Passenger Parenting एक नई परवरिश की शैली है जिस में मातापिता बच्चों के जीवन में सहभागी तो होते हैं, लेकिन निर्णय लेने की बागडोर बच्चों को सौंपते हैं. इस में बच्चा खुद निर्णय लेता है, जिस से वह आत्मविश्वासी बनता है और अपने समय का प्रबंधन भी खुद करता है. यह पद्धति बच्चों को स्वतंत्रता देती है, पर साथ ही कुछ चुनौतियां भी लाती है.

रचनात्मक सोच को बढ़ावा

इस शैली के सकारात्मक पहलुओं में आत्मनिर्भरता का विकास शामिल है, जिस में बच्चा समस्याओं को स्वयं हल करना सीखता है.

रचनात्मक सोच को बढ़ावा मिलता है क्योंकि सीमाओं की कमी नवाचार को प्रेरित करती है. साथ ही, बच्चों पर परफैक्शन का दबाव न होने से वे तनावमुक्त रहते हैं.

नकारात्मक पक्ष

हालांकि, इस के नकारात्मक पक्ष भी हैं. बिना मार्गदर्शन बच्चे दिशाहीन हो सकते हैं. वे गैजेट्स पर अधिक निर्भर हो सकते हैं और मातापिता से भावनात्मक दूरी बना सकते हैं. अकेले निर्णय लेते रहने से वे असुरक्षित और अकेला महसूस कर सकते हैं. इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है.

मातापिता को मार्गदर्शक की भूमिका निभाते रहना चाहिए. गैजेट्स के उपयोग पर नियम बनाए जाने चाहिए. बच्चों से नियमित संवाद करना और उन्हें स्पष्ट लेकिन प्रेमपूर्वक सीमाएं बताना जरूरी है.

कितना सही

पैसेंजर पेरेंटिंग बच्चों में आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास को बढ़ावा देती है, बशर्ते कि मातापिता सच्चे साथी, संरक्षक और मार्गदर्शक की भूमिका निभाएं. बच्चों को यह एहसास दिलाना जरूरी है कि वे चाहे खुद निर्णय लें, लेकिन मातापिता हमेशा उन के साथ हैं. यह परवरिश की वह शैली है जिस में आजादी, प्रेम और मार्गदर्शन का संतुलन होता है और यही संतुलन बच्चे के उज्ज्वल भविष्य की नींव रखता है. Passenger Parenting

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