हिमालय की गोद में बसे सिक्किम राज्य को  प्रकृति के रहस्यमय सौंदर्य की भूमि या फूलों का प्रदेश कहना गलत नहीं होगा. वास्तव में यहां के नैसर्गिक सौंदर्य में जो आकर्षण है, वह दुर्लभ है. नदियां, झीलें, बौद्ध मठ और स्तूप तथा हिमालय के बेहद लुभावने दृश्यों को देखने के अनेक स्थान, ये सभी हर प्रकृति प्रेमी को बाहें फैलाए आमंत्रित करती हैं. विश्व की तीसरी सबसे ऊंची पर्वतचोटी कंचनजंगा (28156 फुट) यहां की सुंदरता में चार चांद लगाती है.

सूर्य की सुनहली किरणों की आभा में नई-नवेली दुल्हन की तरह दिखने वाली इस चोटी के हर क्षण बदलते मोहक दृश्य सुंदरता की नई-नई परिभाषाएं गढ़ते हुए से लगते हैं. मनुष्य की कल्पनाओं का सागर यहां हिलोरें मारने लगता है. सिक्किम भारत का एक छोटा सा पर बेहद खूबसूरत राज्य है इस ठंड के मौसम में एक बार आप भी वहां हो आएं, अन्यथा सिक्किम की सुन्दरता देखने से आप इस वर्ष चूक सकती हैं. क्योंकि बर्फ से ढके पर्वत, नदिया बिल्कुल अलग बनाते हैं सिक्किम को, चलते हैं सिक्किम के सुहाने सफर पर और आपको रूबरू कराते हैं सिक्किम के प्रसिद्ध स्थलो से जहां जाकर आपको सुकून का एहसास होगा.

बंजाखरी वौटरफौल

गंगटोक शहर से मात्र 10-12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस वौटरफौल के नज़दीक पहुंचने का रास्ता भी बहुत सुंदर है. पहाड़ी घुमावदार रास्तों से होते हुए इस वौटरफौल तक पहुंचा जाता है. यह रंका मोनेस्ट्री के रास्ते में पड़ता है. यह पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है. बंजाखरी वौटरफौल के पीछे नेपाली समुदाय के बीच प्रचलित एक कहानी है. यह कहानी इसके नाम से जुड़ी है. वन का अर्थ है-जंगल और नेपाली भाषा में जाखरी का अर्थ है-साधु. स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां जंगल में एक साधु तपस्या करते थे. उनके नाम पर ही इस वौटरफौल का नाम बंजाखरी पड़ा है. इस जगह को आप एक अम्यूजमेंट पार्क के रूप में भी देख सकती हैं.

जमा हुआ झरना

अगर आप नवंबर-दिसंबर में गंगटोक जाएंगे तो आपको नजदीक ही कुछ ऐसा देखने को मिलेगा, जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी. जी हां, यहां है फ्रोजन वौटरफौल यानी जमा हुआ झरना. यह नजारा गंगटोक से थोड़ा ऊपर नाथुला पास की ओर जाने पर बीच में देखने को मिलता है. आमतौर पर प्रकृति के ऐसे नजारे उन खुशनसीब लोगों को देखने को मिलते हैं जो कि हिमालय की ऊंचे-ऊंचे शिखरों पर ट्रेकिंग करने जाते हैं.

लेकिन सिक्किम में ये नजारे एक आम टूरिस्ट को भी देखने को नसीब हो जाते हैं और वह भी बिना मुश्किल ट्रेकिंग किए हुए. छंगू लेक से ऊपर जाने पर बाबा हरभजन सिंह की समाधि से लगा हुआ ही एक वौटरफौल इन दिनों जम कर बर्फ में तब्दील हो जाता है. आप बड़ी आसानी से सड़क मार्ग से अपनी गाड़ी दौड़ाते हुए यहां तक पहुंच सकती हैं. यह वौटरफौल सफेद शीशे की तरह चमक रहा होता है. इससे निकालने वाली पानी की धाराएं भी जम जाती हैं. भारत में आम टूरिस्ट को यह अद्भुत नजारा केवल यहीं देखने को मिलता है. इसे आप कभी भुला नहीं पाएंगे.

छांगू लेक

इसका एक नाम तसोमगो लेक भी है, यह एक ग्लेशियर लेक है. गंगटोक से लगभग 35 किलोमीटर दूर नाथुला बौर्डर की ओर जाने वाली सड़क जवाहर लाल नेहरू रोड पर समुद्र तल से 12000 फीट की ऊंचाई पर बनी एक खूबसूरत लेक है. इसका आकार अंडाकार है और गहराई लगभग 50 फीट है. इसके चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ हैं. इन्हीं पहाड़ों के बर्फ के पिघलकर आने वाले पानी से यह लेक बनी है. सर्दियों के मौसम मे यह लेक जम भी जाती है. यहां जाने के लिए एक दिन पहले जिला प्रशासन से अनुमति लेनी होती है. आप जब गंगटोक जाएं तो अपने होटल वाले को पहले ही दिन सूचित कर दें. गंगटोक के सभी होटल आने वाले सैलानियों के लिए अनुमति का इंतजाम कर देते हैं. अपने साथ 2 फोटो और पहचान पत्र ले जाना न भूलें. यहां जाने के लिए सुबह जल्दी निकलें, क्योंकि इतनी ऊंचाई पर होने पर दोपहर के बाद यहां मौसम अचानक बदल जाता है. छांगू लेक का मुख्य आकर्षण है याक की सवारी. आप जब यहां जाएं, तो याक की सवारी का आनंद ज़रूर उठाएं.

नाथुला बौर्डर

नाथुला पास समुद्र तल से 14,140 फीट की ऊंचाई पर पड़ता है. चीन के साथ भारत की यह एक व्यापारिक सीमा है. इस पास के दूसरी ओर तिब्बत पड़ता है. यह रास्ता प्राचीन सिल्क रूट के नाम से भी जाना जाता था. भारत-चाइना के बीच यह एकमात्र बौर्डर है, जहां तक टूरिस्ट पहुंच सकती हैं. दोनों ओर सेना तैनात रहती है. आप इस बौर्डर पर जाकर चीनी सैनिकों के साथ हाथ मिला सकती हैं, फोटो खिंचवा सकती हैं.

हनुमान टोक

गंगटोक में कई दार्शनिक स्थल हैं लेकिन उन सबके बीच हनुमान टोक सबसे अलग है. यह सिर्फ एक मंदिर नहीं है, बल्कि एक ऐसा केन्द्र बिंदु है, जहां से खूबसूरत कंचनजंघा चोटियों के दर्शन सबसे साफ होते हैं. इसीलिए गंगटोक आने वाला हर सैलानी यहां आना नहीं भूलता. शहर से 25 किलोमीटर पूर्व में स्थित यह स्थान समुद्र तल से लगभग 11000 फीट की ऊंचाई पर है.

लाल बाजार में शौपिंग

गंगटोक मे शौपिंग करने के कई विकल्प मौजूद हैं, महात्मा गांधी रोड पर पूरा का पूरा मार्केट सजा हुआ है. अगर आप थोड़ी बचत करना चाहते हैं तो महात्मा गांधी रोड के आखिरी सिरे तक चहलकदमी करते हुए चले जाएं. वहीं पर लाल बाज़ार है, जो कि यहां के लोगों का लोकल बाजार है. इस बाजार से लिड वाला टी मग जरूर खरीदें. यह सिक्किमी मग यहां की पहचान है.

गंगटोक से आप तिब्बती कार्पेट खरीद सकती हैं, यहां भूटिया लोग हाथ से बने ऊनी कपड़े बेचते हैं. गंगटोक से तिब्बती बुद्धिस्ट पेंटिंग्स जिन्हें ‘तांगकस’ कहते हैं खरीद सकती हैं. यहां के लोग मानते हैं कि ये पेंटिंग्स घर में गुडलक लेकर आती हैं. गंगटोक मे बनी लगभग सभी मोनेस्ट्री के बाहर एक छोटा सा बाजार सजा होता है, जहां से आप हैंडीक्राफ्ट खरीद सकती हैं. गंगटोक से सिक्किम के इकलौते चाय बागान टेमी टी गार्डेन की और्गेनिक चाय भी खरीदी जा सकती है, जहां की चाय पूरे विश्र्व में मशहूर है.

सिक्किम के सतरंगे स्वाद

सिक्किम घर है कई जातियों का जिनमें प्रमुख हैं नेपाली, भूटिया, तिब्बती और लेपचा जनजाति. ऐसे में यहां इन सभी के खाने चखने को मिल जाते हैं. सिक्किम हिमालय का हिस्सा है और भारत का पहला और्गेनिक फार्मिंग राज्य भी है, इसलिए यहां के खाद्द पदार्थ में सब्जियों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में होता है. यहां पर रहने वाले लोग नेपाल, भूटान और ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों से आकर बसे हैं इसलिए इनके खाने भी उसकी खुशबू लिए हुए हैं.

यहां मुख्य रूप से मोमो (स्टीम्ड डंपलिंग), टमाटर का अचार, थूपका (नूडल सूप), किन्मा करी (फर्मेंटेड सोयाबीन), गुंड्रूक आंड सींकी सूप (फर्मेंटेड वेजिटेबल सूप), गुंड्रूक का अचार, ट्रेडीशनल कौटेज चीज, छुरपई का अचार, छुरपई-निंग्रो करी, सेल रोटी (फर्मेंटेड राइस प्रोडक्ट), शिमी का अचार, पक्कु (मटन करी), आंड मेसू पिकल (फर्मेंटेड बंबू शूट) आदि मिलते हैं. इनके खानों में भांति-भांति के मीट, मछली और साग शामिल हैं.

कैसे और कब

गंगटोक पहुंचने के लिए रेल न्यू जलपाईगुड़ी तक जाती है. उससे आगे का रास्ता सड़क मार्ग से 4 से 5 घंटे में तय किया सकता है, या फिर बागडोगरा एयरपोर्ट से हेलीकौप्टर द्वारा बड़ी आसानी से यह सफर मात्र 35 मिनट में तय किया जा सकता है. इसके लिए पहले से बुकिंग करनी होती है.

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