40 की उम्र के बाद फिट एंड हैल्दी रहने के लिए जरूर करवाएं ये टैस्ट

पुरुष हो या स्त्री सभी को अपने सेहत का ख्याल रखना चाहिए. पर देखा जाता है कि घर की जिम्मेदारियों में उलझ कर महिलाएं अपनी सेहत का ख्याल नहीं रख पाती. खास तौर पर जो महिलाएं 40 के पार की होती हैं, वो अपनी सेहत को ले कर काफी लापरवाह होती हैं. जबकि इसी दौरान जरूरी होता है कि आप अपने सेहत को ले कर ज्यादा सजग रहें. क्योंकि इस दौरान स्वास्थ्य की समस्याओं की संभावनाएं और ज्यादा बढ़ जाती हैं. स्वास्थ्य के बारे में पता लगाने के लिए आपको समय रहते कुछ टेस्ट करवा लेनी चाहिए. ये टेस्ट आपके शरीर को स्वस्थ और हेल्दी रखने में मदद करती हैं और यदि किसी प्रकार की कोई समस्या होती है तो उसकी जानकारी भी दे देती है.

1. बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट

40 के बाद महिलाओं को ये टेस्ट कराते ही रहना चाहिए क्योंकि ये बीमारी हार्मोन एस्ट्रोजेन के घटते स्तर के कारण होती है. हड्डियों के सुरक्षा में हार्मोन एस्ट्रोजेन की भूमिका अहम होती है. इसलिए इस टेस्ट को कराते रहना जरूरी है.

2. ब्लड प्रेशर

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि समय समय पर आप बल्ड प्रेशर नापते रहें. ब्लड प्रेशर संबंधी परेशानी उम्र के किसी पड़ाव पर हो सकती है. सही डाइट, एक्सरसाइज और मेडिकेशन की मदद से आप अपने बल्ड प्रेशर को नियंत्रित रख सकती हैं.

3. थायरायड टेस्ट

आजकल महिलाओं में थायरायड की शिकायत तेज हुई है.  इसके कारण उनमें वजन का बढ़ना या घटना, बालों का झड़ना, नाखून के टूटने की शिकायत होती है. इसका कारण थायरायड है. यह ग्रंथि हार्मोन टी 3, टी 4 और टीएसएच को गुप्त करता है और शरीर के चयापचय को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होता है. इसलिए हर 5 सालों में आपको ये टेस्ट कराते रहना चाहिए.

4. ब्लड शुगर

असंतुलित आहार के कारण ब्लड शुगर का खतरा काफी बढ़ जाता है. इसलिए जरूरी है कि 40 की उम्र के बाद ब्लड शुगर टेस्ट कराया जाए. इसे हर साल करनाना चाहिए ताकि आप अपने ब्लड में शुगर की मात्रा से हमेशा अपडेट रह सकें.

5. पेल्विक टेस्ट

महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का खतरा काफी अधिक रहता है. इस लिए जरूरी है कि 40 की उम्र के बाद आप स्त्री रोग विषेशज्ञ के संपर्क में रहें.

6. लिपीड प्रोफाइल टेस्ट

ट्राइग्लिसराइड और बैड कोलेस्ट्रौन के स्तर की जांच के लिए ये टेस्ट जरूरी है. कोलेस्ट्रौल एक मोटा अणु है, जो उच्च स्तरों में उपस्थित होने से रक्त वाहिकाओं में जमा हो सकता है और आपके दिल, रक्त वाहिकाओं और मस्तिष्क के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है. इसलिए हर 6 महीने पर इसकी जांच जरूर करवाएं.

फेशियल हेयर हैं इन गंभीर बीमारियों के संकेत, जरूर करवाएं ये टेस्ट

महिलाओं में हलके और मुलायम फेशियल हेयर होना सामान्य बात हो सकती है, लेकिन जब बाल कड़े और मोटे होते हैं तो यह हारमोन असंतुलन का संकेत है, जिस के कारण कई जटिलताएं हो सकती हैं. इस समस्या को हिर्सुटिज्म के नाम से जाना जाता है.

महिलाओं में मध्य रेखा, ठोड़ी, स्तनों के बीच, जांघों के अंदरूनी भागों, पेट या पीठ पर बाल होना पुरुष हारमोन ऐंड्रोजन के अत्यधिक स्रावित होने का संकेत है, जो एड्रीनल्स द्वारा या फिर कुछ अंडाशय रोगों के कारण स्रावित होता है. इस प्रकार की स्थितियां अंडोत्सर्ग में रुकावट डाल कर प्रजनन क्षमता को कम कर देती हैं. पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) एक ऐसी ही स्थिति है, जो महिलाओं में बालों के अनचाहे विकास से संबंधित है. यह डायबिटीज व हृदयरोगों का प्रमुख खतरा भी है.

जार्जिया हैल्थ साइंसेस यूनिवर्सिटी में हुए शोध के अनुसार, पीसीओएस महिलाओं में हारमोन संबंधी गड़बड़ियों का एक प्रमुख कारण है और यह लगभग 10% महिलाओं को प्रभावित करता है.

हिर्सुटिज्म से पीड़ित 90% महिलाओं में पीसीओएस या इडियोपैथिक हिर्सुटिज्म की समस्या पाई गई है. अधिकतर मामलों में ऐस्ट्रोजन के स्राव में कमी और टेस्टोस्टेरौन के अत्यधिक उत्पादन के कारण यह किशोरावस्था के बाद धीरेधीरे विकसित होता है.

निम्न कारक ऐंड्रोजन को उच्च स्तर की ओर ले जाते हैं, जो हिर्सुटिज्म का कारण बनते हैं:

आनुवंशिक कारण: इस स्थिति का पारिवारिक इतिहास होने से खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है. त्वचा की संवेदनशीलता एक और आनुवंशिक कारण है, जो टेस्टोस्टेरौन का स्तर कम होने पर भी कड़े और मोटे बालों के विकास का कारण बन जाता है.

पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम: जो महिलाएं पीसीओएस से ग्रस्त होती हैं, उन के चेहरे पर बालों का अत्यधिक विकास होता है और यह प्रजनन स्वास्थ्य में कमी का सब से प्रमुख कारण हो सकता है. पीसीओएस के कारण अंडाशय में कई छोटीछोटी गांठें बन जाती हैं. पुरुष हारमोन के अत्यधिक उत्पादन के कारण अनियमित अंडोत्सर्ग, मासिकचक्र से संबंधित गड़बड़ियां और मोटापे की समस्या हो जाती है.

अंडाशय का ट्यूमर: कुछ मामलों में ऐंड्रोजन के कारण होने वाला अंडाशय का ट्यूमर, हिर्सुटिज्म का कारण बन जाता है, जिस के कारण ट्यूमर तेजी से विकसित होने लगता है. इस स्थिति के कारण महिलाओं में पुरुषों के समान गुण विकसित होने लगते हैं जैसे आवाज में भारीपन आना. इस के अलावा योनि में क्लाइटोरिस का आकार बढ़ जाना.

एड्रीनल से संबंधित गड़बड़ियां: एड्रीनल ग्रंथियां, जो किडनी के ठीक ऊपर होती हैं, ऐंड्रोजन का निर्माण भी करती हैं. इन ग्रंथियों के ठीक प्रकार से काम न करने से हिर्सुटिज्म की समस्या हो जाती है.

महिलाओं में चेहरे के बालों का विकास उन की प्रजननतंत्र से संबंधित जटिलताओं जैसे पीसीओएस, कंजेनिटल एड्रीनल हाइपरप्लेसिया (सीएएच) आदि का संकेत होता है, जो गर्भावस्था को रोकने के सब से प्रमुख रिस्क फैक्टर्स में से एक होता है.

ऐसे में डाक्टर संबंधित जटिलताओं को सुनिश्चित करने के लिए निम्न मूल्यांकन करेगा:

स्थिति का पारिवारिक इतिहास

डाक्टर यह जांचेगा कि यौवन किस उम्र में प्रारंभ हुआ, बालों के विकास की दर क्या है (अचानक है या धीरेधीरे). दूसरे लक्षण जैसे अनियमित मासिकचक्र, स्तनों में ऊतकों की कमी, सैक्स करने की प्रबल इच्छा होना, वजन बढ़ना और डायबिटीज का इतिहास. इस बात की भी जांच की जाती है कि पेट में कोई पिंड तो विकसित नहीं हो रहा है.

कई सीरम मार्कर टैस्ट भी किए जाते हैं जैसे-

टेस्टोस्टेरौन: अगर इस का स्तर सामान्य से थोड़ा बढ़ जाता है, तो यह पीसीओएस या सीएएच का संकेत है. अगर इस के स्तर में परिवर्तन सामान्य से बहुत अधिक होता है, तो यह ओवेरियन ट्यूमर का संकेत हो सकता है.

प्रोजेस्टेरौन: यह टैस्ट मासिकचक्र के प्रारंभिक चरण में किया जाता है, सीएएच के संकेत के रूप में.

हारमोंस का उच्च स्तर पीसीओएस का संकेत देता है. अगर प्रोलैक्टिन हारमोन का स्तर बढ़ा होता है, तो यह इस बात का संकेत है कि मरीज हाइपरप्रोलैक्टीमिया से पीड़ित है.

सीरम टीएसएच: थायराइड को स्टिम्युलेट करने वाले हारमोन का स्तर कम होने से हाइपरथायरोडिज्म की समस्या हो जाती है, जो महिलाओं में प्रजनन संबंधी समस्याओं का कारण बनती है.

पैल्विक अल्ट्रासाउंड: यह जांच ओवेरियन नियोप्लाज्मा या पौलिसिस्टिक ओवरीज का पता लगाने के लिए की जाती है.

उपचार

मामूली हिर्सुटिज्म के अधिकतर मामलों में और कोई लक्षण दिखाई नहीं देते, इसलिए उपचार कराने की आवश्यकता नहीं होती है. हिर्सुटिज्म का उपचार बांझपन से संबंधित है. इस में प्रजनन स्वास्थ्य का उपचार करने को प्राथमिकता दी जाती है. इसीलिए उपचार उस समस्या पर केंद्रित होता है जो इस का कारण बनी है.

अगर कोई महिला गर्भधारण करना चाहती है, तो ऐंड्रोजन के स्तर को नियमित करने के लिए दवाएं दी जाती हैं, जिन का सेवन रोज करना होता है. ये टेस्टोस्टेरौन के स्तर को कम करने और प्रजनन क्षमता फिर से पहले जैसी करने में सहायता करती हैं.

-डा. सागरिका अग्रवाल

(गाइनोकोलौजिस्ट, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, नई दिल्ली)

कहीं तकिया तो नहीं है बीमारी का कारण ?

आप में से कुछ लोगों को तब तक नींद नहीं आती होगी जब तक आपको तकिया न मिले. क्या आपको तकिया लेने का जितना शौक है उतना ही उसके रखरखाव का भी है. अगर नहीं, तो इस वजह से आपका यह शौक आपको धीरे-धीरे बीमार कर देगा.

पूरे दिन की भागदौड़ के बाद आपको सुकून की नींद की आवश्यकता तो होगी ही. ऐसे में आरामदायक और मुलायम तकिया आपके लिए सोने में सोने पर सुहागे से कम नहीं होता. हम आपको बता देना चाहते हैं कि आपकी तकिये का सही रखरखाव न होने के कारण यह बीमारी का जरिया भी बन जाता है.

बैक्‍टीरियल संक्रमण का खतरा

आपको भले ही आपके पुराने तकिये से लगाव हो और इसके बिना आपको नींद नहीं आती हो पर क्‍या आप ये बात जानते हैं कि आपको चैन और सुकून की नींद देने वाला ये तकिया बैक्‍टीरिया का घर भी बन जाता है. आपके पुराने तकिये में काफी बैक्टीरिया और धूल हो जाती है. घर के अंदर आने वाली धूल-मिट्टी तकिये पर जम जाती है.

अगर आपके घर में कोई पालतू जानवर है तो उनके जरिये भी आपके तकिये पर बैक्‍टीरिया आ जाते हैं. ये बैक्‍टीरियाज आपकी सांस के जरिये आपके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और अस्‍थमा जैसी श्‍वसन संबंधी बीमारी का कारण बनते हैं. इसके अलावा इनके कारण आपको एलर्जी भी हो सकती है.

दर्द का कारण

पुराने तकिये का अधिक समय तक प्रयोग करने से गर्दन और पीठ में दर्द हो सकता है. चूंकि हमें सोते वक्‍त थोड़े सहारे की जरूरत होती है और अगर तकिये से सही तरीके से सहारा न मिले तो रीढ़ की ह‍ड्डी पर दबाव पड़ता है और इसके कारण गर्दन या कमर में भी दर्द होने लगता है.

तकिये की जांच कैसे करें

अगर आपका तकिया पुराना हो चुका है और उसका प्रयोग अब नहीं हो सकता है तो पहले उसकी जांच कर लें. यह देख लें कि तकिये में कितनी गंदगी जमी हुई है. इसके अलावा आपको सोते वक्त इससे परेशानी तो नहीं होती, यानि आपकी रात करवट बदलते हुए तो नहीं बीत जाती और सुबह उठने पर अगर आपको गर्दन में अकड़न, पीठ, टखनों या घुटनों में दर्द महसूस हो तो समझ जाइये कि अब तकिये को बदल देने की जरूरत है.

तकिया कैसा होना चाहिए

बाजार में कई तरह के तकिये मिलते हैं, उनमें से आपके लिए सबसे बेहतर तकिये का चुनाव करना आपके लिए मुश्किल तो हो सकता है, तो ऐसे में एक बेहतर और आरामदेह तकिये की खरीद में हम आपकी मदद कर सकते हैं..

1. पालिएस्‍टर सबसे मशहूर और सस्‍ता होता है, क्‍लस्‍टर युक्‍त इन तकियों को आप वॉशिंग मशीन में धो सकते हैं. इनको दो साल में बदल दीजिए.

2. लैटैक्स तकिये बहुत आरामदायक होते हैं, इनको तो आप 10-15 साल तक प्रयोग कर सकते हैं.

3. मेमोरी फोम तकिये भी बहुत ही आरामदेह होते हैं, क्‍योंकि ये लेटने पर सिर और गर्दन की शेप खुद ही बना लेते हैं. गर्भवती महिलाओं को इन तकियों का ही प्रयोग करने की सलाह दी जाती है.

4. पानी वाले तकिये में पानी के पाउच जैसा सपोर्ट होता है, ये तकिये नर्म होते हैं और हाइपो-ऐलर्जिक भी होते हैं, हां पर ये थोड़ा आरामदेह नहीं होते हैं.

इन बातों का रखें विशेष ध्‍यान :

अगर आप तकिया को लंबे समय तक इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों को ध्‍यान में रखना चाहिए..

1. अगर आपके बाल गीले हों तो तकिये पर न लेटें, क्‍योंकि गीली और गंदी जगह पर बैक्टीरिया जल्‍दी और ज्‍यादा पनपते हैं.

2. तकिये के साथ-साथ इसके कवर का भी ध्‍यान रखें. तकिये का कवर ऐसा हो जिससे धूल-मिट्टी अंदर तक न पहुंचे. अगर मुमकिन हो सके तो अपने बेडरूम में डी-ह्यूमिडफायर लाकर रख लें.

3. इन सुझावों और उपायों को ध्‍यान में रखेंगे तो आपकी नींद के बीच में आपका तकिया नहीं आयेगा. आपको चैन की नींद भी आएगी और आप हमेशा स्वस्थ्य रहेंगे.

Health Tips: क्या आप भी खाली पेट खाते हैं ये चीजें, तो जान लें इससे होने वाले नुकसान

अक्‍सर कई खाद्य पदार्थों के बारे में कहा जाता है कि वो आपके स्‍वास्‍थय के लिए काफी लाभदायक हैं, पर इसके बावजूद उनका सेवन आपको नुकसान पहुंचा देता है. कई बार स्वास्थय के लिए फायदमंद चीजें भी गलत समय पर खाने से सेहत पर इसका उल्टा असर हो जाता है.  कई खाद्य पदार्थ अगर खाली पेट लिए जायें तो वे बेहद नुकसानदेह हो सकते हैं. यहां हम आपको बता रहें हैं कि खाली पेट किन खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए.

1. सोडा

सोडा में उच्च मात्रा में कार्बोनेट एसिड पाया जाता है. जब यह पेट में मौजूद अम्ल के साथ मिलता है तो पेट दर्द जैसी कई परेशानियों को जन्म देता है.

2. केला

खाली पेट केला खाने से शरीर में मैग्नीशियम की मात्रा काफी बढ़ जाती है जिसकी वजह से शरीर में कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्रा में असंतुलन हो जाता है. इसलिए सुबह खाली पेट केला न खाएं.

3. टमाटर

कच्चे टमाटर खाने के कई फायदे होते हैं लेकिन खाली पेट कच्चे टमाटर खाना नुकसानदायक हो सकता है. टमाटर में मौजूद अम्लीयता पेट में उपस्थित गैस्ट्रोइंटस्टानइल एसिड के साथ क्रिया करके एक ऐसा जेल बनाता है जो पेट दर्द, ऐंठन जैसी समस्याओं का कारण बनता है. खाली पेट टमाटर खाने से पथरी होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

4. दवाइयां

आपने अक्सर डाक्टर को ये कहते सुना होगा कि कुछ खाने के बाद ही दवाइयां लेना. हमारे घरों में भी हमें यही बताया जाता है कि कोई भी दवा खाली पेट नहीं लेनी चाहिए. इसकी मुख्य वजह ये है कि खाली पेट दवा लेने से वह पेट की सबसे अंदरुनी सतह को प्रभावित करती है और पेट में मौजूद एसिड्स के साथ क्रिया करके शरीर के संतुलन को डिस्टर्ब कर देती है.

5. अल्कोहल

कई लोगों को खाली पेट अल्कोहल लेना पसंद होता है. ऐसे में नशा जल्दी होता है, लेकिन खाली पेट अल्कोहल लेने से आंतें बुरी तरह प्रभावित होती हैं.

6. चीनी

सुबह उठकर या फिर खाली पेट आप किसी मीठी चीज को खाते-पीते हैं तो यह आपके शरीर में डायबिटीज को बढ़ने का खतरा ज्यादा हो जाता है. इसलिए जरूरी है कि खाली पेट पहले पानी पिएं फिर कोई चीज खाएं.

7. मसालेदार खाना

ज्यादातर लोगों को मसालेदार और चटपटा खाना पसंद होता है लेकिन ऐसी चीजों को कभी भी खाली पेट नहीं लेना चाहिए. हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से कुछ एसिड मौजूद होते हैं. बहुत अधिक मसालेदार खाना खाने से इस एसिड और मसालों के बीच जो रासायनिक क्रिया होती है, उसका आंतों पर बुरा असर पड़ता है.

8. कौफी

खाली पेट कौफी का सेवन करना नुकसानदायक हो सकता है. कौफी में मौजूद कैफीन पेट के लिए सही नहीं होता है. अगर आपको सुबह के समय कौफी पीने की आदत है तो आप पहले एक गिलास पानी पी लें. उसके बाद ही कौफी का कप लें.

9. चाय

इसी तरह चाय का सेवन भी खाली पेट नहीं करना चाहिए. खाली पेट चाय पीने से गैस और कब्ज होने की आशंका बढ़ जाती है.

Monsoon Special: बारिश के मौसम में हेल्दी रहने के लिए फौलो करें ये डाइट प्लान

मौनसून में रिमझिम बारिश की बूंदें मन को छू जाती है, लेकिन यह मौसम जितना सुहावना होता है, उतना ही बीमारियों को बढ़ाने वाला भी, क्योंकि इस मौसम में नमी होने के कारण हवा में कई बैक्टीरिया और वायरस उत्पन्न होते हैं, जो हमारे खानपान के जरीए हमारे शरीर में प्रवेश कर के हमें संक्रमित कर सकते हैं.

इसलिए इस समय खानेपीने की चीजों का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है ताकि हम अपनी हैल्दी ईटिंग हैबिट्स से अपनी इम्यूनिटी को बढ़ाने के साथसाथ खुद को बीमारियों से भी दूर रख पाएं.

इस संबंध में जानते हैं ‘डाइट पोडियम’ की फाउंडर ऐंड होलिस्टिक न्यूट्रिशनिस्ट डाइटीशियन शिखा महाजन से कि किन चीजों को अपनी डाइट में शामिल करें और किन से दूरी बनाएं:

कप औफ सूप

चाहे बच्चे हों या बड़े, किसी को कोई सब्जी पसंद नहीं होती तो किसी को कोई. इस कारण भूख लगने पर कभी फास्ट फूड बनाया जाता है तो कभी बाहर का खाना मंगवाया जाता है, जबकि फास्ट फूड में कैलोरीज, सोडियम और अनहैल्दी फैट्स होते हैं और न्यूट्रिशन व फाइबर न के बराबर. हम एक टाइम में फास्ट फूड से उतनी कैलोरीज ले लेते हैं, जितनी हमें पूरे दिन में जरूरत होती है.

इसलिए जब भी पूरे दिन में फास्ट फूड खाने को मन करे तो आप वैजिटेबल सूप, किचन सूप से अपनी टमी को लंबे समय तक फुल रखें. इस से आप को जरूरी सब्जियां भी मिल जाएंगी और आप की इम्यूनिटी भी बूस्ट होगी, जो मौसमी बीमारियों से आप को बचाने का काम करेगी.

काम की बात

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप औफ बेटियन सूप- 50 कैलोरीज, लो कार्ब्स, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स से भरपूर.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप औफ चिकन सूप- 50 ग्राम चिकन में 64-70 कैलोरीज,  6-7 प्रोटीन, 1 ग्राम फैट.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप औफ कौर्न सूप- 1/2 कप कौर्न में 70-80 कैलोरीज.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप औफ टोमैटो सूप 70-80 कैलोरीज.

गौर करें

बाहर के वैजिटेबल सूप में कैलोरीज  150-170 कैलोरीज.

क्या ध्यान रखें: इस बात का ध्यान रखें कि सूप होममेड ही हो, क्योंकि बाहर के सूप को टेस्टी और गाढ़ा बनाने के लिए, उस में सब्जियों की मात्रा कम व बटर व कौर्न फ्लोर भरभर कर डाला जाता है, जो ब्लड शुगर लैवल को बढ़ाने के साथसाथ दिल की सेहत को भी बिगाड़ने का काम करता है.

फाइबर के लिए साबूत अनाज

आप ने सुना ही होगा कि अगर अपनी डाइट में साबूत अनाज को शामिल करेंगे तो बीमारियां आप के पास तक नहीं फटकेंगी. असल में साबूत अनाज जैसे ओट्समील, केनोआ, पोहा, ब्राउन राइस, बाजरा, जवार, रागी इत्यादि में फाइबर बहुत ज्यादा मात्रा में होता है, जो लंबे समय तक पेट को फुल रखने के साथसाथ पाचनतंत्र को भी दुरुस्त बनाए रखने का काम करता है. साथ ही इस में प्रोबायोटिक भी होते हैं, जो आंतों में गुड बैक्टीरिया को बढ़ाने में मददगार होते हैं. इस से इम्यूनिटी भी मजबूत बनती है.

साथ ही यह खतरनाक बीमारियों जैसे डायबिटीज, कैंसर, ब्लड प्रैशर के खतरे को कई गुणा कम करने का काम करती है.

इसलिए आप अपनी डाइट में ओट्स, वैजिटेबल केनोआ, पोहा, साबूत अनाज से बनी रोटी, ब्राउन राइस मील, चने आदि को शामिल करें. ये आप की फिटनैस का भी ध्यान रखने का काम करेंगे, क्योंकि इन में फाइबर आप की भूख को शांत जो करेगा.

काम की बात

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल वैजिटेबल केनोआ- 250 कैलोरीज.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल बौइल ब्राउन राइस- 200 कैलोरीज.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन 2-3 रागी रोटी- 100 कैलोरीज पर रोटी.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल मसाला ऐंड वैजिटेबल ओट्स- 150 कैलोरीज.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल शुगर  ओट्स- 350 कैलोरीज. इस में फू्रट्स, शहद व दूध ऐड किया हुआ है.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल व्हाइट  पोहा- 120 कैलोरीज. गौर करें

न्यूट्रिशन वैल्यू इन 2-3 बाइट रोटी में- 130 कैलोरीज पर रोटी.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल व्हाइट राइस में- 250 कैलोरीज.

वैजिटेबल्स व दालें

सब्जियां जैसे लौकी, कद्दू, तुरई, टिंडा, करेला, बींस को अपने मील में जरूर शामिल करें, क्योंकि ये सब्जियां फाइबर, विटामिंस, मिनरलस व ऐंटीऔक्सीडैंट्स में रिच होती हैं. इन्हें आप अलगअलग तरीके से बना सकती हैं. जैसे कभी लौकी की सब्जी, तो कभी लौकी का कोफ्ता तो कभी टिंडे की भरवा आलू जैसी सब्जी. यहीं नहीं इन सब सब्जियों को बारीकबारीक काट कर इन का कटलेट या इन से उत्तपम भी बनाया जा सकता है.

ठीक इसी तरह प्रोटीन, विटामिंस व मिनरल्स से संबंधित शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक बाउल दाल व स्प्राउट्स रोजाना जरूर खाएं. इस के लिए जरूरी है कि एक दाल से चिपके न रहें बल्कि रोजाना बदलबदल कर दाल बनाएं.

इस से शरीर को प्रोटीन भी मिल जाएगा और दाल खाने से आप ऊबेंगे भी नहीं. जिन लोगों को डायबिटीज, पीसीओएस की शिकायत होती है, वे दालों से फाइबर की कमी को पूरा कर के इंसुलिन के लैवल को मैंटेन रख सकते हैं.

इन दिनों बालों व स्किन की चिंता भी बहुत अधिक सताती है. ऐसे में कुल्थ की दाल उन्हें अनेक फायदे पहुंचाने का काम करेगी, क्योंकि इस दाल में पौलीफिनोल्स नामक ऐंटीऔक्सीडैंट्स आप को हैल्दी रखते हैं.

साथ ही इस दाल के सेवन से यूरिन का फ्लो बढ़ता है, जो बौडी से टौक्सिंस को बाहर निकालने के साथसाथ किडनी स्टोन से भी नजात दिलाने का काम करता है. इस में आयरन, प्रोटीन, कैल्सियम होने के कारण यह बालों की हैल्थ व आप की अनियमित पीरियड्स की समस्या को भी दूर करने में मददगार होता है.

हरी पत्तेदार सब्जियां खाने से बचें

वैसे तो हरी पत्तेदार सब्जियां खाने की सलाह दी जाती है, लेकिन मौनसून के मौसम में इन्हें खाने से बचना चाहिए, क्योंकि एक तो मौसम में नमी और दूसरा पत्तेदार सब्जियों में प्राकृतिक नमी इसे कीटाणुओं के पनपने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती है और जब हम हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, पत्तागोभी, साग इत्यादि खाते हैं, तो उन के जरीए कीटाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर के हमारे इम्यून सिस्टम को कमजोर बना कर हमें बीमार कर सकते हैं.

वहीं मशरूम भी नमी वाली जगह पर लगाई जाती है, इसलिए इस में बैक्टीरियल इन्फैक्शन होने का खतरा सब से अधिक रहता है. इसलिए मौनसून के मौसम में इन चीजों से दूरी बना कर रखें वरना इन से नजदीकी आप को बीमार बना सकती है.

ठंडी चीजों से परहेज रखें

अगर खानेपीने की चीजों का सही समय पर सेवन किया जाता है तो उस के शरीर को ढेरों फायदे मिलते हैं वरना वे शरीर को नुकसान पहुंचाने का ही काम करती हैं. जैसे दही, छाछ, जूस न सिर्फ शरीर की न्यूट्रिएंट संबंधित जरूरतों को पूरा करने का काम करते हैं, बल्कि इन से शरीर हाइड्रेट भी रहता है.

लेकिन अगर मौनसून के सीजन में इन चीजों का सेवन किया जाता है तो आप को जल्द ही सर्दी, खांसीजुकाम होने का डर बना रहता है, क्योंकि गरमी के बाद एकदम से तापमान में गिरावट आती है व फ्लू के चांसेज ज्यादा बढ़ जाते हैं.

साथ ही हमारा पाचनतंत्र भी मौनसून के मौसम में थोड़ा कमजोर हो जाता है, जिस से मौसमी बीमारी तुरंत हमें अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं. इसलिए इस दौरान ठंडी चीजों से दूरी ही सही है. इस बात का भी ध्यान रखें कि कटे हुए फल न खाएं, क्योंकि हवा में संक्रमण होने के कारण बीमार होने की संभावना ज्यादा रहती है.

हर्बल टी है बैस्ट विकल्प

गरमी के बाद जैसे ही मौसम में थोड़ी ठंडक आती है, तो चाय पीने का मजा ही अलग होता है, क्योंकि एक तो यह शरीर को ठंडक पहुंचाने का काम करती है, दूसरा हर्बल टी में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट्स प्रौपर्टीज आप के इम्यून सिस्टम को बूस्ट कर के आप को विभिन्न तरह के बैक्टीरिया इन्फैक्शन से बचा कर आप को कोल्ड और फ्लू से प्रोटैक्ट करने में मददगार होती है.

साथ ही शरीर से टौक्सिंस को भी फ्लश आउट करने में मददगार है और अगर आप को ग्रीन टी पीना पसंद नहीं है तो आप उस के टेस्ट को बढ़ाने के लिए उस में चीनी की जगह गुड़ या फिर शहद डाल सकते हैं, क्योंकि चीनी डालने से उस की कैलोरीज काफी बढ़ जाती है, जिस से बचना जरूरी है.

लैमन टी भी लो शुगर व लो कैलोरी वाली होने के साथसाथ विटामिंस व मिनरल्स से भरपूर होती है. इस में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट्स आप की इम्यूनिटी को बूस्ट करने के साथसाथ आप को मौसमी बीमारियों से बचाए रखने का भी काम करते हैं.

काम की बात

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप ग्रीन टी- 5 कैलोरीज पर टी बैग, लेकिन अगर आप उस में शहद व गुड़ ऐड करते हैं तो उस में 70-80 कैलोरीज हो जाती हैं.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप लैमन टी- 3-4 कैलोरीज.

डेयरी प्रोडक्ट्स से दोस्ती जरूरी

वैसे तो मौनसून के मौसम में डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन कम मात्रा में करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि पाचनतंत्र बहुत अधिक संवेदनशील हो जाता है और इन उत्पादों का बहुत अधिक सेवन करने से दस्त व पाचन संबंधित दिक्कतें हो सकती हैं. लेकिन यह भी सच है कि अगर आप ठंडे दूध के बजाय हलदी वाला दूध लें.

चीज को भी अपनी डाइट में शामिल करें तो यह आप की इम्यूनिटी को भी बूस्ट करेगा और जिन्हें जल्दी सर्दीखांसी हो जाती है, उन्हें भी इस से बचाए रखेगा, क्योंकि इस में ऐंटीवायरस, ऐंटीफंगल व ऐंटीबैक्टीरियल प्रौपर्टीज जो होती हैं.

काम की बात

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप हलदी मिल्क- 100-120 कैलोरीज.

मुझे बैडमिंटन कोर्ट में चोट लगने के कारण बाएं घुटने में पहले जैसी ताकत नहीं रह गई है?

सवाल-

मैं 21 साल का बैडमिंटन खिलाड़ी हूं. पिछले साल मुझे बैडमिंटन कोर्ट में चोट लग गई थी. उसी के बाद से मेरे बाएं घुटने में पहले जैसी ताकत नहीं रह गई है. सर्दियों में यह बहुत ज्यादा दर्द करता है. क्या टीकेआर मेरे लिए विश्वसनीय समाधान होगा?

जवाब-

घुटनों के दर्द ने नौजवानों, युवाओं और बुजुर्गों सभी को समान रूप से जकड़ रखा है. आप के  मामले में घुटनों को बदलने की सर्जरी का फैसला लेने से पहले डाक्टर से मिल कर सही जांच कराना ठीक होगा. अगर आप का डाक्टर आप को टीकेआर की सलाह देता है, तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है. यह बहुत ही सुरक्षित प्रक्रिया है. अब इस क्षेत्र में उपलब्ध नई तकनीकों से एक इंप्लांट की मदद से क्षतिग्रस्त घुटनों को बदला जा सकता है, जिस से कुछ ही हफ्तों में आप के घुटनों में पहले जैसी ताकत वापस आ जाएगी. इस के अतिरिक्त इस से अपना लाइफस्टाइल भी सुधारने में मदद मिलेगी. इंप्लांट कराने से तापमान का पारा गिरने या सर्दियों में आप के घुटनों को बेहतर तरीके से कामकाज करने में मदद मिलेगी.

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इस विषय पर मुंबई के फोर्टिस हौस्पिटल के डा. कौशल मल्हान, जो यहां के सीनियर और्थोपैडिक कंसल्टैंट हैं और घुटनों की सर्जरी के माहिर हैं से बातचीत की गई. वे पिछले 20 सालों से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं. उन का कहना है कि हमेशा से हो रही घुटनों की प्रत्यारोपण सर्जरी ही इस रोग से मुक्ति दिलाती है, पर यह पूरी तरह कारगर नहीं होती, क्योंकि सर्जरी के दौरान मांसपेशियां और टिशू क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. परिणामस्वरूप जितना लाभ व्यक्ति को चलनेफिरने में होना चाहिए उतना नहीं हो पाता. इसलिए डा. कौशल मल्हान पिछले 7-8 साल से इस शोध पर जुटे रहे कि कैसे इस क्षति को कम किया जाए. अंत में उन्हें यह सफलता मिली और आज पिछले 3 सालों से वे अलगअलग आयुवर्ग के 900 से अधिक मरीजों का इलाज कर चुके हैं. एसिस्टेड तकनीक घुटनों के प्रत्यारोपण सर्जरी में परिशुद्धता के लिए प्रयोग में लाई जाती है. इस तकनीक से मांसपेशियों के कम क्षतिग्रस्त होने से सर्जरी के बाद व्यक्ति जल्दी चलनेफिरने लगता है और सर्जरी की गारंटी भी बढ़ती है. इस विधि से सर्जरी करने पर, रिकवरी जल्दी होती है व दर्द भी कम होता है.

क्या आप भी बैठेबैठे हिलाते हैं पैर? अगर हां तो हो जाएं सावधान!

अक्सर हम देखते है की कुछ लोगों में जाने अनजाने ऐसी बहुत सी आदतें है जो अपने आप devlope हो जाती हैं और उनके डेली लाइफ का हिस्सा बन जाती हैं. जैसे नाखून चबाना, कुर्सी पर झूलना, कंधे उचकाना, बार-बार पलकें झपकाना या बैठे-बैठे पैर हिलाना. actually आम तौर पर लोग इसे सामान्य आदत के रूप में लेते हैं. लेकिन यह सिर्फ एक आदत नहीं बल्कि एक बीमारी है और इस बारे में लोगों को जानकारी ही नहीं है.

अक्सर आप लोगों ने देखा होगा की कुछ लोग सोफे पर, बिस्तर पर या कुर्सी पर बैठे-बैठे अपने पैरों को हिलाते रहते हैं. और आपने ये भी गौर किया होगा की जब हम नाखून चबाते है या पैर हिलाते है तो अक्सर हमारे बुजुर्ग लोग हमे टोकते हैं और हम सोचते हैं की ‘मेरे पैर हिलाने से उन्हें क्या परेशानी है’. दरअसल ऐसी बहुत सी चीज़े हैं जो हम करते हैं पर हमारे बड़े बुजुर्ग हमें वो चीज़ें करने से रोकते हैं.आज हम आपको बताएँगे की आखिर ऐसा क्यूँ होता है.

दरअसल .वैदिक काल में हमारे पूर्वजों ने कुछ ऐसे नियम बनाये थे जिसका पालन करके हम स्वस्थ और सुखी जीवन जी सकते हैं.ये बाते सही प्रूफ होने पर ये नियम एक परंपरा में बदल गए. पर ये तो हम भी जानते हैं की कोई भी चीज़ ऐसे ही परंपरा नहीं बन जाती हैं.सभी परम्पराओं के पीछे कोई ठोस और scientific रीज़न छिपे हुए होते हैं.

ऐसा ही एक scientific रीज़न हैं पैर हिलाने के पीछे. .विशेषज्ञ इसे बीमारी का संकेत मानते हैं. अगर आपमें भी बैठे-बैठे पैर हिलाने की आदत है तो हो सकता है की आप इस बीमारी के शिकार हो.इस बीमारी को ‘रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम’ के नाम से जाना जाता है.

क्या है ये बीमारी?

बेवजह पैर हिलाने की आदत को मेडिकल साइंस में ‘ रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम’ (RLS ) (RLS ) ’ कहते है. इस बीमारी पर बोस्‍टन के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल शोध किया गया . शोध में यह पाया गया की ‘रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम’ यानी (RLS ) नर्वस सिस्टम से जुड़ा रोग है. या तो यूँ कहे की ये सीधे तौर पर नींद कम आने की समस्या से जुड़ा हुआ है. इसे स्लीप डिसऑर्डर भी कहते हैं.

नींद पूरी न होने पर वह थका हुआ महसूस करता है. पैर हिलाने पर व्यक्ति में डोपामाइन हार्मोन स्त्रावित होने के कारण मनुष्य को अच्छा अनुभव होने लगता है और उसे बार-बार पैर हिलाने का मन होता है.

इसके प्रमुख डाक्टर जान डब्ल्यू विंकलमैन के मुताबिक , ‘ रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम (RLS ) से पीडि़त लोगों में हार्ट अटैक का खतरा दोगुना तक बढ़ जाता है.क्योंकि RLS से पीडि़त व्यक्ति नींद आने से पहले 200 से अधिक बार अपना पैर हिला चुका होता है. इससे व्यक्ति का ब्लड प्रेशर और हार्ट बीट काफी बढ़ जाती हैं.धीरे धीरे आगे चलकर यह दिल की बीमारियों यानी कार्डियोवस्कुलर डिजीज की सबसे बड़ी वजह बन जाती है.’

उन्होंने 68 साल की औसत उम्र वाले 3400 लोगों पर शोध करने के बाद इस बात की पुष्टि की.शोध के दौरान 7% महिलाओं व 3% पुरुषों में RLS और दिल की बीमारियों में सीधा संबंध मिला. इतना ही नहीं, RLS लक्षणों को जब उम्र, वजन, ब्लड प्रेशर और धूम्रपान जैसे दूसरे कारणों से जोड़ा गया तो पता चला कि पैर हिलाने की मामूली सी लगने वाली ये आदत दरअसल हार्ट अटैक के खतरे को दोगुना तक बढ़ा देती है.

किन व्यक्तियों में ये बीमारी पायी जाती है?

अध्यनों में ये बात प्रूफ हुई है की 25 % लोगों में ये समस्या आम तौर पर होती है. इसके ज्यादातर लक्षण 25 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों में पाए जाते हैं. इस बीमारी के और भी कारन हो सकते है जैसे-
– जो लोग किसी तनाव के कारण पूरी नींद नहीं ले पाते वह इस बीमारी का शिकार होते हैं.
– देर रात तक काम करने वालों को अत्यधिक थकान होने के कारण भी ये बीमारी हो सकती है.

– महिलाओं में यह समस्या पीरियड्स या प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले हारमोनल बदलाव के कारण होती है.

-वजन का ज्यादा होना, व्यायाम ना करना, शराब और सिगरेट का अत्यधिक सेवन करना भी इसके मुख्य कारण हैं.

– पार्किंसस और किडनी की बीमारी से पीड़ित मरीज में भी इसके लक्षण पाए जाते हैं.
– शरीर में आयरन, मैग्नीशियम और विटामिन बी12 आदि पोषक तत्वों की कमी भी इस बीमारी का कारन हो सकती हैं. इसके अलावा डिप्रेशन या एलर्जी की दवाई लगातार खाने से भी रेस्टलेस लेग सिंड्रोम की समस्या हो सकती है.

क्या है इस बीमारी का इलाज़?

इस बीमारी से खुद को निजात दिलाने के लिए आप नीचे लिखे तरीके अपना सकते हैं.

1-अपने भोजन में आयरन युक्त चीजों को शामिल करें. जैसे सरसों का साग, पालक, केला, चुकंदर इत्यादि.

2-शराब या सिगरेट का सेवन बंद कर दे या इसका सेवन कम कर दें.

3-कम से कम 7 या 8 घंटे की अच्छी नींद जरूर लें.

4-कैफीन युक्त पेय पदार्थों जैसे कॉफ़ी ,चाय इत्यादि का सेवन अधिक न करे और रात में सोने से पहले तो बिलकुल भी नहीं.

5-हल्के गुनगुने पानी में नहाने से भी इस समस्या को काफी हद तक टाला जा सकता है.

6-ज्यादा से ज्यादा फलों और सब्जियों का सेवन करें.

7-पैरों की अच्छे से मसाज करने पर भी इस समस्या से निजात पाई जा सकती है.

8-रोजाना व्यायाम जरूर करें और प्रतिदिन medium स्पीड से पैदल चले.

9-सोने के पहले अपने घुटने के नीचे की, जांघों की और कूल्हों की माँसपेशियों को स्ट्रेच करें, इससे लाभ होगा.

10-कुछ खास व्यायाम जैसे हॉट ऐंड कोल्ड बाथ, वाइब्रेटिंग पैड पर पैर रखने से भी राहत मिलती है.
अगर आपको ज्यादा परेशानी हो तो डॉक्टर की सलाह लें.

इस लेख के माध्यान से मेरा सिर्फ आपसे ये कहना है की कोई भी चीज छोटी नहीं होती है.इसलिए आवश्यक है कि अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए इन छोटी सी दिखने वाली चीजों पर ध्यान दें, जिससे आगे चलकर आपको किसी बड़ी परेशानियों का सामना न करना पड़े.

क्या कील से चोट लगने के 6 महीने बाद भी टिटनेस हो सकता है?

सवाल

मैं 25 साल की युवती हूं. लगभग 6 महीने पहले मेरे पैर में कील चुभ गई थी. लेकिन मैं टिटनैस का टीका नहीं लगवा पाई. पैर में कभीकभी सरसराहट सी दौड़ती है, तो डर जाती हूं कि कहीं मुझे टिटनैस तो नहीं होने वाला. क्या चोट लगने के इतने समय बाद भी मुझे टिटनैस हो सकता है? मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

चोट लगने के 6 महीने बाद अब टिटनैस होने का डर लगभग न के बराबर है. जिन मामलों में चोट लगने पर टिटनैस होना होता है, प्राय: यह 3 हफ्तों के अंदर प्रकट हो जाता है.

टिटनैस उन्हीं लोगों को होता है, जिन्होंने बचपन में या जीवन में पहले ठीक से टिटनैस टौक्सायड (टीटी) के टीका नहीं लिए होते. उन के जख्म में टिटनैस उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया पैठ कर जाते हैं.

बचाव के लिए यह जरूरी है कि टिटनैस टौक्सायड के 3 टीके आप ने पहले से लिए हों. दूसरा टीका पहले टीके के 6 हफ्तों बाद लगाया जाता है और तीसरा टीका पहले टीके के 6 महीने बाद. उस के बाद हर 10 साल बाद यह टीका लगवाते रहना चाहिए. घाव बहुत गंदा हो, तो पहला टीका लगे 5 साल बीत चुके हों तब भी यह टीका लगवा लेना चाहिए. इस से टिटनैस नहीं होता.

जिन लोगों ने कभी टिटनैस का टीका नहीं लिया होता, उन्हें डाक्टर से तुरंत मिल कर टिटनैस के 3 टीकों का कोर्स तो लेना ही चाहिए. टिटनैसरोधी इम्युनोग्लोबुलिन का टीका भी जरूर लगवा लेना चाहिए.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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नियमत रूप से पीएं दूध और जाने क्या हैं इसके फायदे

दूध पीने किसे नहीं पसंद है…बच्चे हो या बड़े- बूढ़े सभी को अच्छा लगता है…किसी के भी घर में दूध के बिना तो कोई शुरूआत ही नहीं होती है. दूध भले ही एक पेय पदार्थ है, लेकिन दूध को एक कंपलीट फूड माना जाता है.बहुत से लोग दूध के बिना अपना आहार अधुरा मानते हैं. दूध भारतीय शाकाहारी पदार्थों  का अहम हिस्सा होता है.यहां तक की अगर बच्चे रात को खाना नहीं खाते हैं तो दूध पीकर सो जाते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि वो संपूर्ण आहार माना जाता है इसलिए इसे एक पूरा खाना माना जाता है.

दूध के कितने  प्रोडक्ट बनते हैं ये तो जग जाहिर है. तमाम तरह की मिठाइयां दूध के बिना संभव ही नहीं है. दूध में सिर्फ कैल्शियम ही नहीं, प्रोटीन, विटामिन ए, बी1, बी2, बी12 और डी, मैग्नीशियम और पोटेशियम जैसे कई पोषक तत्व होते हैं जो मानव शरीर के लिए बहुत ही आवश्यक है. बहुत बार जब लोगों को चोट लग जाती है या कोई बिमार है तो उसको हल्दी मिलाकर दूध पीने को देते हैं क्योंकि वो बिमारी में भी दूध काफी शक्ति देता है. अपने पाचक और पोषण गुणों के कारण आयुर्वेद में भी दूध का एक विशेष स्थान है.

जानिए दूध पीने का सही वक्त आखिर क्या है ?

वैसे तो लोगों को जब मन होता है तब दूध पी लेते हैं. कई लोग दावा करते हैं कि सुबह दूध पीना सेहत के लिए ज्यादा सही है जबकि कई लोग रात में दूध पीना ज्यादा सही मानते हैं.देखा जाए तो जो छोटे बच्चे होतें हैं जो खाना नहीं खा सकते हैं उन्हें दिन में कई बार दूध पिलाया जाता है और चूंकि वो खा नहीं सकते हैं इसलिए दूध पिलाते हैं और दूध ही इसलिए क्योंकि वो एक संपूर्ण आहार है. लेकिन जो भी बड़े लोग या स्कूल वाले बच्चे होतें हैं तो वो रात को या सुबह दूध पीते हैं लेकिन एक रिर्पोट के मुताबिक आयुर्वेद के अनुसार, दूध पीने का सही वक्त रात में है. कहा जाता है कि रात में सोते वक्त दूध पीना चाहिए. वैसे सुबह दूध पीना भी फायदेमंद होता है, क्योंकि जिन लोगों को एसिडिटी की दिक्कत होती है, उन्हें रात में दूध पचाना मुश्किल होता है क्योंकि उनकी पाचन शक्ति इतनी मजबूत नहीं होती है.

इसके साथ ही अगर घर में 4 से 5 साल तक के बच्चे हैं तो दिन में दूध पीना उनकी सेहत के लिए अच्छा रहता है. लेकिन, ज्यादा सही रात में दूध पीना ही माना जाता है.साथ ही डॉक्टर्स के मुताबिक जिन लोगों को दूध से एलर्जी  है वो भले ही न पीए , लेकिन उसके आलावा सभी लोगों को दूध पीना चाहिए. चूंकि ये पूरा खाना माना जाता है इससे आपकी सेहत अच्छी रहेगी और साथ ही अगर आप रात में सोने से पहले दूध पीते हैं तो आपको नींद भी अच्छी होती है. साथ ही दूध को हमेशा थोड़ा सा गरम ज्यादा नहीं हल्का गुनगुना करके ही पीना चाहिए. दूध के पाचक और पोषण गुणों के कारण आप भी स्वस्थ रहते हैं. जब आप रात में दूध पीते हैं तो आपको कैल्शियम का ज्यादा फायदा मिलता है, क्योंकि रात में आपकी एक्टिविटी लेवल काफी कम रहता है क्योंकि आप रात को सोते हैं.बहुत बार ऐसा होता है कि जो लोग वर्किंग हैं उसमें से कुछ लोगों की नाईट शिफ्ट होती हैं तो वो दिन में सोते हैं ऐसे में अगर वो चाहे उस वक्त दूध पीकर सो सकते हैं और यदि आप चाहें तो खुद डॉक्टर से इसके बारे में सलाह ले सकते हैं.

Health Tips: बदल डालें खाने की आदतें

हम अपने काम में अपने आप को इतना व्यस्त कर लेते हैं कि हम अकसर अपनी सेहत से समझौता कर बैठते हैं और हैल्दी रहने के लिए जिम जा कर पसीना बहाते हैं, डाइटिंग करते हैं और सोचते हैं कि ये सब कर खुद को बीमारियों से बचा सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है आप चुस्त हो या दुरूस्त हो कितने ही हैल्थ कौंशस क्यों न हो फिर भी दुनियाभर की बीमारियां आप को घेर ही लेती हैं इसलिए सिर्फ स्वस्थ आहार या व्यायाम ही काफी नहीं है बल्कि इन के साथसाथ हैल्दी ईटिंग हैबिट भी जरूरी हैं. क्योंकि हैल्दी ईटिंग हैबिट स्वस्थ जीवन जीने के लिए बहुत जरूरी है. फिर भी हम में से बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि इन का क्या महत्व है या ये कौन सी आदते हैं, जिन्हें अपना कर वे स्वस्थ रह सकते हैं और अनचाही बीमारियों से अपने आप को दूर रख सकते हैं. अगर आप भी हैल्दी रहना चाहते हैं तो यह जानकारी आप ही के लिए है.

1. खानें पर दें ध्यान

आप जब भी खाना खाने बैठे तो इस बात पर ध्यान दें कि आप क्या खा रहें है और आप सब से अधिक क्या खाते हैं. क्या आप बहुत ज्यादा कैलोरी वाला खाना खाते हैं और फिर इस कैलोरी को बर्न नहीं कर पाते हैं. तब आप को शायद कुछ ऐसा खाना चाहिए जो कम वसा वाला हो और आप का शरीर उसे आसानी से पचा ले. साथ ही हल्का खाना खाएं और तलेभुने खाने से दूर रहें. सलाद खाने पर ज्यादा जोर दें. स्प्राउट्स खाएं. अपने लिए हैल्दी फूड का प्लान बनाएं. 

2. पर्याप्त प्रोटीन लें

प्रोटीन शरीर के लिए महत्वपूर्ण हैं और इसे आहार में निश्चित रूप से शामिल किया जाना चाहिए. ब्रोकोली, सोयाबीन, दाल और पालक कुछ प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ हैं. कम वसा वाले डेयरी उत्पाद भी प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं. वैसे तो आप के भोजन में लगभग

25% हिस्सा प्रोटीन होना ही चाहिए. लेकिन यदि आप प्रतिदिन व्यायाम करते हैं, तो 5% प्रोटीन बढ़ा दें.

3. खाना चबा कर खाएं

खाने को पचाने का सब से आसान तरीका है इसे चबा कर खाना. हम में से अधिकतर लोग खाने को जल्दी खाने के चक्कर में उसे सही ढंग से पचा नहीं पाते हैं. जिस वजह से आप का पाचनतंत्र थक जाता है. इसलिए खाने को कम से कम 30-35 बार चबाकर खाएं और इस हैल्दी ईटिंग हैबिग को जरूर अपनाएं.

4. हरी पत्तेदार सब्जियां चुनें

अपने आहार में हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें क्योंकि ये प्रोटीन, आयरन, कैल्सियम और फाइबर का अच्छा स्रोत हैं. हरी पत्तेदार सब्जियां तैयार करना आसान है और ये खाने में काफी स्वादिष्ट भी होती हैं. अपने खाने में हर तरह के रंग की सब्जी को शामिल करें और कोशिश करें कि दिन में कम से कम एक बार सभी छह अलगअलग प्रकार के स्वाद (मीठा, नमकीन, खट्टा, कड़वा, तीखा, कसैला) अपने खाने में शामिल होने चाहिए.

5. ओवरईटिंग से बचें

जब भूख लगें तभी खाएं बिना भूख का खाना नुकसानदायक होता है और जब भूख लगे तो इतना खाना खाना चाहिए कि लगे कि बस अब पेट भरने वाला है. क्योंकि जहां ओवरईटिंग हुई वहीं पर मामला गड़बड़ हो जाता है. हम से अधिकतर लोग खाना खाते वक्त फोन या टीवी में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हमें इस बात का ख्याल भी नहीं रहता है कि हम भूख से अधिक खा चुके हैं. ऐसे में यदि आप केवल अपने भोजन पर ध्यान केंद्रित करेंगे तो आप केवल उतना ही खाएंगे जितना आप के शरीर को चाहिए. इसलिए, अगली बार जब भी आप खाने के लिए बैठें, तो रिमोट कंट्रोल और मोबाइल फोन को कुछ समय के लिए दूर ही रखें.

6. पाचन शक्ति बढ़ाएं

अगर आप को यह पता है कि क्या खाना चाहिए और कितना खाना आप के शरीर के लिए जरूरी है, तो आप की ये ईटिंग हैबिट आप की पाचन प्रक्त्रिया को बढ़ाने में मदद करती हैं. इस के अलावा आप कुछ ऐक्सरसाइज के जरिए भी इसे बढ़ा सकती हैं.

7. खाने में बदलाव जरूरी

बीमारियों से बचने के लिए अकसर लोग पौष्टिक आहार खाने की सलाह देते हैं, लेकिन शरीर में सभी पोषक तत्त्वों को पहुंचाने के लिए खाने को बदलबदल कर खाने की आदत को अपनाना जरूरी है. वैसे भी इस तरह से बदलबदल कर भोजन खाने से शरीर की जरूरतें भी पूरी हो जाती हैं और भोजन करने में स्वाद भी आता है.

8. नाश्ता करना न भूलें

आमतौर पर सुबह का समय बहुत व्यस्त होता है, जिस वजह से काम निपटाने के चक्कर में नाश्ता रह जाता है और खाने का समय हो जाता है. जबकि नाश्ता आप के लिए सब से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शरीर को पूरे दिन के लिए तैयार करता है. इसलिए कोशिश करें कि जब भी आप घर से बाहर कदम रखें तो नाश्ता कर के ही जाएं. साथ ही अपने मील टाइम को फिक्स करें.

9. सफेद चीजों को करें नजरअंदाज

इन में चीनी, नमक, दूध, मैदा, चावल सभी आते हैं. कोशिश करें इन को कम खाएं. नमक में सेंधा नमक का प्रयोग करें और अगर आप चाय पीने के शौकीन हैं, तो 4 कप चाय पीते हैं, तो आप इसे घटा कर दिन में 3 बार पिएं जहां 1 चम्मच चीनी लेते हैं वहां आधा चम्मच चीनी डालें, इस से पहले की डाक्टर आप को ये सब बंद करने के लिए बोल दें तो आप खुद ही अपनी आदतों में बदलवा कर लें. वहीं सफेद चावल की जगह ब्राउल राइस खाएं. कोशिश करें मांड वाले चावल खाएं. मैदा से बनी चीज कम खाएं, इस के अलावा फुल क्रीम दूध की जगह डबल टोंड दूध पिएं.

10. ड्राइफ्रूट से न बढाएं दूरी

जिन लोगों को कोलेस्ट्रोल होता है वे अकसर सूखे मेवे खाने से डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस में फैट होता है, जो उन के लिए नुकसानदायक हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि बादाम, अखरोट और पिस्ते में पाये जाने वाला फाइबर, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड और विटामिंस बुरे कौलेस्ट्रौल को घटाता है और अच्छे कौलेस्ट्रौल को बढ़ाता है. इनमें मौजूद फाइबर आप को भूख नहीं लगने देते हैं. लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि तलेभुने सूखे मेवे खाने से बचें.

11. कौलेस्ट्रौल है, तो खानें में इन्हें करें शुमार

यह कौलेस्ट्रौल एक गंभीर समस्या है, जो हृदय रोग के साथ कई गंभीर बीमारियों को जन्म देती है, लेकिन अगर खाने की सही आदतों को अपनाया जाएं, तो इसे कम किया जा सकता है.

12. पानी पीने का ध्यान रखें

पानी के माध्यम से शरीर को महत्वपूर्ण मात्रा में खनिज प्रात होते हैं और शरीर डीटौक्सिफाई होता है जिस से आप की त्वचा पर निखार आता है. हालांकि, भोजन के दौरान पानी पीने से बचें क्योंकि यह पाचन प्रक्रिया को धीमा कर देता है. इसलिए हमेशा कहा जाता है कि भोजन से 30 मिनट पहले या बाद में पानी पीना उचित है. लेकिन क्या आप को पता है कि सही तरीके से पानी पीना भी हैल्दी ईटिंग हैबिट में आता है. कोशिश करें कि सुबह उठते ही पानी पिएं क्योंकि सुबह की लार पाचन के लिए बेहद फायदेमंद मानी जाती है. सुबह पानी पीने से शरीर से विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और आप विभिन्न रोगों से बच जाते हैं.

13. ये लहसुन बड़ा असरदार

लहसुन जहां खाने के स्वाद को बढ़ाता है, वहीं यह कई गुणों से भरपूर भी है. इस में कई एंजाइम्स पाए जाते हैं, जो कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करते हैं. साथ ही यह हाई ब्लडप्रेशर को भी नियंत्रित करता है.

14. सुपर हैल्दी हैं ओट्स

ब्रेकफास्ट में ओट्स को खाना सब से अच्छा माना जाता है क्योंकि यह एक हैल्दी फूड है, जो आपको भी हैल्दी रखता है. इसमें मौजूद बीटा ग्लूकौन नामक गाड़ा चिपचिपा तत्व हमारी आंतों की सफाई करते हुए कब्ज की समस्या दूर करता है. इस की वजह से शरीर में बुरा कौलेस्ट्रौल नहीं बढता है. इसलिए ओट्स जरूर खाना चाहिए.

15. छोटे से नींबू के बड़े कमाल

एक छोटा सा नींबू जहां सलाद, चटनी व दाल का स्वाद बढ़ाता है तो वहीं नींबू में कुछ ऐसे घुलनशील फाइबर पाए जाते हैं, जो स्टमक (खाने की थैली) में ही बैड कौलेस्ट्रौल को रक्त प्रवाह में जाने से रोक देते हैं. ऐसे फलों में मौजूद विटमिन सी रक्तवाहिका नलियों की सफाई करता है. इस तरह बैड कौलेस्ट्रौल पाचन तंत्र के जरिए शरीर से बाहर निकल जाता है. खट्टे फलों में ऐसे एंजाइम्स पाए जाते हैं, जो मेटाबौलिज्म की प्रक्रिया तेज कर के कौलेस्ट्रौल घटाने में सहायक होते हैं.

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