मॉडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली विनम्र, सांवली रंगत, छरहरी काया की धनी अभिनेत्री अनुप्रिया गोयनका कानपुर की है. उन्हें बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी, जिसमे उनके माता – पिता ने साथ दिया. विज्ञापनों में काम करते हुए उन्हें कई भूमिकाएं मिली, जिसमें फिल्म ‘टाइगर जिन्दा है, ‘पद्मावत’ और ‘वार’ में उसकी भूमिका को दर्शकों ने सराहा. अनुप्रिया को इंडस्ट्री में जो भी काम मिलता है, उसे अच्छी तरह करना पसंद करती है. फिल्मों के अलावा उन्होंने कई वेब सीरीज में भी काम किया है. डिजनी प्लस हॉटस्टार पर उनकी वेब सीरीज ‘सुल्तान ऑफ़ दिल्ली’ रिलीज पर है, जिसे लेकर वह बहुत उत्साहित है. उन्होंने ज़ूम पर अपनी जर्नी और सपने को साकार करने की संघर्ष को लेकर बात की आइये जानते है, उनकी कहानी उनकी जुबानी.
अभिनय को दी है प्राथमिकता
काफी सालों तक इंडस्ट्री में रहने के बावजूद उन्हें उस हिसाब से फिल्मों में कामयाबी न मिलने की वजह के बारें में पूछने पर अनुप्रिया कहती है कि मैं हमेशा से थोड़ी क्वालिटी वर्क करने के पक्ष में हूँ. भूमिका छोटी हो या बड़ी, उस विषय पर मैंने कभी अधिक जोर नहीं दिया. मेरे लिए चरित्र और जिनके साथ काम कर रही हूँ वह अच्छा होना बहुत जरुरी है. जहाँ मुझे लगता है कि मैं कुछ उनसे सीखूंगी, नया चरित्र है, या काम करने में मज़ा आएगा, वहां मैं काम करना पसंद करती हूं. मैं रोमांटिक, ग्रामीण और कॉमेडी फिल्म करना चाहती हूँ. इसके अलावा मुझे पीरियड फिल्म बहुत पसंद है. अलग और क्वालिटी वर्क, जो अलग हो, उसे करना पसंद करती हूँ. मेरे पास जो स्क्रिप्ट आती है, उसमें से मैं अच्छी भूमिका को खोजकर काम करती हूँ.
मेहनत जरुरी
किसी भी नई भूमिका के लिए अनुप्रिया बेहद मेहनत करती है, वह कहती है कि हर फिल्म की एक ख़ास जरुरत होती है जैसे फिल्म ‘वॉर’ के लिए शारीरिक रूप से फिट महिला चाहिए था, उसके लिए मैंने काफी वर्क आउट किया, क्लासेज लिए. एक्शन फिल्म के लिए फिटनेस जरुरी होता है. पद्मावत फिल्म में मैंने रानी नागमती की भूमिका के लिए बहुत रिसर्च किया. मैं खुद भी राजस्थान से हूँ, इसलिए वहाँ की रीतिरिवाज से परिचित थी. फिर भी मैंने संवाद बोलने के तरीके को अच्छी तरह से सीखा. इस तरह से मैंने हर किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय देने की कोशिश किया है और उसके लिए जो भी जरुरी हो उसे अवश्य करती हूँ, ताकि भूमिका सजीव लगे.
वेब सीरीज सुल्तान ऑफ़ दिल्ली में अनुप्रिया शंकरी की भूमिका निभा रही है, जो 60 की दशक में क्राइम से सम्बंधित है. इस कहानी में स्वाधीनता के बाद लोगों ने किस प्रकार अपनी उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश में लगे है, जिसमे एक नारी, पुरुषों की दुनिया में अपने अस्तित्व को बनाये रखने की कोशिश करती है. इसमें सबसे बड़ी उसकी हथियार उसकी सेक्सुअलिटी और सेंसुअलिटी है. दिमाग से तीखी भी है. वह ऐसी औरत है, जो अपनी मोरालिटी की वजह से पीछे नहीं हटती, जिसने सारी दुनिया देखीं है, उसे काफी चीजों का सामना करना पड़ा है. उससे निकलकर कैसे वह अपनी वजूद को साबित करना चाहती है और कई बार वह सिद्ध भी कर देती है कि वह पुरुषों से पीछे नहीं, बराबर है. उसकी कोशिश है कि वह सुल्तान भले ही न बने , लेकिन सुल्तान की साथी बनकर सभी पर राज्य करें.
अनुप्रिया आगे कहती है कि इसमें चुनौती इंटिमेट सीन्स का था, जिसे कठिन परिस्थिति में शूट किया गया. इसे करीब 45 डिग्री की तापमान के साथ – साथ उसमे तकनिकी चीजो का अधिक प्रयोग हुआ है. राजकोट में 5 घंटे की इस शूटिंग को गर्मी में करना मुश्किल था. इमोशनली भी कठिन था, क्योंकि इसके तुरंत बाद मुझे शादी के गेटअप में आना था. ये मेरे लिए यादगार दृश्य है और जब तक कुछ नया अभिनय न कर लूँ, ये दृश्य मेरे जीवन का सबसे अधिक कठिन और यादगार सीन ही रहेगा.
सपने देखना आवश्यक
सपने हर कोई देखता है, क्या आप अपने सपने तक पहुंच पाई? अनुप्रिया कहती है कि सपने तो मैंने देखे है और इसमें अगर जद्दोजहत न हो, तो जिंदगी का मजा कम रह जाता है. सब सही होने पर सिंपल लाइफ शुरू होता है. मेरे हिसाब से एक सपना पूरा होने पर दूसरा सामने आ जाता है. मैंने जो सोचा था उससे कही अधिक मुझे मिला है, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं एक जानी – मानी एक्ट्रेस बनूँगी, मेरे कई लाख फैन फोलोवर्स होंगे. दर्शक मेरे काम की तारीफ करेंगे. ये मेरी एक जर्नी है, जिसमें मैंने धीरे – धीरे कामयाबी पाई है. मैंने अच्छे फिल्म मेकर्स और को स्टार के साथ काम किया है. मैंने जो सोचा उसी चरित्र को मैंने किया. इसके अलावा मेरे 4 से 5 मेरे लक्ष्य है, जिसे मैं पाना चाहती हूँ. जिसमे स्मिता पाटिल की ‘ मिर्च मसाला, रेखा की उमराव जान जैसे उन फिल्मों की इंतजार में हूँ और वैसी फिल्मों में काम करने की इच्छा रखती हूँ.
किये संघर्ष
अनुप्रिया कहती है कि मुझे यहाँ इंडस्ट्री में कोई जानने वाला नहीं है, ऐसे में मेरे लिए कोई कहानी लिखी नहीं जायेगी. मुझे काम ढूढना पड़ा और सब कुछ सीखना पड़ा. टाइगर जिन्दा है और पद्मावत फिल्म के बाद ऑडिशन देने की संख्या कम हो गयी है. ये मेरे लिए सबसे अधिक राहत है. इसके अलावा अभी भी आगे काम के लिए निर्देशकों से मिलना पड़ता है, पर मैं फिल्मों के अलावा विज्ञापनों में भी काम करती हूँ. आउटसाइडर के कलाकार का लर्निंग पीरियड हमेशा चलता ही रहता है.
इंटिमेट सीन्स समस्या नहीं
अन्तरंग दृश्यों को लेकर सहजता के बारें में पूछने पर अनुप्रिया कहती है कि मैं बहुत सहज हूँ, लेकिन सीन्स उस कहानी के साथ जाने की जरुरत होनी चाहिए. महिलाओं की कामुकता को उसकी गहराई को दिखाए बिना, मार्केटिंग के उद्देश्य से इंटिमेट सीन्स को दिखाने में मैं सहज नहीं और करना भी नहीं चाहूंगी. ऐसे दृश्य को बहुत ही मर्यादित तरीके से दिखाए जाने की जरुरत होती है, क्योंकि एक औरत में बहुत सारी चीजे होती है और उसे सम्हालना फिल्म मेकर का काम होता है.
अभी अनुप्रिया ह्यूमन ट्राफिकिंग पर कुछ काम करना चाहती है, जो देश में बहुत जरूरी है. इसके अलावा अनुप्रिया डांसिंग, सिंगिंग, पेंटिंग और गाने सुनती है.
महिलाओं के लिए अनुप्रिया का मेसेज है कि महिलाओं को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होने की जरुरत है. जिससे उनकी सोच और विचार को रखने के साथ -साथ कुछ कहने की आज़ादी मिलती है. तभी वे एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकती है.
त्यौहार, परिवार के साथ
त्यौहार को अनुप्रिया मनाना बहुत पसंद करती है, वह कहती है कि त्यौहार में शुरू से मैं अपने परिवार के साथ रहना पसंद किया है. उस दिन साथ मिलकर खाना खाते है. त्यौहार की सबसे अधिक खास बात उस दिन को परिवार के साथ सेलिब्रेट करना होता है. इसके अलावा इसमें घर की साफ – सफाई और नए कपडे पहनना आदि भी उत्साहवर्धक होते है, लेकिन इसका स्वरुप अब बदल चुका है. मोबाइल फ़ोन के ज़रिये ही त्यौहार मनाया जाता है, जो मुझे पसंद नहीं. थोड़े समय साथ मिलकर खुशियों को मनाना ही इसमें प्रमुख होना चाहिए, जिसे दूर – दूर रहकर अनुभव नहीं किया जा सकता. किसी भी रिश्ते की मजबूती साथ रहने से होती है.
अवधिः 40 से 53 मिनट के आठ एपीसोड, कुलन अवधि छह घंटे
ओटीटी प्लेटफार्मः हॉटस्टार डिजनी
महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा व प्रताड़ना के कई रूप हो सकते हैं. तो वहीं समाज का नामचीन व आदर्शवादी पुरूष अपने घर के अंदर एक औरत की गरिमा व उसके आत्मसम्मान को हर दिन कितनी निर्दयता के साथ तार तार करता रहता है, इन दो मुद्दों को लेखक अपूर्वा असरानी और निर्देशक द्वय रोहण सिप्पी व अर्जुन मुखर्जी ने वेब सीरीज‘क्रिमिनल जस्टिस’में खास तौर पर उठाया है. तो वहीं यह वेब सीरीज भारतीय समाज में विवाह व वैवाहिक संबंधों पर भी बहुत कुछ कह जाती है.
कहानीः
विक्रम चंद्रा (जिशू सेन गुप्ता ) मुंबई शहर के अति लोकप्रिय वकील हैं. वह कोई मुकदमा नहीं हारते. हर वकील उनकी इज्जत करता है. विक्रम चंद्रा की पत्नी अनुराधा चंद्रा(कीर्ति कुल्हारी) और बारह साल की बेटी रिया चंद्रा(आदिजा सिन्हा) है. बेटी रिया चंद्रा की करीबी सहेली रिद्धि है. रिद्धि के पिता डॉ. मोक्ष शहर के जाने माने मनोचिकित्सक हैं, जिनसे विक्रम चंद्रा अपनी पत्नी अनुराधा चंद्रा का इलाज करा रहे हैं. विक्रम चंद्रा की मां विद्या चंद्रा (दीप्ति नवल ) और भाई ध्रुव अलग रहते हैं. एक दिन हालात कुछ ऐसे बदलते हैं कि रात में अनुराधा चंद्रा अपने पति विक्रम चंद्रा के पेट में चाकू भोंकने के बाद पुलिस व अस्पताल को फोन करके घर से बाहर चली जाती है. उनकी बेटी रिया, अनुराधा को विक्रम के कमरे से बाहर निकलते देखती है और पिता के कमरे में जाकर उनके पेट से चाकू निकालती है. तभी पुलिस इंस्पेक्टर हर्ष प्रधान(जीत सिंह पलावत) तथा उनकी सहायक महिला पुलिस अफसर व पत्नी गौरी प्रधान(कल्यासणी मुले) के साथ पहुंचता है, तो उन्हें रिया अपने हाथ में खून से सने चाकू के साथ मिलती है. गौरी उसे पुलिस हिरासत में लेती है. विक्रम चंद्रा को अस्पताल ले जाया जाता है. जहां अनुराधा चंद्रा पहुंचती है और विक्रम से सॉरी बोलती है. पर पुलिस इंस्पेक्टर हर्ष प्रधान(जीत सिंह पलावत ), अनुराधा चंद्रा को गिरफ्तार कर लेते हैं. और सुबह होते ही पुलिस रिया चंद्रा को सीडब्लूसी यानी कि बाल कल्याण केंद्र भेज देती है. जबकि रात में ही हर्ष प्रधान अपने तरीके से अनुराधा चंद्रा से गुनाह की कबूली वाला बयान ले लेता है. अनुचंद्रा अपनी बेटी रिया को पुलसिया उत्पीड़न से बचाने के लिए हर्ष की हर बात को आंख मूंदकर मान लेती है. एसीपी सालियान( पंकज साराश्वत) को यह केस इतना आसान नही लगता. वह इस केस को लड़ने के लिए वकील माधव मिश्रा ( पंकज त्रिपाठी ) को फोन करते हैं, जो कि उस वक्त पटना के पास भरतपुर गांव में अपनी शादी के बाद सुहागरात मनाने वाले थे. पर सालियान का फोन पाते ही पत्नी रत्ना के बार बार मना करने के बावजूद माधव मिश्रा प्लेन पकड़कर मुंबई पहुंच जाते हैं. माधव मिश्रा, अनुचंद्रा का मुकदमा लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. माधव मिश्रा महिला वकील निखत हुसेन( अनुप्रिया गोयंका ) को अपना सहायक बनाते हैं, जिससे नाराज होकर मशहूर वकील मंदिरा ठाकुर(मीता वशिष्ठ) ने अपनी टीम से बाहर कर दिया है.
वहीं माधव मिश्रा की नई नवेली पत्नी रत्ना बिहार से उनके पीछे पीछे मुंबई आ धमकती है और अपने पति का रहन सहन देख रोती नहीं है, अपने अधिकार को हासिल करने की लड़ाई हंसते हुए लड़ती है.
विद्या चंद्रा व मंदिरा चाहती हैं कि अनुचंद्रा को अदालत से मौत की सजा मिले. इसलिए वह वकील प्रभु (आशीश विद्यार्थी)से मुकदमा लड़ने के लिए कहती हैं. वकील प्रभु हर खेल में माहिर हैं. वह मीडिया को कहानियां भी अपरोक्ष रूप से उपलब्ध कराते रहते हैं. इसके लिए वह अपने पिता की हत्या के आरोप में जेल में बंद इशानी नाथ(शिल्पा शुक्ला) को जेल के अंदर और बाद में अदालत के अंदर अनुचंद्रा के खिलाफ खड़ा करते हैं. इन सभी के साथ ही इंस्पेक्टर हर्ष प्रधान पूरी कोशिश कर रहा है कि अनुचंद्रा को सजा हो जाए. गौरी को कई बार लगता है कि हर्ष गलत कर रहा है. एसीपी सान्याल के इशारे पर गौरी प्रधान अलग से जांच करती रहती है और कुछ तस्वीरों व सीसीटी फुटेज की बारीकियों से वह सान्याल को अवगत कराती है. जो कि बाद में माधव मिश्रा को मिल जाती हैं. अंततः अदालत में विक्रम चंद्रा का बंद कमरे के अंदर छिपा हुआ चेहरा सभी के सामने आता है, जिसे खुद को बुरी तरह फंसती देखकर भी महज शर्मिंदगी के चलते अनुचंद्रा अब तक हर किसी से छिपाती आ रही थी. विक्रम का यह सच सामने आने पर खुद उनकी मां विद्या भी लज्जित होती हैं. यहंा तक मंदिरा ठाकुर भी गिल्टी फील करती हैं. अदालत अपना निर्णय सुनाती है. .
लेखन व निर्देशनः
बेहतरीन पटकथा लेखन के ेलिए अपूर्वा असरानी बधाई के पात्र हैं. उनका लेखन बहुत ही सशक्त है. यदि यह कहा जाए कि कोर्ट रूम ड्रामा प्रधान वेब सीरीज ‘‘क्रिमिनल जस्टिसःबिहाइंड द क्लोज्ड डोर’’ अमीर व संभ्रात परिवारों तथा समाज के तथा कथित सफेद पोश पुरूषों की कलई खोलती है, तो कुछ भी अतिशयोक्ति नही होगी. यह वेब सीरीज बंद दरवजों के पीछे महिलाओं के साथ होने अनदेखी हिंसा के महत्वपूर्ण मुद्दे को सामने लाकर हर इंसान को सोचने पर मजबूर करती है.
लेखक व निर्देशक ने नारी की गरिमा, उसके अस्तित्व व उसके आत्मसम्मान सहित कई संवेदनशील मुद्दांे को काफी बेहतर तरीके से उकेरा है. लेखक व निर्देशक ने भारतीय जेलों के अंदरूनी हालात का सजीव वयथार्थ परक चित्रण करने में सफल रहे हैं
कोर्टरूम ड्रामा प्रधान इस वेब सीरीज में कहीं कोई रहस्य या रोमांचक का तड़का नही है. पहले एपीसोड में ही दर्शक को पता चल जाता है कि अनुचंद्रा दोषी हंै और उसे सजा होनी ही है, फिर भी लेखक व निर्देशक अपने कौशल से दर्शकों को लंबे लंबे आठ एपीसोड तक बांधकर रखते हैं.
इस वेब सीरीज की सबसे बडी कमजोरी बहुत धीमी गति से आगे बढ़ना है. यदि इसे एडीटिंग टेबल पर कसा जाता तो और बेहतर बन सकती थी. इतना ही नही इस वेब सीरीज को ठीक से प्रचारित न कर न सिर्फ इस वेब सीरीज को बल्कि इसके मूल संदेश व मकसद को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने से रोकने का काम किया गया है.
सीरीज में मंदिरा का वकील प्रभू से सवाल करना कि-‘‘बतौर वकील आपको नही लगता कि कानून सिर्फ पुरूषों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए नही बना है?;अपने आप मे कई सवाल खड़ा कर जाता है. तो वही एक संवाद है-सालों से एक औरत के अस्तित्व को दबाया गया’ भी काफी कुछ कहता है.
अभिनयः
पंकज त्रिपाठी के चेहरे पर आने वाले हावभाव उनके अभिनय के विस्तार को नया आयाम पहनाते हैं. उनका अभिनय जानदार है. माधव मिश्रा की सहायक निखत हुसैन के किरदार में अनुप्रिया गोयंका अपने बेहतरीन अभिनय से लोगों को सोचने पर मजबूर करती हैं कि अब तक फिल्मकार उनकी प्रतिभा को अनदेखा क्यों करते रहे हैं. सारे ऐशो आराम पाने के बावजूद एक वकील की अंदर ही अंदर घुटती और पति द्वारा एब्यूज होती पत्नी अनुचंद्रा के किरदार में कीर्ति कुल्हारी ने अपने शानदार अभिनय से जीवंतता प्रदान करने के साथ ही भारतीय विवाह संस्था व संभ्रात परिवारों पर कई तरह के सवाल उठाने में सफल रही है. दीप्ति नवल व मीता वशिष्ठ ने जिन किरदारों को निभाया है, वह इनके लिए बाएं हाथ का खेल है. एक पुलिस अफसर होते हुए भी अपने पति व पुलिस अफसर हर्ष के गलत व्यवहार के साथ संघर्ष करती गौरी के किरदार में कल्याणी मुले प्रभाव छोड़ने में सफल रही हैं. वह आम औरतो की तरह आंसू बहाने या रोने चिल्लाने की बजाय अपनी आंखों के माध्यम से बहुत कुछ कह जाती हैं. किशोर रिया के किरदार में आदिजा सिन्हा ने असाधारण काम किया हैं.
फिल्म ‘‘टाइगर जिंदा है’’में नर्स पूर्णा तथा ‘पद्मावत’में राजा रावल रतन सिंह की पहली पत्नी नागमती, आमीर खान के साथ फिल्म‘‘वार’’में अदिति का किरदार सहित कई हिंदी के अलावा ‘पोतगाड़ू’ व ‘पाठशाला’’ तेलगू फिल्मों की अदाकारा अनुप्रिया गोयंका ने वेब सीरीज में भी धमाल मचा रखा है.
वेब सीरीज ‘सेके्रड गेम्स’ सीजन 2 में सरताज यानी कि सैफ अली खान की पहली पत्नी मेघा के किरदार के बाद अनुप्रिया गोयंका इन दिनों वेब सीरीज ‘‘आश्रम’ में ढोंगी निराला बाबा के खिलाफ मुहीम छेड़ रखी डॉं. नताशा कटारिया के किरदार में काफी शोहरत बटोर रही हैं. इससे पहले भी ‘द फाइनल काल’, ‘अभय’, ‘क्रिमिनल जस्टिस’ और ‘‘ह्यूमरसली योर्स सीजन 2’, ‘असुर’ जैसी चर्चित वेब सीरीज में नजर आ चुकी हैं.
प्रस्तुत है अनुप्रिया गोयंका से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .
आज की तारीख में आप खुद को कहां पाती हैं?
-सच कहूं, तो मैं जिस माहौल से आई हूं, और जहां से आई हूं, उसको देखते हुए तो मेरा करियर बहुत सही दिशा में आगे बढ़ रहा है. मैंने अब तक खोने की बजाय कुछ न कुछ पाया है. मैंने अच्छे लोगों के साथ ही काम किया है. निशिकांत कामत, विक्रम मोटावणे, संजय लीला भंसाली, नीरज घायवान, तिग्मांशु धुलिया, प्रकाश झा के निर्देशन में काम किया है. इसी तरह मैंने कलाकारों में विद्या बालन अर्जुन रामपाल, रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, सैफ अली, बॉबी देओल के साथ काम किया है. पिछले वर्ष मैने कलाकार व इंसान के तौर पर काफी ग्रो किया था. इस वर्ष भी दर्शक जनवरी माह से ही मुझे बेहतरीन किरदारों में देख रहे हैं. अभी तो मैं कुछ रोचक किरदार करने जा रही हॅं, जिसके लिए मैं बोल चाल की भाषा सीखने के साथ ही बॉडी लैंगवेज पर भी काम कर रही हूं.
-सर. . . आप देखिए. . . मैं एक छोटे से शहर और गैर फिल्मी परिवार से आई हूं. यहां मेरा कोई गॉडफादर नहीं है. मेरी पीठ पर हाथ रखने वाला कोई नहीं है. तो वहीं मेरे लिए काम करना बहुत जरूरी है. मुझे अभिनय करने में हमेशा मजा आता है. ऐसे में किसी काम को मना करना मुझे अपराध लगता है. मैंने हमेशा वही फिल्में स्वीकार की, जिनके किरदारों को निभाते हुए मुझे आनंद मिला अथवा जिनमें मेरे सह कलाकार ऐसे थे, जिनसे मैं काफी कुछ सीख सकती थी. मैने उन निर्देेशकों के साथ फिल्में की, जिनके साथ काम करने की मेरी इच्छा रही है. ऐसे में मैंने सिर्फ मेन लीड ना होने की वजह से अवसर हाथ से जाने नहीं दिया. मुझे लगा कि ऐसा करना गलत हो जाएगा. मैं मानती हूं कि छोटे किरदार निभाने से एक इमेज बन जाएगी. मगर मुझे यकीन है कि मेरे काम की तारीफ होगी, जो की हुई. लोगों को जब छोटे किरदारों में मेरा काम पसंद आएगा तो वह मुझे बड़े किरदार भी देंंगे और वही हो रहा है. लेकिन वेब सीरीज में तो बड़े किरदार निभा रही हॅूं. ‘असुर’के बाद अब मैने ‘‘आश्रम’’में बहुत बड़ा किरदार निभाया है.
‘‘आश्रम’’को लेकर क्या कहना चाहेंगी?
-देखिए, 28 अगस्त से ‘‘एम एक्स प्लेअर’’पर ‘‘आश्रम’’का प्रसारण हो रहा है. यह एक ऐसे आम इंसान की कहानी है, जो अंधविश्वासी होता है. वह कई बार ऐसे ढोंगी साधु या बाबा पर भगवान से ज्यादा श्रद्धा रखने लगते है, जिनकी प्रकृति इतनी साफ-सुथरी नहीं होती, जो उसका दुरुपयोग कर अपराध में लिप्त रहते हैं. यह वेब सीरीज इन सब पर रोशनी डालती है. इसमंे इस बात का जिक्र है कि कैसे लोग हमारे यहां अंधविश्वास में बह जाते हैं और कैसे कैसे वह सारी चीजें क्राइम को बढ़ावा देती हैं. इस तरह यह वेब सीरीजरियालिटी को उजागर करती है. इसमें मेरा जो डॉ. नताशा का ट्रैक है, वह बहुत बेहतरीन है.
आप अपने डॉ. नताशा कटारिया के किरदार को किस तरह से परिभाषित करेंगी?
-डॉक्टर नताशा कटारिया फॉरेंसिक एक्सपर्ट है. इमानदार और अपराधियों के खिलाफ रहती है. पूरी तरह से वह फेमिनिस्ट भी है. हर सच के लिए लड़ाई करना जानती है. इस वेब सीरीज में उसके आसपास के जो भी किरदार हैं, उनको भी वह न्याय के लिए लड़ने को प्रेरित करती हैं. सच के लिए लड़ने के लिए वह एक एकदम निडर लड़की है. नताशा है तो बहुत कंजरवेटिव ख्यालात वाले परिवार से, मगर वह ख्ुाद स्वतंत्र है, रिस्क लेने से घबराती नहीं है.
वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’में डॉक्टर नताशा पूरी तरह से नारीवादी @फेमिनिस्ट है. पर आप निजी जिंदगी में कितना फेमिनिस्ट हैं?
-मैं अपने आप को फेमिनिस्ट इस हिसाब से कहूंगी कि मैं स्वयं औरतों के हक के लिए जागरूक हूं. मैं इस बात पर यकीन करती हूं कि औरतों ने हमेशा बहुत कुछ सहा है और उस सोच तथा आम धारणा को बदलना इतना आसान नहीं है. मेरी मां के लिए आसान नहीं था. मेरी मां की मां अर्थात मेरी नानी के लिए तो और भी ज्यादा आसान नहीं था. मेरे लिए भी कहीं ना कहीं आसान नहीं है. क्योंकि बचपन से आप अपने घर के अंदर और आस पास जो कुछ देखती हैं, वह सारी चीजें अपने आप आ ही जाती हैं, फिर आप कितनी भी स्वतंत्र जिंदगी जी रही हों. मैं कलाकार हूं. फिर भी कहीं ना कहीं असमानता की भावना चुभ ही जाती है. यह बात तो सही है कि अभी भी पितृ सत्तात्तमक सोच वाला ही समाज है. हम लोग जितनी भी कोशिश कर रहे हैं, पर ग्रामीण क्षेत्र में औरतों की आजादी आज भी नही है. उन्हें समान अवसर नहीं मिलते हैं. महानगरों में काफी हद तक औरतें खुद को स्वतंत्र महसूस कर पाती हैं. तो इस हिसाब से मैं फेमिनिस्ट हूं. मुझे पता है कि हमें अपनी जगह, अपने आत्मसम्मान को बनाने के लिए थोड़ा और ज्यादा संघर्ष लड़ाई करनी पड़ेगी. हमें आज भी उन परिस्थितियों से लड़ना पड़ेगा, जो औरतों और पुरूषों आदमियों के बीच भेदभाव करती हैं. मेरे लिए सरल भाषा में फेमिनिस्ट का मतलब समानता है. जहां हर एक चीज में समानता दी जाए. फिर चाहे वह कामकाज की जगह हो, अवसर की बात हो. अगर आप सैक्रिफाइस कर रहे हैं, तो आपका सहकर्मी या जिंदी का पार्टनर रूपी पुरूष को भी सैक्रीफाई करना चाहिए. यदि ऐसा नही है, तो समानता कहां रही?हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि हम औरतों को भी समानता का अधिकार है.
जब आप मुंबई में फिल्म या वेब सीरीज की शूटिंग करती है और जब मुंबई के बाहर शूटिंग करती है. तो किस तरह के अनुभव होते हैं?
-यच तो यह है कि मैं हमेशा मुंबई के बाहर शूटिंग करने को ही प्राथमिकता देती हूं. क्योंकि तभी हम मुंबई और मुंबई की जिंदगी से अलग हो पाते हैं. तथा हम पूरी तरह से उस वातावरण में आसानी से मिल पाते हैं, जिस वातावरण की फिल्म व वेब सीरीज का किरदार होता है. उस वातारण में पहुॅचते ही आसानी वास्तविकता बन जाती है. यॅूं तो हम वहां पर भी होटल में अपने दोस्तों या टीम से जुड़े लोगों के बीच पहुॅच जाते हैं. फिर भी हम जिस टीम का हिस्सा होते हैं, हमारी मानसिकता वैसे ही बन जाती है. तो इसका बहुत फर्क पड़ता है. दूसरी जाहिर सी बात है कि अगर हम मुंबई में शूटिंग करते हैं, तो मुंबई के जो रीयल लोकेशन हैं या सेट हैं, उनमें एक मेट्रोपॉलीटियन ड्राइव तो है. हम अयोध्या में शूटिंग करते हैं, तो उस शहर की, उस जगह की भी अपनी अलग ‘वाइब्स’होती है. एक मैग्नेटिज्म होता है. यह सब किरदार गढ़ने में काफी मदद करती है. जिस जगह का किरदार हो, वहां पहुॅचकर शूटिंग करने से अपने आप ही उसमें एक सरलता आ जाती है. जो कि महानगरों में संभव नही है. अगर आप सेट की बाकी चीजों से कट अॉफ हो जाते हैं, अपनी आम मुंबई वाली जिंदगी से अलग थगल हो जाते हैं, तो यह सब किरदार को न्यायसंगत ढंग से निभाने में मदद करता है. लेकिन यह सब इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप किस प्रोडक्शन हाउस के साथ काम कर रहे हैं. किसी प्रोडक्शन हाउस में कलाकार को इतनी सुविधाएं मिलती हैं, कि उसके लिए काम करना ज्यादा सहज होता है. कुछ प्रोडक्शन हाउस में कम छूट मिलती है. फिर आपका सह कलाकार कौन है, उस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है.
फिल्म निर्देशक प्रकाश झा सर के साथ वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’ के लिए शूटिंग करना हम सभी के लिए काफी कठिन था. ‘आश्रम’ से जुड़े सभी कलाकार व पूरी युनिट लगातार पांच माह तक आयोध्या में ही रही. उन्होंने दिवाली और नया वर्ष सब कुछ आयोध्या में ही मनाया. जबकि मैं तो बीच बीच में मुंबई आती जाती रही. पूरेपांॅच माह तक हर दिन कठिन दृश्यों को फिल्माना आसान नही होता. कभी-कभी तो बिना ब्रेक और जबरदस्त ठंड में भी शूटिंग करनी होती थी. लेकिन पूरे सेट पर खुशनुमामाहौल रहता था. काम करते हुए मजा आ रहा था.
मेरी खुशकिस्मती यह रही है कि अब तक मुझे ऐसे प्रोडक्शन हाउसों के साथ काम करने का अवसर मिला, जो हर कलकाकर को बड़ा सम्मान देते हैं. प्रकाश झा सर की ही तरह‘यशराज फिल्मस’के साथ भी शूटिंग करते हुए मेरे अनुभव अच्छे रहे. उनके साथ भी बहुत अच्छा समय बीता. क्योंकि वह लोग हर कलाकार का बहुत अच्छा ख्याल रखते थे. सेट पर सभी लोग परिवार की तरह ही व्यवहार करते, कि आप अपने घर को कभी याद नहीं करेंगें. ेबल्कि आप खुद उनके साथ ऐसे घुलमिल जाएंगे कि वही आपको अपना परिवार लगने लगेगा. मुझे लगता है कि आप किसके साथ काम कर रहे हैं, यह बहुत अहमियत रखता है.
कोरोना के चलते बंद सिनेमा घरो के दौर में कई फिल्में सिनेमाघरों की बजाय ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज हो रही हैं. इसे आप कलाकार के तौर पर किस तह से देखती हैं?
-बतौर कलाकार हमारे लिए थिएटर सिनेमाघर का ही चार्म रहेगा. हमने बचपन से ही सिनेमाघर का चार्म देखा है, फिर चाहे वह 70 एमएम हो या 35 एमएम हो. यह चार्म खत्म होने से रहा. देखिए 70 एमएम या 35 एमएम का अपना चार्म है, यह चार्म कहीं नहीं जाने वाला. बतौर कलाकार भी मैं यही चाहती हॅूं कि मेरी फिल्म को दशर््ाक थिएटर के अंदर जाकर देखें. पर जब धन की यानी कि व्यावसायिकता की हो, तो मैं जवाब देने वाली सही इंसान नही हूं, इसका जवाब निर्माता ही दे सकते हैं. पर मैं इतना जरूर कहूंगी, जो फिल्में ‘कोविड-19’से पहले बनी थी, उन्हें सिनेमाघरों में प्रदर्शित करना संभव नही हुआ, तो अब उन्हें ‘ओटीटी प्लेटफॉर्म’पर आना पड़ रहा है. पर मुझे लगता है कि निर्माताओं ने व्यावसायिकता को ध्यान में रखकर भी मन से तो यह निर्णय नहीं लिए होंगे. पर उनके लिए बहुत बड़े नुकसान से बचने का यही रास्ता समझ में आया होगा. क्योंकि सिनेमा घर कब खुलेंगे?किसी को पता नहीं. दर्शक कब सिनेमाघर के अंदर जाने केे लिए ख्ुाद को सहज महसूस करेंगे, इसका जवाब भी किसी के पास नही है. ऐसे में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्मों को रिलीज करना सही निर्णय रहा.
ओटीटी प्लेटफार्म पर बहुत बड़ा स्टार हो या नवोदित कलाकार हो, छोटी फिल्म हो या बड़ी फिल्म हो, सभी देखेंगें.
लेकिन आपको नहीं सिनेमाघर में फिल्म के प्रदर्शन से कलाकार को स्टारडम मिलता है, वह ओटीटी प्लेटफार्म पर संभव नही?
-मुझे ऐसा नहीं लगता. बल्कि मुझे तो ऐसा लगता है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म से ही कलाकार आगे बढ़े हैं. क्योंकि उसकी पहुंच बहुत बड़ी है. जो चर्चित कलाकार हैं, जो बड़े बजट की फिल्में कर रहे हैं, उनकी अगर एक फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म पर आ जाती है, तो इससे उनकी स्टारडम पर मुझे नहीं लगता कोई फर्क पड़ेगा. अगर फिल्म बड़ी है, आपने अच्छा काम किया है, आपकी परफॉर्मेंस अच्छी है, तो उसकी प्रशंसा की जाएगी, फिर चाहे वह ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आए या सिनेमाघरों में. मगर कुछ फिल्में ऐसी जरूर हैं, जो सिर्फ सिनेमाघरों के लिए बनी है. मसलन-‘पद्मावत’. इसे ‘ओटीटी’पर देखने में मजा नही आ सकता. क्योंकि वह सिनेमाघर के बड़े पर्दे के लिए ही बनी है. उसके साथ सही न्याय नहीं होगा. इस तरह की फिल्मों के लिए जरूर फर्क पड़ेगा. बाकी परफॉर्मेंस और कलाकारों की बात करें, तो अगर आपने अच्छा काम किया है और फिल्म अच्छी बनी है, तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी उतनी ही चलेगी और कलाकार को लोकप्रियता भी मिलेगी.
इसके अलावा नया क्या कर रही हैं?
-अभी वेब सीरीज ‘आश्रम’के सीजन एक का पहला भाग आया है. बहुत जल्द ‘आश्रम’के सीजन एक का ही दूसरा भाग आएगा. उसके बाद ‘‘आश्रम’’ का दूसरा सीजन आएगा. वेब सीरीज ‘‘क्रिमिनल जस्टिस-दो’’ की शूटिंग चल रही है. मुझे लगता है कि ‘आश्रम’के दूसरे सीजन की शूटिंग हम लोग जल्द ही करेंगें. इसके अलावा दो फिल्मों को लेकर बातचीत चल रही है. हॉं!मैने दिव्येंदु शर्मा के साथ एक फिल्म ‘‘मेरे देश की धरती’’की शूटिग की हैं, जो कि हालात सामान्य होते ही प्रदर्शित होगी.
किस तरह के किरदार निभाना चाहती हैं?
-मैं उन्ही किरदारों को स्वीकार करती हॅू, जिनमें मेरे लिए कुछ करने को हो. मैं रोचक किरदार की तलाश करती हॅूं. मैं उन किरदारों को प्राथमिकता दे रही हूं, जो मुझे कुछ नया करने व कुछ नया एक्स्प्लोर करने का अवसर दें. अब मैं कुछ ऐसा काम करना चाहती हूं, जहां मेरे किरदार एकदम अलग हों. मैं कुछ लाइट हार्टेड काम करनाचाहती हूं. कॉमेडी करने का मेरा बहुत मन है. मैं एक्शन पूर्ण किरदार भी करना चाहूंगी. मैंने इस हद तक अभी तक कोशिश नहीं किया है. ‘वॉर’में मेरे एक भी स्टंट नहीं थे. मैं कुछ एक्शन प्रधान किरदार भी करना चाहूंगी. मुझे गांव के किरदार बहुत ज्यादा प्रेरित करते हैं. मेरे आदर्शस्मिता पाटिल, शबाना आजमी रही हैं. तो उस समय जिस तरह के गांव के किरदार रहते थे, मिर्च मसाला में या मंथन में उस तरह के किरदार निभाने का मेरा बहुत मन है. पीरियड ड्रामा भी करना है. यॅॅंू तो मुझे संजय लीला भंसाली ने ‘पद्मावत’में काम करने का मौका दिया था, जो कि मेरे लिए सौभाग्य की बात थी. लेकिन मैं आगे भी उस तरह का काम करना चाहूंगी. अब मैं लीड किरदारों पर भी काम करना चाहूंगी. जहां बड़ा ग्राफ हो. जहां मैं एक ही किरदार में कई सारी यात्राओं से गुजर सकूं. एक ही किरदार में कई तरह की भावनाओं से गुजरने का अवसर मिले. ऐसा किरदार करना है, जहां मुझे पूरी फिल्म या शो की जिम्मेदारी उठानी पड़े.
कोई ऐसा किरदार जो करना चाहती हैं?
– अमृता प्रीतम की प्रेम कहानी मुझे बहुत पसंद है. मैं परदे पर अमृता प्रीतम का किरदार निभाना चाहूंगी. अमृता प्रीतम की प्रेम कहानी काफी रोचक है. उनकी जिंदगी भी काफी रोचक थी. मुझे मीना कुमारी की जिंदगी भी इंटरेस्टिंग लगती है. मुझे महारानी गायत्री देवी की जिंदगी पर बनी फिल्म में काम करना हैं.
लॉक डाउन में समय कैसे बिताया?
-मैने समय का सदुपोग किया. कई वर्षों बाद मैंने फिर से स्केचिंग करना शुरू किया. और पेंटिंग के लिए भी कैनवस वगैरह तो मंगवा लिए हैं. बस अब करने बैठूंगी. इसके अलावा कुछ किताबें पढ़ी. एक किताब स्लेपीयंस पढ़ी. गुलजार की कुछ किताबें पढ़ी. खालिद हुसैनी की किताब ‘थउजेंड स्प्लेंडिड’पढ़ी. यह किताब मुझे पहले भी बहुत पसंद थी. मैंने कुछ नाटकों को फिर से पढ़ा.
मौडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली एकअनुप्रिया गोयनका कानपुर की है. बचपन से ही अभिनय की इच्छा रखने वाली अनुप्रिया का साथ दिया उसके माता-पिता ने. विज्ञापनों में काम करते हुए उन्हें कई भूमिकाएं मिली, जिसमें फिल्म ‘टाइगर जिन्दा है, ‘पद्मावत’ और ‘वार’ में उसकी भूमिका को लोगों ने सराहा. विनम्र और हंसमुख स्वभाव की अनुप्रिया काम जो भी मिले उसे अच्छी तरह करना पसंद करती है. उसकी जर्नी शुरू हुई है और अभी उसे कई फिल्मों और वेब सीरीज के औफर भी मिल रहे है. फिल्मों का सफल होना और उसमें काम की सराहना होना कितना जरुरी है इस बारें में उसने बातचीत की. पेश है अंश.
सवाल-फिल्म वार की सफलता आपके लिए कितना माइने रखती है?
इसका फायदा मिलता है, क्योंकि ये एक बड़ी फिल्म है. इसे बहुत लोगों ने देखा और मेरी भूमिका बहुत अच्छी रही. बड़ा रोल दो हीरो के बीच में मिलना आसान नहीं होता. मेरे लिए एक एक्शन फिल्म में काम करना सबसे बड़ी उपलब्धि है. मेरे लिए एक एजेंट की भूमिका निभाना आसान नहीं था. लुक अलग था. मैंने इंटेंस रोल किया है. ये उससे अलग थी, जिससे मुझे काम करने में अच्छा लगा. मेरी भूमिका स्ट्रोंग थी, जो मेरे लिए बड़ी बात रही.
सवाल-आपने अच्छे चरित्र निभाये है, उस हिसाब से आपके पास फिल्मों की संख्या कम है, इसकी वजह क्या है?
मैं हमेशा से थोड़ी क्वालिटी वर्क करने के पक्ष में हूं. भूमिका छोटी हो या बड़ी, इस बात पर मैंने कभी अधिक जोर नहीं दिया. मेरे लिए चरित्र और जिनके साथ काम कर रही हूं वह अच्छा होना बहुत जरुरी है. जहां मुझे लगता है कि मैं कुछ उनसे सीखूंगी, नया चरित्र है, या काम करने में मज़ा आएगा, वहां मैं काम करना पसंद करती हूं. मैं रोमांटिक, ग्रामीण और कौमेडी फिल्म करना चाहती हूं. इसके अलावा मुझे पीरियड फिल्म बहुत पसंद है. अलग और क्वालिटी वर्क जो अलग हो उसे करना पसंद करती हूं. मेरे पास जो स्क्रिप्ट आती है, उसमें से मैं अच्छी भूमिका को खोजकर काम करती हूं.
सवाल-नयी भूमिका के लिए आप की मेहनत क्या होती है?
हर फिल्म की एक ख़ास जरुरत होती है जैसे फिल्म ‘वॉर’ के लिए शारीरिक रूप से फिट महिला चाहिए था, उसके लिए मैंने काफी वर्क आउट किया, कई क्लासेज भी किया था. अगर फिल्म एक्शन वाली हो, तो उसके लिए फिटनेस की जरुरत होती है. पद्मावत फिल्म में मैंने रानी नागमती की भूमिका के लिए बहुत रिसर्च किया. मैं खुद भी राजस्थान से हूं, इसलिए वहां की रीतिरिवाज से परिचित थी. फिर भी मैंने संवाद बोलने के तरीके को अच्छी तरह से सीखा. इस तरह से मैंने हर किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय देने की कोशिश किया है और उसके लिए जो भी जरुरी हो उसे अवश्य करती हूं, ताकि भूमिका सजीव लगे.
सवाल-अभी किस तरह की संघर्ष आपके साथ रहती है?
मुझे यहां इंडस्ट्री में कोई जानने वाला नहीं है, ऐसे में मेरे लिए कोई कहानी लिखी नहीं जायेगी. मुझे काम ढूढना पड़ा और सब कुछ सीखना पड़ा. टाइगर जिन्दा है और पद्मावत फिल्म के बाद औडिशन देने की संख्या कम हो गयी है. ये मेरे लिए सबसे अधिक राहत है. इसके अलावा अभी भी आगे काम के लिए निर्देशकों से मिलना पड़ता है, पर मैं फिल्मों के अलावा विज्ञापनों में भी काम करती हूं. आउटसाइडर के कलाकार का लर्निंग पीरियड हमेशा चलता ही रहता है.
सवाल-आगे क्या कर रही है?
अभी मैं निर्माता, निर्देशक प्रकाश झा के साथ एक वेब सीरीज कर रही हूं. उसका अनुभव बहुत अच्छा रहा है. इसके अलावा अरशद वारसी के साथ एक साइकोलोजिकल थ्रिलर वेब पर काम चल रहा है.
कोई भी चीज जब दबी हो और एकदम से उसे आज़ादी मिलने पर बहुत कुछ बाहर निकल कर आती है ,जो ठीक नहीं होता,लेकिन समय के साथ उसमें बदलाव होता है. आज कई नयी और अच्छी कहानियाँ वेब सीरीज के द्वारा कही जा रही है, जिसमें क्राइम, गैंग्स्टर जैसी कहानियां मुख्य नहीं है और वह आगे धीरे-धीरे दर्शकों की पसंद के अनुसार बदलने की उम्मीद है.
सवाल-अन्तरंग दृश्यों के लिए आप कितनी कौम्फोरटेबल है?
मैं बहुत सहज हूं, लेकिन सीन्स उस कहानी के साथ जाने की जरुरत होनी चाहिए. महिलाओं की कामुकता को उसकी गहराई को दिखाए बिना, छोटेपन के लिहाज़ से दिखाया जाय, तो उसमें मैं सहज नहीं और करना भी नहीं चाहूंगी. ऐसे दृश्य को बहुत ही मर्यादित तरीके से दिखाए जाने की जरुरत है, क्योंकि एक औरत में बहुत सारी चीजे होती है.
सवाल-किस तरह के सामाजिक कार्य आप करना पसंद करती है?
मैंने अभिनय से पहले गरीब बच्चों की शिक्षा को लेकर कुछ काम किया है, पर अब ह्यूमन ट्राफिकिंग पर काम करना चाहती हूं, जो हमारे देश में बहुत जरूरी है.
डांसिंग, सिंगिंग करती हूं. पेंटिंग और गाने सुनती हूं. इसके अलावा मैं अपने परिवार के साथ समय बिताना पसंद करती हूं.
सवाल-गृहशोभा की महिलाओं के लिए क्या मेसेज देना चाहती है?
महिलाओं को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होने की जरुरत है. जिससे उनकी सोच और विचार को कहने की आज़ादी उन्हें मिले. तभी वे एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकती है.