बेबी की पोषण से जुुड़ी जरुरतों के लिए मां के दूध की मात्रा कैसे बढ़ाएं?

मां के लिए अपने बेबी को ब्रैस्टफीडिंग कराना दुनिया का सबसे बड़ा सुख होता है. जो मां तथा बेबी दोनों के लिए ही आपार स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने के रूप में जाना गया है. आपके बेबी के लिए मां का दूध जीवन के पहले छह महीनों में आवश्यक माना जाता है क्यूंकि इसमें सभी महत्वपूर्ण पोषण होते हैं. साथ ही इसमें बीमारियों से लड़ने के लिए कई आवश्यक तत्व होते हैं जो आपके बेबी के स्वास्थ्य को समस्याओं से बचने में मदद करते हैं. इसके आलावा इसमें एंटीबाॅडिज भी होते हैं जो आपके बच्चे को वायरस तथा बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं.

बेबी स्वास्थ्य के लिए मां का दूध है सर्वोत्तम आहार-

बेबी के जीवन के पहले छह महीनों के लिए उसकी समस्त पोषण आवश्यकताओं के लिए मां का दूध सर्वोत्तम होता है. आपका बेबी ज्यादा से ज्यादा पोषण प्राप्त करें, इसके लिए यह आवश्यक है कि जन्म के तुरंत बाद से लेकर कम से कम छह महीने तक जबतक कि बेबी को अन्य आहार देना न शुरू कर दिया जाए, केवल मां का दूध ही दिया जाए.

डॉ अरुणा कालरा, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रसूति रोग विशेषज्ञ बता रही हैं स्तन दूध की मात्रा बढ़ाने के खास उपाय.

बहुत सी महिलाओं को कई बार ऐसा लगता है की वे स्तन दूध का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में नहीं कर पा रही हैं. एक नयी माँ के लिए ऐसा महसूस करना बहुत ही आम बात है. हालाँकि ऐसी बहुत ही काम महिलाएं होती हैं जो ज़्यादा स्तन दूध का उत्पादन नहीं कर पाती परन्तु यदि आपको लगता है की आप भी उनमे से एक हैं तो आप घबरायें नहीं. ऐसे कुछ बहुत ही आसान तरीकें हैं जिनसे आप अपने स्तन दूध की मात्रा बढ़ा सकती हैं.

आपके स्तन के दूध के उत्पादन को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कुछ तरीके हैं जो आप अपना सकती हैं.

आपके दूध की आपूर्ति को बढ़ाने में कितना समय लगेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी आपूर्ति की शुरुआत कितनी कम है और आपके कम स्तन दूध के उत्पादन की क्या वजह है. यदि ये तरीके आपके लिए काम करते हैं तो आप स्तन दूध कुछ ही दिनों में बढ़ने लगेगा.

1. बेबी को एक दिन में थोड़ा अधिक बार ब्रैस्टफीडिंग कराएं-

जब आप अपने बेबी को ब्रैस्टफीडिंग कराती हैं तब आपके शरीर में स्तन दूध बढ़ाने वाले होर्मोनेस रिलीज़ होते हैं. आप जितना अधिक ब्रैस्टफीडिंग करवाएंगी उतने अधिक आपके शरीर में ये होर्मोनेस रिलीज़ होंगे और आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ाएंगे.

2. पंप का इस्तेमाल-

ब्रैस्टफीडिंग करने के बीच के समय में पंप का इस्तेमाल करके स्तन दूध निकाले. ऐसा जाना जाता है कि ब्रैस्ट पंप के इस्तेमाल से स्तन दूध निकालने से आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ती है. जब भी आपको लगे की ब्रैस्टफीडिंग करवाने के बाद भी आपके स्तन में दूध बचा है या बेबी किसी कारणवश ब्रैस्टफीडिंग नहीं कर पाया है तब आप पंप का इस्तेमाल करके स्तन दूध निकाल लें.

3. दोनों स्तन से बेबी को ब्रैस्टफीडिंग करवाएं-

बेबी को पहले एक स्तन से ब्रैस्टफीडिंग करवाएं और जब वह दूध पीना काम कर दे  या रुक जाये तो उसे दूसरे स्तन से ब्रैस्टफीडिंग करवाएं. दोनों स्तन से ब्रैस्टफीडिंग करवाने से आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ती है.

4. दूध की मात्रा बढ़ाने वाला खाना खाएं-

निम्नलिखित कुछ ऐसे खाने कि चीज़ें हैं जिससे आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ सकती है. जैसे की-

–  मेथी

– लहसुन

– अदरक

– सौंफ

– ओट्स

– जीरा

– धनिया

– छुआरा

– पपीता, आदि.

जब भी आपको लगे कि इन् सब तरीकों से आपका स्तन दूध नहीं बढ़ पा रहा है तो आप अपने चिकित्सक की सलाह लीजिये.

Breast feeding से संभव Cancer की रोकथाम

यह तो सभी को पता है कि नवजात के लिए स्तनपान जरूरी है. खासकर शुरू के 6 महीनों तक. लेकिन यह कम ही लोग जानते होंगे कि स्तनपान करने वाले शिशुओं की मौत की आशंका स्तनपान न करने वाले शिशुओं के मुकाबले 14 गुना कम होती है. मां के दूध में मौजूद कोलोस्ट्रम बच्चे का प्रतिरक्षण बेहतर करता है, जबकि दूध में मौजूद पोषक तत्त्व उसे बीमारियों से बचाते हैं. यह भी देखा गया है कि इस प्रक्रिया से मां में अल्जाइमर्स विकसित होने की आशंका कम होती है और बच्चे के विकसित होते फेफड़े मजबूत होते हैं. इस से बच्चे को दमा होने का खतरा भी कम होता है. इस के अलावा इस से बच्चे डायरिया और निमोनिया के भी कम शिकार होते हैं. हाल ही में वैज्ञानिक स्तनपान और स्तन कैंसर में सीधा संबंध जानने में सफल हुए हैं. स्तनपान कराना न सिर्फ बच्चे के लिए फायदेमंद है, बल्कि मां के लिए भी, क्योंकि इस से अंडाशय को कैंसर और स्तन कैंसर होने का जोखिम भी काफी कम हो जाता है. खासतौर से युवा महिलाओं के मामले में.

जीवनशैली में बदलाव

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मेलमैन स्कूल औफ पब्लिक हैल्थ में किए गए एक अध्ययन के अनुसार स्तनपान कराने से ऐस्ट्रोजन रिसैप्टर नैगेटिव और प्रोजेस्टेरौन रिसैप्टर नैगेटिव ब्रैस्ट कैंसर का खतरा न्यूनतम होता है.
वैसे तो भारत में पहले स्तन कैंसर के मामले अपेक्षाकृत कम रहे हैं पर अब ऐसा नहीं है. भारतीय महिलाएं खासतौर से शहरी महिलाएं अपनी जीवनशैली के कारण बेहद प्रभावित हैं. देर से मां बनने की प्रवृत्ति और स्तनपान कराने से बचने के लिए सामाजिक और पेशेवर तनाव का शिकार होना इन कारणों में शामिल है.
महिलाओं में कैंसर के जितने मामले होते हैं उन में 25 से 32% स्तन कैंसर के होते हैं और मुख्यरूप से 50 साल से कम उम्र की महिलाएं प्रभावित होती हैं. इस का मतलब यह हुआ कि 20 से 50 साल के बीच की 48% महिलाएं इस का शिकार हो सकती हैं. पश्चिमी देशों में देखा गया है कि 100 में से 89 महिलाएं इस से बच जाती हैं. अत: भारत में भी स्तनपान कराने के महत्त्व के बारे में महिलाओं को जागरूक करने की आवश्यकता है. इस के लिए अभियान चलाए जाने की जरूरत है ताकि संदेश ज्यादा से ज्यादा महिलाओं तक पहुंचे. वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड द्वारा किए गए कैंसर के आंकड़ों के अध्ययन के मुताबिक जो महिलाएं कम से कम 1 साल तक स्तनपान कराती हैं उन्हें स्तन कैंसर होने की आशंका 5% कम होती है. जो महिलाएं जितने लंबे समय तक स्तनपान कराती हैं उन्हें कैंसर होने की आशंका उतनी ही कम हो जाती है.

ज्यादा गर्भपात भी जिम्मेदार

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक शहरी कामकाजी महिलाएं ज्यादा गर्भपात कराती हैं, बच्चे देर से पैदा करती हैं और उन की स्तनपान कराने की अवधि भी कम होती है, जबकि गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन ज्यादा मात्रा में करती हैं. ऐसी महिलाओं को स्तन और अंडाशय के कैंसर की आशंका ज्यादा रहती है. भारतीय महिलाएं जो गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं उन में कैंसर का यह जोखिम 9.5 गुना बढ़ गया है.
स्तन कैंसर का उपचार कराने वाली कोई महिला अगर प्रजनन के लिहाज से स्वस्थ है और उस की आयु भी सीमा के अंदर है तो उसे मां बनने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. एक अध्ययन से यह खुलासा हुआ है कि गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान बनने वाले हारमोन स्तन कैंसर की शुरुआत या उन्हें पुनर्जीवित करने का काम नहीं करते हैं.

– डा. शची बावेजा   कंसल्टैंट, बीएलके सुपरस्पैश्ययलिटी हौस्पिटल, दिल्ली

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ब्रेस्टफीडिंग को सामान्य बनाने की जरुरत

कोरोनावायरस महामारी की वजह  से माताएं अपने नवजात बच्चों को दूध पिलाने से हिचक रही हैं. वे ब्रेस्टफीडिंग से  आशंकित हैं. हालांकि ब्रेस्टफीडिंग आखिरकार एक पर्सनल निर्णय होता है. रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ) और एकेडमी ऑफ ब्रेस्टफीडिंग मेडिसिन (ABM) सभी ने माँ द्वारा बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग करने को सपोर्ट किया है भले ही वे कोविड 19 से इन्फेक्टेड ही क्यों न हो.

मदरहूड हॉस्पिटल, नोएडा कंसल्टेंट लैक्टेशन एक्सपर्ट & फिजियोथेरेपिस्ट डॉ शिल्पी श्रीवास्तव ने  सुझाव दिया है कि ब्रेस्टफीडिंग कराने से माँ और उसके बच्चे दोनों को बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं. हालाँकि, भारत में, यह पाया गया है कि जन्म के एक घंटे के भीतर 50% से कम बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग कराया जाता है, फिर भी पहले छह महीनों में  ब्रेस्टफीडिंग कराने का रेट 55% ही है.

ब्रेस्टफीडिंग की शुरुआती पहल और एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग हर साल डायरिया और निमोनिया के कारण बच्चों की होने वाली लगभग 99,499 मौतों को रोक सकती हैं. लेकिन आज की भागदौड़  भरी दुनिया में ढंग से ब्रेस्टफीडिंग कराने के शेड्यूल को सपोर्ट करने के लिए रिसोर्सेस और समय निकालना मुश्किल हो सकता है. इससे भी ज्यादा दिक्कत कई नयी बनी माताओं को तब आती जब वह अपने आसपास के लोगो के द्वारा आलोचना किये जाने के डर से पब्लिक प्लेस में ब्रेस्टफीडिंग कराने में सहज नहीं महसूस कर पाती है. महिलाओं को पब्लिक प्लेस में ब्रेस्टफीडिंग कराने का अधिकार होना चाहिए, फिर भी ज्यादातर महिलाएं पब्लिक प्लेस में ब्रेस्टफीडिंग कभी नहीं कराती है.

ब्रेस्टफीडिंग को सामान्य करने में कैसे मदद करें?

ब्रेस्टफीडिंग उन रिसोर्सेज और नीतियों को हाईलाइट करके सामान्य किया जा सकता है जो महिलाओं को अपने बच्चे को दूध पिलाने के लिए सशक्त बनाता है . ब्रेस्टफीडिंग को सामान्य करने से उन सभी माताओं को मदद मिलती है, जो ब्रेस्टफीडिंग कराना चाहती हैं लेकिन उन्हें नहीं पता होता है कि कैसे कराएं. इससे उन सभी माताओं को भी मदद मिलेगी जो पब्लिक प्लेस में अपने बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराने से शर्माती हैं. कुछ ऐसे तरीके है जिससे ब्रेस्टफीडिंग को सामान्य बनाया जा सकता है-

चैलेन्ज के बारें में बात करें

ब्रेस्टफीडिंग को सामान्य करने का एक पार्ट पहचानना होता है कि कुछ महिलाएं ब्रेस्टफीडिंग कराने में कैसी मुश्किलें झेलती हैं. यह तो सच है कि जो पहली बार माँ बनती हैं उन्हें ब्रेस्टफीडिंग कराने का कोई अनुभव नहीं होता है. इसलिए उन्हें अपने नवजात बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराने के लिए डिलीवरी से पहले वाली विजिट में प्रॉपर कॉउंसलिंग की जरूरत होती है. हमारी कन्सल्टेशन्स इसे चैलेंजिंग समझने वाली माताओं के लिए आसान बना सकती है.

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ब्रेस्टफीडिंग के अधिकार को स्वीकार करें

ब्रेस्टफीडिंग के बारे में अक्सर “चॉइस” के रूप में बात की जाती है यह माताओं के लिए मिसलीडिंग हो सकता है. महिलाओं के लिए ब्रेस्टफीडिंग को एक अधिकार के रूप में सपोर्ट करें और सामाजिक बाधाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाएं. घर पर, वर्किंग प्लेस और पब्लिक प्लेस में ब्रेस्टफीडिंग कराने में अड़चने आती हैं. नर्सिंग माताओं को दूसरों द्वारा शर्मिंदा होने और एक्सपोज्ड होने के बजाय अपने बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग कराने में सहज महसूस करना चाहिए. पॉलिसी के बदलाव को बढ़ावा दें-

कई कंपनियां और संस्था पॉलिसी के बदलाव के जरिये ब्रेस्टफीडिंग के लिए अपना समर्थन देते रहते हैं. पॉलिसी में होने वाले बदलाव से महिलाओं को नर्सिंग में आसानी होती है. ये कदम ब्रेस्टफीडिंग को जिस तरह से हम  देखते हैं उनको बेहतरी के लिए एक नयी तस्वीर पेश करती हैं.

नर्सिंग माओं के रिसोर्सेज को सपोर्ट करें-

माताओं को ब्रेस्टफीडिंग शुरू करने में मदद करने के लिए सर्टिफाइड लैक्टेशन कंसल्टेंट्स उपलब्ध होता हैं और यह जरूरी है महिलाएं एक्सपर्ट्स से लगातार सलाह लेती रहें. कई सामुदायिक संसाधन है जो हॉस्पिटल से निकलने के बाद माताओं की मदद कर सकते हैं. इन सामुदायिक संसाधन में दूसरी ब्रेस्टफीडिंग माताओं का ग्रुप, ब्रेस्टफीडिंग क्लासेस, डोनर ब्रेस्ट मिल्क प्रोग्राम के साथ और भी बहुत कुछ होता है.

ब्रेस्टफीडिंग के लिए वर्चुअल सपोर्ट

कई  वर्चुअल सपोर्ट ग्रुप का गठन लैक्टेशन एक्सपर्ट्स द्वारा नई बनी माताओं के लिए किया गया है ताकि कोविड-19 के समय में ब्रेस्टफीडिंग को प्रोत्साहित किया जा सके. मां का दूध नवजात शिशुओं को किसी भी तरह के संक्रमण से बचाने के लिए सबसे अच्छी ढाल होती है. लैक्टेशन एक्सपर्ट्स ब्रेस्टफीडिंग से सम्बंधित चिंताओं और प्रश्नों को भी एड्रेस करते हैं. ऐसे ग्रुप का मुख्य उद्देश्य नयी माँ बनी माताओं को ब्रेस्टफीडिंग शुरू करने में जितना सपोर्ट हो सके उन्हें सपोर्ट करना होता है.

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इससे भी आगे

इस मुद्दे के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ाना महिलाओं को एक-दूसरे की वकालत करने में मदद करता है और ब्रेस्टफीडिंग कम्युनिटी को ज्यादा इन्क्लूसिव बनाता है. यह उन सदियों पुरानी मानसिकता को भी बदलेगा जो हमें यह बताती हैं कि ब्रेस्ट नेचुरली सेक्सुअल होता हैं, आइटम बेचने और विज्ञापन में ब्रेस्ट ठीक हैं, यह देख सकते हैं, लेकिन बच्चे को दूध पिलाते हुए इसे नहीं देखना चाहिए, आदि. हमें यह दिखाने की जरूरत है कि अपने  ब्रेस्ट से अपने बच्चों को दूध पिलाना सामान्य है. यदि आप नहीं चाहते कि इसे देखें तो फिर न देखें. यह बहुत ही आसान है.

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