बदलती जीवनशैली के साथ लोग अक्सर अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. परिणामस्वरूप पिछले एक दशक में मध्यम आयु वर्ग की आबादी के बीच विभिन्न प्रकार की बीमारियां बढ़ गई हैं. डायबीटीज, उच्च रक्तचाप और मोटापा कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो हृदय रोगों के खतरे को बढ़ाती हैं. पिछले एक दशक में, न सिर्फ इन बीमारियों की संख्या दोगुनी हो गई है बल्कि ये युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रही हैं.

1.7 करोड़ के साथ हर साल मरने वालों की लिस्ट में दिल की बीमारी से मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है. लगभग 3.2 करोड़ भारतीय किसी न किसी प्रकार की दिल की बीमारी से परेशान रहते हैं जबकी हर साल इनमें से केवल 1.5 लाख लोग बाइपास सर्जरी करवाते हैं.

साओल हार्ट सेंटर के निदेशक, डॉक्टर बिमल छाजेड़ ने बताया कि, “आज कम उम्र के ज्यादा से ज्यादा लोग दिल की बीमारी की चपेट में आ रहे हैं, जिसका कारण केवल तनाव नहीं है. इसके कई कारण हैं जैसे कि प्रदूषण, धूम्रपान, खराब डाइट, सोने की गलत आदत आदि. भारत के लोगों की ये आदतें उनमें दिल की बीमारी का खतरा बढ़ाती हैं. दरअसल, भारतीयों में दिल की बीमारी का खतरा अन्य देशों की तुलना में ज्यादा होता है. उनमें पेट और पीठ का मोटापा भी एक आम समस्या के रूप में देखा जाता है. यह मोटापा उन्हें कोरोनरी आर्टरी डिजीज़ या हार्ट अटैक के करीब लेकर जाता है.”

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दिल की बीमारी के इलाज के लिए अक्सर लोग बाइपास सर्जरी और एंजियोप्लास्टी का विकल्प चुनते हैं लेकिन कई बार ये इलाज में विफल पाए गए हैं. बाइपास के इलाज के बाद व्यक्ति को फिर से बीमारी हो सकती है इसलिए कई मरीजों के लए यह सही विकल्प नहीं है. वहीं नॉन इनवेसिव इलाज जैसे कि एक्सटर्नल काउंटर पल्सेशन (ईसीपी) एक ऐसा विकल्प है जो ऐसे मरीजों के लिए एक बेहतर और सुरक्षित इलाज है.

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