सोच समझकर करें फाइनेंशियल प्लैनर का चुनाव

बेहतर और सुरक्षित भविष्य के लिए आज हर कोई अपनी जमापूंजी निवेश करना चाहता है. लेकिन मेहनत की गाढ़ी कमाई का निवेश व प्रबंधन बेहद संवेदनशील मसला है. लिहाजा, इस के लिए एक सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. उस का चयन कैसे करें, बता रही हैं ममता सिंह.

निवेश को ले कर लोग काफी जागरूक हो गए हैं. हर व्यक्ति की कोशिश यही रहती है कि वह अपनी मेहनत की कमाई से चार पैसे बचा कर, उस का सही जगह निवेश करे. निवेश के लिए, सही फैसला लेना आसान नहीं है. हर व्यक्ति की परिस्थितियां अलगअलग होती हैं. व्यक्ति को अपनी जरूरत और परिस्थिति के मुताबिक निवेश के विकल्पों का चुनाव करना चाहिए. इस तरह निवेश के लिए हमें सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर की मदद की जरूरत पड़ती है.

सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर वह व्यक्ति है जिस के पास फंड का प्रबंधन करने के लिए एक औपचारिक डिगरी और योग्यता होती है. याद रहे, आप की गाढ़ी कमाई से बचाए गए पैसों का प्रबंधन काफी संवेदनशील मुद्दा है. ऐसे में अपने वित्त के प्रबंधन हेतु काफी अच्छी तरह सोचसमझ कर सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर का चुनाव करना चाहिए. फाइनैंशियल प्लानर को चुनने में कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए :

निवेश के आधार पर करें चुनाव

रमेश एक आईटी इंजीनियर के तौर पर कार्यरत है. वह म्यूचुअल फंड के माध्यम से इक्विटी में निवेश करना चाह रहा था और इस के लिए उसे एक अच्छे फाइनैंशियल प्लानर की तलाश थी. इस मौके पर उस के दोस्त अविनाश ने मदद की और रमेश को अपने फाइनैंशियल प्लानर के बारे में बताया. हालांकि, अब रमेश अपने निवेश के प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं है. नतीजतन, वह अब किसी और सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर की तलाश में है.

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर रमेश के ऐसा करने की क्या वजह हो सकती है. दरअसल, अविनाश के फाइनैंशियल प्लानर की विशेषज्ञता डेट निवेश में है जबकि रमेश इक्विटी में निवेश करना चाहता था. कहने का मतलब यह है कि केवल किसी के कहने भर से आप को फाइनैंशियल प्लानर का चुनाव नहीं करना चाहिए बल्कि आप को अपनी ऐसेट क्लास के हिसाब से फाइनैंशियल प्लानर के पोर्टफोलियो की जांच करनी चाहिए.

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केवल बातों से प्रभावित न हों

– अपने क्लाइंट को प्रभावित करने के लिए कई बार फाइनैंशियल प्लानर शौर्ट में शब्दों का प्रयोग कर के गुमराह करते हैं. उस के शब्दों से लोगों को लगता है कि वह प्लानर काफी काबिल है.

– जबकि एक अच्छा सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर वही होता है जो निवेशक को आसान शब्दों में निवेश के विकल्पों के बारे में समझाए. इस बारे में अर्थशास्त्र कंसल्टिंग की सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर शिल्पी जौहरी कहती हैं कि अच्छा फाइनैंशियल प्लानर वही होता है जो अपने ग्राहकों के वित्तीय लक्ष्यों का अध्ययन करते हुए उन के लिए निवेश प्रोडक्ट चुनता है.

इस के अलावा ग्राहकों को कुछ और बातों का भी ध्यान रखना चाहिए :

– फाइनैंशियल प्लानर सब से पहले आप के वित्तीय लक्ष्यों के बारे में आप से पूछेगा.

– वह आप की वित्तीय स्थिति का अध्ययन करेगा. उदाहरण के तौर पर, वह आप से कर्ज, घरेलू खर्च आदि के बारे में पूछेगा.

– यह सब जानने के बाद वह आप के लिए निवेश की एक योजना बनाएगा.

– अगर कोई फाइनैंशियल प्लानर उपरोक्त चरणों का पालन नहीं कर रहा है और ऊंचा मुनाफा कराने का दावा भी कर रहा है तो इस का मतलब है कि वह आप को गुमराह करने की कोशिश में है.

एक अच्छा फाइनैंशियल प्लानर निवेशकों की इच्छाओं का भी खयाल रखता है. मुद्रा मैनेजमैंट के सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर मनीष अग्रवाल बताते हैं कि फाइनैंशियल प्लानिंग एक संवेदनशील मुद्दा है और सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर वही बन सकता है जिस ने इस के लिए बाकायदा डिगरी ली हो और प्रैक्टिस कर रहा हो. ऐसे में निवेशकों को फाइनैंशियल प्लानर चुनते समय उस की डिगरी की जांच भी कर लेनी चाहिए.

जोखिम से भी अवगत कराए

किसी तरह का निवेश जोखिम मुक्त नहीं होता है. सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर अनूप गुप्ता के मुताबिक, एक अच्छा फाइनैंशियल प्लानर वही होता है जो आप को सभी ऐसेट क्लास में निवेश के फायदे के साथ उन से जुड़े हुए जोखिम के बारे में भी बताए. मान लीजिए कि आप का फाइनैंशियल प्लानर आप से कहे कि आप शेयर बाजार (इक्विटी) में निवेश कर के ज्यादा रिटर्न कमा सकते हैं, तो उसे आप को साथ में यह भी बताना चाहिए कि सभी तरह के ऐसेट क्लास में निवेश की तुलना में सब से ज्यादा जोखिम भी इक्विटी के निवेश में है.

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फाइनैंशियल प्लानर चुनते समय आप को उस का पिछला प्रदर्शन भी देखना चाहिए. उदाहरण के तौर पर जब बाजार ऊपर (बुल मार्केट) जा रहा हो तो सभी अच्छा रिटर्न कमा लेते हैं. हालांकि एक अच्छा फाइनैंशियल प्लानर वही होता है जो गिरते हुए बाजार (बेयर मार्केट) में भी अच्छा पैसा कमा के दिखाए. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आप जिस फाइनैंशियल प्लानर को अपनी पूंजी सौंपने वाले हैं उस के पुराने क्लाइंट कितने संतुष्ट हैं. इस तरह, अच्छा फाइनैंशियल प्लानर चुन कर आप पैसों का निवेश करें.

क्या परिवार नियोजन औपरेशन करा लेना ठीक होगा?

सवाल

मेरे पति की उम्र 32 और मेरी 30 साल है. बेटा 3 साल का और बेटी 6 साल की है. अब हम आगे और संतान के इच्छुक नहीं है. क्या हम में से किसी एक का परिवार नियोजन औपरेशन करा लेना ठीक होगा? क्या उन का औपरेशन कराना अधिक सही रहेगा?

जवाब-

यदि पतिपत्नी यह मन बना लें कि उन का परिवार पूरा है और उन्हें आगे संतान की इच्छा नहीं है तो दोनों में से किसी एक का परिवार नियोजन औपरेशन करा लेना समझदारी वाला फैसला है.

यह औपरेशन स्त्रीपुरुष दोनों में ही आसानी से किया जा सकता है. अगर पतिपत्नी यह मन बना लें कि औपरेशन पत्नी को करवाना है तो इस का सब से अच्छा समय बच्चे को जन्म देने के 48 घंटों के भीतर है. उस समय औपरेशन कराना आसान होता है और स्त्री को आराम भी आसानी से मिल जाता है. यदि किसी स्त्री को सीजेरियन की जरूरत पड़ती है, तो उसी सीटिंग में यह औपरेशन भी किया जा सकता है.

मगर आप चूंकि मां बनने के दौर से गुजर चुकी हैं, इसलिए यदि आप के पति इस औपरेशन के लिए राजी हैं, तो यह निर्णय बेहतर होगा. स्त्री की तुलना में पुरुष में यह औपरेशन अधिक सुगमता से किया जा सकता है.

परिवार नियोजन औपरेशन करने के कई तरीके हैं. हर विधि के पीछे मूल लक्ष्य यही रहता है कि औपरेशन के बाद स्त्रीपुरुष के संतान बीज आपस में न मिल सकें. इसी दृष्टि से स्त्री में डिंबवाही नलियों को और पुरुष में शुक्राणुवाही नलियों पर या तो छल्ला कस कर या शल्यकर्म से काट कर अवरोधित कर दिया जाता है ताकि डिंब और शुक्राणु के मेलमिलाप की स्थिति न बन सके. स्त्री में यह औपरेशन ट्यूबेक्टोमी और पुरुष में यह वैसेक्टोमी के नाम से जाना जाता है.

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ट्यूबेक्टोमी के औपरेशन में पेट के निचले भाग में दोनों ओर आधेआधे इंच का चीरा लगाया जाता है. इस लैप्रोस्कोपिक स्टरलाइजेशन में दूरबीन जैसे विशेष यंत्र से डाक्टर श्रोणिगुहा के भीतर डिंबवाही नलियों को ढूंढ़ कर उन पर छल्ला कस देते हैं. इस ट्यूबेक्टोमी के 2-3 दिनों बाद ही स्त्री सामान्य दिनचर्या में लौट आती है.

वैसेक्टोमी के औपरेशन में जांघ के थोड़ा ऊपर, बिलकुल छोटा सा गेहूं के दाने जितना चीरा लगा कर शुक्राणुवाही नली को बंद कर दिया जाता है. औपरेशन लोकल ऐनेस्थीसिया में ही किया जा सकता है. अगले 15 दिनों तक पुरुष को मात्र यह सावधानी बरतनी होती है कि न वजन उठाए और न साइकिल चलाए.

परिवार नियोजन औपरेशन कराने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि यह युक्ति एक अनपलट उपाय है. कभी बाद में मन बदले और पतिपत्नी फिर से बच्चा करने का मन बनाएं तो यह काम आसान नहीं है. हालांकि तकनीकी स्तर पर अवरोधित शुक्राणुवाही नलियों या डिंबवाही नलियों को फिर से खोलने के लिए रिकेनलाइजेशन औपरेशन किया जा सकता है, पर दुनिया के अच्छे से अच्छे केंद्रों में इस औपरेशन में 20-30% मामलों में ही सफलता मिल पाती है. अत: परिवार नियोजन औपरेशन कराने का निर्णय तभी लेना उचित होता है जब या तो बच्चे थोड़े बड़े हो जाएं या मन बिलकुल स्पष्ट हो कि आगे जैसी भी स्थितियां बनें फिर बच्चा नहीं करेंगे.

कुछ लोग यह सोचते हैं कि परिवार नियोजन औपरेशन कराने के बाद पुरुष की ताकत और स्त्री का नारीत्व ढल जाता है. यह सोच बिलकुल गलत और निराधार है. सचाई यह है कि इस औपरेशन के बाद शरीर का हर अंग लगभग पहले जैसे ही काम करता रहता है. न तो जनन अंगों के आकार में, न ही उन की क्षमता में कोई कमी आती है.

यदि पुरुष यह औपरेशन करवाता है तो औपरेशन के बाद उस की अंडग्रंथियां पहले की ही तरह काम करती रहती हैं. उन में सैक्स हारमोन शुक्राणु का निर्माण पहले जैसा ही होता रहता है. यौन सामर्थ्य भी पहले जैसी रहती है और स्खलन के समय वीर्य का भी उत्सर्जन होता है. फर्क सिर्फ इतना होता है कि अब वीर्य में शुक्राणु नहीं होते.

इसी प्रकार यदि स्त्री यह औपरेशन करवाती है तो उस की डिंबग्रंथियां भी पहले की ही तरह हर मासिकचक्र में सैक्स हारमोन का निर्माण करती हैं. उन में पहले की ही तरह डिंब के पकने और छूटने की भी पूरी तैयारी होती है और मासिकचक्र पूरा होने पर गर्भाशय से रज का भी त्याग होता है. अंतर सिर्फ इतना होता है कि अब डिंब अवरोधित डिंबवाली नली के इस ओर ही रह जाता है, आगे नहीं बढ़ पाता जो उस का शुक्राणु से मिलन हो सके.

औपरेशन करवाने के बाद न तो स्त्री की कामेच्छा, न पुरुष की यौन सामर्थ्य पर कोई बुरा असर पड़ता है. हां, जीवन आगे के लिए परिवार नियोजन विधियों से अवश्य मुक्त हो जाता है. यदि स्त्री यह औपरेशन करवाती है तो औपरेशन के तुरंत बाद प्रजनन के दायित्व से मुक्त हो जाती है और यदि पुरुष औपरेशन करवाए तो यह बात उस पर लागू नहीं होती. औपरेशन के अगले 3 महीनों तक उसे या उस की यौनसंगिनी को कोई न कोई मनपसंद गर्भनिरोधक विधि अपनानी जरूरी है. जब

3 महीने बाद वीर्य जांच से यह सिद्ध हो जाए कि वीर्य में शुक्राणु आने बंद हो गए हैं तभी वह अपनेआप को परिवार नियोजन विधियों से मुक्त मान सकता है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बेबी करें प्लान लेकिन इन बातों का रखें ध्यान

शाहनवाज

फेसबुक पर स्क्रोल करते करते मुझे मेरे एक बहुत पुराने दोस्त राहुल की आई.डी. नजर आई.
पहली से ले कर 7वी क्लास तक वह मेरे साथ मेरी ही क्लास में साथ पढता था. मैंने उस की
आई.डी. ओपन की और उस की फोटो को जूम कर के बड़े गौर से परखा, की यह वाकई में
राहुल है या मेरी नजर का धोखा है. हां, ये मेरा दोस्त राहुल ही था. दरअसल 8वी क्लास में
राहुल के परिवार वाले दिल्ली के लोनी बॉर्डर पर शिफ्ट हो गए थे. ये बात रही होगी 2007 की.
उस समय न तो हमारे घर में फोन था और न ही राहुल के घर, जिस से हम एक दुसरे के
संपर्क में बने रह सकें.

आई.डी. में फोटो कन्फर्म कर लेने के बाद मैंने उसे बिना हीच किचाए मेसेज कर दिया. “हेल्लो,
कैसा है मेरे भाई? मुझे पहचाना?” 5 मिनट बाद (जिस पर मुझे यकीन है की उस ने भी मेरी
आई.डी. खोल कर मेरा फोटो देखने में और पहचानने में समय लगाया होगा) उस का रिप्लाई
आया, “हा भाई, क्यों नहीं पहचानूंगा तुझे. यार इतने सालों बाद बात हो रही है.” सच में इतने
सालों बाद राहुल से बात कर मुझे बड़ा अच्छा लगा, क्योंकि स्कूल के दिनों में राहुल ही मेरे सब
से नजदीकी दोस्तों में से एक हुआ करता था. थोड़ी देर चैट में बात करने के बाद हम दोनों ने
एक दुसरे के मोबाइल नंबर एक्सचेंज किये. और मैंने उसे कॉल कर बात की.

राहुल से बातचीत में उस ने बताया की वह ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद अब गुडगाँव में
किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहा है. उस ने शादी भी कर ली है और वह अपने
पार्टनर के साथ अब लोनी बॉर्डर नहीं बल्कि दिल्ली के द्वारका सेक्टर 21 में शिफ्ट हो गया है.
कुछ देर और बात करने के बाद उस ने मुझे अपने घर पर इंवाइट किया. और बोला की अगर
मैं नहीं आया तो वह फिर कभी मुझ से बात नहीं करेगा. दोस्ती तो बचानी ही थी, इसीलिए मैंने
राहुल को भरोसा दिलाया की मैं जल्द ही उस से मिलने उस के घर आऊंगा.

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समय निकाल कर मैं राहुल के घर, अपने हाथ में छोटा सा फूलों का गुलदस्ता और बच्चों के
लिए गिफ्ट्स ले कर, उस के बताए हुए एड्रेस पर पहुंच गया. घर पर राहुल और कल्पना (राहुल
की पत्नी) ही थे. मैंने अपने हाथ का सारा सामान राहुल और कल्पना के हाथ में थमाया और
राहुल के गले मिला. मेरे गिफ्ट्स देख राहुल ने कल्पना को देखा और कल्पना ने राहुल को.
दोनों साथ में मुस्कुराए और मेरा स्वागत किया. उन की मुस्कराहट देख मैं अपने मन ही मन
सवाल करने लगा की कही मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी. बच्चो वाले गिफ्ट्स तो मैं ले आया
था लेकिन घर में एक भी बच्चा नहीं दिखाई दिया. अंततः मुझे उन की मुस्कराहट का अंदाजा
लग गया, की राहुल और कल्पना को अभी कोई बच्चा नहीं था.

इतने सालों बाद मिले थे, इसीलिए हम तीनों एक साथ बैठ कर मैं और राहुल अपने स्कूल के
पुराने दिनों को याद करने लगे. कुछ देर की बात के बाद कल्पना खाना बनाने के लिए किचन
की तरफ चली गई और रह गए बस मैं और राहुल. मौका देख कर मैंने राहुल से धीमी आवाज
में फुसफुसाया, “यार गलती से मैं बच्चों के गिफ्ट्स ले आया तुम्हारे लिए, हालांकि मैंने पूछा भी
नहीं लेकिन मुझे लगा की शायद तुम्हारे घर बच्चा होगा. इस के लिए बुरा मत मानियो मेरे
भाई.”

राहुल ने बड़े ही हलके अंदाज में, मेरे कंधे पर अपना हाथ रख मुझे भरोसा दिलाया, “अरे यार
कैसी बात कर रहा है तू भी, भला इस के लिए भी कोई बुरा मानता है.” यह बोल कर राहुल ने
नीचे देखते हुए चिंतित भरे स्वर में बताया की कल्पना से उस की शादी हुए 2 साल हो गए.
और पिछले 3 साल से वह गुडगाँव में अपनी इसी मौजूदा कंपनी में काम कर रहा है. वें दोनों ही
बच्चे के लिए राजी तो हो गए है लेकिन 2020 के मार्च के महीने से लगे लॉकडाउन की वजह
से उन के बने सारे प्लान्स गड़बड़ा गए है. एक तो कभी भी नौकरी चले जाने का डर और वहीँ
दूसरी तरफ दुनिया भर के खर्चे. ऐसे में राहुल और कल्पना ने बच्चे के प्लान को कुछ समय के
लिए और टाल दिया है.

राहुल ने बताया की वह अभी जिस फ्लैट में रह रहा है, वह उस ने अपनी कंपनी से ही लोन
लेने के बाद ख़रीदा है. लोन की कई किश्ते चुकाने के बाद अभी भी 10 लाख रूपए कंपनी को
लौटाने हैं. एक तरफ राहुल के सर दुनिया भर का खर्चा और कर्जा. वहीं दूसरी तरफ राहुल और
कल्पना, दोनों के ही घर वालों का बच्चा ले लेने का दबाव. इन से राहुल बड़ा ही परेशान है.
राहुल अपने बच्चे की परवरिश में किसी भी तरह की कमी नहीं रखना चाहता. वह अपने बच्चे
के जीवन के साथ किसी भी तरह का एडजस्टमेंट नहीं चाहता. इसीलिए राहुल अब नए साल का

बेसब्री से इंतजार कर रहा है. राहुल ने बताया की साल 2020 पूरी दुनिया के लोगों के लिए
कलेश बना है. क्या पता साल 2021 में राहुल के जीवन में कुछ ख़ास हो. इसी का ही इंतजार
राहुल और कल्पना को है.

राहुल बड़ी धीमी आवाज में फुसफुसाया, “2020 का यह साल हमारी इच्छाओं के मरने का साल
है. दुनिया में सिर्फ एक नया जीवन जन्म नहीं लेता, बल्कि उस से पहले कई जिम्मेदारियां भी
जन्म लेती हैं. इस कलह भरे साल में जब किसी का कुछ अच्छा नहीं हुआ तो मेरे साथ कुछ
अच्छा हो जाएगा इस की कोई गारंटी नहीं है.”

राहुल और कल्पना की यह समस्या सिर्फ इन की ही नहीं है बल्कि साल 2020 से हताश और
निराश हुए उस हर जोड़े की है जो अपने घर के आँगन में बच्चे की किलकारियां सुनना चाहते थे
लेकिन दुनिया भर की परेशानियों के चलते वें अपनी इच्छाओं को आगे के लिए पोस्पोन कर रहे
हैं. आगे इस लेख में इन्ही चीजो के संबंध में चर्चा है की मौजूदा स्थिति कैसी है और आप यदि
आने वाले समय में बेबी करने का प्लान कर रहे हैं तो आप को किन किन चीजो को ध्यान में
रखना चाहिए.

क्या है मौजूदा स्थिति?

आम लोगों की स्थिति मेरे दोस्त राहुल और कल्पना के जीवन से कुछ अलग नहीं है. मजदुर
वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग के लोगों को इस साल बेहद नुक्सान झेलना पड़ा है.
कोरोना के कारण देश में बिना किसी प्लानिंग के देशव्यापी लॉकडाउन और उस के कारण लोगों
पर पड़ने वाला बुरा प्रभाव का साक्षी हर कोई है. सरकार की अनियोजित लॉकडाउन ने 80%
आबादी की खून पसीना एक कर बचाए हुए पैसे को किसी जोंक की तरह चूसने का काम किया
है.

ऐसे में लोगों के बने बनाए प्लान पर गहरा असर पड़ा. जो लोग अपने किसी भी काम के लिए
लॉकडाउन से पहले लोन ले चुके थे, उन्हें हर हालत में अपने लोन की किश्ते चुकानी थी. साल
2020 लोगों के बढ़ते हुए जीवन में एक साल का रुकावट बन कर सामने आया. जिस में कमाई
तो ‘नील बटे सन्नाटा’ थी लेकिन खर्चे ‘दिन दुगने और रात चौगुने’. ऐसी स्थिति में यदि किसी
जोड़े ने इस साल की शुरुआत में अपने मन में बेबी करने का प्लान किया था, उन्होंने अपनी

इच्छाओं को अगले साल के लिए स्थगित कर दिया. मेरे दोस्त राहुल का उदाहरण उन में से
एक है.

बेबी करने से पहले इन बातों का ध्यान रखना है बेहद जरुरी

होने वाले खर्चे की प्लानिंग जरुरी:

बच्चे की प्लानिंग करने से पहले आम परिवार शायद इस विषय पर सब से अधिक सोच विचार करते हैं. चाहे वह किसी भी वर्ग का व्यक्ति क्यों न हो, महिला की प्रेगनेंसी के दौरान होने वाला खर्चा आम दिनों के खर्चे की तुलना में ज्यादा ही होता है. प्रेगनेंसी के दौरान महिला को किसी भी समय डॉक्टर को दिखाने की जरुरत पड़ सकती है.

इस के अलावा रेगुलर चेक-अप, मेडिकल टेस्ट, दवाइयां इत्यादि तो अनिवार्य (कम्पलसरी) हैं ही.
ऐसे में घबराने की नहीं बल्कि इन विषयों के संबंध में सोचने विचारने की जरुरत है. एक अच्छी
प्लानिंग का अंजाम भी अच्छा ही होता है.

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अकेले नहीं, दोनों की सहमती जरुरी:

होने वाला बच्चा सिर्फ मां या फिर सिर्फ पिता की जिम्मेदारी नहीं बल्कि दोनों की ही बराबर की जिम्मेदारी हैं. इसीलिए यह जरुरी है की बच्चे की प्लानिंग सिर्फ अकेले न करें बल्कि इस में दोनों की ही सहमती होना बेहद जरुरी है. कई बार यह देखा गया है की किसी एक व्यक्ति के दबाव में बच्चे को जन्म देने से उस बच्चे के प्रति व्यवहार में फर्क पड़ता है. इसीलिए यह सिर्फ एक का फैसला नहीं होना चाहिए क्योंकि बच्चे की
परवरिश में माँ और पिता दोनों का ही योगदान होता है.

डॉक्टर की सलाह से होगा फायदा:

यदि जोड़े ने आपस में बच्चा करने की सहमती पर विचार कर लिया है तो इस के बाद जरुरी है की डॉक्टर से मिल कर इस विषय पर बात कर ली जाए. डॉक्टर स्वस्थ प्रेगनेंसी से पहले जोड़े के कुछ शुरूआती जांच करेंगे जिस में प्रेगनेंसी से पहले महिला का उपयुक्त वजन, स्वस्थ बच्चे के लिए महिला के स्वस्थ शरीर का होना इत्यादि शामिल होगा. और भी कई तरह की सलाह डॉक्टर जोड़े को देते हैं जिस से एक स्वस्थ बच्चे के जन्म में बड़ी सहायता मिलती है. इसीलिए डॉक्टर की सलाह बेहद जरुरी है.

महिलाओं की फिटनेस और मानसिक स्वास्थ दोनों का रखे खास ख्याल:

हेल्दी बच्चे के लिए प्रेग्नेंट महिला का हेल्दी होना भी उतना ही जरूरी है. सिर्फ यही नहीं बच्चे की प्लानिंग के लिए जरूरी है कि कपल शारीरिक ही नहीं मानसिक तौर पर भी तैयार रहें. यदि स्वास्थ से सम्बंधित समस्या है तो उस का इलाज बच्चे की प्लानिंग से पहले कर लेना जरुरी है. वहीं दूसरी ओर
पुरुष की तुलना में महिलाओं के लिए जरूरी है कि वे मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार हों
क्योंकि मां बनने के दौरान महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा काफी कुछ सहना पड़ता है और कई
अनचाही परिस्थितियों के लिए तैयार रहना पड़ता है. इसीलिए फिटनेस और मानसिक स्वास्थ
दोनों के लिए वें डॉक्टर से भी बात कर सकते हैं.

तनाव से रहे कोसों दूर:

एक स्वस्थ बच्चे की कामना के लिए ये जरुरी है की बच्चे को अपने गर्भ में 9 महीनों तक रखने वाली महिला या अपने पार्टनर का बेहद अच्छे से रखा जाए. तनाव के संबंध में बस एक बात जान लेना जरुरी है की तनाव होने परशरीर पर खाया हुआ खाना नहीं लगता. या कई स्थितियों में ऐसा होता है की खाना खाया ही नहीं जाता. और ये चीज किसी भी गर्भवती महिला और उस के बच्चे के लिए बेहद ही खतरनाक है. इसीलिए ये जरुरी है की महिला खुद किसी भी चीज की टेंशन लेने से बचे और इस के साथ पुरुष पार्टनर की यह जिम्मेदारी है की वह अपने पार्टनर को किसी भी तरह के टेंशन से दूर रखे.

इन चीजो को कहे ना:

कई रिसर्च में यह सामने आया है कि किसी भी तरह के नशे के सेवन और और गर्भवती होने की संभावनाओं में कमी के बीच सीधा संबंध है. सिगरेट में पाए जाने वाले टॉक्सिन से महिलाओं के ऐग्स प्रभावित होते हैं. इस के अलावा फर्टिलाइजेशन और इम्प्लांटेशन की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है. महिला अगर चाय या कॉफी की अधिक शौकीन हैं तो इन पे पदार्थों का सेवन कम करना चाहिए क्योंकि इन में कैफीन की मात्रा अधिक होती है. जो नुकसान पहुंचा सकती है. और ऐसा भी बिलकुल नहीं है की इन चीजों का इस्तेमाल केवल महिलाओं को बंद करना चाहिए, बल्कि पुरुषों को भी बच्चे की अच्छी सेहत के लिए इन सभी के सेवन से बचना चाहिए. इसीलिए एल्कोहोल, स्मोकिंग और कैफीन का इस्तेमाल करना छोड़ दें तो बेहतर होगा.

यदि दूसरा बेबी कर रहे हैं प्लान:

यदि आप दूसरा बेबी प्लान कर रहे हैं तो पहले और दुसरे बच्चे के बीच कम से कम 3-4 सालों का गैप बना कर रखें. ये जच्चा और बच्चा दोनों के लिए ही फायदेमंद है. दुसरे बच्चे के लिए महिला का शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट होना बेहद जरुरी है. दुसरे बच्चे की प्लानिंग में अपनी परिवार की आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखना जरुरी है.

यदि आप जॉब करते हैं और अपने पार्टनर की सहमती से दूसरा बच्चा प्लान कर रहीं हैं तो ये प्लानिंग बेहद गंभीर और हर आयामों को ध्यान में रख कर करना चाहिए. जिस से पहले और दुसरे बच्चे की परवरिश में किसी तरह की कोई कमी न हो. पहले बच्चे की परवरिश के लिए परिजनों का सपोर्ट जरुरी है इसीलिए दुसरे बच्चे के बारे में सोच रहे हैं तो परिजनों की सलाह लेना न भूलें.

यदि आप 30 साल से ऊपर हैं तो:

उम्र बढ़ने के साथ-साथ महिला की बॉडी से एग्स खत्म होने लगते हैं जिसके कारण गर्भधारण करने में दिक्क्त आती है। इसके साथ ही 30 साल की उम्र के बाद महिला की बॉडी में एग्स अनहेल्थी होने लगते हैं जिसकी वजह से ज़्यादा उम्र में कंसीव करने से माँ और बच्चे दोनों को परेशानी हो सकती है. यदि आप गर्भनिरोधक गोलियों पर हैं, तो गर्भवती होने का प्रयास शुरू करने से पहले कुछ महीनों के लिए इसका उपयोग करना बंद कर दें.

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प्रेगनेंसी से पहले धूम्रपान और शराब पीने से बचें….

अपने साथी को धूम्रपान और शराब पीने से रोकने के लिए कहें क्योंकि यह पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या को कम कर सकता है और इस उम्र में तो वैसे भी पुरुषों में शुक्राणुओं और महिलाओं में अंडाणुओं की संख्या घटने लगती है. इस उम्र में प्रेग्नेंट होने से पहले एक्सपर्ट डॉक्टर की सलाह जरुर ले, जो की बहुत मददगार साबित होगा.

जब बारबार उठे फैमिली प्लानिंग की बात

शादी के कुछ महीने बीते नहीं कि न्यूली वेड कपल से हर कोई बस यही सवाल पूछता रहता है कि कब सुना रहे हो गुड न्यूज, जल्दी से मुंह मीठा करवा दो, अब तो दादीचाची सुनने को कान तरस रहे हैं. ज्यादा देर मत करना वरना बाद में दिक्कत हो सकती है. अकसर ऐसी बातें सुन कर कान थक जाते हैं. और ये सवाल कई बार रिश्ते में मन मुटाव का कारण भी बन जाते हैं. ऐसे में आप के लिए जरूरी है कि इन सवालों के जवाब बहुत ही स्मार्टली दें, जिस से किसी को बुरा नहीं लगेगा और आप खुद को स्ट्रेस से भी दूर रख पाएंगे.

कैसे करें स्मार्टली हैंडिल

1. जब हो डिनर टेबल पर:

अकसर इस तरह की बातें डिनर टेबल पर ही होती हैं क्योंकि जहां पूरा परिवार साथ होता है वहीं सब रिलैक्स मूड में होते हैं. ऐसे में जब आप की मां आप से बोले कि अब फैमिली प्लानिंग के बारे में सोचो तो आप अपना मूड खराब न करें. क्योंकि बड़ों से हम इसी तरह के सवालों की उम्मीद करते हैं. बल्कि उन्हें हां बोल कर बात को कुछ इस तरह घुमाएं कि मोम आज तो खाना कुछ ज्यादा ही टैस्टी बना है, मोम आप तो वर्ल्ड की बैस्ट शेफ हो वगैरहवगैरह बोल कर उन्हें टौपिक से दूसरी जगह ले जाएं. इस से आप का मूड भी खराब नहीं होगा और बात भी टल जाएगी.

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2. मजाकमजाक में करें बोलती बंद:

इंडियन कल्चर ऐसा है कि यहां लोगों को खुद से ज्यादा दूसरों की चिंता होती है. आप की लड़की या लड़का इतने का हो गया है या अभी तक शादी नहीं हुई, शादी को 4 साल हो गए और अभी तक बच्चा नहीं हुआ. यहां तक कि कभीकभी फ्रैंड्स भी ऐसे ताने मारे बिना नहीं रहते. ऐसे में खुद पर बातों को हावी न होने दें बल्कि उन्हें मजाकमजाक में बोलें यार तू पालेगी मेरे बच्चे को तो मैं आज ही प्लेन कर लेती हूं, यह बोलबोल कर हंसने लगे, इस से उस की बोलती भी बंद हो जाएगी और मजाकमजाक में आप का काम हो जाएगा.

3. रिश्तेदारों के सामने बोल्ड रहें:

जहां परिवार के लोग इकट्ठा हुए नहीं फिर चाहे उस में बच्चे हों या बड़े सब मस्ती के मूड में आ जाते हैं. क्योंकि लंबे समय के बाद जो सब मिलते हैं. ऐसे में रिश्तेदार हंसीहंसी में बच्चे के बारे में ञ्चया विचार है पूछे बिना रह नहीं पाते. ऐसे में आप इस बात पर भड़क कर माहोल को खराब न करें बल्कि बोलें अभी तो हम बच्चे हैं, अभी तो तो हमारी उम्र मस्ती करने की है. आप के इस जवाब को सुन कर बोलने वालों को समझ आ जाएगा कि इन्हें अभी इस बारे में कहने का कोई फायदा नहीं है.

4. खुद को रखें मेंटली प्रपेयर:

जब शादी हुई है तो बच्चे भी होंगे ओर इस बारे में सवाल भी पूछे जाएंगे. इसलिए जब भी कोई इस बारे में पूछे तो मुंह बनाने के बजाय उन्हें प्यार से बताएं कि अभीअभी तो हमारी नई जिंदगी शुरू हुई है और अभी चीजों को सैटल करने में थोड़ा वक्त लगेगा. जब सब कुछ अच्छे से मैनेज हो जाएगा तब प्लान करने के बारे में सोचेंगे. आप के इस

जवाब के बाद कोई भी आप से बारबार इस बारे में नहीं पूछेगा.

5. शर्माएं नहीं खुल कर करें बात:

जब भी इस टौपिक पर बात होती है तो या तो हम शरमा जाते हैं या फिर उस जगह से उठ कर चले जाते हैं. भले ही ये टौपिक झिझक का होता है लेकिन अगर आप ने अपनी बात खुल कर सब के सामने नहीं रखी तो लोग कुछ का कुछ भी समझ सकते हैं. यह जान लें कि इस बारे में फैसला आप का ही होगा, कोई भी आप पर अपना फैसला नहीं थोप पाएगा. इसलिए जब भी बात हो तो उन्हें बताएं कि अभी हम इस बारे में नहीं सोच रहे हैं, जब गुड न्यूज होगी तो आप को ही सब से पहले बताएंगे.

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6. हमेशा साथ निभाएं:

शादी के कई साल हो गए हैं और कंसीव करने में दिक्कत आ रही है तो ये बात जहां कपल को अंदर ही अंदर परेशान किए रहती है वहीं दूसरों के द्वारा इस बारे में बारबार पूछे जाने पर कई बार इतना अधिक गुस्सा आ जाता हैन् कि पलट कर जवाब देने को दिल करता है. लेकिन आप ऐसा भूल कर भी न करें, क्योंकि ये दूसरों के सामने आप की इमेज को बिगाड़ने का काम करेगा. इसलिए एकदूसरे की हिम्मत बने. एकदूसरे का हर दम साथ निभाएं और फैसला करें कि अगर कोई इस बारे में पूछेगा तो क्या जवाब देना है. आप का यही साथ आप को भीतर से मजबूत बनाने का काम करेगा और दूसरों के सामने आप बोल्ड बन कर जवाब दे पाएंगे.

इस तरह आप खुद को स्ट्रेस फ्री रख पाएंगे.

हमें हरदम चमत्कार ही क्यों चाहिए

अभिनेता आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘बधाई हो’ की सफलता  ने आयुष्मान खुराना की पिछली फिल्मों ‘विकी डोनर’ व ‘बरेली की बर्फी’ की तरह लीक से हट कर मगर साधारण लोगों की जिंदगियों पर बेस होने के कारण सफल हुई है. विज्ञापन फिल्में बनाने वाले अमित शर्मा ने इस फिल्म में वास्तविकता दिखाई है और यही वजह है कि थोड़ा टेढ़ा विषय होने पर भी उस ने क्व100 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया और बड़ी उम्र की औरतों को मां बनने के लिए एक रास्ता खोल दिया.

परिवार नियोजन से पहले बच्चे जब चाहे, हो जाते थे. जब पहला बच्चा 14-15 साल की उम्र में हो रहा हो तो आखिरी 40-45 वर्ष की उम्र में होना बड़ी बात नहीं थी और उसी समय पहले बच्चे का बच्चा भी हो सकता था. अब जब बच्चों की शादियां 30 के आसपास होने लगी हैं और परिवार नियोजन के तरीके आसान हैं, तो देर से होने वाले बच्चे पर आंखभौं चढ़ती हैं.

मामला देर से हुए बच्चे का उतना नहीं. ‘बधाई हो’ आम मध्यम परिवारों के रहनसहन की कहानी बयां करती है जो जगह की कमी, बंधीबंधाई सामाजिक मान्यताओं, पड़ोसियों के दखल के बीच जीते हैं. अमित शर्मा ने दिल्ली के जंगपुरा इलाके में बचपन बिताया और उसी महौल को उन्होंने फिल्म में उकेरा. इसीलिए फिल्म में बनावटीपन कम है. दर्शकों को इस तरह की फिल्में अच्छी लगती हैं क्योंकि ऐसी फिल्में आसपास घूमती हैं और बिना भारीभरकम प्रचार के चल जाती हैं.

हमारे यहां धार्मिक कहानियों का बोलबाला रहा है और इसीलिए हर दूसरी फिल्म में काल्पनिक सैटों, सुपरहीरो के सुपर कारनामे, मेकअप से पुती हीरोइनें होती हैं. हम असल में रामलीलाओं के आदी हैं जिन में जंगल में भी सीताएं सोने का मुकुट लगाए घूमती हैं. उन्हें देखतेदेखते हमारी तार्किक शक्ति जवाब दे चुकी है और ‘बधाई हो’ जैसी फिल्म के टिपिकल मध्यम परिवार का दर्शन पचता नहीं है.

असल में हमारी दुर्दशा की वजह ही यह है कि हम आमतौर पर वास्तविक समस्याओं से भागते हैं. हमें हरदम चमत्कार चाहिए. राममंदिर और सरदार पटेल की मूर्तियों को ले कर अरबोंखरबों रुपए खर्च इसीलिए करते हैं कि उस से कुछ ऐसा होगा कि सर्वत्र सुख संपदा संपन्नता फैल जाएगी. यह खामखयाली बड़ी मेहनत से हमारे पंडे हमारे मन में भरते हैं, जो फिल्मों में दिखता है और जहां लोग महलों में रहते हैं, बड़ी गाडि़यों में घूमते हैं और हीरो चमत्कारिक काम करते हैं. ‘बधाई हो’, ‘इंग्लिश विंग्लिश’, ‘हिंदी मीडियम’ जैसी फिल्में सफल हुईं तो इसलिए कि इस में रोजमर्रा की समस्याओं से जूझते आम लोगों को दिखाया गया उन्हीं के असली वातावरण में.

जीवन बड़ा कठिन और कठोर है. इसे समझनेसमझाने की जरूरत है. यह मंत्रोंतंत्रों से नहीं होगा. इस के लिए ऐसी कहानी कहने वाले चाहिए जो आम लोगों के सुखदुख को समझ सकें, भजन करने वाले और रामरावण युद्ध कराने वाले नहीं.

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