0:00
12:24

सुरुचि के मकान की लीज समाप्त हो चुकी थी, इसलिए वह अपने सासससुर के साथ ही रह रही थी. इस का अर्थ यह था कि उस की प्रिय सखी रूपा, जो उस से मिलने आ रही थी वह भी अब उन के साथ यहीं रहेगी. रूपा को कालेज की क्रांतिनारी सुरुचि को इस तरह संयुक्त परिवार में रहता देख कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ. उसे लगा कि अगर सुरुचि नियमों और परंपराओं को मानेगी तो ज्यादा सुखी रहेगी. कुछ भी हो शांतनु तो सुरुचि की आंखों के सामने है और यह एक स्त्री के लिए काफी है. सुबहसवेरे शांतनु रूपा को स्टेशन लेने आ गया था. ट्रेन में नींद पूरी न होने की वजह से वह स्टेशन से घर आते वक्त शांतनु के कंधे का सहारा ले कर सो गई पर अब उसे लग रहा था कि आगे भी कहीं शांतनु के साथ अकेले समय गुजारना न पड़े. उसे रहरह कर शांतनु के साथ गुजारी वे सैकड़ों बातें याद आ रही थीं, जो कभी उस की सांसों का हिस्सा थीं.

‘‘यह सिर्फ 2 दिन की बात है, मम्मीपापा को कोई तकलीफ नहीं होगी,’’ सुरुचि ने उसे समझाते हुए घर पहुंचते ही प्यार भरी झप्पी में लेते हुए कहा, ‘‘और मुझे पता है कि तुम मेरी सहेली हो मेरी सौत नहीं, जिस के साथ मुझे अपना कमरा साझा करने में परेशानी हो,’’ और फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं, ‘‘शांतनु के साथ तुम्हारी अच्छी पटेगी, यार.’’रूपा ने सुरुचि को पूरी बात नहीं बताई थी. कार में वह अपने को कंट्रोल नहीं कर पाई थी और शांतनु भी उस के हाथों की शरारतों का कोई प्रतिरोध नहीं कर रहा था. सुबह नाश्ते में ब्रैड पर जैम लगाते वक्त रूपा केवल यही सोच रही थी कि अगर ज्यादा लोग आसपास रहें तो अच्छा रहेगा ताकि वह शांतनु के साथ गलत न करने लगे. आखिर सुरुचि उस की सच्ची दोस्त है. वह सुरुचि को देख थोड़ा सा मुसकराई और फिर अपने पांवों को दबाने लगी. सफर ने उसे थका दिया था.

पर जल्द ही तब रूपा की भली कामनाएं हवा हो गईं जब उसे पता चला कि दोपहर में शांतनु के मातापिता तो 1 सप्ताह के लिए इंदौर जा रहे हैं. उसे तो केवल एक सच पता था कि आदमी और औरत के बीच एक शरीर का रिश्ता होता है, जो उस के और शांतनु के बीच बरसों तक रहा पर वह अब कौन सा 2 दिन में शांतनु को अपनी सहेली से छीन लेगी. आखिर इतने सालों से दोनों के विवाह बाद भी तो वह अलग रह पाई है. ‘‘अरे, तुम्हारा समय यहां बड़ी आसानी से कट जाएगा. मेरी छुट्टियां नहीं हैं तो क्या हुआ. शांतनु की तो नाइट शिफ्ट है. वह दिन में है न तुम से बातें करने के लिए,’’ सुरुचि उसे चाय का प्याला पकड़ाते हुए बोली, ‘‘मेरा प्रिय पति अपनी प्यारी पत्नी के लिए इतना तो कर ही सकता है.’’ ‘‘मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी जिस से इस की वैवाहिक जिंदगी खराब हो,’’ रूपा स्वयं को मन ही मन समझाने लगी. उसे अपने पर पूरा भरोसा न था और बारबार याद दिलाने की कोशिश कर रही थी. ‘मुझे इस बात की परवाह नहीं है कि तुम दिन भर क्या करोगी, आखिर तुम इतनी बड़ी फर्म में क्रिएटिव मैनेजर ऐसे ही नहीं बन गई,’ सुरुचि ने उसे चिढ़ाते हुए कहा.

‘‘तुम इतना मत सोचो, मैं आराम से रहूंगी.’’

सुरुचि इतनी अनभिज्ञ भी नहीं थी. उस ने अपने पति की कुचली पतलून और उस पर रूपा के दो बालों से कुछ तो अंदाजा लगा ही लिया था. जब पसर कर कार में रूपा लेट गई थी जैसा वह कई साल पहले करती थी.

‘‘तो अब अगला एजेंडा क्या है?’’ रूपा ने भौंहें उचका कर अपनी सहेली से पूछा. सुरुचि उस का हाथ पकड़ कर उसे अंदर एक छोटे कमरे में ले गई. वहां केवल एक मेज और 2 कुरसियां रखी थीं. दोनों एकदूसरे के सामने बैठ गईं. फिर सुरुचि अपनी सखी की गोद में सिर रख कर लेट गई. रूपा उस के सिर पर धीरेधीरे अपने होंठों का स्पर्श देने लगी. थोड़ी ही देर में सुरुचि ने सुबकियां भरते हुए रोना शुरू कर दिया.

‘‘क्या हुआ, तुम खुश नहीं हो कि मैं यहां आई?’’ रूपा ने उस के चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए कहा.

‘‘तू मेरी सब से सच्ची सहेली है. तुझे यह पता है न,’’ सुरुचि यह कह बाहर चली गई. उस ने बहुत कम कहा पर पता चल गया कि वह रूपा को भी चाहती है और शांतनु को भी. शांतनु आज दिन भर उसे न दिखे रूपा यह कामना मन ही मन करने लगी. उस का इस सहेली के अलावा और कौन है? इसे धोखा देना अपनेआप को धोखा देना होगा. वह अपनी इस बहन की खुशियां यों 2 दिन में बरबाद नहीं कर सकती.

‘‘पानी गरम हो गया है, अब तुम नहा कर फ्रैश हो जाओ,’’ सुरुचि ने बाहर से आवाज लगाई, ‘‘क्या तुम सुन रही हो?’’

‘‘ह…हां, नहीं मैं जरा कुछ सोच रही थी,’’ रूपा ने उठते हुए कहा.

‘‘तुम क्या सोचती हो… यह मेरे लिए अच्छा है या बुरा कि कांच की एक प्लेट टूट गई,’’ सुरुचि ने रसोई में उसे प्लेट दिखाते हुए कहा. ‘‘पुरानी प्लेट टूट गई अच्छा हुआ. कांच तो नहीं चुभा,’’ रूपा अपने बैग से इटैलियन क्रौकरी का एक नया सैट निकालते हुए बोली, ‘‘नई प्लेट्स अब पुरानी की जगह ले लेंगी.’’ तभी कमरे का दरवाजा खुला और शांतनु अंदर आया. रूपा का चेहरा थोड़ा सा खिला पर उसे लगा कि उस की सहेली रसोई में कुछ चुपचुप सी काम कर रही है. यह कैसी अनुभूति होगी कि सब जानकर भी अनजान हो जाना और भविष्य के सहारे स्वयं को छोड़ देना. रूपा के मनमस्तिष्क में यही सब भाव आ रहे थे. तभी सुरुचि कमरे में आई और उस ने रूपा से कहा, ‘‘क्या तुम थोड़ी देर के लिए टैरेस पर चली जाओगी? मुझे शांतनु से कुछ बातें करनी हैं.’’ रूपा ने उंगलियां लहराते हुए उसे बायबाय का इशारा किया और टैरेस की ओर मुड़ गई. टैरेस पर एक आरामकुरसी रखी थी, जिस पर वह पांव फैला कर सुस्ताने लगी. थकी होने की वजह से उसे नींद आ गई और फिर जब वह अंदर आई तब सुरुचि औफिस जाने के लिए तैयार थी और शांतनु कुछ फाइल्स संभाल रहा था. बीचबीच में पतिपत्नी एकदूसरे को एक क्षण के लिए देख भी लेते थे. रूपा को लगा कि दोनों में कितना प्यार है इस आत्मीयता ने उस के दिल को छू लिया.

उसे लगा उस की सखी के पास सब कुछ है, शिक्षा, संस्कार, नौकरी, पति और प्यार. फिर अगले ही पल ‘यह प्यार इतना रहस्यमयी क्यों होता है?’ वह सोचने लगी. ‘‘हम शाम को मिलते हैं,’’ सुरुचि औफिस के लिए रवाना होते हुए बोली. दोनों गले मिलीं और एकदूसरे के गाल पर चुंबन दिया. मुख्यद्वार बंद करने के बाद रूपा ने अपने पर्स से एक अंगूठी निकाली और उसे देख अपनी असफल शादी के बारे में सोचने लगी. उस की जल्दबाजी में की शादी का पछतावा उसे सुहागरात को ही हो गया था जब उस के पति ने एक ही रात में उस से दूसरी बार प्यार करने पर अनिच्छा जाहिर की थी.

‘‘आई एम ए मैन, नोट ए मशीन,’’ उस के पति ने उसे उलाहना दिया था. कोई तो हो जो मुझे दिनरात प्यार करे, यही सोच उस ने जाति से बाहर जा कर एक पंजाबी से प्रेम विवाह किया था. पर यह शादी साल भर भी नहीं चली.

‘‘तुम्हारी पोजिशन काफी इंट्रैस्टिंग है,’’ शांतनु की इस बात ने उस के विचारों का क्रम तोड़ा. वह किचन से कोल्डड्रिंक के 2 गिलास ले आया.

‘‘तुम क्यों परेशान हो रहे हो? मैं मेहमान थोड़े ही हूं,’’ कहते हुए उस ने शांतनु का हाथ पकड़ उसे अपने पास बैठा लिया. जवाब में शांतनु केवल मुसकराया. रूपा ने आह भरते हुए कहा, ‘‘शांतनु, मुझे लगता है हमें ज्यादा समय साथ नहीं बिताना चाहिए.’’ वह फिर हंसा. इस बार हंसी में केवल एक मर्दाना दंभ था, ‘‘क्यों, तुम्हारा खुद पर नियंत्रण नहीं है क्या?’’

‘‘तुम तो मझे कालेज के दिनों से जानते हो, फिर भी…’’ कहतेकहते वह थोड़ी रुकी, फिर बेबाक अंदाज में बोली, ‘‘मुझे चूमो,’’ और फिर सरक कर शांतनु के बिलकुल नजदीक आ गई. शांतनु के हाथों का स्पर्श उसे बहुत सुखद लग रहा था, पर वह उस का आग्रह क्यों स्वीकार नहीं कर रहा, यह सोच कर वह परेशान हो रही थी. शांतनु ने जवाब में उस का हाथ अपने दोनों हाथों के बीच दबाया और कहा, ‘‘मैं ऐसे ही ज्यादा ठीक हूं.’’

‘‘पर मैं,’’ कहते हुए रूपा रुकी और फिर उस की आंखों में एकटक देखने लगी कि कितनी कशिश है इन में. वह सम्मोहित हो रही थी और फिर अतीत को याद करने लगी जब दोनों ने एक ही नाटक में साथ में मंचन किया था और प्यार व शरीर दोनों मिले थे. आज शांतनु की आंखों में प्यार था पर वासना का दूरदूर तक कोई निशान न था. ‘क्योंकि मैं ही कामोन्मादी हूं तो इस में इस बेचारे का क्या दोष? मैं ही इसे लगातार प्रलोभन दिए जा रही हूं. रूपा मन ही मन खुद को कोसने लगी. ‘‘पता है शांतनु तुम मुझे कालेज डेज में डायमंड कहते थे,’’ रूपा ने कुछ सोचते हुआ कहा.

‘‘यस, देट यू आर इवन टुडे,’’ शांतनु बोला.

‘‘हां, मैं कितनी कठोर, निष्ठुर और ठंडी जो हूं डायमंड की तरह,’’ रूपा ने व्यंग्य कसा.

‘‘अरे, तुम तो हौट हो. किस ने कहा कि तुम कोल्ड हो?’’ शांतनु ने आंखें चौड़ी कर कहा. इस बात को सुन रूपा तेजी से घूमी और उस ने शांतनु के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और अपनी जीभ से उस के मुंह को खोलने का प्रयास करने लगी. उसे पता था कि वह आग से खेल रही है पर हीरे को आग का क्या भय. पूरे कमरे में केवल उन की सांसों की ध्वनि थी. कुछ समय बाद ही शांतनु ने उसे कमर से पकड़ कर अपने से दूर कर दिया. वह उसे आश्चर्य से देखने लगा. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘तुम क्या करने जा रही हो?’’

‘‘तुम्हें प्यार करने और क्या?’’ वह हंसते हुए बोली, ‘‘और अब ज्यादा बातें मत करो. यही जो पहले भी हम करते रहे थे. शांतनु थोड़ा संजीदा हो गया. उस ने रूपा को हाथ से पकड़ कर अपने करीब बैठाया. फिर धीरे से बोला, ‘‘मैं तुम्हें एक बात बताना चाहता हूं.’’

‘‘कहो माई लवर बौय,’’ रूपा के स्वर में शैतानी थी.

‘‘सुरुचि ने मुझ से विनती की थी कि मैं तुम्हें प्यार करूं और तुम्हारा ध्यान रखूं. वह तुम्हें बहुत चाहती है. वह नहीं चाहती कि तुम डिप्रैशन की दवा खाखा कर एक बार फिर बीमार हो जाओ. जैसा पहले 2-3 बार हो चुकी हो.’’ यह बात सुन कर रूपा का चेहरा फक सा हो गया. उसे ऐसा लगा गोया सुरुचि उस के गाल पर तमाचा जड़, बगल में खड़ी मुसकरा रही है. उसे अपनी सखी पर प्यार और गुस्सा दोनों आए पर उस का मन ग्लानि से भर गया. ‘‘तुम मुझे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दो,’’ उस ने टूटते स्वर में शांतनु से कहा. शांतनु कमरे से बाहर चला गया.

शाम को जब सुरुचि घर आई तो उसे पता चला कि रूपा किसी अर्जेंट मीटिंग के लिए चली गई है. उस के लिए एक नोट छोड़ गई थी जिस पर लिखा था – ‘थैंक यू फौर ऐवरीथिंग.’

उस ने बैड पर नजर दौड़ाई. बैड वैसा ही लगा जैसा वह छोड़ गई थी. उस पर वह कंघा भी वहीं पड़ा था जिसे वह जानबूझ कर रख गई थी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...