शादी को लेकर परिवार को कैसे मनाएं?

सवाल

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. 2 वर्ष पहले मेरे पिता मेरे लिए एक विवाह प्रस्ताव लाए थे. लड़का पढ़ा लिखा और काफी योग्य था, पर परले दर्जे का घमंडी था. मैं ने उस के लिए मना कर दिया. फिर मेरे चाचा ने एक लड़का तलाशा. लड़का हर तरह से ठीक था. अकसर हमारे यहां आता जाता था.

मैं उस से प्यार करने लगी. इसी बीच हम से गलती हो गई. हम ने संबंध बना लिया और मैं गर्भवती हो गई. घर में कोई बताने वाला नहीं था. क्या करें, क्या न करें सोचते सोचते 3 महीने बीत गए. हमें कुछ समझ नहीं आया, तो हम घर से भाग गए.

वहीं मैं ने एक बेटे को जन्म दिया. खबर मिलने पर पिता आ कर बच्चे का नामकरण वगैरह कर के हमें घर ले आए. अब वे बात बात पर मुझे और मेरे पति को खरीखोटी सुनाते रहते हैं. हम माफी भी मांग चुके हैं. बताएं क्या करें?

जवाब

माता पिता अपने बच्चों का हमेशा भला चाहते हैं. इसीलिए आप के द्वारा 2 बार गलती पहली विवाहपूर्व गर्भधारण करना और दूसरी घर से भाग जाने की करने पर भी वे आप को आप के बच्चे सहित घर ले आए. हमेशा सामने देख कर पिता यदि गुस्से में कभी कड़वी बात कह देते हैं, तो आप को उसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए.

यदि आप से सहन नहीं होता, तो आप को पति के साथ रहने की कहीं और व्यवस्था कर लेनी चाहिए. दूर होने से मन की कड़वाहट कम हो जाती है और संबंधों में मधुरता लौट आती है.

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प्यार का चसका

शहर के कालेज में पढ़ने वाला अमित छुट्टियों में अपने गांव आया, तो उस की मां बोली, ‘‘मेरी सहेली चंदा आई थी. वह और उस की बेटी रंभा तुझे बहुत याद कर रही थीं. वह कह गई है कि तू जब गांव आए तो उन से मिलने उन के गांव आ जाए, क्योंकि रंभा अब तेरे साथ रह कर अपनी पढ़ाई करेगी.’’

यह सुन कर दूसरे दिन ही अमित अपनी मां की सहेली चंदा से मिलने उन के गांव चला गया था.

जब अमित वहां पहुंचा, तो चंदा और उन के घर के सभी लोग खेतों पर गए हुए थे. घर पर रंभा अकेली थी. अमित को देख कर वह बहुत खुश हुई थी.

रंभा बेहद खूबसूरत थी. उस ने जब शहर में रह कर अपनी पढ़ाई करने की बात कही, तो अमित उस से बोला, ‘‘तुम मेरे साथ रह कर शहर में पढ़ाई करोगी, तो वहां पर तुम्हें शहरी लड़कियों जैसे कपड़े पहनने होंगे. वहां पर यह चुन्नीवुन्नी का फैशन नहीं है,’’ कह कर अमित ने उस की चुन्नी हटाई, तो उस के हाथ रंभा के सुडौल उभारों से टकरा गए. उस की छुअन से अमित के बदन में बिजली के करंट जैसा झटका लगा था.

ऐसा ही झटका रंभा ने भी महसूस किया था. वह हैरान हो कर उस की ओर देखने लगी, तो अमित उस से बोला, ‘‘यह लंबीचौड़ी सलवार भी नहीं चलेगी. वहां पर तुम्हें शहर की लड़की की तरह रहना होगा. उन की तरह लड़कों से दोस्ती करनी होगी. उन के साथ वह सबकुछ करना होगा, जो तुम गांव की लड़कियां शादी के बाद अपने पतियों के साथ करती हो,’’ कह कर वह उस की ओर देखने लगा, तो वह शरमाते हुए बोली, ‘‘यह सब पाप होता है.’’

‘‘अगर तुम इस पापपुण्य के चक्कर में फंस कर यह सब नहीं कर सकोगी, तो अपने इस गांव में ही चौकाचूल्हे के कामों को करते हुए अपनी जिंदगी बिता दोगी,’’ कह कर वह उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘तुम खूबसूरत हो. शहर में पढ़ाई कर के जिंदगी के मजे लेना.’’

इस के बाद अमित उस के नाजुक अंगों को बारबार छूने लगा. उस के हाथों की छुअन से रंभा के तनबदन में बिजली का करंट सा लग रहा था. वह जोश में आने लगी थी.

रंभा के मांबाप खेतों से शाम को ही घर आते थे, इसलिए उन्हें किसी के आने का डर भी नहीं था. यह सोच कर रंभा धीरे से उस से बोली, ‘‘चलो, अंदर पीछे वाले कमरे में चलते हैं.’’ यह सुन कर अमित उसे अपनी बांहों में उठा कर पीछे वाले कमरे में ले गया. कुछ ही देर में उन दोनों ने वह सब कर लिया, जो नहीं करना चाहिए था.

जब उन दोनों का मन भर गया, तो रंभा ने उसे देशी घी का गरमागरम हलवा बना कर खिलाया. हलवा खाने के बाद अमित आराम करने के लिए सोने लगा. उसे सोते हुए देख कर फिर रंभा का दिल उसके साथ सोने के लिए मचल उठा.

वह उस के ऊपर लेट कर उसे चूमने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘तुम्हारा दिल दोबारा मचल उठा है क्या?’’

‘‘तुम ने मुझे प्यार का चसका जो लगा दिया है,’’ रंभा ने अमित के कपड़ों को उतारते हुए कहा. इस बार वे कुछ ही देर में प्यार का खेल खेल कर पस्त हो चुके थे, क्योंकि कई बार के प्यार से वे दोनों इतना थक चुके थे कि उन्हें गहरी नींद आने लगी थी.

शाम को जब रंभा के मांबाप अपने खेतों से घर लौटे, तो अमित को देख कर खुश हुए.

रंभा भी उस की तारीफ करते नहीं थक रही थी. वह अपने मांबाप से बोली, ‘‘अब मैं अमित के साथ रह कर ही शहर में अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी.’’

यह सुन कर उस के पिताजी बोले, ‘‘तुम कल ही इस के साथ शहर चली जाओ. वहां पर खूब दिल लगा कर पढ़ाई करो. जब तुम कुछ पढ़लिख जाओगी, तो तुम्हें कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’’

‘‘फिर किसी अच्छे घर में इस की शादी कर देंगे. आजकल अच्छे घरों के लड़के पढ़ीलिखी बहू चाहते हैं,’’ रंभा की मां ने कहा, तो अमित बोला, ‘‘मैं दिनरात इसे पढ़ा कर इतना ज्यादा होशियार बना दूंगा कि फिर यह अच्छेअच्छे पढ़ेलिखों पर भारी पड़ जाएगी.’’

रंभा की मां ने अमित के लिए खाने को अच्छेअच्छे पकवान बनाए. खाना खाने के बाद बातें करते हुए उन्हें जब रात के 10 बज गए, तब उस के सोने का इंतजाम उन्होंने ऊपर के कमरे में कर दिया.

जब अमित सोने के लिए कमरे में जाने लगा, तो चंदा रंभा से बोली, ‘‘कमरे में 2 पलंग हैं. तुम भी वहीं सो जाना. वहां पर अमित से बातें कर के शहर के रहनसहन और अपनी पढ़ाईलिखाई के बारे में अच्छी तरह पूछ लेना.’’

यह सुन कर रंभा मुसकराते हुए बोली, ‘‘जब से अमित घर पर आया है, तब से मैं उस से खूब जानकारी ले चुकी हूं. पहले मैं एकदम अनाड़ी थी, लेकिन अब मुझे इतना होशियार कर दिया है कि मैं अब सबकुछ जान चुकी हूं कि असली जिंदगी क्या होती है?’’

यह सुन कर चंदा खुशी से मुसकरा उठी. वे दोनों ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए थे. कमरे में जाते ही वे दोनों एकदूसरे पर टूट पड़े. शहर में आ कर अमित ने रंभा के लिए नएनए फैशन के कपड़े खरीद दिए, जिन्हें पहन कर वह एकदम फिल्म हीरोइन जैसी फैशनेबल हो गई थी. अमित ने एक कालेज में उस का एडमिशन भी करा दिया था.

जब उन के कालेज खुले, तो अमित ने अपने कई अमीर दोस्तों से उस की दोस्ती करा दी, तो रंभा ने भी अपनी कई सहेलियों से अमित की दोस्ती करा दी. गांव की सीधीसादी रंभा शहर की जिंदगी में ऐसी रम गई थी कि दिन में अपनी पढ़ाई और रात में अमित और उस के दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती करती थी.

जब रंभा शहर से दूसरी लड़कियों की तरह बनसंवर कर अपने गांव जाती, तब सभी लोग उसे देख कर हैरान रह जाते थे. उसे देख कर उस की दूसरी सहेलियां भी अपने मांबाप से उस की तरह शहर में पढ़ने की जिद कर के शहर में ही पढ़ने लगी थीं.

अब अमित उस की गांव की सहेलियों के साथ भी मौजमस्ती करने लगा था. उस ने रंभा की तरह उन को भी प्यार का चसका जो लगा दिया था.

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मम्मियां: जब रिश्तों में दूरी बढ़ाएं

मां बेटी का रिश्ता बहुत प्यारा रिश्ता है. हर मां दिल से चाहती है कि उस की बेटी अपनी ससुराल में बहुत खुश रहे, इसलिए वह बचपन से ही अच्छे संस्कार देती है परंतु समय के साथ इस सीख में बहुत फर्क आ गया है. आधुनिक परिवेश में विवाह के माने बदल गए हैं. जहां पहले समस्या लड़की के एक नए व अनजाने ससुराल के माहौल को समझने और तालमेल बैठाने में आती थी, वहीं अब लड़केलड़की की आपस में ही बन जाए तो शादी सफल मानी जाती है.

आजकल नई पीढ़ी के पास किताबी ज्ञान और डिगरियां तो बहुत हैं परंतु व्यावहारिक बुद्धि का अभाव है. शादी के बाद पतिपत्नी दोनों को ही काफी जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं, इस के लिए दोनों का आपसी सहयोग बेहद आवश्यक है, परंतु देखा यह जा रहा है कि लड़कियां पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को भूल कर बातबात पर एकदूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में लग जाती हैं.

शादी को सफल बनाने में जहां पतिपत्नी दोनों की समझदारी काम देती है वहीं घर वालों का सकारात्मक रवैया भी काफी मददगार होता है.

मतभेद बढ़ाता है मोबाइल

पतिपत्नी के रिश्ते में फोन के कारण अकसर कड़वाहट आ जाती है. आजकल फोन के माध्यम से लड़की के मायके वाले, दोस्त आदि लगातार संपर्क में रहते हैं. हर समय बेटी का फोन बजता ही रहता.

न्यायाधिकारी मालिनी शुक्ला का कहना है कि आजकल बेटी ससुराल पक्ष की हर छोटीछोटी बात अपनी फ्रैंड या दूसरों से डिस्कस करती है और फिर वे अपनी राय भी थोपते है, अपनी सलाह भी देते हैं कि तुम्हें जरा भी दबने की जरूरत नहीं है. तुम घूमने चली जाया करो.

सारी जिम्मेदारी तुम्हारी थोडे़ ही है आदि भड़काऊ बातें कर के उस के मन में उलटासीधा भरते रहते हैं. इस तरह की बातें पतिपत्नी के बीच में गलतफहमियां पैदा कर के रिश्ते में दरार डाल देती हैं.

हर घर का अपना तरीका होता है, अपना बजट होता है और अपनी प्राथमिकताएं होती हैं. संपन्न परिवार से आई आरुषि ससुराल मैं कदम रखते ही कभी परदे बदलने की बात करती तो कभी सोफा तो कभी पति से गाड़ी लेने की डिमांड करती. पति अमोल उसे प्यार से समझने का प्रयास करता रहा. लेकिन उस की फ्रैंड्स और रिश्तेदारों का रोज कौल पर कहना. परदे कितने पुराने हैं. सोफा तो जाने किस जमाने में खरीदा गया होगा आदि बातों ने दोनों के प्यारभरे रिश्ते में दरार पैदा कर दी.

झगड़ों के छोटेछोटे कारण

अमोल की अपनी सोच थी कि वह कर्ज ले कर घी पीयो पर विश्वास नहीं करता. वह अपने भविष्य के प्रति जागरूक था. वह अपना फ्लैट खरीदने की योजना के अनुसार बचत कर रहा था. परंतु आरुषि की रोजरोज की अनावश्यक डिमांड्स की वजह से दोनों के रिश्ते बिगड़ गए. आज आरुषि मायके में रह रही है और उस घड़ी को कोस रही है, जब उस ने फुजूल की बातों में आ कर अपने सुखी संसार में आग लगा ली.

डिस्ट्रिक जज रूपा महर्षि कहती हैं कि फोन के कारण दूसरों के अनाधिकृत हस्तक्षेप ने बेटियों के जीवन में कटुता घोल दी है. यह बीमारी अब शहरों से गांवों तक पहुंच चुकी है. घरेलू हिंसा के मुकदमों में सुलहसमझते के प्रयास में झगड़ों के छोटेछोटे कारण सामने आते हैं, जिन की वजह दूसरों का लगातार संपर्क में रहना होता है.

उन का कहना है कि आजकल की वीडियोकौल के कारण घर के हर कोने में मायके वालों की नजर पड़ने लगी है और बेटी को किचन में देखते ही हितैषी बन कर बहन या भाभी कहेगी, ‘‘तुम्हारी सास का मैनेजमैंट बिलकुल अच्छा नहीं है. खुद तो एसी में बैठी गप्पें मार रही हैं, मेरी लाडली बेचारी गरमी में पसीना बहा रही है.’’

‘‘पार्टी में तेरी ननद ने तेरी ड्रैस पहन रखी थी. उस ने पहन कर पुरानी कर दी, अब जब तुम पहनोगी तब सोचेंगे कि तुम ने नीरजा से मांग कर पहनी है.’’

‘‘रोहन तो दिनभर अपनी मां और भाईभाभी के आगेपीछे घूमता रहता है. तुझे प्यार भी करता है कि नहीं?’’

‘‘लवी तुम ने अपना हार सास को क्यों पहनने को दिया?’’

‘‘उन्हें अच्छा लग रहा था. मैं भी तो मम्मीजी का हार पहना था… दीदी बेमतलब की बात मत किया करो,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

इन्हें कौन समझाए

ममतामए मोह से भरे हितचिंतक का दिखावा करने वालों को कौन समझए कि बेटी स्वयं समझदार है. उस के मुंह में भी जबान है. वह खुद मैनेज कर लेगी. हर घर के अपने तौरतरीके होते हैं. वह यदि खुश है, उसे काम ज्यादा करना पड़ रहा है, तो वह ससुराल वालों के दिल में सदा के लिए जगह बना लेगी और इस के लिए उन्हें भी तो तारीफ मिलेगी कि बेटी को कितने अच्छे संस्कार दिए हैं.

उन्नाव निवासी उर्वशी की शादी 6 महीने पहले लखनऊ के सुदेश से खूब धूमधाम से हुई थी, लेकिन कुछ महीनों में ही दोनों का झगड़ा कोर्ट तक पहुंच गया. जब समझते के लिए प्रोबेशन अधिकारी के पास पहुंचा तो काउंसलिंग के दौरान उर्वशी ने बताया कि भाभी ने नया लहंगा खरीदा तो उन के सामने वह नीचा नहीं देखना चाहती थी. उस के चचेरे भाई की शादी थी, तो वह जबरदस्ती नया लहंगा खरीदने के लिए जोर डाल रही थी. सुदेश का कहना था कि शादी वाला लहंगा या दूसरी कोई साड़ी पहन लो, लेकिन लहंगे पर 40-50 हजार रुपए खर्च करना सरासर बेवकूफी है. शादी का लंहगा एक बार ही पहना है इसलिए वही पहन लो.

बस बहस बढ़ती चली गई और वह रूठ कर मायके चली गई. फिर तो वकील जो कहते रहे वही सारे इलजाम लगाए जाते रहे.

कानून का बेजा इस्तेमाल

कानपुर के किदवई नगर की उच्चशिक्षित सोमा की शादी प्रयागराज के दिलीप से हुई. दोनों ने लव मैरिज की थी. घर वाले भी काफी सुलझे हुए थे. दोनों बहुत प्यार से 1 साल तक रहते रहे, फिर दूसरों की बातों में आ कर आपस में झगड़ा शुरू हो गया.

एक दिन किसी बात पर दिलीप ने नाराज पत्नी का हाथ पकड़ लिया. बस घरेलू हिंसा का मामला दर्ज करवा दिया गया. काउंसलिंग के समय सोमा ने बताया कि दिलीप उसे बहुत प्यार करता है. उस ने उसे कभी भी नहीं मारा. सब लोग कहते हैं कि हर समय तुम काम में ही लगी रहती हो. तुम्हें मुझ से बात करने की भी फुरसत नहीं रहती. दिन भर के लिए कामवाली रख लो और आराम से रहो. धीरेधीरे दूसरों की सीख की वजह से घर के काम करने बंद कर दिए और फिर इसी कारण घर में तनाव, अव्यवस्था और झगड़े होने लगे. हंसताखेलता परिवार टूटने की कगार पर पहुंच गया.

‘‘गूंज… गूंज कहां हो? सुबहसुबह फोन पर लग जाती हो. मेरी शर्ट प्रैस नहीं है. बटन भी तुम ने नहीं लगाया,’’ राहुल जोर से चिल्ला रहा था.

गूंज के कुलीग का फोन था. उसे बहुत बेइज्जती महसूस हुई. वह गुस्से में बोली, ‘‘तुम

से मैं ने कितनी बार कहा है कि जब मैं फोन पर रहूं तो तुम चिल्लाया मत करो, लेकिन तुम भला क्यों मानो.’’

राहुल नाराज हो कर औफिस चला गया. गूंज का मूड खराब था. उधर सास ने नाश्ता बनाया था और राहुल नाराज हो कर गया तो वाजिब था, उन्होंने भी चार बातें सुनाईं उस का मूड दिनभर खराब रहा. औफिस में भी उस का मन नहीं लगा और काम में गलती होने की वजह से बौस की डांट और पड़ गई.

अपनी गलती मानने के बजाय वह सोचती रही कि क्या राहुल अपनी शर्ट प्रैस नहीं कर सकता? अब गूंज हर समय राहुल से अपने काम खुद करने को कहती. राहुल को बिलकुल भी नहीं अच्छा लगता. वह गूंज के रवैए से आहत हो जाता. धीरेधीरे दोनों के रिश्ते में कड़वाहट बढ़ने लगी. आपस की जरा सी नासमझ के कारण रिश्ते में दरार पड़ गई. पति को इतना तो समझना ही चाहिए कि पत्नी फोन पर किसी जरूरी कौल पर ही होगी.

बेटी की हर तकलीफ पर दूसरों का दुखी होना स्वाभाविक और उचित है परंतु ससुराल की छोटीछोटी बातों पर अपनी बेटी का पक्ष लेने पर रिश्तों में कड़वाहट आने में देर नहीं लगती.

एक नई समस्या

एक नई समस्या देखने में आ रही है कि आजकल लड़कियों को घर संभालने की जिम्मेदारी उठाना यह कह कर नहीं सिखाया जाता कि दूसरे घर जाना है. वहां तो काम करना ही होगा, इसलिए अभी आराम करो. जिंदगी भर काम ही करना है.

यही वजह है कि लड़कियां शादी को अपने सपने पूरे करने का साधन मानने लगी हैं. मगर यथार्थ के धरातल पर जब उन के सपने जिम्मेदारियों के नीचे धराशायी हो जाते हैं तो वैवाहिक जीवन से चिढ़ होने लगती है और ससुराल पक्ष का हर व्यक्ति अपना दुश्मन सा दिखने लगता है, जिस का शिकार मुख्य रूप से सास या पति बन जाता है क्योंकि लड़कियों का ज्यादा समय उस के साथ ही बीतता है. लड़कियां आते ही पति और घर पर अपना पूरा अधिकार जमाना चाहती हैं, ऐसे में लड़का यदि मां, बहन, भाई किसी को भी कुछ दिनों तक प्राथमिकता देता है या आर्थिक सहायता करना चाहता है तो लड़की परेशान हो कर बात का बतंगड़ बना कर घर में अशांति फैला देती है. शादी का अर्थ ही है जिम्मेदारी और आपसी तालमेल, इसलिए लड़की को पति और परिवार की जिम्मेदारी और तालमेल से रहते देख कर खुश होने की जरूरत है न कि परेशान होने की.

दूसरों को समझदारी दिखाते हुए बेटी और उस के ससुराल वालों के घर में दखलंदाजी न कर के बेटी को तालमेल बना कर रहने की सीख देनी चाहिए.

हां, यह आवश्यक है कि बेटी को अपने साथ अन्याय या अत्याचार, दुर्व्यवहार सहन नहीं करना है और उस के विरोध में अवश्य आवाज उठानी है, यह समझने की जरूरत है.

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