क्या शादी के बाद गर्भ ठहर जाए तो अबौर्शन करवाएं या नहीं 

आज के कपल सेक्सुअल प्लेजर को लेकर एक्सपेरिमेंट करना तो पसंद करते हैं , उन्हें लगता है कि अगर कोई उच्च नीच हो भी गई तो क्या फर्क पड़ता है. वो कई बार जोशजोश में सावधानी बरतना भी भूल जाते हैं. और अगर एक पार्टनर दूसरे पार्टनर को याद भी दिलवाता है तो यही बोल दिया जाता है कि यार सारा मज़ा ख़राब मत कर, अभी तो मजे ले. लेकिन जब उनकी ये नासमझी एक बड़ी जिम्मेदारी का रूप लेने लगती है तो वे कतराने लगते हैं और बिना परिवार की सलाह के एबॉर्शन का फैसला ले लेते हैं. जो भले ही अभी उन्हें अपने पक्ष में नजर आता है, लेकिन ये उनके लिए बड़ी मुसीबत का कारण बन सकता है.

आकड़ों के हवाले से बताते हैं कि विकसित देशों में 45 पर्सेंट एबॉर्शन असुरक्षित तरीके से किए जाते हैं , जिसके कारण या तो महिलाओं की जान पर बन जाती हैं या फिर ये आगे चलकर इनफर्टिलिटी का कारण बनता है, जो उनकी जेब पर भारी पड़ने के साथसाथ उनकी हैल्थ पर भी गंभीर प्रभाव डालने का काम करता है . इसलिए जरूरी है समझदारी से फैसला लेने की. ताकि आपका अभी मां बनने का फैसला टालना आप पर भारी न पड़े. इस संबंध में जानते हैं फरीदाबाद के एशियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैडिकल साइंसेज की सीनियर कंसलटेंट एंड एचओडी गाइनाकोलोजी की डाक्टर पूजा ठकुराल से.

 क्या है अबौर्शन 

गर्भाश्य में भूर्ण का अपने आप अंत हो जाना या फिर उसे समाप्त करवा देना अबौर्शन या एबॉर्शन कहलाता है. ये आमतौर पर गर्भावस्था के 20 हफ्ते से पहले होता है, क्योंकि इससे बाद इसे करवाने की इजाजत नहीं होती है . अभी इसकी अवधि को बढ़ाकर 24 हफ्ते करने पर विचार चल रहा है. दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि परिपक्वता अवधि से पूर्व गर्भ के समापन की अवस्था है, जिसमें गर्भाश्य से भूर्ण खुद से निष्काषित हो जाता है या फिर कर दिया जाता है. इसके परिणामस्वरूप गर्भावस्था की समाप्ति हो जाती है. लेकिन  अबौर्शन चाहे खुद से हो या करवाया जाए , काफी तकलीफदेह होता है. ये मानसिक व शारीरिक रूप से आपको पूरी तरह से प्रभावित कर देता है. डाक्टर भी  अबौर्शन करवाने की सलाह नहीं देते हैं. उसी स्तिथि में  अबौर्शन करवाने को कहते हैं जब अल्ट्रासाउंड के माध्यम से बच्चे में किसी तरह की विकलांगता या दोष दिखाई देता है. ऐसे में जरूरी है आपके लिए जानना कि  अबौर्शन आपके लिए कितना नुकसानदेह साबित हो सकता  है.

अबौर्शन दो तरीके से होते हैं , पिल्स के जरिए या फिर डीएनसी , जिसे dilation एंड curretage , जिसे सर्जिकल प्रक्रिया कहा जाता है. जो डाक्टर की देखरेख में किया जाता है. लेकिन जब भी पिल्स के जरिए खुद से  अबौर्शन करवाया जाता है तो  जानलेवा  साबित होता है. क्योंकि भले ही दवाई से आपने बच्चे को तो गिरा दिया, लेकिन कई बार टिश्यू अंदर रह जाते हैं , जिससे आप अनभिक रहते हैं ,  जो गर्भाश्य में इंफेक्शन फैलाने के कारण आपकी मृत्यु का भी कारण बन सकता है. इसलिए भूलकर भी खुद से पिल्स न खाएं , बल्कि बहुत आवश्यक होने पर ही डाक्टर की देखरेख में इसे करवाएं, ताकि प्रोपर चेकउप , अल्ट्रासाउंड से पूरी स्तिथि के बारे में पता लग सके. और समय पर आपको सही इलाज मिल सके.

जानलेवा है असुरक्षित अबौर्शन  

भले ही आपको मेडिकल स्टोर से एबॉर्शन पिल्स आसानी से व सस्ते में मिल जाती हैं , लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिना सोचे समझे इसका सेवन जानलेवा भी साबित हो सकता है. बता दें कि भारत में हर रोज 13 महिलाएं असुरक्षित तरीके की वजह से अबौर्शन करवाने के कारण अपनी जान से हाथ धोती हैं.  ये  असुरक्षित अबौर्शन भारत में मैटरनल डैथ का तीसरा बड़ा कारण है. देश में  हर साल 6.4 मिलियन प्रेग्रेंसीज़ टर्मिनेट होती हैं, जो बहुत बड़ा आकड़ा है.

रिसर्च में यह भी पता चला है कि 80 पर्सेंट महिलाएं इस बात से अंजान हैं कि भारत में एबॉर्शन लीगल है. जिस कारण वे अनट्रेंड लोगों से  अबौर्शन करवा कर अपनी जान को खतरे में डालने के साथसाथ लुटती भी हैं.

क्या हैं नुकसान 

1. अधिक ब्लीडिंग का कारण 

एबॉर्शन पिल्स को लेने के बाद ये शरीर में बनने वाले प्रेग्रेंसी हार्मोन प्रोजोस्ट्रोन को रोक देती है, जिससे भूर्ण यूतरस से बाहर आने लगता है. और जैसे जैसे उतेरुस पहले जैसे अपने साइज में आने लगता है, तो हैवी ब्लीडिंग होनी शुरू हो जाती है. जो कई बार महीने तक भी चलती है. जिससे कई बार शरीर में कमजोरी इतनी अधिक बढ़ जाती है कि जान पर आ बनती है.

2. पेट में दर्द 

एबॉर्शन पिल्स पेट में भारी दर्द का कारण बनती हैं . क्योंकि जब रक्त व टिश्यू निकलते हैं तो पेट में दर्द, जलन महसूस होती है. और कई बार रक्त निकलने के बाद भी जब मसल्स रिलैक्स नहीं हो पाती हैं तो पेट के निचले हिस्से में इतना अधिक दर्द होता है कि चलनाफिरना भी दुर्लभ हो जाता है. ऐसे में अगर तुरंत डाक्टर की सलाह नहीं ली जाती तो आपकी जान भी जा सकती है.

3. आधा अधूरा अबौर्शन 

बहुत से मामले ऐसे देखे गए हैं , जिसमें गोली पूरी तरह से असर नहीं करती है , जिसके परिणामस्वरूप टिश्यू पूरा बाहर नहीं निकल पाता  है. जिससे इंफेक्शन के कारण आपकी जान को भी खतरा हो सकता है. इसलिए डाक्टर की सलाह लेकर ही जरूरी होने पर ही करवाए अबौर्शन .

4. चक्कर आना 

अनचाहे गर्भ को समाप्त करने वाली दवाओं के सेवन से उलटी व चक्कर की समस्या का भी सामना करना पड़ता है. और तब यह स्तिथि और अधिक मुश्किल हो जाती है जब भी डाक्टर की सलाह के बिना इनका जरूरत से ज्यादा सेवन कर लेते हैं तो चक्कर व उलटी की समस्या ज्यादा बढ़ जाती है, जो संभाले नहीं संभलती. इसलिए आपके साथ ऐसा न हो , इसलिए डाक्टर की सलाह जरूर लें.

5. योनि से डिस्चार्ज 

कई महिलाओं को इन दवाओं के सेवन के बाद  योनि से डिस्चार्ज की भी समस्या का सामना कई महीनों तक करना पड़ता है. जो दवा का एक साइडइफ़ेक्ट है. जो अंदर होने वाले इंफेक्शन को दर्शाता है. ऐसे में अगर ये डिस्चार्ज लंबे समय तक चले तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं ताकि स्तिथि को बिगड़ने से रोका जा सके.

अबौर्शन करवाने के और भी है नुकसान 

1. बांझपन की समस्या 

बारबार अबौर्शन करवाने से आपको बांझपन की समस्या हो सकती है. क्योंकि ये पिल्स इतनी इफेक्टिव होती हैं कि इन्हें बारबार लेने से ये आपके ूट्रेस को कमजोर बना देती है , जिससे भले ही आपकी उम्र छोटी हो फिर भी आपको मां बनने में मुश्किल होती है. इसलिए बारबार एबॉर्शन न करवाएं.

2. ज्यादा ब्लीडिंग से खून की कमी 

सलाह दी जाती है कि अगर आपमें खून की कमी है तो आप भूलकर भी एबॉर्शन पिल्स का सहारा न लें. क्योंकि इन दवाओं के सेवन से ज्यादा ब्लड निकलता है, जिससे आपमें खून की कमी होने के साथसाथ कई बार कमजोरी इतनी अधिक बढ़ जाती है कि आपके लिए उठना बैठना भी काफी मुश्किल हो जाता है. इसलिए अगर आपमें खून की कमी है तो पिल्स न लें.

3. मासिक धर्म का  डिस्टर्ब होना 

बार बार अबौर्शन करवाने से  मासिक धर्म डिस्टर्ब हो जाता है. क्योंकि हॉर्मोन्स का संतुलन जो बिगड़ जाता है और उसे वापिस आने में 2 – 3 महीने का समय लगता है. ऐसे में अगर बारबार अबौर्शन करवाया जाता है तो  हॉर्मोन्स का बैलेंस बिगड़ने से अंडों की क्वालिटी खराब हो सकती है, आपको ओवलूशन पीरियड को ट्रैक करने में भी मुश्किल हो सकती है. यही नहीं अगर इसी बीच आपको कोई गंभीर बीमारी भी लग गई तो फिर आपका मां बनना काफी मुश्किल सा हो जाता है.

4. पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज 

पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज, जिसे महिलाओं के रिप्रोडक्टिव ओर्गन में इंफेक्शन को कहते हैं. इसका कारण एबॉर्शन भी होता है. क्योंकि दवाई को या फिर मेडिकल इंस्ट्रूमेंट जो जब सर्विक्स के माध्यम से अंदर डाला जाता है तो उससे बैक्टीरियल आसानी से रिप्रोडक्टिव ओर्गन में प्रवेश कर जाते हैं. जो  पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज का कारण बनते हैं.  इसमें बच्चेदानी में सूजन होने के कारण आपको दर्द के साथ आगे कंसीव करने में दिक्कत हो सकती है.

5. बच्चेदानी का कमजोर पड़ना 

बारबार  अबौर्शन करवाने से  बच्चेदानी कमजोर पड़ने लगती है, जिससे आगे आपको मां बनने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. अगर आपने खुद से कंसीव भी कर लिया है तो आपका खुद से ही अबौर्शन हो जाता है , जो आपको मानसिक व शारीरिक दोनों तरह से कमजोर बना देता है. इसलिए अगर आप इस पीड़ा से बचना चाहती हैं तो  अबौर्शन न ही करवाएं.

6. लौंग टर्म डिजीज 

चाहे आप बारबार मेडिकल एबॉर्शन करवाएं या फिर सर्जिकल, ये दोनों ही नुकसानदायक होते हैं. इससे आपको इंफेक्शन होने के साथसाथ दवाओं के सेवन के कारण आपका वजन काफी बढ़ सकता है, जो ढेरों बीमारियों को न्यौता देने का काम करता है. साथ ही पेट दर्द,  उलटी की समस्या या आंत में सूजन होना, हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ना की समस्या को भी झेलना पड़ सकता है. इसलिए  लौंग टर्म डिजीज से बचने के लिए एबॉर्शन से बचें.

हो पहले से तैयार 

अगर आप अपने कैरियर को लेकर बहुत ज्यादा कोस्कुइस हैं, और आप शादी के तुरंत बाद बच्चा नहीं चाहते तो उसके लिए पहले से पूरी तरह से तैयार रहें , जब भी सैक्स करें तो जोश में होश न खोएं, क्योंकि उस समय का उतावलापन आपको बाद में मुश्किल में लाए, इससे बेहतर है कि आप पहले से तैयार रहें. जब  करें तो वो सेफ सैक्स हो, ताकि बाद में आपको डॉक्टर्स के चक्कर न लगाने पड़े. आप इसके लिए काउंसलिंग भी ले सकते हैं . जिसमें आप अपनी प्रोब्लम्स बताएं , ताकि आपको उनसे बाहर निकलने के बेहतर ऑप्शंस मिलने के साथसाथ आपको फैमिली प्लानिंग के बारे में भी सही तरीके से गाइड करके आपके माइंड को सेट किया जा सके.

फ़ाइनेंशियल प्रोब्लम होने पर ही टाले फैसला

कई बार न चाहते हुए व एतियात बरतने के बावजुद भी गर्भ ठहर जाता है. ऐसे में अगर आप अभी फ़ाइनेंशियल तरीके से स्ट्रौंग नहीं हैं और आप मन ही मन बस यही सोच रहे हैं कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी के साथ कैसे चीजों को मैनेज कर पाएंगे. कहीं इस वजह से और भी कई चीजें खराब न हो जाए. उसी स्तिथि में बस आपके लिए इस फैसले को टालना उचित होगा.  क्योंकि  फ़ाइनेंशियल प्रोब्लम आपको इस फैसले  साथ आगे बढ़ने पर मुश्किल में डाल सकती है. लेकिन आप डाक्टर के सलाह मशवरा के बाद ही ये निर्णय लें. क्योंकि कई बार उम्र ज्यादा होने पर आगे चलकर इससे बड़ी दिक्कत में भी आप फंस सकते हैं.

बरतें लापरवाही 

क्या आप परिचित हैं एक्टोपिक या ट्यूब प्रेग्रेंसी के बारे में, जिसमें आपका बच्चा ूट्रेस में न होकर फॉलोपियन ट्यूब में हो जाता  हैं. इसका मतलब फर्टीलिज़ेड अंडा ूट्रेस की मैन कैविटी के बाहर बड़ा होता है. आमतौर पर  फॉलोपियन ट्यूब में ही होता है. भारत में इसका आंकड़ा 100  में से एक प्रेग्रेंसी ट्यूब में होती है . जिसमें पेट के निचले हिस्से में दर्द के साथ हैवी ब्लीडिंग भी होती है . जिसमें जान को खतरा होता है. ऐसी स्तिथि में डॉक्टर को ट्यूब को रिमूव करने की भी जरूरत होती है. आप ही सोचिए अगर आप बिना डाक्टर की सलाह लिए ऐसी स्तिथि में पिल्स का सहारा ले लें, तो क्या होगा. इसलिए इस अहम निर्णय में डाक्टर का परामर्श जरूर लें.

ज्यादा उम्र में लें अबौर्शन का फैसला 

एक तो देरी से शादी होने और ऊपर से कैरियर बनाने के चक्कर में हम फैमिली प्लानिंग के बारे में सोचते नहीं हैं और अगर गलती से हो गया तो एबॉर्शन करवा लेते हैं.  लेकिन क्या आप जानती हैं कि बढ़ती उम्र में अंडों व स्पर्म की क्वालिटी प्रभावित होती है, जिससे मां बनना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. ऐसे में अगर आप देरी करें या फिर एबॉर्शन करवा लें और फिर जब आपको जरूरत हो तब खुद से आपको कंसीव करने में दिक्कत हो , तो आपको लाखों रुपए खर्च करने पड़ सकते हैं. उसके बाद भी गारंटी नहीं कि आप मां बन ही सकती हैं. क्योंकि इसके लिए आपको आईवीएफ का सहारा लेना पड़ेगा. जिसके नाम पर अच्छीखासी दुकानदारी चलाई जा रही है. बता दें कि आपको  आईवीएफ के लिए लाखों खर्च करना पड़ेगा. साथ ही शारीरिक व मानसिक पीड़ा अलग झेलनी पड़ेगी. इसलिए एबॉर्शन के फैसले को सोचसमझ कर ही लें.

अबौर्शन का नया कानून

मां बनना किसी भी महिला के लिए बहुत खास और खूबसूरत अहसास होता है. वह अपने आने वाले बच्चे को ले कर कितने ही सपने संजोती है. मगर कभीकभी परिस्थितियां ऐसी हो सकती हैं जब मां बनना उसकी अपनी जिंदगी के लिए ही घातक या अंधकारमय हो सकता है. ऐसे में क्या उसे यह अधिकार नहीं मिलना चाहिए कि वह अपने बच्चे को जन्म न देने का फैसला ले और अपना अबौर्शन कराए. एक बच्चा जिस ने अपनी आँखें नहीं खोलीं हैं, जिस का शरीर अभी बना भी नहीं है क्या उस के लिए एक जीतीजागती महिला के प्राण दांव पर लगा देना न्यायसंगत है?

महिलाओं की जंदगी से जुड़ा यह अहम मसला अक्सर उठता रहा है. इस से जुड़े क़ानून भी बनाए गए हैं और ऐसा ही एक क़ानून है मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी बिल, 1971 ( MTP बिल ) यानी चिकित्सा अबौर्शन अधिनियम, 1971. इस क़ानून के अनुसार यदि कोई महिला किसी कारण से अबौर्शन कराना चाहती है तो वह 5 महीने या 20 हफ्ते तक ही अबौर्शन करवा सकती है . इस समय के बीत जाने पर कानूनी रूप से अबौर्शन नहीं कराया जा सकता.

इस कानून की वजह से बहुत सी महिलाओं को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती थी क्योंकि 20 सप्ताह का समय प्रैग्नैंसी के कॉम्प्लीकेशन्स समझने के लिए पर्याप्त नहीं थे. कितनी ही महिलाओं को अबौर्शन की अनुमति हेतु यह समय सीमा बढ़ाए जाने के लिए याचिकाएं डालनी पड़ती थीं.

इन्ही सब जटिलताओं के मद्देनजर भारत की केंद्रीय कैबिनेट ने आखिर चिकित्सा अबौर्शन अधिनियम, 1971 में संशोधन करने को मंजूरी दे दी है. इस के मुताबिक़ अब महिलाएं या लड़कियां 20 के बजाए 24 हफ्ते तक अबौर्शन करा सकने का कानूनी हक़ पाएंगी.

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इस कानून के तहत स्पेशल कैटेगरी में आने वाली औरतों को कानूनी तरीके से अबौर्शन की इजाज़त दी गई है. औरतों की स्पेशल कैटेगरी की अगर बात करें तो इन में रेप विक्टिम्स, इनसेस्ट यानी परिवार के अंदर ही गैरकानूनी शारीरिक संबंध की वजह से प्रेगनेंट हुई औरतें, गंभीर बीमारी से जूझ रहीं गर्भवती महिलाएं शामिल होंगी. साथ ही वे औरतें भी इस कैटेगरी में आएंगी जिन के लिए बच्चे को जन्म देना उन की जान पर बन आया हो.

संशोधित कानून के अनुसार गर्भावस्था के 20 हफ्ते तक अबौर्शन कराने के लिए एक डॉक्टर की रेकमेंडेशन लेने की जरूरत और गर्भावस्था के 20 से 24 हफ्ते तक अबौर्शन कराने के लिए दो डॉक्टरों की रेकमेंडेशन लेनी जरूरी होगी. ये डॉक्टर रेकमेंडेशन तभी देंगे जब उन्हें लगेगा कि बच्चे के पैदा होने से महिला को मानसिक या शारीरिक नुकसान पहुंच सकता है या फिर खुद बच्चे को कोई गंभीर शारीरिक या मानसिक दिक्कत से जूझना पड़ सकता है.

नया बिल यह भी कहता है कि जिस महिला का अबौर्शन कराया जाना है उस का नाम और अन्य जानकारियां उस वक्त कानून के तहत तय किसी खास व्यक्ति के अलावा किसी और के सामने नहीं लाया जाएगा ताकि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके. जो कोई भी महिला की प्राइवेसी का उल्लंघन करेगा तो उसे एक साल तक की कैद की सजा हो सकती है.

कितना जरुरी था यह कानून

माना जा रहा है कि 24 हफ्ते तक अबौर्शन की अनुमति से रेप पीड़ितों की काफी मदद होगी. हाल के दिनों में अदालतों में ऐसी कई याचिकाएं दी गई थीं जिन में भ्रूण संबंधी विकारों या महिलाओं के साथ यौन हिंसा की वजह से गर्भधारण की स्थिति में 20 सप्ताह के बाद अबौर्शन कराने की इजाजत मांगी गई थी .

एक लीगल रिपोर्ट के मुताबिक मई 2019 से लेकर अगस्त 2020 के बीच विभिन्न हाई कोर्ट में अबॉर्शन के लिए कुल 243 याचिकाएं डाली गई थीं. इन में से 74 फीसदी याचिकाएं ऐसी थीं जिन में 20 हफ्ते से ज्यादा के गर्भ का अबॉर्शन कराने की परमिशन मांगी गई थी. 84 फीसद मामलों में अबॉर्शन को मंजूरी दे दी गई.

इस आदेश से कहीं न कहीं उन महिलाओं को भी राहत मिलेगी जिन्हें न चाहते हुए भी बच्चे को जन्म देने को विवश होना पड़ता है. खासकर ऐसी बच्चियां जो रेप की शिकार हैं. बच्चियों को अहसास ही नहीं होता कि वे मां बनने वाली हैं. बाद में जब पता चलता है तो उन के साथ डॉक्टर्स भी सोच में पड़ जाते हैं क्योंकि बच्चा पैदा करने की उन की उम्र नहीं होती और उन के नाजुक शरीर के लिए प्रैग्नैंसी का बोझ उठाना घातक साबित हो सकता है. प्रेगनेंसी टर्मिनेट कराने के फैसले में जरा सी देर की वजह से उन का पूरा भविष्य अंधकार में जा सकता है.

भारत में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब बच्चियों को पांच महीने तक पता नहीं चला कि वे गर्भवती हैं और उन्हें अबौर्शन कराने के लिए हाईकोर्ट का सहारा लेना पड़ा. ऐसा ही एक मामला पिछले साल सूरत में देखने को मिला जब की एक बच्ची को गुजरात हाईकोर्ट ने 24 हफ्ते का अबौर्शन कराने की मंजूरी दी थी. जज ने डॉक्टरों के पैनल की रिपोर्ट के आधार पर यह मंजूरी दी थी क्योंकि इस गर्भ से नाबालिग की जान को खतरा था.

मानवीय दृष्टि से देखा जाए तो काफी समय से ऐसे फैसले की जरुरत थी. बच्चे को जन्म देना है या नहीं इस का अधिकार मां को मिलना चाहिए. मां जब तक जान सके कि वह प्रेग्नेंट है तब तक टर्मिनेट कराने का समय ख़त्म हो जाना दुखद स्थिति थी.

चिकित्सकीय दृष्टि से देखा जाए तो भ्रूण संबंधी खास विकारों की पहचान 20 हफ्ते के पहले मुमकिन नहीं है. कई बार गर्भ में भ्रूण के रूप में पल रहा बच्चा विकलांग या विकृत कदकाठी का निकल सकता है. ऐसे में मां और बच्चे को ताउम्र की तकलीफ मिले उस से बेहतर है कि मां कोई फैसला ले सके. 22 से 24 हफ्ते तक भ्रूण का आकार बढ़ जाता है और उस संदर्भ में फैसला लेना आसान हो पाता है.

तार्किक दृष्टि से भी देखा जाए तो 1971 का यह कानून बहुत पुराना हो चुका था. आज चिकित्सा के क्षेत्र में काफी प्रगति हो चुकी है. इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि चिकित्सा क्षेत्र में ऐसी तकनीकें आ चुकी हैं जो अबौर्शन से जुड़ी जटिलताओं का सहजता से समाधान निकल सकती हैं और उन्हें सुरक्षित अबौर्शन सेवाएं दे सकती हैं.

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अबौर्शन के मामले में दुनिया

विश्व परिदृश्य पर एक नजर डालें तो ग्रीस, फिनलैंड और ताइवान में अबौर्शन की समय सीमा 24 हफ्ते तय है. जब कि अमेरिका के कई राज्यों में अबौर्शन पर प्रतिबंध है. हालांकि विश्व भर में अबौर्शन को ले कर अब पहले से उदार सोच अपनाई जा रही है.

हाल ही में अर्जेंटीना की औरतों ने लंबी लड़ाई के बाद अबॉर्शन का अधिकार पाया. एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में अभी 25 ऐसे देश हैं जहां अबॉर्शन को गैरकानूनी माना गया है. इन में पश्चिमी एशिया, दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कुछ देश शामिल हैं. करीब 39 देशों में महिलाओं की जान बचाने के लिए अबॉर्शन को मंजूरी दी जाती है. करीब 56 देशों में थेरेपी और हेल्थ के आधार पर अबॉर्शन को मंजूरी मिली हुई है. सामाजिक और आर्थिक हालत को ध्यान में रखते हुए अबॉर्शन की इजाजत देने वाले करीब 14 देश हैं. जब कि करीब 67 देशों में महिला की रिक्वेस्ट पर अबौर्शन की इजाजत है.

कुछ सवाल

इस कानून के मुताबिक हर राज्य की सरकार को एक मेडिकल बोर्ड बनाना होगा. इस बोर्ड में अलगअलग फील्ड के डॉक्टर होंगे जो यह देखेंगे कि अबौर्शन नए नियमों के तहत हो रहा है या नहीं. दूसरी तरफ हम जानते हैं कि एक महिला के लिए अबौर्शन का फैसला करना बहुत ही मुश्किल भरा होता है. वैसे भी यह काफी इमोशनल मुद्दा है. यह फैसला पूरी तरह से एक महिला का होना चाहिए न कि किसी मेडिकल बोर्ड और डॉक्टरों का.

बिल में सेक्स वर्कर्स के लिए कोई बात नहीं की गई है. जब कि उन्हें ऐसी परिस्थितियों से अक्सर गुजरना पड़ता है. बिल में यह समय सीमा नहीं बताई गई है कि मेडिकल बोर्ड कितने समय में फैसला लेगा. नया बिल उन महिलाओं को भी कोई अधिकार नहीं देता जो अविवाहित हैं.

अबॉर्शन एक मानवाधिकार है

देखा जाए तो अबॉर्शन महिलाओं का मानवाधिकार है. एक महिला जिस के गर्भ में बच्चा पलता है, उसे पैदा करने या न करने का अधिकार उसे ही होना चाहिए. अक्सर कहा जाता है कि अबौर्शन करने का अर्थ है किसी बच्चे की जान लेना. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि जीवन का अधिकार तो जन्म लेने के बाद ही मिलता है न . गर्भ में उस वक्त तक बच्चे का शरीर भी ठीक से विकसित नहीं हुआ होता है. ऐसे में क्या हमें उस महिला के जीवन की परवाह पहले नहीं करनी चाहिए जो जिन्दा है, पूरे परिवार का हौसला है. हम भला उस की जिंदगी के साथ खिलवाड़ होते या उस की भावनाओं का क़त्ल होते कैसे देख सकते हैं? दुनिया के हर एक नागरिक को अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने का अधिकार है. महिलाओं को भी अपने शरीर और जिंदगी से जुड़े फैसले लेने का अधिकार मिलना चाहिए. हम किसी को जबरन बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते.

वहीं इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि हमारे देश में रूढ़िवादी और पुरानी सोच वाले लोगों द्वारा गैरकानूनी तरीके से गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग पता किया जाता है. अगर आने वाला बच्चा लड़की होती है तो अक्सर या तो उसे गर्भ में ही उन तथाकथित अपनों के द्वारा मार दिया जाता है या फिर जन्म के बाद सड़क पर या कूड़े के ढेर में फेंक दिया जाता है. अस्पतालों और प्राइवेट नर्सिंग होम्स में चाँद रुपयों की खातिर बहुत आसानी से ऐसे अपराधों को अंजाम दिया जाता है. जब कि हर जगह हमें यह बोर्ड लिखा हुआ जरूर दिख जाता है कि जन्म से पहले लिंग पता करवाना गैरकानूनी है. जाहिर है सख्त क़ानून की आवश्यकता इस तरह के अबौर्शन के लिए जरुरी है न कि मजबूर मां के लिए.

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