फिल्म ‘‘टाइगर जिंदा है’’में नर्स पूर्णा तथा ‘पद्मावत’में राजा रावल रतन सिंह की पहली पत्नी नागमती, आमीर खान के साथ फिल्म‘‘वार’’में अदिति का किरदार सहित कई हिंदी के अलावा ‘पोतगाड़ू’ व ‘पाठशाला’’ तेलगू फिल्मों की अदाकारा अनुप्रिया गोयंका ने वेब सीरीज में भी धमाल मचा रखा है.

वेब सीरीज ‘सेके्रड गेम्स’ सीजन 2 में सरताज यानी कि सैफ अली खान की पहली पत्नी मेघा के किरदार के बाद अनुप्रिया गोयंका इन दिनों वेब सीरीज ‘‘आश्रम’ में ढोंगी निराला बाबा के खिलाफ मुहीम छेड़ रखी डॉं. नताशा कटारिया के किरदार में काफी शोहरत बटोर रही हैं. इससे पहले भी ‘द फाइनल काल’,  ‘अभय’, ‘क्रिमिनल जस्टिस’ और ‘‘ह्यूमरसली  योर्स सीजन 2’, ‘असुर’ जैसी चर्चित वेब सीरीज में नजर आ चुकी हैं.

प्रस्तुत है अनुप्रिया गोयंका से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .

आज की तारीख में आप खुद को कहां पाती हैं?

-सच कहूं, तो मैं जिस माहौल से आई हूं, और जहां से आई हूं, उसको देखते हुए तो मेरा करियर बहुत सही दिशा में आगे बढ़ रहा है. मैंने अब तक खोने की बजाय कुछ न कुछ पाया है. मैंने अच्छे लोगों के साथ ही काम किया है. निशिकांत कामत, विक्रम मोटावणे, संजय लीला भंसाली,  नीरज घायवान, तिग्मांशु धुलिया, प्रकाश झा के निर्देशन में काम किया है. इसी तरह मैंने कलाकारों में विद्या बालन अर्जुन रामपाल, रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, सैफ अली, बॉबी देओल के साथ काम किया है. पिछले वर्ष मैने कलाकार व इंसान के तौर पर काफी ग्रो किया था. इस वर्ष भी दर्शक जनवरी माह से ही मुझे बेहतरीन किरदारों में देख रहे हैं. अभी तो मैं कुछ रोचक किरदार करने जा रही हॅं, जिसके लिए मैं बोल चाल की भाषा सीखने के साथ ही बॉडी लैंगवेज पर भी काम कर रही हूं.

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बॉलीवुड में छोटे छोटे किरदार ही निभा रही हैं ?

-सर. . . आप देखिए. . . मैं एक छोटे से शहर और गैर फिल्मी परिवार से आई हूं. यहां मेरा कोई गॉडफादर नहीं है. मेरी पीठ पर हाथ रखने वाला कोई नहीं है. तो वहीं मेरे लिए काम करना बहुत जरूरी है. मुझे अभिनय करने में हमेशा मजा आता है. ऐसे में किसी काम को मना करना मुझे अपराध लगता है. मैंने हमेशा वही फिल्में स्वीकार की, जिनके किरदारों को निभाते हुए मुझे आनंद मिला अथवा जिनमें मेरे सह कलाकार ऐसे थे, जिनसे मैं काफी कुछ सीख सकती थी. मैने उन निर्देेशकों के साथ फिल्में की, जिनके साथ काम करने की मेरी इच्छा रही है. ऐसे में मैंने सिर्फ मेन लीड ना होने की वजह से अवसर हाथ से जाने नहीं दिया. मुझे लगा कि ऐसा करना गलत हो जाएगा. मैं मानती हूं कि छोटे किरदार निभाने से एक इमेज बन जाएगी. मगर मुझे यकीन है कि मेरे काम की तारीफ होगी, जो की हुई. लोगों को जब छोटे किरदारों में मेरा काम पसंद आएगा तो वह मुझे बड़े किरदार भी देंंगे और वही हो रहा है. लेकिन वेब सीरीज में तो बड़े किरदार निभा रही हॅूं. ‘असुर’के बाद अब मैने ‘‘आश्रम’’में बहुत बड़ा किरदार निभाया है.

‘‘आश्रम’’को लेकर क्या कहना चाहेंगी?

-देखिए, 28 अगस्त से ‘‘एम एक्स प्लेअर’’पर ‘‘आश्रम’’का प्रसारण हो रहा है. यह एक ऐसे आम इंसान की कहानी है, जो अंधविश्वासी होता है. वह कई बार ऐसे ढोंगी साधु या बाबा पर भगवान से ज्यादा श्रद्धा रखने लगते है, जिनकी प्रकृति इतनी साफ-सुथरी नहीं होती, जो उसका दुरुपयोग कर अपराध में लिप्त रहते हैं. यह वेब सीरीज इन सब पर रोशनी डालती है. इसमंे इस बात का जिक्र है कि कैसे लोग हमारे यहां अंधविश्वास में बह जाते हैं और कैसे कैसे वह सारी चीजें क्राइम को बढ़ावा देती हैं. इस तरह यह वेब सीरीजरियालिटी को उजागर करती है. इसमें मेरा जो डॉ. नताशा का ट्रैक है, वह बहुत बेहतरीन है.

आप अपने डॉ.  नताशा कटारिया के किरदार को किस तरह से परिभाषित करेंगी?

-डॉक्टर नताशा कटारिया फॉरेंसिक एक्सपर्ट है. इमानदार और अपराधियों के खिलाफ रहती है. पूरी तरह से वह फेमिनिस्ट भी है. हर सच के लिए लड़ाई करना जानती है. इस वेब सीरीज में उसके आसपास के जो भी किरदार हैं, उनको भी वह न्याय के लिए लड़ने को प्रेरित करती हैं. सच के लिए लड़ने के लिए वह एक एकदम निडर लड़की है. नताशा है तो बहुत कंजरवेटिव ख्यालात वाले परिवार से, मगर वह ख्ुाद स्वतंत्र है, रिस्क लेने से घबराती नहीं है.

वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’में डॉक्टर नताशा पूरी तरह से नारीवादी @फेमिनिस्ट है. पर आप निजी जिंदगी में कितना फेमिनिस्ट हैं?

-मैं अपने आप को फेमिनिस्ट इस हिसाब से कहूंगी कि मैं स्वयं औरतों के हक के लिए जागरूक हूं. मैं इस बात पर यकीन करती हूं कि औरतों ने हमेशा बहुत कुछ सहा है और उस सोच तथा आम धारणा को बदलना इतना आसान नहीं है. मेरी मां के लिए आसान नहीं था. मेरी मां की मां अर्थात मेरी नानी के लिए तो और भी ज्यादा आसान नहीं था. मेरे लिए भी कहीं ना कहीं आसान नहीं है. क्योंकि बचपन से आप अपने घर के अंदर और आस पास जो कुछ देखती हैं, वह सारी चीजें अपने आप आ ही जाती हैं, फिर आप कितनी भी स्वतंत्र जिंदगी जी रही हों. मैं कलाकार हूं. फिर भी कहीं ना कहीं असमानता की भावना चुभ ही जाती है. यह बात तो सही है कि अभी भी पितृ सत्तात्तमक सोच वाला ही समाज है. हम लोग जितनी भी कोशिश कर रहे हैं, पर ग्रामीण क्षेत्र में औरतों की आजादी आज भी नही है. उन्हें समान अवसर नहीं मिलते हैं. महानगरों में काफी हद तक औरतें खुद को स्वतंत्र महसूस कर पाती हैं. तो इस हिसाब से मैं फेमिनिस्ट हूं. मुझे पता है कि हमें अपनी जगह, अपने आत्मसम्मान को बनाने के लिए थोड़ा और ज्यादा संघर्ष लड़ाई करनी पड़ेगी. हमें आज भी उन परिस्थितियों से लड़ना पड़ेगा,  जो औरतों और पुरूषों आदमियों के बीच भेदभाव करती हैं. मेरे लिए सरल भाषा में फेमिनिस्ट का मतलब समानता है. जहां हर एक चीज में समानता दी जाए. फिर चाहे वह कामकाज की जगह हो, अवसर की बात हो.  अगर आप सैक्रिफाइस कर रहे हैं, तो आपका सहकर्मी या जिंदी का पार्टनर रूपी पुरूष को भी सैक्रीफाई करना चाहिए. यदि ऐसा नही है, तो समानता कहां रही?हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि हम औरतों को भी समानता का अधिकार है.

जब आप मुंबई में फिल्म या वेब सीरीज की शूटिंग करती है और जब मुंबई के बाहर शूटिंग करती है. तो किस तरह के अनुभव होते हैं?

-यच तो यह है कि मैं हमेशा मुंबई के बाहर शूटिंग करने को ही प्राथमिकता देती हूं. क्योंकि तभी हम मुंबई और मुंबई की जिंदगी से अलग हो पाते हैं. तथा हम पूरी तरह से उस वातावरण में आसानी से मिल पाते हैं, जिस वातावरण की फिल्म व वेब सीरीज का किरदार होता है. उस वातारण में पहुॅचते ही आसानी  वास्तविकता बन जाती है. यॅूं तो हम वहां पर भी होटल में अपने दोस्तों या टीम से जुड़े लोगों के बीच पहुॅच जाते हैं. फिर भी हम जिस टीम का हिस्सा होते हैं, हमारी मानसिकता वैसे ही बन जाती है. तो इसका बहुत फर्क पड़ता है. दूसरी जाहिर सी बात है कि अगर हम मुंबई में शूटिंग करते हैं, तो मुंबई के जो रीयल लोकेशन हैं या सेट हैं, उनमें एक मेट्रोपॉलीटियन ड्राइव तो है. हम अयोध्या में शूटिंग करते हैं, तो उस शहर की, उस जगह की भी अपनी अलग ‘वाइब्स’होती है.  एक मैग्नेटिज्म होता है. यह सब किरदार गढ़ने में काफी मदद करती है. जिस जगह का किरदार हो, वहां पहुॅचकर शूटिंग करने से अपने आप ही उसमें एक सरलता आ जाती है.  जो कि महानगरों में संभव नही है.  अगर आप सेट की बाकी चीजों से कट अॉफ हो जाते हैं, अपनी आम मुंबई वाली जिंदगी से अलग थगल हो जाते हैं, तो यह सब किरदार को न्यायसंगत ढंग से निभाने में मदद करता है. लेकिन यह सब इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप किस प्रोडक्शन हाउस के साथ काम कर रहे हैं. किसी प्रोडक्शन हाउस में कलाकार को इतनी सुविधाएं मिलती हैं, कि उसके लिए काम करना ज्यादा सहज होता है. कुछ प्रोडक्शन हाउस में कम छूट मिलती है. फिर आपका सह कलाकार कौन है, उस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है.

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फिल्म निर्देशक प्रकाश झा सर के साथ वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’ के लिए शूटिंग करना हम सभी के लिए काफी कठिन था. ‘आश्रम’ से जुड़े सभी कलाकार व पूरी युनिट लगातार पांच माह तक आयोध्या में ही रही. उन्होंने दिवाली और नया वर्ष सब कुछ आयोध्या में ही मनाया. जबकि मैं तो बीच बीच में मुंबई आती जाती रही. पूरेपांॅच माह तक हर दिन कठिन दृश्यों को फिल्माना आसान नही होता. कभी-कभी तो बिना ब्रेक और जबरदस्त ठंड में भी शूटिंग करनी होती थी. लेकिन पूरे सेट पर खुशनुमामाहौल रहता था. काम करते हुए मजा आ रहा था.

मेरी खुशकिस्मती यह रही है कि अब तक मुझे ऐसे प्रोडक्शन हाउसों के साथ काम करने का अवसर मिला, जो हर कलकाकर को बड़ा सम्मान देते हैं. प्रकाश झा सर की ही तरह‘यशराज फिल्मस’के साथ भी शूटिंग करते हुए मेरे अनुभव अच्छे रहे. उनके साथ भी बहुत अच्छा समय बीता. क्योंकि वह लोग हर कलाकार का बहुत अच्छा ख्याल रखते थे. सेट पर सभी लोग परिवार की तरह ही व्यवहार करते, कि आप अपने घर को कभी याद नहीं करेंगें. ेबल्कि आप खुद उनके साथ ऐसे घुलमिल जाएंगे कि वही आपको अपना परिवार लगने लगेगा. मुझे लगता है कि आप किसके साथ काम कर रहे हैं, यह बहुत अहमियत रखता है.

कोरोना के चलते बंद सिनेमा घरो के दौर में कई फिल्में सिनेमाघरों की बजाय ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज हो रही हैं. इसे आप कलाकार के तौर पर किस तह से देखती हैं?

-बतौर कलाकार हमारे लिए थिएटर सिनेमाघर का ही चार्म रहेगा. हमने बचपन से ही सिनेमाघर का चार्म देखा है, फिर चाहे वह 70 एमएम हो या 35 एमएम हो. यह चार्म खत्म होने से रहा. देखिए 70 एमएम या 35 एमएम का अपना चार्म है, यह चार्म कहीं नहीं जाने वाला. बतौर कलाकार भी मैं यही चाहती हॅूं कि मेरी फिल्म को दशर््ाक थिएटर के अंदर जाकर देखें. पर जब धन की यानी कि व्यावसायिकता की हो, तो मैं जवाब देने वाली सही इंसान नही हूं, इसका जवाब निर्माता ही दे सकते हैं. पर मैं इतना जरूर कहूंगी, जो फिल्में ‘कोविड-19’से पहले बनी थी, उन्हें सिनेमाघरों में प्रदर्शित करना संभव नही हुआ, तो अब उन्हें ‘ओटीटी प्लेटफॉर्म’पर आना पड़ रहा है. पर मुझे लगता है कि निर्माताओं ने व्यावसायिकता को ध्यान में रखकर भी मन से तो यह निर्णय नहीं लिए होंगे. पर उनके लिए बहुत बड़े नुकसान से बचने का यही रास्ता समझ में आया होगा. क्योंकि सिनेमा घर कब खुलेंगे?किसी को पता नहीं. दर्शक  कब सिनेमाघर के अंदर जाने केे लिए ख्ुाद को सहज महसूस करेंगे,  इसका जवाब भी किसी के पास नही है. ऐसे में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्मों को रिलीज करना सही निर्णय रहा.

ओटीटी प्लेटफार्म पर बहुत बड़ा स्टार हो या नवोदित कलाकार हो, छोटी फिल्म हो या बड़ी फिल्म हो, सभी देखेंगें.

लेकिन आपको नहीं सिनेमाघर में फिल्म के प्रदर्शन से कलाकार को स्टारडम मिलता है, वह ओटीटी प्लेटफार्म पर संभव नही?

-मुझे ऐसा नहीं लगता. बल्कि मुझे तो ऐसा लगता है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म से ही कलाकार आगे बढ़े हैं. क्योंकि उसकी पहुंच बहुत बड़ी है. जो चर्चित कलाकार हैं, जो बड़े बजट की फिल्में कर रहे हैं, उनकी अगर एक फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म पर आ जाती है, तो इससे उनकी स्टारडम पर मुझे नहीं लगता कोई फर्क पड़ेगा. अगर फिल्म बड़ी है, आपने अच्छा काम किया है,  आपकी परफॉर्मेंस अच्छी है, तो उसकी प्रशंसा की जाएगी, फिर चाहे वह  ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आए या सिनेमाघरों में. मगर कुछ फिल्में ऐसी जरूर हैं, जो सिर्फ सिनेमाघरों के लिए बनी है. मसलन-‘पद्मावत’. इसे ‘ओटीटी’पर देखने में मजा नही आ सकता. क्योंकि वह सिनेमाघर के बड़े पर्दे के लिए ही बनी है. उसके  साथ सही न्याय नहीं होगा. इस तरह की फिल्मों के लिए जरूर फर्क पड़ेगा.  बाकी परफॉर्मेंस और कलाकारों की बात करें, तो अगर आपने अच्छा काम किया है और फिल्म अच्छी बनी है,  तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी उतनी ही चलेगी और कलाकार को लोकप्रियता भी मिलेगी.

इसके अलावा नया क्या कर रही हैं?

-अभी वेब सीरीज ‘आश्रम’के सीजन एक का पहला भाग आया है. बहुत जल्द ‘आश्रम’के सीजन एक का ही दूसरा भाग आएगा. उसके बाद ‘‘आश्रम’’ का दूसरा सीजन आएगा.  वेब सीरीज ‘‘क्रिमिनल जस्टिस-दो’’ की शूटिंग चल रही है. मुझे लगता है कि ‘आश्रम’के दूसरे सीजन की शूटिंग हम लोग जल्द ही करेंगें. इसके अलावा दो फिल्मों को लेकर बातचीत चल रही है. हॉं!मैने दिव्येंदु शर्मा के साथ एक फिल्म ‘‘मेरे देश की धरती’’की शूटिग की हैं, जो कि हालात सामान्य होते ही प्रदर्शित होगी.

किस तरह के किरदार निभाना चाहती हैं?

-मैं उन्ही किरदारों को स्वीकार करती हॅू, जिनमें मेरे लिए कुछ करने को हो. मैं रोचक किरदार की तलाश करती हॅूं. मैं उन किरदारों को प्राथमिकता दे रही हूं, जो मुझे कुछ नया करने व कुछ नया  एक्स्प्लोर करने का अवसर दें. अब मैं कुछ ऐसा काम करना चाहती हूं, जहां मेरे किरदार एकदम अलग हों. मैं कुछ लाइट हार्टेड काम करनाचाहती हूं. कॉमेडी करने का मेरा बहुत मन है. मैं एक्शन पूर्ण किरदार भी करना चाहूंगी. मैंने इस हद तक अभी तक कोशिश नहीं किया है. ‘वॉर’में मेरे एक भी स्टंट नहीं थे. मैं कुछ एक्शन प्रधान किरदार भी करना चाहूंगी. मुझे गांव के किरदार बहुत ज्यादा प्रेरित करते हैं. मेरे आदर्शस्मिता पाटिल,  शबाना आजमी रही हैं.  तो उस समय जिस तरह के गांव के किरदार रहते थे, मिर्च मसाला में या मंथन में उस तरह के किरदार निभाने का मेरा बहुत मन है.  पीरियड ड्रामा भी करना है. यॅॅंू तो मुझे संजय लीला भंसाली ने ‘पद्मावत’में काम करने का मौका दिया था, जो कि  मेरे लिए सौभाग्य की बात थी. लेकिन मैं आगे भी उस तरह का काम करना चाहूंगी. अब मैं लीड किरदारों पर भी काम करना चाहूंगी. जहां बड़ा ग्राफ हो. जहां मैं एक ही किरदार में कई सारी यात्राओं से गुजर सकूं.  एक ही किरदार में कई तरह की भावनाओं से गुजरने का अवसर मिले.  ऐसा किरदार करना है, जहां मुझे पूरी फिल्म या शो की जिम्मेदारी उठानी पड़े.

कोई ऐसा किरदार जो करना चाहती हैं?

– अमृता प्रीतम की प्रेम कहानी मुझे बहुत पसंद है. मैं परदे पर अमृता प्रीतम का किरदार निभाना चाहूंगी. अमृता प्रीतम की प्रेम कहानी काफी रोचक है. उनकी जिंदगी भी काफी रोचक थी. मुझे मीना कुमारी की जिंदगी भी इंटरेस्टिंग लगती है.  मुझे महारानी गायत्री देवी की जिंदगी पर बनी फिल्म में काम करना हैं.

लॉक डाउन में समय कैसे बिताया?

-मैने समय का सदुपोग किया. कई वर्षों बाद मैंने फिर से स्केचिंग करना शुरू किया.  और पेंटिंग के लिए भी कैनवस वगैरह तो मंगवा लिए हैं. बस अब करने बैठूंगी. इसके अलावा कुछ किताबें पढ़ी. एक किताब स्लेपीयंस पढ़ी. गुलजार की कुछ किताबें पढ़ी. खालिद हुसैनी की किताब ‘थउजेंड स्प्लेंडिड’पढ़ी. यह किताब मुझे पहले भी बहुत पसंद थी. मैंने कुछ नाटकों को फिर से पढ़ा.

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