#coronavirus: आज के भोजन से अच्छा था आदिमानव का खानपान

एक लंबे अरसे तक यह माना जाता रहा कि गुफा में रहने वाले मानव सिर्फ मांस खाते थे. लेकिन अब यह भ्रम साबित हो रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पाषाण युग के इंसान फल, जड़ें, फलों के गूदे और मांस खाते थे. वैज्ञानिकों की एक रिसर्च टीम कहती है कि अगर गुफा मानव की खुराक का हिसाब मिल जाए, तो आज के इंसान की कई तकलीफें दूर हो जाएंगी, पौष्टिकता के आधार पर आहार और डाइट की सही पहचान हो सकेगी.

25 लाख साल पहले से लेकर 12 हजार साल पहले के इस दौर में न आलू था, न ब्रेड थी. दूध का भी अतापता नहीं था. आज इन्हें मुख्य आहार माना जाता है. कृषि की शुरुआत तो गुफा मानव के युग के बाद, आज से करीब 10 हजार साल पहले हुई. ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि किसकी डाइट बेहतर है – आदम इंसान की या हमारी. शरीर, कदकाठी, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य इशारा करते हैं कि गुफा में रहने वाले हमसे ज्यादा सेहतमंद थे.

यूनिलीवर कंपनी के लिए शोध की अगुआई कर रहे वैज्ञानिक डॉक्टर मार्क बेरी कहते हैं कि उनका मकसद आज के लोगों के लिए सेहतमंद खुराक तैयार करना है. वे कहते हैं, “पाषाण युग के आहार में कई तरह के पौधे शामिल थे. आज हम एक दिन ज्यादा से ज्यादा एक सब्जी या 5 फल खा लेते हैं. वे लोग एक दिन में 20 से 25 तरह की सागसब्जी खाया करते थे.”

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आज हम फसलें उगाते हैं और वे हमारे भोजन का अहम हिस्सा हैं. वहीं, शताब्दियों पुराने इंसान कम कार्बोहाइड्रेट व कम वसा वाला खाना खाते थे. वे ज्यादा से ज्यादा सागसब्जियां खाते थे. अब सवाल उठता है कि स्वस्थ आहार कौन सा है. लंदन यूनिवर्सिटी में वंशानुगत बदलावों के प्रोफेसर मार्क थौमस कहते हैं कि गुफा मानव की डाइट ज्यादा बेहतर थी. पुराने शोध बताते हैं कि पत्थरों के सहारे अपनी रक्षा करने वाले गुफा मानवों को आहार की अधिकता संबंधी बीमारियां बहुत कम होती थीं. उन्हें 2 तरह की डायबिटीज नहीं थी, मोटापे का तो अतापता ही नहीं था.

मार्क थौमस कहते हैं, “धीरेधीरे डाइट में कई बदलाव हुए. कई चीजें नई आईं और कई गुम हो गईं. दूध का ही उदाहरण ले लीजिए.  10 हजार साल पहले इंसान ने दूध खोजा. पहले हम दूध को पचा नहीं पाते थे. लेकिन अब यह चीज आदत में ढल गई है. अब हम 100 फीसदी दूध या उससे बनी चीजें खानेपीने लगे हैं.”

वैज्ञानिकों के मुताबिक, आदिमानव जिस तरह की सागसब्जियां खाते थे, उससे हमारा खाना एकदम अलग हो चुका है. आहार संबंधी मामलों की एक और विशेषज्ञ प्रोफेसर मोनिक साइमंड्स कहती हैं, “कृषि के विकास का मॉडल पैसा कमाने पर आधारित है. पौष्टिक आहार पैदा करने के बजाय अब ऐसी फसलों की पैदावार की जा रही है जिनका अंतरराष्ट्रीय बाजार है…गेहूं इसका का एक उदाहरण है.”

इस बात पर वैज्ञानिक एकमत हैं कि मौजूदा दौर में इंसान अनाज पर ज्यादा निर्भर हो गया है. अनाज की कई किस्में आज बाजार में हैं. लेकिन शोधकर्ताओं को अफसोस है कि असली पौधे और उनके गुण इस बदलाव की भेंट चढ़ रहे हैं. शोध करने वालों का सुझाव है कि लोगों को चीनी और अति कार्बोहाइड्रेट वाले आहार से बचना चाहिए. उनकी जगह ऐसी चीजों का इस्तेमाल करना चाहिए जिन्हें अनदेखा किया जा रहा है.

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धीरेधीरे यह बात साफ होने लगी है कि खानेपीने की इन बदली आदतों ने कई नई व घातक बीमारियों को जन्म दिया है. यह भी एक वजह है कि आज का इंसान अपने पूर्वजों की तुलना में शारीरिक रुप से कमजोर हो चुका है.  सो, अब आज के हम इंसानों को अपने खानपान को लेकर सोचना होगा और सावधानी बरतनी होगी.

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