हिंदी फिल्म से मेरी एक बड़ी पहचान बनेगी-सयानी दत्ता

16 नवंबर, 2012 को रिंगो बनर्जी की मांबेटी की कहानी वाली बंगला फिल्म ‘ना हन्नीयते’ कोलकाता में प्रदर्शित हुई, तो दर्शकों ने रूपा गांगुली के साथसाथ इस फिल्म में अभिनेत्री रूपा गांगुली की बेटी का किरदार निभा कर इस फिल्म से अभिनय कैरियर की शुरुआत करने वाली नवोदित अदाकारा सयानी दत्ता को भी काफी पसंद किया था. इसी वजह से रिंगो बनर्जी ने सयानी दत्ता को अपनी अगली फिल्म ‘शदा कलो अचा’ में भी ग्लैमरस किरदार में ले कर उन्हें गांव की लड़की के किरदार को निभाने की चुनौती दी, जो बाद में बार डांसर बनती है.

सयानी दत्ता इस चुनौती पर खरी उतरीं. फिल्म को न सिर्फ कोलकाता में सफलता मिली, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भी इस फिल्म ने धूम मचाई थी. इस के बाद रिंगो बनर्जी ने सयानी दत्ता को अपने निर्देशन में तीसरी फिल्म ‘ए जे अच्छे सोहोर’ में भी अभिनय करने का अवसर दिया. यानी फिल्म दर फिल्म सयानी दत्ता की शोहरत बढ़ती ही गई.

अब तक सयानी 11 बंगला फिल्में कर चुकी हैं. हर फिल्म में वे खुद को बेहतरीन अदाकारा साबित करती रहीं. मगर अब जबकि उन्होंने बौलीवुड में कदम रखा है, तो कहीं न कहीं वे चूक गई हैं. 19 मार्च, 2021 से ओटीटी प्लेटफौर्म ‘जी 5’ पर स्ट्रीम हो रही निर्देशक सरमद खान की हिंदी हौरर फिल्म ‘द वाइफ’ में वे गुरमीत चौधरी के साथ नजर आ रही हैं.

पेश हैं, सयानी दत्ता से हुई हमारी ऐक्सक्लूसिव बातचीत के कुछ अंश:

आप को अभिनेत्री बनना था, तो फिर सहायक निर्देशक के तौर पर कैरियर शुरू करने की कोई खास वजह थी?

देखिए, मुझे बचपन से ही अभिनय के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करना था. मैं ने स्कूल व कालेज में काफी नाटकों में अभिनय किया. मैं ने ममता शंकर से कत्थक नृत्य भी सीखा. मगर अभिनय के क्षेत्र में कैसे आगे बढ़ा जाए, पता नहीं था. फिर मेरी मुलाकात कोलकाता की मशहूर रंगकर्मी व अभिनय प्रशिक्षक सोहाग सेन से हुई. उन से मैं ने काफी कुछ सीखा. सोहाग सेन ने ही सलाह दी थी कि बतौर सहायक निर्देशक काम करने से फिल्म मेकिंग व कैमरे के बारे में बहुत कुछ सीख सकोगी, जिस से बतौर अभिनेत्री काम करना आसान होगा.

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उन्होंने ही मुझे एक निर्देशक के पास भेजा, जिन के साथ बतौर सहायक निर्देशक मैं ने काम किया. अफसोस की बात यह है कि यह फिल्म आज तक प्रदर्शित नहीं हुई. उस निर्देशक ने उस के बाद कोई दूसरी फिल्म भी नहीं बनाई. लेकिन उन के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम कर मैं ने बहुत कुछ सीखा.

अपने 7-8 साल के अभिनय कैरियर को किस तरह से देखती हैं?

मैं ने पिछले 7-8 सालों में बहुत कुछ सीखा और जो कुछ सीखा उसी के भरोसे मैं बौलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाने आई हूं. यदि मेरा 7 साल का कैरियर अच्छा न गुजरा होता, तो मेरे लिए हिंदी फिल्म करना संभव न होता. 7 साल के दौरान मैं ने विविधतापूर्ण व चुनौतीपूर्ण किरदार निभाए, जिस से मेरे अंदर अभिनेत्री के तौर पर परिपक्वता आई और परिपक्वता का फायदा मुझे पहली हिंदी फिल्म ‘द वाइफ’ करने में मिला. मेरे कैरियर में टर्निग पौइंट तो मेरे कैरियर की पहली फिल्म ‘ना हनीयते’ ही थी.

उस वक्त रूपा गांगुली बहुत मशहूर थीं, उन के साथ पहली फिल्म करने का अवसर पा कर मुझे रूपाजी से काफी कुछ सीखने को मिला था और उन की शोहरत के चलते इस फिल्म को दर्शक मिले और बंगला फिल्म इंडस्ट्री में मेरी पहचान बनी थी.

हिंदी हौरर फिल्म ‘द वाइफ’ करने के पीछे कोई खास वजह रही या महज हिंदी फिल्म करने के लिए कर ली?

सच कहूं तो मुझे हिंदी फिल्म करनी थी. अगर आज मुझे कोई अंगरेजी या फ्रैंच भाषा की फिल्म मिलेगी, तो मैं दौड़ कर करना चाहूंगी. बंगला फिल्मों के मुकाबले हिंदी फिल्म इंडस्ट्री तो काफी बड़ी है, हिंदी फिल्मों के दर्शक काफी हैं. इसलिए हिंदी फिल्म तो करनी ही थी. पर इस फिल्म के किरदार ने भी मुझे इस से जुड़ने के लिए प्रेरित किया. हिंदी फिल्म करने से मेरी एक बड़ी पहचान बनेगी, जोकि केवल बंगला फिल्में करने से संभव नहीं है.

लेकिन कहा जा रहा है कि ‘‘द वाइफ’ में आप का अभिनय निखर नहीं पाया?

देखिए, मैं ने इस में आर्या नामक पत्नी का किरदार निभाया है. यह बहुत ही अलग तरह का किरदार है. मुझे जो प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं, वे काफी उत्साहवर्धक हैं. मैं यह मान सकती हूं कि फिल्म की गति धीमी है, पर हर निर्देशक की अपनी शैली होती है. मैं ने इस फिल्म को करते हुए काफी ऐंजौय किया और इस फिल्म में मेरे काम को देख कर इस फिल्म के प्रदर्शन से पहले ही मुझे दूसरी हिंदी फिल्म भी मिली.

आप की पहली हिंदी फिल्म ‘द वाइफ’ थिएटर के बजाय ओटीटी प्लेटफौर्म पर आई है. इस से आप कितना संतुष्ट हैं?

अगर हम इतना ज्यादा सोचेंगे, तो जो हमारे हाथ में है, वह भी हमारे हाथ से निकल जाएगा. फिल्म दर्शकों तक पहुंची, यही सब से बड़ी उपलब्धि है. मैं बहुत लोगों को जानती हूं, जिन की फिल्में पिछले लंबे समय से बनी बड़ी हैं, मगर रिलीज नहीं हो पा रही हैं. अभी भी कोविड-19 है. यह गया नहीं है. मगर जब फिल्म थिएटर/सिनेमाघरों में प्रदर्शित होती है, तो उस का अपना अलग अनुभव होता है.

बंगला भाषी होते हुए भी आप बहुत अच्छी हिंदी बोलती हैं. हिंदी कहां से सीखी?

कोलकाता में मेरे सभी दोस्त बंगाली ही हैं. बड़ी मुश्किल से आप को मेरी कोई बंगला भाषी दोस्त मिलेगी. उन के साथ बचपन से मैं हिंदी में ही बात करती आई हूं, जहां बंगाली कम पढ़ते हैं, वहां पर मारवाड़ी बच्चे ही ज्यादा पढ़ते हैं. कोलकाता में मेरे सारे दोस्त मारवाड़ी हैं, जिन से मेरी बातचीत हिंदी में ही होती है. मेरी मम्मी तो इंगिलश लिटरेचर की शिक्षक हैं, उन्हें तो हिंदी बिलकुल नहीं आती. घर के अंदर हम बंगाली या अंगरेजी भाषा में ही बात करते हैं.

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बंगला फिल्म इंडस्ट्री की ऐसी हालत क्यों है कि लोगों को काम नहीं मिल रहा है?

इस की मूल वजह यह है कि बौलीवुड की तरह बंगला फिल्म इंडस्ट्री बड़ी व मजबूत नहीं है. बौलीवुड या दक्षिण भारत की इंडस्ट्री से भी हमारी बंगला फिल्म इंडस्ट्री कमजोर है. यहां गिनेचुने फिल्म निर्माता हैं, जबकि बंगाली फिल्में काफी पसंद की जाती रही हैं. यहां रितुपर्णा घोष जैसे अति बेहतरीन फिल्म निर्देशक हैं, तो फिल्में तो अच्छी बननी ही हैं. मैं ने एक बार भी नहीं कहा कि फिल्में खराब बनती हैं. यदि आप बंगला फिल्में देखेंगे, तो हैरान रह जाएंगे. पर वही बात है कि बंगाली फिल्में देखने में और व्यापार करने में फर्क है.

कोई ऐसा किरदार, जिसे आप निभाना चाहती हैं?

पुलिस अफसर का किरदार निभाना पसंद करूंगी. इस के अलावा मेरी एक पसंदीदा फिल्म है ‘हम दिल दे चुके सनम’ इस में जिस किरदार को ऐश्वर्या राय बच्चन ने निभाया है, वह बहुत सशक्त किरदार है. मैं ऐसे किरदार निभाना चाहती हूं.

बंगला में सशक्त नारी किरदार वाली काफी फिल्में बनी हैं. उन में से कोई फिल्म है, जिसे आप हिंदी में करना चाहेंगी?

आप ने सही फरमाया. बंगला में तमाम पुरस्कार विजेता अति बेहतरीन फिल्में हैं. मगर मैं नहीं चाहती कि उन फिल्मों का रीमेक बने. बंगला में तमाम ऐसी फिल्में हैं, जिन का मैं ही कोई भी बंगाली नहीं चाहेगा कि उन का रीमेक किया जाए, क्योंकि वे हमारे लिए ताज हैं. तो हम अपना ताज किसी को नहीं देना चाहते.

लिटरेचर के साथसाथ बंगाली लोग नृत्य और गायन में भी आगे रहते हैं?

डांस और संगीत में तो बहुत ज्यादा आगे हैं. मैं संगीत का ‘सा’ भी नहीं जानती हूं. लेकिन आप सुष्मिता सेन या रानी मुखर्जी को देखिए. आप उन लोगों से बात करेंगे, तो आप को पता चल जाएगा. खुद बंगाली होने के चलते मैं इस बात को बेहतर समझती हूं. बंगालियों का एकदम अलग कल्चर है. सब के अपने अलगअलग कल्चर होते हैं. बंगालियों का एजुकेशन कल्चर है.

आप के शौक क्या हैं?

पेंटिंग करना. मैं हर तरह की पेंटिंग बनाती हूं.

क्या मन में किसी विचार के आने पर पेंटिंग बनाती हैं?

जब मैं कुछ अच्छा देखती हूं, तो मुझे ऐसा लगता है कि उसे पेंटिंग कर कागज पर उतारना चाहिए. मगर पेंटिंग्स बनाने में कल्पनाशक्ति ज्यादा होती है. वैसे अभिनय करते समय भी हमें अपनी कल्पनाशक्ति का ही सहारा लेना पड़ता है.

आप ने कोई खास पेंटिंग बनाई हो, जिसे देख कर कोई अच्छी प्रतिक्रिया मिली हो?

दरअसल, मैं ने अपनी पेंटिंग्स को अभी तक बाहर की दुनिया में किसी को ज्यादा नहीं दिखाया है, इसलिए किसी खास प्रतिक्रिया के मिलने की बात भी नहीं हुई. हां, मैं ने कई साल पहले बुद्धा की पेंटिंग बनाई थी, शायद उस वक्त मैं कालेज के फर्स्ट ईयर में थी. वह मेरी अब तक की सब से बेहतरीन पेंटिंग है, क्योंकि उस में कलर कौंबिनेशन से ले कर हर काम काफी परफैक्ट हुआ था.

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