Kamala Harris के साथ हारी हैं महिलाएं भी, ‘गर्भपात से बैन हटाने के लिए चल रहा संघर्ष’

हाल ही में अमेरिका के सब से अधिक उम्र (78 साल) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने महिला अधिकारों की वकालत करने वाली अपनी प्रतिद्वंद्वी कमला हैरिस (Kamala Harris) को हरा दिया. यह हार क्या सिर्फ हैरिस की है या फिर इस के पीछे पूरी महिला जाति की हार छिपी हुई है? दुनिया के सब से शक्तिशाली देश की महिलाएं अपनी पसंद के प्रतिनिधि को राष्ट्रपति बनाने में नाकाम रहीं और अब आने वाले 4 साल डरडर कर जीने को विवश रहेंगी.

उन में इतनी कूबत नहीं थी कि वे एक लंपट, महिला अधिकारों को नजरअंदाज करने वाले, रंगभेदनस्लभेद का हिमायती, सनकी और विलासी वृद्ध व्यक्ति को इस गद्दी पर काबिज होने से रोक पातीं और महिलाओं के लिए काम करने वाली महिला प्रतिनिधि को अपना राष्ट्रपति चुन पातीं.

सुप्रीम कोर्ट के रो बनाम वेड फैसले और गर्भपात को ले कर संवैधानिक अधिकार के निर्णय को पलटने के बाद अमेरिका के पहले राष्ट्रपति चुनाव में जीत मिली कट्टरपंथी और औरतों को एक वस्तु सम?ाने वाले ट्रंप को. गर्भपात के मुद्दे को ले कर महिलाएं बड़ी संख्या में हैरिस का समर्थन करती दिखी थीं. मगर हैरिस के पहली महिला राष्ट्रपति बनने की संभावना को ?ाटका लग गया.

जीत के लिए उम्मीदवार को 270 इलैक्टोरल वोटों की जरूरत थी और ट्रंप को 312 इलैक्टोरल वोट मिले. डैमोक्रेट हैरिस को सिर्फ 226 वोट ही मिले. रिपब्लिकन ने सीनेट और प्रतिनिधि सभा दोनों में जीत हासिल की.

गर्भपात से बैन हटाने के लिए चल रहा संघर्ष

अमेरिकी चुनाव अभियान के दौरान अबौर्शन यानी गर्भपात एक बड़ा मुद्दा था. अमेरिका में कई लोग अबौर्शन की मांग कर रहे हैं. कई लोग गर्भपात को महिला अधिकार से जोड़ कर देख रहे हैं. कमला हैरिस ने दावा किया था कि उन की सरकार आएगी तो गर्भपात को कानूनी तौर पर देशभर में मंजूरी दी जाएगी लेकिन ट्रंप के आने से गर्भपात की मांग करने वालों की चिंता अब बढ़ गई है.

दरअसल, 2022 के जून महीने में सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को मंजूरी देने वाले लगभग 5 दशक पुराने फैसले को पलट दिया था. गर्भपात को नैतिक और धार्मिक रूप से कोर्ट ने गलत करार दिया था. कोर्ट ने ऐंटीअबौर्शन ला को अपने अनुसार और कड़ा करने की बात भी कही थी. इसके बाद कई राज्यों में अबौर्शन क्लीनिकों पर ताला लगा दिया गया. क्लीनिक बंद होने की वजह से कई महिलाएं  मजबूरन घर पर असुरक्षित तरीके से अबौर्शन कराने को मजबूर हैं.

अबौर्शन के अधिकार का विरोध

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की पहली बहस में डोनाल्ड ट्रंप ने अबौर्शन पर स्पष्ट रुख अपनाने से इनकार किया था और इसे राज्यों पर छोड़ने की बात कही थी. ट्रंप का प्रशासन अमेरिका के अबौर्शन विरोधी आंदोलन के समर्थन में स्पष्ट रूप से खड़ा रहा. राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने एक ‘प्रोलाइफ’ राष्ट्रपति होने का दावा किया और अबौर्शन के खिलाफ कई प्रतिबंधों का समर्थन किया. ट्रंप ने 3 सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों को नियुक्त कर के अबौर्शन विरोधी आंदोलन को बल दिया जिस ने अबौर्शन के अधिकार को समाप्त कर दिया.

ट्रंप ने फेडरल जजों की नियुक्ति करते समय ऐसे उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जो अबौर्शन के खिलाफ थे जिस के कारण महिला अधिकार संगठनों और अबौर्शन समर्थक कार्यकर्ताओं ने इस पर आपत्ति भी जताई थी. अबौर्शन का अधिकार महिलाओं के लिए एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकार का विषय होने के बावजूद ट्रंप की नीतियों के कारण इन्हें कानूनी और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

अबौर्शन पर ट्रंप का सब से विवादास्पद कदम ‘मैक्सिको सिटी पौलिसी’ को रीवाइव करना था जिस में उन अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को आर्थिक सहायता नहीं दी जाती जो अबौर्शन सेवाएं प्रदान करते हैं या इस के पक्ष में हैं. यह नीति उन महिलाओं के लिए भी हानिकारक रही जिन्हें स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों पर निर्भर रहना पड़ता था.

ट्रंप का महिलाओं के प्रति नीचा नजरिया

ज्यादातर लोगों का मानना है कि ट्रंप एक रक्षक नहीं बल्कि एक भक्षक हैं. अमेरिकी इतिहास में यह एक अजीब मोड़ लगता है कि 2 राष्ट्रपति चुनावों में 2 महिला उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ने वाला एकमात्र व्यक्ति वह है जिस का महिलाओं को नीचा दिखाने का एक लंबा और स्पष्ट रिकौर्ड है. डोनाल्ड जे. ट्रंप ने बारबार अपने रास्ते में खड़ी महिलाओं पर हमला करने, उन्हें शर्मिंदा करने और धमकाने की कोशिश की है.

ट्रंप ने महिलाओं को डराने के लिए अपनी शारीरिक उपस्थिति और शारीरिक भाषा का इस्तेमाल किया है, परोक्ष रूप से धमकियां दी हैं और उन की योग्यताओं को इस तरह से कमतर आंका है जिसे कई महिलाएं खुले तौर पर लैंगिक भेदभाव मानती हैं.

ट्रंप के ट्विटर अकाउंट पर महिलाओं के लुक्स के बारे में कई अपमानजनक टिप्पणियाँ हैं. ट्रंप ने एक बार ‘सैलिब्रिटी अप्रैंटिस’ में एक प्रतिभागी से कहा था, ‘उसे घुटनों के बल देखना एक सुंदर तसवीर होगी.’ क्या आपको ऐसा लगता है कि यह उस व्यक्ति का स्वभाव है जिसे एक राष्ट्रपति के रूप में चुना जाना चाहिए था?

हिलेरी क्लिंटन ने एक किताब में लिखा, ‘‘उन्हें महिलाओं को अपमानित करना पसंद है, हम कितने घृणित हैं इस बारे में बात करना पसंद है. वे मु?ो डराने की कोशिश कर रहे थे.’’

सार्वजनिक और निजी जीवन में उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि महिलाएं उन के लिए इंसान के रूप में नहीं बल्कि सैक्स औब्जैक्ट के रूप में माने रखती हैं. यहां तक कि जिन महिलाओं को वे पसंद करते हैं और जिन की प्रशंसा करते हैं उन के साथ भी उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वे उन की खूबसूरती को सब से ज्यादा महत्त्व देते हैं.

उन्होंने अपने व्यवहार को अपने दफ्तरों, अपने रिसौर्ट्स और अपने टीवी शो में भेदभावपूर्ण नीतियों में बदल दिया. जो महिलाएं उन्हें आकर्षक लगीं उन्हें परेशान किया और अपने कर्मचारियों से उन महिलाओं को नौकरी से निकालने का आग्रह किया जिन्हें वे आकर्षक नहीं मानते थे.

ट्रंप का कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ भेदभाव करने का भी लंबा रिकौर्ड है. जब ट्रंप किसी महिला को नापसंद करते हैं तो उन की प्रवृत्ति उस के शारीरिक रूप का अपमान करने की होती है. जब वे किसी महिला को पसंद करते हैं तो वे इस के विपरीत करते हैं और तुरंत उस की सुंदरता की प्रशंसा करते हैं. अगर ट्रंप महिलाओं का सम्मान करते तो उन्हें इस बात की परवाह होती कि वे क्या सोचती हैं.

इवाना ट्रंप (ट्रंप की पहली पत्नी) ने तलाक के बयान में कहा था कि ट्रंप ने उन के साथ बलात्कार किया.

एक बार उन्होंने अपनी बेटी इवांका के क्बारे में कहा था, ‘‘मेरी बेटी इवांका 6 फुट लंबी है, उस की बौडी अच्छी है और उस ने मौडल के रूप में बहुत पैसा कमाया है. अगर इवांका मेरी बेटी नहीं होती तो शायद मैं उस से डेटिंग कर रहा होता.’’

विरोध में शुरू किया 4बी मूवमैंट

डोनाल्ड ट्रंप के हाल ही में पुन: निर्वाचित होने से महिला अधिकारों और लैंगिक समानता पर बहस फिर से शुरू हो गई है जिस से पूरे अमेरिका में ‘4बी मूवमैंट’ की नई लहर पैदा हो गई है. मूल रूप से दक्षिण कोरिया से उभरने वाला 4बी मूवमैंट महिलाओं को पुरुषों के साथ डेटिंग, विवाह, यौन संबंध और बच्चे पैदा करने से दूर रहने के लिए प्रोत्साहित करता है. इसे अमेरिका में विवादास्पद चुनाव के बाद अपनाया जा रहा है जहां गर्भपात के अधिकार जैसे मुद्दों ने केंद्रीय भूमिका निभाई. आंदोलन के अधिवक्ताओं का तर्क है कि विभिन्न सामाजिक नीतियों पर ट्रंप के रुख, विशेष रूप से अबौर्शन अधिकारों के प्रति उन के दृष्टिकोण ने महिलाओं को अपने निजी जीवन में अधिक कठोर रुख अपनाने के लिए प्रेरित किया है.

ट्रंप के फिर से चुने जाने के बाद से एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर ‘4बी’ बैनर के तहत पोस्ट में उछाल देखा गया है जिस में कई महिलाएं विरोध के रूप में पुरुषों के साथ संबंधों से बचने के लिए रैली कर रही हैं. इस मूवमैंट का सार है कि अगर वे हमारे शरीर पर कब्जा करना चाहते हैं तो हम उन्हें ऐसा नहीं करने देंगे.

एक सुखद संदेश

अमेरिकी चुनाव सारी दुनिया के लिए चाहे कैसा भी तमाशा रहे, एक बात तो उन्होंने साबित कर दी कि अमेरिका में जितना भी भेदभाव हो, रेसिज्म हो, ऊंचनीच हो, एक औरत को बिना पूर्व राजनीतिक पहुंच के उप राष्ट्रपति पद पर पहुंचना संभव है.

भारत में भी इंदिरा गांधी ने राज किया है. लंबा राज किया है, पर ज्यादा बड़ी बात थी कि वे जवाहर लाल नेहरू की बेटी थीं, जो 50 साल तक भारतीय राजनीति पर छाए रहे थे. दक्षिण भारतीय मां श्यामला गोपालन की बेटी कमला हैरिस के पास न कोई ऐसा परिवार था और न ही उन का पति या ससुर राजनीति में हैं, जिन्होंने उन्हें उंगली पकड़ कर सिखाया हो.

अमेरिका और भारत दोनों के लोकतंत्र अब लड़खड़ा रहे हैं. विचारों की स्वतंत्रता, नैतिकता, बराबरी, उदारता, औरतों के अधिकार सब संकट में हैं. दोनों जगह अब धर्म का जम कर प्रभाव बढ़ रहा है. ऐसे में एक औरत जो भारतीय और नीग्रोयाई खून की पैदाइश हो नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ कंधे से कंधा मिला कर चुनाव लड़ कर जीत पाई एक आश्चर्य है.

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पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को पुराने जमाने में धकेलने की पूरी कोशिश की थी. वे औरतों को दिखावे की और मनोरंजन की चीज समझते हैं. अगर कोई उन्हें खुश करे तो ही उस की कीमत है.

ट्रंप ने अमेरिका के गोरे नागरिकों का जम कर इस्तेमाल किया. उन को काले, लैटिनों, एशियाइयों से भिड़ने के लिए तैयार किया. अमेरिका और मैक्सिको के बीच सीमा पर एक दीवार बनवानी शुरू की ताकि यह जताया जा सके कि मैक्सिकन और दूसरे दक्षिण अमेरिकी जो गोरों, कालों और इस इलाके के मूल निवासियों के मिश्रित खून की कमला हैरिस की जीत और उन के राष्ट्रपति तक बन जाने के आसार हो जाना एक सुखद आश्चर्य है.

सब से बड़ी बात यह है कि श्यामला गोपालन और कमला ने अपने को हीन नहीं समझा और लगातार 1-1 कर के सीढि़यां चढ़ीं.

कमला ने मां के तलाक को सहा, खुद बहुत देर से तलाकशुदा से विवाह किया और उस के बच्चों को अपनाया और इन में कोई गोरा न था फिर भी वे उस दूसरे सर्वोच्च स्थान पर पहुंच गईं.

इस देश की औरतों के लिए कमला हैरिस हमेशा एक आदर्श और चुनौती रहेंगी. औरतों को जाति, रंग, धर्म, पारिवारिक पृष्ठभूमि से नहीं, अपनी क्षमता और मेहनत पर भरोसा करना चाहिए. दुनियाभर में औरतें ग्लास सीलिंग के नीचे रहने को मजबूर हैं पर अगर कोई लगी रहे, जैसे भारत में ममता बनर्जी ने खुद की जगह बिना पारिवारिक पृष्ठभूमि के बनाई वैसे हर औरत के लिए रास्ता खुला है. ममता तो ऊंची जाति से आती हैं पर कमला ने रंग, मूल स्थान के पार्टीशन भी तोड़े.

अमेरिका आज बहुत अच्छा उदाहरण नहीं रहा है पर फिर भी उस का यह चुनाव भारतीय महिलाओं के लिए सुखद संदेश है.

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आखिर कौन हैं कमला हैरिस…

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह

अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को के काउंटी अल्मेडा की अदालत के कटघरे में एक 14 साल की लड़की थी. उस के फेस पर गहरा मेकअप था. अदालत की ज्यूरी सहित सभी उसे विचित्र नजरों से देख रहे थे. तभी उस लड़की के वकील के रूप में डिस्ट्रिक्ट एटार्नी कमला हैरिस ने ज्यूरी की ओर देख कर कहा, ‘‘कटघरे में खड़ी यह लड़की गैंगरेप का शिकार बनी है. मैं जानती हूं आप लोग नहीं चाहते कि यह लड़की आप लोगों के बच्चों के साथ खेले. पर इस देश का कानून मात्र गोरे लोगों को बचाने के लिए नहीं बना है.
कटघरे में खड़ी यह लड़की अभी मासूम है और इसे उन लोगों से सुरक्षा चाहिए, जो इसे जंगली जानवरों की तरह नोच खाने की ताक में बैठे हैं.’’

असिस्टेंट एटार्नी के रूप में अदालत में जब कमला हैरिस कटघरे में खड़ी लड़की की ओर अंगुली से इशारा कर के ज्यूरी की आंख से आंख मिला कर बात कर रही थीं, तब उन की कही एकएक बात ज्यूरी के दिल में उतरती जा रही थी. इस केस को कमला हैरिस जीत गई थीं, लड़की के साथ रेप करने वाले अपराधी ठहराए गए थे. पर अदालत से निकलने के बाद वह लड़की गायब हो गई थी.

डिस्ट्रिक्ट एटार्नी कमला हैरिस और पुलिस ने उस लड़की की बहुत खोज की, पर उसका कहीं पता नहीं चला. वकील के रूप में कैरियर बना चुकी कमला हैरिस सदैव दमन का शिकार बनी युवतियों के लिए लड़ती रहीं. वकील के रूप में उन का अटेंशन हमेशा टीनएज प्रोटक्शन पर रहा.

पुलिस जब सेक्स बेचना अपराध है, इस बात पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही थी, तब कमला हैरिस देख रही थीं कि युवा लड़कियों को आर्थिक तंगी की वजह से ड्रग एडिक्ट बना कर अथवा जबरदस्ती गंदे व्यवसाय में धकेला जा रहा है.

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कमला हैरिस का मानना था कि जो लड़कियां इस सैक्स के बिजनेस से बाहर जाना चाहती हैं, उन के लिए समाज में खड़ी होने का क्या स्थान है? सेन फ्रांसिस्को जैसी जगह में इन लड़कियों के लिए सेफ हाऊस कहां है? आखिर कमला हैरिस और उन के साथियों के प्रयास से जनवरी, 2004 में इस तरह की लड़कियों के लिए एक सेफ हाऊस शुरू किया गया.

यही कमला हैरिस आज 2020 में अमेरिका के वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव लड़ने वाली डेमोक्रेटिक पार्टी की अत्यंत चर्चित उम्मीदवार हैं. अमेरिका के प्रेसीडेंट ट्रंप को इस समय अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार जो विडेन की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी चिंता अब वाइस प्रेसीडेंट की उम्मीदवार कमला हैरिस की है.
जो बिडेन ने कमला हैरिस को वाइस प्रेसीडेंट के रूप में पसंद कर के प्रेसीडेंट ट्रंप के इंडियन मतदाताओं के गणित पर पानी फेर दिया है. क्योंकि कमला हैरिस की जड़ इंडिया में है.

कमला हैरिस की मां श्यामला गोपालन मूल रूप से तमिलनाडु की थीं. पढ़ाई के लिए वह 1960 में मद्रास से अमेरिका गईं और वहां कैंसर रिसर्चर के रूप में काम किया. श्यामला ने अमेरिका में ही इकोनौमी के प्रोफेसर डोनाल्ड हैरिस के साथ शादी की, जो अफ्रीका के जमैका के रहने वाले थे.

जब कमला 5 साल की थी, तभी दोनों में तलाक हो गया था. इस तरह कमला हैरिस को उन की मां श्यामला और उन के दादा गोपालन, जो भारत में ब्रिटिश सरकार के रेवेन्यू डिपार्टमेंट में अफसर थे, से भारतीय संस्कार मिले.

कमला हैरिस को एक ब्लैक वुमन के रूप में अमेरिका में काफी संघर्ष करना पड़ा है. परंतु वह कभी अपनी चमड़ी के रंग की वजह से पीछे नहीं हटीं. वकील के रूप में अपना कैरियर शुरू करने के बाद कमला हैरिस एक के बाद एक क्षेत्र में विजयी होती गईं.

हार्वर्ड कालेज से ग्रेज्युएशन करने के बाद कमला ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई की और वकील के रूप में काम करना शुरू किया. 1990 में कमला को कैलिफोर्निया के अल्मेडा शहर में असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट एटार्नी बनने का मौका मिला.

2003 में कमला सेन फ्रांसिस्को की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में चुनी गईं. इस पद तक पहुंचने वाली कमला हैरिस पहली महिला थीं. इस चुनाव में उन्होंने अपनी बौस रह चुकी टेरेस हलीनन को हरा कर सब को चौंका दिया था. कमला हैरिस का स्वभाव ही सब को चौंकाने वाला था. कमला हैरिस ने 2 बार सेन फ्रांसिस्को की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के बाद 2011 में कैलिफोर्निया की एटार्नी जनरल पर अपना दावा ठोंका. कमला 2 बार अपने प्रतिद्वंद्वियों को हरा कर राज्य की एटार्नी जनरल बनीं. इस पद पर कमला पहली अश्वेत महिला थीं.

कैलिफोर्निया जैसे समृद्ध राज्य की एटार्नी जनरल बनने के बाद कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी में अपना दबदबा बढ़ाती रहीं. जब अमेरिका के प्रेसीडेंट बराक ओबामा थे, तब ओबामा की फ्रंट ट्रेजर के रूप में काम कर के कमला प्रेसीडेंट ओबामा की नजरों में चढ़ गईं.

2016 में जब कमला ने कैलिफोर्निया की सीनेटर के रूप में अपना काम किया तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ. हैरानी की बात यह थी कि डेमोक्रेटिक पार्टी में सीनेटर के रूप में उम्मीदवारी करने वाली कमला हैरिस हमेशा चुनाव जीतती रहीं.

इस का कारण गरीब, अश्वेतों, अल्पसंख्यकों, इमिग्रंट्स और गे कम्युनिटी पर उन की मजबूत पकड़ थी. समाज से उपेक्षित और अमेरिकी समाज के शिक्षित कहे जाने वाले लोग गे को धिक्कारते हैं. जबकि उन के न्याय के लिए कमला हैरिस हमेशा लड़ती रहीं.

उन के लिए कानून की लड़ाई लड़ते हुए कमला हैरिस का विरोध उन की पार्टी के तमाम नेताओं ने भी किया, परंतु कमला हैरिस इस लड़ाई में पीछे नहीं हटीं और उसी का परिणाम था कि गरीब पीडि़त अमेरिकियों ने कमला हैरिस को हमेशा बहुमत से चुनाव जिताया. जब कमला हैरिस से पूछा गया कि अन्याय से लड़ने के लिए इतनी जबरदस्त ताकत उन के अंदर कहां से आई तो उन्होंने संकोच किए बगैर कहा कि ‘मैं बचपन से ही ऐसे माहौल में पलीबढ़ी, जहां हम ने लोगों को अन्याय से लड़ते देखा है.

मेरे मातापिता भी जातिभेद के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लेते थे. बर्कले शहर में जहां मैं बड़ी हुई, वहां हमारी चमड़ी के रंग की वजह से पड़ोसी बच्चे मेरे और मेरी बहन के साथ खेलने नहीं आते थे.

इन सभी सामाजिक बुराइयों को देख कर मैं ने वकील बनने का निश्चय किया. इसीलिए मैं पीडि़त लोगों की लड़ाई लड़ रही हूं.’ आज कमला हैरिस अमेरिका में ‘लेडी ओबामा’ के रूप में जानी जाती हैं.

हैरानी की बात यह है कि जिन कमला हैरिस को डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रेसीडेंट के उम्मीदवार जो बिडेन ने उपराष्ट्रपति पद के लिए पसंद किया है. कमला हैरिस ने उन्हीं जो बिडेन के सामने पार्टी के प्राइमरी इलेक्शन में प्रेसीडेंट की उम्मीदवारी दर्ज कराई थी.

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जबकि यह चुनाव जीतने के बाद जो बिडेन अपना उपराष्ट्रपति किसे घोषित करेंगे, अमेरिका में इस की काफी चर्चा थी. आखिर जो बिडेन ने फाइटर लीडर कमला को पसंद किया और आज कमला हैरिस प्रेसीडेंट ट्रंप के सामने एक जबरदस्त ट्रंप कार्ड बन कर उभरी हैं.

कमला हैरिस इंडियन और अफ्रीकन मूल के लोगों को आकर्षित कर सकती हैं. क्योंकि कमला की मां इंडियन और पिता अफ्रीकन मूल के थे. ऐसे संयोगों में दोनों कम्युनिटी के लोग कमला हैरिस की उम्मीदवारी से खुश हैं, जिस से प्रेसीडेंट ट्रंप की नींद उड़ी हुई है.

कमला हैरिस को उम्मीदवारी के बाद अमेरीका में भी बहने लगी है ‘आईडेंटी पौलिटिक्स’ की हवा

आगामी नवम्बर माह में होने जा रहे अमरीकी राष्ट्रपति पद के चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति उम्मीदवार जो बिडेन ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारतीय मूल की कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार चुना है. 11 अगस्त 2020 को बिडेन ने ट्वीट किया, ‘मेरे लिए यह घोषणा करना बहुत सम्मान की बात है कि मैने कमला हैरिस को चुना है. वह एक निडर फाइटर, देश की बेहतरीन जनसेवक हैं.’ अगर चुनावों में 78 साल के बिडेन की जीत होती है तो वे सबसे ज्यादा उम्र के राष्ट्रपति होंगे, जबकि हैरिस की उम्र अभी महज 55 साल है. हैरिस वर्तमान में सीनेट की सदस्य हैं. वे कैलिफोर्निया की अटार्नी जनरल रह चुकी हैं. अमेरिका के इतिहास में अभी तक केवल दो बार कोई महिला उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनी हैं. 1984 में डेमोक्रेट गेराल्डिन फेरारो और 2008 में रिपब्लिकन सारा पाॅलिन को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया गया था. लेकिन दुर्भाग्य से दोनो में से कोई भी उपराष्ट्रपति नहीं बन पायीं.
पहली अश्वेत उम्मीदवार

तेजतर्रार अटार्नी जनरल के रूप में पहचान बनाने वाली कमला हैरिस अमेरिका में उपराष्ट्रपति पद की पहली अश्वेत उम्मीदवार हैं. उनकी मां का रिश्ता भारत के तमिलनाडु प्रांत से है, करीब 50 साल पहले वह अमरीका में पढ़ाई करने गई थीं, वहीं उन्होंने जमैका के रिचर्ड हैरिस से शादी की. उन दोनो की पहली संतान कमला देवी हैरिस का जन्म 1964 आॅकलैंड कैलिफोर्निया में हुआ. कमला को राजनीति और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के संघर्ष की घुटी मां की गोद में मिली है. श्यामला अल्पसंख्यकों के अधिकार की लड़ाई में अग्रिम पंक्ति भूमिका निभा चुकी हैं. आगामी सात अक्टूबर 2020 को जब उनकी रिपब्लिकन पार्टी के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार माइक पेंस से डिबेट होगी, तब लोगों को विश्वास है कि कमला हैरिस अपने सर्वश्रेष्ठ इंटलेक्चुअल ग्रुप मंे होंगी. क्योंकि मां की तरह वह भी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की मुखर प्रवक्ता हैं. गौरतलब है कि यह बहुप्रतीक्षित भिड़ंत ऊटा के साल्ट लेक सिटी में होनी है.

कमला हैरिस की पृष्ठभूमि

जैसा कि हमने ऊपर बताया है, कमला हैरिस की अमेरिका में पहचान एक भारतीय-अमेरिकन के रूप में है. उनकी मां श्यामला गोपालन कैंसर रिसर्चर थीं. कमला हैरिस के नाना पीवी गोपालन एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे. आजादी के बाद में वे एक सिविल सर्वेंट बने थे. जबकि कमला के पिता डोनाल्ड हैरिस जमैका के हैं. कमला हैरिस ने कहा कि जो बिडेन अमेरिकी लोगों को एकजुट कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी हमारे लिए लड़ने में बिताई है. राष्ट्रपति के तौरपर वह ऐसा अमेरिका बनाएंगे जो हमारे आदर्शों के अनुरूप होगा. गौरतलब है कि कुछ महीने पहले कमला हैरिस ने डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति चुनाव के लिए दावेदारी पेश की थी. लेकिन प्राइमरी चुनावों में उन्हें जो बिडेन और बर्नी सैंडर्स के आगे करारी हार मिली थी. तब उन्होंने जो बिडेन पर नस्लवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगाया था. फिर वो बहुत पीछे रह गईं.

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क्या भारतीय वोट खींच पायेंगी कमला?

वास्तव में जो बिडेन और कमला के बीच कोई बहुत अच्छे रिश्ते नहीं है, फिर भी अगर कमला को जो बिडेन ने उपराष्ट्रपति पद के लिए अपना रनिंग मेट बनाया है, तो उसके पीछे सिर्फ यह उम्मीद है कि कमला हैरिस अमरीका में महत्वपूर्ण बन चुके भारतीय मूल के वोटरों का वोट खींच पाएंगी. दरसअल इस उम्मीद का आधार यह है कि कमला हैरिस की मां भारतीय और पिता जमैका के होने के चलते उनकी दोनों कम्युनिटी में अच्छी पकड़ है. साथ ही दोनो ही कम्युनिटी के लोगों की उनके साथ सहानुभूमि है. चूंकि इन दिनों जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद अमरीका में श्वेत बनाम अश्वेत का मुद्दा काफी गरमाया हुआ है, इसलिए माना जा रहा है कि कमला हैरिस की अपील दोनो ही समुदायों में असरकारी होगी. मालूम हो कि कुछ दिनों पहले कमला ने अमरीकी मीडिया में एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने खुद के अश्वेत होने पर गर्व जताया था. कमला ने इसके साथ ही अपने लेख में भारतीय संस्कृति की भी तारीफ की थी. उन्होंने सोशल मीडिया में मसाला डोसा बनाते हुए एक वीडियो भी पोस्ट किया था.

ट्रम्प की बिन मांगी राय

अमरीका के मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने गैर जरूरी हस्तक्षेपों के लिए जाने जाते हैं. अब उन्होंने डेमोक्रेट पार्टी द्वारा उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में कमला हैरिस के चुने जाने पर अपनी प्रतिक्रिया दी है कि इससे वो हैरान हैं. ट्रंप का कहना है कि हैरिस से ज्यादा मेरे भारतीय समर्थक वोट हैं. लेकिन ट्रंप कुछ भी कहें कमला हैरिस की पहचान भारतीय अमेरिकी और अफ्रीकी अमेरिकी दोनों के तौरपर है. वह अच्छी वक्ता और स्कूलिंग के साथ ही रिसर्चर के तौरपर भी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. इसलिए ही बहुत सोच समझकर पांच दूसरे उम्मीदवारों के बीच में जो बिडेन ने उन्हें अपना रनिंग मेट चुना है. हालांकि इसके पीछे कोई बड़ी सैद्धांतिक बात नहीं है. वास्तव में इसके पीछे वही मंशा है, जो मंशा भारत में किसी जाति विशेष के उम्मीदवार को लोकसभा या विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए टिकट दी जाती है.

बस फर्क ये है कि भारत में जहां जाति का हिसाब किताब लगाया जाता है, वहीं अमरीका में समुदाय का हिसाब लगाया गया है. माना जा रहा है और इसे जो बिडेन ने सार्वजनिक तौरपर कहा भी है कि कमला जितनी भारतीय मूल की हैं, उतनी ही अफ्रीकी मूल की भी हैं. इसलिए उन्हें दोनो ही समुदाय के लोग प्यार करते हैं और उन पर भरोसा करते हैं. सवाल है जो बिडेन के इस घोषणा का आशय क्या है? वही कि अमरीका में ताकतवर भारतीय समुदाय उन्हें वोट दे. हाल के सालों में भारतीय मूल के लोगों को अमरीका की दोनो राजनीतिक पार्टियां महत्व दे रही हैं. क्योंकि भारतीय समुदाय आंशिक तौरपर किंगमेकर बन चुका है, सिर्फ अपने वोटों की बदौलत ही नहीं दिये जाने वाले चंदे की बदौलत भी उसने वजन हासिल किया है. एक अनुमान के मुताबिक इन चुनाव में भारतीय समुदाय 30 मिलियन डालर तक का चंदा दे सकता है. यही वजह है कि आज भारतीयों के अमरीका के राजनीति अच्छी खासी महत्ता बन चुकी है.

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