आजकल सप्लिमेट्स लेने का फ़ैशन सा बनता चला जा रहा है. किसी भी कैमिस्ट के पास,आसानी से उपलब्ध होने के कारण,लोग,आधी अधूरी जानकारी प्राप्त होते ही,सप्लिमेंट्स ( चाहे शरीर में इन की ज़रूरत हो या न हो) लेना शुरू कर देते है. दूसरे,हमें खाना खाने का समय नहीं होता या फिर, जो हम खाते हैं उससे ज़रूरी पोषण नहीं मिलता और हम ,सप्लिमेंट्स पर  निर्भर हो जाते हैं.

हर्बलिज्म अर्थात जड़ी-बूटी सम्बंधी सिद्धांत,वनस्पतियों और वनस्पति सारों के उपयोग पर आधारित एक पारम्परिक औषधीय या लोक दवा का अभ्यास.

1-सप्लिमेंट्स या आहार पूरक में  फफूंदीय या कवकीय तथा मधुमक्खी उत्पादों,साथ ही ख़निज,शंख-सीप और कुछ प्राणी अंगों को भी शामिल कर लिया जाता है.

2-ये ताक़त,धीरज,सुंदरता में सुधार,त्वचा,बाल और नाख़ून के स्वास्थ्य में सुधार,क़ब्ज़,दर्द और एनिमिया को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं.

3-बहुत सारे उपभोक्ताओं का मानना है कि हर्बल सप्लिमेंट्स सुरक्षित हैं क्योंकि वे प्रकृतिक हैं .और इनके साइड इफ़ेक्ट्स नहीं होते.

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प्रश्न ये उठता है कि क्या वास्तव में हमें ,इन सप्लिमेंट्स की ज़रूरत है?प्रस्तुत है कुछ बातें,जिन्हें ध्यान में रखकर ही सप्लिमेंट्स लेने की शुरुआत करनी चाहिए

1-सप्लिमेंट्स की ज़रूरत हमें ,हमारे लाइफ़ स्टाइल के अनुसार होती है.जैसे,कितनी कैलोरी ख़र्च करते हैं ,कितना पौष्टिक आहार खाते हैं?

2-साधारणत: जो लोग शारीरिक श्रम ज़्यादा करते है,जिम में जाकर वर्ज़िश ज़्यादा करते है उन्हें अतिरिक्त प्रोटीन की ज़रूरत होती है .हर्बल सप्लिमेंट्स से,तगड़े और सिथैटिक पूरक के बिना ,प्रदर्शन,धीरज,शक्ति और माँसपेशियों को बेहतर और ऐथलीटों को प्राकृतिक रूप से बहुत अधिक बढ़ावा मिल सकता है( यदि अनुशंसित पाठ्यक्रम के अनुसार खाया जाय)

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