महाराष्ट्र: कोरोना के प्रसार में महाराष्ट्र सरकार की लापरवाही

कोरोना महामारी के चलते देश संकट के दौर से गुजर रहा है. बच्चों के सर से माता पिता का साया उठ रहा है. माता पिता अपने बच्चे को खो रहे हैं. महिलाएं विधवा हो रही हंै. इससे भारत के दक्षिण मध्य में स्थित महाराष्ट्र राज्य भी अछूता नही है. महाराष्ट्र की गिनती भारत के सबसे धनी एवं समृद्ध राज्यों में की जाती है, इसके बावजूद कोरोना के चलते अब तक 75000(पचहत्तर हजार)लोग अपनी जिंदगी गंवा चुके हैं. परिणामतः कई परिवार संतान विहीन, तो कई परिवारों में विधवाओं की संख्या बढ़ गयी है. कई बच्चों के सर से माता पिता का साया उठ चुका है. लेकिन केंद्र सरकार के साथ साथ महाराष्ट्र की राज्य सरकार ने कोरोना के चलते जिनका निधन हुआ, उनके परिवारों के लिए कुछ नहीं किया.

हमें यह नही भूलना चाहिए कि महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा औद्योगिक राज्य है. और मुंबई देश की आर्थिक राजधानी मानी जाती है. पुणे शिक्षा और आई टी का केंद्र माना जाता है. महाराष्ट्र में मुंबई, पुणे,  पालघर, नागपुर के हालात बद से बदतर हैं. यह हालात तब हैं, जब मुंबई, नागपुर, पुणे सबसे अधिक विकसित शहर हैं. महाराष्ट्र के मुंबई,  पुणे (पुणे शहर भारत का छठवाँ सबसे बड़ा शहर है. ), नागपुर, ठाणे,  पालघर सहित कई शहर व जिलों में उत्कृष्ट स्वास्थ्य सुविधाएं हैं.

लोगो की जिंदगी पटरी पर आने से पहले ही लुढ़क गयी

कोरोना महामारी के असर से राजनेता, उद्योगपति, बड़ी फिल्मी हस्तियां वगैरह काफी हद तक सुरक्षित ही रहे है. यह एक अलग बात है कि कुछ लोग जरुर इस बीमारी से काल के मुंह में समा गए. लेकिन कोरोना महामारी के चलते 25 मार्च 2020 से आम लोगो, नौकरीपेशा लोगो, छोटे छोटे व्यापारी व उद्योग धंधों पर इस तरह से मार पड़ी है कि इनकी जिंदगी आज भी पटरी पर लौट नहीं पायी है. जनवरी 2021 से सभी की जिंदगी धीरे धीरे पटरी पर लौटना शुरू ही हुई थी कि कोरोना की दूसरी लहर और इससे निपटने की बजाय इसकी तरफ महाराष्ट्र सरकार की लापरवाही ने लोगों की जिंदगी को पटरी पर आने से पहले ही उखाड़ फेंका. महंगाई चरम पर है. 15 अप्रैल से लागू लॉकबंदी से एक बार फिर पूरे राज्य में फिल्म इंडस्ट्री, ज्वेलरी बाजार, स्टील बर्तन बनाने के उद्योग, भवन निर्माण से जुड़े मजदूर से जुड़े लोगों के साथ ही सभी मजदूरों, दिहाड़ी कामगारांे, फेरीवालो व नौकरीपेशा लोगों के सामने एक बार फिर दो वक्त की रोटी का सवाल मुंह बाएं खड़ा हो चुका है. किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है कि वह अपनी जिंदगी की नाव आगे कैसे खेंएंगे?सरकार के पास भी इसका कोई जवाब नही है.

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सरकारी मददः उंट के मुंह में जीरा

15 अप्रैल से घोषित लॉक डाउन में महाराष्ट्र सरकार ने गरीबों को दो माह तक मुफ्त मे राशन मुहैय्या कराने का ऐलान किया है. रिक्शाचालकों को दो माह तक प्रति माह डेढ़ हजार रूपए देने की बात की है. शिवथाली मुफ्त में दी जा रही है. मगर जिस जगह शिवथाली वितरित की जा रही है, वहां तक पहुंचना आम गरीब के लिए संभव नही. इसके अलावा फेरीवाले, दिहाड़ी मजदूर, फिल्म इंडस्ट्री के मजदूरों के लिए कोई कुछ नही कर रहा है.

क्या महाराष्ट्र कोरोना का प्रसारक  बना?

धार्मिक भावनाओ के चलते कोरोना की अनदेखी

पूरा देश संकट में है. मगर इस संकट के प्रसार में पांच राज्योंके विधान सभा और उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों के साथ साथ महाराष्ट्र सरकार की कार्यशैली भी जिम्मेदार है. महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कॉग्रेस की मिली जुली सरकार है, जो कि सेक्लुअर यानी कि धर्म निरपेक्ष होने का दावा करती है. मगर उद्धव सरकार के निर्णयों पर ध्यान दिया जाए, तो उद्धव सरकार ने सारे निर्णय धर्म के मद्दे नजर ही लिए. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्य की महिलाओं को ख्ुाश करने के लिए नवरात्रि के प्रथम दिन यानी कि 17 अक्टूबर 2020 से सभी महिलाओं को मुंबई की लोकल ट्ेन में यात्रा करने की इजाजत दी. फिर मराठी चित्रपट संस्था और ब्राडकॉस्टर के दबाव में 27 जून से टीवी सीरियलों की शूटिंग की इजाजत दी. तमाम सुरक्षा उपायों के बावजूद लगभग हर दिन किसी न किसी टीवी सीरियल के सेट पर कोरोना संक्रमित आते रहे. दशहरे तक मुंबई में लगभग सभी गतिविधियां शुरू हो चुकी थी. तो वहीं कोरोना संक्रमण बदस्तूर लगातार जारी था. इसके बावजूद फरवरी 2021 माह में पूरी आजादी दे दी गयी. आम पुरूष यात्री भी लोकल ट्ेन में यात्रा करने लगा. इस बीच कोरोना के फं्रटवर्करों व स्वास्थ्य कर्मियों को कोरोना वैक्सीन लगने लगी. फिर एक मार्च से साठ वर्ष से अधिक और एक अप्रैल से 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को वैक्सीन लगने लगी.

दूसरी लहर की शुरूआत महाराष्ट्र से

कोरोना का पहला केस फरवरी 2020 में सबसे पहले केरला मंे मिला था. जबकि महाराष्ट्र में कोरोना की पुष्टि 9 मार्च 2020 को हुई थी. जी हॉ!महाराष्ट्र में कोरोना वायरस का पहला पुष्ट मामला 9 मार्च 2020 को पुणे में दर्ज किया गया, जहाँ दुबई से लौट रहे एक दंपति कोरोना पॉजीटिब पाए गए. 11 मार्च 2020 को मुंबई में दो मरीज मिले और शाम तक कुल संख्या ग्यारह हो गयी थी. देखते ही देखते 15 मार्च से इसके केस सबसे अधिक महाराष्ट्र राज्य में ही आने लगे थे. 25 मार्च 2020 से पूरे देश में लॉक डाउन लगने के बावजूद मई 2020 माह तक कोरोना के मामले सर्वाधिक महाराष्ट्र में ही आते रहे. 29 जुलाई को कुल मामलों की संख्या 400, 651 हो गयी थी, जिसमें से  1, 46, 433 सक्रिय थे 14, 463 मौतें हुई थीं. जबकि लॉक डाउन के दौरान मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश, बिहार के प्रवासी मजदूरांे ने अपने अपने राज्य की तरफ पलायन कर लिया. पर सरकार ने इस पलायन को रोकने या प्रवासी मजदूरों के हित में कोई कदम नहीं उठाया. ऐसा ही दूसरी लहर आने पर भी हुआ.

कोरोना की दूसरी लहर की शुरूआत भी महाराष्ट्र से ही हुई. और दूसरी लहर को फैलाने में महाराष्ट्र सरकार की लापरवाही का ही योगदान रहा.  मार्च 2021 के दूसरे सप्ताह से अचानक कोरोना संक्रमितों की संख्या मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में तेजी से बढ़ने लगी. पर सरकार ने अपनी आंखों पर पट्टी बांधे रखा. वास्तव में तब तक गुजरात के अहमदाबाद में एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मुलाकात हो चुकी थी, जिसके चलते उद्धव ठाकरे अनावश्यक दबाव में आ गए और खुद को लोकप्रिय मुख्यमंत्री और लोकप्रिय सरकार साबित करने के लिए ढिलाई बरतते रहे, पर कोरोना की रफ्तार बढत़ी रही. महाराष्ट्र में एक दिन में कोरोना संक्रमितों की संख्या 40, 000 (चालिस हजार) से अधिक पहुॅच गयी. तब दबाव में आकर मुख्यमंत्री ने रात्रि कर्फू की शुरूआत की. और दावा करते रहे कि वह लॉक डाउन लगाने के पक्ष में नही है. ग्यारह अप्रैल 2021 को 24 घंटे के अंदर कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 61695 पहुंच गया. लेकिन महाराष्ट्र सरकार को तो हिंदुओं के नव वर्ष@ ‘गुड़ी पाड़वा’ यानी कि 13 अप्रैल 2021 का इंतजार था. (यहां यह याद रखना जरुरी है कि तब तक मुंबई में ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ सहित जिन फिल्मों व नब्बे सीरियलों की शूटिंग चल रही थी, उन सभी के सेट पर हर दिन कई कोरोना संक्रमित आ रहे थे. यहां तक कि संजय लीला भंसाली व आलिया भट्ट सहित कई हस्तियंा कोरोना संक्रमित हुए, पर उद्धव सरकार इसे अनदेखा करती रही. ) ज्ञातब्य है कि उत्तर भारत में इस दिन नवरात्रि पर्व की शुरूआत होती है और महाराष्ट्र में ‘गुड़ी पाड़वा’का जश्न बहुत बड़े पैमाने पर मनाया जाता है. गुड़ी पाड़वा संपन्न होने के बाद 15 अप्रैल 2021 से उद्धव ठाकरे ने पंढरपुर जैसे उन जिलों को छोड़कर, जिनमें उपचुनाव होने थे, पूरे राज्य में लॉक डाउन का ऐलान कर दिया. और एक बार फिर महाराष्ट्र से प्रवासी मजदूर उत्तर प्रदेश, बिहार व अन्य निकटवर्ती राज्यों की तरफ भागने लगे. महाराष्ट्र से पलायन कर उत्तर भारत के राज्यांे में पहुॅचे अप्रवासी मजदूरों की वजह से उत्तर भारत के राज्यों में भी तेजी से कोरोना फैला. हमें याद रखना होगा कि तब तक महाराष्ट्र में संक्रमण अपने चरम पर पहुॅच चुका था. 24 अप्रैल के दिन सर्वाधिक 69000 के आसपास कोरोना मरीज पाए गए थे. (गनीमत यह है कि वैक्सीन फं्रटलाइन वर्करो और बुजुर्गों को लग गईथी, अन्यथा परिस्थिति और भीषण होती. )क्यों कि सरकार ने तेजी से बढ़ रहे केसों का सही तरीके से संज्ञान ही नहीं लिया और उसके लिए आवश्यक योजना नहीं बनाई. टीकाकरण पर भी भ्रम फैलाया गया, जिससे उस कार्य में तेजी नहीं आ सकी. सबसे बड़ी बात तो यह रही कि कोरोना वैक्सीन का निर्माण कर ही कंपनी ‘सीरम इंस्टीट्यूट के आडर पूनावाला को धमकियाँ दी गईं और उन्हेे देश छोड़कर लंदन जाने के लिए मजबूर किया गया. अब महाराष् ट् सरकार दावा कर रही है कि उसे वैक्सीन की डोज नही मिल रही है, इसलिए पिछले एक सप्ताह से महाराष्ट्र में कैक्सीनेशन का कार्य ठप्प सा पड़ा है. अब केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा है कि महाराष्ट्र के स्वास्थ्यमंत्री राजेश टोपे के इलाके मे सारी वैक्सीन कैसे दी गयी?

आईपीएल क्रिकेट को इजाजत क्यों दी गयी?

इतना ही नही कोरोना संक्रमण बढ़ता रहा, पर महाराष्ट्र सरकार ने ‘आई पीएल क्रिकेट;पर रोक नही लगाई.  सरकार ने 15 अप्रैल से जिम, पार्क, सहित सब कुछ बंद कर कई कड़े प्रतिबंध लगा दिए, मगर दस अप्रैल से 24 अप्रैल तक दस आईपीएल मैच मुंबई के वानखेड़े क्रिकेट मैदान पर खेले गए. आई पीएल क्रिकेट से जुड़े क्रिकेटरों को मैदान पर प्रैक्टिस करने की भी छूट दी गयी. ऐसे मेें लोग सवाल उठा रहे हे कि आखिर सरकार ने आईपीएल पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया?जबकि आईपीएल से भी कोरोना बढ़ा. अंततः कई खिलाड़ी व कोच के संक्रमित होने के बाद चार मई से ‘आई पीएल’पर पाबंदी लगा दी गयी, तब तक मुंबई में सभी ‘आई पीएल मैेच’खेले जा चुके थे.

वसूली में लिप्त सरकार

वास्तव में महाराष्ट्र सरकार ने कोरोना की पहली लहर के पूरी तरह से खत्म होने से पहले ही पूरे राज्य में हर तरह की बंदिशे हटाकर सारे उद्योग शुरू कर दिए थे. फिर जैसा कि महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख पर आरोप लगा है, यह सरकार फरवरी 2021 से सौ करोड़ की वसूली में लिप्त होने के चलते कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार की रोकथाम की तरफ ध्यान नहीं दिया. इस वसूली कांड में भले ही एनसीपी का हाथ रहा है, पर इसका खामियाजा आगामी चुनाव में शिवसेना को भुगतना पड़ सकता है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की शालीनता या. . ?

कोरोना की पहली लहर की शुरूआत से कुछ माह पहले ही महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले उद्धव ठाकरे अब तक कोरोना काल में लगभग चुप ही रहते आए हैं. इस दौरान उन्होने महाराष्ट्र की जनता को भी बड़े शांत मन से ही संबोधित किया. उन्होने कभी किसी के प्रति रोष जाहिर नही किया. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भांति उद्धव ठाकरे ने केंद्र सरकार पर कभी कोई आरोप नहीं लगाया. उद्धव ठाकरे ने ऑक्सीजन की कमी या दवाओं की कमी या प्लाज्मा की कमी को लेकर भी केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कोई हंगामा खड़ा नहीं किया. यदा कदा उन्होने महाराष्ट्र की जनता से यह जरुर कहा कि केंद्र सरकार ने उन्हे काफी दूर से आक्सीजन लाने की इजजत दी है. पर हंगामा करने वाले या शिकायत करने वाले वीडियो जारी नहीं किए. केंद्र सरकार के खिलाफ अदालत का भी रूख नहीं किया. मुंबई हाईकोर्ट तो उद्धव ठाकरे के काम की सराहना कर रहा है. जबकि कोरोना की पहली लहर के दौरान भी पूरे देश के सभी राज्यों के मुकाबले सर्वाधिक कोरोना संक्रमित मरीज महाराष्ट्र मंे ही आए थे. उस वक्त एक दिन का आंकड़ा 35 हजार से अधिक तक पहुॅचा था. जबकि दूसरी लहर में यह आंकड़ा एक दिन में 69 हजार तक पहुॅच चुका है. यह एक अलग बात है कि आठ मई को चैबिस घ्ंाटे में 53 हजार छह सौ पांच मरीज  संक्रमित हुए. जबकि पूरे राज्य में कुल सक्रिय मरीजों का आंकड़ा आठ मई को पचास लाख पचास हजार से अधिक रहा. सिर्फ मुंबई मे ही आठ मई तक कुल एक लाख से अधिक कोरोना संक्रमित मरीज हैं. सात मई को आंकड़े कम आने पर आरोप लग रहे है कि पिछले एक सप्ताह से महाराष्ट्र में जॉंच कम की जा रही है. महाराष्ट्र में यदि कोरोना की वजह से मृतकों की संख्या देखी जाए, तो एक दिन में नौ सौ तक के आंकड़े आए हैं. आठ मई को भी आठ सौ चैसठ लोगों ने अपनी जिंदगी गंवाई है.

कुछ लोग महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की इस शालीनता को उनके शंात व सौम्य स्वभाव की वजह मानते हैं. तो वहीं राजनीति के तमाम जानकार इसे उनकी शालीनता की बजाय राजनीतिक मजबूरी बताते हैं. अरविंद केजरीवाल की तरह उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी शिवसेना के बल परमुख्यमंत्री नही बने हैं. बल्कि उनकी कुर्सी एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन पर टिकी है. उद्धव ठाकरे की नजर में भाजपा व एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार के बीच बढ़ी हुई नजदीकियां भी हैं. रेमडीसीर दवा के एक प्रकरण को छोड़ दें, तो भाजपा भी यहां ज्यादा हमलावर नही है.

मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र राज्य में दूसरे राज्यों की तरह ऑक्सीजन,  दवा, बेड की भारी कमी है. हर दिन कोरोना से मरने वालांे की संख्या दूसरे राज्यों के मुकाबले कई गुना है. फिर भी राजनीतिक मजबूरी के चलते उद्धव ठाकरे व उनके सिपहसलार माने जाने वाले शिवसेना सांसद संजय राउत भी केंद्र पर हमलावर नही है. मजेदार बात यह भी कि पूरा मीडिया महाराष्ट्र के हालात दिखाने से लगातार बचता आ रहा है.

फिल्म उद्योग के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार

आर्थिक राजधानी मुंबई व महाराष्ट्र राज्य के राजकोष को बढ़ाने में सर्वाधिक योगदान देने वाली फिल्म इंडस्ट्री के प्रति उद्धव सरकार अति उपेक्षापूर्ण रवैया अपना रही है. वह भी ऐसे वक्त में जबकि कुछ लोग फिल्म उद्धोग को महाराष्ट्र से बाहर ले जाने के लिए प्रयासरत हैं. फिल्म उद्योग के लिए महाराष्ट्र सरकार की कोई सोच नही है. कुछ जानकारों की माने तो इन दिनों जिस तरह से मुंबई की फिल्म नगरी में ‘भाजपा’ समर्थकों की बढ़ती संख्या इसकी मूल वजह है.

कोरोना के खिलाफ जागरूकता अभियान का अभाव

महाराष्ट्र राज्य कोरोना संक्रमण सबसे अधिक तेज गति से फैलता रहा, मगर महाराष्ट्र सरकार की तरफ से कोरोना को लेकर या कोरोना से बचाव के सुरक्षा उपायों को लेकर जागरूकता अभियान को भी कोई तवज्जो नहीं दी. महाराष्ट्र में फिल्मी हस्तियों के अलावा खेल जगत की हस्तियोंं का जमावड़ा है, मगर सरकार ने इनमें से किसी भी बड़ी सेेलेब्रिटी को इस मुहीम का हिस्सा नही बनाया.

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सोशल मीडिया पर हीरो बने हुए हैं उद्धव ठाकरे

महाराष्ट्र राज्य में कोरोना महामारी का संक्रमण भले ही सर्वाधिक हो, लोगों को बेड न मिल रहे हों, वैक्सीन न मिल रही हो,  आम लोगों की जिंदगी पटरी से उटरी हो, मगर सोशल मीडिया पर उद्धव ठाकरे हीरो बने हुए हैं. मुंबई हाई कोर्ट की ही तरह सोशल मीडिया पर भी लोग कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए उद्धव सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की तारीफ करते नही थक रहे हैं. सोशल मीडिया पर लोग उद्धव की इस बात के लिए तारीफ कर रहे हैं कि वह जनता को संबोधित करते समय भी बड़े शंात भाव से बात करते हैं और अपने साथ सारे आंकड़े लेकर बैठते हैं. पूणे के सीरम इंस्टीट्यूट के आडर पूनावाला के लंदन भाग जाने के लिए भी सोशल मीडिया पर लोग शिवसेना को दोष नही दे रहे हैं.

बहरहाल, कोरोना संक्रमण के बीच आम इंसानो की फिक्र करना बहुत जरुरी है. अब केंद्र सरकार व राज्य सरकारों को चाहिए कि कोरोना का इलाज, वैक्सीन, कोरंटीन सेंटर आदि नियमित चालू रखे, पर साथ ही साथ बेरोजगारी व महँगाई कम करने की दिशा में भी कदम उठाएं. अन्यथा  हो सकता है कि देश मंे कोरोना से ज्यादा भुखमरी से लोग मर जाए. अथवा देश में लूटपाट की घटनाएं बढ़ जाएं. वैसे आजकल देश भर में लूटपाट, सेंधमारी की घटनाएं काफी तेजी से बढ़ी हैं, जिनकी एफआरआई तक दर्ज नहीं हो रही है. केवल पुलिस बुक में लिखकर चली जाती है,  जिसके कारण यह ना तो मीडिया में आ रहा है और ना ही किसी सरकार को ठीक से पता चल रहा है.

मदद के लिए फिल्म वाले आगे आए

कोरोना की पहली लहर के वक्त शुरूआत के तीन माह तक कई कलाकारों व निर्माता संगठनों ने फिल्म इंडस्ट्ी के वर्करों की मदद के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया था. मगर कोरोना की दूसरी लहर और 15 अप्रैल से महाराष्ट्र राज्य मंे लगे लॉक डाउन के चलते पूर्णरूपेण बंद फिल्म इंडस्ट्ी के वर्करो की किसी ने सुध नहीं ली. अक्षय कुमार ने फिल्म इंडस्ट्ी के वर्करों की मदद करने की बजाय दिल्ली में भजपा सांसद के एनजीओ ‘‘गौतम गंभीर फाउंडेशन’’ को एक करेाउ़ रूपए दिए. पर ऐसे मौके पर सबसे पहले गायिका पलकमुछाल सामने आयरं. उन्होने हर जरुतमंद को भरसक कोशिश कर प्लाज्मा,  बेड,  ऑक्सीजन आदि दिलाने में मदद करना शुरू किया. इसके बाद विराट कोहली व अनुश्का शर्मा ने ऑक्सीजन की मदद के लिए हाथ बढ़ाया. फिर अजय देवगन सामने आए और हिंदुजा अस्पताल के साथ मिलकर शिवाजी पार्क में कोविड अस्पताल के निर्माण में योगदान दे रहे हैं. सोनू सूद अपने तरीके से लोगो की मदद कर रहे हैं. यशराज फिल्मस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर तीस हजार वर्करों के वैक्सीनेशन का खर्च उठाने की बात कही है. अब सलमान खान ने ‘‘फैडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इंम्प्लाएज ’’के 25000 वर्करों को सहायता राशि देने की बात कही है. सलमान खान एफडब्लूआइसीई से जुड़े 25 हजार सदस्यों को 1500 रुपये की आर्थिक मदद करेंगे. सलमान खान 2020 में भी एफडब्लूआइसीई से जुड़े वर्करों की कोरोना के पहले दौर में मदद कर चुके हैं. तो वहीं उर्वशी राउतेला ने 27 आक्सीजन कॉंन्सेंटेंटर्स दान किए हैं. शिल्पा शेट्टी व जॉन अब्राहम ने भी कुछ मदद की है. जबकि मनीष पॉल और ताहिरा कश्यप लोगों के अंदर सकारात्मकता को फैलाने का काम कर रहे हैं.

यदि ‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इंम्पलाइज’’के अध्यक्ष बी एन तिवारी की माने तो अब ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स और प्रोड्यूसर बॉडी गिल्ड की ओर से तथा सिद्धार्थ रॉय कपूर और मनीष गोस्वामी की ओर से 7000 सदस्यों को पांच -पांच हजार की मदद की जाएगी. इनके अलावा ‘यश चोपड़ा फाउंडेशन’ के सौजन्य से एफडब्लूआइसीई से जुड़ीं चार यूनियनों एलायड मजदूर यूनियन,  जूनियर आर्टिस्ट एसोसिएशन, महिला आर्टिस्ट एसोसिएशन, जनरेटर वैनिटी वैन अटेंडेंट एसोसिएशन से जुड़े  वर्करों को जिन वर्करों की उम्र 60 साल से ऊपर हो चुकी है, उन वरिष्ठ वर्करों को पांच-पांच हजार रुपये और इन चार यूनियन के प्रत्येक  सदस्यों को परिवार में चार सदस्यों के हिसाब से एक महीने की जरूरी खाद्य सामग्री दी जाएगी.

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