एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा: कनिष्क के दिल में खूबसूरती के मायने बदलती रीतिका

उस ने उसे देखा तो बस देखता ही रह गया. कितने दिनों बाद किसी की आंखों में डूब जाने का मन हुआ था उस का. ऐसा लग रहा था जैसे इतने दिन इस पूरे चांद की आस में ही अधूरी चांदनी रातें गुजारी थीं उस ने. कनिष्क मैट्रो में सामने बैठी उस लड़की को पिछले कुछ मिनटों से देख रहा था, कभी पलकें झुकाता तो कभी उठाता. उस लड़की के चेहरे पर मास्क लगा हुआ था. आखिर लगा क्यों न होता, लगभग सभी ने मास्क पहना हुआ था, कोरोना का डर अभी तक गया जो नहीं था. कनिष्क का मास्क से दम घुटने लगा था और इसीलिए उस ने अपना मास्क उतार लिया था. उस ने अपने बगल में दाएंबाएं देखा तो बगल में बैठे दोनों ही लड़के अपने फोन की स्क्रीन में घुसे हुए थे. उस ने अपने हाथों में पकड़े फोन का कैमरा खोला और उस लड़की की फोटो खींचने लगा.

उस लड़की के हाथ में किताब थी. उस की नजरें अपनी किताब से हर आने वाले स्टेशन पर उठतीं और सामने खिड़की से बाहर देखने लगतीं. शायद उसे लगता हो कि उस का स्टेशन किताब के चक्कर में छूट न जाए. जब वह सामने की ओर देखती तो कनिष्क को लगता जैसे उसे देख रही हो. वह खुश हो जाता. अचानक उस लड़की के सामने एक वृद्ध अंकल आ कर खड़े हुए तो कनिष्क की ताकाझांकी में खलल पड़ गया. वह मन ही मन उन अंकल को दोतीन अपशब्द कहता, उस से पहले ही वह लड़की अपनी सीट से उठ गई और अंकल उसे थैंक्यू कहते हुए उस की सीट पर बैठ गए. कनिष्क को एक पल लगा कि उठ कर उस लड़की को अपनी सीट दे दे, लेकिन वह सोच में पड़ गया कि उठे या नहीं. वह लड़की जब खड़ी हुई तो राजेंद्र प्लेस आ चुका था. जैसे ही अगला स्टेशन करोल बाग आने वाला था, कनिष्क के बगल की सीट पर बैठा लड़का उठ खड़ा हुआ और वह कनिष्क के बगल में आ कर बैठ गई.

कनिष्क के मन में तो जैसे प्रेमगीत

गुनगुनाने लगे थे. वह उस लड़की के इतना करीब बैठा था लेकिन उस से कुछ कहने की उस की हिम्मत नहीं हुई. होती भी कैसे? आखिर उस लड़की को बुरा लग गया और उस ने मैट्रो में कोई तमाशा कर दिया तो? कनिष्क अपने सुंदर से चेहरे को उस लड़की के हाथों थप्पड़ खा कर लाल नहीं कराना चाहता था. वह लड़की अपनी किताब में खोई हुई थी कि अचानक उस के बैग में रखे फोन से नोटिफिकेशन की आवाज सुनाई दी. उस लड़की ने बैग से फोन निकाला. कनिष्क की नजरें भी उस के फोन पर जा अटकीं. स्क्रीन पर लिखा था, ‘नीतिका हैज मेंशंड इन अ स्टोरी’. यह इंस्टाग्राम का नोटिफिकेशन था जिस पर उस लड़की ने झट इंस्टाग्राम खोल लिया. उस का इंस्टाग्राम खुला और कनिष्क की नजर सब से ऊपर कोने में दिख रहे उस के यूजरनेम पर गई. यूजरनेम था ‘टोस्का’. कनिष्क ने यह शब्द ही पहली बार सुना था तो झट अपना इंस्टाग्राम खोल टोस्का टाइप कर उस लड़की  को ढूंढ़ने लगा कि तभी अनाउंसमैंट हुआ कि अगला स्टेशन राजीव चौक है. लड़की  झट उठी और बैग में किताब डालते हुए गेट पर जा खड़ी हुई. कनिष्क के देखते ही देखते गेट खुला और वह लड़की भी भीड़ में कहीं ओझल हो गई.

टोस्का….टोस्का…टोस्का….कनिष्क अपनी क्लास में बैठ अब भी उसी लड़की के बारे में सोच रहा था. लौकडाउन के बाद कालेज खुलने का यह तीसरा दिन ही था और सभी अपने क्वारंटाइन के दिनों की बातें करने में बिजी थे. कनिष्क बीएससी जूलोजी का सैकंड ईयर का स्टूडैंट था. तेजतर्रार डिबेटिंग सोसाइटी का मैंबर, वुमैन डेवलपमैंट सोसाइटी, बोटानिकल सोसाइटी, स्पिक मेके, लगभग हर करीकुलर एक्टिविटी से वह जुड़ा हुआ था.

वह स्कूलटाइम से ही कई रिलेशनशिप्स में रहा था. लेकिन कोई भी बहुत सीरियस कभी नहीं हुई थी और कालेज में पिछले एक साल में उस ने एकदो लड़कियों को डेट किया ही था. आज जब उस लड़की को देखा तो उसे लगा जैसे उसे कुछ महसूस हुआ है, कुछ नौर्मल से हट कर. हर मिनट वह इंस्टाग्राम पर चैक करता कि उस ने अब तक उस की फौलोरिक्वैस्ट एक्सैप्ट की है या नहीं. उस लड़की की प्रोफाइल प्राइवेट थी यानी डिस्प्ले पिक्चर के अलावा कनिष्क को कुछ भी नहीं दिख रहा था. डिस्प्ले पिक्चर में भी उस का चेहरा साफ नहीं था, उस ने अपने मुंह पर हाथ रखा हुआ था. कनिष्क बेताब हुआ जा रहा था उन हाथों के पीछे छिपे उस के खूबसूरत चेहरे को देखने के लिए. कनिष्क को इस तरह कशमकश में देख उस का दोस्त सुमित उस के बगल में आ कर बैठ गया.

‘‘कुछ बात है क्या,’’ सुमित ने सवाल किया.

‘‘नहीं, कुछ खास नहीं,’’ कनिष्क ने कहा.

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुमित उठ ही रहा था कि कनिष्क बोल पड़ा, ‘‘कभी ऐसा हुआ है कि तू ने कोई लड़की देखी हो मैट्रो में और तुझे उस पर क्रश टाइप कुछ आ गया हो?’’

‘‘रोज ही आता है नया क्रश तो,’’ सुमित ने कहा और ठहाका मार हंसा.

‘‘फिर आगे? तू बात करता है उस से जा कर या कभी इंस्टाग्राम या फेसबुक पर मिली वह?’’

‘‘पागल है क्या? मैट्रो में देख कर उस का नाम थोड़ी पता चल जाता है. और वैसे भी, आजकल हर लड़की का बौयफ्रैंड होता ही है. सो, बिना जाने उसे अप्रोच करने का कोई फायदा नहीं है,’’ सुमित ने कहा.

‘‘ओह.’’

‘‘तुझे कौन पसंद आ गई?’’

‘‘नहीं, कोई नहीं,’’ कनिष्क ने बताया.

‘‘अब बता भी.’’

‘‘यार, एक लड़की दिखी थी आज मैट्रो में मास्क पहने हुए. महरून टौप, ब्लू जींस, लंबेघने बाल, स्पोर्टशूज पहने हुए थी. उस की आंखें इतनी सुंदर थीं कि क्या बताऊं. उस ने हैंडबैग ले रखा था और किताब पढ़ रही थी मुराकामी की, मतलब समझदार किस्म की थी. एक तो इतनी पतली थी, ऊपर से पर्सनैलिटी इतनी अच्छी, उठनेबैठने का तरीका इतना अच्छा था. देख, मैं ने उस की फोटो भी ली थी. चेहरा नहीं दिख रहा लेकिन पर्सनैलिटी देख यार,’’ कहते हुए कनिष्क सुमित को उस लड़की की तसवीर दिखाने लगा.

‘‘तो तू ने बात नहीं की?’’ सुमित बोल उठा.

‘‘नहीं न, यही तो प्रौब्लम है. लेकिन मैं ने उस का इंस्टा यूजरनेम देखा था और उसे रिक्वैस्ट भी भेज दी. अब वह एक्सैप्ट कर ले, तो कुछ बात बने.’’

‘‘हम्म, लेट्स सी.’’

कनिष्क पूरा दिन इंतजार करता रहा. लेकिन उस लड़की ने रिक्वैस्ट एक्सैप्ट नहीं की. आखिर उसे खुद को रोका नहीं गया और उस ने उसे मैसेज कर दिया, ‘हाय, आई एम कनिष्क. मैं ने तुम्हें मैट्रो में देखा था, आज तुम मेरे बगल में आ कर बैठी भी थीं. मैं तुम से बात करना चाहता था. और हां, मैं ने तुम्हारी कुछ तसवीरें भी ली थीं, तुम इतनी सुंदर लग रही थीं कि

मैं खुद को रोक नहीं पाया,’ कनिष्क ने इतना लिखा और तसवीरें उस लड़की को भेज दीं.

5 मिनट बाद ही उधर से रिप्लाई आ गया, ‘हाय, ये तसवीरें बहुत खूबसूरत हैं, थैंक्यू.’ कनिष्क तो मानो रिप्लाई देख कर उछल पड़ा. उस ने लिखा, ‘ओह वेल, आई एम ग्लैड. बाई द वे तुम्हारा नाम क्या है?’

‘रीतिका,’ रिप्लाई आया.

‘तुम्हारा नाम भी तुम्हारी तरह ही खूबसूरत है,’ कनिष्क ने लिखा और उस की मुसकराहट मानो जाने का नाम ही नहीं ले रही थी.

‘हाहाहा, इतनी तारीफ?’

‘तुम हो ही तारीफ के काबिल, वैसे मेरा नाम कनिष्क है. मैं हंसराज कालेज का स्टूडैंट हूं, और तुम?’

‘गार्गी कालेज, सैकंड ईयर बीकौम,’ रीतिका ने उधर से लिखा.

‘ओहह, इंप्रैसिव.’

‘थैंक्स.’

कनिष्क सोच में पड़ गया कि अब क्या लिखे. उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि अब आगे क्या कहे सो, वह पूछ उठा, ‘तुम ने अपना यूजरनेम टोस्का क्यों रखा?’

‘मुझे इस का अर्थ पसंद है, मैं खुद को इस शब्द से कनैक्ट कर पाती हूं.’

‘मैं ने इस शब्द को गूगल किया था. यह रूसी शब्द है जिस का अर्थ है अनंत दुख, दर्द, पीड़ा. आखिर इतने दुखी शब्द से तुम कनैक्ट कैसे कर लेती हो?’

‘बस, कर लेती हूं, कोई विशेष कारण नहीं है इस के पीछे.’

‘अच्छा, तुम्हें किताबें पढ़ना भी पसंद है न?’

‘हां, बेहद.’

‘अच्छा सुनो?’ कनिष्क ने लिखा.

‘कहो,’ रीतिका ने कहा.

‘तुम ने अब तक मेरी रिक्वैस्ट एक्सैप्ट नहीं की है, मैं तुम्हारी प्रोफाइल नहीं देख पा रहा हूं.’

‘हां, नैटवर्क में कुछ प्रौब्लम है शायद. नैटवर्क ठीक होते ही एक्सैप्ट कर लूंगी.’

‘ओह, कोई बात नहीं. वैसे एक बात कहूं?’

‘कहो.’

‘तुम्हें देखते ही तुम पर क्रश आ गया था मुझे,’ कनिष्क खुद को कहने से रोक नहीं पाया.

‘सचमुच?’

‘हां, सच. तुम ने तो मुझे बिलकुल नोटिस नहीं किया था वैसे.’

‘ऐसा तो कुछ नहीं है. तुम अपना फोन हाथ में ले कर बैठे थे, बारबार मेरी तरफ देख रहे थे. तुम ने ग्रीन शर्ट पहनी थी चैक वाली. ब्लैक स्पोर्ट्स शूज और ब्लू जींस. मैं तुम्हारे बगल में आ कर बैठी थी तो तुम्हारे चेहरे पर मुसकान आ गई थी.’

रीतिका का मैसेज देख कर कनिष्क सातवें आसमान पर पहुंच गया. वे दोनों रातभर एकदूसरे से बातें करते रहे. कौन सा गाना पसंद है, खाने में क्या पसंद है, कालेज की ऐक्टिविटीज, दोस्तयार. लगभग हर टौपिक पर दोनों बातें करते रहे. देखतेदेखते कब सुबह के 4 बज गए, दोनों को पता ही नहीं चला.

‘वैसे किताबें किस तरह की पढ़ती हो तुम, फिक्शन या नौनफिक्शन?’

‘दोनों ही, लेकिन मुझे फिक्शन ज्यादा पसंद है.’

‘ऐसा क्यों? हकीकत से बेहतर कल्पनाएं लगती हैं तुम्हें?’

‘हकीकत मुझे डराती है.’

‘अच्छा, फिर बीकौम क्यों ली तुम ने? उस में तो सब हकीकत ही है, कुछ कल्पना नहीं है.’ कनिष्क ने चुटकी लेने के अंदाज में पूछा.

‘हाहा, टौपर थी मैं स्कूल में और फर्स्ट सैमेस्टर की भी.’

‘तुम तो समझदार भी हो मतलब.’

‘वो तो मैं हूं.’

‘कल मिलोगी?’ कनिष्क ने मैसेज किया. उधर से मैसेज का जवाब आया, ‘सुबह

8:55, सुभाष नगर मैट्रो स्टेशन.’

‘मिलते हैं,’ आखिरी मैसेज में कनिष्क ने छोटा सा दिल भी भेज दिया और उधर से भी रिप्लाई में दिल आया तो उस की खुशी और बढ़ गई.

अगली सुबह कनिष्क 8:40 पर ही मैट्रो पर पहुंच गया. वह इंतजार में था कि कब रीतिका आए और वह उस का चेहरा देखे, उस से हाथ मिलाए, बातें करे. उस ने सुबह से अब तक रीतिका को कोई मैसेज नहीं भेजा. उसे लगा, कहीं वह ज्यादा उत्सुकता दिखाएगा तो रीतिका उसे डैसप्रेट न समझने लगे. वह मैट्रो में नवादा से चढ़ा था और लगभग 5 मिनट में ही सुभाष नगर पहुंच गया था. वह सुभाष नगर मैट्रो स्टेशन के प्लैटफौर्म पर रखी बैंच पर बैठ गया. उस की नजरें बारबार रीतिका के इंतजार में दाईं ओर मुड़ रही थीं.

वह सोच रहा था कि रीतिका से क्या कहेगा, हाय कैसी हो, नहीं यह नहीं. हाय यू लुक ब्यूटीफुल, नहीं यह तो बड़ा फ्लर्टी साउंड कर रहा है. हैलो, आज तो तुम कल से भी ज्यादा सुंदर लग रही हो, हां परफैक्ट, कनिष्क सब सोच ही रहा था कि एक लड़की उस के सामने आ कर रुक गई. वह समझ गया कि यह रीतिका है. आज उस ने पीला टौप पहना हुआ था, बाल खोले हुए थे और चेहरे पर अब भी मास्क था. रीतिका की आंखें खुशी से चमचमाती हुई दिख रही थीं. कनिष्क की आंखों में उस से मिलने की ललक साफसाफ झलक रही थी.

‘‘हाय,’’ रीतिका ने कहा और हाथ आगे बढ़ाया.

‘‘हैलो,’’ कनिष्क ने कहते हुए हाथ मिलाया. वह कुछ और कह पाता उस से पहले ही रीतिका ने अपना मास्क उतारना शुरू कर दिया. कनिष्क का चेहरा अचानक पीला पड़ गया. वह रीतिका का चेहरा देख कर दंग रह गया. रीतिका के होंठों का आकार बिगड़ा हुआ था, वे कटेफटे हुए लग रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो कोई हादसा हुआ हो उस के साथ. उस की सारी खूबसूरती उस के होंठों की बदसूरती से धरी की धरी रह गई. कनिष्क की आंखें फटी हुई थीं. कुछ कहने के लिए जैसे उस की जबान पर ताले पड़ गए थे.

रीतिका शायद समझ चुकी थी कनिष्क के मन का हाल. उस ने कहा, ‘‘ओह, मैं अपने नोट्स घर भूल गई हूं आज सबमिट करने थे कालेज में. मैं तुम से बाद में मिलती हूं, तुम जाओ कालेज के लिए लेट हो जाओगे वरना,’’ रीतिका ने बनावटी मुसकराहट के साथ कहा.

कनिष्क ने ओके कहा और मैट्रो उस के सामने आ कर रुकी ही थी कि वह उस में चढ़ गया. पूरे रास्ते वह सोचता रहा कि अब क्या करे. अब उसे रीतिका की खूबसूरती नजर नहीं आ रही थी बल्कि उस के चेहरे का वह दाग बारबार उस की आंखों के सामने आ रहा था. उस ने फोन चैक किया तो रीतिका उस की फौलो रिक्वैस्ट एक्सैप्ट कर चुकी थी. उस ने उस की प्रोफाइल देखी तो एक बार फिर उस के होंठों की जगह मांस के लोथड़े को देख उस का मन खीझ उठा.वह कालेज पहुंचा और अपनी कैंटीन में जा कर बैठ गया. उस का अब क्लास में जाने का भी मन नहीं था. कुछ मिनटों बाद ही सुमित वहां आ गया.

‘‘यार, बड़ी गड़बड़ हो गई,’’ कनिष्क ने कहा.

‘‘क्या हो गया?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘वह लड़की याद है कल वाली, उस से मिला आज मैं.’’

‘‘ओहहो, यह कैसे हो गया, कैसा रहा सब. नाम क्या है उस का? नंबर लिया या नहीं?’’ सुमित एक के बाद एक सवाल करने लगा.

‘‘रीतिका नाम है उस का और नंबर मांगता मैं आज लेकिन… यार उस का चेहरा… यह देख,’’ कनिष्क ने फोन खोल रीतिका की इंस्टा पर जितनी तसवीरें थीं सुमित को दिखाईं.

तसवीरें देख कर सुमित का मुंह भी खुला का खुला रह गया. उस के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा, ‘‘भाईसाहब यह क्या है, कैसे, क्यों, मतलब यह कैसे हुआ?’’

‘‘यार, मुझे क्या पता. मैं बस उस की शक्ल नहीं देख पा रहा अब. मुझे कल ही उस की शक्ल दिख जाती तो ऐसा नहीं होता न.’’

‘‘तो कल तू ने शक्ल कैसे नहीं देखी? इंस्टाग्राम पर तो तुझे कल भी शक्ल दिख ही गई होगी.’’

‘‘उस ने मुझे फंसाया है,’’ कनिष्क बोल उठा.

‘‘क्या मतलब?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘पहले तो उस ने मेरी रिक्वैस्ट एक्सैप्ट नहीं की ताकि मैं उस की शक्ल न देख पाऊं, फिर इतनी मीठीमीठी बातें कीं मुझ से, लेकिन यह नहीं बताया कि उस की शक्ल ऐसी है. अब तो मुझे लग रहा है कल मेरे बगल में भी वह जानबूझ कर ही बैठी होगी और अपना यूजरनेम भी जान कर ही दिखाया होगा. आजकल की लड़कियां इतनी चालाक हैं न कि क्या बताऊं…’’ कनिष्क लगातार बोले ही जा रहा था कि उस के फोन पर इंस्टाग्राम का नोटिफिकेशन आ गया.

उस ने फोन खोला तो देखा रीतिका का मैसेज था, ‘‘हाय, मुझे तुम्हें देख कर लगा था तुम अलग हो पर तुम भी सब की तरह ही निकले. सौरी, मुझे तुम से बात करने से पहले अपनी शक्ल दिखा देनी चाहिए थी ताकि आज सुबह जो हुआ वह न होता. मेरी शक्ल के आगे तुम मेरी सारी खूबियां भूल गए होगे, है न? तुम पहले नहीं हो जिस ने ऐसा किया है. मेरा चेहरा बचपन से ही ऐसा है और यकीन मानो, मेरे लिए भी इसे देखना एक वक्त पर बहुत मुश्किल था, लेकिन अब नहीं है. तुम्हें मुझ से बात करने की या मुझे आगे जाननेसमझने की कोई जरूरत नहीं है, एक दिन में कौन सा तुम और मैं एकदूसरे को इतना जानते ही हैं जो किसी तरह की कोई मुश्किल होगी. चिल्ल करो.’’

कनिष्क और सुमित दोनों ने ही यह मैसेज पढ़ा. कनिष्क ने मैसेज पढ़ कर रिप्लाई किए बिना ही फोन बंद कर दिया.

‘‘तू रिप्लाई नहीं करेगा?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ कनिष्क बोला.

‘‘पर क्यों नहीं?’’ सुमित हैरान था.

‘‘तू ने देखा नहीं? एक तो इस की शक्ल इतनी बुरी है ऊपर से इतना घमंड, इतना एटीट्यूड, किस बात का? पहले खुद मुझे फंसाने की कोशिश की अब मुझे इमोशनल करने की कोशिश कर रही है अपना दुखड़ा सुना कर. ‘मुझे लगा तुम अलग हो’ इस का क्या मतलब है. खुद की शक्ल ऐसी है तो मैं क्या करूं. मुझे न इस से कोई बात करनी है न इस को देखना है. पता नहीं कौन सी घड़ी में मुझे यह अच्छी लग गई,’’ कनिष्क जिस मुंह से कल तक फूल गिरा रहा था, आज जहर उगल रहा था.

‘‘तू यह बोल क्या रहा है, कुछ सोच भी रहा है? तू उस के पीछे था, तू ने उसे सामने से अप्रोच किया, अब तू कह रहा है कि उस में सैल्फरिस्पैक्ट तक नहीं होनी चाहिए क्योंकि उस की शक्ल बुरी है. तू ही था न जिस ने पिछले साल एसिड अटैक पर भाषण दिया था स्टेज पर और कहा था कि खूबसूरती सीरत में होती है सूरत में नहीं, अब अपनी बात से ऐसे कैसे पलट रहा है.’’

‘‘यार, तू मेरा दोस्त है या उस का?’’ कनिष्क ने चिढ़ते हुए कहा.

‘‘हूं तो तेरा ही पर अब लग रहा है कि क्यों हूं. तेरी सारी खूबियां तेरी घटिया सोच के आगे फीकी पड़ गई हैं और यकीन मान, तू परफैक्ट नमूना है इस बात का कि लोग शक्ल से सुंदर हों तो जरूरी नहीं मन से भी हों.’’

‘‘मुझ से इस तरह बात करने की कोई जरूरत नहीं है सुमित,’’ कनिष्क ने कहा.

‘‘मेरे आगे किसी के बारे में इस तरह की बात करने की तुझे भी कोई जरूरत नहीं है. मैं तेरा दोस्त हूं, इस का मतलब यह नहीं तेरी हर गलतसलत बातें सुनूंगा. और पता है, मैं खुश हूं कि वह लड़की  बच गई. क्या कौन्फिडैंस है उस में. तुझ जैसे लड़के की गर्लफ्रैंड बनती तो आत्मग्लानि और इंसिक्योरिटी से भर जाती.’’ सुमित अपनी बात कह कर चला गया और कनिष्क गुस्से से भर गया. उस ने फोन उठाया और इंस्टाग्राम से रीतिका को ब्लौक कर दिया.

उस शाम कनिष्क न चाहते हुए भी बारबार रीतिका के बारे में ही सोच रहा था. उसे सुमित की कही बातें भी याद आ रही थीं. कनिष्क ने फोन उठाया और रीतिका को अनब्लौक कर मैसेज टाइप किया, ‘सौरी, मैं ने इतनी बुरी तरह बिहेव किया.’ कनिष्क के मैसेज भेजने के कुछ ही सैकंड्स में उसे रीतिका का रिप्लाई आया, ‘कोई बात नहीं.’

कनिष्क के चेहरे पर एक बार फिर मुसकराहट लौट आई थी. एक बार फिर उन दोनों की बातों का सिलसिला चल पड़ा था.

‘अपना नंबर ही दे दो, मुझ से इंस्टाग्राम पर बात करना बहुत बोरिंग लगता है,’ कनिष्क ने कहा तो रीतिका ने उसे अपना नंबर दे दिया. उन दोनों ने फिर कभी उस सुबह की बात नहीं की लेकिन फिर कभी मैं और तुम से हम होने का खयाल भी दोनों के जेहन में नहीं आया. कनिष्क इस बारे में बात नहीं करना चाहता था और रीतिका की अब हिम्मत नहीं थी इस बारे में कुछ कहने की. वह चाहे जितनी भी मजबूत थी लेकिन रिजैक्शन सहने का डर उस में अंदर तक घर कर चुका था. खैर, दोनों को ही एक नया दोस्त मिल चुका था. कभीकभी दोनों साथ मैट्रो से राजीव चौक तक जाते तो ढेरों बातें किया करते, उस के बाद अपनेअपने कालेज के रूट पर निकल जाया करते.

‘‘तू ने वह सीरीज देखी जो मैं ने रात में बताई थी?’’ कनिष्क मैट्रो में रीतिका से पूछने लगा.

‘‘हां, उस लड़की  का कैरेक्टर कितना मजबूत था न, मैं तो इंप्रैस हो गई उस से,’’ रीतिका उत्सुकता से भर कर कहने लगी.

‘‘तू भी तो वैसी ही है, मजबूत और नकचढ़ी,’’ कनिष्क कह कर हंसने लगा.

‘‘नकचढ़ी और मैं? तू न, जलता है मुझ से, बस, आया बड़ा,’’ रीतिका झूठा गुस्सा दिखाने लगी.

‘‘तुझ से जलूंगा मैं, हाहा, रहने दे सुबहसुबह हंसा मत.’’

‘‘चल जा न, तंग मत कर मुझे अब.’’

‘‘तुझे तंग नहीं करूंगा तो दिन कैसे कटेगा मेरा,’’ कनिष्क ने कहा तो रीतिका और वह दोनों ही हंस पड़े.

‘‘मैं आज राइटिंग कंपीटिशन में जा रही हूं. जीत गई तो तेरी पार्टी पक्की.’’

‘‘पिज्जा से कम कुछ नहीं चलेगा, पहले ही बता रहा हूं.’’

‘‘हां भुक्खड़, खा लियो पिज्जा.’’

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा: भाग-1

उस ने उसे देखा तो बस देखता ही रह गया. कितने दिनों बाद किसी की आंखों में डूब जाने का मन हुआ था उस का. ऐसा लग रहा था जैसे इतने दिन इस पूरे चांद की आस में ही अधूरी चांदनी रातें गुजारी थीं उस ने. कनिष्क मैट्रो में सामने बैठी उस लड़की को पिछले कुछ मिनटों से देख रहा था, कभी पलकें झुकाता तो कभी उठाता. उस लड़की के चेहरे पर मास्क लगा हुआ था. आखिर लगा क्यों न होता, लगभग सभी ने मास्क पहना हुआ था, कोरोना का डर अभी तक गया जो नहीं था. कनिष्क का मास्क से दम घुटने लगा था और इसीलिए उस ने अपना मास्क उतार लिया था. उस ने अपने बगल में दाएंबाएं देखा तो बगल में बैठे दोनों ही लड़के अपने फोन की स्क्रीन में घुसे हुए थे. उस ने अपने हाथों में पकड़े फोन का कैमरा खोला और उस लड़की की फोटो खींचने लगा.

उस लड़की के हाथ में किताब थी. उस की नजरें अपनी किताब से हर आने वाले स्टेशन पर उठतीं और सामने खिड़की से बाहर देखने लगतीं. शायद उसे लगता हो कि उस का स्टेशन किताब के चक्कर में छूट न जाए. जब वह सामने की ओर देखती तो कनिष्क को लगता जैसे उसे देख रही हो. वह खुश हो जाता. अचानक उस लड़की के सामने एक वृद्ध अंकल आ कर खड़े हुए तो कनिष्क की ताकाझांकी में खलल पड़ गया. वह मन ही मन उन अंकल को दोतीन अपशब्द कहता, उस से पहले ही वह लड़की अपनी सीट से उठ गई और अंकल उसे थैंक्यू कहते हुए उस की सीट पर बैठ गए. कनिष्क को एक पल लगा कि उठ कर उस लड़की को अपनी सीट दे दे, लेकिन वह सोच में पड़ गया कि उठे या नहीं. वह लड़की जब खड़ी हुई तो राजेंद्र प्लेस आ चुका था. जैसे ही अगला स्टेशन करोल बाग आने वाला था, कनिष्क के बगल की सीट पर बैठा लड़का उठ खड़ा हुआ और वह कनिष्क के बगल में आ कर बैठ गई.

कनिष्क के मन में तो जैसे प्रेमगीत

गुनगुनाने लगे थे. वह उस लड़की के इतना करीब बैठा था लेकिन उस से कुछ कहने की उस की हिम्मत नहीं हुई. होती भी कैसे? आखिर उस लड़की को बुरा लग गया और उस ने मैट्रो में कोई तमाशा कर दिया तो? कनिष्क अपने सुंदर से चेहरे को उस लड़की के हाथों थप्पड़ खा कर लाल नहीं कराना चाहता था. वह लड़की अपनी किताब में खोई हुई थी कि अचानक उस के बैग में रखे फोन से नोटिफिकेशन की आवाज सुनाई दी. उस लड़की ने बैग से फोन निकाला. कनिष्क की नजरें भी उस के फोन पर जा अटकीं. स्क्रीन पर लिखा था, ‘नीतिका हैज मेंशंड इन अ स्टोरी’. यह इंस्टाग्राम का नोटिफिकेशन था जिस पर उस लड़की ने झट इंस्टाग्राम खोल लिया. उस का इंस्टाग्राम खुला और कनिष्क की नजर सब से ऊपर कोने में दिख रहे उस के यूजरनेम पर गई. यूजरनेम था ‘टोस्का’. कनिष्क ने यह शब्द ही पहली बार सुना था तो झट अपना इंस्टाग्राम खोल टोस्का टाइप कर उस लड़की  को ढूंढ़ने लगा कि तभी अनाउंसमैंट हुआ कि अगला स्टेशन राजीव चौक है. लड़की  झट उठी और बैग में किताब डालते हुए गेट पर जा खड़ी हुई. कनिष्क के देखते ही देखते गेट खुला और वह लड़की भी भीड़ में कहीं ओझल हो गई.

टोस्का….टोस्का…टोस्का….कनिष्क अपनी क्लास में बैठ अब भी उसी लड़की के बारे में सोच रहा था. लौकडाउन के बाद कालेज खुलने का यह तीसरा दिन ही था और सभी अपने क्वारंटाइन के दिनों की बातें करने में बिजी थे. कनिष्क बीएससी जूलोजी का सैकंड ईयर का स्टूडैंट था. तेजतर्रार डिबेटिंग सोसाइटी का मैंबर, वुमैन डेवलपमैंट सोसाइटी, बोटानिकल सोसाइटी, स्पिक मेके, लगभग हर करीकुलर एक्टिविटी से वह जुड़ा हुआ था.

वह स्कूलटाइम से ही कई रिलेशनशिप्स में रहा था. लेकिन कोई भी बहुत सीरियस कभी नहीं हुई थी और कालेज में पिछले एक साल में उस ने एकदो लड़कियों को डेट किया ही था. आज जब उस लड़की को देखा तो उसे लगा जैसे उसे कुछ महसूस हुआ है, कुछ नौर्मल से हट कर. हर मिनट वह इंस्टाग्राम पर चैक करता कि उस ने अब तक उस की फौलोरिक्वैस्ट एक्सैप्ट की है या नहीं. उस लड़की की प्रोफाइल प्राइवेट थी यानी डिस्प्ले पिक्चर के अलावा कनिष्क को कुछ भी नहीं दिख रहा था. डिस्प्ले पिक्चर में भी उस का चेहरा साफ नहीं था, उस ने अपने मुंह पर हाथ रखा हुआ था. कनिष्क बेताब हुआ जा रहा था उन हाथों के पीछे छिपे उस के खूबसूरत चेहरे को देखने के लिए. कनिष्क को इस तरह कशमकश में देख उस का दोस्त सुमित उस के बगल में आ कर बैठ गया.

‘‘कुछ बात है क्या,’’ सुमित ने सवाल किया.

‘‘नहीं, कुछ खास नहीं,’’ कनिष्क ने कहा.

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुमित उठ ही रहा था कि कनिष्क बोल पड़ा, ‘‘कभी ऐसा हुआ है कि तू ने कोई लड़की देखी हो मैट्रो में और तुझे उस पर क्रश टाइप कुछ आ गया हो?’’

‘‘रोज ही आता है नया क्रश तो,’’ सुमित ने कहा और ठहाका मार हंसा.

‘‘फिर आगे? तू बात करता है उस से जा कर या कभी इंस्टाग्राम या फेसबुक पर मिली वह?’’

‘‘पागल है क्या? मैट्रो में देख कर उस का नाम थोड़ी पता चल जाता है. और वैसे भी, आजकल हर लड़की का बौयफ्रैंड होता ही है. सो, बिना जाने उसे अप्रोच करने का कोई फायदा नहीं है,’’ सुमित ने कहा.

‘‘ओह.’’

‘‘तुझे कौन पसंद आ गई?’’

‘‘नहीं, कोई नहीं,’’ कनिष्क ने बताया.

‘‘अब बता भी.’’

‘‘यार, एक लड़की दिखी थी आज मैट्रो में मास्क पहने हुए. महरून टौप, ब्लू जींस, लंबेघने बाल, स्पोर्टशूज पहने हुए थी. उस की आंखें इतनी सुंदर थीं कि क्या बताऊं. उस ने हैंडबैग ले रखा था और किताब पढ़ रही थी मुराकामी की, मतलब समझदार किस्म की थी. एक तो इतनी पतली थी, ऊपर से पर्सनैलिटी इतनी अच्छी, उठनेबैठने का तरीका इतना अच्छा था. देख, मैं ने उस की फोटो भी ली थी. चेहरा नहीं दिख रहा लेकिन पर्सनैलिटी देख यार,’’ कहते हुए कनिष्क सुमित को उस लड़की की तसवीर दिखाने लगा.

‘‘तो तू ने बात नहीं की?’’ सुमित बोल उठा.

‘‘नहीं न, यही तो प्रौब्लम है. लेकिन मैं ने उस का इंस्टा यूजरनेम देखा था और उसे रिक्वैस्ट भी भेज दी. अब वह एक्सैप्ट कर ले, तो कुछ बात बने.’’

‘‘हम्म, लेट्स सी.’’

आगे पढ़ें- कनिष्क पूरा दिन इंतजार करता रहा. लेकिन…

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा: भाग-3

वह कालेज पहुंचा और अपनी कैंटीन में जा कर बैठ गया. उस का अब क्लास में जाने का भी मन नहीं था. कुछ मिनटों बाद ही सुमित वहां आ गया.

‘‘यार, बड़ी गड़बड़ हो गई,’’ कनिष्क ने कहा.

‘‘क्या हो गया?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘वह लड़की याद है कल वाली, उस से मिला आज मैं.’’

‘‘ओहहो, यह कैसे हो गया, कैसा रहा सब. नाम क्या है उस का? नंबर लिया या नहीं?’’ सुमित एक के बाद एक सवाल करने लगा.

‘‘रीतिका नाम है उस का और नंबर मांगता मैं आज लेकिन… यार उस का चेहरा… यह देख,’’ कनिष्क ने फोन खोल रीतिका की इंस्टा पर जितनी तसवीरें थीं सुमित को दिखाईं.

तसवीरें देख कर सुमित का मुंह भी खुला का खुला रह गया. उस के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा, ‘‘भाईसाहब यह क्या है, कैसे, क्यों, मतलब यह कैसे हुआ?’’

‘‘यार, मुझे क्या पता. मैं बस उस की शक्ल नहीं देख पा रहा अब. मुझे कल ही उस की शक्ल दिख जाती तो ऐसा नहीं होता न.’’

‘‘तो कल तू ने शक्ल कैसे नहीं देखी? इंस्टाग्राम पर तो तुझे कल भी शक्ल दिख ही गई होगी.’’

‘‘उस ने मुझे फंसाया है,’’ कनिष्क बोल उठा.

‘‘क्या मतलब?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘पहले तो उस ने मेरी रिक्वैस्ट एक्सैप्ट नहीं की ताकि मैं उस की शक्ल न देख पाऊं, फिर इतनी मीठीमीठी बातें कीं मुझ से, लेकिन यह नहीं बताया कि उस की शक्ल ऐसी है. अब तो मुझे लग रहा है कल मेरे बगल में भी वह जानबूझ कर ही बैठी होगी और अपना यूजरनेम भी जान कर ही दिखाया होगा. आजकल की लड़कियां इतनी चालाक हैं न कि क्या बताऊं…’’ कनिष्क लगातार बोले ही जा रहा था कि उस के फोन पर इंस्टाग्राम का नोटिफिकेशन आ गया.

उस ने फोन खोला तो देखा रीतिका का मैसेज था, ‘‘हाय, मुझे तुम्हें देख कर लगा था तुम अलग हो पर तुम भी सब की तरह ही निकले. सौरी, मुझे तुम से बात करने से पहले अपनी शक्ल दिखा देनी चाहिए थी ताकि आज सुबह जो हुआ वह न होता. मेरी शक्ल के आगे तुम मेरी सारी खूबियां भूल गए होगे, है न? तुम पहले नहीं हो जिस ने ऐसा किया है. मेरा चेहरा बचपन से ही ऐसा है और यकीन मानो, मेरे लिए भी इसे देखना एक वक्त पर बहुत मुश्किल था, लेकिन अब नहीं है. तुम्हें मुझ से बात करने की या मुझे आगे जाननेसमझने की कोई जरूरत नहीं है, एक दिन में कौन सा तुम और मैं एकदूसरे को इतना जानते ही हैं जो किसी तरह की कोई मुश्किल होगी. चिल्ल करो.’’

कनिष्क और सुमित दोनों ने ही यह मैसेज पढ़ा. कनिष्क ने मैसेज पढ़ कर रिप्लाई किए बिना ही फोन बंद कर दिया.

‘‘तू रिप्लाई नहीं करेगा?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ कनिष्क बोला.

‘‘पर क्यों नहीं?’’ सुमित हैरान था.

‘‘तू ने देखा नहीं? एक तो इस की शक्ल इतनी बुरी है ऊपर से इतना घमंड, इतना एटीट्यूड, किस बात का? पहले खुद मुझे फंसाने की कोशिश की अब मुझे इमोशनल करने की कोशिश कर रही है अपना दुखड़ा सुना कर. ‘मुझे लगा तुम अलग हो’ इस का क्या मतलब है. खुद की शक्ल ऐसी है तो मैं क्या करूं. मुझे न इस से कोई बात करनी है न इस को देखना है. पता नहीं कौन सी घड़ी में मुझे यह अच्छी लग गई,’’ कनिष्क जिस मुंह से कल तक फूल गिरा रहा था, आज जहर उगल रहा था.

‘‘तू यह बोल क्या रहा है, कुछ सोच भी रहा है? तू उस के पीछे था, तू ने उसे सामने से अप्रोच किया, अब तू कह रहा है कि उस में सैल्फरिस्पैक्ट तक नहीं होनी चाहिए क्योंकि उस की शक्ल बुरी है. तू ही था न जिस ने पिछले साल एसिड अटैक पर भाषण दिया था स्टेज पर और कहा था कि खूबसूरती सीरत में होती है सूरत में नहीं, अब अपनी बात से ऐसे कैसे पलट रहा है.’’

‘‘यार, तू मेरा दोस्त है या उस का?’’ कनिष्क ने चिढ़ते हुए कहा.

‘‘हूं तो तेरा ही पर अब लग रहा है कि क्यों हूं. तेरी सारी खूबियां तेरी घटिया सोच के आगे फीकी पड़ गई हैं और यकीन मान, तू परफैक्ट नमूना है इस बात का कि लोग शक्ल से सुंदर हों तो जरूरी नहीं मन से भी हों.’’

‘‘मुझ से इस तरह बात करने की कोई जरूरत नहीं है सुमित,’’ कनिष्क ने कहा.

‘‘मेरे आगे किसी के बारे में इस तरह की बात करने की तुझे भी कोई जरूरत नहीं है. मैं तेरा दोस्त हूं, इस का मतलब यह नहीं तेरी हर गलतसलत बातें सुनूंगा. और पता है, मैं खुश हूं कि वह लड़की  बच गई. क्या कौन्फिडैंस है उस में. तुझ जैसे लड़के की गर्लफ्रैंड बनती तो आत्मग्लानि और इंसिक्योरिटी से भर जाती.’’ सुमित अपनी बात कह कर चला गया और कनिष्क गुस्से से भर गया. उस ने फोन उठाया और इंस्टाग्राम से रीतिका को ब्लौक कर दिया.

उस शाम कनिष्क न चाहते हुए भी बारबार रीतिका के बारे में ही सोच रहा था. उसे सुमित की कही बातें भी याद आ रही थीं. कनिष्क ने फोन उठाया और रीतिका को अनब्लौक कर मैसेज टाइप किया, ‘सौरी, मैं ने इतनी बुरी तरह बिहेव किया.’ कनिष्क के मैसेज भेजने के कुछ ही सैकंड्स में उसे रीतिका का रिप्लाई आया, ‘कोई बात नहीं.’

कनिष्क के चेहरे पर एक बार फिर मुसकराहट लौट आई थी. एक बार फिर उन दोनों की बातों का सिलसिला चल पड़ा था.

‘अपना नंबर ही दे दो, मुझ से इंस्टाग्राम पर बात करना बहुत बोरिंग लगता है,’ कनिष्क ने कहा तो रीतिका ने उसे अपना नंबर दे दिया. उन दोनों ने फिर कभी उस सुबह की बात नहीं की लेकिन फिर कभी मैं और तुम से हम होने का खयाल भी दोनों के जेहन में नहीं आया. कनिष्क इस बारे में बात नहीं करना चाहता था और रीतिका की अब हिम्मत नहीं थी इस बारे में कुछ कहने की. वह चाहे जितनी भी मजबूत थी लेकिन रिजैक्शन सहने का डर उस में अंदर तक घर कर चुका था. खैर, दोनों को ही एक नया दोस्त मिल चुका था. कभीकभी दोनों साथ मैट्रो से राजीव चौक तक जाते तो ढेरों बातें किया करते, उस के बाद अपनेअपने कालेज के रूट पर निकल जाया करते.

‘‘तू ने वह सीरीज देखी जो मैं ने रात में बताई थी?’’ कनिष्क मैट्रो में रीतिका से पूछने लगा.

‘‘हां, उस लड़की  का कैरेक्टर कितना मजबूत था न, मैं तो इंप्रैस हो गई उस से,’’ रीतिका उत्सुकता से भर कर कहने लगी.

‘‘तू भी तो वैसी ही है, मजबूत और नकचढ़ी,’’ कनिष्क कह कर हंसने लगा.

‘‘नकचढ़ी और मैं? तू न, जलता है मुझ से, बस, आया बड़ा,’’ रीतिका झूठा गुस्सा दिखाने लगी.

‘‘तुझ से जलूंगा मैं, हाहा, रहने दे सुबहसुबह हंसा मत.’’

‘‘चल जा न, तंग मत कर मुझे अब.’’

‘‘तुझे तंग नहीं करूंगा तो दिन कैसे कटेगा मेरा,’’ कनिष्क ने कहा तो रीतिका और वह दोनों ही हंस पड़े.

‘‘मैं आज राइटिंग कंपीटिशन में जा रही हूं. जीत गई तो तेरी पार्टी पक्की.’’

‘‘पिज्जा से कम कुछ नहीं चलेगा, पहले ही बता रहा हूं.’’

‘‘हां भुक्खड़, खा लियो पिज्जा.’’

आगे पढ़ें- रीतिका और कनिष्क की दोस्ती हर बीतते दिन के साथ गहरी होती…

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा: भाग-4

रीतिका और कनिष्क की दोस्ती हर बीतते दिन के साथ गहरी होती जा रही थी. कनिष्क डिबेट कंपीटिशंस में जाता रहता था जिस के लिए उसे रिसर्च से हट कर भी सामग्री की जरूरत होती थी. रीतिका क्रिएटिव राइटिंग करती थी, इसलिए वह कनिष्क के हर कंपीटिशन या क्लास रिप्रैजेंटेशन से पहले उस के साथ बैठ उस की मदद किया करती थी. कभी देररात तो कभी अपनी क्लास छोड़ कर उस के लिए लिखा करती थी. एक बार कनिष्क ने उस से कहा भी था, ‘‘तू न होती तो क्या होता मेरा,’’ जिस पर रीतिका ने जवाब दिया, ‘‘तेरा सिर थोड़ा कम दर्द होता.’’

दोनों एकदूसरे के जीवन में अपनीअपनी जगह बना चुके थे. रीतिका कनिष्क के मैसेज का इंतजार किया करती तो कनिष्क उस से बात किए बिना खुद को अधूरा समझने लगता. रीतिका और कनिष्क एकदूसरे के आदी होते जा रहे थे और इस बीच, न उन्हें किसी साथी की जरूरत महसूस होती न किसी के साथ रिलेशनशिप में आने की. दोनों ही कभी सीरियस रिलेशनशिप में नहीं रहे थे. एकदूसरे के बारे में कुछ महसूस करते भी थे तो अब कहने का मन नहीं था, मन में डर था कि कहीं यह दोस्ती खराब न हो जाए.

दोनों लड़ते भी बहुत थे लेकिन जब दोनों में से कोई एक मनाने आता तो दूसरा बचकाने अंदाज में शिकायत करने लगता और दोनों, लड़ाई का मसला क्या था वह ही भूल जाते. एक बार कनिष्क ने मजाक में रीतिका को बिजी होने के चलते मैसेज नहीं किया और रीतिका ने भी मैसेज करने के बजाय उस के पहले मैसेज करने का इंतजार किया. इस के चलते 2 दिनों बाद कनिष्क ने रीतिका को यह कह दिया कि वह घमंडी है. और यह सुन कर रीतिका ने उसे मतलबी कह दिया. दोनों ने एकदूसरे से पूरा हफ्ता बात नहीं की.

होली आ चुकी थी. होली के दिन कनिष्क ने रीतिका को मैसेज किया, ‘हैप्पी होली, अब तू तो कहेगी नहीं, तो मैं ने सोचा मैं ही गुस्सा थोड़ा किनारे कर मैसेज कर दूं.’

‘फालतू में गुस्सा करेगा तो गुस्सा किनारे भी तो खुद ही को करना पड़ेगा न,’ रीतिका ने रिप्लाई किया.

‘तुझ से तो प्यार करता हूं मैं, गुस्सा नहीं कर सकता क्या?’

‘हां तो, मैं गुस्सा नहीं कर सकती तुझ पर?’ रीतिका ने लिखा.

‘क्यों? तुझे भी मुझ से प्यार है क्या?’

‘और क्या.’

‘कितना?’

‘तुझ से तो ज्यादा ही.’

‘रहने दे, तुझे मेरी याद नहीं आई.’

‘थोड़ी सी तो आई थी,’ रीतिका ने लिखा और हंसने वाली ईमोजी भेज दी. रिप्लाई में कनिष्क ने भी हंसने वाली ईमोजी भेज दी.

बात प्यार शब्द तक आई जरूर थी पर वह दोस्ती के लिए थी या उस से ज्यादा के लिए, यह एकदूसरे से पूछना मुश्किल था दोनों के लिए.

दोनों के थर्डईयर के आखिरी 3 महीने बचे थे. एंट्रैंस की तैयारियां और कालेज के प्रोजैक्ट्स में ही दोनों का वक्त बीत रहा था. कनिष्क के कालेज से ट्रिप जा रही थी शिमला. कनिष्क हर साल ट्रिप पर जाता ही था. पहले जब भी गया था तो आ कर सारी फोटो रीतिका को दिखाई थीं. रीतिका के कालेज से भी ट्रिप जाने वाली थी लेकिन उदयपुर. कनिष्क ने रीतिका से पूछा क्या वह उस के साथ ट्रिप पर चलेगी. कनिष्क की अपने डिपार्टमैंट में इतनी तो चलती ही थी कि वह एकदो लोगों को साथ ला सके. उस ने सुमित को बताया कि वह रीतिका को भी साथ लाना चाहता है तो सुमित खुश हुआ लेकिन वह इस बात को ले कर चिंतित था कि कोई कहीं रीतिका का चेहरा देख उसे कुछ कह न दे. इस पर कनिष्क ने कहा, ‘‘अगर किसी ने रीतिका से कुछ कहा तो उसे जवाब देना आता है. वैसे भी वह जितनी बार भी कालेज आई है किसी ने उसे अटपटा महसूस नहीं कराया, तो अब क्यों कराएगा. चिल्ल कर.’’

रीतिका ने ट्रिप के बारे में सुना तो खुश हो गई. उस ने घर से परमिशन ले ली, ट्रिप के पैसे जमा करा दिए, अपनी सहेली निशा को भी साथ चलने के लिए मना लिया. ट्रिप सुबह 6 बजे कालेज से निकलने वाली थी और अगले 4 दिनों तक सभी को साथ रहना था. बस में रीतिका और निशा एक सीट पर बैठी थीं और कनिष्क उन की बगल वाली सीट पर सुमित के साथ. कनिष्क की नजरें न चाहते हुए भी बारबार रीतिका की तरफ जा रही थीं जिसे सुमित ने नोटिस कर लिया था.

‘‘तू ने उसे बताया या नहीं?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘क्या बताया या नहीं, किस को?’’ कनिष्क ने झिझकते हुए पूछा.

‘‘तू पसंद करता है न उसे, बता क्यों नहीं देता.’’

‘‘यार, उस ने मना कर दिया तो? मतलब मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूं, कैसे कहूं. वह अच्छी लड़की है, समझदार है, तेजतर्रार है, इतनी खूबियां हैं उस में. फिर भी मैं ने उस के साथ इतना बुरा बिहेव किया था शुरू में, याद है न तुझे? अगर हमारी दोस्ती खराब हो गई तो? बहुत मुश्किल है कुछ कह पाना,’’ कनिष्क धीमी आवाज में सुमित से कहने लगा.

‘‘तू अब तक उस बात को ले कर बैठा है? देख, अगर तू उसे उस नजर से देखता है तो बता दे अपने दिल की बात, वह क्या कहती है वह तो उस की मरजी है न.’’

‘‘ठीक है, देखता हूं.’’

शिमला ट्रिप के पहले 3 दिन किसी एडवैंचर से कम नहीं थे. दिन कभी माल रोड पर तसवीरें खींचते बीतता तो कभी कहीं और घूमते. रात में बोनफायर और एक लड़की को ऐसा लगा… तो कभी शाम भी कोई जैसे है नदी बहबहबहबह रही है… जैसे गाने गाते. सब मिल कर नाचे भी तो कितना थे. ट्रिप पर गए प्रोफैसरों से छिपतेछिपाते सब ने बीयर भी तो पी थी. एक दिन तो ग्रुप की एक लड़की तान्या रिज रोड पर इतना तेज गिरी कि उस के दाएं पैर में मोच आ गई. रीतिका उस पूरा दिन उस के पास ही रही उसे सहारा देते हुए. सब जब यहां से वहां घूम रहे थे तो रीतिका तान्या के साथ बैंच पर बैठ उसे हंसाने की कोशिश में लगी हुई थी. कनिष्क उसे देखता तो उस की नादानियों पर तो कभी उस के निस्वार्थ भाव को देख कर मुसकरा देता.

ट्रिप के आखिरी दिन यानी चौथे दिन की रात सभी नाचनेगाने में मग्न थे. होटल की छत पर बड़े स्पीकर्स लगे हुए थे. सभी ने ड्रैसेस पहनी हुई थीं. रीतिका ने ब्लैक पैंसिल ड्रैस पहनी थी जो उस पर बहुत सुंदर लग रही थी. जब स्लो सौंग बजा और सभी कपल डांस करने लगे तो कनिष्क ने रीतिका का हाथ पकड़ उसे अपने पास खींच लिया. उस का एक हाथ रीतिका के हाथों में था तो दूसरा उस की कमर पर. उन दोनों की आंखें एकदूसरे की आंखों में समाई हुई थीं.

कनिष्क और रीतिका छत के कोने में थे. कनिष्क ने कहा, ‘‘यह सब कितना अलग है न, शहर व भीड़ से दूर.’’

‘‘हां, अच्छा महसूस हो रहा है, काश कि वक्त यहीं थम जाए और हम वापस न जाएं.’’

‘‘रीतिका…’’ कनिष्क ने गहरी आवाज में कहा, गाने के मद्धम शोर के बावजूद वे एकदूसरे को अच्छी तरह सुन पा रहे थे.

‘‘हां?’’ रीतिका ने कहा.

‘‘आई लव यू, बस… कब हुआ, कैसे हुआ पता नहीं, लेकिन तुम से प्यार हो गया है मुझे. तुम्हारे साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहता हूं मैं, हमेशा तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं. लड़नाझगड़ना चाहता हूं तुम से, मनाना चाहता हूं तुम्हें. क्या तुम्हें मंजूर है मेरा प्यार?’’ कनिष्क अपने प्यार का इजहार कर चुका था.

‘‘कनिष्क…’’ रीतिका ने हैरान होते हुए कहा.

‘‘कहो…’’ कनिष्क की आंखों में सवाल थे.

‘‘मैं भी तुम्हारे लिए यही सब महसूस करती हूं और यकीन मानो, मैं खुश भी हूं, लेकिन मैं अभी तैयार नहीं हूं,’’ रीतिका ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘मतलब?’’

‘‘मैं ग्रैजुएशन के बाद दिल्ली से बाहर जा रही हूं पढ़ने. या शायद देश से ही बाहर. वक्त बहुतकुछ बदल देता है कनिष्क. अभी तुम मेरे लिए प्यार महसूस कर रहे हो, कल जब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी तो तुम अकेले पड़ जाओगे या हमारे बीच जो कुछ है उसे रिश्ते का नाम दे कर खराब क्यों करना. हम एकदूसरे के जितने करीब हैं उतने हमेशा रहेंगे. मैं, बस, समय मांग रही हूं तुम से. बताओ, करोगे मेरा इंतजार?’’

‘‘हमेशा.’’

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा: भाग-2

कनिष्क पूरा दिन इंतजार करता रहा. लेकिन उस लड़की ने रिक्वैस्ट एक्सैप्ट नहीं की. आखिर उसे खुद को रोका नहीं गया और उस ने उसे मैसेज कर दिया, ‘हाय, आई एम कनिष्क. मैं ने तुम्हें मैट्रो में देखा था, आज तुम मेरे बगल में आ कर बैठी भी थीं. मैं तुम से बात करना चाहता था. और हां, मैं ने तुम्हारी कुछ तसवीरें भी ली थीं, तुम इतनी सुंदर लग रही थीं कि

मैं खुद को रोक नहीं पाया,’ कनिष्क ने इतना लिखा और तसवीरें उस लड़की को भेज दीं.

5 मिनट बाद ही उधर से रिप्लाई आ गया, ‘हाय, ये तसवीरें बहुत खूबसूरत हैं, थैंक्यू.’ कनिष्क तो मानो रिप्लाई देख कर उछल पड़ा. उस ने लिखा, ‘ओह वेल, आई एम ग्लैड. बाई द वे तुम्हारा नाम क्या है?’

‘रीतिका,’ रिप्लाई आया.

‘तुम्हारा नाम भी तुम्हारी तरह ही खूबसूरत है,’ कनिष्क ने लिखा और उस की मुसकराहट मानो जाने का नाम ही नहीं ले रही थी.

‘हाहाहा, इतनी तारीफ?’

‘तुम हो ही तारीफ के काबिल, वैसे मेरा नाम कनिष्क है. मैं हंसराज कालेज का स्टूडैंट हूं, और तुम?’

‘गार्गी कालेज, सैकंड ईयर बीकौम,’ रीतिका ने उधर से लिखा.

‘ओहह, इंप्रैसिव.’

‘थैंक्स.’

कनिष्क सोच में पड़ गया कि अब क्या लिखे. उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि अब आगे क्या कहे सो, वह पूछ उठा, ‘तुम ने अपना यूजरनेम टोस्का क्यों रखा?’

‘मुझे इस का अर्थ पसंद है, मैं खुद को इस शब्द से कनैक्ट कर पाती हूं.’

‘मैं ने इस शब्द को गूगल किया था. यह रूसी शब्द है जिस का अर्थ है अनंत दुख, दर्द, पीड़ा. आखिर इतने दुखी शब्द से तुम कनैक्ट कैसे कर लेती हो?’

‘बस, कर लेती हूं, कोई विशेष कारण नहीं है इस के पीछे.’

‘अच्छा, तुम्हें किताबें पढ़ना भी पसंद है न?’

‘हां, बेहद.’

‘अच्छा सुनो?’ कनिष्क ने लिखा.

‘कहो,’ रीतिका ने कहा.

‘तुम ने अब तक मेरी रिक्वैस्ट एक्सैप्ट नहीं की है, मैं तुम्हारी प्रोफाइल नहीं देख पा रहा हूं.’

‘हां, नैटवर्क में कुछ प्रौब्लम है शायद. नैटवर्क ठीक होते ही एक्सैप्ट कर लूंगी.’

‘ओह, कोई बात नहीं. वैसे एक बात कहूं?’

‘कहो.’

‘तुम्हें देखते ही तुम पर क्रश आ गया था मुझे,’ कनिष्क खुद को कहने से रोक नहीं पाया.

‘सचमुच?’

‘हां, सच. तुम ने तो मुझे बिलकुल नोटिस नहीं किया था वैसे.’

‘ऐसा तो कुछ नहीं है. तुम अपना फोन हाथ में ले कर बैठे थे, बारबार मेरी तरफ देख रहे थे. तुम ने ग्रीन शर्ट पहनी थी चैक वाली. ब्लैक स्पोर्ट्स शूज और ब्लू जींस. मैं तुम्हारे बगल में आ कर बैठी थी तो तुम्हारे चेहरे पर मुसकान आ गई थी.’

रीतिका का मैसेज देख कर कनिष्क सातवें आसमान पर पहुंच गया. वे दोनों रातभर एकदूसरे से बातें करते रहे. कौन सा गाना पसंद है, खाने में क्या पसंद है, कालेज की ऐक्टिविटीज, दोस्तयार. लगभग हर टौपिक पर दोनों बातें करते रहे. देखतेदेखते कब सुबह के 4 बज गए, दोनों को पता ही नहीं चला.

‘वैसे किताबें किस तरह की पढ़ती हो तुम, फिक्शन या नौनफिक्शन?’

‘दोनों ही, लेकिन मुझे फिक्शन ज्यादा पसंद है.’

‘ऐसा क्यों? हकीकत से बेहतर कल्पनाएं लगती हैं तुम्हें?’

‘हकीकत मुझे डराती है.’

‘अच्छा, फिर बीकौम क्यों ली तुम ने? उस में तो सब हकीकत ही है, कुछ कल्पना नहीं है.’ कनिष्क ने चुटकी लेने के अंदाज में पूछा.

‘हाहा, टौपर थी मैं स्कूल में और फर्स्ट सैमेस्टर की भी.’

‘तुम तो समझदार भी हो मतलब.’

‘वो तो मैं हूं.’

‘कल मिलोगी?’ कनिष्क ने मैसेज किया. उधर से मैसेज का जवाब आया, ‘सुबह

8:55, सुभाष नगर मैट्रो स्टेशन.’

‘मिलते हैं,’ आखिरी मैसेज में कनिष्क ने छोटा सा दिल भी भेज दिया और उधर से भी रिप्लाई में दिल आया तो उस की खुशी और बढ़ गई.

अगली सुबह कनिष्क 8:40 पर ही मैट्रो पर पहुंच गया. वह इंतजार में था कि कब रीतिका आए और वह उस का चेहरा देखे, उस से हाथ मिलाए, बातें करे. उस ने सुबह से अब तक रीतिका को कोई मैसेज नहीं भेजा. उसे लगा, कहीं वह ज्यादा उत्सुकता दिखाएगा तो रीतिका उसे डैसप्रेट न समझने लगे. वह मैट्रो में नवादा से चढ़ा था और लगभग 5 मिनट में ही सुभाष नगर पहुंच गया था. वह सुभाष नगर मैट्रो स्टेशन के प्लैटफौर्म पर रखी बैंच पर बैठ गया. उस की नजरें बारबार रीतिका के इंतजार में दाईं ओर मुड़ रही थीं.

वह सोच रहा था कि रीतिका से क्या कहेगा, हाय कैसी हो, नहीं यह नहीं. हाय यू लुक ब्यूटीफुल, नहीं यह तो बड़ा फ्लर्टी साउंड कर रहा है. हैलो, आज तो तुम कल से भी ज्यादा सुंदर लग रही हो, हां परफैक्ट, कनिष्क सब सोच ही रहा था कि एक लड़की उस के सामने आ कर रुक गई. वह समझ गया कि यह रीतिका है. आज उस ने पीला टौप पहना हुआ था, बाल खोले हुए थे और चेहरे पर अब भी मास्क था. रीतिका की आंखें खुशी से चमचमाती हुई दिख रही थीं. कनिष्क की आंखों में उस से मिलने की ललक साफसाफ झलक रही थी.

‘‘हाय,’’ रीतिका ने कहा और हाथ आगे बढ़ाया.

‘‘हैलो,’’ कनिष्क ने कहते हुए हाथ मिलाया. वह कुछ और कह पाता उस से पहले ही रीतिका ने अपना मास्क उतारना शुरू कर दिया. कनिष्क का चेहरा अचानक पीला पड़ गया. वह रीतिका का चेहरा देख कर दंग रह गया. रीतिका के होंठों का आकार बिगड़ा हुआ था, वे कटेफटे हुए लग रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो कोई हादसा हुआ हो उस के साथ. उस की सारी खूबसूरती उस के होंठों की बदसूरती से धरी की धरी रह गई. कनिष्क की आंखें फटी हुई थीं. कुछ कहने के लिए जैसे उस की जबान पर ताले पड़ गए थे.

रीतिका शायद समझ चुकी थी कनिष्क के मन का हाल. उस ने कहा, ‘‘ओह, मैं अपने नोट्स घर भूल गई हूं आज सबमिट करने थे कालेज में. मैं तुम से बाद में मिलती हूं, तुम जाओ कालेज के लिए लेट हो जाओगे वरना,’’ रीतिका ने बनावटी मुसकराहट के साथ कहा.

कनिष्क ने ओके कहा और मैट्रो उस के सामने आ कर रुकी ही थी कि वह उस में चढ़ गया. पूरे रास्ते वह सोचता रहा कि अब क्या करे. अब उसे रीतिका की खूबसूरती नजर नहीं आ रही थी बल्कि उस के चेहरे का वह दाग बारबार उस की आंखों के सामने आ रहा था. उस ने फोन चैक किया तो रीतिका उस की फौलो रिक्वैस्ट एक्सैप्ट कर चुकी थी. उस ने उस की प्रोफाइल देखी तो एक बार फिर उस के होंठों की जगह मांस के लोथड़े को देख उस का मन खीझ उठा.

आगे पढ़ें- वह कालेज पहुंचा और अपनी…

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