Infertility के क्या हैं कारण, इससे बचने के लिए अपनाएं ये उपाय

Infertility : बांझपन के शिकार युगलों को शारीरिक कमी की चिंता मानसिक रूप से डावांडोल करते पूरे शरीर की व्यवस्था बिगाड़ देती है. न कह सकते हैं, न सह सकते हैं. बांझपन की वजह से तकरार की शुरुआत पहले तो एकदूसरे पर शक और दोषारोपण से होती है. दोनों को खुद स्वस्थ और सामने वाले में कमी नजर आती है.

कुछ मामलों में कभीकभी पति गलतफहमी का शिकार होते सोचता है कि शादी से पहले मुझे हस्तमैथुन की आदत थी कहीं उस की वजह से मुझ में तो कोई कमी नहीं आ गई? कहीं मेरा वीर्य तो पतला नहीं हो गया? कहीं शुक्राणु की संख्या तो कम नहीं हो गई. उस काल्पनिक डर की वजह से काम में तो ध्यान नहीं दे पाता साथ में सैक्स लाइफ पर भी उस का बुरा प्रभाव पड़ता है. चाह कर भी न खुद चरम तक पहुंच पाता है, न पत्नी को सुख दे पाता है. जिस की वजह से दोनों एकदूसरे से खींचेखींचे रहते हैं.

खुद को दोषी

ऐसे ही किसी मामले में पत्नी भी खुद को दोषी समझते सोचती है कि पीसीओडी की वजह से मेरे पीरियड्स अनियमित हैं उस की वजह से तो कहीं गर्भाधान नहीं हो पा रहा? या तो कभी किसी लड़की ने कुंआरेपन में किसी गलती की वजह से अबौर्शन करवाया होता है, यह बात न पति को बता सकती है न डाक्टर को. ऐसे में गिल्ट उसे अंदर ही अंदर खाए जाता है, जिस की वजह से अंतरंग पलों में पति को सहयोग नहीं दे पाती. तब प्यासा पति या तो पत्नी पर शक करने लगता है या पत्नी से विमुख होते किसी और के साथ विवाहेत्तर संबंध से जुड़ जाता है.

कई बार संयुक्त परिवार से अलग रहने वाले युगल उन्मुक्त लाइफस्टाइल जीते हैं, जिस में आए दिन पार्टियों में आनाजाना लगा रहता है और आजकल युवाओं की पार्टियां शराब, सिगरेट और जंक फूड के बिना तो अधूरी ही होती है. यों अल्कोहल, तंबाकू और जंक फूड का सेवन भी गर्भाधान में बाधा डालने का एक कारण बन सकता है.

समय और पैसे की बरबादी

कई बार यह भी देखा जाता है कि लाख कोशिश के बाद भी जब गर्भाधान में कामयाबी नहीं मिलती तब कुछ युगल अनपढ़ वैद, हकीम या बाबाओं के चक्कर में पड़ कर समय और पैसे बरबाद करते हैं और ऐसे गलतसलत उपचारों से निराश हो कर उम्मीद ही खो बैठते हैं और ऐसी परिस्थिति में कुछ लोग हार कर कभीकभी प्रयत्न करना ही छोड़ देते हैं.

लेकिन ऐसे हालात में अगर पतिपत्नी दोनों समझदार होंगे तो बांझपन के बारे में एकदूसरे पर दोषारोपण करने की बजाय खुल कर विचारविमर्श कर के डाक्टर के पास जा कर, सारे टैस्ट करवा कर उचित समाधान का रास्ता अपनाते हैं.

बांझपन के कई कारण हो सकते हैं. एक तो आज के दौर में कैरियर ओरिएंटेड लड़केलड़कियां शादी को टालमटोल करते 30-32 के हो जाते हैं, ऊपर से शादी के बाद कुछ समय घूमनेफिरने और ऐश करने में गंवा देते हैं. हर काम उम्र रहते हो जाने चाहिए यह नहीं सोचते.

ऊपर से मौजूदा समय में बदलती जीवनशैली, गलत खानपान, पर्यावरणीय फैक्टर और देरी से बच्चे पैदा करने सहित विभिन्न कारणों की वजह से बांझपन आम हो गया है. माना जाता है कि गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग ने भी बांझपन के बढ़ते मामलों में योगदान दिया है.

बांझपन मैडिकल कंडिशन यानी एक बीमारी है. जहां एक दंपति कई वर्षों से अधिक समय तक प्रयास करने के बाद भी गर्भधारण करने में असमर्थ होते हैं. यह समस्या दुनियाभर में एक चिंता का विषय है. इस बीमारी से लगभग 10% से 15% जोड़े प्रभावित होते हैं. साथ में ओव्यूलेशन की समस्या महिलाओं में बांझपन का सब से आम कारण है. एक महिला की उम्र, हार्मोनल असंतुलन, वजन, रसायनों या विकिरण के संपर्क में आना और शराब या सिगरेट पीना सभी प्रजनन क्षमता पर प्रभाव डालते हैं.

डाक्टर के अनुसार प्रैगनैंट होने के लिए सही उम्र 18 से 28 को मानते हैं. इसलिए इन वर्षों के बीच बच्चे के लिए किए गए प्रयास अधिक सफल होते हैं.

सब से पहले तो शादी सही उम्र में कर लेनी चाहिए और यदि शादी लेट हुई है तो बच्चे की प्लानिंग में देरी नहीं करनी चाहिए नहीं तो प्रैगनैंसी में दिक्कत हो सकती है.

जरूरी हैल्दी सैक्स लाइफ

पतिपत्नी की सैक्स लाइफ हैल्दी होनी चाहिए. जब तक आप बारबार मैदान ए जंग में नहीं उतरेंगे तब तक आप समस्या से लड़ेंगे कैसे, जीतेंगे कैसे? इसलिए प्रैगनैंसी के लिए सब से जरूरी है कि पीरियड्स के बाद जिन दिनों गर्भाधान की संभावना ज्यादा होती है उन दिनों में अपने पार्टनर के साथ नियमित सैक्स करना चाहिए जितना अधिक सैक्स होगा प्रैगनैंसी की संभावना भी उतनी अधिक बढ़ जाएगी.

ऐसे में जब कुदरती रूप से गर्भाधान में कामयाबी नहीं मिलती तब डाक्टर दंपत्ति के सामने कुछ औप्शन रखते हैं जैसे कि आईयूआई ट्रीटमैंट या आईवीएफ पद्धति से प्रैगनैंसी, यह एक सामान्य फर्टिलिटी ट्रीटमैंट है. इस प्रक्रिया में 2 स्टेप ट्रीटमैंट किया जाता है. यदि महिला के अंडाशय में एग का सही तरह से निर्माण नहीं हो रहा है और व फौलिकल से अलग नहीं हो पा रहे है. पुरुष साथी में शुक्राणु कम बन रहे हैं या वे कम ऐक्टिव हैं तो ऐसे में महिला को कुछ इंजैक्शन दिए जाते हैं, जिस से ऐग फौलिकल से सही तरह से अलग हो पाता है.

सफलता की दर

इस के बाद पुरुष साथी से शुक्राणु प्राप्त कर उन्हें साफ किया जाता है और उन में से क्वालिटी शुक्राणुओं को एक सिरिंज द्वारा महिला के गर्भाशय में छोड़े जाते हैं. इस के बाद की सारी प्रक्रिया कुदरती रूप से होती है. इस की सफलता की दर 10 से 15% होती है. कुछ मामलों में आईयूआई से सफलता मिल जाती है, लेकिन यदि समस्या किसी और तरह की है तो आईवीएफ ही सही उपचार होता है.

पंडितों ने 4 सालों तक मां नहीं बनने की बात कही है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल- 

मैं 27 साल की हूं. मेरे विवाह को 5 महीने हो चुके हैं, लेकिन अभी तक प्रैगनैंट नहीं हुई हूं. क्या यह मेरे भीतर किसी कमी या गड़बड़ी का लक्षण है? कई पंडितों ने मुझ से कहा है कि मैं कम से कम अगले 4 सालों तक मां नहीं बन पाऊंगी. मैं इस बात से बहुत डरी हुई हूं. बताएं, मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

यह निश्चित तौर पर बता पाना कि आप कब मां बनेंगी, किसी के वश की बात नहीं है. अगर पतिपत्नी दोनों की फर्टिलिटी नौर्मल है यानी दोनों की प्रजननशक्ति अच्छी है और सारे हालात प्रैगनैंसी के अनुकूल हैं तब भी प्रैगनैंट होने के लिए यह जरूरी है कि पतिपत्नी दोनों का शारीरिक मेल उन दिनों में हो जिन दिनों में पुरुष शुक्राणु और स्त्री डिंब के मेलमिलाप का संयोग बनता है. स्त्री के मासिकचक्र में हर महीने कुछ ही दिन ऐसे होते हैं जिन में प्रैंगनैंसी का संयोग बनता है. फर्टिलिटी स्टडीज में देखा गया है कि जो दंपती हर तरह से सामान्य होते हैं उन में भी स्त्री के प्रैंगनैंट होने के चांसेज किसी 1 महीने में 20-25% ही होते हैं. 3 महीने लगातार जतन करने पर चांसेज 50%, 6 महीने में 72% और 12 महीने में 85% पाए गए हैं. अभी आप के विवाह को मात्र 5 महीने ही बीते हैं, इसलिए इस तरह निराश होना कतई ठीक नहीं है. अगर आप का मासिकचक्र 28 दिनों का है, तो आप दोनों का 11वें से 17वें दिन के बीच मिलन फलदायी हो सकता है. मसलन अगर आप का मासिक धर्म 8 अगस्त को शुरू होता है, तो इस हिसाब से 19 से 25 अगस्त के बीच का शारीरिक मेल आप को प्रैगनैंट बना सकता है. दरअसल, यही वे दिन होंगे जब आप की ओवरी से एग रिलीज होने के सब से ज्यादा चांसेज बनेंगे. किसी पंडित, ज्योतिषी या हस्तरेखा वाचक की बातों में आ कर बिना वजह अपने जीवन को संशय, चिंता या भय में न डालें.

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लेखिका- दीप्ति गुप्ता

ज्यादातर भारतीय लोगों को सुबह और शाम चाय पीने की आदत  होती  है. इसे पीने के बाद वे ताजा महसूस करते हैं. वैसे देखा जाए, तो चाय गर्भवती महिलाओं सहित दुनियाभर के लोगों द्वारा सबसे ज्यादा पीऐ जाने वाले खाद्य पदार्थों में से एक  है. प्रैग्नेंसी में खासतौर से सीमित मात्रा में चाय का सेवन बहुत अच्छा माना जाता है. दरअसल, चाय की पत्तियों में पॉलीफेनॉल और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं., जो न केवल आपके ह्दय स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं बल्कि आपकी प्रतिरक्षा को भी बढ़ाते हैं. हालांकि,  इनमें कैफीन भी होता है, इसलिए इनका सेवन आपको एक दिन में 200 मिग्रा से ज्यादा नहीं करना चाहिए. वैसे विशेषज्ञ प्रैग्नेंसी में कुछ खास तरह की चाय का सेवन करने की सलाह देते हैं. उनके अनुसार, आमतौर पर ब्लैक टी, मिल्क टी, ग्रीन टी में 40 से 50 मिग्रा कैफीन होता है, जबकि हर्बल टी में कैफीन की मात्रा न के बराबर होती है. इसलिए प्रैग्नेंसी के दौरान हर्बल टी को एक स्वस्थ और बेहतरीन विकल्प माना गया है. यहां 6 तरह की हर्बल चाय हैं, जिनका प्रैग्नेंसी के दौरान सेवन करना पूरी तरह से सुरक्षित है.

1. अदरक की चाय-

अदरक की चाय में जो स्वाद है, वो किसी आम चाय में नहीं. इसे खासतौर से सर्दियों में पीया जाए, तो गर्माहट तो आती ही है ,साथ ही ताजगी का अहसास भी होता है. लेकिन किसी भी गर्भवती महिला को अपने रूटीन में अदरक की चाय जरूर शामिल करनी चाहिए. क्योंकि यह मॉर्निंग सिकनेस को कम करती है. इसे अपने रूटीन में शामिल करने के बाद सर्दी, गले की खराश और कंजेशन की समस्या से भी छुटकारा पाया जा सकता है. इसके लिए अदरक के कुछ टुकड़ों को गर्म पानी में उबाल  लें और दूध, शहद के साथ लाकर पी जाएं.

अनैक्‍सप्‍लैंड Infertility के क्या हैं कारण, जानें एक्सपर्ट से इसका इलाज

कोई महिला गर्भधारण करने की कोशिश कर रही होती है पर उस में सफल नहीं हो पाती, तो वह बहुत परेशान हो जाती है. कई बार डाक्टर अनेक जांच करते हैं लेकिन उन्हें गर्भधारण नहीं कर पाने का कोई स्पष्ट कारण नहीं मिल पाता. इसी स्थिति को बांझपन या अनऐक्सप्लैंड इनफर्टिलिटी (Infertility)  कहते हैं. अस्पष्ट बांझपन का मतलब यह कतई नहीं है कि आप कभी बच्चा पैदा नहीं कर पाएंगी. इस का मतलब सिर्फ इतना है कि डाक्टर अभी तक इस का सही कारण नहीं ढूंढ़ पाए हैं.

कई बार सही मार्गदर्शन और इलाज से इस समस्या का समाधान हो जाता है और कपल्‍स मातापिता बन जाते हैं. अगर आप भी इस स्थिति से गुजर रही हैं तो घबराएं नहीं. किसी अच्छे डाक्टर से सलाह और मार्गदर्शन लें.

अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी क्‍या होती है

डा. पारुल गुप्‍ता, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी, वसंत विहार का कहना है, “इसे इडियोपैथिक इनफर्टिलिटी भी कहा जाता है. यह उन कपल्‍स को बताया जाता है, जो कम से कम 1 साल तक गर्भधारण करने के प्रयास में सफल नहीं हुए हैं जबकि उन की फर्टिलिटी की जांचों के परिणाम सामान्‍य रहे हैं.  इस का मतलब यह होता है कि महिला का ओव्यूलेशन, फैलोपियन ट्यूब्‍स और यूट्रस सामान्‍य हैं और पुरुष का स्‍पर्म काउंट तथा क्‍वालिटी भी सामान्‍य हैं. दुनिया के इनफर्टाइल कपल्‍स में से लगभग 30% में अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी पाई जाती है.

अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी के कारण

अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी का असल कारण तो समझ में नहीं आता है, लेकिन ऐसे कई घटक होते हैं, जिन का उस में योगदान हो सकता है, जैसेकि ऐसी चिकित्‍सकीय स्थितियां, जिन का पता नहीं चला हो. एंडोमेट्रियोसिस एग या स्‍पर्म की गुणवत्ता में समस्‍या खराब समय पर किया गया इंटरकोर्स जीवनशैली के घटक जैसेकि धूम्रपान, बहुत अलकोहल लेना और मोटापा है.

अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी का इलाज

अच्‍छी बात यह है कि अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी वाले कपल्‍स के लिए इलाज के कई विकल्‍प उपलब्‍ध हैं। इलाज का सब से सही तरीका अलगअलग स्थितियों के अनुसार होगा, जैसेकि उम्र, मैडिकल हिस्‍ट्री और निजी पसंद.

इलाज के कुछ आम विकल्‍पों में शामिल हैं :

असिस्‍टेड रिप्रोडक्टिव टेक्‍नोलौजी यानि एआरटी एआरटी में फर्टिलाइजेशन और गर्भधारण को आसान बनाने के लिए लेबोरेट्री प्रक्रियाओं का इस्‍तेमाल होता है. एआरटी के सब से आम रूप हैं :

इंट्रायूटेरिन इंसेमिनेशन (आईयूआई) : इस प्रक्रिया में स्‍पर्म को सीधे यूट्रस में डाल दिया जाता है, ताकि फर्टिलाइजेशन की संभावनाएं बढ़ सकें.

इनविट्रो फर्टिलाइजेशन यानि आईवीएफ : इस प्रक्रिया में एग्‍ज को ओवरीज से ले कर लेबोरेट्री में स्‍पर्म के साथ फर्टिलाइज किया जाता है और नतीजे में मिलने वाले भ्रूण को यूट्रस में पहुंचा दिया जाता है.

प्रीइंप्‍लांटेशन जैनेटिक टैस्टिंग फौर ऐयूपलौइडी यानि पीजीटी-ए : यह एक जैनेटिक टेस्‍ट है, जो आईवीएफ से बनने वाले भ्रूण पर किया जाता है ताकि क्रोमोसोम की असामान्‍यताओं को जांचा जा सके. पीजीटी-ए से स्‍वस्‍थ भ्रूण की पहचान में मदद मिल सकती है और सफल गर्भधारण की संभावनाएं बढ़ती हैं, खासकर अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी के उन मामलों में, जहां छिपे हुए जैनेटिक कारण हो सकते हैं.

स्‍पर्म डीएनए फ्रैगमेंटेशन इंडैक्‍स यानि डीएफआई : डीएनए फ्रैगमेंटेशन इंडैक्‍स (डीएफआई) एक विशेष जांच होती है, जिस में स्‍पर्म डीएनए की इंटीग्रिटी का पता लगाया जाता है. अगर सीमेन एनालीसिस सामान्‍य रहता है, तब भी डीएफआई ज्‍यादा होने से उन समस्‍याओं का संकेत मिल सकता है, जो इनफर्टिलिटी का कारण हो सकती हैं. डीएफआई का लेवल ज्‍यादा होने को कम फर्टिलिटी से जोड़ कर देखा जाता है और इस में गर्भपात का ज्‍यादा खतरा होता है.

ज्‍यादा डीएफआई को जानना और सही करना अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी के इलाज में महत्त्वपूर्ण हो सकता है. इस से समझा जा सकता है कि सीमेन के मापदंड सामान्‍य होने पर भी गर्भधारण क्‍यों नहीं हुआ.

मैडिसिन

ओव्यूलेशन को प्रेरित करने और फर्टिलिटी में सुधार करने के लिए दवाएं दी जा सकती हैं. इन में शामिल हैं :

गोनाडोट्रोपिन्‍स : यह हारमोन एग का बनना और ओव्यूलेशन प्रेरित करते हैं.

क्‍लोमिफीन (क्‍लोमिड) : यह दवा ओव्यूलेशन को प्रेरित करती है और फर्टिलिटी में सुधार करती है.

लैट्रोजोल (फेमारा) : यह दवा ओव्यूलेशन को प्रेरित करती है और फर्टिलिटी में सुधार करती है. फर्टिलिटी ट्रीटमैंट के लिए इस का इस्‍तेमाल अकसर औफ लेवल होता है.

लाइफस्टाइल में बदलाव

जीवनशैली में स्‍वस्‍थ बदलावों से भी फर्टिलिटी में सुधार हो सकता है और गर्भधारण की संभावनाएं बढ़ती हैं. इन में शामिल हैं :

सही वजन बनाए रखना व संतुलित आहार लेना : तनाव कम करना, धूम्रपान और अत्‍यधिक शराब पीने से बचना और नियमित रूप से व्‍यायाम करना.

इंटरकोर्स का सही समय : इंटरकोर्स का सही समय जानने से भी फर्टिलिटी में सुधार हो सकता है। इस के लिये निम्‍नलिखित उपाय हैं :

बेसल बौडी टैंपरेचर (बीबीटी) चार्टिंग : इस में ओव्यूलेशन का पता लगाने के लिए शरीर के तापमान की निगरानी की जाती है.

ओव्यूलेशन किट्स : ओव्यूलेशन का पता लगाने वाले होम टेस्‍ट.

फर्टिलिटी ऐप्‍स : डिजिटल टूल्‍स, जो फर्टिलिटी का पता लगाते हैं और निजी मार्गदर्शन देते हैं.

इनफर्टिलिटी के दौर से गुजर रहे अपने सहकर्मी को कैसे कर सकते हैं सपोर्ट?

आज हर दस में से एक व्‍यक्ति प्रजनन संबंधी समस्‍या का सामना कर रहा है, और किसी भी कार्यस्‍थल पर यह एक बहुत संवेदनशील मामला हो गया है. इनफर्टिलिटी के दौर से गुजर रहे लोगों को काफी तनाव एवं चिंता का सामना करना पड़ता है. जब इसके साथ-साथ व्‍यक्ति फर्टिलिटी का उपचार कराने से होने वाले शारीरिक दबाव को भी झेलता है तो उसकी उत्‍पादकता, ऊर्जा, और मानसिक सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है.

डॉ डायना दिव्या क्रैस्टा,  मुख्य मनोवैज्ञानिक, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी सेंटर की बता रही हैं ऎसे उपाय जो इनफर्टिलिटी के दौर से गुजर रहे अपने सहकर्मी को सपोर्ट कर सके.

डायना दिव्या क्रैस्टा का कहना है कि -सांस्‍कृतिक रूप से, इनफर्टिलिटी और प्रेग्‍नेंसी लॉस को लेकर काफी वर्जनाएँ हैं. दुर्भाग्‍यवश, कपल्‍स जिस पीड़ा को सहते हैं, वह सामाजिक स्‍तर पर वास्‍तविक ‘लॉस’ के तौर पर वाकई प्रमाणित नहीं है. लेकिन यदि कोई आपके बेहद करीब है, जैसे कि आपका दोस्‍त या सहकर्मी जो कुछ इसी तरह के दौर से गुजर रहा है, तो हमें नीचे दी गई कुछ बातें ध्‍यान में रखनी चाहिए :

ध्यान दें और धैर्यपूर्वक सुनें-

सबसे पहले उनकी बात सुनें, उन्‍हें गले लगायें और उनके दिमाग में क्‍या चल रहा है, उसे आपके साथ शेयर करने का मौका दें.  खुली बातचीत सहयोगी एवं समावेशी कार्यस्‍थल की नींव है. अपने वर्कफोर्स को उन चिकित्‍सा स्थितियों को समझने पर जोर देने और सहयोग देने के लिए प्रोत्‍साहित करें जिनकी वजह से नियोक्‍ताओं को अधिक लचीलापन या अनुकूलन का अवसर प्रदान करने की जरूरत पड़ सकती है. कर्मचारियों पर ध्‍यान देने वाली संस्‍कृ‍ति का निर्माण करें जहाँ कर्मचारी प्रजनन संबंधी समस्‍याओं के बारे में खुलकर बातचीत और अपने दुख-दर्द आपस में साझा कर सकें.

संस्‍कृति में बदलाव शिक्षा पर निर्भर है-

सहयोग देने से पहले (या नीतियाँ बनाने से पहले), उन उपचारों के बारे में पूरी जानकारी पाना महत्‍वपूर्ण है जिन्‍हें कर्मचारी ले रहा है. इनफर्टिलिटी को किसी दूसरी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या से अलग नहीं करना चाहिए और न इससे डरना चाहिए. इसमें उपचार की जरूरत होती है और संस्‍थानों को इनफर्टिलिटी के सम्बन्ध में भी वैसे ही रिस्‍पॉन्‍स करना चाहिए जैसे वह दूसरी स्‍वास्‍थ्‍य स्थितियों को लेकर करते हैं.

उपचार की अलग-अलग प्रतिक्रिया-

हम आमतौर पर ‘फर्टिलिटी ट्रीटमेंट’ को ‘आईवीएफ’ (इन विट्रो फर्टि‍लाइजेशन) से जोड़कर देखते हैं, लेकिन इसमें कुछ दूसरे प्रोटोकॉल भी होते हैं जैसेकि ‘ओवुलेशन इंडक्‍शन’ या ‘आइयूआइ’ या फिर ‘सरोगेसी’ जिनमें चीरफाड़ या और कभी-कभी जटिल हस्‍तक्षेप करने पड़ते हैं. प्रत्‍येक आइवीएफ साइकल हर दूसरे साइकल से एकदम अलग हो सकता है क्‍योंकि हर व्‍यक्ति उपचार को लेकर अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया देता है.

लचीले बने रहना ही कुंजी है-

कई लोग परिवार को बढ़ाने को एक सीधी प्रक्रिया के तौर पर नहीं देखते हैं. हो सकता है कि, कर्मचारी अपनी इनफर्टिलिटी जाँच का भले ही सीधे खुलासा नहीं करें,  उन्‍हें अपने खुद के (या पार्टनर के) इलाज के लिए काम करने के ज्‍यादा लचीले शेड्यूल या अस्‍थायी इंतजाम पर चर्चा करने की जरूरत भी महसूस हो सकती है. व्‍यक्ति के रूटीन में बदलावों (या टेलीकम्‍युटिंग) की अनुमति देनी चाहिए ताकि वह अपने समय को उपचार की जरूरतों तथा बार-बार फर्टिलिटी क्‍लीनिक जाने के अनुसार अस्‍थायी रूप से समायोजित कर सके. इससे कर्मचारी को काम और जिंदगीके बीच बेहतर संतुलन बनाने में मदद मिल सकती है और उसे अपने संस्‍थान से लगाव का अहसास होता है तथा वह अपनी पेशागत भूमिकाओं एवं कर्तव्‍यों के लिए प्रशंसा मिलती है.

सपोर्ट ग्रुप्‍स का निर्माण करें-

फर्टिलिटी का इलाज करा रहे रोगियों का आमतौर पर यह मानना होता है कि उन्‍हें वही लोग समझ सकते हैं जो वाकई इस अनुभव से गुजर रहे हैं. चर्चा के लिए ग्रुप बनाने का सुझाव दें और निजी तौर पर सहयोग प्रदान करें या फिर रोगियों को सपोर्ट करने के लिए उनके मौजूदा ग्रुप में शामिल हों तथा गर्भधारण की कोशिश कर रहे कपल्‍स की भावनात्‍मक सेहत सुधारने की दिशा में काम करें. ग्रुप सभी कर्मचारियों के लिए खुला होना चाहिए, इनमें चिकित्‍सा संबंधी चुनौती का सामना कर रहे रोगी से लेकर, बच्‍चे को खोने का दर्द झेल रहे लोग और इनफर्टिलिटी का सामना कर रहे कपल्‍स शामिल हो सकते हैं. इस तरह के ग्रुप्‍स अलगाव के अहसास को दूर करने में मदद कर सकते हैं और लोगों को उनकी जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने के नजरिये को बहाल करने में मददगार हो सकते हैं. ये ग्रुप्‍स कपल्‍स को आश्‍वासन दे सकते हैं कि जिंदगी के इस कठिन दौर में वे अकेले नहीं हैं.

सहयोग प्रदान करें

इनफर्टिलिटी के कारण महिला और पुरुष मैनेज करने योग्‍य तनाव से मैनेज नहीं किये जाने वाले तनाव की ओर बढ़ सकते हैं. या फिर उन्‍हें गंभीर मानसिक बीमारियाँ भी हो सकती हैं जैसे चिंता, उदासी और यहाँ तक कि वे सदमे का शिकार भी हो सकते हैं. अपने कर्मचारी पर नजर रखना बहुत महत्‍वपूर्ण है, और यह उन तक पहुँचने के योग्य बात है, जैसे कि एक कर्मचारी सहायता कार्यक्रम या परामर्शी सेवा उपयोगी हो सकती है.

हमें बातचीत के सभी मार्ग भी खुले रखने चाहिए  ताकि हर किसी को ऐसा लगे कि उसे पूरा सपोर्ट मिल रहा है. जैसे कि, कर्मचारी को हर सप्‍ताह एक ईमेल भेजकर उसकी जानकारी ले सकते हैं या फिर साप्‍ताहिक रूप से आमने-सामने बैठकर बात कर सकते हैं.

अगर आपके संगठन में कई कर्मचारियों का उपचार चल रहा है तो उनमें से उन सभी कर्मचारियों को खोजने की कोशिश करें जिन्‍हें नेटवर्क के जरिए एक-दूसरे के सपोर्ट की आवश्यकता है.

ऐंडोमैट्रिओसिस से बढ़ता बांझपन का खतरा

ऐंडोमैट्रिओसिस गर्भाशय से जुड़ी एक समस्या है. यह समस्या महिलाओं की प्रजनन क्षमता को सर्वाधिक प्रभावित करती है, क्योंकि गर्भधारण करने और बच्चे को जन्म देने में गर्भाशय की सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. कई महिलाओं में यह समस्या अत्यधिक गंभीर हो शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करती है. वैसे आधुनिक दवा और उपचार के विभिन्न विकल्पों ने दर्द और बांझपन दोनों से राहत दिलाई है. ऐंडोमैट्रिओसिस का यह अर्थ नहीं है कि इस से पीडि़त महिलाएं कभी मां नहीं बन सकतीं, बल्कि यह है कि इस के कारण गर्भधारण करने में समस्या आती है.

क्या है ऐंडोमैट्रिओसिस

ऐंडोमैट्रिओसिस गर्भाशय की अंदरूनी परत की कोशिकाओं का असामान्य विकास होता है. यह समस्या तब होती है जब कोशिकाएं गर्भाशय के बाहर विकसित हो जाती हैं. इसे ऐंडोमैट्रिओसिस इंप्लांट कहते हैं. ये इंप्लांट्स आमतौर पर अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब्स, गर्भाशय की बाहरी सतह पर या आंत और पैल्विक गुहा की सतह पर पाए जाते हैं. ये वैजाइना, सरविक्स और ब्लैडर पर भी पाए जा सकते हैं. बहुत ही कम मामलों में ऐंडोमैट्रिओसिस इंप्लांट्स पैल्विस के बाहर लिवर पर या कभीकभी फेफड़ों अथवा मस्तिष्क के आसपास भी हो जाते हैं.

ऐंडोमैट्रिओसिस के कारण

ऐंडोमैट्रिओसिस महिलाओं को उन के प्रजनन कालके दौरान प्रभावित करता है. इस के ज्यादातर मामले 25 से 35 वर्ष की महिलाओं में देखे जाते हैं. लेकिन कई बार 10-11 साल की लड़कियों में भी यह समस्या होती है. मेनोपौज की आयु पार कर चुकी महिलाओं में यह समस्या बहुत कम होती है. विश्व भर में करोड़ों महिलाएं इस से पीडि़त हैं. जिन महिलाओं को गंभीर पैल्विक पेन होता है उन में से 80% ऐंडोमैट्रिओसिस से पीडि़त होती हैं. इस के वास्तविक कारण पता नहीं हैं. हां, कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि ऐंडोमैट्रिओसिस की समस्या उन महिलाओं में अधिक है, जिन का बौडी मास इंडैक्स (बीएमआई) कम होता है. बड़ी उम्र में मां बनने वाली या कभी मां न बनने वाली महिलाओं में भी यह समस्या हो सकती है. इस के अलावा जिन महिलाओं में पीरियड्स जल्दी शुरू हो जाते हैं या मेनोपौज देर से होता है, उन में भी इस का खतरा बढ़ जाता है. इस के अलावा आनुवंशिक कारण भी इस में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

ऐंडोमैट्रिओसिस के लक्षण

ज्यादातर महिलाओं में ऐंडोमैट्रिओसिस का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता, लेकिन जो लक्षण दिखाई देते हैं उन में पीरियड्स के समय अत्यधिक दर्द होना, पीरियड्स या अंडोत्सर्ग के समय पैल्विक पेन ऐंडोमैट्रिओसिस का एक लक्षण है. लेकिन यह सामान्य महिलाओं में भी हो सकता है. इस दर्द की तीव्रता हर महीने बदल सकती है और अलगअलग महिलाओं में अलगअलग हो सकती है.

पैल्विक क्षेत्र में दर्द होना यानी पेट के निचले भाग में दर्द होना और यह दर्द कई दिनों तक रह सकता है. इस से कमर और पेट में दर्द भी हो सकता है. यह पीरियड शुरू होने से पहले हो सकता है और कई दिनों तक चल सकता है. मल त्यागने और यूरिन पास करने के समय दर्द हो सकता है. यह समस्या अधिकतर पीरियड्स के समय अधिक होती है. पीरियड्स के समय अत्यधिक रक्तस्राव होना, कभीकभी पीरियड्स के बीच में भी रक्तस्राव होना, यौन संबंध के दौरान या बाद में दर्द होना, डायरिया, कब्ज और अत्यधिक थकान होना. छाती में दर्द या खांसी में खून आना अगर ऐंडोमैट्रिओसिस फेफड़ों में है, सिरदर्द और चक्कर आना अगर ऐंडोमैट्रिओसिस मस्तिष्क में है.

रिस्क फैक्टर

कई कारक ऐंडोमैट्रिओसिस की आशंका बढ़ा देते हैं जैसे:

  1. कभी बच्चे को जन्म न दे पाना.
  2. 1 या अधिक निकट संबंधियों (मां, मौसी, बहन) को ऐंडोमैट्रिओसिस होना.
  3. कोई और मैडिकल कंडीशन जिस के कारण शरीर से मैंस्ट्रुअल फ्लो का सामान्य मार्ग बाधित होता है.
  4. यूरिन की असामान्यता.

ऐंडोमैट्रिओसिस और इनफर्टिलिटी

जिन महिलाओं को ऐंडोमैट्रिओसिस है, उन में से 35 से 50% महिलाओं को गर्भधारण करने में समस्या होती है. इस के कारण फैलोपियन ट्यूब्स बंद हो जाती हैं, जिस से अंडाणु और शुक्राणु का निषेचन नहीं हो पाता है. कभीकभी अंडे या शुक्राणु को भी नुकसान पहुंचता है. इस से भी गर्भधारण नहीं हो पाता. जिन महिलाओं में यह समस्या गंभीर नहीं होती है. उन्हें गर्भधारण करने में अधिक समस्या नहीं होती है. डाक्टर सलाह देते हैं कि जिन महिलाओं को यह समस्या है उन्हें बच्चे को जन्म देने में देर नहीं करनी चाहिए, क्योंकि स्थिति समय के साथ अधिक खराब हो जाती है.

पहली बार ऐंडोमैट्रिओसिस का पता ही तब चला जब कुछ महिलाएं बांझपन का उपचार करा रही थीं. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 25 से 50% बांझ महिलाएं ऐंडोमैट्रिओसिस की शिकार होती हैं, जबकि 30 से 50% महिलाएं, जिन्हें ऐंडोमैट्रिओसिस होता है वे बांझ होती हैं. सामान्य तौर पर संतानहीन दंपतियों में से 10% का कारण ऐंडोमैट्रिओसिस होता है. बांझपन की जांच करने के लिए किए जाने वाले लैप्रोस्कोपिक परीक्षण के समय ऐंडोमैट्रिअल इंप्लांट का पता चलता है. कई ऐसी महिलाओं में भी इस का पता चलता है, जिन्हें कोई दर्द अनुभव नहीं होता. ऐंडोमैट्रिओसिस के कारण महिलाओं की प्रजनन क्षमता क्यों प्रभावित होती है, यह पूरी तरह समझ में नहीं आया है, लेकिन संभवतया ऐनाटोमिकल और हारमोनल कारणों के कारण यह समस्या होती है. संभवतया हारमोन और दूसरे पदार्थों के कारण अंडोत्सर्ग, निषेचन और गर्भाशय में भू्रण के इंप्लांट पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

ऐंडोमैट्रिओसिस और कैंसर

कुछ अध्ययनों के अनुसार जिन महिलाओं को ऐंडोमैट्रिओसिस होता है उन में अंडाशय का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है. यह खतरा उन महिलाओं में अधिक होता है जो बांझ होती हैं या कभी मां नहीं बन पाती हैं.

अभी तक ऐंडोमैट्रिओसिस और ओवेरियन ऐपिथेलियल कैंसर के मध्य संबंधों के स्पष्ट कारण का पता नहीं है. कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि ऐंडोमैट्रिओसिस इंप्लांट ही कैंसर में बदल जाता है. यह भी मानना है कि ऐंडोमैट्रिओसिस आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारणों से भी संबंधित हो सकता है. ये महिलाओं में अंडाशय का कैंसर होने की आशंका भी बढ़ा देते हैं.

डायग्नोसिस

ऐंडोमैट्रिओसिस का पता लगाने के लिए ये टैस्ट किए जाते हैं:

  1. पैल्विक ऐग्जाम: इस में डाक्टर हाथ से पैल्विक का परीक्षण करता है कि कोई असामान्यता तो नहीं है.
  2. अल्ट्रासाउंड: इस से ऐंडोमैट्रिओसिस होने का पता तो नहीं चलता है, लेकिन उस से जुड़े सिस्ट की पहचान हो जाती है.
  3. लैप्रोस्कोपी: यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐंडोमैट्रिओसिस है एक छोटी सी सर्जरी की जाती है, जिसे लैप्रोस्कोपी कहते हैं. इस में ऊतकों के सैंपल भी लिए जाते हैं, जिन की बायोप्सी से पता चल जाता है कि ऐंडोमैट्रिओसिस कहां स्थित है.

उपचार

पीरियड्स के दौरान होने वाले रक्तस्राव और दर्द भरे संभोग को गंभीरता से लें. स्थिति और अधिक गंभीर होने से पहले फर्टिलिटी विशेषज्ञ से मिलें. इस के उपचार के लिए दवा और सर्जरी का उपयोग किया जाता है. हारमोन थेरैपी भी इस के उपचार के लिए उपयोग की जाती है, क्योंकि मासिकधर्म के दौरान होेने वाले हारमोन परिवर्तन के कारण भी यह समस्या हो जाती है. हारमोन थेरैपी ऐंडोमैट्रिओसिस के विकास को धीमा करती है और ऊतकों के नए इंप्लांट्स को रोकती है. ऐंडोमैट्रिओसिस के कारण होने वाले दर्द की समस्या के लिए डाक्टर सर्जिकल उपचार बेहतर मानते हैं तथा बांझपन की समस्या के लिए आईवीएफ तकनीक की सलाह दी जाती है ताकि सामान्य से अधिक नुकसान होने से पहले संतान प्राप्ति की जा सके.

Infertility का इलाज है संभव

दुनियाभर में इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे लोगों की समस्या दिनप्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. भारत में 10 से 15% के बीच शादीशुदा कपल इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे हैं. बता दें कि भारत में 30 मिलियन इंफर्टाइल कपल में से करीब 3 मिलियन कपल हर साल इनफर्टिलिटी का इलाज करवा रहे हैं. जबकि शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा काफी ज्यादा है. वहां हर 6 में से 1 कपल इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहा है और इस के इलाज को ले कर काफी जागरूक है. लेकिन बता दें कि हर समस्या का इलाज संभव है. तभी तो उम्मीद छोड़ चुके कपल भी पेरैंट्स बन पाते हैं.

क्या है इनफर्टिलिटी

वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाईजेशन के अनुसार, इनफर्टिलिटी रिप्रोडक्टिव सिस्टम से जुड़ी हुई बीमारी है. इनफर्टिलिटी शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है, जब कपल बिना कोई प्रोटैक्शन इस्तेमाल लिए एक साल से ज्यादा समय से प्लान कर रहे हों, लेकिन फिर भी कंसीव करने में दिक्कत आ रही हो. इनफर्टिलिटी का कारण सिर्फ महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी होते हैं. अकसर महिलाओं में इस का कारण फैलोपियन ट्यूब का ब्लौक होना, अंडे नहीं बनना, अंडों की क्वालिटी खराब होना, थाईराइड होना, प्रैग्रैंसी हारमोंस का संतुलन बिगड़ना, पीसीओडी यानि पोलिसिस्टिक औवरियन सिंड्रोम आदि के कारण होता है, जिस से मां बनने में दिक्कत आती हैं.

वहीं पुरुषों में स्पर्म काउंट कम होना, उन की क्वालिटी सही नहीं होना व उन की मोटेलिटी यानि वे कितना ऐक्टिवली वर्क कर पाते हैं ठीक नहीं होती तब भी पार्टनर को कंसीव करने में दिक्कत होती है. लेकिन परेशान होने से नहीं बल्कि इनफर्टिलिटी के ट्रीटमैंट से आप की समस्या का समाधान होगा.

क्या है इस का निदान

मासिकधर्म को सामान्य करना:

चाहे बात  नार्मल तरीके की या फिर किसी ट्रीटमैंट से, डाक्टर्स सब से पहले आप के मासिकधर्म को नार्मल करने की कोशिश करते हैं, ताकि आप के हारमोंस नार्मल हो सकें और आप को कंसीव करने में कोई दिक्कत न आए. साथ ही आप के ओवुलेशन पीरियड को ट्रैक करने में आसानी हो. ऐसे में हैल्दी ईटिंग हैबिट्स व दवाओं के जरीए इसे सामान्य करने की कोशिश की जाती है.

हारमोंस के संतुलन को ठीक करना:

कंसीव करने के लिए जरूरी हारमोंस जैसे एफएसएच, जो ओवरीज में अंडों को बड़ा होने में मदद करता है, जिस से ऐस्ट्रोजन का उत्पादन बढ़ जाता है और फिर जो शरीर में एलएच हारमोंस की वृद्धि का संकेत देता है. जिस से सफलतापूर्वक ओवुलेशन होने के साथसाथ कंसीव करने में आसानी होती है. ऐसे में चाहे आप आईयूआई यानि इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन करवाएं या फिर इनविट्रो फर्टिलाइजेशन, दवाओं व इन्फेक्शन के जरीए उसे ठीक किया जा सकता है. इस में हैल्दी ईटिंग हैबिट्स भी काफी सहायक सिद्ध होती हैं.

अंडों को परिपक्व बनाने में मदद:

कुछ मामलों में देखा जाता है कि अंडे बनते तो हैं लेकिन मैच्योर हो कर फूटते नहीं हैं, जिस से कंसीव होने में दिक्कत होती है. ऐसे में दवाओं के जरीए हैल्दी ओवुलेशन करवाने की कोशिश की जाती हैं, ताकि आप का ट्रीटमैंट सफल हो कर आप पेरैंट्स बनने के सपने को पूरा कर सकें.

बंद ट्यूब को खोलना:

अगर आप की दोनों ट्यूब्स बंद हैं या फिर कोई एक, तो डाक्टर लैप्रोस्कोपी, हिस्ट्रोस्कोपी के जरीए उसे ओपन करते हैं. साथ ही अगर आप को सिस्ट की प्रौब्लम है, जो कंसीव करने में बाधा बनती है, तो डाक्टर सर्जरी के जरीए ही इसे रिमूव करते हैं, ताकि कंसीव करने में आसानी हो सके.

डाक्टर का कहना है कि इनविट्रो फर्टिलाइजेशन में महिला के अंडे व पुरुष के स्पर्म को ले कर प्रयोगशाला में फर्टीलाइज कर के महिला के यूटरस में डाला जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान पूरी जांच, दवाओं व इंजैक्शन का सहारा लिया जाता है, ताकि किसी भी तरह की कोई दिक्कत न हो और पहले ही प्रयास में इसे सफल किया जा सके. लेकिन इस के लिए अनुभवी डाक्टर व दवाइयों का होना बहुत जरूरी होता है.

इन सब चीजों के अलावा आपको अपने लाइफस्टाइल में भी बदलाव लाने की जरूरत होगी.

शादी को 3 साल हो गए हैं पर अभी तक कंसीव नहीं कर पाई हूं?

सवाल-

मैं 26 वर्षीय विवाहिता हूं. शादी को 3 साल हो गए हैं पर अभी तक कंसीव नहीं कर पाई हूं. इस के लिए अब मैं सैक्स के दौरान नीचे तकिया भी रखती हूं और पति से कहती हूं कि स्खलित होने के बाद वे देर तक उसी अवस्था में रहें. फिर भी कंसीव नहीं कर पा रही जबकि मेरे पीरियड्स रैग्युलर हैं और हम नियमित रूप से सैक्स भी करते हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

सैक्स के दौरान इजैक्युलेशन के समय पुरुष के अंग से काफी तीव्र वेग से स्पर्म निकलते हैं और गहराई तक पहुंचते हैं. जो स्पर्म स्ट्रौंग नहीं होते वे वैजाइना से बाहर भी निकल जाते हैं, मगर इस से गर्भधारण प्रक्रिया में कोई फर्क नहीं पड़ता. यह एक आम प्रक्रिया है और इस से घबराने की भी जरूरत नहीं है. अगर पति का स्पर्म काउंट सही है, आप का पीरियड्स  रैग्युलर है तो संभव है कि आप के कंसीव न कर पाने के पीछे कोई और मैडिकल वजह हो. यह वजह आप में या फिर आप के पति दोनों में से किसी में भी हो सकती है. अच्छा यही होगा कि आप किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा से सलाह लें और फर्टिलिटी के बारे में बात करें. तभी आप जल्दी कंसीव कर पाएंगी.

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मां बनने का एहसास हर महिला के लिए सुखद होता है. लेकिन यदि किसी कारण से एक महिला मां के सुख से वंचित रह जाए तो उसके लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है. हालांकि, कंसीव न कर पाने के कई कारण होते हैं लेकिन यह एक महिला के जीवन को बेहद मुश्किल और दुखद बना देता है. दरअसल, हमारे देश में आज भी बांझपन को एक सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है. इसका प्रकोप सबसे ज्यादा महिलाओं को झेलना पड़ता है. जब भी कोई महिला बच्चे को जन्म नहीं दे पाती है तो समाज उसे हीन भावना से देखने लगता है. इस कारण से एक महिला को लोगों की खरी-खोटी सुननी पड़ती है जिसका उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है. ऐसी महिलाएं उम्मीद करती हैं कि लोग उनकी स्थित और भावनाओं को समझेंगे. परिवार और दोस्तों से बात करके उन्हें कुछ हद तक अच्छा महसूस होता है इसलिए ऐसे समय में बाहरी लोगों से मिलने-जुलने से बचें क्योंकि गर्भवती महिला या बच्चों को देखकर आप डिप्रेशन का शिकार हो सकती हैं.

प्रदूषण बन सकता है बांझपन की वजह

दिल्ली में तमाम कोशिशों के बावजूद वायु प्रदूषण सेहत के लिए सुरक्षित सीमा से 16 गुणा बढ़ गया. दीवाली के पटाखों से देश की राजधानी फिर ज़हरीले धुएं से भर गई. उस पर पराली के धुएं से हालात और भी खराब हो रहे हैं. हर साल इस समय वायु प्रदुषण का कहर इसी तरह लोगों का दम घोटने लगता है.

सिर्फ दीवाली ही नहीं बाकी समय भी देश के बहुत से इलाकों में वायु प्रदूषण का जहर लोगों की जिंदगी प्रभावित करता रहा है. आज हम जिस वातावरण में जी रहे हैं उस में वायु प्रदूषण का स्तर चरम पर है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार आज विश्व की 92 प्रतिशत जनसंख्या उन क्षेत्रों में रह रही है जहां वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सुरक्षा सीमाओं से अधिक है. बढ़ता वायु प्रदूषण गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और मृत्यु के एक प्रमुख कारण के रूप में उभर रहा है.

वायु प्रदूषण और हमारा स्वास्थ्य

वायु प्रदूषण का प्रभाव हमारे शरीर के प्रत्येक अंग और उस की कार्यप्रणाली पर पड़ता है. इस के कारण हृदय रोग, स्ट्रोक, सांस से संबंधित समस्या, डायबिटीज, बांझपन वगैरह की आशंका बढ़ जाती है.

हाल में हुए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जो लोग ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहां अत्यधिक ट्रैफिक होता है उन की प्रजनन क्षमता में 11 प्रतिशत की कमी आ जाती है. आइये इंदिरा आईवीएफ हॉस्पिटल की डॉ सिम्मी अरोड़ा से जानते हैं कि विषैली हवा में सांस लेने से प्रजनन क्षमता पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से नकारात्मक प्रभाव कैसे पड़ता है;

वायु प्रदूषण का प्रजनन क्षमता पर प्रत्यक्ष प्रभाव

अंडों की क्वालिटी प्रभावित होना

पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), ओजोन, नाइट्रोजन डाय ऑक्साइड, सल्फर डाय औक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, भारी धातुएं और हानिकारक रसायनों का एक्सपोज़र महिलाओं में अंडों की क्वालिटी को प्रभावित करता है. अंडों की खराबी महिलाओं में बांझपन का एक प्रमुख कारण है.

मासिक चक्र संबंधी गड़बड़ियां

प्रदूषण अंडों की क्वालिटी और सेक्स हार्मोनों के स्त्राव को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है जिस का सीधा प्रभाव मासिक चक्र पर पड़ता है. इस के कारण पीरियड्स देर से आना, ब्लीडिंग कम होना या पीरियड्स स्किप होना जैसी समस्याएं हो जाती है जिन के कारण कंसीव करना कठिन हो जाता है.

वीर्य और शुक्राणुओं की क्वालिटी और मात्रा प्रभावित होना

वायु में मौजूद प्रदूषित कण वीर्य की क्वालिटी को प्रभावित करते हैं. शुक्राणुओं की संख्या कम हो जाती है. उन की संरचना में परिवर्तन आ जाता है और उन की गतिशीलता भी प्रभावित होती है. जिस से पुरूष बांझपन का खतरा बढ़ जाता है.

दिल्ली स्थित एम्स द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 3 दशक पहले एक सामान्य भारतीय पुरूष में शुक्राणुओं की संख्या औसतन 6 करोड़/मिलीलीटर होता थी. अब यह घट कर 2 करोड़/ मिलीलीटर रह गई है.

गर्भपात का खतरा बढ़ना

जो महिलाएं ऐसे क्षेत्रों में रहती हैं जहां वायु में पीएम 2.5, पीएम10, नाइट्रोजन डाय औक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, ओजोन और सल्फर डाय ऑक्साइड की मात्रा अधिक होती है उन में गर्भपात का खतरा उन महिलाओं की तुलना में अधिक होता है जो कम प्रदूषित स्थानों पर रहती हैं.

मृत बच्चे के जन्म लेने की आशंका

प्रदूषित वातावरण में रहने वाली महिलाओं के मृत बच्चे को जन्म देने की आशंका अधिक होती है. यही नहीं जन्म के समय बच्चे का वज़न कम होना, समय से पहले प्रसव और बच्चे में जन्मजात विकृतियां होने का खतरा भी अधिक होता है.

वायु प्रदूषण का प्रजनन क्षमता पर अप्रत्यक्ष प्रभाव

डायबिटीज के कारण प्रजनन क्षमता प्रभावित होना

वायु प्रदूषण विशेषकर वाहनों से निकलने वाला धुआं, नाइट्रोजन डाय ऑक्साइड, तंबाकू से निकलने वाला धुआं, पीएम 2.5 आदि इंसुलिन रेज़िस्टेंस और टाइप 2 डायबिटीज़ के सब से प्रमुख कारण हैं. इंसुलिन रेज़िस्टेंस के कारण पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) और मेटाबॉलिक सिंड्रोम एक्स दोनों की आशंका अत्यधिक बढ़ जाती है जो महिलाओं में बांझपन के सब से बड़े कारण हैं.

डायबिटीज़ के कारण तंत्रिकाएं को भी नुक्सान पहुंचता है. इस का सीधा संबंध पेनिस के ठीक प्रकार से कार्य न करने से है क्यों कि इस से पेनिस की तंत्रिकाएं भी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं.

हार्मोनों के स्त्राव में असंतुलन और बांझपन

इंसुलिन एक हार्मोन है जिसके असंतुलन का प्रभाव सेक्स हार्मोनों जैसे एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रौन और टेस्टोस्टेरौन के स्तर पर भी पड़ता है.

प्रदूषण थायरौइड ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोनों को भी प्रभावित करता है, जिससे महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है.

प्रदूषण से बचने के लिए जरूरी उपाय

अधिक प्रदूषण वाली जगहों पर जाने से बचें, अगर जाना जरूरी हो तो मॉस्क का प्रयोग करें.

अपने घर को रोज वैक्यूम क्लीनर से साफ करें ताकि धूलकण जमा न हो पाएं.

घर की हवा को साफ रखने और प्रदुषण से बचने के लिए एयर प्युरिफायर लगवाएं.

अगर आप ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां प्रदूषण अधिक है तो खिड़कियों और दरवाजों पर मोटे पर्दे लगाएं.

आप ऐसी जगहों पर काम करते हैं जहां रसायनों का एक्सपोज़र अधिक है तो पूरी सावधानी रखें.

धूम्रपान से बचें.

अगर आप टहलने जाते हैं तो ऐसी जगह चुनें जहां प्रदूषण कम हो.

अपने घर में इनडोर प्लांट्स भी लगाएं. ये इनडोर पॉल्युशन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

पोषक भोजन और अधिक मात्रा में पानी व तरल पदार्थों का सेवन करें ताकि शरीर से टौक्सिन फ्लश हो सकें.

आधुनिक महिलाओं में बांझपन की बीमारी का कारण और निदान

महिलाओं के जीवन में मां बनना सबसे बड़ा सुख माना जाता है लेकिन आजकल की आधुनिक जीवनशैली और अन्‍य कारणों की वजह से अब महिलाओं में बांझपन यानि इनफर्टिलिटी की समस्‍या बढ़ रही है. अगर आप भी बांझपन का शिकार हैं या इससे बचना चाहती हैं तो आइए जानते हैं औनलाइन हेल्थकेयर कंपनी myUpchar से इसके कारण, लक्षण और इलाज के बारे में.

क्‍या होता है बांझपन

बांझपन वह स्थिति है जिसमें महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं. अगर कोई महिला प्रयास करने के बाद भी 12 महीने से अधिक समय तक गर्भधारण नहीं कर पाती है तो इसका मतलब है कि वो महिला बांझपन का शिकार है. गौरतलब है कि गर्भधारण न हो पाने का कारण पुरुष बांझपन भी हो सकता है.

कुछ महिलाएं शादी के बाद कभी कंसीव नहीं कर पाती हैं तो कुछ स्त्रियों को एक शिशु को जन्‍म देने के बाद दूसरी बार गर्भधारण करने में मुश्किलें आती हैं. इस तरह बांझपन दो प्रकार का होता है.

क्‍या है बांझपन का कारण

  • फैलोपियन ट्यूब अंडे को अंडाशय से गर्भाशय तक पहुंचाती है, जहां भ्रूण का विकास होता है. पेल्विक में संक्रमण या सर्जरी के कारण फैलोपियन ट्यूब को नुकसान पहुंच सकता है जिससे शुक्राणुओं को अंडों तक पहुंचने में दिक्‍कत आती है और इसी वजह से महिलाओं में बांझपन उत्‍पन्‍न होता है.
  • महिलाओं के शरीर में हार्मोनल असंतुलन होने के कारण भी इनफर्टिलिटी हो सकती है. शरीर में सामान्‍य हार्मोनल परिवर्तन ना हो पाने की स्थिति में अंडाशय से अंडे नहीं निकल पाते हैं.
  • गर्भाशय की असामान्य संरचना, पौलिप्स या फाइब्रौएड के कारणबांझपन हो सकता है.
  • तनाव भी महिलाओं में बांझपन का प्रमुख कारण है.
  • महिलाओं की ओवरी 40 वर्ष की आयु के बाद काम करना बंद कर देती है. अगर इस उम्र से पहले किसी महिला की ओवरी काम करना बंद कर देती है तो इसकी वजह कोई बीमारी, सर्जरी, कीमोथेरेपी या रेडिएशन हो सकती है.
  • पीसीओएस की बीमारी के कारण भी आज अधिकतर महिलाएं बांझपन का शिकार हो रही हैं. इस बीमारी में फैलोपियन ट्यूब में सिस्‍ट बन जाते हैं जिसके कारण महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं.

बांझपन के लक्षण

  • myUpchar की गायनेकोलौजिस्ट डा. अर्चना नरूला के अनुसार लम्बे समय तक गर्भधारण में असमर्थता ही बांझपन का सबसे मुख्‍य लक्षण है.
  • अगर किसी महिला का मासिक धर्म 35 दिन या इससे ज्‍यादा दिन का हो तो ये बांझपन का लक्षण हो सकता है. इसके अलावा बहुत कम दिनों की माहवारी या 21 दिन से पहले माहवारी का आना अनियमित माहवारी कहलाता है जोकि बांझपन बन सकता है.
  • चेहरे पर अनचाहे बाल आना या सिर के बालों का झड़ना भी महिलाओं में इनफर्टिलिटी की वजह से हो सकता है.

बांझपन से कैसे बचें

बांझपन से बचने के लिए जीवनशैली में सुधार करना सबसे जरूरी है. यहां कुछ ऐसे सरल सुझाव दिए गए हैं जिन्हें अपनाकर इनफर्टिलिटी से बच सकते हैं.

संतुलित आहार खाएं

  • बांझपन को दूर करने के लिए उचित भोजन करना बहुत जरूरी है. अपने आहार में जस्ता, नाइट्रिक औक्साइड और विटामिन सी और विटामिनई जैसे पोषक तत्वों को शामिल करें.
  • ताजी फल-सब्जियां खाएं. शतावरी और ब्रोकली से फर्टिलिटी बढ़ती है. इसके अलावा बादाम, खजूर, अंजीर जैसे सूखे-मेवे खाएं.
  • आपको रोज़ कम से कम 5-6 खजूर या किशमिश खानी चाहिए. डेयरी उत्पाद, लहसुन, दालचीनी, इलायची को अपने आहार में शामिल करें.
  • सूरजमुखी के बीज खाएं. चकोतरा और संतरे का ताजा रस पीएं. फुल फैट योगर्ट और आइस्‍क्रमी से भी फर्टिलिटी पावर बढ़ती है.
  • जो महिलाएं अपनी फर्टिलिटी पावर को बढ़ाना चाहती हैं उन्‍हें अपने आहार में टमाटर, दालें, बींस और एवोकैडो को शामिल करना चाहिए.
  • अनार में फोलिक एसिड और विटामिन बी प्रचुर मात्रा में होता है. फर्टिलिटी को बढ़ाने के लिए महिलाओं को अनार का सेवन जरूर करना चाहिए.
  • विटामिन डी के लिए अंडे खाएं और ओमेगा 3 फैटी एसिड युक्‍त खाद्य पदार्थों का सेवन करें. कंसीव करने की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए रोज़ एक केला खाएं.
  • अश्‍वगंधा शरीर में हार्मोंस के संतुलन को बनाए रखता है और प्रजनन अंगों की समुचित कार्यक्षमता को बढ़ावा देती है. बार-बार गर्भपात होने के कारण शिथिल गर्भाशय को समुचित आकार देकर उसे बनाने में अश्‍वगंधा मदद करता है. महिलाओं को अपने आहार में दालचीनी को भी जरूर शामिल करना चाहिए.

इन खाद्य पदार्थों से रहें दूर

  • धूम्रपान और शराब बांझपन का प्रमुख कारण हैं इसलिए इनसे दूर रहें.
  • तैलीय भोजन और सफेद ब्रैड जैसे परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट से बचें.
  • प्रिजर्वेटिव्स फूड, कैफीन और मांस का सेवन कम करें. फ्रेंच फ्राइज, तली हुई और मीठी चीजों का बहुत कम सेवन करें.
  • इसके अलावा कोल्‍ड ड्रिंक आदि भी ना पीएं. कौफी और चाय भी कम पीएं क्‍योंकि इनमें कैफीन की मात्रा अधिक होती है जिसका फर्टिलिटी पर बुरा असर पड़ता है.

ये आदतें छोड़ दें

  • मासिक धर्म के दिनों में तैलीय और मसालेदार भोजन ना लें.
  • मारिजुआना या कोकीन का सेवन ना करें.
  • धूम्रपान करने से ओवरी की उम्र और अंडों की आपूर्ति कम हो जाती है. धूम्रपान फैलोपियन ट्यूब और सर्विक्‍स को भी नुकसान पहुंचाता है जिससे एक्‍टोपिक प्रेग्‍नेंसी या गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए सिगरेट बिलकुल ना पीएं.
  • शराब का सेवन ना करें. गर्भधारण से पूर्व शराब का सेवन करने वाली महिलाओं में औव्‍यूलेशन विकार हो सकता है इसलिए शराब से दूर रहें.
  • अगर आपका वजन बहुत ज्‍यादा या कम है तो उसे भी संतुलित करें. इनफर्टिलिटी से जूझ रही महिलाओं को अपना वजन संतुलित रखना चाहिए.
  • आधुनिक युग में बांझपन का प्रमुख कारण तनाव है. तनाव से दूर रहकर बांझपन की समस्‍या से बचा जा सकता है. मानसिक शांति पाने के लिए रोज़ सुबह प्राणायाम करें.

बांझपन की जांच

अगर कोई महिला लंबे समय से गर्भधारण नहीं कर पा रही है तो उसे डौक्टर के निर्देश पर निम्‍न जांच करवानी चाहिए:

  • ओव्यूलेशनटेस्ट: इसमें किट से घर पर ही ओव्यूलेशन परीक्षण कर सकती हैं.
  • हार्मोनल टेस्‍ट: ल्‍युटनाइलिंग हार्मोन और प्रोजेस्‍टेरोन हार्मोन की जांच से भी बांझपन का पता लग सकता है. ल्युटनाइज़िंगहार्मोन का स्तर ओव्यूलेशन से पहले बढ़ता है जबकि प्रोजेस्टेरोन हार्मोन ओव्यूलेशन के बाद उत्पादित हार्मोन होता है. इन दोनों हार्मोंस के टेस्‍ट से ये पता चलता है कि ओव्यूलेशन हो रहा है या नहीं.  इसके अलावा प्रोलैक्टिन हार्मोन के स्तर की भी जांच की जाती है.
  • हिस्टेरोसल पिंगोग्राफी: ये एक एक्स-रे परीक्षण है. इससे गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब और उनके आस-पास का हिस्‍सा देखा जा सकता है. एक्‍स-रे रिपोर्ट मेंगर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब को लगी कोई चोट या असामान्‍यता को देखा जा सकता है. इसमें अंडे की फैलोपियन ट्यूब से गर्भाशय तक जाने की रूकावट भी देख सकते हैं.
  • ओवेरियन रिज़र्वटेस्ट: ओव्यूलेशन के लिए उपलब्ध अंडे की गुणवत्ता और मात्रा को जांचने में मदद करता है. जिन महिलाओं में अंडे कम होने का जोखिम होता है, जैसे कि 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं, उनके लिए रक्त और इमेजिंग टेस्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है.
  • थायरौयड और पिट्यूटरी हार्मोन की जांच: इसके अलावा प्रजनन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने वाले ओव्यूलेटरीहार्मोन्स के स्तर के साथ-साथ थायरौयड और पिट्यूटरी हार्मोन  की जांच भी की जाती है.
  • इमेजिंग टेस्ट: इसमें पेल्विक अल्ट्रासाउंड होता है जोकि गर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब में हुए किसी रोग की जांच करने के लिए किया जा सकता है.

बांझपन का इलाज

चूंकि बांझपन एक जटिल विकार है इसलिए डा. नरूला कहती हैं कि, “इनफर्टिलिटी का इलाज इसके होने के कारण, आयु, यह समस्या कितने समय से है और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है. बांझपन के इलाज में वित्तीय, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति महत्‍व रखती है.”

आइए जानें आपके पास क्या विकल्प हैं इनफर्टिलिटी को दूर करने के लिए:

  • दवाएं: ओव्यूलेशन विकार के कारण गर्भधारण ना हो पाने की स्थिति में दवाओं से इलाज किया जाता है. ये दवाएं प्राकृतिक हार्मोन फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन (एफएसएच) और ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (एलएच) की तरह काम करती हैं.इन दवाओं से ओव्यूलेशन को ट्रिगर किया जाता है.
  • आधुनिक तकनीक: प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किए गए तरीकों में शामिल हैं –
    • इन्ट्रायूट्राइन गर्भाधान (आईयूआई) – आईयूआई के दौरान, लाखों स्वस्थ शुक्राणुओं को गर्भाशय के अंदर ओव्यूलेशन के समय रखा जाता है.
    • आईवीएफ – इस प्रक्रिया में अंडे की कोशिकाओं को महिला के गर्भ से बाहर निकालकर उसे पुरुष के स्‍पर्म के साथ निषेचित किया जाता है. ये पूरी प्रक्रिया इनक्‍यूबेटर के अंदर होती है और इस पूरी प्रक्रिया में लगभग तीन दिन का समय लगता है. भ्रूण के पर्याप्‍त विकास के बाद इसे वापिस महिला के गर्भ में पहुंचा दिया जाता है. इस प्रक्रिया के 12 से 15 दिनों तक महिला को आराम करने की सलाह दी जाती है.
  • सर्जरी: कई सर्जिकल प्रक्रियाएं बांझपन को ठीक यामहिला प्रजनन क्षमता में सुधार ला सकती हैं. हालांकि, बांझपन के इलाज में अब ऊपर बताई गयी नई पद्धतियां आ चुकी हैं जिनके कारण सर्जरी बहुत ही कम की जाती है. गर्भधारण की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए लैप्रोस्कोपिक या हिस्ट्रोस्कोपी सर्जरी की जा सकती है. इसके अलावा फैलोपियन ट्यूब अवरुद्ध होने पर ट्यूबल सर्जरी भी की जा सकती है.

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बांझपन के भावनात्‍मक और मनोवैज्ञानिक दबाव: इनके साथ तालमेल बैठाने और सपोर्ट के संसाधन

आज के समाज में बांझपन (इंफर्टिलिटी) तेजी से चिंता का विषय बनता जा रहा है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के एक आकलन के मुताबिक, भारत में बांझपन की समस्‍या 3.9% से 16.8% तक है. बांझपन (इंफर्टिलिटी) की बढ़ती वजह आज के दौर लोगों की दबाव से भरपूर जीवनशैली और स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक आदतों से दूर होने को माना जा रहा है. आधुनिक युग में पुरुषों और औरतों पर वर्क-लाइफ संतुलन बनाने का काफी दबाव है, उस पर अल्‍कोहल और कैफीन का अत्‍यधिक मात्रा में सेवन, तथा बढ़ता धूम्रपान भी इंफर्टिलिटी का कारण बन रहा है.

डॉ राम्या मिश्रा, वरिष्ठ सलाहकार- फर्टिलिटी और आईवीएफ, अपोलो फर्टिलिटी (लाजपत नगर) का कहना है

बेशक, बांझपन (इंफर्टिलिटी) कोई रोग नहीं है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इसकी वजह से प्रभावित व्‍यक्ति की भावनात्‍मक और मनोवैज्ञानिक सेहत पर असर पड़ता है. इसके कारण कई प्रकार के मनोवैज्ञानिक-भावनात्‍मक विकार या साइड इफेक्‍ट्स जैसे कि तनाव, अवसाद, नाउम्‍मीदी, अपरोधबोध, झुंझलाहट, चिंता और जीवन में किसी लायक न होने जैसा भाव पैदा होता है.

एनसीबीआई के मुताबिक, बांझपन (इंफर्टिलिटी) से जूझ रहे लोग कई बार दु:ख, अफसोस, अकेलेपन जैसी समस्‍याओं के अलावा मानसिक रूप से काफी परेशान भी महसूस करते हैं. इंफर्टिलिटी से गुज़र रहे व्‍यक्ति की सेहत इन तमाम कारणों से काफी प्रभावित हो सकती है, लेकिन इनसे निपटने और सांत्‍वना देने के लिए कई उपाय और सपोर्ट सिस्‍टम्‍स भी हैं, जो मददगार साबित हो सकते हैं.

  1. इंफर्टिलिटी का भावनात्‍मक तथा मनोवैज्ञानिक प्रभाव

हालांकि बांझपन (इंफर्टिलिटी) कोई जीवनघाती समस्‍या नहीं है, लेकिन इसे कपल्‍स के जीवन में तनावपूर्ण स्थिति के रूप में देखा जाता है। चूंकि हमारे समाज में, वैवाहिक जीवन में बच्‍चों का होना काफी महत्‍वपूर्ण घटना मानी जाती है, ऐसे में बांझपन के चलते तनाव की स्थिति काफी बढ़ सकती है. गर्भधारण नहीं कर पाने के चलते कपल्‍स अपरोध बोध, पश्‍चाताप, निराशा, दुख, चिंता और झुंझलाहट जैसी भावनाओं के ज्‍वार से जूझते हैं. उस पर उन्‍हें समाज के दबाव भी झेलने पड़ते हैं, जो उनकी पहले से तनाव की स्थिति को और बढ़ाता है तथा उनके आत्‍म-सम्‍मान की भावना भी घटाता है। इसका परिणाम यह होता है कि वे अपने खुद के महत्‍व को लेकर सवाल करने लगते हैं.

हालांकि बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या से पुरुष और महिलाएं दोनों ही जूझ सकते हैं, लेकिन अक्‍सर समाज में महिलाओं को ही इसके लिए जिम्‍मेदार ठहराया जाता है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का कहना है कि बांझपन झेल रहे कपल्‍स की जिंदगी पर समाज का नकारात्‍मक असर पड़ता है, खासतौर से महिलाओं को इसका दबाव ज्‍यादा सहना पड़ता है और वे कई बार हिंसा, तलाक, सामाजिक तौर पर बेइज्‍़ज़ती, भावनात्‍मक दबाव, निराशा, चिंता तथा आत्‍म-सम्‍मान में कमी जैसी समस्‍याओं को सहने को मजबूर होती हैं.

बांझपन (इंफर्टिलिटी) की वजह से पैदा होने वाला निराशा का भाव आपको अवसाद के गर्त में डुबो सकता है जहां से वापसी या आत्‍म-सम्‍मान वापस प्राप्‍त करना काफी चुनौतीपूर्ण भी हो सकता है. लेकिन इससे निपटने के कई उपाय हैं और कई तरह के सपोर्ट भी उपलब्‍ध हैं जो कपल्‍स को बांझपन के दबावों से मुक्‍त रखने में मददगार साबित हो सकते हैं.

2. समस्‍या के साथ तालमेल बैठाने और सपोर्ट समाधान

1.सैल्‍फ-केयर

इसमें कोई शक नहीं कि खुद की देखभाल (सैल्‍फ केयर) सबसे बेहतरीन तरीका होता है अपना ख्‍याल रखने का. अपना मनपसंद मील बनाएं, सुकूनदायक संगीत को सुनें, सैर पर जाएं, रिलैक्सिंग स्‍नान करें और अच्‍छी नींद लें. अपने लिए कुछ समय निकालें और अपना ख्‍याल करें.

2. किसी नई हॉबी को अपनाएं

इंफर्टिलिटी से जूझते हुए बेशक, अपनी भावनाओं को समझना और संभावना काफी अहम् होता है, लेकिन लगातार उनके बारे में सोचते रहते से आप तनाव बढ़ाते हैं और एंग्‍ज़ाइटी भी लगातार बढ़ती रहती है. इसलिए यह जरूरी है कि आप अपने लिए कुछ समय निकालें, अपनी मनपसंद हॉबी को समय दें. कुछ ऐसा करें जिससे आपको सहजता हो और आप खुद को रिलैक्‍स महसूस करें, जैसे कि कुकिंग क्‍लास, म्‍युज़‍िक लैसन या पेंटिंग क्‍लास आदि से जुड़ें.

3. एक्‍सपर्ट की सहायता लें

अगर आपको लगता है कि आपके हालात बेकाबू हो रहे हैं, तो बेहतर होगा कि आप किसी हैल्‍थ प्रोफेशनल की मदद लें जो आपको सही तरीके से अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के उपायों के बारे में बता सकते हैं और आपको खुद को सकारात्‍मक बनाने की दिशा भी दिखा सकते हैं. सच तो यह है कि किसी फर्टिलिटी स्‍पेश्‍यलिस्‍ट से परामर्श लेना सही फैसला हो सकता है, जो आपको कुछ अन्‍य तरीकों से गर्भधारण के बारे में जानकारी दे सकते हैं.

4. क्‍या करें कि सब ठीक रहे

आज के समय में बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या काफी व्‍यापक हो चली है जिसका लोगों के भावनात्‍मक तथा मनोवैज्ञानिक स्‍वास्‍थ्‍य पर विपरीत असर पड़ता है. इसका नकारात्‍मक असर तनाव, स्‍वभाव में चिडचिड़ापन, नाउम्‍मीदी का भाव, अपरोधबोध, निराशा और एंग्‍जाइटी बढ़ाता है. जब आप खुद को व्‍यस्‍त रखने के लिए किसी नई हॉबी को अपनाते हैं, सैल्‍फ-केयर पर ध्‍यान देते हैं और अपने हालात से निपटने के लिए प्रोफेशनल मार्गदर्शन लेते हैं, तभी आपको इस पूरे हालात के बारे में सकारात्‍मक परिप्रेक्ष्‍य दिखायी देता है.

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