Women Empowerment Movies: बौलीवुड की 5 नारीप्रधान फिल्मों की खास बातें, आज भी क्यों हैं मशहूर

Women Empowerment Movies: आज की वूमन किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानतीं। यही वजह है कि वे हर क्षेत्र में दिखाई पड़ती हैं और सफलतापूर्वक काम भी करती हैं.

लड़कियां आज राजनीति, सैन्य, आर्थिक, सेवा, प्रौद्योगिकी जैसे हर क्षेत्रों में पूरी तरह से भाग लेती हैं. खेलों में भी वे बेहतरीन योगदान देती रही हैं.

यों महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए सरकार ने कई कानून बनाए हैं, जिस में स्त्री शिक्षा को अनिवार्य किया गया है, लड़की की मरजी के बिना शादी पर प्रतिबंध लगाया गया है, तलाक को कानूनी दर्जा दिया गया है. साथ ही आज की नारी अपनी मरजी के मुताबिक किसी भी हुनर के लिए ट्रेनिंग ले सकती हैं.

स्त्री के मजबूत होने की खास वजह उन का शिक्षित और आत्मनिर्भर बनना है, जिस से वे किसी भी परिस्थिति से डट कर मुकाबला कर सकती हैं, किसी भी परिस्थिति में वे पीछे नहीं हटतीं.

सरोजिनी नायडू, इंदिरा गांधी, प्रतिभा पाटिल, द्रौपदी मुर्मू आदि ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने अपनी मौजूदगी से सब को प्रभावित किया है और किसी भी परिस्थिति में वे पीछे नहीं हटीं.

रियल से हट कर मनोरंजन की दुनिया में भी ऐसी कई फिल्में बनीं, जिस में महिलाओं ने हर परिस्थिति का सामना करते हुए आगे बढ़ीं और दर्शकों का प्यार भी इन फिल्मों को मिला, कुछ निम्न हैं :

बैंडिट क्वीन (1984) : फूलन देवी की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ थी, जिस में सीमा बिश्वास ने बेहतरीन रोल अदा किया था और रातोरात उन्हें प्रसिद्धी मिली थी.

एक डकैत किस तरह से लोगों का मसीहा बन गई और कैसे पुरुषसत्ता को पीछे छोड़ते हुए एक महिला ने अपनी जगह बनाई, यह बताती है फिल्म ‘बैंडिट क्वीन.’

रियल में फूलन देवी के साथ बचपन में क्या हुआ था, उस के साथ जवानी में क्या हुआ और किस तरह से वह एक डकैत बन गई, यह सब कुछ इस फिल्म में बताया गया है, जिसे दर्शकों ने भी बहुत पसंद किया था.

मिर्च मसाला (1987) : 80 और 90 का ऐसा दौर था, जब समानांतर फिल्मों को दर्शक अधिक पसंद
करते थे, तब इस तरह की काफी फिल्में बनीं और कई बड़ी हीरोइनों ने काम किया। इसी कड़ी में अगर आप को पैरलल सिनेमा का शौक है, तो केतन मेहता द्वारा बनाई गई फिल्म ‘मिर्च मसाला’ जरूर देखिए.

यह फिल्म बेहद यूनिक है जिस में स्मिता पाटिल, ओमपुरी, नसीरुद्दीन शाह, रत्ना पाठक शाह, दीप्ति
नवल, सुप्रीया पाठक जैसे कलाकार मौजूद हैं. इस फिल्म को बैस्ट हिंदी फीचर फिल्म का नैशनल अवार्ड भी मिला था. इस में दिखाया गया है कि किस तरह छोटे तबके की महिलाएं अपने उत्पीड़न के खिलाफ लड़ती हैं.

अस्तित्व (2000) : फिल्म ‘अस्तित्व’ तब्बू की कुछ बेहतरीन फिल्मों में से एक फिल्म है. भारत के
पितृसत्तात्मक समाज को दिखाने वाली यह फिल्म ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर, पति का ऐब्यूज और एक महिला की अपनी पहचान को खोजने की कहानी है.

आखिर में वह महिला अपने पति और बेटे को छोड़ कर चली जाती है और उस की होने वाली बहू उस का साथ देती है, जो खुद अपने बौयफ्रैंड को छोड़ देती है.

यह फिल्म अपने समय से काफी आगे थी और इस की खासियत इस की दमदार ऐक्टिंग और पावरफुल कहानी है.

लज्जा (2001) : भारतीय समाज में महिलाओं के साथ क्याक्या होता है यह इस फिल्म में
दिखाया गया है. माधुरी दीक्षित, रेखा, मनीषा कोइराला, महिमा चौधरी सभी ने अपनेअपने रोल बहुत अच्छी तरह से निभाए हैं. यह फिल्म बहुत ही खास है.

‘लज्जा’ 4 महिलाओं मैथिली, जानकी, रामदुलारी और वैदेही की कहानी है। मनीषा कोइराला इस फिल्म की प्रमुख पात्र है. वैदेही (मनीषा कोइराला) और रघु (जैकी श्रौफ) पतिपत्नी हैं। रघु वैदेही के साथ अभद्र व्यवहार कर के उसे घर से बाहर निकाल देता है। वैदेही अपने मातापिता के पास लौट जाती है, लेकिन एक कार दुर्घटना में घायल होने के बाद रघु को पता चलता है कि वह कभी बाप नहीं बन सकता और इस के बाद वह पछतावे का ढोंग कर के वैदेही को वापस बुला लेता है.

वैदेही गर्भवती है और रघु सिर्फ अपना बच्चा ले कर उसे मार देना चाहता है, लेकिन वैदेही को यह सब पता चलता है और वह वहां से भाग जाती है. भागते हुए वैदेही, जानकी से मिलती है, जो एक अविवाहित मां है लेकिन उस का प्रेमी शादी से मना कर देता है और वह अकेली हो जाती है.

थिएटर में ऐक्टिंग करते वक्त दर्शक जानकी पर हमला कर देते हैं जिस से उस का गर्भपात हो जाता है. बाद में वैदेही रामदुलारी से मिलती है, जो अपने बच्चों को बचाने के लिए अपना बलिदान दे देती है. ये तीनों स्त्रियां कैसे अपने साथ हुए अत्याचार का बदला लेती हैं उस की कहानी है, जो बहुत ही मोटीवैटिव
है, जिसे देखा जा सकता है.

मैरिकोम (2014) : इंडियन बौक्सर मैरीकोम की जिंदगी पर बनी यह फिल्म प्रियंका चोपड़ा के
कैरियर की सब से बेहतरीन फिल्मों में से एक है.

एक एथलीट के लिए शादी कितनी मुश्किल बात है और शादी के बाद कमबैक करना कितना मुश्किल होता है, यह इस फिल्म में दिखाया गया है. मैरीकोम ने अपने परिवार और बच्चों के साथ अपने कैरियर को कैसे आगे बढ़ाया और कैसे सारी परेशानियों को झेला, यह इस फिल्म की कहानी है, जिस में मैरीकोम ने हर कठिन परिस्थिति से गुजर कर अपनी मुकाम हासिल की और अपना नाम पूरे विश्व मविन फैलाया.
इस प्रकार फिल्म इंडस्ट्री ने आज से कई साल पहले जो फिल्में नारीशक्ति पर बनाई थीं, इन सभी फिल्मों की कहानी आज के परिवेश में भी लागू होती है, क्योंकि उस समय इन फिल्मों की कहानी अपने समय से काफी आगे थीं. यही वजह है कि आज भी दर्शक इन फिल्मों को देखना पसंद कर रहे हैं.

अक्षय कुमार की रक्षाबंधन फ्लौप रही, भाईबहन पर बनी अग्निपथ जबरदस्त हिट, क्यों

कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जिन्हें हम देखकर वास्तविक दुनिया को भूल जाते है और उस काल्पनिक दुनिया में जीने लगते हैं. बौलीवुड में रिश्ते पर ऐसी ही कई फिल्में बनाई गई हैं, जिन्हें देखकर हम वास्तविक रिश्ते की सच्चाई भूल जाते हैं और फिल्मी दुनिया में इतना खो जाते हैं कि उसी तरह हम अपने रिश्ते को भी ढालने की कोशिश करते हैं. लेकिन रील और रियल लाइफ में बहुत अंतर होता है.

बौलीवुड में हर तरह के रिश्ते पर फिल्में बनती हैं. चाहे पतिपत्नी, गर्लफ्रैंड, बौयफ्रैंड, एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर, हर रिश्ते पर फिल्मों में एक्टर्स हर किरदार में नजर आते हैं. भाईबहन पर भी कई सारी फिल्में बनी. कुछ फिल्में हिट हुई, तो कुछ फिल्में फ्लौप हुई. राखी का त्यौहार आने वाला है. ऐसे में इस खास मौके पर भाईबहन इन फिल्मों को देख सकते हैं और अपने रिश्ते को मजबूत बना सकते हैं.

अक्षय कुमार की फिल्म रक्षाबंधन

भाईबहन की बौन्डिंग पर बनी यह फिल्म कौमेडी, मेलोड्रामा और इमोशन से भरपूर है, लेकिन यह फिल्म बौक्स औफिस पर बुरी तरह फ्लौप हुई थी. जब इस फिल्म का ट्रेलर आया था, तो इस फिल्म के गाने और भाईबहन पर बनी इस कहानी से ज्यादा उम्मीद थी, लेकिन यह फिल्म असफल रही. इस फिल्म में आउटडेटेज सब्जेक्ट दिखाया गया. इस फिल्म में दहेज और 4 अविवाहित बहनों की शादी कराने का बोझ उठाते भाई की कहानी दिखाई गई है. यह विषय काफी पुराना था.

पटाखा

यह फिल्म दो बहनों की कहानी थी, लेकिन प्यार से मिलजुल कर रहने वाली इसकी कहानी कतई नहीं थी. इसमें यह दिखाया गया था कि दो बहनें बचपन से ही लड़ाई करती हैं. पौपुलर एक्ट्रैस राधिका मदान की यह पहली फिल्म है. इस फिल्म में उन्होंने लीड एक्ट्रैस के तौर पर काम किया था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फिल्म का बौक्स औफिस कलेक्शन कुछ खास नहीं रहा. यह फिल्म भी असफल रही.

दिल धड़कने दो

‘दिल धड़कने दो’ यह बड़ी बजट की फिल्म बताई गई थी, लेकिन इस फिल्म का ट्रीटमेंट स्क्रीन पर कम ही नजर आया. इस फिल्म का म्यूजिक भी कुछ खास नहीं रहा. इस फिल्म को भी बौक्स औफिस पर कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. फिल्म डायरेक्टर जोया अख्तर ने इस फिल्म में मौडर्न फैमिली और इसकी प्रौब्लम को लेकर बनाई थी. इस मूवी में प्रियंका चोपड़ा और रणवीर सिंह भाईबहन के किरदार को बखूबी निभाया.कैसे दोनों भाईबहन एकदूसरे से लड़ते हैं और मुश्किल वक्त में एकदूसरे का साथ भी देते हैं.

सरबजीत

साल 2016 में आई फिल्म सरबजीत ने बौक्स औफिस पर हिट साबित शानदार कमाई की थी. यह फिल्म सुपरडूपर हीट रही थी. इस फिल्म ने क्रिटिक्स को भी काफी इम्प्रैस किया था. रिपोर्ट्स के मुताबाक यह फिल्म 15 करोड़ में बनी थी, लेकिन बौक्स औफिस पर इसने 43 करोड़ की कमाई कमाई की थी, इस क्लेक्शन ने हर किसी को चौंका दिया था.

इस फिल्म की कहानी सच्ची घटना पर आधारित है. इस फिल्म के मुख्य किरदार में रणदीप हुड्डा और ऐश्वर्या राय नजर आए. इन दोनों ने इस फिल्म में भाईबहन के अटूट रिश्ते को बखूबी निभाया है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि पाकिस्तान ने सरबजीत नाम के शख्स को गिरफ्तार कर लिया है और उसकी बहन दलबीर अपने भाई को वतन लाने के लिए सालों तक कोशिश करती रही थी.

भाग मिल्खा भाग

साल 2013 में आई फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ एक बायोपिक फिल्म है. ये फिल्म इंडियन एथलीट मिल्खा सिंह के जीवन पर आधारित हैं. यह फरहान अख्तर की बेहतरीन फिल्मों में से एक है. इस फिल्म का बजट 30 करोड़ रुपये था जबकि बौक्स औफिस पर इस फिल्म ने 168 करोड़ रुपये का क्लेक्शन किया था. इस फिल्म में फरहान अख्तर और दिव्या दत्त भाईबहन के किरदार में नजर आए थे.

अग्निपथ

‘अग्निपथ’ यह रिमेक फिल्म थी. अमिताभ बच्चन की अग्निपथ की रिमेक है. इसमें मुख्य किरदार में
ऋतिक रोशन, ऋषी कपूर, प्रियंका चोपड़ा, संजय दत्त और कई कलाकार नजर आए हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यह फिल्म बौक्स औफिस पर अच्छा कारोबार किया था. खबरों के मुताबिक 60 करोड़ में बनी यह फिल्म 200 करोड़ की कमाई की थी.

इस फिल्म में बड़े भाई बने हुई हैं जो बचपन में अपनी बहन से बिछड़ जाता है लेकिन हर दिन वो अपनी बहन को याद करता है और उसके लिए तड़पता है. अग्निपथ में भाईबहन के प्यार को बखूबी फिल्माया गया है. इस फिल्म का ये गाना, ‘अभी मुझ में कहीं ‘ काफी पौपुलर है.

खस्ताहाल बौलीवुड, दोषी कौन

आज बौलीवुड का एक भी कलाकार या निर्देशक जमीन से जुड़ा हुआ नहीं है. परिणामस्वरूप बौलीवुड की फिल्में बौक्स औफिस पर बुरी तरह से औंधे मुंह गिर रही हैं. वर्तमान समय के सभी कलाकार खुद को आम इंसानों से दूर ले जाने के तरीकों पर ही अमल करते हैं. मु झे अच्छी तरह याद है कि एक वक्त वह था, जब हम किसी भी फिल्म के सैट पर कभी भी जा सकते थे और सैट पर स्पौट बौय से ले कर कलाकार तक किसी से भी मिल सकते थे. उन दिनों कलाकारों के फैंस भी सैट पर आ कर उन से मिला करते थे. उन दिनों सैट पर हर किसी का भोजन एकसाथ ही लगता था. लेकिन अब ऐसा नहीं रहा. अब कलाकार पहली फिल्म साइन करते ही पीआर, मैनेजर व सुरक्षा के लिए बाउंसरों की सेवाएं ले कर खुद को कैद कर लेता है. सैट पर पत्रकारों या फैंस का जाना मना हो चुका है.

अब कलाकार सैट पर ज्यादा देर नहीं रुकता. वह हमेशा अपनीअपनी वैनिटी में बैठा रहता है. सीन के फिल्मांकन के वक्त वैनिटी वैन से निकल कर कैमरे के सामने जा कर परफौर्म करता है और फिर वैनिटी वैन में घुस जाता है.

ऐसे में जमीनी हकीकत से कैसे वाकिफ हो सकता है? उसे कैसे पता चलेगा कि उस की अपनी फिल्म के सैट पर किस स्पौट बौय के साथ किस तरह की समस्याएं हैं अथवा किस स्पौट बौय के पड़ोसी अब किस तरह की फिल्में देखना चाहते हैं.

इस के ठीक विपरीत दक्षिण भाषी कलाकार सदैव ऐसे लोगों के साथ जुड़ा रहता है. जब रामचरन की फिल्म ‘आरआरआर’ ने खूब पैसे कमाए और इस के लिए मुंबई में पांचसितारा होटल में फंक्शन रखा गया, तो मुंबई आने से पहले रामचरन ने इस फिल्म से जुड़े लोगों को अपने घर बुलाया और सभी को 10-10 ग्राम सोने के सिक्के देते हुए उन के साथ लंबी बातचीत की. सभी का हालचाल भी पूछा.

फिल्म के प्रदर्शन से पहले कलाकार पत्रकारों के बड़े समूह से 15-20 मिनट मिलता है, कुछ रटेरटाए शब्द बोल कर गायब हो जाता है. ऐसे में वह कैसे सम झेगा कि उस की परफौर्मैंस को ले कर कौन क्या सोचता है? आजकल पत्रकार भी ‘गु्रप इंटरव्यू’ का हिस्सा बनने के लिए किस हद तक गिर रहे हैं, उस की कहानी भी कम डरावनी नहीं है.

मीडिया से दूरी क्यों

जी हां, बौलीवुड के कलाकारों को पत्रकारों से बात करने का भी समय नहीं मिलता अथवा यह कहें कि ये अपने पीआर के कहने पर दूरी बना कर रखते हैं और एकसाथ 20 से 50 पत्रकारों को ‘गु्रप इंटरव्यू’ देते हैं और फिर उन का मजाक भी उड़ाते हैं.

एक बार जब मैं अक्षय कुमार से उन के घर पर ऐक्सक्लूसिव बात कर रहा था, तो उस बातचीत के दौरान उन्होंने गर्व से बताया कि एक दिन पहले उन्होंने 15 मिनट के गु्रप इंटरव्यू खत्म किया जिस में 57 पत्रकार थे.

हिंदी फिल्म बनाने वाले निर्माता, निर्देशक व कलाकार हिंदी में बात करना पसंद ही नहीं करते. वे तो 4 बड़े अंगरेजी अखबारों के पत्रकारों से बात करने के बाद बाकी लोगों से गु्रप में बात करना चाहते हैं. गु्रप इंटरव्यू में वे बातें कम करते हैं, पत्रकारों का मजाक ही उड़ाते हैं.

मशहूर अभिनेता, निर्माता व निर्देशक राज कपूर ने बतौर बाल कलाकार 1935 में फिल्म ‘इंकलाब’ में अभिनय किया था. उस के बाद जब वे कुछ बड़े हुए तो उन्होंने बतौर सहायक निर्देशक काम करना शुरू किया. लेकिन वे अपने पिता व अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के कहने पर बस व लोकल ट्रेन में यात्रा करते थे, जबकि उस वक्त पृथ्वीराज कपूर के पास सारे सुखसाधन उपलब्ध थे. राज कपूर ने तमाम उपलब्धियां हासिल कीं.

बताते हैं कि वे हर फिल्म के सैट पर हर छोटेबड़े इंसान के साथ गपशप किया करते थे. मगर जब भी उन्हें किसी नई फिल्म की विषयवस्तु पर काम करना होता था, तो वे मुंबई से 300 किलोमीटर दूर पुणे स्थित अपने फार्महाउस चले जाते थे. एक बार इस फार्महाउस से जुड़े कुछ लोगों से हमारी बात हुई, तो उन्होंने बताया कि वहां रहते हुए राज कपूर हर इंसान से लंबी बातचीत करते थे. सभी की जिंदगी के सुखदुख जाना करते थे.

जमीन से जुड़े कलाकार

मशहूर निर्मातानिर्देशक सुनील दर्शन के पिता अपने समय के मशहूर निर्माता व फिल्म वितरक थे. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब सुनील दर्शन ने फिल्म निर्माण में उतरना चाहा, तो उन के पिता ने उन्हें 6 वर्ष के इंदौर के अपने फिल्म वितरण औफिस में काम करने के लिए भेज दिया. 6 वर्ष तक इंदौर में रहते हुए सुनील दर्शन आसपास के गांवों में जा कर लोगों से मिलते रहे.

एक बार मु झ से कहा था कि सिनेमा की सम झ विकसित करने में मेरा 6 वर्ष का इंदौर का प्रवास काफी कारगर रहा. वहां पर गांवों व छोटे कसबों में जा कर लोगों से मिलने, उन से बातचीत करते हुए सही मानों में मेरे अंदर भारतीय सिनेमा की सम झ विकसित हुई.

उस के बाद सुनील दर्शन ने ‘जानवर,’ ‘एक रिश्ता,’ ‘बरसात,’ ‘अंदाज,’ ‘दोस्ती,’ ‘अजय,’ ‘लुटेरा,’ ‘मेरे जीवनसाथी’ व ‘इंतकाम’ जैसी सफलतम फिल्में बनाईं.

आम लोगों की तरह काम

2010 में करीना कपूर, काजोल व अर्जुन रामपाल को ले कर फिल्म ‘वी आर फैमिली’ का निर्देशन करने वाले सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा की परवरिश फिल्मी माहौल में ही हुई. वे सुपरडुपर हिट फिल्म ‘दुल्हन वह जो पिया मन भाए’ के हीरो प्रेम किशन के बेटे हैं. प्रेम किशन चाहते तो सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा को निर्देशन की बागडोर थमा सकते थे, लेकिन सिद्धार्थ को अपने पिता द्वारा निर्मित किए जा रहे सीरियलों के सैट पर आम लोगों की तरह काम करना पड़ा.

लगभग 15 वर्ष तक कई जिम्मेदारियां निभाने और बहुत कुछ अनुभव हासिल करने के बाद उन्हें 2010 में करण जौहर द्वारा निर्मित फिल्म ‘वी आर फैमिली’ को निर्देशित करने का अवसर मिला.

बलदेव राज चोपड़ा उर्फ बीआर चोपड़ा किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं. उन्होंने ‘नया दौर,’ ‘कानून,’ ‘साधना,’ ‘गुमराह,’ ‘इंसाफ का तराजू,’ ‘निकाह,’ ‘बाबुल,’ ‘भूतनाथ’ सहित लगभग 60 फिल्में और ‘महाभारत’ जैसा सफलतम धारावाहिक बनाया. वे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव तक न सिर्फ आम लोगों से जुड़े रहे बल्कि हमेशा जमीन से भी जुड़े रहे. मु झे आज भी याद है कि 2002 में मैं ने उन का इंटरव्यू किया था, जोकि एक पत्रिका में छपा था. तब बीआर चोपड़ा ने मु झे स्वहस्ताक्षर युक्त पत्र कूरियर से भेज कर धन्यवाद ज्ञापन करते हुए पत्र में लिखा था कि वे भी पत्रकार रहे हैं और जिस पत्रिका में उन का इंटरव्यू छपा है, उस पत्रिका की प्रिंटिंग प्रैस में लाहौर में उन्होंने कुछ दिन काम किया था.

समाज से जुड़ी हुई फिल्में

आज हर इंसान संगीत व फिल्म निर्माण कंपनी ‘टी सीरीज’ से भलीभांति परिचित है. इस कंपनी की शुरुआत गुलशन कुमार ने की थी, जो हमेशा जमीन से जुड़े रहे. गुलशन कुमार ने अपने औफिस की इमारत में एक फ्लोर पर कैफेटेरिया बना रखा था, जहां दोपहर के भोजन अवकाश के दौरान सभी कर्मचारी एकसाथ बैठ कर भोजन करते थे. उन्हीं के बीच बैठ कर गुलशन कुमार भी भोजन करते थे.

मशहूर फिल्मकार यश चोपड़ा ने हमेशा आम इंसानों जैसी जिंदगी जी. वे अपने जीवन के अंतिम दिनों तक पत्रकारों से ही नहीं बल्कि आम इंसानों, प्रोडक्शन से जुड़े हर छोटेबड़े कर्मचारी से मिलते थे. परिणामस्वरूप उनकी फिल्मों ‘धूल का फूल,’ ‘धर्मपुत्र,’ ‘वक्त,’ ‘दाग,’ ‘दीवार,’ ‘त्रिशूल,’ ‘चांदनी,’ ‘लम्हे,’ ‘परंपरा,’ ‘डर’ व ‘वीर जारा’ की फिल्मों को लोग आज भी बारबार देखना पसंद करते हैं.

बौलीवुड: कहां से चला था, कहां पहुंचा

राजेश खन्ना की फिल्म ‘आनंद’ का एक संवाद है- ‘यह भी एक दौर है, वह भी एक दौर था.’ फिल्म में यह संवाद किसी दूसरे संदर्भ में था, मगर यह संवाद बौलीवुड पर भी एकदम सटीक बैठता है.

बौलीवुड में एक वह दौर था जब ‘आलमआरा,’ ‘दो बीघा जमीन,’ ‘मदर इंडिया,’ ‘बंदिनी,’ ‘शोले,’ ‘मुगले आजम’ के अलावा राज कपूर जैसे फिल्मकार फिल्में बनाया करते थे. वे सभी फिल्में आज भी एवरग्रीन हैं क्योंकि इन में समाज की सचाई थी.

अमिताभ बच्चन की 80 के दशक की फिल्में भी आम लोगों से जुड़ी हुई थीं. ऐंग्री यंग मैन के रूप में अमिताभ बच्चन द्वारा अभिनीत फिल्मों में गरीब तबके के मन की बात की गई थी. यानी फिल्में आम लोगों को उन्हीं की दुनिया में ले जाती थीं. बड़ी मुसीबतों का सामना करते हुए इंसान को जीतते हुए देखना इंसानी मन की कमजोरी है. तभी तो बौलीवुड की फिल्में सब से अधिक देखी जाती थीं.

बेसिरपैर की कहानी

लेकिन पिछले 15-20 सालों से बौलीवुड में दक्षिण भाषी सिनेमा की सफलतम फिल्मों के हिंदी रीमेक, ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, लव टैंगल, सैक्स व हिंसा से सराबोर फिल्मों के अलावा बायोपिक फिल्मों का ही चलन हो गया है. बौलीवुड का सिनेमा जमीनी सचाई से कोसों दूर जा चुका है. बौलीवुड के सर्जक यह भूल चुके हैं कि जिस सिनेमा को मुंबई में कोलाबा से अंधेरी तक देखा जाता है, वही सिनेमा मुंबई के इतर इलाकों में पसंद नहीं किया जाता.

‘यशराज फिल्म’ के आदित्य चोपड़ा आम इंसानों से मिलना तो दूर पत्रकारों से भी नहीं मिलते. वे सदैव अपनी चारदीवारी के अंदर कैद रहते हैं. यदि यह कहा जाए कि वे अपनी जमीन या जड़ों से बहुत दूर जा चुके हैं, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.

आम इंसान उस सिनेमा को देखना पसंद करता है, जिस के संग वह रिलेट कर सके. मगर इस कसौटी पर ये फिल्में खरी नहीं उतरीं.

रणवीर सिंह की फिल्म ‘जयेशभाई जोरदार’ सिर्फ भारत को 2200 स्क्रीन्स से महज 3 करोड़ 25 लाख की ही ओपनिंग मिली थी.

गुजरात की पृष्ठभूमि की कहानी वाली इस फिल्म के साथ मुंबई या गुजरात के छोटे शहरों या गांवों के लोग भी रिलेट नहीं कर पा रहे हैं.

स्टूडियो में बैठे हैं एमबीए पास

2001 में नितिन केणी ने सिनेमा के विकास व सबकुछ पारदर्शी तरीके से हो सके, इसलिए जी स्टूडियो के साथ मिल कर हौलीवुड स्टाइल में स्टूडियो संस्कृति की शुरुआत की थी और पहली फिल्म ‘लगान’ का निर्माण हुआ था, जिस के हर कलाकार व तकनीशियन को उन की पारिश्रमिक राशि चैक से दी गई थी.

इस फिल्म ने सफलता का ऐसा परचम लहराया कि देखते ही देखते कुकुरमुत्ते की तरह अनगिनत स्टूडियोज मैदान में आ गए. रिलायंस सहित कई औद्योगिक घराने भी कूद पड़े. पहली बार इन सभी स्टूडियो में किस कहानी पर फिल्म का निर्माण किया जाएगा, इस की जिम्मेदारी नईनई एमबीए की युवा पीढ़ी के हाथों में सौंपा गया था.

जी हां, एमबीए पढ़ कर आए लोग, जिन्हें सिनेमा की सम झ नहीं, जिन्होंने साहित्य नहीं पढ़ा, जिन्हें संगीत या नृत्य की कोई सम झ नहीं, वे फिल्म निर्माण को ले कर निर्णय लेने लगे, जबकि फिल्म निर्माण के लिए साहित्य गीतसंगीत व नृत्य का गहराई से ज्ञान होना आवश्यक है. ये सभी कागज पर फिल्म की सफलता का गणित लिखने लगे और इन स्टूडियोज बिना कहानी वगैरह तय किए सिर्फ स्टार कलाकारों को अपने स्टूडियो के साथ मनमानी कीमत दे कर अनुबंधित करने लगा था.

उस वक्त कलाकारों ने अचानक अपनी कीमत 400-500 गुना बढ़ा दी थी. उस वक्त खबर आई थी कि रिलायंस ने 1500 करोड़ का ऐग्रीमैंट अमिताभ बच्चन के साथ किया है. एक स्टूडियो द्वारा अक्षय कुमार के साथ प्रति फिल्म 135 करोड़ का ऐग्रीमैंट करने की भी खबरें थीं.

बौलीवुड दक्षिण फिल्मों का मुहताज

बौलीवुड हमेशा दक्षिण के सिनेमा का मुहताज रहा है. बौलीवुड के जितेंद्र व अनिल कपूर सहित तमाम स्टार कलाकारों ने दक्षिण के फिल्म सर्जकों के साथ हिंदी फिल्में कर के स्टारडम पाया. इतना ही नहीं, यदि बौलीवुड के  पिछले 20-25 सालों के इतिहास पर गौर किया जाए, तो एक ही बात उभर कर आती है कि बौलीवुड केवल दक्षिण या विदेशी फिल्मों का हिंदी रीमेक बनाते हुए अपनी सफलता का परचम लहरा कर अपनी पीठ थपथपाते आ रहा है.

बौलीवुड बायोपिक बना रहा है या एलजीबीटी समुदाय पर फिल्में बना रहा है यानी बौलीवुड मौलिक काम करने के बजाय नकल के सहारे बादशाह बनने की सोचता रहा है.

कहानियों का अकाल

प्राप्त जानकारी के अनुसार आज की तारीख में बौलीवुड करीब 40 फिल्मों का रीमेक बना रहा है. यहां तक कि अजय देवगन के पास भी कहानियों का अकाल है, इसलिए वे बायोपिक फिल्में बना रहे हैं. इस की मूल वजह यह है कि अजय देवगन का आम इंसानों के संग कोई संपर्क ही नहीं रहा.

हम बहुत दूर क्यों जाएं ‘वांटेड,’ ‘किक,’ ‘राउडी राठौर’ जैसी सफल बौलीवुड फिल्में दक्षिण की फिल्मों का रीमेक ही हैं. दक्षिण की जिन फिल्मों का हिंदी रीमेक किया गया, उन में सलमान खान की फिल्म ‘जुड़वां’ भी शामिल है. यह तेलुगु फिल्म ‘हेल्लो ब्रदर’ का हिंदी रीमेक है, जिस में नागार्जुन लीड रोल में थे. इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर जम कर कमाई की थी. महज 6 करोड़ में बनी इस फिल्म का बौक्स औफिस कलैक्शन 24 करोड़ रुपए है.

इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दक्षिण की हिंदी रीमेक फिल्मों का हिंदी बौक्स औफिस पर कैसा रिस्पौंस था. इसी तरह मलयालम फिल्म ‘रामजी राव स्पीकिंग’ का हिंदी रीमेक ‘हेराफेरी’ बना. यह फिल्म भी बहुत ज्यादा लोकप्रिय हुई थी. इस के बाद ‘हेराफेरी’ फिल्म के निर्देशक प्रियदर्शन ने कौमेडी फिल्मों की लाइन ही लगा दी.

उन्होंने ‘हलचल,’ ‘हंगामा,’ ‘ये तेरा घर ये मेरा घर,’ ‘गरम मसाला,’ ‘क्योंकि,’ ‘छुपछुप के,’ ‘भागमभाग,’ ‘दे दनादन,’ ‘ढोल,’ ‘बिल्लू’ जैसी फिल्में बनाई हैं. इन में ज्यादातर फिल्में कौमेडी, रोमांस और ड्रामा जोनर की हैं.

बौलीवुड पर हावी

इसी तरह ऐक्शन जोनर की फिल्मों का रीमेक दौर भी शुरू हुआ, जिस ने हिंदी प्रदेशों में तहलका मचा दिया. तमिल फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर निर्देशक ए.आर. मुरुगदास 2008 में हिंदी फिल्म ‘गजनी’ ले कर आए, जो इसी नाम से तमिल में सफलता दर्ज करा चुकी थी. आमिर खान, जोया खान और आसिन स्टारर इस फिल्म ने खलबली मचा दी. फिल्म के लिए बनाए गए आमिर खान के सिक्स पैक एब के साथ धांसू ऐक्शन सीन खूब चर्चा में रहे.

जी हां, वास्तव में दक्षिण सिनेमा के बौलीवुड पर हावी होने की मूल वजह यह है कि पिछले 15-20 सालों से बौलीवुड दक्षिण सिनेमा की फिल्मों को हिंदी में रीमेक कर अपने अस्तित्व को बचाए हुए था. दक्षिण सिनेमा की नई पीढ़ी ने इस सच को सम झते हुए अपने ‘बेहतरीन’ सिनेमा को विस्तार देते हुए ‘पैन सिनेमा’ का नाम देने की मंशा से खुद ही अपनी फिल्में हिंदी में डब कर के दर्शकों तक पहुंचाने लगा.

इतना ही नहीं कोविड के वक्त हिंदी भाषी दर्शक अपने घर के अंदर टीवी पर दक्षिण में बनी व हिंदी में डब हुई फिल्में देख कर दक्षिण के कलाकारों को पहचानने भी लगे हैं.

आने वाले वक्त में प्रभास की फिल्म ‘आदिपुरुष,’ विजय देवरकोंडा की फिल्म ‘लीगर,’ वरुण तेज की फिल्म ‘घनी’ पैन इंडिया में रिलीज होने वाली हैं.

सफलता का परचम लहराती दक्षिण की फिल्में

कोरोना आपदा के बाद जब फिल्म इंडस्ट्री एक बार फिर शुरू हुई, देशभर के सिनेमाघर खुले, तब से बौलीवुड की ‘अंतिम,’ ‘83,’ ‘सत्यमेव जयते 2,’ ‘बच्चन पांडे,’ ‘जर्सी,’ ‘रनवे 34्र’ ‘अटैक,’ ‘हीरोपंती 2,’ ‘औपरेशन रोमिया,’ ‘जलसा,’ ‘ झुंड,’ ‘धाकड़’ सहित एक भी फिल्म सफलता दर्ज नहीं करा पाई है. अक्षय कुमार की फिल्म ‘बच्चन पांडे’ भी घटिया फिल्म थी. यह फिल्म 18 मार्च को रिलीज हुई और फिल्म बुरी तरह से पिट गई.

वहीं दक्षिण के सिनेमा की ‘पुष्पा,’ ‘जय भीम,’ ‘आरआरआर,’ ‘वकील साहब’ व ‘केजीएफ चैप्टर 2’ सहित हर फिल्म हिंदी में डब हो कर सफलता दर्ज करा रही है. ‘केजीएफ चैप्टर 2’ ने तो महज हिंदी में हर हिंदी फिल्म को पछाड़ दिया है. अब आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ भी सर्वाधिक  कमाई वाली पहली फिल्म नहीं रही. ऐसे में अब बौलीवुड में एक नया जुमला बन गया है कि ‘दक्षिण का सिनेमा बौलीवुड को खा जाएगा.’ मगर एक भी शख्त दक्षिण में रहे सिनेमा की तर्ज पर हिंदी सिनेमा में मौलिक व दर्शकों को पसंद आने वाला सिनेमा बनाने की बात नहीं कर रहा.

बरबादी की ओर बौलीवुड

दक्षिण के फिल्मकारों ने इन हिंदी फिल्मों के कलाकारों की इस कमजोरी को सम झ कर इन्हें अपनी फिल्मों में छोटे किरदार दे कर अपनी फिल्मों को पैन इंडिया पहुंचाने का काम किया.

किसी ने महेश भट्ट की बेटी आलिया भट्ट को सम झा दिया कि उन क ी वजह से दक्षिण की फिल्म ‘आरआरआर’ ने सफलता दर्ज की है और उसी वक्त आलिया को हौलीवुड फिल्म ‘हार्ट औफ स्टोन’ मिल गई.

टौम हार्पर द्वारा निर्देशित फिल्म ‘हार्ट औफ  स्टोन’ अमेरिकी जासूसी फिल्म है, जिस की पटकथा ग्रेग रुका और एलीसन श्रोएडर ने लिखी है. इस फिल्म में आलिया भट्ट के साथ गैल गैडोट, जेमी डोनर्न, सोफी ओकोनेडो, मैथियास श्वेघोफर, जिंग लुसी जैसी हौलीवुड कलाकारों का जमावड़ा है. जो बस आलिया को ऐसा जोश आया कि उन्होंने ऐलान कर दिया कि वे अब दक्षिण की किसी फिल्म में काम नहीं करेंगी.

उत्तर में ‘बाहुबली’ और ‘आरआरआर’ के निर्देशक एस राजामौली कहां चुप बैठने वाले थे. उन्होंने भी ऐलान कर दिया कि अब अपनी फिल्मों में बौलीवुड के किसी भी कलाकार को नहीं लेंगे.

बौलीवुड के अहंकारी स्टार

बौलीवुड के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, सलमान खान आदि तो अपने जन्मदिन पर अपने प्रशंसकों को कई घंटे तक  अपने घर के सामने धूप में खड़े रखने के बाद घर की बालकनी में आ कर हाथ हिला कर उन का अभिवादन कर इतिश्री सम झ लेते हैं.

बैंगलुरु में एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी. लंच के समय अभिनेता दुलकेर सलमान भोजन कर रहे थे. उन की नजर बाहर खड़े कुछ लोगों पर पड़ी. पता चला कि वह उन के प्रशंसक हैं जोकि उन के साथ फोटो खिंचवाना चाहते हैं. दुलकेर सलमान भोजना करना बीच में ही छोड़ कर हाथ धो कर पहले अपने प्रशंसकों से मिले. उन से बातें कीं, उन के साथ फोटो खिंचवाए उस के बाद भोजन किया.

बौलीवुड में कला की बनिस्बत पैसे को ही महत्त्व दिया जाता है. हर कलाकार मेहनताने के रूप में मोटी रकम वसूलता है. उस के बदले में उस से कुछ भी करवा लो. वह  झूठा दावा करता है कि वह चुनौतीपूर्ण किरदार और रिलेट करने वाली कहानियां चुनना पसंद करता है.

इस के ठीक विपरीत दक्षिण भारत के कलाकार कहानी व किरदार की बात करते हैं. वहां पर कहानी में हीरो को ग्लोरीफाई किया जाता है, जबकि बौलीवुड में किरदार या कहानी के बजाय कलाकार को ग्लोरीफाई किया जाता है.

वैसे आज जो हालात बन चुके हैं, उन की तरफ अपरोक्ष रूप से इशारा करते हुए 2013 में फिल्म ‘फटा पोस्टर निकला हीरो’ के प्रमोशनल इंटरव्यू के दौरान फिल्म के निर्देशक राजकुमार संतोषी ने बौलीवुड के संदर्भ में मु झ से कहा था, ‘‘जल्द वह वक्त आने वाला है, जब कलाकार खुद दर्शकों के दरवाजे पर जा कर उन से अपनी फिल्म की टिकट खरीदने के लिए कहेगा.’’

9 वर्ष पहले कही गई बात आज सच नजर आ रही है. लगभग यही हालात हो गए हैं. कलाकार अच्छी कहानियां चुनने के बजाय अपनी फिल्म के प्रचार इवेंट में अपने फैंस को बुला कर नौटंकी करता नजर आता है या अपने फैंस को प्रैस शो के वक्त मुफ्त में फिल्में दिखा रहा है.

फिल्मों की शूटिंग शुरू करने की इजाजत के लिए FWICE ने महाराष्ट्र CM से लगाई गुहार, पढ़ें खबर

कोरोना की दूसरी लहर के चलते महाराष्ट्र में पिछले दो माह से फिल्म,टीवी सीरियल,लघु फिल्मों व वेब सीरीज की शूटिंग सहित सारे काम काज बंद हैं. इससे फिल्म इंडस्ट्री को कई हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है. डेली वेजेस वर्करों की आर्थिक हालात जरुरत से ज्यादा खराब है. पिछले माह ‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज’और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई संगठनो ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मंुबई व उसके आसपास,जहां पर कोरोना के मामले कम आ रहे हैं,वहां पर शूटिंग शुरू करने की इजाजत देने की मांग की थी. लेकिन महाराष्ट् के मुख्यमंत्री के आश्वासन के बावजूद एक जून से छूट नही मिली,बल्कि प्रतिबंध ही लगे हुए हैं.

परणिामतः फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज (एफडब्लूआइसीई)  और कोआर्डिनेशन कमेटी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक बार फिर पत्र लिखकर मांग की है कि  इंटरटेनमेंट इंडस्ट्रीज का काम फिर से शुरू करने की वह अनुमति दें.   इस पत्र  में एफडब्लूआइसीई ने और कोआर्डिनेशन कमेटी  लिखा है कि कोरोना की दूसरी लहर ने इस साल भी फिल्म इंडस्ट्री को काफी नुकसान पहुंचाया है. महाराष्ट्र में कोरोना के बढ़ते केसेज के मद्देनजर अप्रैल 2021 के बाद से टीवी सीरियलों,फिल्म, वेब सीरीज की शूटिंग पर पाबंदी लगा दी गई थी. शूटिंग बंद होने के कारण एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से जुड़े कई कलाकार के हाथ से उनका काम निकल गया,जबकि कई लोग हैदराबाद, गुजरात, राजस्थान जैसे दूसरे शहर चले गए. फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज (एफडब्लूआइसीई) ने सोमवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को खत लिखकर मीडिया एंड एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को काम वापस शुरू करने,फिल्मों आदि की शूटिंग व अन्य पोस्ट प्रोडक्शन वर्क करने  की इजाजत देने का अनुरोध किया है.  इस पत्र में एफडब्लूआइसीई  के अध्यक्ष बीएन तिवारी,महासचिव अशोक दुबे, कोषाध्यक्ष गंगेश्वर लाल श्रीवास्तव, चीफ एडवाइजर अशोक पंडित और चीफ एडवाइजर शरद शेलार के हस्ताक्षर हैं.

ये भी पढ़ें- काव्या को शादी का गिफ्ट देगी अनुपमा तो वनराज को देगी ये ताना

पत्र में एफडब्लूआइसीई ने लिखा कि उनकी तरफ से कई बार मुख्यमंत्री को इस विषय पर लिखा गया,पर मुख्यमंत्री ऑफिस ने इसका कोई जवाब नहीं दिया ना ही इसपर कोई फैसला लिया गया.  फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉयज (एफडब्लूआइसीई) ने कहा है कि लाखों कलाकार, वर्कर और टेक्नीशीयन पिछले डेढ़ साल से बेरोजगार हैं और फिल्म इंडस्ट्री ही उनका एकमात्र कमाई का जरिया है. लॉकडाउन की वजह से कई मजदूरों की जिंदगियां प्रभावघ्ति हुई है.

एफडब्लूआइसीई  ने आगे लिखा कि महाराष्ट्र में लॉकडाउन को अगले 15 दिन के लिए बढ़ाने से कलाकारों, वर्कर्स और टेक्नशीयंस को झटका लगा है और इंडस्ट्री की इकोनॉमी पर भी असर होगा. इसकी वजह से निर्माता भी प्रभावित हुए हैं जिन्होंने अपनी निर्माणाधीन फिल्मो में पैसे लगाए और लॉकडाउन के कारण वह फिल्में रुक गयी. पत्र में  एफडब्लूआइसीई के पदाधिकारियों ने समस्या बताते हुए लिखा कि उन्हें रोज कई फोन आते हैं और सभी काम दोबारा शुरू किए जाने का अनुरोध करते हैं.

एफडब्लूआइसीई की तरफ से मुख्यमंत्री  उद्धव ठाकरे से शूटिंग का काम दोबारा शुरू किए जाने की स्पेशल इजाजत मांगी गई है. इसके साथ ही एफडब्लूआइसीई ने यह आश्वासन दिया है कि वह काम के समय कोरोना से बचाव के लिए सरकार द्वारा जारी सभी नियमों का पालन करेंगे.

ये भी पढ़ें- करण मेहरा के आरोपों पर वाइफ निशा रावल ने तोड़ी चुप्पी, किए ये खुलासे

जानें किस पर अपना गुस्सा निकाल रहे हैं सलमान खान, पढ़ें खबर 

सलमान खान की फिल्म राधे रिलीज पर है, काफी समय तक इंतज़ार के बाद अभिनेता सलमान ने अपनी होम प्रोडक्शन की फिल्म को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज करने की ठानी. हालाँकि ये फिल्म बड़े पर्दे को सोचकर ही बनाई गयी थी, लेकिन कोविड 19 की दूसरी वेव और लॉकडाउन के चलते वे ऐसा नहीं कर पाएं और अब जी5 पर रिलीज हो रही है. फिल्म की प्रमोशन और देश की गंभीर हालात पर चर्चा करते हुए सलमान कहते है कि कोविड की वजह से उन्होंने फिल्म को रिलीज से रोका था, पर कोविड और लॉकडाउन ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है . आसपास के माहौल से लोग भयभीत हो रहे है, ऐसे में ये फिल्म उन्हें थोड़ी मनोरंजन देगी, जिसका अभी सबको जरुरत है. ओटीटी पर फिल्म के रिलीज से मैं  लॉस के बारें में अब मैं नहीं सोचता, क्योंकि फिल्म को बहुत मुश्किल से पूरा किया गया है. फिल्म का कुछ भाग कोविड की पहली वेव के दौरान शूट किया गया है. हां इतना जरुर है कि बाद में थिएटर हॉल खुलने पर मैं इसे फिर से बड़े पर्दे पर रिलीज करने की इच्छा रखता हूं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Salman Khan (@beingsalmankhan)

इसके आगे सलमान कहते है कि ये बहुत ही ख़राब दौर गुजर रहा है, पहले वेव में दूर-दूर कोरोना संक्रमण की बात सुनाई पड़ती  थी, पर इस बार हर परिवार में कोविड घुस चुका है और बहुतो ने अपने प्रियजनों को खोया है. इस बार कोविड बहुत खतरनाक हो चुका है. असल में लोग सुनते नहीं, इधर-उधर भीड़ में घूमते रहते है और संक्रमण वयस्कों में भी फ़ैल जाता है. इस समय हुए नुकसान से दुखित व्यक्ति, पूरा जीवन अपराधबोध से ग्रसित हो जाता है. इसके अलावा लोग वैक्सीन लगाने से डरते है, पर वैक्सीन से ही आप इस महामारी से बच सकते है और बीमार व्यक्ति वेंटिलेटर पर जाने से बच सकता है. इस समय सेफ्टी और हेल्थ सबसे अधिक जरुरी है, क्योंकि परिवार के किसी भी लॉस को आगे चलकर सम्हालना मुश्किल होगा. मैंने भी एक वैक्सीन लिया है और दूसरा लेने वाला हूं. मेरा सभी से कहना है कि सभी लोग उम्र की सीमा आने पर वैक्सीन अवश्य लगवा ले, क्योंकि हमारे देश में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर ही ठीक नहीं है. देखा जाय तो विश्व में किसी भी देश के पास एक साथ इतने लोगों के बीमार पड़ने पर इलाज मिलना मुश्किल हुआ है. यहाँ भी एक साथ इतने सारे कोविड पीड़ितों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है. ऑक्सीजन और बेड की कमी से लोगों की जाने जा रही है. वास्तव में ये कठिन घड़ी है, सभी परेशान है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Salman Khan (@beingsalmankhan)

ये भी पढ़ें- बॉडी शेमिंग की शिकार हो चुकी हैं ‘अनुपमा’, ताने कसते थे लोग

सलमान खान ने भी कोविड की पहली वेव पर फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले करैक्टर आर्टिस्ट, लाइटमैन, स्पॉटबॉय, डेली वेज वर्कर्स आदि को 1500 और 3000 रूपये बांटे थे. इस बार भी वे 45 से 50 हजार फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वालों की सहायता करेंगे, ताकि उनका चूल्हा जल सके. इसके अलावा सलमान को इस बात से दुःख है कि इस कोविड में कुछ लोग जी जान से सबकी सहायता कर रहे है, जबकि कुछ इस बीमारी की आड़ में पैसे  बना रहे है. सलमान कहते है कि मुझे हर रोज बहुत सारे फ़ोन कॉल बेड दिलवाने या  ऑक्सिजन की मांग के साथ आते है. मैंने कुछ को जहाँ संभव हो, बेड दिलवाया भी है, लेकिन उन लोगों से नफरत है, जो बेड, ऑक्सिजन और दवाइयों की कालाबाजारी कर रहे है. वे कितनों की जिंदगी बचाने के अलावा उन्हें मौत के मुंह में धकेल रहे है. इसका असर उन लोगों पर भी आने वाला है, जिन्होंने ऐसा काम किया है.

सलमान इस बात से खुश है कि उनके पिता सलीम खान ने आज से 30 साल पहले एक फार्म हाउस खेती-बाड़ी के लिए ख़रीदा था, जहाँ पर वे आजकल रह रहे है, लेकिन उन लोगों के बारें में सोचते है, जो एक कमरे में 4 से 5 लोग रहते है. उनके पास लॉकडाउन की वजह से काम नहीं है, वे पेट नहीं भर पाते है, ऐसे में इस बीमारी के होने पर वे दवाइयां और अस्पताल के खर्च कैसे उठा सकेंगे, इस लिए सभी को घर में रहकर कोविड की चैन को तोड़कर इस संक्रमण से बचना है, ताकि फिर से सब खुल जाय.

ये भी पढ़ें- शादी के 6 महीने बाद ही Neha Kakkar और पति रोहनप्रीत के बीच हुई हाथापाई! VIDEO VIRAL

REVIEW: जानें कैसी है अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘द बिग बुल’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः अजय देवगन और आनंद पंडित

निर्देशकः कुकू गुलाटी

कलाकारः अभिषेक बच्चन, सोहम शाह,  निकिता दत्ता, इलियाना डिक्रूजा,  सुप्रिया पाठक, राम कपूर व अन्य.

अवधिः लगभग दो घंटा पैंतिस मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः डिजनी प्लस हॉट स्टार

1992 में भारतीय शेअर बाजार में एक बहुत बड़ा स्कैम हुआ था, जिसके कर्ताधर्ता शेअर दलाल हर्षद मेहता थे. उन्ही की कहानी पर कुछ दिन पहले दस एपीसोड लंबी हंसल मेहता निर्देशित वेब सीरीज ‘‘स्कैम 1992’’आयी थी, जिसे काफी पसंद किया गया था. अब उसी कहानी पर फिल्मकार कुकू गुलाटी अपराध कथा वाली फिल्म ‘‘द बिग बुल’’लेकर आए हैं, जो कि आठ अप्रैल की रात से ‘डिजनी प्लस हॉट स्टार’’पर स्ट्रीम हो रही है. बहरहाल, फिल्म‘‘द बिग बुल’’की कहानी में हर्षद मेहता, पत्रकार सुचेता दलाल सहित सभी किरदारों के नाम बदले हुए हैं और फिल्मकार ने इसे कुछ सत्य घटनाक्रम से पे्ररित बताया है.

कहानीः

वर्तमान समय में पैंतिल वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को अस्सी व नब्बे के दशक के बीच शेअर दलाल हर्षद मेहता की पूरी कहानी पता है. उस वक्त इसे हर्षद मेहता स्कैम कहा गया था. जो युवा पीढ़ी इस कहानी से परिचित नहीं थी, उसे वेब सीरीज‘‘स्कैम 1992’’से पता चल गया.

यह कहानी शुरू होती है 1987 से, जब निम्न मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार की. इस परिवार के दो बेटे हेमंत शाह(अभिषेक बच्चन) और वीरेंद्र शाह(सोहम शाह ) छोटी नौकरी व छोटी दलाली से कमाई कर जिंदगी गुजार रहे हैं. पर हेमंत शाह के सपने बहुत बड़े हैं. हेमंत शाह के सपने तो आसमान से भी परे हैं और वह अपनी जिंदगी में बहुत ही कम समय में देश का पहला बिलिनियर बनना चाहते हैं. एक दिन हेमंत शाह को बलदेव से शेअर बाजार में पैसा लगाकर कमाने की एक अंदरूनी जानकारी मिलती है. उसी दिन उन्हें पता चलता है कि उनका छोटा भाई वीरेंद्र शाह शेअर बाजार में पैसा लगाकर नुकसान उठा चुका है. पर वीरेंद्र अपने हिसाब से अंदरूनी जानकारी की जांचकर शेअर बाजार में पैसा लगा देता है और पहली बार में ही वह लंबा चैड़ा फायदा कमा लेते हैं. उसके बाद तो उनके सपने और बड़े हो जाते हैं. अब हेमंत शाह बैंक रसीद यानी कि बी आर का दुरूपयोग करते हुए शेअर बाजार में पैसा कमाने लगते हैं. देखते ही देखते वह‘शेअर बाजार के नामचीन  दलाल बन जाते हैं. इस बीच हेमंत शाह अपनी प्रेमिका प्रिया(निकिता दत्ता)संग शादी भी कर लेते हैं. वीरेंद्र शुरूआत में झिझकते हुए अपने भाई हेमंत शाह का साथ देता है, पर बाद में वह भी हेमंत के हर काम में भागीदार बन जाता है. लेकिन वीरेंद्र हमेशा चाहता है कि उसका भाई धीमी गति से उड़ान भरे. जिससे कहीं भी पकड़ा न जाए. मगर हेमंत शाह को धीमी गति से चलना पसंद नही है. इसी उंची उड़ान को भरते हुए हेमंत शाह सरकार का हिस्सा बने राजनेता के बेटे संजीव कोहली(समीर सोनी) के संपर्क में आते हैं. संजीव कोहली, हेमंत को आश्वासन देते हैं कि हर मुसीबत के समय उनके पिता उसे बचा लेंगे. यह वह दौर है,  जब देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत हुई है.

ये भी पढ़ें- Siddharth Shukla के Kissing सीन हुआ वायरल तो Shehnaaz Gill ने किया ये काम

हेमंत शाह ने बैंक रसीद बी आर के साथ ही बैंकिंग व सरकारी सिस्टम की कमियों का जमकर फायदा उठाते हुए अपनी तिजोरी भरी और कालबा देवी की चाल से निकलकर पेंटा हाउसनुमा आलीशान बंगले में रहने लगते हैं. हेमंत की चालों के चलते शेअर बाजार में बढ़ते शेअरों के दामों में खोजी पत्रकार मीरा(ईलियाना डिक्रूजा) को दाल में काला नजर आता है. वह अपने तरीके से हेमंत शाह के कारनामों की जांच कर अपने अखबार में लिखना शुरू कर देती है. उधर हेमंत शाह की दुश्मनी सेबी के चेअरमैन मनी मालपानी( सौरभ शुक्ला) से भी हो जाती है. एक दिन मनी मालपानी उसे सावधान भी करते है. पर हेमंत शाह अपने सपनों की उड़ान में मदमस्त कह देते है कि वह भले ही गलत काम कर रहा हो, पर कानून के हिसाब से वह गलत नही है. संजीव कोहली के साथ हाथ मिलाने के बाद हेमंत शाह कहने लगते हैं कि हुकुम का इक्का उनकी जेब में है. मगर एक दिन हेमंत शाह बुरी तरह से फंसते है, उस वक्त उनका ‘हुकुम का इक्का’फोन तक नही उठाता. अपने अति आत्मविश्वास या घमंड के चलते किसी तरह का समझौता करने की बजाय अपने वकील अशोक(राम कपूर)के साथ मिलकर‘हुकुम का इक्का’पर ही आरोप लगा देते हैं. हेमंत मानते हैं कि उन्होने कुछ भी गलत नही किया. उन्होने हर आम इंसान को पैसा कमाने का अवसर दिया. जो कुछ भी गलत हुआ है वह पोलीटिकल सिस्टम के चलते हुआ है. पर जांच में अंततः हेमंत शाह दोषी पाए जाते हैं, जिन्हे सजा हो जाती है और हार्ट अटैक से जेल में ही मौत हो जाती है.

लेखन व निर्देशनः

अफसोस की बात यह है कि अतीत में एक असफल फिल्म निर्देशित कर चुके कुकू गुलाटी ने भी फिल्म‘द बिग बुल’’से हेमंत शाह की ही तरह लंबे सपने देख रखे थे, लेकिन यह फिल्म एक अति सतही फिल्म बनी है. पटकथा व फिल्मांकन के स्तर पर काफी कमियां है. कई किरदारों के साथ न्याय नहीं कर पाए. लेखक ने फिल्म में बैंकिग सिस्टम व सरकारी सिस्टम पर भी उंगली उठायी है, मगर बहुत बचकर निकलने के प्रयास में कथानक गड़बड़ कर गए. फिल्म की शुरूआत में इसे कुछ सत्य घटनाक्रम से पे्ररित कहा गया है, मगर फिल्मकार का सारा ध्यान हर्षद मेहता की बायोपिक बनाने में ही रहा, इसी वजह से वह उस युग की जटिलताओ को भी अनदेखा कर गए. फिल्म में जब हेमंत शाह को कोई बड़ी सफलता मिलती है, तो वह जिस तरह की हंसी हंसते हैं, उसे देखकर दर्शक को अस्सी व नब्बे के दशक की फिल्मों के खलनायक की हंसी का अहसास होता है. इंटरवल तक तो कुकू गुलाटी किसी तरह फिल्म पर अपनी पकड़ बनाए रखते हैं, मगर इंटरवल के बाद उनके हाथ से फिल्म फिसल गयी है. फिल्म के क्लायमेक्स में तो वह बुरी तरह से मात खा गए हैं. कुछ किरदारो के लिए कलाकारों का चयन भी गलत किया है. संवाद भी काफी सतही है. फिल्म की एडीटिंग भी गड़बड़ है.

फिल्म में हेमंत शाह काएक संवाद है-‘‘कहानी किरदार से नही हालात से पैदा होती है. ’’मगर फिल्म‘‘द बिग बुल’’में हालात या किरदार से कुछ भी पैदा नही हुआ.

इमोशंस भावनाओं का घोर अभाव है. फिल्म के कुछ संवाद इस ओर भी इशारा करते है कि फिल्म को किसी खास अजेंडे के तहत बनाया गया है और जब जब फिल्में किसी अजेंडे के तहत बनायी गयी हैं, तब तब उनका हश्र अच्छा नही रहा.

अभिनयः

हेमंत शाह के किरदार में अभिषेक बच्चन प्रभावित नही कर पाते है. कई दृश्यों में वह अपनी पुरानी फिल्म ‘गुरू’की झलक जरुर पेश कर जाते हैं. कई जगह उसी फिल्म की तर्ज पर खुद को दोहराते हुए नजर आते हैं. मगर हमें यह याद रखना चाहिए कि यह हर्षद मेहता की कहानी है. कई ऐसे जटिल दृश्य हैं, जहां वह अपनी प्रतिभा का परिचय देने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. वास्तव में यहां अभिषेक बच्चन को अच्छी पटकथा नही मिली और न ही निर्देशक के तौर पर यहां मणि रत्नम हैं. हेमंत के भाई वीरेंद्र शाह के किरदार में सोहम शाह ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है. हेमंत शाह की पत्नी प्रिया के किरदार में निकिता दत्ता है, मगर उनके हिस्से करने को कुछ आया ही नही. पत्रकार मीरा के किरदार में ईलियाना डिक्रूजा हैं. अफसोस उनके हिस्से भी कुछ करने को नहीं रहा. जबकि इस कहानी में पत्रकार सुचेता दलाल का किरदार काफी अहम है. सेबी के चेअरमैन मालपानी के किरदार में सौरभ शुक्ला और मजदूर नेता राणा सावंत के किरदार में महेश मांजरेकर का चयन गलत सिद्ध होता है. सुप्रिया पाठक, राम कपूर, लेखा प्रजापति, कानन अरूणाचलम की प्रतिभा को जाया किया गया है. लेखक व निर्देशक ने इनके किरदारों को सही ढंग से चित्रित ही नहीं किया गया.

ये भी पढ़ें- वनराज-अनुपमा के खिलाफ नया प्लान बनाएगी काव्या, आएगा नया ट्विस्ट

तनाव से निबटना आता है: पूजा हेगड़े

वर्ष 2010 में मिस यूनिवर्स इंडिया की सैकेंड रनरअप रह चुकीं मौडल और अभिनेत्री पूजा हेगड़े ने फिल्म ‘मोहनजोदारो’ से हिंदी फिल्म में डैब्यू किया. मुंबई की पूजा ने हिंदी के अलावा तमिल और तेलुगु फिल्मों में भी काम किया है. पूजा को कालेज के जमाने से फैशन, मौडलिंग और अभिनय का शौक था. इसलिए कालेज के दिनों से ही उन्होंने इन सभी में भाग लेना शुरू कर दिया था. हालांकि पूजा के परिवार में कोई भी फिल्म इंडस्ट्री से नहीं है, पर उन्हें अपना कैरियर चुनने की आजादी थी.

स्वभाव से शांत और हंसमुख पूजा को अभिनय के हर रंग पसंद हैं, इसलिए भाषा उन के लिए माने नहीं रखती. जब उन्हें निर्मातानिर्देशक आशुतोष गोवारिकर के साथ काम करने का मौका मिला, तो वे बहुत उत्साहित थीं, क्योंकि उन्हें एक बड़ी फिल्म और अभिनेता ऋतिक रोशन के साथ काम करने का मौका मिल रहा था. लेकिन फिल्म नहीं चली और पूजा को जो मुकाम मिलना था वह नहीं मिल पाया.

मेहनत पर भरोसा

पूजा का इस बारे में कहना है कि फिल्म अगर चलती, तो अच्छी बात होती, क्योंकि एक सफल फिल्म कलाकार की जिंदगी बदल सकती है, जो नहीं हुआ. फिल्म सफल हो या न हो, मैं उस पर अधिक ध्यान नहीं देती. मैं किसी भी फिल्म के प्रोसैस को बहुत ऐंजौय करती हूं और उस में अच्छा अभिनय करने के लिए मेहनत करती हूं. कई बार ऐसा देखा गया है कि फिल्म पेपर पर कुछ और होती है और बनने के बाद कुछ और हो जाती है. ऐसे में फिल्म नहीं चलती, जबकि एक खराब फिल्म भी बहुत पैसे बना लेती है.

ये भी पढ़ें- शादी के बंधन में बंधे ‘बिग बौस 8’ विनर गौतम गुलाटी और उर्वशी रौतेला! पढ़ें खबर

लौकडाउन में पूजा हेगड़े घर पर समय बिता रही हैं और जो भी काम पैंडिंग थे, उन्हें पूरा कर रही हैं. वे कहती हैं कि इस समय मैं सकारात्मक सोच अधिक रख रही हूं. मुझे काम बहुत पसंद है और उसे मिस भी कर रही हूं, लेकिन इस समय घर पर रहना जरूरी है. इस के अलावा मैं खाना बनाना, मैडिटेशन करना और किताबें पढ़ना पसंद करती हूं. मेरी 2 अच्छी खबरें लौकडाउन की वजह से आतेआते रुक गईं, पर मैं निराश नहीं, क्योंकि हम सब एक ही नाव पर सवार हैं, अगर मैं काम नहीं कर रही हूं, तो समस्या कुछ भी नहीं, क्योंकि अभी कोई भी काम नहीं कर रहा है.

फिट रहना पसंद

पूजा इन दिनों घर पर वर्कआउट कर रही हैं. पूजा कहती हैं कि मैं हर दिन एक घंटे व्यायाम करती हूं, ताकि शरीर का ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहे. इस के अलावा संतुलित भोजन करना मुझे पसंद है, क्योंकि स्वस्थ शरीर के लिए अच्छे भोजन की आवश्यकता होती है.

पूजा ने जितना भी काम किया है, उस से वे संतुष्ट हैं. वे कहती हैं कि मैं ने एक बच्चे की तरह आगे चलना सीखा है. मुझे अलगअलग भाषा की फिल्मों में काम करने में खुशी मिलती है, क्योंकि इस से मैं अलगअलग भाषा बोलने वाले दर्शकों के पास पहुंच पाती हूं. इमोशन हर फिल्म का एक जैसा ही होता है, सिर्फ संवाद की भाषा अलग होती है, जिस का प्रभाव अभिनय पर नहीं पड़ता. मैं वैब सीरीज और मराठी सिनेमा में भी काम करना चाहती हूं. मैं पैनइंडिया स्टार बनने की इच्छा रखती हूं.

ये भी पढ़ें- ‘ससुराल सिमर का’ फेम मनीष का Wedding फोटोशूट, पत्नी को बांहों में लेकर दिए ऐसे पोज

बौलीवुड में बढ़ते आत्महत्या के मामलों पर पूजा कहती हैं कि मुझे तनाव से निबटना आता है. वे खुशमिजाज लड़की हैं और स्ट्रैस को अपने ऊपर हावी होने नहीं देतीं.

उन का कहना है कि तनाव होने पर मैं अधिक काम करती हूं और इस से वह कम हो जाता है. अगर आप को किक बौक्सिंग और पंचिंग जैसी स्पोर्ट्स पसंद हैं तो आप फ्रस्ट्रेशन को आसानी से भगा सकते हैं.

Father’s day Special: बेटे को जिंदगी का लक्ष्य मानते हैं तुषार कपूर

फिल्म ‘मुझे कुछ कहना है’ से फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश करने वाले अभिनेता तुषार कपूर की पहली फिल्म कामयाब रही, लेकिन इसके बाद उनकी कई फिल्में असफल साबित हुई. करीब दो वर्षों तक उन्होंने इस असफलता का सामना करने के बाद फिल्म ‘खाकी’ से उनका कैरियर ग्राफ चढ़ा और कई सफल फिमें की. इस उतार-चढ़ाव को उन्होंने हमेशा साधारण तरीके से लिया और आगे बढ़ते गए. इस फ़िल्मी जर्नी में उन्होंने माना कि वे टाइपकास्ट के शिकार हुए, जिसका फायदा और नुकसान दोनों उनके साथ हुआ. फिल्मों के अलावा उन्होंने वेब सीरीज में भी काम किया है. तुषार जीवन में आये किसी भी चुनौती को स्वीकार करने से डरते नहीं. 

शांत और हंसमुख स्वभाव के तुषार कपूर सिंगल फादर है और 4 साल के बेटे लक्ष्य के साथ इस फेज को एन्जॉय कर रहे है. उनका कहना है कि मैं सिंगल फादर बना और इसे बहुत एन्जॉय भी कर रहा हूं. मैंने सही समय में इसका निर्णय लिया और पिता बना. कोई रिग्रेट नहीं, बल्कि मैं अपने आपको ब्लेस्ड मानता हूं. मेरी लाइफ अब पूरी हो चुकी है. मेरे लाइफ में एक बदलाव की जरुरत थी जिसे मैंने किया. सभी माता-पिता के लिए लाइफ पार्टनर से अधिक कीमती उसके बच्चे होते है, क्योंकि काम से थककर जब व्यक्ति घर आता है, तो बच्चे ही उसकी थकान को मिनटों में दूर कर देते है. अगर मुझे दूसरा बच्चा भी मिलता है,फिर भी लक्ष्य मेरे लिए पूरी जिंदगी लक्ष्य ही रहेगा. इस लॉक डाउन में मैं उसके साथ खेल रहा हूं और फनी वीडियोज बनाकर समय बिता रहा हूं. मुझे मानसून पहले कभी पसंद नहीं था, पर अब लक्ष्य की वजह से अच्छा लगता है, क्योंकि उसके साथ मुझे पार्क में जाना पड़ता है, क्योंकि दिनभर की बारिश के बाद पार्क में खेलने की उसकी मांग को मैं पूरा कर पाता हूं. 

ये भी पढ़ें- Body को लेकर कमेंट करने वाले ट्रोलर्स पर भड़की सुष्मिता सेन की भाभी Charu Asopa, कही ये बात

तुषार कपूर का अपने पिता जितेन्द्र के साथ एक गहरा सम्बन्ध है, पिता उनके जीवन के आदर्श है, जिनसे वे बहुत सारी बातों को ग्रहण करते है. पिता बनने के बाद लक्ष्य के साथ वैसी ही बोन्डिंग का अनुभव करते है, जैसा उन्होंने अपने पिता के साथ महसूस किया था, लेकिन थोडा अलग है. वे कहते है कि आज के ज़माने में पिता पुत्र के सम्बन्ध में काफी बदलाव आया है. पहले पिता भोजन को बेटे के पास टेबल तक पहुँचाता था, पर आज के पिता बच्चे के खान-पान से लेकर खेलकूद, स्वास्थ्य, कहानियां सुनाना आदि हर चीज में बच्चे के साथ भागीदार बनते है. तब माँ की जिम्मेदारी अधिक होती थी, बच्चे की देखभाल का जिम्मा उनके पास होता था. आज दोनों की जिम्मेदारी होती है. मैं तो माँ और पिता दोनों की भूमिका निभा रहा हूं, जो मुश्किल है पर एन्जॉय कर रहा हूं.

एडॉप्शन को छोड़ सेरोगेसी का सहारा लेने के बारें में तुषार का कहना है कि मैं एडॉप्शन को बढ़ावा देता हूं. बच्चे के साथ किसी के सम्बन्ध को जुड़ने के लिए उसका बायोलॉजिकल माता-पिता होना जरुरी नहीं. कई अडॉप्ट बच्चे भी अडॉप्ट करने वाले माता-पिता की तरह दिखते है. ये हर इंसान की अपनी चॉइस है.

 

View this post on Instagram

 

Some Fridays just don’t turn out the way they were expected to! Nevertheless, friyay!

A post shared by Tusshar (@tusshark89) on

बेटे लक्ष्य के लिए तुषार ने अभी कुछ सोचा नहीं है. वह किस फील्ड में जायेगा, यह उसपर निर्भर करता है. वे हंसते हुए कहते है कि मैं अपने बच्चे की प्रतिभा के आधार पर आगे बढ़ने में विश्वास रखता हूं. केवल अधिक नंबर लाना मेरे लिए जरुरी नहीं. अगर उसे अभिनय की इच्छा मन से है तो मैं उसमें भी सपोर्ट करूँगा. मेरी बहन एकता कपूर भी उसे बहुत पसंद करती है और परिवार का पहला बच्चा मानती है. 

फादर्स डे पर सिंगल पेरेंट्स के लिए तुषार कहते है कि ये एक बड़ी कदम और जिम्मेदारी होती है. ये आपकी चॉइस होती है. पर ध्यान रखे जब आप पूरी तरह से इसके लिए तैयार हो, तभी ऐसा कदम उठाएं. मुझे पिता बनने की लालच थी. तब मैं किसी से मिला और उन्होंने इसके बारें में गाइड किया और मैंने अपनाया. पिछले कई सालों से ये मेरे दिमाग में चल रहा था. मैंने सुना था कि अमेरिका में ऐसा होता है, वहां जाकर करना पड़ेगा, पर बाद में पता चला कि ये भारत में हो सकता है और एक बड़ी इंडस्ट्री इसके लिए काम करती है. पहले बहुत सारी आलोचनाएं मुझे सुननी पड़ी, पर अब सब ठीक हो चुका है.

ये भी पढ़ें- आर्थिक तंगी के कारण खुदखुशी करने वाले एक्टर्स के बारे में बोले Ronit Roy, किए कईं खुलासे

Father’s day Special: सिंगल पैरेंट बनने में स्वैर्गिक आनंद मानते हैं गुलशन ग्रोवर

400 से अधिक हिंदी फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता गुलशन ग्रोवर भले ही ‘बैडमैन’ के नाम से परिचित हो, पर वे एक अत्यंत ही सुलझे हुए और संजीदा दिल इंसान है. वे सिंगल फादर है और सिर्फ साढ़े 4 साल की उम्र से अपने बच्चे संजय ग्रोवर की परवरिश की है. इस दौरान उन्हें कई समस्याओं से गुजरना पड़ा, लेकिन उनके माता-पिता, दोस्तों, और शूटिंग टीम के सदस्यों ने उनकी सहायता की, जिसके फलस्वरूप उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया. आज संजय बड़े हो चुके है और अमेरिका में कई सालों से फिल्मों से सम्बंधित विषयों पर पढाई कर लॉस एंजिलस के एम् जी एम् स्टूडियो में फिल्म प्रोड्यूसर है और हॉलीवुड में कई फिल्मों के निर्माण कार्य में लगे है. उनकी इस ग्रोथ में गुलशन ग्रोवर हमेशा साथ रहे और वे हमेशा हर साल अपने बेटे से मिलने अमेरिका जाते रहे. गुलशन ग्रोवर का उनके बेटे के साथ गहरा दोस्ताना सम्बन्ध है, जिसे वे बहुत एन्जॉय करते है. 

वे कहते है कि मैंने सिंगल पैरेंट बनने के बारें में कभी सोचा नहीं था. परिस्थितियां ऐसी बनी कि मुझे ये चुनौती लेनी पड़ी. दरअसल एक बच्चे के परवरिश में माता-पिता दोनों का होना जरुरी होता है. हालात कुछ ऐसी बनी कि उसकी माँ हमें छोड़कर चली गयी. मैंने उस समय निर्णय लिया था कि बच्चे को मैं रखूँगा और इसकी परवरिश करूँगा. उस समय कह तो दिया था, पर बाद में काफी परेशानी हुई. मैं उन सब महिलाओं का आभारी हूं, जिन्होंने मुझे संजय की परवरिश में सहायता की. शूटिंग पर गया और मेरा बेटा उधर आ गया, तो हेयर ड्रेसर से लेकर एक्ट्रेसेस सबने सहायता की. किसी रेस्तरां में गया तो वहां काम करने वालों ने सहायता की. फ्लाइट में गया तो किसी एयर होस्टेज ने और स्कूल में गया तो दूसरे बच्चे की माओं ने गाइड किया. बड़ी अच्छी आया मिली, जो उसकी देखभाल करती रही. इसके बाद जब मेरे माता- पिता ने देखा कि मैं अकेला बहुत मुश्किल में हूं, तो मेरे माता-पिता ने उसकी जिम्मेदारी ली. और बड़ा किया. जब संजय थोडा बड़ा हुआ, तो वह मुंबई आकर मेरे साथ रहने लगा.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Gulshan Grover (@gulshangrover) on

ये भी पढ़ें- Body को लेकर कमेंट करने वाले ट्रोलर्स पर भड़की सुष्मिता सेन की भाभी Charu Asopa, कही ये बात

बच्चे की बचपन से अधिक किशोरावस्था महत्वपूर्ण होती है, ऐसे में उसकी देखभाल करने के बारें में पूछे जाने पर गुलशन बताते है कि अधिकतर बच्चे मां के साथ अधिक कम्फ़र्टेबल होते है और उनके साथ रिश्ता भी अच्छा रहता है. हमारे यहां पिता एक सेंटी फिगर होते है, जो शाम को आकर बच्चे की हाल चाल पूछते है और कुछ गलत किया तो डांटते है. उपरी ऑब्जरवेशन होता है. उसमें बच्चे का पिता से डर और औरा भी बना रहता है. बहुत करीब होने से औरा और डर दोनों चला जाता है, फिर उसे समझाना पड़ता है कि क्या गलत और क्या सही है. मैं बस इतना लकी था कि उस समय मेरे अंदर और बच्चे में सद्बुद्धि आई और वह दौर धीरे-धीरे निकल गया. अभी भी मेरा वैसा ही सम्बन्ध है और सिंगल पैरेंटहुड ही चल रहा है. संजय अभी अमेरिका के लॉस एंजिलस में एम जी एम (Mertro Goldwyn Mayer) स्टूडियो में फिल्म प्रोड्यूसर है. अभी लॉक डाउन में मेरे साथ मुंबई आया हुआ है, मुझे अच्छा लग रहा है और मैं अभी उसके फिल्म निर्माण में मदद कर रहा हूं.आगे उसकी फिल्मों में भी एक्टिंग करूँगा. फ़िलहाल मैं एक अनुभवी पिता की तरह उसकी हर संभव मदद कर रहा हूं.

आगे वे सिंगल पेरेंट्स के लिए ये मेसेज देना चाहते है कि जब आप जिम्मेदारी लें, तो पूरी तरह से मानसिक रूप से सोच लें, क्योंकि इसमें समय बहुत लगेगा, काम काज के साथ सामंजस्य के अलावा सोशल लाइफ का पूरी तरह से सैक्रिफाइस करना पड़ेगा. जब आप सिंगल पैरेंट बनते है, तो काम के बाद कहीं रुकने का मन ही नहीं करेगा. बच्चा आपका इंतजार कर रहा होगा या उसके साथ रहने में जो मज़ा आयेगा, वह अद्भुत होता है. इन सब त्याग के पीछे आनंद उस बच्चे को बड़े होते हुए देखने में होगा, जिसमें आपके सहयोग और त्याग से ही उस बच्चे में ग्रोथ, उसका आत्मविश्वास, व्यक्तित्व आदि सबकुछ निखरा है, वह एक स्वैर्गिक आनंद है, जिसे बयां करना संभव नहीं. 

ये भी पढ़ें- आर्थिक तंगी के कारण खुदखुशी करने वाले एक्टर्स के बारे में बोले Ronit Roy, किए कईं खुलासे

कहानी में समस्या ही खलनायिकी है – गुलशन ग्रोवर

हिंदी सिनेमा जगत में बैडमैन के नाम से चर्चित एक्टर गुलशन ग्रोवर किसी परिचय के मोहताज नहीं. उन्होंने बॉलीवुड के अलावा हॉलीवुड में भी अच्छा नाम कमाया है. इतना ही नहीं उन्होंने इरानियन, मलयेशियन और कनेडियन फिल्मों में भी काम किया है.

बचपन से अभिनय का शौक रखने वाले गुलशन ग्रोवर ने पढाई ख़त्म करने के बाद कैरियर की शुरुआत थिएटर और स्टेज शो से किया. इसके बाद वे मुंबई आकर एक्टिंग क्लासेस ज्वाइन किये और अभिनय की तरफ मुड़े. उन्होंने हमेशा विलेन की भूमिका निभाई और अच्छा नाम कमाया. उनका फ़िल्मी सफ़र जितना सफल था उतना उनका पारिवारिक जीवन नहीं. काम के दौरान उन्होंने शादी की और एक बेटे संजय ग्रोवर के पिता बने.  उनका रिश्ता पत्नी के साथ अधिक दिनों तक नहीं चल पाया और तलाक हो गया. उन्होंने सिंगल फादर बन अपने बेटे की परवरिश की है. 400 से अधिक हिंदी फिल्मों में काम कर गुलशन ग्रोवर इन दिनों लॉकडाउन में अपने दोस्तों के साथ बातें कर समय बिता रहे है. उन्होंने गृहशोभा मैगजीन के लिए खास बात की आइये जानते है, कैसा रहा उनका फ़िल्मी सफ़र,

सवाल-लॉक डाउन में आप क्या कर समय बिता रहे है?

लॉक डाउन के इस समय को बहुत पॉजिटिवली इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा हूं. बहुत सारी किताबें जो नहीं पढ़ी, बहुत सारी फिल्में जो नहीं देखी, बहुत सारे काम जो समय की कमी की वजह से नहीं कर पाए जैसे व्यायाम करना, परिवार के लोगों के साथ समय बिताना, ज्ञानी लोगों के साथ बातचीत करना, किसी विषय पर चर्चा करना आदि है. इसमें महेश भट्ट, अक्षय कुमार, मनीषा कोईराला, मेरा क्लास मेट जस्टिस अर्जुन सीकरी, गौतम सिंहानिया, नवाज सिंहानिया, अनिल कपूर, सुनील शेट्टी, जैकी श्रॉफ आदि सभी से उनके सम्बंधित विषयों पर बातचीत कर इस लॉक डाउन के प्रभाव और उसके बाद की स्थिति को जानने की कोशिश करता हूं.

 

View this post on Instagram

 

#BADMAN will be back soon on silver screen in #Sooryavanshi

A post shared by Gulshan Grover (@gulshangrover) on


ये भी पढ़ें- लिप सर्जरी फेल होने से टूटीं Bigg Boss स्टार Sara Khan, बोली- ‘एक साल तक किसी को चेहरा नहीं दिखाया’

सवाल-लॉक डाउन के बाद इंडस्ट्री कैसे रन करेगी इस बारें में आपकी सोच क्या है?

लॉक डाउन कोरोना संक्रमण के समस्या का समाधान नहीं, रोग फैले नहीं इसपर लगाम लगाने की एक कोशिश है, नहीं तो पूरे विश्व का इंफ्रास्ट्रक्चर फेल हो जायेगा और त्राहि-त्राहि मच जाएगी. इसके बाद इंडस्ट्री में काम शुरू होना संभव नहीं होगा, मुझे इस बात का डर है, क्योंकि दो अलग विचारधारायें इस विषय पर चल रही है, जिसमें अर्थव्यवस्था संकट सबसे बड़ी होगी. लॉक डाउन हटने के बाद बिमारी बढ़ने के चांसेस अधिक होगी, ऐसे में लोगों को समझना पड़ेगा कि लॉक डाउन में ढील के बाद वे घर से बाहर न निकले, क्योंकि इससे वे परिवार और खुद को खतरे में डाल सकते है. फिल्म इंडस्ट्री काफी समय तक शुरू नहीं हो पायेगी, क्योंकि हमारा कोई भी काम 100-150 लोगों के बिना नहीं हो सकता. शूटिंग नहीं हो पायेगी, क्योंकि ड्रेस मैन, हेयर ड्रेसर, मेकअप मैन आदि सब कलाकारों के काफी नजदीक होते है, ऐसे में काम पर आने वाले लोग स्वस्थ है कि नहीं ये जांचना बहुत मुश्किल होगा. डर-डर के शुरू होगा, पर पहले की तरह काम होने में देर होगी. मैंने सुना है कि कुछ कलाकार अभी से वैक्सीन लगाये बगैर काम पर नहीं आने की बात सोच रहे है, जिसमें सलमान खान, ऋतिक रोशन आदि है. ये अच्छी बात है, क्योंकि खुद की और दूसरों की सेहत का ख्याल रखने की आज सबको जरुरत है. समस्या सभी को होने वाली है. चरित्र एक्टर से लेकर, लाइट मैन, स्पॉट बॉय सभी के काम बंद हो चुके है. एक निर्माता को भी समस्या है, जिसने पैसे लेकर फिल्म बनायीं और उसे रिलीज नहीं कर पा रहा है. इसका उत्तर किसी के पास नहीं है. हम सब भी इसमें शामिल है, जिन्हें जमा की हुई राशि से पैसे निकालकर खर्च करने पड़ रहे है.

सवाल-आपकी 40 साल की जर्नी से आप कितने संतुष्ट है, कोई रिग्रेट रह गया है क्या?

मेरे लिए था शब्द का प्रयोग मैं नहीं कर सकता, क्योंकि अभी भी मैं जबरदस्त काम कर रहा हूं. इस समय मैं 4 बड़ी फिल्म में खलनायक की भूमिका कर रहा हूं. फिल्म सूर्यवंशी, सड़क 2, मुंबई सागा, इंडियन 2 इन सबमें मैं काम कर रहा हूं. मैं पहले की तरह उत्साहित, खुश और व्यस्त हूं. ये दुःख की घड़ी जल्दी निकल जाए, इसकी कामना करता हूं, कोई रिग्रेट नहीं है.

सवाल-आपकी इमेज बैडमैन की है, जिसकी वजह से रियल लाइफ में भी लोग आपसे डरते है, क्या किसी भी देश या शहर में आपने इसे फेस किया?

(हँसते हुए) कैरियर के शुरुआत में हर घड़ी लगातार मैंने इसे फेस किया है, क्योंकि तब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नहीं थी.फिल्म देखने के बाद लोग फ़िल्मी मैगजीन से ही कलाकारों के बारें में पढ़ते थे. जब से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया लोगों के घर तक पहुंचा और उन्होंने हमारे दिनचर्या को देखा, हमारे पार्टी में जाने और सबसे मिलने की तस्वीरें देखी तो लोग हमारी असल जिंदगी से परिचित हुए. हमारे व्यक्तित्व के बारें में उनकी धारणा बदली है, लेकिन वह भी बहुत अधिक नहीं बदला है. ब्रांड का डर हमेशा बना ही रहता है. मुझे याद आता है कि मैं अमेरिका और कनाडा में शाहरुख़ खान के साथ एक शो करने गया था. कनाडा में लड़कियां हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की कलाकारों से बहुत प्रेरित होती है. शाहरुख़ खान के कमरे में लड़कियां अकेले लगातार जाती आती रही और सामने की तरफ मेरा कमरा था, जैसे ही उन्हें पता चला कि गुलशन ग्रोवर का कमरा है तो लड़कियां ऑटोग्राफ या पिक्चर लेने के लिए अपने भाई, कजिन, पेरेंट्स, होटल की सिक्यूरिटी, बॉयफ्रेंड आदि के साथ आती थी, जबकि शाहरुख़ खान के साथ अकेले खूब गपशप करती थी. इसके अलावा शुरू-शुरू में जब मैं डिनर होस्ट करता था तो कई हीरोइनों की सहेलियां उन्हें अपने माँ को साथ ले जाने की सलाह देती थी. कुछ एक्ट्रेसेस के रिश्तेदार भी मेरे यहाँ पार्टी में आने से मना करते थे.

सवाल-आपका व्यक्तित्व उम्दा होने के बावजूद क्या आपने कभी हीरो बनने की कोशिश नहीं की?

मुझे पहले ही समझ में आ गया था कि हीरो की सेल्फ लाइफ थोड़ी छोटी होती है. खलनायक की भूमिका में उम्र की कोई समस्या नहीं है. किस तरह के आप दिख रहे है, उसकी समस्या नहीं है. केवल काम अच्छा होना चाहिए. जब आप पर्दे पर आये तो उस भूमिका में जंच जाए. लम्बी सेल्फ लाइफ होने के साथ साथ भूमिका भी चुनौतीपूर्ण होती है. अधिक काम करना पड़ता है और मज़ा भी आता है.

सवाल-पहले की फिल्मों मेंलार्जर देन लाइफवाली कहानी होती थी, जिसमें हीरो, हेरोइन और विलेन हुआ करता था, अब ये कम हो चुका इसकी वजह क्या मानते है?

जो समाज में हो रहा होता है कहानी वैसी ही लिखी जाती है, समाज में उस तरह के स्मगलर, डॉन, सोने के स्मगलर के दौर चले गए. अब खलनायक कोई व्यवसायी, नेता, या भला आदमी हो गया है. जिसे बाद में कहानी में पता चलता है. खलनायक का शारीरिक रूप बदल गया है, अब खलनायक कभी ऊँची नीची जाति, कभी अमीर गरीब, दो लड़की से प्यार, किससे शादी करें या न करें आदि कई विषयों पर केन्द्रित हो गया है. कहानी में समस्या ही खलनायिकी है. अभी फिर से खलनायिकी का दौर शुरू हो चुका है.

ये  भी पढ़ें- लौकडाउन के बीच Yeh Rishta… के ‘कार्तिक’ ने मनाई मम्मी-पापा की वेडिंग एनिवर्सरी, देखें फोटोज

सवाल-क्या मेसेज देना चाहते है?

इस कठिन घड़ी में जब पूरे देश में लॉक डाउन है और इस समय डॉक्टर, नर्सेज, पुलिस और सफाईकर्मी कर्मी दिनरात मेहनत कर हमारी सुरक्षा में लगे है. वे अपने जिंदगी की परवाह किये बिना काम कर रहे है. जब वे अपने घर जाते है तो डरते है कि उनकी वजह से उनके परिवार संक्रमित न हो जाय. फिर भी वे काम कर रहे है. मेरे दिल में उनके लिए बहुत सम्मान है. मैं गृहशोभा के माध्यम से ये कहना चाहता हूं कि ऐसे सभी लोग जो एस्सेंसियल सर्विस में है. सरकार उनके वेतन डबल कर देने के बारें में सोचें,  जैसा कनाडा के प्राइम मिनिस्टर ने अपने देश के लिए किया है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें