शरमीले स्वभाव वाले सनी देओल सिल्वर स्क्रीन पर हमेशा रोबीले अंदाज में नजर आते हैं, उन्हें फिल्मों में रोमांस करते कम ढाई किलोग्राम का हाथ दिखाते ज्यादा देखा जाता है. उनका जोशीला अंदाज और रोबीले डायलौग सुनने के लिए ही प्रशंसक उन की फिल्में पसंद करते हैं.

सनी देओल बौलीवुड के उन नायकों में से हैं, जिन्हें उतनी चर्चा नहीं मिली, जितनी के वे हकदार हैं. 1983 में फिल्म ‘बेताब’ से बौलीवुड में ऐंट्री करने वाले सनी ने लंबे समय तक अपने ऐक्शन से दर्शकों को दीवाना बनाए रखा. 

सनी के काफी समय से डगमगाते कैरियर को इस साल आई उन की फिल्म ‘घायल वंस अगेन’ से थोड़ी राहत मिली है, जिस में उन्होंने पटकथा लेखन से ले कर निर्माता, निर्देशक, अभिनेता सभी की जिम्मेदारी निभाई. 

सनी का आज भी ऐक्शन भूमिकाओं वाली फिल्मों में काम करने और अपने बेटे करण को बौलीवुड डेब्यू कराने को ले कर एक इवेंट के मौके पर विस्तार से चर्चा हुई. पेश हैं, कुछ खास अंश:

खुद को निर्देशित करना टेढ़ा काम 

खुद का निर्देशन करने के सवाल के जवाब में सनी कहते हैं, ‘‘यह वास्तव में बड़ा मुश्किल काम है. मैं ऐक्टिंग तो आसानी से कर लेता हूं, क्योंकि शौट देने के बाद निर्देशक की आंखों से ही मैं समझ जाता हूं कि शौट सही गया या नहीं. पर अपनेआप को निर्देशित करना बड़ी टेढ़ी खीर है.

अपना शौट देने के बाद मुझे अपनी टीम के फीडबैक पर डिपैंड होना पड़ता था. अगर टीम की फीडबैक सही हुई तो शौट अच्छा हो जाता था. अगर टीम में ही अच्छेबुरे की परख रखने वाले न हों तो फिल्म का क्या होगा सहज कल्पना की जा सकती है.

‘‘बतौर डायरैक्टर काम करने के लिए काफी ऐनर्जी की जरूरत होती है. एक बार कैमरे में देखना फिर मौनीटर में, यह सब बहुत मुश्किल भरा होता है. मेरे साथ तो कई बार ऐसा भी हुआ जब डायरैक्शन को ले कर मैं अपनों से ही लड़ पड़ता था, तो कभी खुद में उलझा महसूस करता था.

जब मैंने ऐक्टिंग की शुरुआत की थी मैं कालेज पास कर के ही निकला था. मेरी पहली फिल्म ‘बेताब’ के निर्देशक राहुल रवैल और मेरी उम्र में ज्यादा अंतर नहीं था. मैंने उन से परदे के पीछे की दुनिया के बारे में बहुत कुछ सीखा.

‘‘इस के बाद जब 1999 में फिल्म ‘दिल्लगी’ को निर्देशित किया तो आत्मविश्वास बढ़ता गया और फिल्म ‘घायल रिटर्न’ में मुझे लगा कि जो कहानी मैं लोगों को दिखाना चाहता हूं, अगर उसे खुद ही बनाऊं तो उसे अच्छी तरह लोगों के सामने ला पाऊंगा.’’

अब बेटे की बारी है

अपने बेटे करण को फिल्मों में लौंच करने के सवाल पर वे बताते हैं कि मेरे पापा ने मुझे फिल्म ‘बेताब’ से और बौबी को फिल्म ‘बरसात’ से बौलीवुड डेब्यू करवाया था. मैं भी करण के लिए एक रोमांटिक फिल्म बनाने की तैयारी कर रहा हूं.

जल्द ही आप लोगों के सामने देओल परिवार की नैक्स्ट जैनरेशन होगी. उसे भी हमारे प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले रिलीज किया जाएगा. मैं खुश हूं कि अब मेरे बेटे की बारी आ रही है. उम्मीद है कि वह अच्छा काम करेगा. वह अभी से मेहनत कर रहा है. हम ने उसे यह समझा दिया है कि मेहनत से बढ़ कर कुछ नहीं.

वह अपने पापा को 58 साल की उम्र में मेहनत करते और ऐक्शन वाली भूमिकाएं करते देख खुश होता है. उस के दादाजी ने भी 60 साल की उम्र तक कई ऐक्शन फिल्में की हैं.

अब भी डरता हूं

पापा इतने जौली नेचर के हैं, फिर भी मैं आज भी उन से डरता हूं. शायद यह हमारी खानदानी परंपरा चली आ रही है कि पिताजी अपने पिताजी से डरते थे और हम अपने पिताजी से. उन की हमेशा इच्छा होती है कि हम उन के साथ बैठ कर बातें करें. लेकिन लिहाज के चलते है हम उन के साथ अधिक देर नहीं बैठ पाते. मेरे बेटे के साथ भी मेरा ऐसा ही रिश्ता है. लेकिन एक बात अपने बेटे को जरूर समझाई है कि हमेशा जमीन से जुड़े रहना. यही बात मेरे पापा ने हमें सिखाई थी.

मेरी पहली फिल्म मुझे याद है, जब मैं ने ऐक्टिंग की शुरुआत की थी. मैं नया नया कालेज से आया

था. शूटिंग पर कभी तैयारी से नहीं आता था. लेकिन वहां मौजूद सभी अपने सीनियर्स से कुछ न कुछ सीखने की कोशिश में लगे रहते थे. मैं ने जब ‘बेताब’ की थी तब मुझे खास कुछ भी पता नहीं था कि फिल्में बनती कैसे हैं. हां, मगर दिलचस्पी बहुत थी. चूंकि पापा को हमेशा देखता आया था तो रुझान तो था ही.

आज के बच्चे जब आते हैं तो वे मेकअप को ही सब कुछ समझ लेते हैं. सिर्फ सिक्स पैक बौडी को ले कर सोचते हैं कि यही अभिनय है. ऐक्टिंग छोड़ कर यही सब उन की फिल्म के लिए तैयारी होती है.

मेहनत करना शुरू से पसंद

मेरे दिन की शुरुआत आज भी जिम और खेल के मैदान से होती है. आज भी मुझे जल्दी उठ कर सारा काम निबटाने की आदत है. आज भी मैं एक भी दिन मिस नहीं करता हूं जब मैं ऐक्सरसाइज न करूं. अगर मैं लेट नाइट शूट से भी लौटता हूं तब भी डेली रूटीन वही रोज वाला रहता है.

मैं मानता हूं कि मुझे यहां तक पहुंचाने में स्पोर्ट्स का बहुत बड़ा योगदान है. मेरी शुरू से इच्छा थी कि मैं स्पोर्ट्स पर फिल्म बनाऊं. हम ने काफी कुछ सोचा था. बातें भी हुई थीं. लेकिन फिर बाद में हम बना नहीं पाए और अब तो काफी फिल्में बन चुकी हैं. मैं फुटबौल, क्रिकेट, बास्केटबौल सब खेला करता था और शायद इसीलिए आज भी शरीर में फुरती है. मुझे याद है मैं ने और शेखर कपूर ने तय किया था कि हम मिल कर स्पोर्ट्स पर फिल्म बनाएंगे और उसे बनाने के लिए जीपी सिप्पी ने हां भी कर दी थी पर फिर न जाने वे किस कारण पीछे हट गए और फिल्म नहीं बन पाई.

रोमांस की कोई उम्र नहीं होती

सनी के हमउम्र कई अभिनेताओं ने अपनी भूमिकाएं बदल दी हैं. अनिल और जैकी श्रौफ अब पिता की भूमिका निभा रहे हैं. फिल्म ‘घायल वंस अगेन’ में भी सनी ने एक मजबूर पिता की भूमिका निभाई है. भविष्य में क्या इस तरह की भूमिकाएं करते रहेंगे या रोमांस वाला करैक्टर भी करेंगे? के सवाल पर वे बताते हैं, ‘‘अगर किरदार अच्छा मिला तो जरूर रोमांस वाली भूमिकाएं करूंगा. अभी इतनी भी उम्र नहीं हुई है कि मैं रोमांस न कर सकूं. हमारी इंडस्ट्री में तो आज सभी 50 के ऊपर वाले ही रोमांटिक फिल्में कर रहे हैं.’’

लोगों को मेरे साथ काम करने में परेशानी

बौलीवुड में किसी दूसरे अभिनेता के साथ सनी की जोड़ी आज तक नहीं बन पाई है. वैसे सलमान खान के साथ वे काम करने की इच्छा रखते हैं पर कहते हैं कि पहले ऐसी स्क्रिप्ट तो लिखी जाए जिस में हम दोनों फिट हो सकें. वैसे मैं यह जानता हूं कि इंडस्ट्री में कोई मेरे साथ काम नहीं करना चाहेगा. इस में मुझे कोई प्रौब्लम नहीं है.

कहां तक बचेंगे आप

फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ पर सैंसर की दादागीरी पर हाई कोर्ट की फटकार के बाद क्या उन की फिल्म ‘मोहल्ला अस्सी’ भी सैंसर से मुक्त होगी? सवाल के जवाब में वे बताते हैं, ‘‘कोर्ट के तेवर देख कर तो यही लगता है कि शायद फिल्म रिलीज हो जाए. मेरा मानना है कि सैंसर बोर्ड का काम फिल्मों को सर्टिफिकेट देना का होना चाहिए, उन्हें बैन करने का नहीं.

मैं यह भी मानता हूं कि अगर सैंसर बोर्ड न हो तो लोग आजादी का गलत फायदा उठाएंगे. लेकिन हमारे देश में स्वतंत्र हो कर फिल्में बनाना संभव नहीं है. जब आप कोई ऐसी फिल्म बनाते हैं, जो सत्य तथ्यों पर आधारित हो या समाज को संदेश देने वाली हो तो कभी उस के आड़े धर्म आता है, कभी जाति आती है तो कभी समाज. आप कहां कहां तक बचेंगे इस से. कला की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता धीरेधीरे खत्म हो रही है.’’

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