इंटरसिटी एक्सप्रैस: भाग-2

प्रेम जीजान लगा कर खेत में काम करने लगा. फिर खेत सोना क्यों न उगलता. अब मां कहतीं, ‘‘प्रेम, ब्याह कर ले,’’ तो वह कहता, ‘‘मां, अब मुझे बस तुम्हारी सेवा करनी है.’’ मां अपने लाल को गले लगा लेतीं. अपनी बहू की आस को यह सोच कर दबा देतीं कि कम से कम श्रवण कुमार जैसा बेटा तो साथ है. मांबेटा अपनी दुनिया में बहुत खुश थे.

कभीकभी किसी शाम को इंटरसिटी ऐक्सप्रैस की आवाज प्रेम को अंदर तक हिला जाती. वह अपना सिर पकड़ कर बैठ जाता. पुराने जख्म हरे हो जाते. मां सब समझती थीं, इसलिए वे बेटे को दुलारतीं, उसे अपने बचपन के किस्से सुनातीं, तो वह संभल जाता. एक दिन महल्ले में शोर सुन कर लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई. प्रेम भी शोर सुन कर वहां पहुंचा तो अवाक रह गया. मधु के चाचा और चाची ने मधु का सामान घर के बाहर फेंक दिया था. मधु को देख कर तो वह अवाक रह गया. समय की गर्द ने जैसे उस की आभा ही छीन ली थी. वह अपनी उम्र से काफी बड़ी लग रही थी. उस की चाची जोरजोर से कह रही थीं, ‘‘कुलच्छिनी को पति ने छोड़ दिया तो आ गई हमारी छाती पर मूंग दलने. हम से नहीं होगा कि हम मुफ्त की रोटी तोड़ने वाले को अपने घर में रखें.’’ चाचाचाची ने घर का दरवाजा बंद कर लिया. घर के आसपास लगी भीड़ धीरेधीरे छंट गई. घर के बाहर केवल मधु और मधु का हाथ पकड़े नन्ही बिटिया ही रह गई. प्रेम ने महल्ले वालों से सुना था कि मधु के पति ने मधु को तलाक दे दिया है. एकदो बार मां ने भी प्रेम से इस बारे में बात की थी. परंतु आज की घटना बहुत अप्रत्याशित थी. मधु सालों बाद उसे इस हाल में दिखाई देगी, उस ने यह सपने में भी नहीं सोचा था. प्रेम दूर खड़ा मांबेटी को रोता हुआ देखता रहा. उन का रोना उस के दिल को छू रहा था, लेकिन वह पता नहीं कैसे अपने को रोके हुआ था. फिर अचानक वह आगे बढ़ा और लपक कर मधु की बिटिया को गोद में उठा लिया. रोरो कर जारजार हुई मधु ने चौंक कर नजरें उठाईं तो प्रेम को देख कर उस की आंखें और भी नम हो गईं. प्रेम मधु की बिटिया को ले कर तेज चाल से अपने घर की ओर चल दिया. अपनी बिटिया का रोना सुन कर मधु भी प्रेम के पीछेपीछे भाग चली, बिलकुल वैसे ही जैसे बछड़े के पीछे गाय भागती है.

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प्रेम ने धड़ाक से घर का दरवाजा खोला. गेहूं बीनती प्रेम की मां उस की गोद में एक बच्ची को देख कर चौंक गईं. ‘‘किस की बिटिया है, प्रेम?’’ उन्होंने प्रेम से पूछा, तभी पीछेपीछे आई मधु दरवाजे पर आ कर रुक गई. अवाक खड़ी मां कभी मधु, कभी प्रेम तो कभी प्रेम की गोद में झूलती बच्ची को देखती रहीं. फिर उन्होंने मधु का हाथ पकड़ा और उस के सिर पर हाथ फेर कर कहा, ‘‘मधु, अब यह ही तेरा घर है, अब तुझे ही संभालना है हम सब को.’’ मां की इस बात पर मधु के गालों पर अश्रुधारा बहती गई, तो मां ने मधु और मधु की बिटिया दोनों को गले लगा लिया. मां ने अगले दिन ही एक वकील को घर बुलाया और 2 दिनों के भीतर ही मधु और प्रेम का विवाह करवा दिया. पासपड़ोस के लोगों ने लाख नाकमुंह सिकोड़े, लेकिन मां ने ऐसी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया. मधु की बिटिया अनुभा अब घर की बिटिया हो गई.

समय गुजरता गया. मां नहीं रहीं. अनुभा और प्रेम का नाता पितापुत्री से बढ़ कर एक सखा और सखी का हो गया. शुरू में मधु को अनुभा की चिंता रहती थी क्योंकि बहुत कुछ सुन रखा था उस ने सौतेले पिताओं की करतूतों के बारे में. लेकिन प्रेम ने मधु की सारी शंकाओं को दूर कर दिया था. प्रेम, अनुभा को अपने कंधे पर बैठा स्कूल ले जाता और रोज शाम को रेलवे स्टेशन पर इंटरसिटी ऐक्सप्रैस दिखाने ले जाता. प्रेम के कंधे पर बैठी नन्ही अनुभा खुशी में चिल्ला कर हाथ हिलाती, प्रत्युत्तर में इंटरसिटी का ड्राइवर अपना हाथ हिलाता. अनुभा और प्रेम को देख कर कौन कह सकता था कि दोनों में खून का रिश्ता नहीं है. अगर अनुभा बीमार पड़ती तो रातरात भर जाग कर प्रेम उस की तीमारदारी करता. प्रेम को तकलीफ होती तो अनुभा बीमार पड़ जाती. मधु का पूर्व पति दीपक एकदो बार मधु के घर आया पर मधु की फटकार ने उस के रास्ते घर के लिए बंद कर दिए. दीपक का आना प्रेम की घबराहट बढ़ा देता है, यह बात मधु खूब जानती थी. ऐसा ही मधु ने अपने चाचाचाची के लिए भी किया. दरअसल, वह अपने हर अतीत को पूरी तरह भुलाना चाहती थी.

प्रेम की मां की इच्छा थी कि अनुभा डाक्टर बने और अनुभा ने अपनी दादी से किया गया यह वादा भी खूब निभाया. अनुभा कब कसबे के स्कूल से शहर के मैडिकल कालेज में डाक्टरी पढ़ने लगी, पता ही नहीं चला. आज अनुभा के कालेज में दीक्षांत समारोह था. मुख्य अतिथि से अपनी बिटिया को डिग्री लेते देख प्रेम और मधु गर्व से दोहरे हो गए. समारोह के बाद अनुभा ने एक सुधीर नाम के लड़के और उस के मातापिता से दोनों को मिलवाया. सुधीर, अनुभा के साथ ही डाक्टरी पढ़ रहा था. प्रेम और मधु एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. सुधीर के पिता दोनों की असमंजस को समझ गए. वे प्रेम का हाथ थाम कर बोले, ‘‘अरे भई, संबंध बनाने हैं आप लोगों से.’’ सुधीर के मातापिता ने उन दोनों को अगली सुबह नाश्ते पर आमंत्रित किया, तो उन दोनों के पास इनकार करने की कोई वजह ही नहीं थी. अगला दिन एक नई परिभाषा ही ले कर आया. सुधीर के मातापिता ने अनुभा को बहू बनाने की इच्छा व्यक्त कर दी. इतना अच्छा लड़का, वह भी इकलौता, उस पर इतना अच्छा परिवार, न की गुंजाइश ही कहां थी प्रेम और मधु के लिए? सुधीर के मातापिता ने जिद कर के प्रेम, मधु और अनुभा को अपने घर के गैस्ट हाउस में ही रोक लिया. फिर पूरे 2 दिन तक दोनों परिवार सैरसपाटे और पिकनिक में व्यस्त रहे. दोनों परिवार इतना घुलमिल गए, जैसे बहुत पुरानी जानपहचान हो.

आगे पढ़ें- प्रेम की प्यारी बिटिया अनुभा का ब्याह जो था. पूरा घर…

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