आमीर खान के साथ फिल्म ‘‘दंगल’’ से बौलीवुड में कदम रखने वाली नृत्य की शौकीन अदाकारा सान्या मल्होत्रा दो वर्ष तक खामोश रहीं. मगर इस वर्ष महज तीन सप्ताह के अंदर उनकी दो फिल्में ‘‘पटाखा’’ और ‘‘बधाई हो’’ सिनेमाघरों में पहुंची है. फिल्म ‘‘पटाखा’’ में दो बहनों की लड़ाई की कहानी थी, तो वहीं 18 अक्टूबर को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘बधाई हो’’ में अधेड़ उम्र में माता पिता बनने वाले दंपति को किस तरह सामाजिक शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है, उसकी हास्यप्रद कहानी है. इस फिल्म में ऐसे ही दंपति के युवा बेटे की प्रेमिका के किरदार में सान्या मल्होत्रा नजर आएंगी.
हाल ही में सान्या मल्होत्रा से मुलाकात हुई. प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के अंश…
फिल्म ‘‘बधाई हो’’ के अपने किरदार पर रोशनी डालेंगी?
इस फिल्म में मैं दिल्ली की लड़की स्वीटी शर्मा बनी हूं, जो कि एक आई एस एस अफसर (शीबा) की बेटी है. खुद स्वीटी शर्मा एक कारपोरेट कंपनी में नौकरी करती है और इसी कंपनी के सहकर्मी नकुल कौशिक (आयुष्मान खुराना) की वह प्रेमिका है. फिल्म में जब स्वीटी को पता चलता है कि उसके प्रेमी की मां तीसरी बार गर्भवती हो गयी है, तो उसे इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती. बल्कि स्वीटी तो अपने प्रेमी नकुल को समझाती है कि इसमें परेशान होने वाली या शर्मिंदगी वाली कोई बात नहीं है. यह सब बहुत आम मसला है. हमारे परिवार में मेरी मम्मी सबसे बड़ी और मेरे मामा सबसे छोटे हैं.
किसी भी किरदार को निभाने में कल्पना शक्ति कितना साथ देती है?
यह तो किरदार पर निर्भर करता है. कई बार हम किरदार में खुद की कल्पना कर पाते हैं. वैसे भी हम किसी किरदार को निभाते समय कल्पना करते हैं कि यदि उस किरदार की जगह मैं इस परिस्थिति में होती, तो क्या करती. फिर जो तुरंत ख्याल आता है, उसे ही करती हूं.
आप स्कूल के दिनों से नृत्य करती आयी हैं. नृत्य, अभिनय में कितनी मदद करता है?
देखिए, नृत्य के कई फार्म हैं. हर नृत्य करते समय हमें चेहरे पर भाव लाने होते हैं. वही बात मुझे अभिनय में मदद करती है. क्योंकि अभिनय में भी हमें हालात के अनुसार अपने चेहरे पर भाव लाने होते हैं. अभिनय तो प्रतिक्रिया ही है. जब मैं कालेज में पढ़ रही थी, तो कोरियो टीम का हिस्सा थी. हम कोरियो में किसी नाटक को लेते थे और उसके इर्दगिर्द कोरियो ग्राफी गढ़ते थे. मुझे याद है कि हमने कालेज के दूसरे साल में ‘मृत्युंजय’’ नाटक किया था. इस नाटक में मैंने कर्ण का किरदार निभाया था. उस समय हमने छाउ और कालेरीपैट नृत्य किया था. नृत्य करते हुए हमें रोना भी होता है, गुस्सा भी दिखाना होता है. तो मैंने कालेज जमाने में म्यूजिकल नाटक या नृत्य प्रधान नाटकों में ही अभिनय किया है. इस हिसाब से भी नृत्य, अभिनय में मदद करता है.
आपके शौक क्या हैं?
मैं बहुत आलसी हूं. जिस दिन शूटिंग नही होती, उस दिन घर पर बैठकर आराम करती हूं. मैंने कालेज के तीसरे वर्ष में बैले नृत्य का प्रशिक्षण लिया था और उस वक्त मैं कालेज के दूसरे बच्चों को बैले नृत्य सिखाती भी थी. पर मैं अपने आपको बैले नृत्य में निपुण नहीं मानती. सच तो यह है कि मैं बैले नृत्य को फिर से सीखना चाहती हूं. बैले में निपुण नृत्यांगना होने के लिए काफी प्रशिक्षण की जरूरत होती है, जो कि मैंने नहीं ली है. इसलिए मैं अपने आपको प्रशिक्षित नृत्यांगना नहीं मानती. मैं सोच रही हूं कि पांच छह फिल्मो में अभिनय करने के बाद एक डेढ़ साल के लिए छुट्टी लेकर सिर्फ नृत्य का प्रशिक्षण हासिल कर लूं.
लिखने का शौक भी रहा होगा?
नहीं.. मैं लिखने की कोशिश बहुत करती हूं, पर लिख नहीं पाती हूं. अंदर से मेरी तमन्ना है कि मैं बहुत बड़ी लेखक बनूं, पर हो नहीं पा रहा है. यहां तक कि मैंने अपनी मम्मी को सौरी लेटर लिखने की कोशिश की, वह भी नहीं लिख पायी?
सिनेमा में आए बदलाव को लेकर क्या सोचती हैं?
सिनेमा में जो बदलाव आया है, वह हम जैसे कलाकारों के लिए स्वर्णिम युग लेकर आया है. सिनेमा में आए बदलाव के ही चलते अब तमाम नए फिल्मकार आ रहे हैं. लेखक आ रहे हैं. नई नई कहानियों पर काम हो रहा है. इसी वजह से अब अच्छी व रीयल घटनाक्रमों पर कहानी व फिल्म की पटकथा लिखी जा रही है. बेहतरीन फिल्में बन रही हैं. मेरे लिए तो यह स्वर्णिम काल है.