पंडितों ने 4 सालों तक मां नहीं बनने की बात कही है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल- 

मैं 27 साल की हूं. मेरे विवाह को 5 महीने हो चुके हैं, लेकिन अभी तक प्रैगनैंट नहीं हुई हूं. क्या यह मेरे भीतर किसी कमी या गड़बड़ी का लक्षण है? कई पंडितों ने मुझ से कहा है कि मैं कम से कम अगले 4 सालों तक मां नहीं बन पाऊंगी. मैं इस बात से बहुत डरी हुई हूं. बताएं, मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

यह निश्चित तौर पर बता पाना कि आप कब मां बनेंगी, किसी के वश की बात नहीं है. अगर पतिपत्नी दोनों की फर्टिलिटी नौर्मल है यानी दोनों की प्रजननशक्ति अच्छी है और सारे हालात प्रैगनैंसी के अनुकूल हैं तब भी प्रैगनैंट होने के लिए यह जरूरी है कि पतिपत्नी दोनों का शारीरिक मेल उन दिनों में हो जिन दिनों में पुरुष शुक्राणु और स्त्री डिंब के मेलमिलाप का संयोग बनता है. स्त्री के मासिकचक्र में हर महीने कुछ ही दिन ऐसे होते हैं जिन में प्रैंगनैंसी का संयोग बनता है. फर्टिलिटी स्टडीज में देखा गया है कि जो दंपती हर तरह से सामान्य होते हैं उन में भी स्त्री के प्रैंगनैंट होने के चांसेज किसी 1 महीने में 20-25% ही होते हैं. 3 महीने लगातार जतन करने पर चांसेज 50%, 6 महीने में 72% और 12 महीने में 85% पाए गए हैं. अभी आप के विवाह को मात्र 5 महीने ही बीते हैं, इसलिए इस तरह निराश होना कतई ठीक नहीं है. अगर आप का मासिकचक्र 28 दिनों का है, तो आप दोनों का 11वें से 17वें दिन के बीच मिलन फलदायी हो सकता है. मसलन अगर आप का मासिक धर्म 8 अगस्त को शुरू होता है, तो इस हिसाब से 19 से 25 अगस्त के बीच का शारीरिक मेल आप को प्रैगनैंट बना सकता है. दरअसल, यही वे दिन होंगे जब आप की ओवरी से एग रिलीज होने के सब से ज्यादा चांसेज बनेंगे. किसी पंडित, ज्योतिषी या हस्तरेखा वाचक की बातों में आ कर बिना वजह अपने जीवन को संशय, चिंता या भय में न डालें.

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लेखिका- दीप्ति गुप्ता

ज्यादातर भारतीय लोगों को सुबह और शाम चाय पीने की आदत  होती  है. इसे पीने के बाद वे ताजा महसूस करते हैं. वैसे देखा जाए, तो चाय गर्भवती महिलाओं सहित दुनियाभर के लोगों द्वारा सबसे ज्यादा पीऐ जाने वाले खाद्य पदार्थों में से एक  है. प्रैग्नेंसी में खासतौर से सीमित मात्रा में चाय का सेवन बहुत अच्छा माना जाता है. दरअसल, चाय की पत्तियों में पॉलीफेनॉल और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं., जो न केवल आपके ह्दय स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं बल्कि आपकी प्रतिरक्षा को भी बढ़ाते हैं. हालांकि,  इनमें कैफीन भी होता है, इसलिए इनका सेवन आपको एक दिन में 200 मिग्रा से ज्यादा नहीं करना चाहिए. वैसे विशेषज्ञ प्रैग्नेंसी में कुछ खास तरह की चाय का सेवन करने की सलाह देते हैं. उनके अनुसार, आमतौर पर ब्लैक टी, मिल्क टी, ग्रीन टी में 40 से 50 मिग्रा कैफीन होता है, जबकि हर्बल टी में कैफीन की मात्रा न के बराबर होती है. इसलिए प्रैग्नेंसी के दौरान हर्बल टी को एक स्वस्थ और बेहतरीन विकल्प माना गया है. यहां 6 तरह की हर्बल चाय हैं, जिनका प्रैग्नेंसी के दौरान सेवन करना पूरी तरह से सुरक्षित है.

1. अदरक की चाय-

अदरक की चाय में जो स्वाद है, वो किसी आम चाय में नहीं. इसे खासतौर से सर्दियों में पीया जाए, तो गर्माहट तो आती ही है ,साथ ही ताजगी का अहसास भी होता है. लेकिन किसी भी गर्भवती महिला को अपने रूटीन में अदरक की चाय जरूर शामिल करनी चाहिए. क्योंकि यह मॉर्निंग सिकनेस को कम करती है. इसे अपने रूटीन में शामिल करने के बाद सर्दी, गले की खराश और कंजेशन की समस्या से भी छुटकारा पाया जा सकता है. इसके लिए अदरक के कुछ टुकड़ों को गर्म पानी में उबाल  लें और दूध, शहद के साथ लाकर पी जाएं.

ऐंडोमैट्रिओसिस से बढ़ता बांझपन का खतरा

ऐंडोमैट्रिओसिस गर्भाशय से जुड़ी एक समस्या है. यह समस्या महिलाओं की प्रजनन क्षमता को सर्वाधिक प्रभावित करती है, क्योंकि गर्भधारण करने और बच्चे को जन्म देने में गर्भाशय की सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. कई महिलाओं में यह समस्या अत्यधिक गंभीर हो शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करती है. वैसे आधुनिक दवा और उपचार के विभिन्न विकल्पों ने दर्द और बांझपन दोनों से राहत दिलाई है. ऐंडोमैट्रिओसिस का यह अर्थ नहीं है कि इस से पीडि़त महिलाएं कभी मां नहीं बन सकतीं, बल्कि यह है कि इस के कारण गर्भधारण करने में समस्या आती है.

क्या है ऐंडोमैट्रिओसिस

ऐंडोमैट्रिओसिस गर्भाशय की अंदरूनी परत की कोशिकाओं का असामान्य विकास होता है. यह समस्या तब होती है जब कोशिकाएं गर्भाशय के बाहर विकसित हो जाती हैं. इसे ऐंडोमैट्रिओसिस इंप्लांट कहते हैं. ये इंप्लांट्स आमतौर पर अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब्स, गर्भाशय की बाहरी सतह पर या आंत और पैल्विक गुहा की सतह पर पाए जाते हैं. ये वैजाइना, सरविक्स और ब्लैडर पर भी पाए जा सकते हैं. बहुत ही कम मामलों में ऐंडोमैट्रिओसिस इंप्लांट्स पैल्विस के बाहर लिवर पर या कभीकभी फेफड़ों अथवा मस्तिष्क के आसपास भी हो जाते हैं.

ऐंडोमैट्रिओसिस के कारण

ऐंडोमैट्रिओसिस महिलाओं को उन के प्रजनन कालके दौरान प्रभावित करता है. इस के ज्यादातर मामले 25 से 35 वर्ष की महिलाओं में देखे जाते हैं. लेकिन कई बार 10-11 साल की लड़कियों में भी यह समस्या होती है. मेनोपौज की आयु पार कर चुकी महिलाओं में यह समस्या बहुत कम होती है. विश्व भर में करोड़ों महिलाएं इस से पीडि़त हैं. जिन महिलाओं को गंभीर पैल्विक पेन होता है उन में से 80% ऐंडोमैट्रिओसिस से पीडि़त होती हैं. इस के वास्तविक कारण पता नहीं हैं. हां, कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि ऐंडोमैट्रिओसिस की समस्या उन महिलाओं में अधिक है, जिन का बौडी मास इंडैक्स (बीएमआई) कम होता है. बड़ी उम्र में मां बनने वाली या कभी मां न बनने वाली महिलाओं में भी यह समस्या हो सकती है. इस के अलावा जिन महिलाओं में पीरियड्स जल्दी शुरू हो जाते हैं या मेनोपौज देर से होता है, उन में भी इस का खतरा बढ़ जाता है. इस के अलावा आनुवंशिक कारण भी इस में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

ऐंडोमैट्रिओसिस के लक्षण

ज्यादातर महिलाओं में ऐंडोमैट्रिओसिस का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता, लेकिन जो लक्षण दिखाई देते हैं उन में पीरियड्स के समय अत्यधिक दर्द होना, पीरियड्स या अंडोत्सर्ग के समय पैल्विक पेन ऐंडोमैट्रिओसिस का एक लक्षण है. लेकिन यह सामान्य महिलाओं में भी हो सकता है. इस दर्द की तीव्रता हर महीने बदल सकती है और अलगअलग महिलाओं में अलगअलग हो सकती है.

पैल्विक क्षेत्र में दर्द होना यानी पेट के निचले भाग में दर्द होना और यह दर्द कई दिनों तक रह सकता है. इस से कमर और पेट में दर्द भी हो सकता है. यह पीरियड शुरू होने से पहले हो सकता है और कई दिनों तक चल सकता है. मल त्यागने और यूरिन पास करने के समय दर्द हो सकता है. यह समस्या अधिकतर पीरियड्स के समय अधिक होती है. पीरियड्स के समय अत्यधिक रक्तस्राव होना, कभीकभी पीरियड्स के बीच में भी रक्तस्राव होना, यौन संबंध के दौरान या बाद में दर्द होना, डायरिया, कब्ज और अत्यधिक थकान होना. छाती में दर्द या खांसी में खून आना अगर ऐंडोमैट्रिओसिस फेफड़ों में है, सिरदर्द और चक्कर आना अगर ऐंडोमैट्रिओसिस मस्तिष्क में है.

रिस्क फैक्टर

कई कारक ऐंडोमैट्रिओसिस की आशंका बढ़ा देते हैं जैसे:

  1. कभी बच्चे को जन्म न दे पाना.
  2. 1 या अधिक निकट संबंधियों (मां, मौसी, बहन) को ऐंडोमैट्रिओसिस होना.
  3. कोई और मैडिकल कंडीशन जिस के कारण शरीर से मैंस्ट्रुअल फ्लो का सामान्य मार्ग बाधित होता है.
  4. यूरिन की असामान्यता.

ऐंडोमैट्रिओसिस और इनफर्टिलिटी

जिन महिलाओं को ऐंडोमैट्रिओसिस है, उन में से 35 से 50% महिलाओं को गर्भधारण करने में समस्या होती है. इस के कारण फैलोपियन ट्यूब्स बंद हो जाती हैं, जिस से अंडाणु और शुक्राणु का निषेचन नहीं हो पाता है. कभीकभी अंडे या शुक्राणु को भी नुकसान पहुंचता है. इस से भी गर्भधारण नहीं हो पाता. जिन महिलाओं में यह समस्या गंभीर नहीं होती है. उन्हें गर्भधारण करने में अधिक समस्या नहीं होती है. डाक्टर सलाह देते हैं कि जिन महिलाओं को यह समस्या है उन्हें बच्चे को जन्म देने में देर नहीं करनी चाहिए, क्योंकि स्थिति समय के साथ अधिक खराब हो जाती है.

पहली बार ऐंडोमैट्रिओसिस का पता ही तब चला जब कुछ महिलाएं बांझपन का उपचार करा रही थीं. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 25 से 50% बांझ महिलाएं ऐंडोमैट्रिओसिस की शिकार होती हैं, जबकि 30 से 50% महिलाएं, जिन्हें ऐंडोमैट्रिओसिस होता है वे बांझ होती हैं. सामान्य तौर पर संतानहीन दंपतियों में से 10% का कारण ऐंडोमैट्रिओसिस होता है. बांझपन की जांच करने के लिए किए जाने वाले लैप्रोस्कोपिक परीक्षण के समय ऐंडोमैट्रिअल इंप्लांट का पता चलता है. कई ऐसी महिलाओं में भी इस का पता चलता है, जिन्हें कोई दर्द अनुभव नहीं होता. ऐंडोमैट्रिओसिस के कारण महिलाओं की प्रजनन क्षमता क्यों प्रभावित होती है, यह पूरी तरह समझ में नहीं आया है, लेकिन संभवतया ऐनाटोमिकल और हारमोनल कारणों के कारण यह समस्या होती है. संभवतया हारमोन और दूसरे पदार्थों के कारण अंडोत्सर्ग, निषेचन और गर्भाशय में भू्रण के इंप्लांट पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

ऐंडोमैट्रिओसिस और कैंसर

कुछ अध्ययनों के अनुसार जिन महिलाओं को ऐंडोमैट्रिओसिस होता है उन में अंडाशय का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है. यह खतरा उन महिलाओं में अधिक होता है जो बांझ होती हैं या कभी मां नहीं बन पाती हैं.

अभी तक ऐंडोमैट्रिओसिस और ओवेरियन ऐपिथेलियल कैंसर के मध्य संबंधों के स्पष्ट कारण का पता नहीं है. कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि ऐंडोमैट्रिओसिस इंप्लांट ही कैंसर में बदल जाता है. यह भी मानना है कि ऐंडोमैट्रिओसिस आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारणों से भी संबंधित हो सकता है. ये महिलाओं में अंडाशय का कैंसर होने की आशंका भी बढ़ा देते हैं.

डायग्नोसिस

ऐंडोमैट्रिओसिस का पता लगाने के लिए ये टैस्ट किए जाते हैं:

  1. पैल्विक ऐग्जाम: इस में डाक्टर हाथ से पैल्विक का परीक्षण करता है कि कोई असामान्यता तो नहीं है.
  2. अल्ट्रासाउंड: इस से ऐंडोमैट्रिओसिस होने का पता तो नहीं चलता है, लेकिन उस से जुड़े सिस्ट की पहचान हो जाती है.
  3. लैप्रोस्कोपी: यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐंडोमैट्रिओसिस है एक छोटी सी सर्जरी की जाती है, जिसे लैप्रोस्कोपी कहते हैं. इस में ऊतकों के सैंपल भी लिए जाते हैं, जिन की बायोप्सी से पता चल जाता है कि ऐंडोमैट्रिओसिस कहां स्थित है.

उपचार

पीरियड्स के दौरान होने वाले रक्तस्राव और दर्द भरे संभोग को गंभीरता से लें. स्थिति और अधिक गंभीर होने से पहले फर्टिलिटी विशेषज्ञ से मिलें. इस के उपचार के लिए दवा और सर्जरी का उपयोग किया जाता है. हारमोन थेरैपी भी इस के उपचार के लिए उपयोग की जाती है, क्योंकि मासिकधर्म के दौरान होेने वाले हारमोन परिवर्तन के कारण भी यह समस्या हो जाती है. हारमोन थेरैपी ऐंडोमैट्रिओसिस के विकास को धीमा करती है और ऊतकों के नए इंप्लांट्स को रोकती है. ऐंडोमैट्रिओसिस के कारण होने वाले दर्द की समस्या के लिए डाक्टर सर्जिकल उपचार बेहतर मानते हैं तथा बांझपन की समस्या के लिए आईवीएफ तकनीक की सलाह दी जाती है ताकि सामान्य से अधिक नुकसान होने से पहले संतान प्राप्ति की जा सके.

Infertility का इलाज है संभव

दुनियाभर में इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे लोगों की समस्या दिनप्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. भारत में 10 से 15% के बीच शादीशुदा कपल इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे हैं. बता दें कि भारत में 30 मिलियन इंफर्टाइल कपल में से करीब 3 मिलियन कपल हर साल इनफर्टिलिटी का इलाज करवा रहे हैं. जबकि शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा काफी ज्यादा है. वहां हर 6 में से 1 कपल इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहा है और इस के इलाज को ले कर काफी जागरूक है. लेकिन बता दें कि हर समस्या का इलाज संभव है. तभी तो उम्मीद छोड़ चुके कपल भी पेरैंट्स बन पाते हैं.

क्या है इनफर्टिलिटी

वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाईजेशन के अनुसार, इनफर्टिलिटी रिप्रोडक्टिव सिस्टम से जुड़ी हुई बीमारी है. इनफर्टिलिटी शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है, जब कपल बिना कोई प्रोटैक्शन इस्तेमाल लिए एक साल से ज्यादा समय से प्लान कर रहे हों, लेकिन फिर भी कंसीव करने में दिक्कत आ रही हो. इनफर्टिलिटी का कारण सिर्फ महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी होते हैं. अकसर महिलाओं में इस का कारण फैलोपियन ट्यूब का ब्लौक होना, अंडे नहीं बनना, अंडों की क्वालिटी खराब होना, थाईराइड होना, प्रैग्रैंसी हारमोंस का संतुलन बिगड़ना, पीसीओडी यानि पोलिसिस्टिक औवरियन सिंड्रोम आदि के कारण होता है, जिस से मां बनने में दिक्कत आती हैं.

वहीं पुरुषों में स्पर्म काउंट कम होना, उन की क्वालिटी सही नहीं होना व उन की मोटेलिटी यानि वे कितना ऐक्टिवली वर्क कर पाते हैं ठीक नहीं होती तब भी पार्टनर को कंसीव करने में दिक्कत होती है. लेकिन परेशान होने से नहीं बल्कि इनफर्टिलिटी के ट्रीटमैंट से आप की समस्या का समाधान होगा.

क्या है इस का निदान

मासिकधर्म को सामान्य करना:

चाहे बात  नार्मल तरीके की या फिर किसी ट्रीटमैंट से, डाक्टर्स सब से पहले आप के मासिकधर्म को नार्मल करने की कोशिश करते हैं, ताकि आप के हारमोंस नार्मल हो सकें और आप को कंसीव करने में कोई दिक्कत न आए. साथ ही आप के ओवुलेशन पीरियड को ट्रैक करने में आसानी हो. ऐसे में हैल्दी ईटिंग हैबिट्स व दवाओं के जरीए इसे सामान्य करने की कोशिश की जाती है.

हारमोंस के संतुलन को ठीक करना:

कंसीव करने के लिए जरूरी हारमोंस जैसे एफएसएच, जो ओवरीज में अंडों को बड़ा होने में मदद करता है, जिस से ऐस्ट्रोजन का उत्पादन बढ़ जाता है और फिर जो शरीर में एलएच हारमोंस की वृद्धि का संकेत देता है. जिस से सफलतापूर्वक ओवुलेशन होने के साथसाथ कंसीव करने में आसानी होती है. ऐसे में चाहे आप आईयूआई यानि इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन करवाएं या फिर इनविट्रो फर्टिलाइजेशन, दवाओं व इन्फेक्शन के जरीए उसे ठीक किया जा सकता है. इस में हैल्दी ईटिंग हैबिट्स भी काफी सहायक सिद्ध होती हैं.

अंडों को परिपक्व बनाने में मदद:

कुछ मामलों में देखा जाता है कि अंडे बनते तो हैं लेकिन मैच्योर हो कर फूटते नहीं हैं, जिस से कंसीव होने में दिक्कत होती है. ऐसे में दवाओं के जरीए हैल्दी ओवुलेशन करवाने की कोशिश की जाती हैं, ताकि आप का ट्रीटमैंट सफल हो कर आप पेरैंट्स बनने के सपने को पूरा कर सकें.

बंद ट्यूब को खोलना:

अगर आप की दोनों ट्यूब्स बंद हैं या फिर कोई एक, तो डाक्टर लैप्रोस्कोपी, हिस्ट्रोस्कोपी के जरीए उसे ओपन करते हैं. साथ ही अगर आप को सिस्ट की प्रौब्लम है, जो कंसीव करने में बाधा बनती है, तो डाक्टर सर्जरी के जरीए ही इसे रिमूव करते हैं, ताकि कंसीव करने में आसानी हो सके.

डाक्टर का कहना है कि इनविट्रो फर्टिलाइजेशन में महिला के अंडे व पुरुष के स्पर्म को ले कर प्रयोगशाला में फर्टीलाइज कर के महिला के यूटरस में डाला जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान पूरी जांच, दवाओं व इंजैक्शन का सहारा लिया जाता है, ताकि किसी भी तरह की कोई दिक्कत न हो और पहले ही प्रयास में इसे सफल किया जा सके. लेकिन इस के लिए अनुभवी डाक्टर व दवाइयों का होना बहुत जरूरी होता है.

इन सब चीजों के अलावा आपको अपने लाइफस्टाइल में भी बदलाव लाने की जरूरत होगी.

मनोवैज्ञानिक सेहत पर इनफर्टिलिटी का प्रभाव

इनफर्टिलिटी या बांझपन का इलाज करा रहे दंपतियों की संख्या तेजी से बढ़ी है. इसके कई कारण है, जिसमें अनुवांशिकता, जीवनशैली का तरीका और सवाईकल म्युकस जैसी समस्याएं, फाइब्रॉयड, एंडोमेट्रियोसिस, पेल्विक इंफ्लेमेटरी जैसी परेशानियां शामिल हैं. प्रजनन का चक्र किशोरावस्था के बाद और बीसवें साल शुरू होता है. 30 की उम्र के बाद, प्रजनन क्षमता कम होने लगती है  और अंडों की संख्या कम होने के साथ-साथ अंडों की गुणवत्ता भी कम होने लगती है. इस तरह की परेशानियां, तनाव और चिंता को बढ़ाती है. इसका हानिकारक प्रभाव रिश्तों और व्यक्तिगत विकास पर पड़ता है. इस बारे में बता रही हैं डायना क्रस्टा, चीफ साइकोलॉजिस्ट, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी.

बांझपन एक चिकित्सा स्थिति है जोकि आपके जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करता है. यह दूसरों के साथ आपके रिश्तों को, जिंदगी को लेकर आपके नजरिये और खुद के लिये आपकी सोच को प्रभावित कर सकता है. आप इन भावनाओं का सामना किस तरह करेंगे, वह आपके व्यक्तित्व और जीवन के अनुभवों पर निर्भर करता है. ज्यादातर लोग परिवार, दोस्तों, चिकित्सा देखभाल करने वालों और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के समर्थन से लाभ उठा सकते हैं. शुक्राणु, अंडा, या भ्रूण दान या गर्भकालीन वाहक जैसे बांझपन उपचार विकल्पों पर विचार करते समय, प्रजनन परामर्शदाता की सहायता प्राप्त करना विशेष रूप से सहायक हो सकता है. निम्नलिखित जानकारियां आपको यह फैसला लेने में मदद कर सकती हैं कि फर्टिलिटी संबंधी तनाव के इलाज के लिये या आपके उपचार के विकल्पों का चुनाव करने के लिये आपको प्रोफेशनल मदद की जरूरत है या नहीं.

कब दिखाएं इनफर्टिलिटी काउंसलर को?

पूरी दुनिया में बांझपन और उसके इलाज से भावनात्मक तनाव से गुजरने की वजह से, बांझपन से जूझ रहे दंपतियों को मनोवैज्ञानिक मदद प्रदान करने की सिफारिश की गई. इसके अलावा, कई सारे दंपतियों ने स्वयं भी मनोवैज्ञानिक मदद लेने की इच्छा जाहिर की है. बांझपन को जीवन में होने वाले प्रमुख तनावों में से  सबसे मुख्य कारणों में से एक माना गया है. इसे अक्सर आत्मविश्वास की कमी, वयस्क होने की तरफ कदम बढ़ाने की धारणा में व्यवधान, भविष्य के लिये योजना बनाने में असमर्थता, पहचान और दुनिया को लेकर राय में बदलाव के रूप में परिभाषित किया जाता है. साथ ही व्यक्तिगत, आपसी और सामाजिक रिश्तों में भी बदलाव के रूप में माना जाता है. बांझपन और इसके उपचार से जूझ रहे दंपतियों में तनाव और चिंता का स्तर काफी ज्यादा होता है. वैसे तो तनावपूर्ण स्थितियों में चिंता होना एक सामान्य प्रतिक्रिया है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय शोध में यह बात सामने आई कि आम आबादी की तुलना में बांझ दंपतियों में चिंता का स्तर कहीं ज्यादा होता है. प्रजनन समाधान जैसे एआरटी उपचार-संबंधी अनुभव के परिणाम अक्सर नकारात्मक भाव के रूप में आते हैं. दरअसल, गर्भधारण की अनिश्चितता के साथ-साथ उपचार की विफलताओं को लेकर निराशा की वजह से ऐसा होता है. इसके साथ ही, क्रॉनिक और गंभीर तनाव और मनोवैज्ञानिक बीमारियां, एआरटी उपचार की सफलता को काफी ज्यादा प्रभावित करती है, जिसमें फॉलो-अप संभवत: एक दुष्चक्र बना रही है.

विशिष्ट बांझपन-

तनाव के आयामों में सामाजिक चुनौतियां शामिल हैं (जैसे, अकेलापन; अलगाव महसूस होना; परिवार और दोस्तों के साथ वक्त बिताने में असहजता और तनाव महसूस होना; टिप्पणियों को लेकर संवेदनशीलता और बांझपन के रिमांडर्स), वयस्क के रूप में विकसित होने संबंधी चिंताएं (जैसे, अपनी पहचान पाने के लिये पितृत्व एक जरूरी पड़ाव और जीवन का मुख्य लक्ष्य), भावनात्मक निकटता और यौन सुख में कमी; आत्मविश्वास का कम होना. इसलिये, बांझपन से जूझ रहे दंपतियों के लिये विशेष सहायता समूहों  की जरूरत को काफी महत्व मिला है, खासकर आज के कोविड के समय में.

सहायता समूह किस तरह सहायता करने के तंत्र में मदद कर रहे हैं?

कई बार रोगियों और दंपतियों को उपचार के दौरान एक मनोवैज्ञानिक या थैरेपिस्ट के पास जाने के बारे में पूछा जाता है. हालांकि, बांझपन से जूझ रहे कई दंपति इच्छाओं को पूरा करने के क्रम में, अपनी भावनाएं प्रभावित दंपतियों से साझा करने के लिये आगे आए हैं. ऐसे में सहायता करने वाले कम्युनिटी ग्रुप एकजुट होते हैं और बांझपन के कलंक से बाहर आने में मदद कर सकते हैं. साथ ही इस ग्रुप ने अन्य दंपतियों के साथ समान अनुभवों को जानने का मौका दिया. इससे दंपतियों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि बांझपन की समस्या से गुजरने वाले वे अकेले नहीं हैं, साथ ही यह एहसास दिलाया कि उनकी प्रतिक्रियाएं, भावनाएं और संघर्ष सामान्य हैं और इस तरह उनके अकेलेपन को कम किया.

सहायता करने के कई सारे मॉडल्स के साथ, विशेष सपोर्ट ग्रुप, तनाव के उनके कारकों से लड़ने में उनकी मदद करते हैं. सहायक मॉडल, इनफर्टिलिटी संबंधी तनाव के विभिन्न आयामों का प्रबंधन करने के साथ-साथ परेशानी के अनुरूप मदद विकसित करने में अहम भूमिका निभाता है. हालांकि, सपोर्ट ग्रुप भी गहराई में जाकर, आत्मनिरीक्षण, मूल्यांकन कर समस्या के मूल कारण का पता लगाते हैं और फिर मन को शांति मिलती है. रोगी के अनुरूप काउंसलिंग सेंटर्स, विभिन्न रोचक थैरेपीज जैसे फोकस ग्रुप चर्चा, व्यक्तिगत मूल्यांकन के जरिए उन्हें अपने डर, चिंताओं और घबराहट को बाहर निकालने में मदद करते हैं और संतुलित आहार, सोने के सेहतमंद रूटीन के साथ दंपतियों को सेहतमंद दिनचर्या बनाए रखने में मदद करते हैं. साथ ही उनकी मानसिक और शारीरिक समस्याओं को कम करते हैं.

लंबे समय तक इनफर्टिलिटी होने से दोनों ही पार्टनर में अकेलापन और टूट जाने का गंभीर अनुभव हो सकता है. बांझपन जीवन की सबसे निराशानजक समस्या है, जिसका सामना दंपति करते हैं. सेहत से जुड़ी ढेर सारी चर्चाओं और अनिश्चितताओं के साथ, यह बांझपन अधिकांश दंपतियों में भावनात्मक उथल-पुथल पैदा कर सकती है. संयोग से, बांझपन उपचार के लिये नई और ज्यादा प्रभावी तकनीकें और सहयोगी तंत्र, लगातार विकसित हो रहे हैं.

बांझपन का इलाज है न, पढ़ें खबर

जब गर्भनिरोधक के बिना 1 वर्ष तक कोशिश करने के बाद भी स्वाभाविक रूप से कोई विवाहित जोड़ा गर्भधारण करने में अक्षम रहता है तो उसे बां झपन कहा जाता है. भारत में 10 से 15% जोड़े बां झपन से पीडि़त हैं. यह कई कारणों से हो सकता है जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायराइड, मोटापा, हारमोनल समस्याएं और पौलिसिस्टिक  अंडाशय सिंड्रोम पीसीओएस.

इस के अलावा गलत लाइफस्टाइल की आदतें जैसे तंबाकू, शराब और खराब भोजन का सेवन और बिना शारीरिक मेहनत के जीवन जीने के परिणामस्वरूप होता है. यहां यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि बां झपन के कुल मामलों में एकतिहाई मामलों को महिला साथी, एकतिहाई मामलों में पुरुष साथी और बाकी मामलों में दोनों साथी इस में बराबर के भागीदार होते हैं. इसलिए यह सम झना आवश्यक है कि बां झपन सिर्फ एक महिला से जुड़ा मुद्दा नहीं है जैसाकि समाज अभी भी सोचता है.

अकसर देखा गया है कि पुरुष साथी में कई समस्याएं जैसे इरैक्टाइल डिस्फंक्शन यानी नपुंसकता और एजोस्पर्मिया यानी शुक्राणुओं की अनुपस्थिति होती है जिस से बां झपन की स्थिति आ जाती है. कुछ जोड़े समस्या की गहराई में पहुंचे बिना बच्चे पैदा करने की कोशिश करते रहते हैं. उन में से कई बाबाओं से भी संपर्क करते हैं और उन के समाधान के लिए  झाड़फूंक का सहारा लेते हैं.

सर्वोत्तम समाधान का विकल्प

बां झपन एक मैडिकल समस्या है और इसे दूर करने के लिए चिकित्सकीय समाधान की आवश्यकता होती है. दुनिया में 25 जुलाई, 1978 को पहला ‘टैस्ट ट्यूब बेबी,’ लुईस ब्राउन, पैदा हुई थी. लुईस का जन्म इनविट्रो फर्टिलाइजेशन या आईवीएफ प्रक्रिया से हुआ था. ‘इनविट्रो’ शब्द का अर्थ ‘किसी के शरीर के बाहर’ है और फर्टिलाइजेशन या निषेचन वह प्रक्रिया है जहां मादा का अंडा और पुरुष के शुक्राणु को जीवन बनाने के लिए एकसाथ फ्यूज किया जाता है. इस प्रकार अंडा और शुक्राणु शरीर के बाहर महिला के गर्भाशय के बजाय एक लैब में मिलते हैं और इसे बाद में गर्भाशय में डाल दिया जाता है.

यहीं से असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी यानी एआरटी का भी जन्म हुआ. आईवीएफ, एआरटी की कई विधियों में से सिर्फ एक प्रक्रिया है. पिछले 44 वर्षों में दुनिया तकनीकी रूप से काफी आगे निकल चुकी है जिस से कई और एआरटी विकल्प उपलब्ध हुए हैं जिन में इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजैक्शन (आईसीएसआई) और इंट्रायुटराइन इनसेमिनेशन (आईयूआई) शामिल हैं.

आइए इन चिकित्सा समाधानों को सम झते हैं ताकि विवाहित लोग अपनी बां झपन की समस्याओं के सर्वोत्तम समाधान का विकल्प चुन सकें.

जब एक दंपती 1 वर्ष से अधिक समय से स्वाभाविक रूप से बच्चा पैदा करने में असमर्थ रहें तो सर्वप्रथम उन्हें एक बां झपन विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिए. हालांकि यहां यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि कुछ जोड़े अपने जीवन में अपनी इच्छा से बाद में गर्भधारण करना चाहते हैं, इसलिए 1 वर्ष की अवधि सभी जोड़ों के लिए लागू नहीं होती है. इस काउंसलिंग के दौरान दंपती से मैडिकल इतिहास पर चर्चा की जाती है. यहां यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि बां झपन उपचार 100% सफलता की गारंटी नहीं देता है, इसलिए जोड़ों को इस प्रक्रिया के किसी भी जोखिम और दुष्प्रभावों को पहले ही जानना चाहिए.

ब्लड टैस्ट अल्ट्रासाउंड

इस के बाद विवाहित दंपती की समस्या की जड़ को सम झने के लिए रक्त परीक्षण (ब्लड टैस्ट) और स्कैन किए जाते हैं ताकि मधुमेह, उच्च रक्तचाप या थायराइड जैसी किसी भी पूर्व मौजूदा स्थिति को सम झा जा सके. हारमोन के स्तर और अल्ट्रासाउंड की जांच के लिए ब्लड टैस्ट भी किया जाता है ताकि यह जांचा जा सके कि महिला के गर्भाशय और अंडाशय में पीसीओएस, फाइब्रौएड्स या ऐंडोमिट्रिओसिस जैसी कोई वृद्धि है या नहीं. इस से यह पता लगाने में भी मदद मिलती है कि क्या महिला के अंडाशय में अंडे हैं जिन का उपयोग इलाज के लिए किया जा सकता है?

वीर्य विश्लेषण

वीर्य तरल पदार्थ है जिस में शुक्राणु होते हैं. शुक्राणुओं की संख्या, उन के आकार और उन की गति की जांच के लिए पुरुष साथी के वीर्य का विश्लेषण किया जाता है क्योंकि ये तीनों एक जोड़े की प्रजनन क्षमता के लिए आवश्यक हैं.

फौलोअप कंसल्टेशन

इन परीक्षणों के परिणाम घोषित होने के बाद विशेषज्ञ के साथ एक फौलोअप कंसल्टेशन फिक्स की जाती है. इस में निष्कर्षों पर चर्चा की जाती है जिस के बाद उपचार पर चर्चा होती है. इस में एक सामान्य चिकित्सक या ऐंडोक्राइनोलौजिस्ट के साथ फौलोअप शामिल हो सकती है जिस में किसी भी मौजूदा बीमारी के लिए दवा शुरू करने के लिए जो प्रजनन में बाधा उत्पन्न कर रही है पर चर्चा की जाती है.

ऐसा इसलिए है क्योंकि कई मामलों में अन्य बीमारियों के ठीक होने से दंपती जोड़े स्वाभाविक रूप से ही गर्भधारण कर लेते हैं. अन्यथा रोगियों के साथ एआरटी उपचार योजना पर चर्चा की जाती है, उन की सहमति ली जाती है और फिर उपचार शुरू होता है. कुछ मामलों में रोगियों को अधिक परीक्षण कराने के लिए भी कहा जा सकता है.

अंडाशय औषधि प्रयोग

इलाज के अंतर्गत महिला साथी को हारमोनल इंजैक्शन लेने की आवश्यकता होती है. एक सामान्य मासिकधर्म चक्र में हर महीने एक निश्चित संख्या में अंडा निकलता है. चूंकि एआरटी प्रक्रिया के लिए अधिक अंडों की उपलब्धता की आवश्यकता होती है, इसलिए हारमोनल इंजैक्शन द्वारा औषधि का प्रयोग यह सुनिश्चित करता है कि कई अंडे विकसित हों. महिला साथी को नियमित रूप से रक्त परीक्षण और अल्ट्रासाउंड की मदद से देखा जाता है कि दवाओं ने उसे कैसे प्रभावित किया है. फिर एक ट्रिगर इंजैक्शन दिया जाता है ताकि अंडे परिपक्व हो जाएं.

अंडा संग्रह/डिंब पिक और वीर्य संग्रह

अंडा संग्रह के दौरान मादा को ऐनेस्थीसिया के तहत रखा जाता है. अंडे की कल्पना करने के लिए योनि के माध्यम से एक अल्ट्रासाउंड छड़ी डाली जाती है जिस के बाद उन्हें सूई के साथ एकत्र किया जाता है. उसी दिन पुरुष साथी अपने वीर्य का नमूना प्रदान करता है. इस के बाद उन की गुणवत्ता की जांच की जाती है और अगले चरण के लिए केवल सर्वश्रेष्ठ वीर्य का ही उपयोग होता है.

फर्टिलाइजेशन और भू्रण स्थानांतरण

आईवीएफ और आईसीएसआई में फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया अलगअलग होती है. आईवीएफ में कई अंडों और शुक्राणुओं को फर्टिलाइजेशन के लिए एक इनक्यूबेटर में रखा जाता है.

आईसीएसआई में एक अच्छे शुक्राणु को अंडे में डाला जाता है. किसी भी प्रक्रिया में इस प्रकार बनने वाले भू्रण को 5-6 दिन यानी तब तक विकसित होने दिया जाता है जब तक कि वे ब्लास्टोसिस्ट नामक चरण तक नहीं पहुंच जाते. इन ब्लास्टोसिस्ट्स को प्रीइंप्लांटेशन जेनेटिक टैस्टिंग (पीजीटी) का उपयोग कर के उन के आनुवंशिक मेकअप के लिए जांचा जाता है जो किसी भी आनुवंशिक रूप से असामान्य ब्लास्टोसिस्ट को हटाने में मदद करता है.

ऐसा ही एक ब्लास्टोसिस्ट भू्रण स्थानांतरण नामक प्रक्रिया की मदद से गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है. यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि एकसाथ कई भू्रण स्थानांतरित न हों वरना वे गर्भावस्था की जटिलताओं का कारण बन सकते हैं.

गर्भावस्था परीक्षण

स्थानांतरण के 12 दिनों के बाद गर्भावस्था परीक्षण किया जाता है ताकि यह देखा जा सके कि इस के परिणामस्वरूप गर्भावस्था हुई है या नहीं.

इंट्रायूटराइन इनसेमिनेशन (आईयूआई) आईवीएफ और आईसीएसआई के लिए आईयूआई चरण सही है. हालांकि आईयूआई के लिए प्रक्रिया थोड़ी अलग है. अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान वह प्रक्रिया है जिस में अंडे को निषेचित करने के लिए सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले शुक्राणुओं को गर्भाशय में इंजैक्ट किया जाता है. यहां उद्देश्य शुक्राणुओं को जितना हो सके अंडे के करीब लाना है. यह आईवीएफ और आईसीएसआई से अलग है क्योंकि अंडाणु और शुक्राणु दोनों को बाहरी वातावरण में संभाला जाता है.

आईयूआई आमतौर पर तब किया जाता है जब महिला साथी को ऐंडोमिट्रिओसिस, ग्रीवा संबंधी समस्याएं होती हैं, पुरुष बां झपन का अनुभव करता है या युगल अस्पष्टीकृत बां झपन का अनुभव करता है. यहां वीर्य का नमूना लिया जाता है जिसे सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले शुक्राणुओं का चयन करने और मलबे और वीर्य द्रव को हटाने के लिए धोया जाता है.

ओव्यूलेशन का समय (जब हर महीने महिला के अंडाशय से अंडा निकलता है) अल्ट्रासाउंड और रक्त परीक्षण की मदद से महिला साथी की बारीकी से निगरानी की जाती है. कुछ मामलों में रोगी प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने के लिए प्रजनन क्षमता की दवा भी ले सकता है. स्थानांतरण के 12 दिनों के बाद एक गर्भावस्था परीक्षण लिया जाता है ताकि यह देखा जा सके कि इस के परिणामस्वरूप गर्भावस्था हुई है या नहीं.

सैल्फ साइकिल एवं डोनर साइकिल

जब एआरटी प्रक्रिया महिला और पुरुष भागीदारों के अंडों और शुक्राणुओं की मदद से की जाती है तो इसे सैल्फ साइकिल कहा जाता है. कुछ जोड़ों में या तो एक या दोनों फिर साथी पर्याप्त शुक्राणु या अंडे का उत्पादन नहीं कर सकते हैं. ऐसे मामलों में डोनर की आवश्यकता होती है.

यहां या तो अंडे या शुक्राणु या फिर दोनों ही डोनर से लिए जाते हैं, जैसा भी मामला हो, उस के अनुसार प्रक्रिया की जाती है. यह एक डोनर साइकिल है. इन विकल्पों पर बां झपन विशेषज्ञ द्वारा चर्चा की जाती है और इलाज शुरू करने से पहले रोगियों की सहमति ली जाती है.

-डा. क्षितिज मुर्डिया

सीईओ और सह संस्थापक, इंदिरा आईवीएफ.

बढ़ती उम्र बांझपन का कारण तो नहीं बन जाएगी?

सवाल-

मेरी उम्र 34 साल है. अगले 5 सालों तक मैं और मेरे पति दोनों कैरियर पर फोकस करना चाहते हैं. कहीं बढ़ती उम्र बांझपन का कारण तो नहीं बन जाएगी और हम अपनी प्रजनन क्षमता कैसे सुरक्षित रख सकते हैं?

जवाब- 

34 साल महिलाओं के लिए प्रजनन क्षमता के हिसाब से एक महत्त्वपूर्ण उम्र है, क्योंकि हर महिला एक निश्चित संख्या में अंडों के साथ जन्म लेती है, जिसे ओवेरियन रिजर्व कहते हैं. उम्र के साथ यह रिजर्व घटता जाता है और 35 के बाद ये ओवेरियन रिजर्व तेजी से कम होने लगते हैं. इसलिए

35 के पहले ही फैमिली प्लानिंग कर लेनी चाहिए. बहुत देर नहीं करनी चाहिए. लेकिन आज कई लोग बहुत सारे कारणों से 35 के बाद फैमिली प्लानिंग करते हैं.

ऐसी स्थिति में हमारे पास कई विकल्प उपलब्ध हैं, जैसे एग फ्रीजिंग और ऐंब्रयो फ्रीजिंग आदि. अगर आप यह विकल्प नहीं चुनना चाहती हैं, तो एएमएच ब्लड टैस्ट करा लें, जिस से आप को पता चल जाएगा कि आप की प्रजनन क्षमता कैसी है और आप कितना डिले कर सकती हैं. इस के अलावा आप अपने खानपान पर ध्यान दें. अपनी डाइट में फल, सब्जियां, सूखे मेवे, खजूर आदि शामिल करें. ये सेहत के लिए जरूरी हैं और अंडाशय और गर्भाशय की सेहत के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं. अपनी प्रजनन क्षमता को बेहतर बनाए रखने के लिए शराब और धूम्रपान से दूर रहें, क्योंकि इन का सीधा प्रभाव अंडों और गर्भाशय पर पड़ता है.

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महिलाओं के जीवन में मां बनना सबसे बड़ा सुख माना जाता है लेकिन आजकल की आधुनिक जीवनशैली और अन्‍य कारणों की वजह से अब महिलाओं में बांझपन यानि इनफर्टिलिटी की समस्‍या बढ़ रही है. अगर आप भी बांझपन का शिकार हैं या इससे बचना चाहती हैं तो आइए जानते हैं औनलाइन हेल्थकेयर कंपनी myUpchar से इसके कारण, लक्षण और इलाज के बारे में.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- आधुनिक महिलाओं में बांझपन की बीमारी का कारण और निदान

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