भाई की धौंस सहें कब तक

मुरादाबाद के एक युवक ने अपनी बहन को इतना मारा कि उस की मौत हो गई. फरीना नाम की यह लड़की अपने दादाजी और पापा के साथ रहती थी. फरीना का भाई असलम नौकरी के सिलसिले में दिल्ली में रहता था. ईद के मौके पर असलम गांव आ गया था. एक दिन असलम ने अपनी बहन को किसी से फोन पर देर तक बात करते सुना. जब असलम ने जानने की कोशिश की तो फरीना ने बताने से इनकार कर दिया. यह बात असलम के दिमाग में घूमने लगी.

एक दिन असलम ने फिर फरीना को फोन पर बात करते देखा. उस दिन असलम ने उस के हाथ से फोन छीन लिया और लड़के की आवाज सुन ली. इस पर असलम और फरीना की तीखी बहस हुई. लेकिन कुछ दिनों बाद फरीना का फोन पर बात करने का सिलसिला रुकता न देख असलम ने फरीना की डंडे से पिटाई कर दी और उस का फोन छीन कर उसे एक कमरे में बंद कर दिया. अगले दिन जब असलम के पिता ने कमरे का दरवाजा खोला तब फरीना को अचेत हालत में पाया. अस्पताल ले जाने पर डाक्टर ने फरीना को मृत घोषित कर दिया.

ऐसी ही एक कहानी है नूर की, जो अपने शौक, अपने सपनों को जीना चाहती थी, लेकिन उस के भाई के आगे उस के सारे सपने मानो दफन हो गए.

शाम को 6 बज गए थे और नूर अभी तक घर नहीं आई थी. अम्मी गुस्से में बारबार बड़बड़ा रही थीं, ‘‘अंधेरा होने वाला है… कमबख्त यह लड़की अभी तक नहीं लौटी.’’

‘‘अरे, तुम क्यों चिंता कर रही हो. आ जाएगी नूर. अभी तो 6 बज कर 10 मिनट ही हुए हैं,’’ नूर के अब्बू अम्मी को सम झाने की कोशिश कर ही रहे थे कि नूर आ गई.

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उसे देखते ही अम्मी शुरू हो गईं, ‘‘बहुत दिनों से देख रही हूं, तुम्हारा घर लौटने का समय बदलता जा रहा है. तुम्हारे भाईजान को पता चला न, तो तुम्हारी खैर नहीं.’’

नूर ने अम्मी को सम झाते हुए कहा, ‘‘अम्मी, आज कालेज की आखिरी क्लास

4:30 बजे खत्म हुई थी और बस में भी बहुत भीड़ थी. मैं चढ़ ही नहीं पाई. इसलिए थोड़ी देर हो गई. आप भाईजान से कुछ मत कहना. अब ऐसा नहीं होगा.’’

नूर की अम्मी थोड़ी सख्तमिजाज थीं और नूर के अब्बू उतने ही शांत, जबकि नूर का भाई साहिल हमेशा नूर पर अपनी धौंस दिखाता रहता था. अगर नूर ज्यादा देर किसी लड़की से ही फोन पर बात कर ले तो वह उसे सुनाने में कमी नहीं रखता था. हर समय रोकटोक. कभीकभी नूर को लगता था कि वह इंसान नहीं कठपुतली है जिसे अपने हिसाब से जिंदगी जीने का कोई हक नहीं.

साहिल अम्मी का लाड़ला था और घर में अब्बू से ज्यादा साहिल की चलती थी. साहिल ने अगर कुछ बोल दिया तो वह उसे करवा कर ही मानता था. अगर अब्बू न होते तो नूर 12वीं के बाद ही घर में बैठ जाती. अब्बू बारबार नूर को सम झाते, ‘‘देखो नूर, तुम्हारी अम्मी और भाई दोनों चाहते हैं कि तुम्हारा निकाह जल्द से जल्द हो जाए. लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम पढ़ो, ग्रेजुएशन पूरा होते ही किसी अच्छे लड़के से तुम्हारा निकाह करवा दूंगा.’’

यों तो सब अपनी बात नूर के सामने रख कर चले जाते लेकिन नूर की ख्वाहिश, उस के सपनों के बारे में कोई नहीं पूछता.

2 दिनों से नूर समय पर घर आ रही थी, इसलिए अम्मी का मिजाज थोड़ा ठंडा था. लेकिन, आज पता नहीं साहिल को क्या हुआ था. गुस्से में चिल्लाता हुआ घर में दाखिल हुआ और सीधा नूर के कमरे में जा कर चिल्लाने लगा.

‘‘अरे क्या हो गया? क्यों चिल्ला रहे हो इस पर?’’ अम्मी ने परेशान होते हुए साहिल से पूछा.

‘‘इसी से पूछो न. मैं बता रहा हूं यह हाथ से निकलती जा रही है.’’

‘‘लेकिन इस ने किया क्या है?’’

‘‘अम्मी, यह लड़कों के साथ दोस्ती रखती है. मेरा दोस्त शराफत है न, उस के छोटे भाई ने इस के साथ फेसबुक पर फोटो लगा रखी है. यह कालेज पढ़ने जाती है या फोटो खिंचवाने जाती है?’’

यह सुनते ही अम्मी ने नूर को बहुत बुराभला सुनाया. ऊपर से साहिल ने उस का फोन भी ले लिया और बंद कर के अम्मी को दे दिया.

नूर मन ही मन सोच रही थी कि एक फोटो ही तो खिंचवाई थी, वह भी अकेले नहीं सब के साथ. भाईजान तो खुद ही रोज लड़कियों के साथ फोटो लगाते हैं, घूमते हैं. फिर खुद को क्यों नहीं देखते?

अगले दिन नूर कालेज गई लेकिन उस ने किसी भी लड़के से बात नहीं की. कालेज से घर के लिए भी समय पर निकल गई थी, लेकिन घर फिर देर से पहुंची.

जब वह शाम 6:45 पर घर पहुंची तो सब घर पर ही थे. जैसे ही नूर आई, साहिल उस से सवाल पर सवाल करने लगा. ‘‘क्लास कब खत्म हुई थी तेरी?’’, ‘‘कालेज से कब निकली थी तू?’’, ‘‘इतनी देर कैसे हुई?’’ ‘‘कहां गई थी?’’

नूर सहम गई थी. डरतेडरते उस ने कहा, ‘‘भाईजान, वो… वो… मैं कालेज से निकली तो समय पर थी लेकिन आधे रास्ते आ कर याद आया मैं अपनी प्रोजैक्ट फाइल क्लास में ही भूल गई हूं. उसे लेने मु झे वापस जाना पड़ा. इसलिए देरी हुई.’’

आज नूर ने फिर से  झूठ बोला. दरअसल, नूर को गाने का बहुत शौक था. नूर की आवाज सच में बहुत अच्छी थी और गाती भी बहुत अच्छा थी. यह बात उस के घर में सब को पता थी. लेकिन, उस का भाई उस की डोर हमेशा खींच लेता था.

कालेज के बाद नूर एक म्यूजिक अकादमी में जाया करती थी. वहां वह छोटे बच्चों को संगीत सिखाती थी. घर में यह बात किसी को पता नहीं थी. हर बार  झूठ का सहारा ले कर नूर खुद को बचा लेती थी, लेकिन एक दिन नूर का  झूठ  झूठ ही रह गया. रोजरोज देरी से घर आने की बात साहिल के दिमाग में घूम रही थी. एक दिन साहिल उस के कालेज ही चला गया. जैसे ही नूर कालेज से निकली वह उस का पीछा करने लगा. जब उस ने देखा वह म्यूजिक अकादमी में जा रही है तो उसे बहुत गुस्सा आया.

नूर आज फिर देरी से पहुंची. आज साहिल ने बहुत आराम से नूर से बात की. ‘‘क्या हुआ नूर, तुम आज फिर देर से आईं? आज भी कुछ भूल गई थीं क्या?’’

‘‘नहीं… नहीं भाईजान,’’ नूर आगे कुछ बोलती कि साहिल ने उस के करीब आ कर कहा, ‘‘गाना गा कर तुम्हारा गला बहुत थक गया होगा न?’’

नूर यह सुनते ही कांप गई. अम्मी शाम की चाय बना रही थीं और अब्बू बाहर बाजार गए हुए थे. साहिल नूर को हमेशा घर में ही देखना चाहता था. उस ने चूल्हे से गरम कोयला निकाल कर नूर की जबान पर रख दिया.

नूर के सारे शौक, सारे सपने उस कोयले के साथ ही जल गए. वह बुरी तरह घायल हो चुकी थी. सपने धराशायी हो चुके थे और पंख उड़ने से पहले ही कट चुके थे. नूर अंदर तक बुरी तरह टूट चुकी थी.

कह सकते हैं कि अभी भी ऐसे कई घरपरिवार हैं जहां बहनें अपने भाइयों की धौंस सहती रहती हैं.

आखिर क्यों भाई अपनी बहनों पर इतनी धौंस दिखाते हैं. इस की वजह क्या है? इतना मातापिता नहीं करते जितना कि एक भाई अपनी बहन पर रोकटोक करता है. हरियाणा, उत्तर प्रदेश में अधिकतर ऐसे केस देखने को मिलते हैं. जहां भाई अपनी बहन को मौत के घाट तक उतार देता है. लेकिन, यह बात सिर्फ उत्तर प्रदेश, हरियाणा की ही नहीं बल्कि पूरे देश की है. अगर परदा हटाया जाए तो हर राज्य और हर घर में यह धौंसपंती देखने को मिलेगी.

क्यों करता है भाई ऐसा

समय बदल रहा है लेकिन समाज नहीं. आज लड़कियां आगे बढ़ रही हैं, पढ़लिख रही हैं, लेकिन इन सब के साथ उन पर तीखी नजर रखी जाती है. यह नजर क्यों है? अकसर हम देखते हैं बहनें अगर घर थोड़ी देरी से आएं तो भाइयों के सवाल पर सवाल शुरू हो जाते हैं.

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पड़ोस में किसी ने भाई के सामने कुछ कह दिया तो घर जा कर भाई बहनों को ही सुनाता है. इस में गलती किस की है? हमारे समाज ने महिलाओं पर हुकूमत चलाने की डोर पुरुषों के हाथ में दे दी है लेकिन पुरुषों पर महिलाओं का कोई जोर नहीं चलता.

आखिर भाई ऐसा करता क्यों है? इस मुद्दे पर जब बात एक 16 साल की लड़की शिवानी से की तो उस का जवाब था, ’’मेरे भैया मु झ से 4 साल बड़े हैं. वैसे तो वे बहुत अच्छे हैं लेकिन मैं ने पिछले कुछ सालों में उन के व्यवहार में बदलाव देखा है. पहले मैं शाम को बाहर दोस्तों के साथ खेला करती थी, लेकिन एक दिन भैया ने आ कर कहा कि शाम को बाहर खेलने की जरूरत नहीं है. मैं ने उस वक्त कुछ नहीं कहा. लेकिन धीरेधीरे भैया ज्यादा ही रोकटोक करने लगे. ट्यूशन जाते वक्त बोलते हैं सिंपल बन कर जाया कर. फोन इस्तेमाल करती हूं तो अचानक आ कर हाथ से छीन लेते हैं. मु झे बिलकुल अच्छा नहीं लगता यह सब. लेकिन हद तो तब हुई जब भैया ने मु झे किसी और की वजह से घर से 3-4 दिन निकलने नहीं दिया और मेरी ट्यूशन भी बंद करवा दी.

‘‘दरअसल, मेरी ट्यूशन में एक लड़का मु झे पसंद करने लगा था. मेरी कभीकभी उस से बात हो जाती थी. एक दिन ट्यूशन के बाद वह मेरे साथ आधे रास्ते तक आया. यह बात पता नहीं कैसे भैया को मालूम हो गई. उस दिन उन्होंने मु झे बहुत बुराभला सुनाया. अब मैं जल्दी किसी से बात भी नहीं करती. एक अजीब सा डर रहता है.’’

क्या यहां भाई को अपनी बहन की ट्यूशन बंद करवानी चाहिए थी? अपनी बहन पर धौंस दिखाने से पहले, उसे सुनाने से पहले यदि वह उस को सहीगलत सम झाता, समाज के बारे में बताता, तो शायद उस के अंदर का वह डर खत्म हो जाता जो आज उसे किसी भी लड़के से बात करने में लगता है. ऐसी धौंस दिखाना ही क्यों जिस से रिश्तों में दरार आ जाए.

कई बार मातापिता को लगता है कि बेटा जो कर रहा है वह सही है. यदि वह बहन को डांट रहा है तो उस की भलाई के लिए. हां, कह सकते हैं भाई अगर डांट रहा है तो उस में भलाई भी शामिल हो सकती है लेकिन वह अगर बहन की आजादी पर रोक लगा रहा है तो क्या इसे भलाई कहेंगे?

सामाजिक मानसिकता का असर

मनोवैज्ञानिक डाक्टर अनामिका कहती हैं, ‘‘बचपन से ही सिखाया जाता है कि बेटियों को दहलीज के भीतर रहना है पर बेटों को इस पर कोई रोक नहीं होती. ऐसे में यह एक मानसिक धारणा बन जाती है लड़कों के मन में कि उन्हें तो पूर्णरूप से सभी चीजों के लिए आजादी मिल रखी है. वे कुछ भी करें, सब सही है. लेकिन घर की बेटियां वही सब करने की इच्छा रखती हैं या कर रही हैं तो बात इज्जत, प्रतिष्ठा पर आ जाती है.

‘‘हमारे समाज में बताया जाता है घर की इज्जत बेटियों के हाथ में होती है. अगर वे कुछ अपने मन का करना चाहती हैं तो उस विषय पर काफी सोचविचार किया जाता है. हालांकि, लड़कों के मामले में ऐसा बहुत कम होता है. ऐसे में बहनों का घर से देर तक बाहर रहना, किसी से ज्यादा बात करना भाइयों को सुहाता नहीं है.’’

क्या करें जब भाई की धौंस बढ़ती जाए

-अपने मातापिता के टच में रहें और अपनी परेशानी उन से सा झा करें.

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-भाई से दोस्ताना व्यवहार रखें और उस से कुछ छिपाएं नहीं.

-भाई अगर ज्यादा रोकटोक कर रहा है तो परिवार के सामने अपनी बात रखें. मातापिता को सम झाएं कि जो आप कर रहे हैं उस में कोई बुराई नहीं है.

-अगर भाई आप के साथ बाहर जाने की जिद कर रहा है तो उसे जल्दी मना नहीं करें. एकदो बार जाने के बाद वह खुद नहीं जाएगा.

-यदि आप किसी लड़के को अपना दोस्त बनाती हैं तो घरवालों को इस की जानकारी जरूर दें. इस से घरवाले ज्यादा सवाल नहीं करेंगे.

क्यों बढ़ रही बच्चों की नाराजगी

एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक युवा बच्चे आजकल बड़ी संख्या में साइकोलौजिस्ट के पास जाने लगे हैं. इसे तनाव व दुश्चिंता की महामारी के रूप में देखा जा सकता है. आलम यह है कि युवा खुद को हानि पहुंचाने से भी नहीं डरते. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आज जबकि बच्चों के पास मोबाइल, लैपटौप से ले कर अच्छे से अच्छे कैरियर औप्शंस और अन्य सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं तो फिर उन के मन में पेरैंट्स के प्रति नाराजगी और जिंदगी से असंतुष्टि क्यों है?बच्चों के साथ कुछ तो गलत है. कहीं न कहीं बच्चों के जीवन में कुछ बहुत जरूरी चीजें मिसिंग हैं और उन में सब से महत्त्वपूर्ण है घर वालों से घटता जुड़ाव और सोशल मीडिया से बढ़ता लगाव. पहले जब संयुक्त परिवार हुआ करते थे तो लोग मन लगाने, जानकारी पाने और प्यार जताने के लिए किसी गैजेट पर निर्भर नहीं रहते थे. आमनेसामने बातें होती थीं. तरहतरह के रिश्ते होते थे और उन में प्यार छलकता था. मगर आज अकेले कमरे में मोबाइल या लैपटौप ले कर बैठा बच्चा लौटलौट कर मोबाइल में हर घंटे यह देखता रहता है कि क्या किसी ने उस के पोस्ट्स लाइक किए? उस की तसवीरों को सराहा? उसे याद किया?

आज बच्चों को अपना अलग कमरा मिलता है जहां वे अपनी मरजी से बिना किसी दखल जीना चाहते हैं. वे मन में उठ रहे सवालों या भावों को पेरैंट्स के बजाय दोस्तों या सोशल मीडिया से शेयर करते हैं. अगर पेरैंट्स इस बात की चिंता करते हैं कि बच्चे मोबाइल या लैपटौप का ओवरयूज तो नहीं कर रहे तो वे उन से नाराज हो जाते हैं. केवल अकेलापन या सोशल मीडिया का दखल ही बच्चों की पेरैंट्स से नाराजगी या दूरी की वजह नहीं. ऐसे बहुत से कारण हैं जिन की वजह से ऐसा हो रहा है:

1. बढ़ती रफ्तार

फैशन, लाइफस्टाइल, कैरियर, ऐजुकेशन सभी क्षेत्रों में आज के युवाओं की रफ्तार बहुत तेज है. सच यह भी है कि उन्हें इस रफ्तार पर नियंत्रण रखना नहीं आता. सड़कों पर युवाओं की फर्राटा भरती बाइकें और हादसों की भयावह तसवीरें यही सच बयां करती हैं. ‘करना है तो बस करना है, भले ही कोई भी कीमत चुकानी पड़े’ की तर्ज पर जिंदगी जीने वाले युवाओं में विचारों के झंझावात इतने तेज होते हैं कि वे कभी किसी एक चीज पर फोकस नहीं कर पाते. उन के अंदर एक संघर्ष चल रहा होता है, दूसरों से आगे निकलने की होड़ रहती है. ऐसे में पेरैंट्स का किसी बात के लिए मना करना या समझाना उन्हें रास नहीं आता. पेरैंट्स की बातें उन्हें उपदेश लगती हैं.

मातापिता की उम्मीदों का बोझ: अकसर मातापिता अपने सपनों का बोझ अपने बच्चों पर डाल देते हैं. वे जिंदगी में खुद जो बनना चाहते थे न बन पाने पर अपने बच्चों को वह बनाने का प्रयास करने लगते हैं, जबकि हर इंसान की अपनी क्षमता और रुचि होती है. ऐसे में जब पेरैंट्स बच्चों पर किसी खास पढ़ाई या कैरियर के लिए दबाव डालते हैं तो बच्चे कन्फ्यूज हो जाते हैं. वे भावनात्मक और मानसिक रूप से टूट जाते हैं और यही बिखराव उन्हें भ्रमित कर देता है. पेरैंट्स यह नहीं समझते कि उन के बच्चे की क्षमता कितनी है. यदि बच्चे में गायक बनने की क्षमता और इच्छा है तो वे उसे डाक्टर बनाने की कोशिश करते हैं. बच्चों को पेरैंट्स का यह रवैया बिलकुल नहीं भाता और फिर वे उन से कटने लगते हैं.

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समय न देना

आजकल ज्यादातर घरों में मांबाप दोनों कामकाजी होते हैं. बच्चे भी 1 या 2 से ज्यादा नहीं होते. पूरा दिन अकेला बच्चा लैपटौप के सहारे गुजारता है. ऐसे में उस की ख्वाहिश होती है कि उस के पेरैंट्स उस के साथ समय बिताएं. मगर पेरैंट्स के पास उस के लिए समय नहीं होता.

दोस्तों का साथ

इस अवस्था में बच्चे सब से ज्यादा अपने दोस्तों के क्लोज होते हैं. उन के फैसले भी अपने दोस्तों से प्रभावित रहते हैं. दोस्तों के साथ ही उन का सब से ज्यादा समय बीतता है, उन से ही सारे सीक्रैट्स शेयर होते हैं और भावनात्मक जुड़ाव भी उन्हीं से रहता है. ऐसे में यदि पेरैंट्स अपने बच्चों को दोस्तों से दूरी बढ़ाने को कहते हैं तो बच्चे इस बात पर पेरैंट्स से नाराज रहते हैं. पेरैंट्स कितना भी रोकें वे दोस्तों का साथ नहीं छोड़ते उलटा पेरैंट्स का साथ छोड़ने को तैयार रहते हैं.

गर्ल/बौयफ्रैंड का मामला

इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण चरम पर होता है. वैसे भी आजकल के किशोर और युवा बच्चों के लिए गर्ल या बौयफ्रैंड का होना स्टेटस इशू बन चुका है. जाहिर है कि युवा बच्चे अपने रिश्तों के प्रति काफी संजीदा होते हैं और जब मातापिता उन्हें अपनी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड से मिलने या बात करने से रोकते हैं तो उस वक्त उन्हें पेरैंट्स दुश्मन नजर आने लगते हैं.

दिल टूटने पर पेरैंट्स का रवैया

इस उम्र में दिल भी अकसर टूटते हैं और उस दौरान वे मानसिक रूप से काफी परेशान रहते हैं. ऐसे में पेरैंट्स की टोकाटाकी उन्हें बिलकुल सहन नहीं होती और वे डिप्रैशन में चले जाते हैं. पेरैंट्स से नाराज रहने लगते हैं. उधर पेरैंट्स को लगता है कि जब वे उन के भले के लिए कह रहे हैं तो बच्चे ऐसा क्यों कर रहे हैं? इस तरह पेरैंट्स और बच्चों के बीच दूरी बढ़ती जाती है.

बच्चे तलाशते थ्रिल

युवा बच्चे जीवन में थ्रिल तलाशते हैं. दोस्तों का साथ उन्हें ऐसा करने के लिए और ज्यादा उकसाता है. ऐसे बच्चे सब से आगे रहना चाहते हैं. इस वजह से वे अकसर अलकोहल, रैश ड्राइविंग, कानून तोड़ने वाले काम, पेरैंट्स की अवमानना, अच्छे से अच्छे गैजेट्स पाने की कोशिश आदि में लग जाते हैं. युवा मन अपना अलग वजूद तलाश रहा होता है. उसे सब पर अपना कंट्रोल चाहिए होता है, पर पेरैंट्स ऐसा करने नहीं देते. तब युवा बच्चों को पेरैंट्स से ही हजारों शिकायतें रहने लगती हैं.

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जो करूं मेरी मरजी

युवाओं में एक बात जो सब से आम देखने में आती है वह है खुद की चलाने की आदत. आज लाइफस्टाइल काफी बदल गया है. जो पेरैंट्स करते हैं वह उन के लिहाज से सही होता है और जो बच्चे करते हैं वह उन की जैनरेशन पर सही बैठता है. ऐसे में दोनों के बीच विरोध स्वाभाविक है.

ग्लैमर और फैशन

मौजूदा दौर में फैशन को ले कर मातापिता और युवाओं में तनाव होता है. वैसे भी पेरैंट्स लड़कियों को फैशन के मामले में छूट देने के पक्ष में नहीं होते. धीरेधीरे उन के बीच संवाद की कमी भी होने लगती है. बच्चों को लगता है कि पेरैंट्स उन्हें पिछले युग में ले जाना चाहते हैं.

हर क्षेत्र में प्रतियोगिता

आज के समय में जीवन के हर क्षेत्र में प्रतियोगिता है. बचपन से बच्चों को प्रतियोगिता की आग में झोंक दिया जाता है. पेरैंट्स द्वारा अपेक्षा की जाती है कि बच्चे हमेशा हर चीज में अव्वल आएं. उन का यही दबाव बच्चों के जीवन की सब से बड़ी ट्रैजिडी बन जाता है.

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कैसे बिठाएं बच्चों के साथ बेहतर तालमेल

अगर आप जान लें कि आप के बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है तो इस स्थिति से निबटना आप के लिए आसान होगा. बच्चे के साथ बेहतर तालमेल बैठाने के लिए पेरैंट्स को इन बातों का खयाल रखना चाहिए:

सिखाएं अच्छी आदतें

घर में एकदूसरे के साथ कैसे पेश आना है, जिंदगी में किन आदर्शों को अहमियत देनी है, अच्छाई से जुड़ कर कैसे रहना है और बुराई से कैसे दूरी बढ़ानी है जैसी बातों का ज्ञान ही संस्कार हैं. इस की बुनियाद एक परिवार ही रखता है. पेरैंट्स ही बच्चों में इस के बीज बोते हैं.

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थोड़ी आजादी भी दें

घर में आजादी का माहौल पैदा करें. बच्चे को जबरदस्ती किसी बात के लिए नहीं मनाया जा सकता. मगर जब आप सहीगलत का भेद समझा कर फैसला उस पर छोड़ देंगे तो वह सही रास्ता ही चुनेगा. उस पर किसी तरह का दबाव डालने से बचें. बच्चा जितना ज्यादा अपनेआप को दबाकुचला महसूस करेगा उस का बरताव उतना ही उग्र होगा.

खुद मिसाल बनें

बच्चे के लिए खुद मिसाल बनें. बच्चे से आप जो भी कुछ सीखने या न सीखने की उम्मीद करते हैं पहले उसे खुद अपनाएं. ध्यान रखें बच्चे मातापिता के नक्शेकदम पर चलते हैं. आप उन्हें सफलता के लिए मेहनत करते देखना चाहते हैं तो पहले खुद अपने काम के प्रति समर्पित रहें. बच्चों से सचाई की चाह रखते हैं तो कभी खुद झूठ न बोलें.

सजा भी दें और इनाम भी

जहां बच्चों को बुरे कामों के लिए डांटना जरूरी है वहीं वे कुछ अच्छा करते हैं तो उन की तारीफ करना भी न भूलें. आप उन्हें सजा भी दें और इनाम भी. अगर आप ऐसा करेंगे तो बच्चे को निश्चित ही इस का फायदा मिलेगा. वह बुरा करने से घबराएगा और अच्छा कर इनाम पाने को उत्साहित रहेगा. यहां सजा देने का मतलब शारीरिक तकलीफ देना नहीं है, बल्कि यह उसे मिलने वाली छूट में कटौती कर के भी दी जा सकती है जैसे टीवी देखने के समय को घटा या घर के कामों में लगा कर.

अनुशासन को लेकर संतुलित नजरिया

जब आप अनुशासन को ले कर संतुलित नजरिया कायम कर लेते हैं तो आप के बच्चे को पता चल जाता है कि कुछ नियम हैं, जिन का उसे पालन करना है पर जरूरत पड़ने पर कभीकभी इन्हें थोड़ाबहुत बदला भी जा सकता है. इस के विपरीत यदि आप हिटलर की तरह हर समय में उस के ऊपर कठोर अनुशासन की तलवार लटाकाए रहेंगे तो संभव है उस के अंदर विद्रोह की भावना जल उठे.

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घरेलू कामकाज भी कराएं

बच्चे में शुरू से ही अपने काम खुद करने की आदत डालें. मसलन, अपना कमरा, बिस्तर, कपड़े आदि सही करने से ले कर दूसरी छोटीमोटी जिम्मेदारियों का भार उस पर डालें. हो सकता है कि इस की शुरुआत करने में मुश्किल हो, मगर समय के साथ आप राहत महसूस करेंगे और बाद में उन्हें जीवन में अव्यवस्थित देख कर गुस्सा करने की संभावना खत्म हो जाएगी.

अच्छी संगत है जरूरी

शुरू से ध्यान रखें और प्रयास करें कि आप के बच्चे की संगत अच्छी हो. अगर आप का बच्चा किसी खास दोस्त के साथ बंद कमरे में घंटों समय गुजारता है तो समझ जाएं कि यह खतरे की घंटी है. इस की अनदेखी न करें. इस बंद दरवाजे के खेल को तुरंत रोकें. इस से पहले कि बच्चा गलत रास्ते पर चल निकले आप थोड़ी सख्ती और दृढ़ता से काम लें.

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दूसरों के सामने बच्चे को डांटना उचित नहीं. याद रखें जब आप अकेले में समझाते, वजह बताते हुए बच्चे को किसी काम से रोकेंगे तो इस का असर पौजिटिव होगा. इस के विपरीत सब के सामने डांटफटकार करने से बच्चा जिद्दी और विद्रोही बनने लगता है. किसी भी समस्या से निबटने की सही जगह है आप का घर.

उस की पसंद को भी दें मान

आप का बच्चा जवान हो रहा है और चीजों को पसंद और नापसंद करने का उस का अपना नजरिया है, इस सचाई को समझने का प्रयास करें. अपनी इच्छाओं और पसंद को उस पर थोपने की कोशिश न करें. किसी बात को ले कर बच्चे पर तब तक दबाव न डालें जब तक कि आप के पास इस के लिए कोई वाजिब वजह न हो.

यह सच है कि किशोर/युवा हो रहे बच्चे मातापिता से अपनी जिंदगी से जुड़ी हर बात साझा करने से बचते हैं. मगर इस का मतलब यह नहीं कि आप प्रयास ही न करें. प्रयास करने का मतलब यह नहीं कि आप जबरदस्ती करें और उन से हर समय पूछताछ करते रहें. जरूरत है बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने, उन से दोस्ताना रिश्ता बनाने, उन के साथ फिल्म देखना, बाहर खाने के लिए जाना, खुले में उनके साथ कोई मजेदार खेल खेलना वगैरह. इससे बच्चा खुद को आप से कनैक्टेड महसूस करेगा और खुद ही आप से अपनी हर बात शेयर करने लगेगा.

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