आज के यूथ और उनकी सोच को लेकर बनी निर्देशक गौरी शिंदे की फिल्म ‘डियर जिंदगी’ कुछ हद तक इसे दिखाने में सफल हुई है. ये सही है कि आज के युवा हर चीज जल्दी पा लेने की कोशिश करते हैं, पर रास्ते में आई समस्याओं से वे डर कर पीछे हट जाते हैं. ऐसे में क्या सही, क्या गलत इसकी समझ से परे, वे अपनी जिंदगी से दूर भागना चाहते हैं. जिसमें उनकी नींद, चैन सब कुछ खो जाती है. हर रिश्ता उनके लिए जंजाल लगता है.

‘इंग्लिश विंग्लिश’ की अपार सफलता के चार साल बाद गौरी शिंदे ने इस फिल्म को बनाई है, जिसमें अलिया भट्ट ने पूरी मेहनत कर अपनी अभिनय को निखारा है. उनका बार-बार अलग-अलग तरह का व्यवहार करना, उनका मानसिक रूप से टूट जाना, अकेले रहना आदि सभी भाव उन्होंने बखूबी निभाया है. इसमें आलिया का साथ अंगद बेदी, कुनाल कपूर, अली जफर, आदित्य रॉय कपूर और शाहरुख खान ने दिया है. शाहरुख खान मनोरोग चिकित्सक के रूप में जंचे हैं. फिल्म में गोवा और मुंबई के लोकेशन को अच्छी तरह फिल्माया गया है.

कहानी इस प्रकार है

कायरा (अलिया भट्ट) विदेश से सिनेमेटोग्राफी का कोर्स करने के बाद मुंबई में अपने दोस्तों के साथ मिलकर ऐड फिल्म्स बना रही होती है और उसे आगे चलकर बड़ी फीचर फिल्म बनाने की इच्छा है. काम के दौरान उसकी अच्छी पहचान रघुवेंद्र (कुनाल कपूर) के साथ होती है. दोनों की रिलेशनशिप ‘बेड’ तक पहुँच जाती है. ऐसे में जब वह अपने पुराने बॉयफ्रेंड सिड (अंगद बेदी) से यह बात कहती है तो वह उससे मुह मोड़ लेता है.

इधर कायरा जब वापस राघुवेंद्र के पास आती है तो उसे पता चलता है कि रघुवेंद्र अमेरिका एक बड़ी प्रोजेक्ट को लेकर अकेला जाने वाला है. वहां जाकर कुछ वजह से वह कायरा को इग्नोर करता है. ऐसे में कायरा गोवा अपने पेरेंट्स के पास जाती है, जहां उसे जाना कतई पसंद नहीं. वहां वह अपने पिता के एक दोस्त के होटल का वीडियो शूट करने के दौरान डॉ जहांगीर खान (शाहरुख खान) उर्फ जग से मिलती है. वह प्रभावित होती है और बार-बार मिलना जरुरी समझती है. वह उन्हें जीने की अलग-अलग तरीके बताते है. इस तरह कहानी धीरे-धीरे अंजाम तक पहुचती है.

कहानी अपने आप में पूरी है, लेकिन एक माता पिता अगर आर्थिक समस्या की वजह से अपने छोटी बच्ची को कुछ दिनों के लिए नाना-नानी या दादा-दादी के पास छोड़ जाते हैं और थोड़े दिनों बाद वापस आते हैं, तो गलत नहीं है. ऐसा हो सकता है. लेकिन ऐसे में बेटी का अपने माता-पिता से दूरियां बना लेना, हेट करना, किसी समस्या से भागना आदि कुछ हजम नहीं हुई.

फिल्म का पहला भाग अच्छा था पर दूसरे भाग में फिल्म धीमी थी और जरुरत से अधिक संवाद डॉक्टर जहांगीर और कायरा के बीच सिटींग में थी, जिसे कटशॉर्ट किया जा सकता था. फिल्म का टाइटल सांग ‘लव यू जिंदगी…’ कहानी के अनुसार थी. इसे थ्री स्टार दिया जा सकता है.

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