क्या दिल में भी होता है शार्ट सर्किट

दिल में जोरो से धक धक होने लगे तो खुद को धक धक गर्ल या बॉय समझने की भूल मत कर बैठना. संभव है कि आपके दिल में करंट का ओवरफ्लो हो रहा हो. यानि शार्ट सर्किट.  क्या आप जानते हैं  कि  हमारे दिल में भी शार्ट सर्किट होता है. अगर नहीं तो हम आज आपको दिल से जुडी ऐसी  बीमारी के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसे मेडिकल टर्म में पीएसवीटी या पैरोसाइमल सुपर वेंट्रिकुलर टेकिकार्डियो कहते हैं.

जाने क्या है पीएसवीटी

नार्मल व्यक्ति के  दिल की  धड़कन 72 -100 प्रति मिनट होती है लेकिन जब दिल में शार्ट सर्किट होता है तो  पीड़ित कि धड़कन 180 -250  प्रति मिनट  तक पहुंच जाती है. जब दिल में  करेंट ओवरफ्लो होता है तो धड़कन तिगुनी बढ़ जाती है.  यह दिल कि गड़बडी के कारण होता है. हमारे दिल में चार चेम्बर्स होते है व दिल में कई नसे होती हैं. इनमे कुछ नसे ऐसी भी होती हैं जिनके ऊपर कवरिंग नहीं होती. जब ऐसी दो नसे आपस में मिलती हैं तो शार्ट सर्किट हो जाता है.

लक्षण

धड़कन का  तेज होना.

शरीर पीला व ठंडा होन.

सांस तेज व एवं बेहोश होना.

असामान्य ब्लड प्रेशर की समस्या होना.

 इलाज

इलेक्ट्रो फिजियोलोजिकल स्टडी के जरिए  शार्टसर्किट वाले प्वाइंट को पकड़ा जाता है।जिसके लिए  पैर के रास्ते से तीन तार दिल तक पहुंचाए जाते है. इसके बाद दिल के अंदर हुए शॉर्ट सर्किट का पता लगाया जाता है। पता चलने पर फिर चौथा तार दिल तक पहुंचाया जाता है और दिल में शाट सर्किट वाले इन तारों पर करीब 350 किलोहर्ट्ज की तरंग छोड़कर इसे फ्यूज कर दिया जाता  है. लेकिन कई बार वो नसे  जो  आपस में मिलकर करंट का ओवरफ्लो करती है यदि वो दिल की दीवारों  को बिलकुल छू रही होती है तो उन्हें फ्यूज करने का रिस्क होता है। ऐसे में मरीज़ को पेसमेकर लगाने की जरूरत भी पड़ सकती है इस िस्थति का पता इलेक्ट्रो फिजियोलाजी स्टडी  करते समय ही चल पाता  है.

कारण

दिल में छेद, मानसिक तनाव व चाय, एल्कोहल व काफी का  ज्यादा सेवन.

जंक फूड का  अधिक सेवन.

खांसी, जुकाम समेत तमाम रोगों की दवाएं धड़कन खराब करती हैं.

हीमोग्लोबिन कम होना.

अनुवांशिक होना.

 बचाव

रक्त का संचार ठीक रखें इसलिए नियमित रूप से व्यायाम करें.

हाई कोलेस्ट्रॉल वाली चीजों से करें परहेज.

तनाव को रखें खुद से दूर .

लापरवाही से बचे

यह समस्या बार बार हो रही है तो इससे दिल कि मासपेशियां कमजोर हो जाती हैं व  दिल फैलने लगता है. जिससे करंट नए रास्तों के जरिए फ्लो होकर धड़कन तेज कर देता है. ऐसे में जान जाने का खतरा होता है. अधिकतर दिल से संबंधित यह समस्या महिलाओं  में ज्यादा देखी जाती है.

विशेषज्ञ – नारायणा हॉस्पिटल ,गुरुग्राम

डॉ विवेक चतुर्वेदी  ,सीनियर कंसलटेंट कार्डियोलॉजिस्ट

दोबारा हार्टअटैक आने के खतरे से बचने के तरीके बताएं?

सवाल-

मेरे पति को पिछले महीने हार्ट अटैक आया था. मैं ने सुना है कि एक बार अटैक आने के बाद दोबारा इस के आने का खतरा काफी बढ़ जाता है. मैं उन के खानपान का किस तरह ध्यान रखूं कि वे और उन का दिल दोनों स्वस्थ रहें?

जवाब-

एक बार हार्ट अटैक आने के बाद अगले 10 वर्षों में दूसरा हार्ट अटैक आने की आशंका 90-95% तक होती है. लेकिन दूसरे हार्ट अटैक के खतरे को कम करना संभव है, आप को उन की जीवनशैली और खानपान में बदलाव लाना होगा और उस बदलाव को बरकरार रखना होगा. दिल को दुरुस्त रखने के लिए पोषक और संतुलित भोजन का सेवन बहुत जरूरी है. उन के खानपान में हरी पत्तेदार और दूसरी सब्जियों, फलों, साबूत अनाज को अधिक से अधिक मात्रा में शामिल करें. वसारहित दूध और दुग्ध उत्पाद भी दें. दिन में

1-2 छोटे चम्मच से अधिक तेल न खाने दें. लाल मांस को उन के डाइट चार्ट से पूरी तरह निकाल दें. मछली और चिकन को ग्रिल्ड, बेक्ड या रोस्टेड रूप में दें. तला हुआ भोजन, पेस्ट्री, केक मिठाई, जंक फूड आदि न खाने दें  क्योंकि इन में सैचुरेटेड वसा अधिक मात्रा में होती है, जिस से धमनियां ब्लौक हो जाती हैं और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है. नमक, चीनी, चाय, कौफी आदि थोड़ी मात्रा में दें.

ये भी पढ़ें- 

बिग बॉस 13 के विनर और टीवी एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला का महज 40 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया. जिससे हर कोई सदमे में हैं. उनके फैंस इसलिए भी दुखी और हैरान हैं क्योंकि वो एक हेल्दी पर्सन थे और फिटनेस का पूरा ख्याल रखते थे. फिर भी वो हार्ट अटैक का शिकार हो गए.

मौजूदा समय में बदलती लाइफस्टाइल और तनाव के बीच आम लोग भी इस समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में कुछ खास बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. ताकी आपका दिल स्वस्थ रहे.

वो दौर गया जब सिर्फ 50 साल की उम्र के ही लोगों को हार्ट अटैक का खतरा होता था. आज की बदलती जीवनशैली के चलते अब 30 के उम्र के लोग भी इस खतरनाक बीमारी की चपेट में आने लगे हैं. जी हां, 30 से 40 उम्र के लोगों को दिल संबंधी बीमारियां होने लगी है. इन रोगों का कारण सिर्फ तनाव है और इससे मुक्ति पाने के लिए ये लोग धूम्रपान, नींद की दवाएं, शराब का सेवन करते हैं. जो उन्हें दिल की बीमारी की तरफ ले जा रही है. आपको ये बीमारी ना हो और आप इससे खुद को बचाने के लिए पहले से ही सतर्क रहें, इसीलिए हम आपको दिल की बीमारी के शुरुआती लक्षण बता रहे हैं जिन्हें समय से पहले जानकर गंभीर दिल की बीमारियों से बचा जा सकता है.

बढ़ रहा है हार्ट अटैक का खतरा, ऐसे रखें दिल का ख्याल

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Winter Special: सर्दी में भी रहे दिल का रखें खास ख्याल

सर्दी के मौसम में तापमान गिरते रहने से रक्त का गाढ़ापन बढ़ने लगता है और रक्त प्रवाह कम होने लगता है, जिस से दिल का दौरा पड़ने और कोरोनरी आर्टरी संबंधी बीमारियों के मामले भी बढ़ने लगते हैं. दिल का दौरा पड़ने के कारणों की जानकारी न होना और सर्दी के मौसम में सावधानियों की अनदेखी इन बीमारियों की बड़ी वजहें हैं.

कार्डियोवैस्क्यूलर रोगों से पीडि़त व्यक्तियों को सर्दी के मौसम में विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि उन का दिल सुरक्षित रह सके.

नियमित जांच जरूरी

सर्दियों में लोगों को दिल का दौरा पड़ने का खतरा ज्यादा रहता है. बाईं धमनी से निकलने वाली रक्तधमनियां गिरते तापमान के साथ सिकुड़ने लगती हैं. परिणामस्वरूप दिल को रक्त प्रवाहित करने के लिए अधिक प्रयास करना पड़ता है. इस से दिल पर अधिक दबाव पड़ने लगता है और यही दिल का दौरा पड़ने का कारण बनता है. ऐसी स्थिति में उन लोगों के लिए खतरा और बढ़ जाता है, जिन्हें अपने दिल की स्थिति के बारे में पहले से जानकारी नहीं होती है.

ये भी पढ़ें- खाने में शामिल करें ग्रीन डाइट

कार्डियोवैस्क्यूलर के खतरे के बारे में जानकारी रखने के लिए नियमित जांच कराते रहना बहुत जरूरी है.

बढ़ जाता है खतरा

मौसम बदलने के साथ ही कोलैस्ट्रौल लैवल में भी व्यापक उतारचढ़ाव होता है, जिस कारण उच्च कोलैस्ट्रौल की स्थिति में पहुंच चुके व्यक्तियों को सर्दी के महीनों में कार्डियोवैस्क्यूलर रोग का खतरा बढ़ सकता है. उन के लिए कोलैस्ट्रौल लैवल नियंत्रित रखना बेहद जरूरी है.

इस दौरान ज्यादा मेहनत वाला काम करने से बचें. लगातार काम करने के दौरान बीचबीच में आराम करते रहें ताकि दिल पर ज्यादा दबाव न पड़े. यही नहीं व्यायाम के तौरतरीकों में भी बदलाव लाते रहें.

ज्यादा ठंडे दिनों में सुबह की सैर करने से बचें. सामान्य खुराक से ज्यादा खाने से भी परहेज करें. लेकिन ध्यान रहे कि एक बार में ही ज्यादा मात्रा में भोजन कर लेने से भी दिल पर अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है. अत: ऐसा न करें, बल्कि थोड़ेथोड़े अंतराल पर थोड़ाथोड़ा खाते रहें.

सर्दी के मौसम में कभी यह सोच कर शराब का सेवन न करें कि इस से शरीर में गरमी बनी रहेगी, बल्कि यह उलटा नुकसान करती है. शराब से शरीर में गरमी बनी रहेगी, यह सोचना गलतफहमी है.

– डा. वनिता अरोड़ा
मैक्स हौस्पिटल

ये भी पढ़ें- एक प्याली चाय के हैं फायदे अनेक

जुड़ सकता है टूटा दिल

कभी किसी के प्यार या बिछोह में दिल टूटता है, तो कभी कोई विश्वासघात कर दिल तोड़ जाता है. किसी बेहद करीबी व्यक्ति की अचानक मृत्यु की खबर भी दिल तोड़ जाती है.

दिल से जुड़ी कोई बुरी खबर जब भी अचानक मिलती है, तो दिल की मांसपेशियां कुछ देर के लिए शिथिल हो जाती हैं. अचानक कोई खुशखबरी मिलने पर भी ऐसा ही होता है. इस के लक्षण कुछकुछ हार्ट अटैक जैसे ही होते हैं, लेकिन इसे मैडिकल की भाषा में ‘ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम’ कहा जाता है. सीने, गरदन व बाएं हाथ में दर्द और सांस फूलना आदि इस के लक्षण होते हैं, लेकिन कई बार यह समझने में दिक्कत आती है कि समस्या क्या है.

डाक्टरों के अनुसार कई बार पेशैंट को हार्ट अटैक का केस मान कर लाया जाता है, लेकिन जब ईसीजी और अल्ट्रासाउंड किया जाता है, तो पता चलता है कि दिल का बायां हिस्सा काम नहीं कर रहा. जबकि न तो दिल की धमनी में कोई रुकावट है और न ही ब्लड सर्कुलेशन में प्रौब्लम. सिर्फ बाएं हिस्से की मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं जोकि ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम की वजह से होता है.

दिल का टूटना फिल्मी बात लगती है, लेकिन यह सच है कि चिकित्सा विज्ञान भी मानता है कि दिल टूटता है. मैडिकल साइंस में इसे ‘ताकोत्सुबो कार्डियोपैथी’ कहते हैं. ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम की शिकार 90% महिलाएं 50 से 70 वर्ष के बीच की होती हैं. डाक्टर के अनुसार महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद ऐस्ट्रोजन हारमोन के स्तर में गिरावट आ जाती है. तब कोई अति दुखद और सुखद घटना घटने पर उन का ओटोनौमस नर्वस सिस्टम अधिक सक्रिय हो उठता है. इस से शरीर में बहुत अधिक मात्रा में स्ट्रैस हारमोन का स्राव हो उठता है और इसी के कारण हृदय की मांसपेशियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.

लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि पुरुषों का दिल पत्थर का होता है. अब वैज्ञानिक तौर पर यह बात साबित हो गई है कि पुरुषों के अंदर ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम मौजूद होता है. इस सिंड्रोम की मौजूदगी के चलते उन का दिल टूटने पर संभाले नहीं संभलता. पुरुषों में यह खतरा महिलाओं की तुलना में 6 गुना ज्यादा पाया गया है.

ये भी पढ़ें- कम समय में वजन घटाएं ऐसे

क्या कहते हैं शोधकर्ता

ब्रिटिश शोधकर्ताओं के अनुसार पति या पत्नी की मृत्यु हो जाने पर 1 साल के भीतर उस के जीवनसाथी की भी मृत्यु हो जाने का खतरा बना रहता है, क्योंकि उस का दिल टूट जाता है. यह प्रभाव उन लोगों पर ज्यादा पड़ता है, जिन की शादी को काफी लंबा वक्त हो चुका होता है. लेकिन एक अच्छी बात यह है कि वियोग के 1 साल बाद मौत का खतरा घट जाता है. जापान के शोधकर्ताओं ने ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम का सब से पहली बार उल्लेख 1990 के शुरुआती दौर में किया था. प्रमुख शोधकर्ता डाक्टर रिचर्ड रेगनांटे ने कहा कि चोट खाए लोगों को संभालना और उन की पहचान करना हृदयरोग विशेषज्ञों और डाक्टरों के लिए मुश्किल हो सकता है. यह अध्ययन अमेरिकी जर्नल औफ कार्डियोलौजी में प्रकाशित हुआ है.

इस में यह भी कहा गया है कि टूटे दिल के लक्षण गरमियों और वसंत ऋतु में अधिक उभर कर सामने आते हैं, जबकि हृदयाघात अमूमन जाड़ों में होता है. इस अवस्था में रोगी को आईसीयू में कड़ी निगरानी में रखा जाता है. सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि डाक्टर को पता हो कि यह ब्रोकन हार्ट का मामला है ताकि वह हृदयाघात के लिए उपचार शुरू न कर दे. ऐसा करना खतरनाक हो सकता है. हृदय के बाएं हिस्से की मांसपेशियों में आई शिथिलता धीरेधीरे कुछ दिनों या कभीकभी कुछ सप्ताह में दूर हो जाती है. इस घटना के कारण मांसपेशी को कोई स्थायी नुकसान नहीं होता.

क्या करें

कहा जाता है खुशी बांटने से बढ़ती है और दुख बांटने से कम होता है. अपनी भावनाएं किसी के साथ शेयर करें. इस से मन में हलकापन महसूस होता है. अगर मन किसी बात से दुखी है तो रो कर अपना मन हलका करें. दर्द का गुबार आंसू बन कर बह जाएगा. तनाव की स्थिति में शौपिंग पर निकल जाएं या दोस्तों और परिवार वालों के साथ ऐंजौय करें. अगर डिप्रैशन ज्यादा महसूस हो रहा हो तो मनोचिकित्सक से संपर्क करें.

ये भी पढ़ें- जानें क्या हैं 30+ हैल्थ सीक्रैट्स

प्यार की गरमाहट में न हो कमी

बड़े प्यार से 2 साथी मिल कर अपना जीवनसफर शुरू करते हैं. सब अच्छा चल रहा होता है. फिर भी कहीं न कहीं कुछ उदासी सी भरने लगती है. अगर मस्ती और दीवानगी जरा भी कम हो रही हो, तो यह खतरे की घंटी है. ऐसे में घबराने की नहीं, थोड़ा सतर्क होने की जरूरत है. सब से खास बात यह है कि बदलाव दोनों की तरफ से ही आता है, पर दोनों में से एक भी चौकन्ना रह कर प्रेम के इजहार में पीछे न रहे, कोई मौका न छोड़े. ऐसा करने से प्रेम की सरिता पुन: धाराप्रवाह बहने लगेगी. 1-2 दिनों के लिए कहीं घूमने का कार्यक्रम बनाया जा सकता है, ऐसा कर के मिठास को वापस लाया जा सकता है. खास अवसर की प्रतीक्षा किए बगैर कुछ अनूठा प्रयोग कर डालिए. कोई पसंदीदा डिश बनाइए या फिर साथी के पसंद के मित्रों को घर पर आमंत्रित कर लीजिए. सब कुछ नयानया लगने लगेगा. कोई छोटीमोटी शरारत भी गजब ढा सकती है. जैसे जानबूझ कर सब्जी में नमक न डालना, उन का जरूरी गैजेट खुद छिपाना, फिर खुद ही ढूंढ़ कर दे देना आदि. पुराना मजेदार किस्सा सुनाना भी बहुत असर करेगा. बस भावनाएं आहत न हों, इस का ध्यान रखना जरूरी है. साथी के पर्स या बैग में मस्ती भरी चिट्ठी लिख कर डाल दीजिए या फिर मजेदार एसएमएस कीजिए. बचपना भी बुरा नहीं है. संबंधों में ताजगी लाने के लिए यह दवा जैसा काम करेगा.

सांस औऱ दिल से जुड़ी प्रौब्लम का इलाज बताएं?

सवाल-

मैं बैंगलुरु की एक एमएनसी में कार्यरत 42 वर्षीय पुरुष हूं. पिछले कुछ समय से मुझे अनियमित रूप से दिल धड़कने का एहसास हो रहा है. मुझे कई बार सांस लेने में तकलीफ तथा चक्कर आने का भी अनुभव होता है. क्या ये सब हार्ट अटैक के लक्षण हैं?

जवाब

दिल के अनियमित रूप से धड़कने या दिल की हर बीमारी का ताल्लुक हार्ट अटैक से नहीं होता. सांस लेने में तकलीफ या चक्कर आने जैसे लक्षण, खासकर अनियमित रूप से दिल का धड़कना एस्थिमिया के संकेत हैं. एस्थिमिया के मरीजों में दिल धड़कने की दर असामान्य रूप से अनियमित हो जाती है.

सवाल

मेरे 65 वर्षीय पिता का इंजैक्शन फ्रैक्शन गिर कर 40% हो गया है. क्या इस उम्र में सर्जरी कराना उचित रहेगा?

जवाब

सामान्य स्थिति में इंजैक्शन फ्रैक्शन दर 60 से 70% रहती है. आप के पिता को किसी कार्डियोलौजिस्ट से संपर्क करना चाहिए, जो उन्हें इंप्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर (आईसीडी) प्रत्यारोपित कराने या रेडियोफ्रिक्वैंसी एब्लेशन कराने की सलाह दे सकते हैं. स्थिति बिगड़ने से

पहले तत्काल उपाय करना जरूरी है, क्योंकि आगे यह और घातक हो सकती है.

ये भी पढ़ें- शादी के बाद फिजिकल रिलेशनशिप के बारे में बताएं?

सवाल-

मेरी बहन कई बार बहुत ज्यादा थक जाती है और बेहोशी की स्थिति में पहुंच जाती है. अकसर वह सही तरीके से सांस भी नहीं ले पाती. वह सिर्फ 16 साल की है. क्या इस उम्र का व्यक्ति एस्थिमिया से पीडि़त हो सकता है?

जवाब

एस्थिमिया का उम्र से कोई लेनादेना नहीं है और यह किसी को भी हो सकता है. चक्कर आना, अत्यधिक थकान, सांस लेने में तकलीफ, व्यायाम करने में असमर्थता, सीने में दर्द और बेहोशी की स्थिति एस्थिमिया के लक्षण हो सकते हैं और ऐसे हालात में दिल की धड़कनें भी अनियमित हो सकती हैं. कुछ प्रकार के एस्थिमिया नुकसानरहित होते हैं लेकिन बाद में ये जानलेवा भी हो सकते हैं. किसी को भी दिल की असामान्य धड़कनों की शिकायत को अनदेखा नहीं करना चाहिए क्योंकि इस से दिल की धड़कनें पूरी तरह से रुक जाने का भी खतरा रहता है.

सवाल

दिल की अनियमित धड़कनों की समस्या से नजात पाने में इंप्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर (आईसीडी) कितना मददगार है? क्या इस तरह के डिवाइस पर बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ता है?

जवाब

आईसीडी दिल की धड़कन दर पर निरंतर निगरानी रखते हुए स्वत: काम करता है और वैंट्रिकुलर टेकीकार्डियो तथा वैंट्रिकुलर फाइब्रिलेशन घटनाएं शुरू होते ही इन का पता लगा लेता है. वैंट्रिकुलर टेकीकार्डियो तथा वेंट्रिकुलर फाइब्रिलेशन घटनाओं का पता लगाने के तत्काल बाद ही आईसीडी कम ऊर्जा की इलैक्ट्रिकल नब्ज या इलैक्ट्रिक शौक के रूप में उपचार शुरू कर देता है ताकि मरीज को नुकसान पहुंचाने से पहले एस्थिमिया से बचाया जा सके. कई प्रकार के आईसीडी उपलब्ध हैं, मसलन सिंगल चैंबर तथा डबल चैंबर आदि.

खराब लाइफस्टाइल के कारण दिल संबंधी बीमारियां एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. आजकल तो 20 वर्ष की उम्र वाले युवाओं में भी दिल की बीमारियां होने लगी हैं. मेरी उम्र 26 साल है. दिल की बीमारियों से बचने के लिए मुझे किस प्रकार की सावधानियां बरतनी चाहिए?

कुछ खास प्रकार के लाइफस्टाइल आप के उच्च रक्तचाप और कोलैस्ट्रौल स्तर को कम कर सकते हैं तथा दिल की बीमारियों की चपेट में आने की आशंका को कम कर सकते हैं. आप को धूम्रपान तथा अल्कोहल के सेवन से बचना चाहिए. कई युवा नियमित व्यायाम को अहमियत नहीं देते. कुछ युवा तो किसी तरह का शारीरिक श्रम भी नहीं करना चाहते. व्यायाम न करने की इस आदत को बदलना चाहिए. आप को नियमित रूप से व्यायाम या प्रतिदिन 45 मिनट तक तेज कदमों से चलने की आदत डालनी होगी. इस के अलावा तनाव दूर करने के लिए कोई शौक पालना दिल के लिए अच्छा होता है.

सवाल-

किसी व्यक्ति के एस्थिमिया से पीडि़त होने के क्या लक्षण हो सकते हैं? क्या समय पर इस का इलाज नहीं कराना घातक साबित हो सकता है?

जवाब

चक्कर आना, अत्यधिक थकान, सांस का फूलना, व्यायाम करने की असमर्थता, सीने में दर्द तथा बेहोश होने के लक्षण एस्थिमिया के संकेत हो सकते हैं. कुछ प्रकार के एस्थिमिया नुकसान नहीं पहुंचाते, लेकिन कुछ प्रकार के एस्थिमिया घातक हो सकते हैं. आप को दिल की अनियमित धड़कनों की कमी अनदेखी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इस वजह से दिल की धड़कन पूरी तरह से थम भी सकती है.

ये भी पढ़ें- महिलाओं से जुड़ी बीमारियों का इलाज बताएं?

सवाल-

मुझे 10 साल पहले 19 साल की उम्र में ही धूम्रपान की लत लग गई थी और अब चेन स्मोकर हो गया हूं. धूम्रपान से दिल की समस्याओं का खतरा कितना बढ़ सकता है?

जवाब

धूम्रपान से दिल की समस्याएं बढ़ जाती हैं. तंबाकू के इस्तेमाल से रक्त थक्का बनने की संभावना बढ़ जाती है और रक्त द्वारा औक्सीजन संचारित करने की दर कम हो जाती है. दिल की आर्टरीज में कहीं भी रक्त थक्का जमने से कई तरह की दिल की बीमारियां बढ़ सकती हैं और स्ट्रोक भी हो सकता है. चेन स्मोकिंग की लत और ज्यादा खतरनाक है, लिहाजा, अच्छी सेहत रखने के लिए आप को धूम्रपान कम कर देना चाहिए.

-डा. वनीता अरोड़ा

मैक्स हौस्पिटल, साकेत में कार्डियक इलैक्ट्रोफिजियोलौजी लैब ऐंड एस्थिमिया सर्विसेज की प्रमुख और ऐसोसिएट डायरैक्टर.

ये भी पढ़ें- मोटी बिंदी लगाने से माथे पर परमानैंट स्पौट हो गया है, मैं क्या करुं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

हार्ट प्रौब्लम्स के लिए बेस्ट एक्सरसाइज है गाने सुनना

क्या आप खाली समय में गाने सुनना पसंद करती हैं? अगर हां तो आपको बता दें कि म्यूजिक आपका मुड ठीक करने के साथ ही साथ दिल की सेहत को भी दुरुस्त रखने में मदद करता है. म्यूजिक का हमारी लाइफ पर भी काफी प्रभाव पड़ता है. इससे दिमाग तेज और शार्प होता है. आपने तमाम कहानियों में पढ़ा होगा कि पेड़-पौधों के हिलने, जंतुओं के बोलने, हवाओं के चलने आदि में भी मधुर म्यूजिक को महसूस किया जा सकता है. हर कोई चाहे वो बच्चा हो, युवा हो या फिर वृद्ध हो अपने पसंद के अनुसार म्यूजिक को सुनना पसंद करते हैं.

म्यूजिक हमारी सेहत को भी काफी प्रभावित करता है. जब हम अपना पसंदीदा गाना सुन रहे होते हैं तब हमारे दिमाग से एक रसायन का स्राव होता है. इसे डोपामाइन कहते हैं. यह हमारे मूड को सकारात्मक बनाने में मददगार होता है और हमारी भावनाओं को भी मजबूत बनाता है. इसके अलावा भी गाने सुनने के कई सारे फायदे होते हैं. तो चलिए जानते हैं कि वे फायदे क्या हैं?

1. म्यूजिक आपको खुश रखता है

जब भी हम कोई अच्छा गाना सुन रहे होते हैं तब हमारा दिमाग डोपामाइन रिलीज करता है. इसे हैप्पी हार्मोन भी कहा जाता है. हैप्पी हार्मोन खुशी और एक्साइटमेंट बढ़ाने में काफी असरदार है. इसलिए जब भी हम किसी अच्छे गाने को सुनते हैं तो हमारा मुड बदल जाता है और हम अंदर से खुशी का अनुभव करने लगते हैं.

ये भी पढ़ें- सेहत और स्वाद के रंग

2. दिल की सेहत रखे दुरुस्त

जिन लोगों को दिल संबंधी कोई बीमारी है उन्हें खूब गाने सुनने चाहिए. एक अध्ययन में पाया गया है कि जब हम अपना पसंदीदा गाना सुन रहे होते हैं तब हमारे दिमाग से एंडार्फिन नाम का हार्मोन निकलता है. यह हार्मोन दिल संबंधी समस्याओं से निजात दिलाने में मददगार होता है.

3. दिमाग रखे जवां

एक अध्ययन के मुताबिक म्यूजिक दिमाग को हमेशा सेहतमंद बनाए रखता है. शोध का कहना है कि गाना सुनना दिमाग के व्यायाम की तरह होता है.

4. रोग प्रतिरोधक क्षमता रखे मजबूत

रोग प्रतिरोधक क्षमता को दुरुस्त रखने के लिए म्यूजिक सुनना काफी आवश्यक है. यह शरीर में स्ट्रेस हार्मोन के स्राव को कम करता है जो कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करने के लिए जिम्मेदार है.

5. अवसाद रखे दूर

म्यूजिक चिंता दूर करने और मूड सही रखने में बेहद प्रभावी साबित हो सकता है. एक अध्ययन के मुताबिक हमारे मूड और जीवन की गुणवत्ता पर म्यूजिक का काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

ये भी पढ़ें- सेहत से न करें समझौता

रात के समय मुझे बारबार पेशाब जाना पड़ता है, मेरी बीमारी क्या है?

सवाल-

मैं 34 साल की कामकाजी महिला हूं. कुछ दिनों से रात के समय मुझे बारबार पेशाब जाना पड़ता है. बेचैनी और थकान भी बहुत ज्यादा होती है. मुझे बताएं कि ऐसा क्यों हो रहा है और इस से छुटकारा कैसे पाया जा सकता है?

जवाब-

आप के द्वारा बताए गए लक्षण हृदयरोग का संकेत देते हैं. इस प्रकार के लक्षण इस बात का संकेत देते हैं कि दिल अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहा है. ऐसे में बीमारी गंभीर होने पर आप का दिल पूरी तरह फेल हो सकता है. हालांकि घबराएं नहीं और पहले इस की पुष्टि के लिए किसी अच्छे डाक्टर से परामर्श लें. उचित जांच और सही समय पर इलाज के साथ बीमारी को आसानी से ठीक किया जा सकता है. इलाज में देरी करने पर बात सर्जरी तक पहुंच सकती है, इसलिए लापरवाही बिलकुल न दिखाएं.

ये भी पढें-

आए दिन सांस फूलने की शिकायतें सुनने को मिलती हैं. शादीब्याह या किसी छोटेमोटे प्रोग्राम में मौसी, बूआ, ताऊ, चाची या अन्य किसी चिरपरिचित को सांस फूलने की शिकायत करते सुना जाता है. क्या कभी आप ने सोचा कि सांस फूलने के असली कारण क्या हैं.

सांस फूलना

सांस फूलने की मुख्य वजह है शरीर को औक्सीजन ठीक से न मिल पाना जिस से फेफड़े पर अनावश्यक दबाव पड़ता है. ऐसे में फेफड़े औक्सीजन पाने के लिए श्वसन क्रिया की गति को बढ़ा देते हैं जिस को हम सरल भाषा में सांस फूलना कहते हैं. यदि समय रहते सांस फूलने पर ध्यान नहीं दिया गया तो इस के परिणाम जानलेवा हो सकते हैं.

पूरी खबर पढने के लिए- थोड़ा चलने से फूलने लगे सांस, तो गंभीर हो सकती है समस्या

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

युवाओं का दिल भी खतरे में

– डॉक्टर बलबीर सिंह, चेयरमैन, कार्डियक साइंसेस, मैक्स हॉस्पिटल, साकेत, दिल्ली

दिल की बिमारियों को सबसे घातक बीमारियों में गिना जाता है और भारत में मृत्युदर का एक प्रमुख कारण माना जाता है. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, 5 में से एक पुरुष और 8 में से एक महिला दिल की बीमारियों के चलते अपनी जान गंवा बैठते हैं. एक समय में हार्ट अटैक केवल बुढ़ापे से संबंधित हुआ करता था. लेकिन हालिया हालात ऐसे हैं कि 20, 30 और 40 की उम्र वाले लोग भी दिल की बीमारियों से जूझ रहे हैं. इसके लिए जीवनशैली की आदतें, धूम्रपान, मोटापा, हाई कोलेस्ट्रॉल, उच्च-रक्तचाप और डायबिटीज़ को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जाता है.

हर दिन लगभग 9000 लोग दिल की बीमारियों से मरते हैं, जिसका मतलब है हर 10 सेकेंड में एक मौत. उनमें से 900 लोग 40 साल से कम उम्र के युवा होते हैं. भारत में हृदय रोगों की महामरी को रोकने का एकमात्र तरीका जनता को शिक्षित करना है अन्यथा 2020 तक हालात बद से बद्तर हो जाएंगे.

क्या हैं लक्षण?

कोरोनरी हार्ट डिजीज़ (सीएचडी) के सभी मरीजों में लक्षण और सीने का दर्द एक समान हो, ऐसा जरूरी नहीं है. लक्षण भिन्न हो सकते हैं. कई मरीजों को अपच की समस्या हो सकती है तो कइयों को गंभीर दर्द, भारीपन या कसाव महसूस हो सकता है. यह दर्द आमतौर पर सीने के बीचों-बीच होता है जो हाथों, गर्दन, जबड़ा और पेट तक फैल सकता है. इसके साथ ही घबराहट और सांस लेने में मुश्किल हो सकती है.

ये भी पढ़ें- पीरियड्स की डेट नैचुरल तरीके से आगे बढ़ाने के लिए ट्राय करें ये 7 टिप्स

धमनियों के पूरी तरह ब्लॉक होने पर हार्ट अटैक हो सकता है, जिसके कारण दिल की मांसपेशियों को स्थायी नुकसान पहुंच सकता है. हार्ट अटैक के कारण होने वाला दर्द और असुविधा एंजाइना के समान होता है लेकिन अक्सर अधिक गंभीर होता है. इसमें पसीना आना, उलझन, जी मिचलाना, सांस लेने में मुश्किल आदि समस्याएं होती हैं. यह डायबिटीज़ के मरीजों में आम है. हार्ट अटैक का सही समय पर इलाज न करने पर यह घातक साबित हो सकता है.

पहचान कैसे करें?

एक संदिग्ध सीएचडी के मरीज में बीमारी की पहचान के लिए चिकित्सा और पारिवारिक इतिहास, जीवनशैली का आंकलन और रक्त परीक्षण शामिल हैं. इसके अलावा सीएचडी की पहचान में प्रत्येक हार्ट वॉल्व की संरचना, मोटाई और हलचल की पहचान के लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी), दिल, फेफड़ों और सीने में दिखाई देने वाले लक्षणों को देखने के लिए एक्स-रे, एक्सरसाइज़ के दौरान दिल पर पड़ने वाले असर की पहचान के लिए ट्रेडमिल टेस्ट, कार्डियोवस्कुलर कार्टोग्राफी हार्ट फ्लो मैपिंग, सीटी एंजियोग्राफी और ब्लॉकेज की गंभीरता की पहचान के लिए इनवेसिव कोरोनरी एंजियोग्राफी आदि जैसे नॉन इनवेसिव टेस्ट शामिल हैं.

हृदय रोगों की रोकथाम

हालांकि कोरोनरी आर्टरी डिजीज़ को पूरी तरह से ठीक करना संभव नहीं है लेकिन इसका इलाज लक्षणों के नियंत्रण, दिल की कार्यप्रणाली में सुधार और हार्ट अटैक जैसी समस्याओं के खतरे को कम करने आदि में सहायक होता है. इसमें जीवनशैली में बदलाव, दवाइयां और नॉन-इनवेसिव इलाज शामिल हैं. इनवेसिव और सर्जरी की जरूरत केवल गंभीर मामलों में पड़ सकती है. अधिकतर मामलों में इलाज के परिणाम बेहतर होते हैं, जहां मरीज अपने जीवन को पुन: सामान्य रूप से शुरू कर पाता है.

जीवनशैली में कुछ आसान बदलावों की आवश्यकता पड़ती हैं जैसे कि पौष्टिक व संतुलित आहार, शारीरिक सक्रियता, नियमित व्यायाम, धूम्रपान बंद करना और कोलेस्ट्रॉल और शुगर के स्तर को नियंत्रित करना आदि. ये बदलाव सीएचडी, स्ट्रोक और कमज़ोर याददाश्त के खतरे को कम करते हैं.

य़े भी पढ़ें- 35 + के बाद हेल्थ का ध्यान रखें कुछ ऐसे 

सीएचडी के इलाज के लिए कई दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है. कोलेस्ट्रॉल, उच्च-रक्तचाप और डायबिटीज़ को भी दवाइयों की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है. अन्य दवाइयां दिल की धड़कन को धीमा करने, रक्त को पतला करके खून के थक्कों की रोकथाम करने में काम आती हैं. इनमें से कुछ दवाइयों से सिरदर्द, सिर चकराना, कमज़ोरी, बदन दर्द, त्वचा पर रैशेज़ होने के साथ याददाश्त और सेक्स की इच्छा प्रभावित हो सकती है. यदि किसी दवाई को लंबे समय से लिया जा रहा है तो ऐसे में समय-समय पर ब्लड टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है. यह टेस्ट विशेषकर किडनी और लिवर के कार्यों पर केंद्रित होता है.

हालांकि हार्ट फेलियोर खतरनाक मालूम होती है लेकिन उचित निदान और देखभाल के साथ इसका इलाज संभव है. मोटापा, डायबिटीज़ और उच्च-रक्तचाप को बढ़ावा देने वाले आहार और जीवनशैली में बदलाव ही हार्ट फेलियोर की रोकथाम का सबसे आसान तरीका है.

बीमारियों से बचने के लिए दिल का ख्याल रखना है जरूरी

हम सभी लगातार भाग रहे हैं, सफर कर रहे हैं, अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत व्यस्त हैं और बमुश्किल हमें खाली समय मिल पाता है. इस भागदौड़ भरी जिंदगी में, हम अपने रोज के कामों को निबटाने के दौरान अपने भोजन, 8 घंटे की पर्याप्त नींद और नियमित फिटनेस रिजीम को पीछे छोड़ देते हैं. इन सब को सब से कम प्राथमिकता देते हैं और आखिरकार अपने स्वास्थ्य से समझौता कर बैठते हैं. हमारे शरीर का सब से महत्त्वपूर्ण अंग हमारा हृदय है जोकि चौबीसों घंटे काम करता है ताकि हम जिंदगी को भरपूर जी सकें. तनाव में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और स्वास्थ्य दूसरी प्राथमिकता बन रहा है. ऐसे में अपने हृदय की सेहत पर उचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है. वर्ष 2015 के लैंसेट अध्ययन के अनुसार, हृदय से संबंधित बीमारियों के कारण भारत में 2.1 मिलियन से अधिक मौतें हुईं. इस से साफ तौर पर कार्डियोवैस्क्युलर रोग (सीवीडी) में देश में वृद्धि हो रही है और वह भी खतरनाक दर से.

इंडियन काउंसिल औफ मेडिकल रिसर्च द्वारा किए गए एक अध्ययन में कार्डियोवैस्क्युलर रोगों में इस बढ़ोतरी का कारण बढ़ती आबादी, लोगों की बढ़ती उम्र और सब से महत्त्वपूर्ण जीवनशैली में हो रहे बदलावों के कारण बढ़ती संवेदनशीलता है. यह इस बात का प्रमाण है कि उम्र के साथ, हमारी जीवनशैली भी हमारे हृदय का स्वास्थ्य निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाती है. हमारी जीवनशैली सिर्फ हमारे द्वारा किए जाने वाले रोजमर्रा के कामों और तनाव को प्रबंधित करने से ही प्रभावित नहीं होती है, बल्कि हम जो खाते हैं या रात में जितनी नींद लेते हैं, उस से भी असर पड़ता है. हमारी इन सब चीजों से सुनिश्चित होता है कि हमारा शरीर पूरा दिन सब से अच्छे ढंग से काम कर रहा है.

ये भी पढ़ें- मेनोपौज की मिथ से लड़े कुछ ऐसे

दरअसल, मौजूदा परिदृश्य में जिस आयु समूह को हृदय संबंधी बीमारियां होने का खतरा सब से अधिक है- वह है 30 साल. आंकड़े काफी खतरनाक हैं. अब हृदय रोगों के लिए उम्र स्पष्ट रूप से कोई मानदंड नहीं रह गई है. हृदय के रोग सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं. थकान एवं तनावपूर्ण अनुसूची के बढ़ने से आज की नई युवा पीढ़ी के लिए भी यह गंभीर चिंता बन गई है. इस से बचने का कोई समय नहीं- अब समय आ गया है कि हम अभी से एक स्वास्थ्यवर्धक जिंदगी जीने के लिए सक्रियता से प्रयास करें.

इस से एक बात तो साफ है कि हमें अपने हृदय एवं स्वास्थ्य की देखभाल कम उम्र से शुरू करनी होगी. हम सभी को एक स्वस्थ दिनचर्या एवं आदतों को अपनाना चाहिए जिस से हमें सेहतमंद बने रहने और एक स्वास्थ्यवर्धक जीवन जीने में मदद मिलती है. ये चरण आप की जिंदगी में काफी बड़ा अंतर ला सकते हैं:

शारीरिक गतिविधि

अपनी दिनचर्या में कम से कम 30 मिनट के लिए शारीरिक गतिविधि को शामिल करना जरूरी है. आप ब्रिस्क वौक, जिम, योग, डांस या फिर कुछ और कर सकते हैं जिस से हार्ट पंपिंग में मदद मिलती है. इस से आप के दिमाग को भी सुकून मिलेगा और आप का दिल अधिक सक्रिय होगा, साथ ही हर दिन आप का स्टैमिना भी बनेगा.

सही खानपान

बाहर से आसानी से और्डर किए जा सकने वाले विकल्पों की बजाय घर का बना खाना खाएं. स्वस्थ खाना पकाने की शुरुआत होती है एक ऐसे खाद्य तेल के साथ जिस में आप के हृदय के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए सही अनुपात में सही सामग्री मौजूद हो. तेल में उच्च एमयूएफए होना चाहिए जोकि खाने में तेल के अवशोषण को कम करता है यह ओमेगा 3 का अच्छा स्रोत हो जोकि जलन से लड़ता है. आदर्श ओमेगा 6 : ओमेगा 3 अनुपात (इंडियन काउंसिल औफ मेडिकल रिसर्च द्वारा उल्लिखित 5 से 10 के बीच)हो जोकि हृदय की संपूर्ण सेहत बरकरार रखने में मदद करता है. समग्र पोषण के लिए तेल ओराइजनौल जोकि बैड कोलैस्ट्रौल को कम करता है और विटामिन ए, डी एवं ई से युक्त हो.

ये भी पढ़ें- नवजात को स्किन एलर्जी से बचाएं ऐसे

धूम्रपान एवं शराब पीने से बचें

धूम्रपान और नियमित रूप से शराब पीने से आप के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है. तंबाकू का सेवन आप के फेफड़ों में औक्सीजन की मात्रा घटाता है और यह कई बीमारियों का कारण बनता है. वहीं जरूरत से ज्यादा शराब पीने से आप की धमनियां और गुदे खराब हो जाते हैं. इसलिए, धूम्रपान से बचें और शराब के सेवन को सीमित करें. इस से आप का दिमाग एवं शरीर को सक्रिय एवं तंदुरुस्त रखने में मदद मिलेगी.

अच्छी नींद लें

कम से कम 7-8 घंटे की नींद लेना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस से आप के दिमाग को आराम मिलता है. साथ ही हृदय एवं दूसरे अंगों को ज्यादा प्रभावी ढंग से काम करने में मदद मिले क्योंकि जब हम सो रहे होते हैं, तब हमारे अंग ज्यादा सक्रियता से काम करते हैं. जीवनशैली में बदलाव करने के लिए धैर्य एवं पूर्ण प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है. हालांकि, मौजूद परिदृश्य में हमारे पास वाकई में विकल्प नहीं हैं. हमें अब कम उम्र में ही बदलाव करने होंगे ताकि एक सेहतमंद, स्वस्थ एवं लंबी जिंदगी व्यतीत करना सुनिश्चित हो. आइए हम सब खुद से वादा करते हैं कि हम एक सक्रिय एवं स्वस्थ जिंदगी जिएंगे.

ये भी पढ़ें- जानें किन वजहों से होती है वेजाइना में इचिंग

क्या है एओर्टिक स्टेनोसिस

डायबिटीज रोगी 77 साल के बिपिन चंद्रा की जिंदगी अब थोड़ी सुकूनभरी है लेकिन साल 2014 में उन की स्थिति काफी तकलीफदेह हो गई थी. किडनी की बीमारी से जूझ रहे बिपिन चंद्रा की बाईपास सर्जरी हो चुकी थी. उम्र के इस पड़ाव में उन का चलनाफिरना या काम करना मुश्किल हो गया था. थोड़ा चलने पर ही वे हांफने लगते. उन की बढ़ती समस्या को देखते हुए डाक्टर से परामर्श लिया गया.

डाक्टर ने उन के कुछ टैस्ट किए जिन में एमएससीटी (इस तकनीक में हृदय और वैसल्स की 3डी इमेज बनाने के लिए एक्सरे बीम तथा लिक्विड डाई का इस्तेमाल किया जाता है) भी शामिल है. टैस्ट के बाद खुलासा हुआ कि वे गंभीररूप से एओर्टिक स्टेनोसिस से पीडि़त थे. बिपिन चंद्रा की सर्जरी हुए 2 साल हो गए हैं और अब वे बेहतरीन जिंदगी जी रहे हैं.

एओर्टिक स्टेनोसिस क्या है?

जब हृदय पंप करता है तो दिल के वौल्व खुल जाते हैं जिस से रक्त आगे जाता है और हृदय की धड़कनों के बीच तुरंत ही वे बंद हो जाते हैं ताकि रक्त पीछे की तरफ वापस न आ सके. एओर्टिक वौल्व रक्त को बाएं लोअर चैंबर (बायां वैंट्रिकल) से एओर्टिक में जाने के निर्देश देते हैं.

एओर्टिक मुख्य रक्तवाहिका है जो बाएं लोअर चैंबर से निकल कर शरीर के बाकी हिस्सों में जाती है. अगर सामान्य प्रवाह में व्यवधान पड़ जाए तो हृदय प्रभावी तरीके से पंप नहीं कर पाता. गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस यानी एएस में एओर्टिक वौल्व ठीक से खुल नहीं पाते.

मेदांता अस्पताल के कार्डियोलौजिस्ट डा. प्रवीण चंद्रा कहते हैं कि गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस की स्थिति में आप के हृदय को शरीर में रक्त पहुंचाने में अधिक मेहनत करनी पड़ती है. समय के साथ इस वजह से दिल कमजोर हो जाता है. यह पूरे शरीर को प्रभावित करता है और इस वजह से सामान्य गतिविधियां करने में दिक्कत होती है. जटिल एएस बहुत गंभीर समस्या है. अगर इस का इलाज न किया जाए तो इस से जिंदगी को खतरा हो सकता है. यह हार्ट फेल्योर व अचानक कार्डिएक मृत्यु का कारण बन सकता है.

लक्षण पहचानें

एओर्टिक स्टेनोसिस के कई मामलों में लक्षण तब तक नजर नहीं आते जब तक रक्त का प्रवाह तेजी से गिरने नहीं लगता. इसलिए यह बीमारी काफी खतरनाक है. हालांकि यह बेहतर रहता है कि बुजुर्गों में सामने आने वाले विशिष्ट लक्षणों पर खासतौर से नजर रखनी चाहिए. ये लक्षण छाती में दर्द, दबाव या जकड़न, सांस लेने में तकलीफ, बेहोशी, कार्य करने में स्तर गिरना, घबराहट या भारीपन महसूस होना और तेज या धीमी दिल की धड़कन होना हैं.

बुजुर्ग लोगों को एओर्टिक स्टेनोसिस का बहुत रिस्क रहता है क्योंकि इस का काफी समय तक शुरुआती लक्षण नहीं दिखता. जब तक लक्षण, जैसे कि छाती में दर्द या तकलीफ, बेहोशी या सांस लेने में तकलीफ, विकसित होने लगते हैं तब तक मरीज की जीने की उम्र सीमित हो जाती है. ऐसी स्थिति में इस का इलाज सिर्फ वौल्व का रिप्लेसमैंट करना ही बचता है. हाल ही में विकसित ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट (टीएवीआर) तकनीक की मदद से गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों का इलाज प्रभावी तरीके से किया जा सकता है जिन की सर्जरी करने में बहुत ज्यादा जोखिम होता है.

एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट

टीएवीआर से उन एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों को बहुत लाभ मिलेगा जिन्हें ओपन हार्ट सर्जरी करने के लिए अनफिट माना गया है. इस उपचार की सलाह उन मरीजों को दी जाती है जिन का औपरेशन रिस्कभरा होता है. इस से उन के जीने और कार्यक्षमता में बहुत सुधार होता है.

गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस में जान जाने का खतरा रहता है और अधिकतर मामलों में सर्जरी की ही जरूरत पड़ती है. कुछ सालों तक इस बीमारी का इलाज ओपन हार्ट सर्जरी ही थी. लेकिन टीएवीआर के आने से अब काफी बदलाव हो रहे हैं. टीएवीआर मिनिमल इंवेसिव सर्जिकल रिप्लेसमैंट प्रक्रिया है जो गंभीर रूप से पीडि़त एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों और ओपन हार्ट सर्जरी के लिए रिस्की माने जाने वाले रोगियों के लिए उपलब्ध है. इस के अलावा जो रोगी कई तरह की बीमारियों से घिरे हुए हैं, उन के लिए भी यह काफी प्रभावी और सुरक्षित प्रक्रिया है.

टीएवीआर ने दी नई जिंदगी

देहरादून के 53 साल के संजीव कुमार का वजन 140 किलो था और वे हाइपरटैंशन व डायबिटीज से पीडि़त थे. इस के साथ उन्हें अनस्टेबल एंजाइना की समस्या थी जिस में रोगी को अचानक छाती में दर्द होता है और अकसर यह दर्द आराम करते समय महसूस होता है.

संजीव को कई और बीमारियां जैसे कि नौन क्रीटिकल क्रोनोरी आर्टरी बीमारी (सीएडी), औबस्ट्रैक्टिव स्लीप अपनिया (सोते समय सांस लेने में तकलीफ), उच्च रक्तचाप, क्रोनिक वीनस इनसफिशिएंसी (बाएं पैर), ग्रेड 2 फैटी लीवर (कमजोर लीवर), हर्निया और गंभीर एलवी डायफंक्शन के साथ खराब इंजैक्शन फ्रैक्शन 25 फीसदी (हृदय के पंपिग करने की कार्यक्षमता) थीं.

संजीव की स्थिति दिनबदिन गंभीर होती जा रही थी और उन का पल्स रेट 98 प्रति मिनट (सामान्य से काफी ज्यादा) था. सीटी स्कैन और अन्य परीक्षणों के बाद खुलासा हुआ कि वे गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस से भी पीडि़त थे.

इतनी बीमारियों के कारण डाक्टर ने मोेटापे से ग्रस्त संजीव का इलाज ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट (टीएवीआर) से किया. हालांकि जब फरवरी 2016 में उन पर यह प्रक्रिया अपनाई गई, तब तक वे 25-30 किलो वजन कम कर चुके थे और जिंदगी को ले कर उन का नजरिया काफी सकारात्मक हो गया था.

समय पर चैकअप जरूरी

गौरतलब है कि एएस की बीमारी आमतौर पर जब तक गंभीर रूप नहीं ले लेती तब तक इस बीमारी के लक्षणों का पता नहीं चलता. इसलिए नियमित चैकअप कराने की सलाह दी जाती है. उम्र बढ़ने के साथ एएस के मामले भी बढ़ते जाते हैं. इसलिए बुजुर्ग रोगियों को वौल्व फंक्शन टैस्ट के बारे में डाक्टर से पूछना चाहिए और गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस के इलाज की आधुनिक तकनीकों की जानकारी भी लेते रहना चाहिए.

क्या आप जानते हैं

भारत में लगभग 15 लाख लोग गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस से पीडि़त हैं. उन में से 4.5 लाख रोगी सर्जरी के लिए अनफिट हैं.

अगर समय पर एओर्टिक वौल्व रिप्लेस न किए जाएं तो पाया गया है कि 50 फीसदी एओर्टिक स्टेनोसिस रोगी दिल का दौरा पड़ने पर 2 साल और छाती में दर्द के साथ 5 साल तक ही जीवित रह पाते हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें