं. इसी तरह यूके की एक मां सारा बाल्स्डन ने लौकडाउन के दौरान अपने घर में एक छोटी वैंडिंग मशीन लगाई. उस ने अपने बच्चों को घर के छोटेछोटे काम करने के बदले पौइंट्स दिए और फिर उन्हीं पौइंट्स से बच्चे मशीन से चौकलेट या स्नैक्स खरीदते थे. इस से बच्चों में जिम्मेदारी आई और मां को बारबार उन के लिए नाश्ता बनाने की जरूरत नहीं रही.

इस से हम देख सकते हैं कि वैंडिंग मशीन सिर्फ औफिस या मार्केट के लिए नहीं बल्कि घरों के लिए भी कारगर साबित हो सकती हैं. खाने की सब से बड़ी खासीयत समय की बचत: आजकल की महिलाएं चाहे वर्किंग हों या हाउसवाइफ, सभी के पास समय की कमी है. सुबह बच्चों को स्कूल भेजना, खुद औफिस जाना या घर के दूसरे काम करना, सबकुछ एक समय में करना होता है. ऐसे में अगर रसोई का काम आसान हो जाए तो उन का बहुत बड़ा तनाव कम हो सकता है.

उदाहरण के लिए सुबह का नाश्ता तैयार करने में आमतौर पर 45 मिनट से 1 घंटा लग जाता है. लेकिन अगर इंस्टैंट उपमा मिक्स हो या मशीन से डोसा मिल जाए तो यही काम 10-15 मिनट में हो सकता है. ऊर्जा की बचत: रसोई का काम सिर्फ समय नहीं बल्कि शरीर की भी कड़ी मेहनत मांगता है. गरमी में चूल्हे के सामने खड़ा रहना, सब्जियां काटना, बरतन धोना ये सब बहुत थकाने वाले काम हैं. खासतौर पर बुजुर्ग महिलाएं या स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां झेल रहीं महिलाएं इन कामों से बहुत परेशान रहती हैं. ऐसे में अगर उन्हें झटपट खाना मिल जाए तो उन का शरीर भी आराम कर सकता है और मानसिक तनाव भी कम होता है. साफसफाई और स्वच्छता: आज के समय में लोग खाने की सफाई और हाइजीन को ले कर बहुत जागरूक हो गए हैं. वैंडिंग मशीनें पूरी तरह से सील्ड और औटोमैटिक होती हैं.

खाना किसी इंसान के हाथ से नहीं छूता और हर प्रक्रिया मशीन के अंदर होती है. कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि इंस्टैंट फूड या मशीन वाला खाना घर के ताजे खाने जैसा नहीं होता. यह बात कुछ हद तक सही भी है लेकिन अब तकनीक इतनी आगे बढ़ गई है कि मशीनों से निकला खाना भी घर जैसा स्वाद देने लगा है. साथ ही अब कंपनियां देसी खाने को भी मशीन में डालने लगी हैं जैसे छोलेकुलचे, राजमाचावल, खिचड़ी आदि. इस के अलावा आजकल बाजार में हैल्दी इंस्टैंट फूड भी आने लगे हैं जैसे मल्टीग्रेन डोसा, बाजरा उपमा, ओट्स इडली आदि. इंस्टैंट फूड का बाजार अब भारत में भी फैलता जा रहा है.

इन में एमटीआर फूड्स, टाटा संपन्न, हल्दीराम, आईटीसी किचन और बिकानो समेत कई ऐसे ब्रैंड्स हैं जो आएदिन नईनई फूड आइटम्स को एड करते हैं और लोग बड़े चाव से इन्हें खरीदते और खाते हैं. स्मार्ट जीवनशैली हालांकि अभी भी वैंडिंग मशीनें हर शहर या गांव में उपलब्ध नहीं हैं. यह सुविधा अभी शहरों तक ही सीमित है. इस के अलावा मशीन की लागत भी ज्यादा है, इसलिए हर कोई इसे खरीद नहीं सकता. कुछ मशीनें अगर खराब हो जाएं तो उन्हें ठीक कराने में समय और पैसा दोनों लगते हैं. फिर भी धीरेधीरे ये चीजें सुलभ होती जा रही हैं और आने वाले 5-10 सालों में ये आम घरों का हिस्सा बन सकती हैं. किचन में मशीनें लगाना या इंस्टैंट फूड खाना कोई शर्म की बात नहीं बल्कि यह एक समझदारी और स्मार्ट जीवनशैली की पहचान बन चुका है.

वैंडिंग मशीन और इंस्टैंट फूड ने औरतों को एक हद तक किचन से फ्री कर दिया है. अब वे चाहें तो अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती हैं, जौब पर ध्यान दे सकती हैं या सिर्फ अपने लिए थोड़ा वक्त निकाल सकती हैं बिना इस डर के कि गैस जल रही है या सब्जी जल गई. यह बदलाव धीरेधीरे ही सही लेकिन एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन लाने वाला है और इस परिवर्तन का सब से बड़ा फायदा मिल रहा है घर की महिलाओं को.

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