कोरोनावायरस महामारी की वजह  से माताएं अपने नवजात बच्चों को दूध पिलाने से हिचक रही हैं. वे ब्रेस्टफीडिंग से  आशंकित हैं. हालांकि ब्रेस्टफीडिंग आखिरकार एक पर्सनल निर्णय होता है. रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ) और एकेडमी ऑफ ब्रेस्टफीडिंग मेडिसिन (ABM) सभी ने माँ द्वारा बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग करने को सपोर्ट किया है भले ही वे कोविड 19 से इन्फेक्टेड ही क्यों न हो.

मदरहूड हॉस्पिटल, नोएडा कंसल्टेंट लैक्टेशन एक्सपर्ट & फिजियोथेरेपिस्ट डॉ शिल्पी श्रीवास्तव ने  सुझाव दिया है कि ब्रेस्टफीडिंग कराने से माँ और उसके बच्चे दोनों को बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं. हालाँकि, भारत में, यह पाया गया है कि जन्म के एक घंटे के भीतर 50% से कम बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग कराया जाता है, फिर भी पहले छह महीनों में  ब्रेस्टफीडिंग कराने का रेट 55% ही है.

ब्रेस्टफीडिंग की शुरुआती पहल और एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग हर साल डायरिया और निमोनिया के कारण बच्चों की होने वाली लगभग 99,499 मौतों को रोक सकती हैं. लेकिन आज की भागदौड़  भरी दुनिया में ढंग से ब्रेस्टफीडिंग कराने के शेड्यूल को सपोर्ट करने के लिए रिसोर्सेस और समय निकालना मुश्किल हो सकता है. इससे भी ज्यादा दिक्कत कई नयी बनी माताओं को तब आती जब वह अपने आसपास के लोगो के द्वारा आलोचना किये जाने के डर से पब्लिक प्लेस में ब्रेस्टफीडिंग कराने में सहज नहीं महसूस कर पाती है. महिलाओं को पब्लिक प्लेस में ब्रेस्टफीडिंग कराने का अधिकार होना चाहिए, फिर भी ज्यादातर महिलाएं पब्लिक प्लेस में ब्रेस्टफीडिंग कभी नहीं कराती है.

ब्रेस्टफीडिंग को सामान्य करने में कैसे मदद करें?

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