क्या दिल में भी होता है शार्ट सर्किट

दिल में जोरो से धक धक होने लगे तो खुद को धक धक गर्ल या बॉय समझने की भूल मत कर बैठना. संभव है कि आपके दिल में करंट का ओवरफ्लो हो रहा हो. यानि शार्ट सर्किट.  क्या आप जानते हैं  कि  हमारे दिल में भी शार्ट सर्किट होता है. अगर नहीं तो हम आज आपको दिल से जुडी ऐसी  बीमारी के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसे मेडिकल टर्म में पीएसवीटी या पैरोसाइमल सुपर वेंट्रिकुलर टेकिकार्डियो कहते हैं.

जाने क्या है पीएसवीटी

नार्मल व्यक्ति के  दिल की  धड़कन 72 -100 प्रति मिनट होती है लेकिन जब दिल में शार्ट सर्किट होता है तो  पीड़ित कि धड़कन 180 -250  प्रति मिनट  तक पहुंच जाती है. जब दिल में  करेंट ओवरफ्लो होता है तो धड़कन तिगुनी बढ़ जाती है.  यह दिल कि गड़बडी के कारण होता है. हमारे दिल में चार चेम्बर्स होते है व दिल में कई नसे होती हैं. इनमे कुछ नसे ऐसी भी होती हैं जिनके ऊपर कवरिंग नहीं होती. जब ऐसी दो नसे आपस में मिलती हैं तो शार्ट सर्किट हो जाता है.

लक्षण

धड़कन का  तेज होना.

शरीर पीला व ठंडा होन.

सांस तेज व एवं बेहोश होना.

असामान्य ब्लड प्रेशर की समस्या होना.

 इलाज

इलेक्ट्रो फिजियोलोजिकल स्टडी के जरिए  शार्टसर्किट वाले प्वाइंट को पकड़ा जाता है।जिसके लिए  पैर के रास्ते से तीन तार दिल तक पहुंचाए जाते है. इसके बाद दिल के अंदर हुए शॉर्ट सर्किट का पता लगाया जाता है। पता चलने पर फिर चौथा तार दिल तक पहुंचाया जाता है और दिल में शाट सर्किट वाले इन तारों पर करीब 350 किलोहर्ट्ज की तरंग छोड़कर इसे फ्यूज कर दिया जाता  है. लेकिन कई बार वो नसे  जो  आपस में मिलकर करंट का ओवरफ्लो करती है यदि वो दिल की दीवारों  को बिलकुल छू रही होती है तो उन्हें फ्यूज करने का रिस्क होता है। ऐसे में मरीज़ को पेसमेकर लगाने की जरूरत भी पड़ सकती है इस िस्थति का पता इलेक्ट्रो फिजियोलाजी स्टडी  करते समय ही चल पाता  है.

कारण

दिल में छेद, मानसिक तनाव व चाय, एल्कोहल व काफी का  ज्यादा सेवन.

जंक फूड का  अधिक सेवन.

खांसी, जुकाम समेत तमाम रोगों की दवाएं धड़कन खराब करती हैं.

हीमोग्लोबिन कम होना.

अनुवांशिक होना.

 बचाव

रक्त का संचार ठीक रखें इसलिए नियमित रूप से व्यायाम करें.

हाई कोलेस्ट्रॉल वाली चीजों से करें परहेज.

तनाव को रखें खुद से दूर .

लापरवाही से बचे

यह समस्या बार बार हो रही है तो इससे दिल कि मासपेशियां कमजोर हो जाती हैं व  दिल फैलने लगता है. जिससे करंट नए रास्तों के जरिए फ्लो होकर धड़कन तेज कर देता है. ऐसे में जान जाने का खतरा होता है. अधिकतर दिल से संबंधित यह समस्या महिलाओं  में ज्यादा देखी जाती है.

विशेषज्ञ – नारायणा हॉस्पिटल ,गुरुग्राम

डॉ विवेक चतुर्वेदी  ,सीनियर कंसलटेंट कार्डियोलॉजिस्ट

अब युवतियों में बढ़ता हार्ट अटैक

हृदय की मांसपेशियों तक खून पहुंचाने वाली धमनियों में पहुंचा थक्का खून के प्रवाह में रुकावट पैदा करता है. इस कारण हृदय की मांसपेशियों को भोजन व औक्सीजन नहीं मिलता और वे मरने लगती हैं. कमजोर पड़ा हृदय शरीर में रक्त का प्रवाह कायम नहीं रख पाता और जान जाने का खतरा पैदा हो जाता है. इस पूरी प्रक्रिया को हार्ट अटैक पड़ना कहा जाता है.एक रिपोर्ट के अनुसार युवतियों में पुरुषों के मुकाबले हार्ट अटैक की दुगनी संभावनाएं हैं.

जब से युवाओं में हाई ब्लडप्रैशर और कोलस्ट्रौल, मोटापा, अस्वास्थ्यकर जीवनशैली और खानपान में आए भयंकर बदलाव आए हैं तब से यह खतरा और बढ़ गया है.अपना भयानक अनुभव शेयर करते हुए अनुज कहते हैं, ‘‘मैं 12 साल का था जब मेरी बहन पार्टी में अचानक बेहोश हो गई थी. अस्पताल ले जाने पर पता चला उसे हार्ट अटैक आया था. उस वक्त वह केवल 18 साल की थी.

महिलाओं में हार्ट अटैक

हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक युवतियों की जान लेने के सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कारण हैं. स्तन कैंसर के कारण अगर 4 में से 1 महिला की मौत होती है तो हृदयरोग की शिकार 2 में से 1 महिला की जान इस बीमारी से जाती है.भविष्य में आने वाले हार्ट अटैक की पूर्व चेतावनी देने वाले लक्षणों को समय से पहचानना जरूरी है. अकारण गहरी थकावट का एहसास, नींद आने में पैदा हुआ व्यवधान, चलनेफिरने से सांस फूलना, छाती में दबाव, खिंचाव या दर्द का एहसास, बदहजमी होना, जी मिचलाना, घबराहट होना आदि हार्ट अटैक आने से पूर्व के प्रमुख लक्षण हो सकते हैं. पुरुषों में हार्ट अटैक की तरफ इशारा करने वाला छाती का तेज दर्द जो कंधे, गरदन या बाजू में जाता प्रतीत हो, महिलाओं में न के बराबर मिलता है. बीमारी का जल्दी सही निदान करने में डाक्टर भी कभीकभी चूक जाते हैं.

हार्ट अटैक शुरू होने पर आने वाले लक्षण तब तक बने रहेंगे जब तक मरीज का उचित इलाज शुरू नहीं होगा. सांस लेने में दिक्कत होना, कमजोरी और अचानक थकावट होना, चेहरा पीला पड़ना, ठंडा पसीना आना, दिल की बढ़ी धड़कनें, सिर घूमना व चक्कर आना आदि हार्ट अटैक पड़ने के कुछ प्रमुख लक्षण हैं.

प्राथमिक उपचार

आज के समय में जीवनशैली तनावयुक्त हो चुकी है. जब छाती में दर्द बिलकुल न हो, तो उसे साइलैंट हार्ट अटैक कहा जाता है. करीब 25 से 30 फीसदी हार्ट अटैक साइलैंट होते हैं और महिलाओं में पुरुषों से ज्यादा होते हैं. मरीज को दिल का दौरा पड़ने का एहसास नहीं होता, उसे पता नहीं चलता और किसी आम कमजोरी की निशानी समझ शुरू में नजरअंदाज कर देती हैं.

इसलिए डाक्टरी सहायता मिलने में देर हो जाती है. इस कारण हृदय की मांसपेशियों को हुआ नुकसान जीवन गंवाने का कारण बन सकता है.हार्ट अटैक के मामलों में देर से चिकित्सकीय सहायता मिलने के कारण बहुत सी मौतें होती हैं. हार्ट अटैक होने की जरा सी भी संभावना मन में उठे, तो फौरन ऐंबुलैंस बुलाएं. ऐसा कर पाना संभव न हो, तो बेहोश मरीज की छाती को करीब 100 बार प्रति मिनट की गति से दबाते रहें. यदि आप के पास डिस्प्रिन, ईकोस्प्रिन या एस्प्रिन हो तो इसे रोगी को देना चाहिए.

परहेज बरतने में ही समझदारी

हृदयरोग का शिकार बनने के बाद इलाज करा कर ठीक रहने के मुकाबले परहेज से जीते हुए स्वस्थ रहना ज्यादा आसान और सम  झदारी भरा काम होगा. कोई भी महिला जब ऊपर बताए गए किसी भी लक्षण को अपने शरीर में पनपता देखे, तो फौरन डाक्टर से मिले.

उन महिलाओं को इस मामले में ज्यादा सावधानी बरतनी होगी, जिन के मातापिता या किसी रिश्तेदार को हृदयरोग हो. जिन्हें धूम्रपान करने की आदत हो, वे उसे तुरंत छोड़ दें. तलाभुना खाने से परहेज करें, पौष्टिक और संतुलित भोजन लेने के साथसाथ नियमित व्यायाम करें ताकि वजन न बढ़े. ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रौल और शुगर बढ़े हों तो उन्हें नियंत्रण में रखने का नियमित प्रयास करें.

Summer Special: जलवायु परिवर्तन का दिल पर क्या है प्रभाव, जानें

ट्रेन की एसी कोच में बैठा 35 साल का राघव जब अपनी माँ से घर आने की ख़ुशी जाहिर कर रहा था, तभी उसे कार्डिएक अरेस्ट आता है और उसका फ़ोन हाथ से गिर जाता है, माँ हेलो-हेलो करती रहती है, लेकिन उसकी आवाज नहीं आती, पास का एक व्यक्ति उसके फ़ोन को उठाकर कहता है कि उसने देखा नहीं है कि कैसे क्या हुआ है, लेकिन उनके बेटे की तबियत अचानक ख़राब हुई है और वह देख रहा है कि उन्हें हुआ क्या है.उसने फ़ोन पर चिंता न करने की बात कही और फ़ोन रख दिया. उस व्यक्ति ने राघव को बेहोश देखा और चलती ट्रेन से इमेरजेंसी नंबर पर फ़ोन लगाया और अगले स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही एम्बुलेंस और डॉक्टर आये, लेकिन डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर अस्पताल भेज दिया. उस अनजान व्यक्ति ने उसके पेरेंट्स को ये दुखद समाचार दिया.

ये सही है कि आज बड़ी संख्या में युवा हार्ट अटैक के शिकार हो रहे है, विशेषज्ञों का कहना है कि पहले 60 वर्ष की उम्र के बाद लोग दिल की बीमारी के शिकार हुआ करते थे, लेकिन अब युवाओं में इसकी संख्या लगातार बढती जा रही है. कुछ स्ट्रेस और कुछ क्लाइमेट चेंज का शिकार हो रहे है. क्लाइमेट चेंज का प्रभाव केवल पर्यावरण पर ही नहीं, बल्कि हमारे शरीर पर भी काफी पड़ा है, यही वजह है कि आज जो व्यक्ति चलफिरकर काम कर रहा है, कल अचानक उसके न रहने की सन्देश मिल जाती है, ये दुखद है.

रिपोर्ट को समझे

रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें दिल की बीमारियों से होती हैं और जलवायु परिवर्तन से अधिक सर्दी और अधिक गर्मी पड़ने पर इसका सीधा असर इंसान के दिल पर पड़ता है. आंकड़ों पर गौर करें, तो स्ट्रोक, दिल, कैंसर और सांस की बीमारियों से दुनियाभर में होने वाली कुल मौतों की हिस्सेदारी दो तिहाई है.

अधिक गर्मी को सहने की होती है क्षमता

इस बारें में नवी मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल के कंसलटेंट कार्डियोलॉजी, डॉ महेश घोगरे कहते है कि हमारे शरीर में अपने तापमान को नियंत्रित करने की प्राकृतिक क्षमता होती है. इस प्रक्रिया को थर्मोरेग्यूलेशन कहा जाता है, जिसे हाइपोथैलेमस द्वारा नियंत्रित किया जाता है, मस्तिष्क का एक हिस्सा आंतरिक शरीर के तापमान को बनाए रखने के लिए थर्मोस्टेट के रूप में लगातार कार्य करता है. व्यायाम या गर्मी आदि के कारण जब शरीर का तापमान बढ़ जाता है, तब हाइपोथैलेमस, पसीना और वासोडिलेशन या रक्त वाहिकाओं को चौड़ा करके गर्मी को बाहर निकालता है और शरीर को ठंडा करता है. ठंड के मौसम में जब शरीर का तापमान गिर जाता है, हाइपोथैलेमस शरीर में गर्मी को बचाने और शरीर को गर्म करने के लिए शिवरिंग को ट्रिगर करता है और रक्त वाहिकाओं को संकुचित करता है. यह स्वचालित प्रक्रिया शरीर के एक स्थिर कोर तापमान को बनाए रखने में मदद करती है और यह सुनिश्चित करती है कि शरीर के अंग और प्रणालियां ठीक से काम करें.

तापमान का पड़ता है असर

डॉक्टर आगे कहते है कि तापमान में अचानक बदलाव ह्रदय पर दबाव डाल सकता है. अत्यधिक तापमान में शरीर ठंडा या गर्म करने के लिए रक्त प्रवाह को त्वचा की ओर मोड़ा जाता है. इससे रक्त वाहिकाएं फैल या सिकुड़ जाती हैं, जिससे हृदय पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है. उदाहरण के तौर पर, गर्म मौसम में, शरीर को ठंडा करने के लिए त्वचा में रक्त पंप करने के लिए हृदय को अधिक मेहनत करनी पड़ती है, जिससे हृदय की गति और रक्तचाप बढ़ता है.

इसके अलावा अत्यधिक गर्मी में थकावट और हीट स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है, साथ ही हृदय पर अतिरिक्त बोझ भी पड़ता है. इससे दिल के दौरे, ह्रदय की धड़कन अनियमित होना या एरिथमिया और हार्ट फेलियर की संभावना बढ़ सकती है. इसी तरह ठंड के मौसम में ह्रदय को शरीर में गर्मी बनाए रखने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, जिससे रक्तचाप बढ़ जाता है

क्या कहते हैं आंकड़े

अध्ययनों में पता चला है कि बढ़ते तापमान और कार्डियोवैस्कुलर वजहों से होने वाली मौतों की जोखिम के बीच एक लिंक है. अधिकतम कार्डियोवैस्क्युलर मौतें 35 डिग्री सेल्सियस से 42 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान में होती हैं.   हाल ही के एक अध्ययन में पाया गया है कि हर 100 कार्डिओवैस्क्युलर मौतों में से एक मौत के केस में इस्केमिक हृदय रोग, स्ट्रोक, हार्ट फेलियर, या एरिथमिया का कारण अत्यधिक गर्मी या ठंड हो सकता है.डॉक्टर महेश का कहना है कि का जिन्हें कोरोनरी धमनी की बीमारी, हाइपरटेंशन या हार्ट फेलियर आदि बीमारियां पहले से हैं, उनके लिए तापमान में अचानक बदलाव होना काफी ज़्यादा खतरनाक हो सकता है. इससे हार्ट अटैक ट्रिगर हो सकता है या हार्ट फेलियर के लक्षण बढ़ सकते हैं. अत्यधिक गर्मी में पसीना ज़्यादा आने से शरीर में से फ्लूइड कम हो सकता है, जिससे डिहाइड्रेशन और लो ब्लड प्रेशर हो सकता है. यह हृदय के लिए हानिकारक हो सकता है. बहुत ज़्यादा ठंड में, शरीर शॉक में जा सकता है, जिससे रक्त वाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं, हृदय और अन्य अंगों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है. कुछ सुझाव निम्न है, जिनके द्वारा हार्ट का ख्याल कुछ हद तक रखा जा सकता है.

मरीज़ों के लिए कुछ सुझाव

  • तापमान में अचानक बदलाव हो रहे हो, तो हृदय रोगियों को विशेष रूप से सतर्क रहना आवश्यक है.
  • गर्मी में डिहाइड्रेशन से बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें. शराब और अधिक कैफीन से बचें क्योंकि इनसे डिहाइड्रेशन हो सकता है.
  • गर्मी में हल्के रंग के, ढीले-ढाले कपड़े पहनें और ठंड के मौसम में हाथ-पैरों को अच्छी तरह से ढकने वाले गर्म कपड़े पहनें.
  • अत्यधिक तापमान की स्थिति में घर के भीतर ही रहें. बाहर जाना पड़ें तो ऐसा समय चुनें, जब तापमान उपयुक्त हो.
  • डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां जारी रखें, अत्यधिक तापमान में भीहृदय रोगियों को अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां लेते रहना चाहिए.

सुबह-सुबह दिल का दौरा – सही या गलत

ज़्यादातर हार्ट अटैक सुबह के समय आते हैं, इस गलतफहमी के पीछे का सच जान लेन भी आवश्यक है. यह सच है कि, कुछ अध्ययनों के अनुसार सुबह के समय हार्ट अटैक का खतरा ज़्यादा होता है, लेकिन यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुआ है. कुछ रिसर्चर्स का मानना है कि यह शरीर की प्राकृतिक सर्कैडियन लय (यानि शारीरिक, मानसिक और व्यवहार के प्राकृतिक चक्र में परिवर्तन होना, जिससे शरीर 24 घंटे के चक्र में गुजरता है. सर्कैडियन लय ज्यादातर प्रकाश और अंधेरे से प्रभावित होते हैं और मस्तिष्क के मध्य में एक छोटे से क्षेत्र द्वारा नियंत्रित होते हैं.)के कारण होता है, जो रक्त के क्लॉट होने के तरीके को प्रभावित करता है. दूसरे कुछ रिसर्चर मानते हैं कि सुबह में कोर्टिसोल और एड्रेनालाईन जैसे हार्मोन का बढ़ना इसकी वजह हो सकती है.

हृदय रोगियों को रिस्कफैक्टर के बारे में पता होना चाहिए और सावधानी बरतनी चाहिए,

  • सुबह भागदौड़ करने से बचें,
  • खुद को दिन के लिए तैयार होने के लिए पर्याप्त समय दें,
  • दवाइयां भी निर्धारित समय के अनुसार लें,
  • संतुलित आहार और नियमित व्यायाम सहित अपनी जीवन शैली को स्वस्थ बनाए रखने का प्रयास करें.

किसी भी संभावित रिस्क से बचने के लिए हमेशा डॉक्टर की सलाह लें. डॉक्टर की सलाह के बिना, अपने मन से दवाइयां न लें, इसके गंभीर और कई बार जानलेवा परिणाम भी हो सकते हैं.

एक्सपर्ट के अनुसार दिल की बीमारियों के बारे में ऐसे पैदा करें जागरूकता

कार्डियोवैस्कुलर बीमारी और इससे जुड़े जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने से आबादी के इसके संपर्क में आने की सम्भावना कम हो जाती है, जिससे कि सीवीडी से संबंधित मौतों की संख्या में भी कटोती होती है. जागरूकता के साथ हर बीमारी को रोका जा सकता है, सही समय पर पता लगने से उचित इलाज देकर लाखो ज़िन्दगीयाँ बचाई जा सकती हैं.

जब किसी इंसान को बीमारी के बारे में पता चलता है, तो वे उस बीमारी के निवारक के लिए’ कदम उठाता है , जैसे स्क्रीनिंग और परीक्षणों के लिए सक्रिय रूप से जाना, जिससे कि बीमारी के हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सके.  यह तभी संभव है जब वे रेगुलर हेल्थ चेकअप करवाए.

ऐसा अनुमान है कि भारत में होने वाली 63 प्रतिशत मौतें नॉन -कम्युनिकेबल डिज़ीज़  के कारण होती हैं, जिनमें से 27 प्रतिशत मौतों का कारण हृदय रोग होता है.  इसके अतिरिक्त, 40 से 69 वर्ष की आयु के लोगों में होने वाली 45% मौतों, सीवीडी के कारण होती  है. इस बीमारी के लक्षणों में उच्च रक्तचाप, सीने में दर्द, और सांस लेने में कठिनाई शामिल है.  भारत में दिल के दौरे की घटनाएं इतनी खतरनाक दर पर हैं कि जागरूकता पैदा करना आवश्यक है. सीवीडी के लिए शारीरिक गतिहीन और अस्वस्थ जीवन शैली प्रमुख योगदानकर्ता हैं.  भारत में सीवीडी के मामले अस्वास्थ्य भोजन के सेवन, धूम्रपान और शराब पीने जैसे कारणों से भी बढ़ रहे हैं. इसके अलावा, COIVD-19 ने  सीवीडी के जोखिम को और तीव्र गति से बड़ा दिया हैं.

डॉ अंबू पांडियन, चिकित्सा सलाहकार, अगत्सा इस  खतरनाक बीमारी के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के कुछ तरीके साझा कर रहे हैं जिनसे  विश्वभर में लाखों लोगों की जान बच सकती हैं.

सीपीआर पर सेमिनार और कार्यशालाओं का आयोजन –

अस्पताल के बाहर दिल का दौरा पड़ने से मरने वालों की संख्या 10 में से 8 है. अगर कार्डियक अरेस्ट के पहले कुछ मिनटों में ही मरीज़ को सीपीआर  दे दिया जाए तो इन नम्बर्स को कम किया जा सकता है.   जब दिल धड़कना बंद कर देता है तो किसी व्यक्ति की जान बचाने के लिए एक आपातकालीन प्रक्रिया –  सीपीआर दिया जाता है. अस्पताल के बाहर हजारों लोगों की जान बचाने के लिए पैरामेडिक्स और चिकित्सक भी कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित कर सकते हैं ताकि लाखों लोगो की जान बचाई जा सके.

नियमित जांच करवाना  –

हृदय रोग से पीड़ित लोगों का अज्ञानी होना भी आम बात है. ज्यादातर मामलों में, लक्षण अपरिचित लेकिन घातक होते हैं. उच्च कोलेस्ट्रॉल और उच्च रक्तचाप जैसे जोखिम कारक कार्डियक अरेस्ट के चेतावनी संकेत हैं. एक दूसरे को नियमित जांच के लिए प्र्रोत्साहन करने से सीवीडी से जुडी मौतों को कम किया जा सकता है.

फिटनेस बनाए रखें –

कार्डियक अरेस्ट का सबसे बड़ा कारण अनियमित शारीरिक गतिविधि हैं. बिना किसी शारीरिक गतिविधि के लम्भे समय तक बैठे रहने से दिल के दौरे का ख़तरा बढ़ जाता है.  इसलिए पूरे दिन में कम से कम एक बार एक्सेर्साइज़ करने की एडवाइस दी जाती है.  अगर एक्सेर्साइज़ न हो पाए तो कम से कम पूरे दिन में 30 मिनट के लिए पैदल चले.

भारत में, सीवीडी एक गंभीर खतरे के रूप में उभरा है. जिस प्रकार पच्छिमी देशों ने इस महामारी को नियंत्रण किया है ठीक उसी प्रकार भारत को भी इस बीमारी से बचने के लिए सख्त कदम उठाने का समय नज़दीक आगया हैं.  जनसंख्या स्तर पर सामान्य जोखिम कारकों और चिकित्सा उपचारों में परिवर्तन के कारण इन देशों में हृदय संबंधी मृत्यु दर में गिरावट आई है, जनसंख्या स्तर पर तंबाकू के उपयोग, कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप में परिवर्तन के कारण मृत्यु दर में आधे से अधिक कमी आई है. हृदय रोग के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के लिए पच्छिमी देशों में नेशनल वियर रेड डे मनाया जाता हैं.  ठीक उसी प्रकार हमारा देश भी  जागरूकता पैदा करने के लिए इसी तरह की पहल करने की आवश्यकता है.

दोबारा हार्टअटैक आने के खतरे से बचने के तरीके बताएं?

सवाल-

मेरे पति को पिछले महीने हार्ट अटैक आया था. मैं ने सुना है कि एक बार अटैक आने के बाद दोबारा इस के आने का खतरा काफी बढ़ जाता है. मैं उन के खानपान का किस तरह ध्यान रखूं कि वे और उन का दिल दोनों स्वस्थ रहें?

जवाब-

एक बार हार्ट अटैक आने के बाद अगले 10 वर्षों में दूसरा हार्ट अटैक आने की आशंका 90-95% तक होती है. लेकिन दूसरे हार्ट अटैक के खतरे को कम करना संभव है, आप को उन की जीवनशैली और खानपान में बदलाव लाना होगा और उस बदलाव को बरकरार रखना होगा. दिल को दुरुस्त रखने के लिए पोषक और संतुलित भोजन का सेवन बहुत जरूरी है. उन के खानपान में हरी पत्तेदार और दूसरी सब्जियों, फलों, साबूत अनाज को अधिक से अधिक मात्रा में शामिल करें. वसारहित दूध और दुग्ध उत्पाद भी दें. दिन में

1-2 छोटे चम्मच से अधिक तेल न खाने दें. लाल मांस को उन के डाइट चार्ट से पूरी तरह निकाल दें. मछली और चिकन को ग्रिल्ड, बेक्ड या रोस्टेड रूप में दें. तला हुआ भोजन, पेस्ट्री, केक मिठाई, जंक फूड आदि न खाने दें  क्योंकि इन में सैचुरेटेड वसा अधिक मात्रा में होती है, जिस से धमनियां ब्लौक हो जाती हैं और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है. नमक, चीनी, चाय, कौफी आदि थोड़ी मात्रा में दें.

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बिग बॉस 13 के विनर और टीवी एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला का महज 40 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया. जिससे हर कोई सदमे में हैं. उनके फैंस इसलिए भी दुखी और हैरान हैं क्योंकि वो एक हेल्दी पर्सन थे और फिटनेस का पूरा ख्याल रखते थे. फिर भी वो हार्ट अटैक का शिकार हो गए.

मौजूदा समय में बदलती लाइफस्टाइल और तनाव के बीच आम लोग भी इस समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में कुछ खास बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. ताकी आपका दिल स्वस्थ रहे.

वो दौर गया जब सिर्फ 50 साल की उम्र के ही लोगों को हार्ट अटैक का खतरा होता था. आज की बदलती जीवनशैली के चलते अब 30 के उम्र के लोग भी इस खतरनाक बीमारी की चपेट में आने लगे हैं. जी हां, 30 से 40 उम्र के लोगों को दिल संबंधी बीमारियां होने लगी है. इन रोगों का कारण सिर्फ तनाव है और इससे मुक्ति पाने के लिए ये लोग धूम्रपान, नींद की दवाएं, शराब का सेवन करते हैं. जो उन्हें दिल की बीमारी की तरफ ले जा रही है. आपको ये बीमारी ना हो और आप इससे खुद को बचाने के लिए पहले से ही सतर्क रहें, इसीलिए हम आपको दिल की बीमारी के शुरुआती लक्षण बता रहे हैं जिन्हें समय से पहले जानकर गंभीर दिल की बीमारियों से बचा जा सकता है.

बढ़ रहा है हार्ट अटैक का खतरा, ऐसे रखें दिल का ख्याल

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

आखिर दिल का मामला है

हमारा छोटा सा दिल हमारे शरीर का ऊर्जा स्रोत है. दिल काम कर रहा है तो हम जिंदगी जी रहे हैं. हमारा दिल प्रतिदिन करीब 1 लाख 15 हजार बार धड़कता है और करीब 2 हजार गैलन रक्त पंप करता है. जिस दिन इस दिल में तकलीफ शुरू हुई तो परेशानी आप को ही होगी.

हमारे देश में होने वाली मौतों का प्रमु ख कारण हृदय से जुड़ी बीमारियां ही हैं. हृदयरोगों के कारण मात्र 26 वर्ष की आयु में मृत्यु के आंकड़ों में 34% की वृद्धि हुई है. इसलिए इस का खास खयाल रखना जरूरी है.

दिल की तंदुरुस्ती जुड़ी होती है आप के दिमाग से, आप के खानपान और जीवनशैली से. आप क्या सोचते हैं, क्या खाते हैं और कैसे जीते हैं इस सब का सीधा असर दिल की सेहत पर पड़ता है.

आइए, जानते हैं दिल को स्वस्थ कैसे रख सकते हैं:

सक्रियता जरूरी

एक निष्क्रिय जीवनशैली जीने का अर्थ है अपने दिल की सेहत को खतरे में डालना, इसलिए आलस त्याग कर दौड़ लगाएं, वाक करें, साइक्लिंग और स्विमिंग करें. जिम जाना जरूरी नहीं पर शरीर को थकाना और पसीना लाना जरूरी है. कोई भी ऐसी ऐक्टिविटी कीजिए जिस में आप के पूरे शरीर का व्यायाम हो जाए. नियमित व्यायाम करने से दिल की बीमारियों का जोखिम कम रहता है.

न करें धूम्रपान

यदि आप अपनेआप को हृदयरोगों से दूर रखना चाहते हैं तो जरूरी यह भी है कि आज ही धूम्रपान बंद कर दें. धूम्रपान और तंबाकू का सेवन कोरोनरी हृदयरोगों के होने के सब से बड़े कारणों में से एक है. तंबाकू रक्तवाहिकाओं और हृदय को बड़ा नुकसान पहुंचाता है, इसलिए यदि आप हृदय को स्वस्थ रखना चाहते हैं तो आज ही धूम्रपान छोड़ दें.

रखें वजन को नियंत्रित

अधिक वजन होना हृदयरोग के लिए एक जोखिम कारक माना जाता है, इसलिए रोज कसरत करना और संतुलित आहार लेना बेहद जरूरी हो जाता है. मोटापे के कारण हृदय की समस्याएं अधिक होती हैं.

जीएं जिंदगी जीभर कर

जिंदगी से शिकायतें कम करें और खुल कर जीने का प्रयास अधिक करें. रोजमर्रा की जिंदगी में छोटीछोटी चीजों का आनंद लें. इस से दिल भी खुश रहेगा और आप भी. जितना हो सके मुसकराएं और ठहाके लगाएं. संगीत सुनें, किताबें पढ़ें, दोस्तों और बच्चों के साथ समय बिताएं.

शरीर में औक्सीजन की ज्यादा मात्रा पहुंचे इस के लिए गहरी सांसें लें. ये सभी आदतें तनाव और दबाव को कम करने में मदद करेंगी और आप को दिल की बीमारी से दूर रखेंगी.

अधिक फाइबर वाला खाना खाएं

हृदयरोग के खतरे को कम करने के लिए पर्याप्त मात्रा में फाइबर खाएं. दिन में कम से कम 30 ग्राम फाइबर खाने का लक्ष्य रखें. साबूत दालें अनाज, सब्जियां जैसे गाजर, टमाटर आदि में न घुलने वाला फाइबर होता है. दलिया, सेम, लोबिया, सूखे मेवे और फल जैसे सेब, नीबू, नाशपाती, अनानास आदि में घुलनशील फाइबर होता है.

फाइबर युक्त भोजन अधिक समय तक पेट में रहता है जिस के कारण पेट भरा हुआ महसूस होता है और खाना भी कम खाया जाता है. इसी कारण वजन भी कम होता है. फाइबर युक्त भोजन पाचन के समय शरीर से वसा निकाल देता है, जिस के कारण कोलैस्ट्रौल कम होता है व हृदय अधिक तंदुरुस्त होता है.

भोजन में बढ़ाएं फायदेमंद चिकनाई

अधिक वसा वाले ज्यादा खाद्यपदार्थ खाने से रक्त में कोलैस्ट्रौल की मात्रा बढ़ सकती है. यह हृदयरोग होने के खतरे को बढ़ा सकता है. वसा की जगह फायदेमंद चिकनाई खाएं. तेल, दूध एवं दूध से बनी वस्तुएं और लाल मांस में नुकसानदेह चिकनाई होती है जो बुरा कोलैस्ट्रौल बढ़ा कर हृदय को अस्वस्थ करती है.

लेकिन मछली, अंडा, दालें, टोफू, किनोआ इत्यादि से पौष्टिक प्रोटीन एवं फायदेमंद चिकनाई दोनों मिलते हैं. बाजार में मिलने वाली अधिकतर खाने की वस्तुओं में अच्छा पौष्टिक तेल नहीं होता. इस कारण इन का उपयोग कम से कम करना चाहिए. चीनी एवं मैदे का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए और भोजन में पौष्टिक तत्त्व जैसे सूखे मेवे, हरी सब्जियां इत्यादि का इस्तेमाल बढ़ा देना चाहिए.

करें नमक में कटौती

सही रक्तचाप और दिल की सेहत के लिए टेबल पर रखे नमक का इस्तेमाल करने से बचें और अपने खाने में अधिक प्रयोग करने से भी बचें. एक बार जब आप बिना अतिरिक्त नमक के खाद्यपदार्थ खाने के आदी हो जाते हैं तो आप इसे पूर्णरूप से छोड़ सकते हैं. भोजन में अधिक नमक की मात्रा होने से रक्तचाप बढ़ जाता है.

इस कारण हृदय में कई बीमारियां होने की संभावना भी बढ़ जाती है. खाने को अधिक स्वादिष्ठ बनाने के लिए मसाले, हरा धनिया, पुदीना आदि डालिए. इस तरह नमक की मात्रा भी कम हो जाएगी. खरीदे गए खाद्यपदार्थ के लेबल को देखें. यदि 100 ग्राम में 1.5 ग्राम नमक या 0.6 ग्राम सोडियम से अधिक होता तो उस खाद्यपदार्थ में नमक की मात्रा अधिक है. एक वयस्क को दिनभर में 6 ग्राम से कम नमक खाना चाहिए.

घर के खाने को दें प्राथमिकता

घर में बना भोजन अधिक पौष्टिक होता है क्योंकि आप स्वयं सब्जी, मसाले, तेल एवं पकाने की विधि का चयन करते हैं. आप खाने को ज्यादा स्वादिष्ठ बनाने के लिए उस में विभिन्न प्रकार के मसाले डाल सकते हैं और नमक एवं चीनी जैसे हानिकारक तत्त्वों की मात्रा कम कर सकते हैं और फिर घर में बना खाना सस्ता भी पड़ता है.

रक्तचाप और कोलैस्ट्रौल पर नजर

हृदय की सेहत के लिए उच्च रक्तचाप और उच्च कोलैस्ट्रौल दोनों हानिकारक होते हैं. रक्तचाप और कोलैस्ट्रौल की जांच को ट्रैक करना और निगरानी करना महत्त्वपूर्ण होता है. उच्च रक्तचाप और उच्च रक्त कोलैस्ट्रौल के स्तर से दिल का दौरा पड़ सकता है.

कोलैस्ट्रौल 2 रूपों में शरीर में मौजूद होता है- पहला एचडीएल और दूसरा एलडीएल.

एचडीएल या गुड कोलैस्ट्रौल का ज्यादातर हिस्सा प्रोटीन से बना होता है, इसलिए शरीर की विभिन्न कोशिकाओं से कोलैस्ट्रौल को लेना और उसे नष्ट करने के लिए लिवर के पास ले जाने का मुख्य कार्य गुड कोलैस्ट्रौल करता है. अगर शरीर में गुड कोलैस्ट्रौल का उच्च स्तर बना रहे तो शरीर को हृदयरोग से सुरक्षा मिलती है और अगर गुड कोलैस्ट्रौल का स्तर कम हो जाए तो कोरोनरी आर्टरी डिजीज होने का खतरा बढ़ जाता है.

दूसरी तरफ एलडीएल या बैड कोलैस्ट्रौल का सिर्फ एकचौथाई हिस्सा ही प्रोटीन होता है और बाकी सारा फैट. वैसे तो यह क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत में मदद करता है, लेकिन अगर शरीर में इस का स्तर बढ़ जाए तो यह रक्तधमनियों की अंदरूनी दीवारों में जमा होने लगता है जिस से धमनियां संकुचित होने लगती हैं और पर्याप्त रक्तप्रवाह में मुश्किल पैदा होती है जिस से हृदयरोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.

कोलैस्ट्रौल बढ़ने का कारण

गलत भोजन: अगर आप ऐसे आहार का सेवन करें जिस में सैचुरेटेड फैट की मात्रा अधिक हो तो खून में एलडीएल या बैड कोलैस्ट्रौल की मात्रा बढ़ जाती है. मीट, डेयरी उत्पाद, अंडा, नारियल तेल, पाम औयल, मक्खन, चौकलेट्स, बहुत ज्यादा तलीभुनी चीजें, प्रोसैस्ड फूड और बेकरी उत्पाद इसी श्रेणी में आते हैं.

असक्रिय जीवनशैली: अगर कोई व्यक्ति अपने रोजाना की जीवनशैली में किसी तरह की शारीरिक गतिविधि न करे, हर वक्त बैठा रहे तो इस से भी खून में एलडीएल या बैड कोलैस्ट्रौल की मात्रा बढ़ जाती है और गुड कोलैस्ट्रौल यानी एचडीएल का सुरक्षात्मक प्रभाव कम होने लगता है.

बीमारियां: पीसीओएस, हाइपरथायरोइडिज्म, डायबिटीज, किडनी डिजीज, एचआईवी और औटोइम्यून बीमारियां जैसे रूमैटौइड आर्थ्राइटिस, सोरायसिस आदि की वजह से भी कोलैस्ट्रौल का लैवल बढ़ने लगता है.

कोलैस्ट्रौल कम करने के उपाय

खून में कोलैस्ट्रोल के लैवल को बढ़ने से रोकने में सब से अहम भूमिका होती है आप के भोजन की. अपने भोजन में सैचुरेटेड फैट से भरपूर चीजों का बहुत अधिक सेवन न करें. मीट, अंडा, प्रोसैस्ड फूड, डेयरी प्रोडक्ट्स आदि चीजें बहुत ज्यादा न खाएं.

डाइट से जुड़ी आदतों में बदलाव करें. फुल फैट क्रीम वाले दूध की जगह स्किम्ड मिल्क का इस्तेमाल करें, खाना पकाने के लिए वैजिटेबल औयल का इस्तेमाल करें. अपने भोजन में साबूत अनाज, मछली, नट्स, फल, सब्जियां, चिकन आदि शामिल करें. फाइबर से भरपूर चीजें खाएं और बहुत ज्यादा चीनी वाले खाद्यपदार्थों और पेयपदार्थों का सेवन न करें.

सक्रियता बनाए रखें

अगर आप दिनभर कोई शारीरिक गतिविधि नहीं करते हैं तो इस से आप के खून में एचडीएल या गुड कोलैस्ट्रौल की मात्रा कम होने लगती है. हफ्ते में 3-4 बार 45 मिनट के लिए ऐरोबिक ऐक्सरसाइज करें. इस से बैड कोलैस्ट्रौल को कंट्रोल में रखने में मदद मिलती है. इस के अलावा वाक करें, रनिंग करें, जौगिंग करें, स्विमिंग, डांसिंग आदि भी आप को सक्रिय बनाए रखने और कोलैस्ट्रौल लैवल को कंट्रोल करने में मदद करेंगे.

अगर आप का वजन अधिक है या आप मोटापे का शिकार हैं तो इस से भी बैड कोलैस्ट्रौल या एलडीएल का लैवल बढ़ने लगता है और गुड कोलैस्ट्रौल या एचडीएल कम होने लगता है. ऐसे में अगर आप वजन कम कर लें तो इस से भी आप को काफी मदद मिल सकती है.

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जब दिल की बीमारी में हो जाए Pregnancy

गंभीर मामले

1. यदि आप का हार्ट वाल्व दोषपूर्ण है या विकृत है या फिर आप को कृत्रिम वाल्व लगाया गया है तो आप को गर्भधारण के दौरान अधिक जोखिमपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ सकता है.

2. गर्भावस्था के दौरान रक्तप्रवाह स्वत: बढ़ जाता है, इसलिए आप के हार्ट वाल्व को इस बदले हालात से निबटने के लिए स्वस्थ रहने की जरूरत है अन्यथा बढ़े हुए रक्तप्रवाह को बरदाश्त करने में परेशानी भी उत्पन्न हो सकती है.

3. जरूरी सलाह यही है कि गर्भधारण से पहले संभावित खतरे की विस्तृत जांच करा ली जाए.

4. जिन महिलाओं को कृत्रिम वाल्व लगे हैं, उन्हें अकसर रक्त पतला करने वाली दवा भी दी जाती है जबकि कुछ दवाओं का इस्तेमाल गर्भावस्था के दौरान वर्जित माना जाता है.

5. यदि आप में जन्म से ही कोई हृदय संबंधी गड़बड़ी है, तो आप का गर्भधारण जोखिमपूर्ण हो सकता है, दिल की जन्मजात गड़बडि़यों से पीडि़त महिलाओं से जुड़े जोखिम मां और भ्रूण दोनों को प्रभावित कर सकते हैं और इस के परिणामस्वरूप मां तथा बच्चे की परेशानियां बढ़ सकती हैं.

2 साल पहले 32 वर्षीय समीरा की जांच से पता चला कि उसे ऐरिथमिया यानी अनियमित रूप से दिल धड़कने की बीमारी है. हालांकि उस की स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर नहीं थी यानी उसे बड़े इलाज की जरूरत नहीं थी, लेकिन समीरा को चिंता थी कि इस बीमारी का असर कहीं उस के होने वाले बच्चे पर न पड़े. शिशुरोग विशेषज्ञ और कार्डियोलौजिस्ट से विचारविमर्श के बाद ही वह आश्वस्त हो पाई कि गर्भावस्था के दौरान उस के ऐरिथमिया को काबू में रखा जा सकता है और इस से उस के होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं होगा. हमारे समाज में महिलाओं की स्वास्थ्य स्थितियों को ले कर अकसर गलत धारणा बनी रहती है कि महिला की किसी बीमारी का असर उस के होने वाले बच्चे पर पड़ेगा. कुछ लोग यह समझते हैं कि मां की बीमारी बच्चे में हस्तांतरित हो सकती है, जबकि कुछ लोगों की चिंता मां बनने जा रही महिला की सेहत को ले कर रहती है. ऐसा बहुत कम ही होता है कि गर्भावस्था के दौरान किसी मरीज की दिल की बीमारी पर काबू नहीं पाया जा सके. नियमित निगरानी और प्रबंधन से गर्भावस्था का वक्त बीमारी हस्तांतरित किए बगैर काटा जा सकता है.

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गर्भावस्था के दौरान सामान्य हालात में भी दिल पर बहुत ज्यादा अतिरिक्त दबाव पड़ता है. अपने शरीर में एक और जिंदगी को 9 महीने तक ढोते रहने के लिए महिला के हृदय और रक्तनलिकाओं में बहुत ज्यादा बदलाव आ जाता है. गर्भावस्था के दौरान रक्त की मात्रा 30 से 50% तक बढ़ जाती है और शरीर के सभी अंगों तक अधिक रक्तसंचार करने के लिए दिल को ज्यादा रक्त पंप करना पड़ता है. इस अतिरिक्त रक्तप्रवाह के कारण रक्तचाप कम हो जाता है.

डाक्टरी परामर्श जरूरी

स्वस्थ हृदय तो इन सभी परिवर्तनों को आसानी से झेल लेता है, लेकिन जब कोई महिला दिल के रोग से पीडि़त होती है, तो उस की गर्भावस्था को सुरक्षित तरीके से प्रबंधित करने के लिए बहुत ज्यादा देखभाल और सावधानी बरतने की जरूरत पड़ती है. ऐसे ज्यादातर मामलों में नियमित निगरानी तथा दवा निर्बाध गर्भधारण और स्वस्थ बच्चे को जन्म देना सुनिश्चित करती है. दिल की किसी बीमारी से पीडि़त महिला को मां बनने के बारे में सोचने से पहले डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. यदि संभव हो तो ऐसे डाक्टर के पास जाएं जो अत्यधिक जोखिमपूर्ण गर्भाधान मामलों में विशेषज्ञता रखता हो. जोखिमपूर्ण स्थितियों वाली किसी मरीज की स्थिति का निर्धारण करने का सब से आसान तरीका यह देखना है कि वह प्रतिदिन के सामान्य कार्य आसानी से पूरा कर सकती है या नहीं. यदि ऐसा संभव है तो महिला में निर्बाध गर्भधारण करने की संभावना प्रबल है, भले ही उसे दिल की कोई बीमारी ही क्यों न हो.

ऐरिथमिया एक आम बीमारी है और कई महिलाओं में तो इस बीमारी का पता भर नहीं चल पाता जब तक कि उन्हें बेहोशी या दिल के असहनीय स्थिति में धड़कनें जैसे लक्षणों से दोचार नहीं होना पड़े. ऐरिथमिया के ज्यादातर मामले हलकेफुलके होते हैं. इन में चिकित्सा सहायता की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन किसी महिला के गर्भधारण से पहले उसे और उस के डाक्टर को स्थिति का अंदाजा लगा लेना जरूरी है ताकि मरीज के जोखिम का स्तर पता चल सके और जरूरत पड़ने पर उचित उपाय किए जा सकें. ऐरिथमिया के कुछ मामले गर्भधारण के दौरान ज्यादा बिगड़ जाते हैं. जरूरत पड़ने पर ऐसी स्थिति पर काबू रखने के लिए कुछ दवाओं का इस्तेमाल सुरक्षित माना जाता है.

गर्भधारण के किसी भी मामले में दिल के धड़कने की गति में थोड़ीबहुत असामान्यता आ ही जाती है. इसे ले कर ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए. उच्च रक्तचाप एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है. अकसर यह समस्या गर्भधारण काल में बढ़ जाती है. इस समस्या का साइडइफैक्ट प्रीक्लैंपसिया के रूप में देखा जा सकता है यानी एक ऐसा डिसऔर्डर जिस में उच्च रक्तचाप रहता है और इस पर यदि नियंत्रण नहीं रखा गया तो इस से महिला के जोखिम का खतरा बढ़ सकता है और एक स्थिति के बाद महिला और बच्चे की मौत भी हो सकती है. ज्यादातर मामलों में अभी तक दवा और बैड रैस्ट से ही गर्भावस्था की स्थिति सामान्य हो जाती है. माइट्रल वाल्व प्रोलैप्स (एमवीपी) एक ऐसी स्थिति है, जिस में माइट्रल वाल्व के 2 वाल्व फ्लैप अच्छी तरह नहीं जुडे़ होते हैं और जब स्टैथोस्कोप से हार्टबीट की जांच की जाती है तो कई बार इस में भनभनाहट जैसी आवाज आती है.

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कुछ मामलों में वाल्व के जरीए प्रोलैप्स्ड वाल्व थोड़ी मात्रा में रक्तस्राव भी कर सकता है. ज्यादातर मामलों में यह स्थिति पूरी तरह नुकसानरहित रहती है और जब तक अचानक किसी स्थिति का पता नहीं चल जाता, इस ओर ध्यान भी नहीं दिया जाता है. ईको ड्रौप्लर की मदद से डाक्टर आप के एमवीपी से जुड़े खतरे की जांच कर सकते हैं. कुछ मामलों में ऐसी स्थिति के उपचार की जरूरत पड़ती है, लेकिन एमवीपी से ग्रस्त ज्यादातर गर्भवती महिलाओं का गर्भकाल सामान्य और बगैर किसी परेशानी के ही गुजरता है.

– डा. संजय मित्तल   कंसल्टैंट कार्डियोलौजी, कोलंबिया एशिया हौस्पिटल, गाजियाबाद

इन छोटे संकेतों से पहचाने दिल की बीमारी का खतरा

 आम तौर पर ह्रदय रोग के लिए कोरोनरी आर्टर बीमारी प्रमुख कारण होता है. हृदय की अन्य बीमारियों में पेरिकार्डियल रोग, हृदय की मांसपेशियों से संबंधित समस्या, महाधमनी की समस्या हार्ट फेल होना, दिल की धड़कन का अनियमित होना हार्ट के वौल्व से संबंधित बीमारी जैसी कई बीमारियां हैं. इन परेशानियों से बचने के लिए जरूरी है कि आप इनके लक्षणों के बारे में जान लें. और जब भी आपको इनका आभास हो आप तुरंत डाक्टर से मशवरा लें.

ह्रदयघात के लक्षणों में छाती में भारीपन, भुजाओं या कंधों में, गले, जबड़े, पीठ या गर्दन में दर्द होना इसके प्रमुख लक्षण हैं. इसके अलावा धड़कन का बढ़ना, सांस लेने में परेशानी, चक्कर आना, पसीना आना जैसे अन्य लक्षण भी अहम हैं.

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यदि आपको आपकी छाती पर भार महसूस हो रहा है या छाती की मांसपेशियों में खिंचाव महसूस हो रहा है इसका मतलब है कि आपका ह्रदय स्वस्थ नहीं है. वो अच्छे से काम नहीं कर रहा है.

वहीं आप कसरत करने के बाद छाती में दर्द महसूस करते हैं या आपको कुछ ज्यादा थकान महसूस होती हो तो इसका अर्थ है कि आपके हृदय के रक्त प्रवाह में कुछ गड़बड़ी है.

यदि आपको हल्का फुल्का काम करने के बाद भी सांस लेने में परेशानी हो रही है, या जब आप लेटें तब आपको सांस लेने में परेशानी हो रही हो, तो समझ जाइए कि आपके ह्रदय में कुछ परेशानी है.

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इसके अलावा थोड़ा काम करने के बाद भी आपको थकान या चंचलता महसूस होती है तो ये ह्रदय ब्लाकेज के लक्षण हो सकते हैं.

यदि आप ज्यादातर वक्त थका हुआ महसूस करते हैं, इसके अलावा आपको अच्छे से नींद भी ना आती हो, अचानक से आपको थकान हो जाए, उल्टी का मन हो तो समझ जाइए कि आपको ह्रदय संबंधित परेशानी है.

देखें वीडियो-

दिल के रोगियों को कोरोना होने की संभावना ज्यादा है तो क्या मुझे भी कोरोना हो सकता है?

सवाल-

मेरा नाम विनोद है और मेरी उम्र 32 साल है. दरअसल, कुछ साल पहले मुझे हार्ट अटैक आया था लेकिन सही समय पर अस्पताल पहुंचने के कारण मेरी जान बच गई. लोग कहते हैं कि दिल के रोगियों को कोरोना होने की संभावना ज्यादा है तो क्या मुझे भी कोरोना हो सकता है? कृपया मुझे इस से बचने का उपाय बताएं?

जवाब-

जी हां, हृदय रोगियों को कोरोना आसानी से हो सकता है लेकिन आप को इस से घबराने की आवश्यकता नहीं है. यदि आप नियमों का पालन करते हैं और स्वयं का खयाल रखते हैं तो यह बीमारी आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकती है. इस से बचने के लिए सोशल डिस्टैंसिंग, हाथ धोना, मास्क लगाना आदि जरूरी है. दवाइयां या घर का राशन खरीदते वक्त डिस्पोजेबल दस्ताने अवश्य पहनें. इस के अलावा डाक्टर द्वारा बताई गई दवाइयों का नियमित रूप से सेवन करें. व्यक्तिगत साफसफाई और खानपान का पूरा ध्यान रखें. बाहर से आने के तुरंत बाद अपने हाथ अच्छे से धोएं. छत पर या बालकनी में कुछ देर बैठ कर धूप सेंके. कोशिश करें कि आप को घर से बाहर न जाना पड़े.

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आम तौर पर ह्रदय रोग के लिए कोरोनरी आर्टर बीमारी प्रमुख कारण होता है. हृदय की अन्य बीमारियों में पेरिकार्डियल रोग, हृदय की मांसपेशियों से संबंधित समस्या, महाधमनी की समस्या हार्ट फेल होना, दिल की धड़कन का अनियमित होना हार्ट के वौल्व से संबंधित बीमारी जैसी कई बीमारियां हैं. इन परेशानियों से बचने के लिए जरूरी है कि आप इनके लक्षणों के बारे में जान लें. और जब भी आपको इनका आभास हो आप तुरंत डाक्टर से मशवरा लें.

ह्रदयघात के लक्षणों में छाती में भारीपन, भुजाओं या कंधों में, गले, जबड़े, पीठ या गर्दन में दर्द होना इसके प्रमुख लक्षण हैं. इसके अलावा धड़कन का बढ़ना, सांस लेने में परेशानी, चक्कर आना, पसीना आना जैसे अन्य लक्षण भी अहम हैं.

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हार्ट अटैक से बचने के आसान उपायों के बारे में जानिए

दिल की कई बीमारियों के इलाज में कारगर है नॉन इनवेसिव प्राकृतिक बाइपास तकनीक

बदलती जीवनशैली के साथ लोग अक्सर अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. परिणामस्वरूप पिछले एक दशक में मध्यम आयु वर्ग की आबादी के बीच विभिन्न प्रकार की बीमारियां बढ़ गई हैं. डायबीटीज, उच्च रक्तचाप और मोटापा कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो हृदय रोगों के खतरे को बढ़ाती हैं. पिछले एक दशक में, न सिर्फ इन बीमारियों की संख्या दोगुनी हो गई है बल्कि ये युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रही हैं.

1.7 करोड़ के साथ हर साल मरने वालों की लिस्ट में दिल की बीमारी से मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है. लगभग 3.2 करोड़ भारतीय किसी न किसी प्रकार की दिल की बीमारी से परेशान रहते हैं जबकी हर साल इनमें से केवल 1.5 लाख लोग बाइपास सर्जरी करवाते हैं.

साओल हार्ट सेंटर के निदेशक, डॉक्टर बिमल छाजेड़ ने बताया कि, “आज कम उम्र के ज्यादा से ज्यादा लोग दिल की बीमारी की चपेट में आ रहे हैं, जिसका कारण केवल तनाव नहीं है. इसके कई कारण हैं जैसे कि प्रदूषण, धूम्रपान, खराब डाइट, सोने की गलत आदत आदि. भारत के लोगों की ये आदतें उनमें दिल की बीमारी का खतरा बढ़ाती हैं. दरअसल, भारतीयों में दिल की बीमारी का खतरा अन्य देशों की तुलना में ज्यादा होता है. उनमें पेट और पीठ का मोटापा भी एक आम समस्या के रूप में देखा जाता है. यह मोटापा उन्हें कोरोनरी आर्टरी डिजीज़ या हार्ट अटैक के करीब लेकर जाता है.”

#coronavirus: क्या महिलाओं के साथ हमदर्दी दिखा रहा है?

दिल की बीमारी के इलाज के लिए अक्सर लोग बाइपास सर्जरी और एंजियोप्लास्टी का विकल्प चुनते हैं लेकिन कई बार ये इलाज में विफल पाए गए हैं. बाइपास के इलाज के बाद व्यक्ति को फिर से बीमारी हो सकती है इसलिए कई मरीजों के लए यह सही विकल्प नहीं है. वहीं नॉन इनवेसिव इलाज जैसे कि एक्सटर्नल काउंटर पल्सेशन (ईसीपी) एक ऐसा विकल्प है जो ऐसे मरीजों के लिए एक बेहतर और सुरक्षित इलाज है.

डॉक्टर बिमल छाजेड़ ने आगे बताया कि, “ईसीपी, जिसे प्राकृतिक बाइपास तकनीक के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है जो बाइपास या स्टेम सेल थेरेपी की तरह ही शरीर को नई रक्त वाहिकाओं को बढ़ाने के लिए सक्षम बनाती है. इसकी मदद से मरीज जल्दी और देर तक चल सकते हैं. मरीजों का जीवन बेहतर हो जाता है जबकी टेस्ट की मदद से दिल के स्वास्थ्य का पता चलता रहता है. पारंपरिक सीएबीजी (कोरोनरी आर्टरी बाइपास ग्राफ्टिंग) में ब्रेस्टबोन को 10 इंच लंबे चीरे से अलग किया जाता है. वहीं इसकी तुलना में प्राकृतिक बाइपास तकनीक पूरी तरह नॉन इनवेसिव है, जिसमें मरीज को दर्द न के बराबर होता है और शरीर पर कोई घाव के कोई निशान भी नहीं रहते हैं. इसमें मरीज को किसी प्रकार के संक्रमण का कोई खतरा नहीं रहता और उसे अस्पताल में ज्यादा दिन रहना भी नहीं पड़ता है. इसका फायदा 3 साल से 9 साल तक मिलता है. साओल (साइंस एंड आर्ट ऑफ लिविंग) पिछले 25 सालों से दिल के मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज करता आ रहा है.”

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