फिर से नहीं: भाग-1

मुझे पार्किंग से औफिस की तरफ जाते हुए ‘हाय’ की आवाज सुनाई दी, तो मैं ने उस दिशा में देखा जहां से वह आवाज आई थी. लेकिन उधर कोई नहीं दिखा तो मैं मुड़ कर वापस चलने लगी. फिर मुझे ‘हाय प्लाक्षा’ सुनाई दिया तो मैं रुक गई. पीछे मुड़ कर देखा तो विवान था. वह हाथ हिलाते हुए मेरी तरफ आ रहा था. ‘ये यहां क्या कर रहा है?’ मैं ने सोचा. फिर फीकी सी मुसकान के बाद उस से पूछा, ‘‘हाय, कैसे हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं. तुम यहां दिल्ली में क्या कर रही हो?’’ उस ने जिज्ञासा से पूछा.

‘‘मैं यहां काम करती हूं,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘क्या सच में? कब से?’’ उस की आवाज में उत्साह था.

‘‘2 हफ्ते हो गए. क्या तुम्हारा औफिस भी इसी बिल्डिंग में है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं तो यहां औफिस के काम से किसी से मिलने आया था,’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘अच्छा चलो हम बाद में बात करते हैं. मुझे देर हो रही है,’’ यह कह कर मैं आगे बढ़ने लगी. जबकि आज मैं थोड़ा जल्दी आ गई थी, क्योंकि घर पर कुछ करने को ही नहीं था. औफिस में रोज सुबह 10 बजे मीटिंग होती थी. अभी उस में आधा घंटा बाकी था. मैं तो बस जल्दी से जल्दी उस से दूर जाना चाहती थी.

‘‘चलो चलतेचलते बात करते हैं,’’ उस ने आगे बढ़ते हुए कहा.

‘‘तो तुम किस कंपनी में काम करती हो?’’ लिफ्ट में उस ने फिर से बात शुरू की.

‘‘द न्यूज ग्रुप में.’’

‘‘तो तुम टीवी पर आती हो?’’ उस ने आंखें बड़ी कर के पूछा. मुझे मन ही मन हंसी आ गई. पता नहीं क्यों सब को ऐसा लगता है कि न्यूज चैनल में काम करने वाले सभी लोग टीवी पर आते हैं.

‘‘नहीं, मैं अभी डैस्क पर काम करती हूं.’’ मैं ने उस की तरफ देखे बिना कहा.

मैं बेसब्री से अपना फ्लोर आने का इंतजार कर रही थी. लिफ्ट खुलते ही जल्दी से उसे ‘बाय’ कह कर मैं बाहर निकल गई. ऐसा नहीं था कि मैं उस से चिढ़ती थी, बल्कि एक वक्त तो ऐसा था जब मैं उस से मिलने, बात करने के लिए घंटों इंतजार करती थी. मेरी जिंदगी में उस के अलावा और कुछ नहीं था. दूसरे शब्दों में कहूं तो वही मेरी जिंदगी था.

विवान मेरा ऐक्स बौयफ्रैंड है. हम इंजीनियरिंग में एक ही क्लास में थे और उन 4 साल के बाद भी हम साथ थे. लेकिन धीरेधीरे सब फीका पड़ गया. मुझे लगने लगा कि मैं अकेली ही इस रिश्ते को संवारने में लगी हूं. उस वक्त विवान ने मुझे काफी हद तक बदल दिया था और एक बार मैं डिप्रैशन में चली गई थी. तब मैं ने निश्चय किया कि अब मुझे इस रिश्ते से बाहर आने की जरूरत है और हम अलग हो गए.

आज हम 2 साल बाद मिले थे. मेरे लिए आगे बढ़ना आसान नहीं था. लेकिन मैं ने कोशिश की और आज मुझे खुद पर गर्व था कि मैं ऐसा कर पाई. लेकिन आज जब मैं ने उसे इतने वक्त बाद देखा तो ऐसा लगा जैसे कुछ देर के लिए मेरा दिल धड़कना भूल गया हो.

औफिस में आई तो देखा कि वह लगभग खाली था. वैसे तो किसी न्यूज चैनल का औफिस कभी भी बिलकुल खाली नहीं होता पर सुबह की शिफ्ट के लोग 10 बजने पर ही आते थे. अपने लिए कौफी ले कर मैं कुरसी पर बैठ गई. दिमाग में फिर वही पुरानी बातें घूमने लगीं…

‘‘क्या हम हमेशा ऐसे दोस्त ही रहेंगे?’’ उस ने पूछा था.

‘‘हां, क्यों? क्या तुम नहीं चाहते?’’ मैं जानती थी कि उस के मन में क्या चल रहा था पर मैं उस के मुंह से सुनना चाहती थी.

‘‘नहीं, मेरा मतलब है कि कभी उस से ज्यादा नहीं?’’ उस ने झिझकते हुए कहा.

‘‘तुम क्या चाहते हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘तुम जानती हो कि मैं क्या चाहता हूं पर मैं  कभी तुम्हें प्रपोज नहीं कर पाऊंगा,’’ वह कुछ ज्यादा ही अंतर्मुखी था. लेकिन मैं भी वही चाहती थी, इसलिए मैं ने ही प्रपोज करने की रस्म पूरी कर डाली. बचपन से ही मुंहफट जो थी.

खैर, वक्त के साथ हम एकदूसरे के आदी हो गए. कालेज में तो 8 घंटे साथ रहते ही थे, आतेजाते भी साथ थे. इस के अलावा मोबाइल पर सारा दिन मैसेज होते रहते थे. कहते हैं, कभीकभी रिश्तों में ज्यादा नजदीकियां भी घातक हो जाती हैं. हम शायद जरूरत से ज्यादा ही साथ रहते थे. धीरेधीरे झगड़े बढ़ने लगे. वह मेरे लिए कुछ ज्यादा ही पजैसिव था.

‘‘वह लड़का तुम्हारी तरफ देख कर मुसकरा क्यों रहा है?’’ वह पूछता.

‘‘मुझे क्या पता,’’ मैं हैरान हो कर कहती.

‘‘मुझे बताओ तुम जानती हो उसे?’’ वह गुस्से से पूछता.

‘‘अरे हद है. मैं थोड़े ही देख रही हूं उसे. वह देख रहा है. पृछ लो जा कर उस से,’’ मैं तुनक कर कहती तो वह मुंह फुला कर चुप बैठ जाता.

मेरी जिंदगी मेरी रही ही नहीं थी और मुझे एहसास भी नहीं हुआ था कि कब और कैसे मैं उसे खुश करने के लिए अपनी जिंदगी से इनसानों और चीजों को बाहर निकालने लगी थी. मेरे जितने भी दोस्त लड़के थे, उन से तो बात करना छुड़वा ही दिया था, उस पर मजेदार बात यह थी कि जब मैं लड़कियों से बात करती तब भी न जाने क्यों उसे चिढ़ होती. इस तरह मैं एक कवच में चली गई. किसी से कोई मेलजोल नहीं, कोई बात नहीं. उस ने मेरे लिए कुछ नहीं छोड़ा था. न दोस्त, न जिम, न बाइक राइड्स.

जब वह इन सब में व्यस्त होता तब मैं अकेली बैठी यही सोचती रहती कि मैं क्या कर रही हूं खुद के साथ? मेरा आत्मविश्वास बिलकुल गिर चुका था. बहुत से लोगों के सामने बोलने में मुझे हिचक होती थी. शुरुआत में जब मैं क्लास में भी सब के सामने बोलती तो वह टोक देता. उसे लगता कि मैं ऐसा लोगों का ध्यान खींचने के लिए करती हूं.

उस की ऐसी बातें मुझ में खीज पैदा करने लगीं और मैं उस का विरोध करने लगी. बस वही वक्त था, जब हमारे बीच दूरियां बढ़ने लगीं. मैं ने उस के जासूसी भरे सवालों का जवाब देना बंद कर दिया. उसे अपना फोन चैक करने के लिए भी रोकने लगी. मुझे कभी समझ नहीं आया कि लोग रिश्तों में हमेशा शंकित क्यों रहते हैं. अगर कोई आप से प्यार करता है, तो वह आप के साथ धोखा करेगा ही नहीं और यदि वह धोखा करता है तो इस का मतलब वह आप के प्यार के काबिल ही नहीं था. यह बात विवान को कभी समझ नहीं आई और इसी चीज ने हमें अलग कर दिया.

अगले 2-3 दिन तक मैं औफिस आतेजाते इधरउधर देखती रहती कि कहीं वह है तो नहीं. पता नहीं उस से बचने के लिए या फिर उसे एक बार फिर से देखने के लिए. ठीक 1 हफ्ते के बाद फिर से सुबह के वक्त वह पार्किंग में मुझ से मिला.

‘‘गुड मौर्निंग,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘गुड मौर्निंग,’’ मैं ने नजरें चुराते हुए कहा.

‘‘मुझे देर हो रही है,’’ कह कर मैं चलने लगी.

‘‘सुनो प्लाक्षा…पाशी सुनो,’’ उस ने पीछे से पुकारा तो मेरे कदम रुक गए. आज मुझे सच में देर हो रही थी, लेकिन उस के मुंह से पाशी सुन कर मेरे कदम आगे बढ़ ही नहीं पाए.

‘‘मुझे तुम से कुछ बात करनी है,’’ वह पास आ कर बोला.

‘‘बाद में विवान, अभी मुझे सच में बहुत देर हो रही है,’’ मैं ने जल्दी से कहा.

‘‘ओके, ओके. शाम को कब फ्री होगी?’’ उस ने पूछा.

‘‘6 बजे,’’ मैं ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘ठीक है, फिर डिनर साथ में करते हैं.’’

‘‘पर.’’

‘‘कोई परवर नहीं. मुझे शाम को यहीं मिलना. मैं इंतजार करूंगा,’’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा.

मैं ने चुपचाप सिर हिला दिया और खड़ी रही.

‘‘अरे अब खड़ी क्यों हो? देर नहीं हो रही?’’ उस ने हलकी सी मुसकान के साथ कहा. मैं चल दी यह सोचते हुए कि अब भी क्यों मैं उस के सामने इतनी कमजोर हूं? क्या मैं अब भी उस से..? नहींनहीं, फिर से नहीं… मैं ने अपना सिर झटक दिया.

सिर झटकने से विचार नहीं रुके. पूरा दिन मैं उसी के बारे में सोचती रही. क्यों मिलना चाहता है मुझ से? क्या बात करनी होगी? क्या वह भी मुझ से? नहींनहीं… इसी पसोपेश में सारा दिन निकल गया. शाम को मैं जानबूझ कर 6 बजने के बाद भी औफिसमें बैठी रही. सवा 6 बजे शिखा ने चलने के लिए कहा तो उस को जाने को कह कर खुद बैठी रही. जब साढ़े 6 बजे तो सोचने लगी कि जाऊं? घर जाने के लिए तो निकलना ही पड़ेगा और यह भी तो हो सकता है वह अभी तक इंतजार ही न कर रहा हो. अगर कर भी रहा हो तो कोई जबरदस्ती थोड़े ही है, मना कर दूंगी. खुद को यही समझातेसमझाते मैं नीचे तक चली आई. वह वहीं था. इंतजार कर रहा था.

‘‘क्या हुआ, क्यों देर हो गई?’’ उस ने पूछा.

‘‘काम ज्यादा था इसलिए…’’ मैं इतना ही कह पाई.

‘‘ओके. कोई बात नहीं, चलें?’’ यह कह कर वह अपनी गाड़ी की तरफ चलने लगा.

मेरे मुंह से चूं तक नहीं निकली. शायद मैं भी उस के साथ जाना चाहती थी. रास्ते में मैं पूरे वक्त खिड़की से बाहर ही देखती रही. उस की नजरें मुझे अपने चेहरे पर महसूस हो रही थीं, लेकिन मैं ने उस की ओर नहीं देखा.

‘‘क्या लोगी?’’ रैस्टोरैंट में मेन्यू बढ़ाते हुए उस ने पूछा.

‘‘कुछ भी…तुम देख लो,’’ मैं ने बिना मेन्यू देखे कहा. बैरे को और्डर देने के बाद हम चुपचाप खाने का इंतजार करने लगे. जब काफी देर तक वह कुछ नहीं बोला तो मैं ने ही चुप्पी तोड़ी.

‘‘क्या बात करनी है विवान? क्यों ले कर आए हो मुझे यहां?’’

‘‘मुझे तुम्हारी एक मदद चाहिए,’’ वह झिझकते हुए बोला.

‘‘कैसी मदद?’’

‘‘तुम मेरे मम्मीपापा से मिल सकती हो?’’ वह बोला.

‘‘क्या? पर क्यों? मुझे नहीं लगता कि वे मुझे जानते हैं,’’ मैं ने असमंजस में कहा.

‘‘यार देखो मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं तुम्हें कैसे समझाऊं,’’ वह अचानक परेशान नजर आने लगा.

‘‘बोलो क्या बात है?’’

‘‘वे मेरी शादी के पीछे पड़े हैं. मैं अभी शादी नहीं कर सकता.’’

‘‘तो तुम मुझ से क्या चाहते हो?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं चाहता हूं कि तुम उन से मेरी गर्लफ्रैंड की तरह मिलो. मैं उन से कहने वाला हूं कि तुम अभी 6 महीने शादी नहीं कर सकतीं और मैं सिर्फ और सिर्फ तुम से शादी करूंगा,’’ वह समझाते हुए बोला.

‘‘तुम पागल हो गए हो? मैं ऐसा क्यों करूंगी? और तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? कभी न कभी किसी न किसी से तो शादी करनी है न. प्रौब्लम क्या है?’’ मैं ने तीखे स्वर में पूछा.

‘‘प्लाक्षा, तुम करोगी या नहीं?’’

‘‘नहीं, और जब तक तुम कारण नहीं बताते तब तक तो बिलकुल भी नहीं.’’ वह कुछ देर तक चुपचाप मेरी तरफ देखता रहा. खाना आ चुका था. हम बिना कुछ बोले खाना खाने लगे.

‘‘प्लाक्षा, तुम सच में मेरी मदद नहीं करोगी?’’ खामोशी तोड़ कर उस ने कहा.

‘‘तुम मुझे कारण भी नहीं बता रहे हो, विवान. क्या उम्मीद करते हो मुझ से? और मैं तुम्हारे लिए कुछ भी क्यों करूंगी? इतना सब होने के बाद भी?’’ मेरी आवाज में चिढ़ थी. पता नहीं क्यों हर कोई मुझ से इतनी उम्मीदें रखता है. कभीकभी लगता है कि इनसान को इतना भी कमजोर नहीं होना चाहिए कि सब उस का फायदा ही उठाते रहें.

मेरा घर आ चुका था. ‘‘डिनर के लिए थैंक्स,’’ कह कर मैं कार का दरवाजा खोलने लगी.

‘‘प्लाक्षा सुनो, रुको.’’ मैं रुक गई.

‘‘प्लीज मेरी हैल्प कर दो. मैं तुम्हें सब कुछ बताता हूं.’’ उस के बाद उस ने जो कहानी बताई वह कुछ इस तरह थी-

उस की एक गर्लफ्रैंड थी, साक्षी. उसे कंपनी की तरफ से अमेरिका जाने का मौका मिला था और वह 6 महीने से पहले वापस नहीं आ सकती थी. विवान उसी से शादी करना चाहता था और मुझे उस के घर वालों से साक्षी बन कर मिलना था. उस के घर वाले उस पर शादी का बहुत ज्यादा दबाव बना रहे थे और उसे इस के अलावा कोई और विकल्प नहीं दिख रहा था.

‘‘पर मैं ही क्यों विवान? तुम तो किसी भी लड़की को ले जा सकते हो,’’ मैं ने उस से कहा.

‘‘एक तो और कोई है ही नहीं. फिर कोई लड़की सच में गले पड़ गई तो?’’

‘‘अच्छा. और मैं ने ऐसा कुछ किया तो?’’

‘‘नहीं करोगी. मुझे विश्वास है तुम पर.’’

मैं व्यंग्य से हंस पड़ी. ‘‘तुम्हें मुझ पर विश्वास है? अच्छा लगा सुन कर.’’

वह असहज हो गया. कुछ देर की शांति के बाद बोला, ‘‘तो तुम करोगी?’’

‘‘सोच कर बताऊंगी,’’ कह कर मैं कार से उतर गई. मुझे पता था उस की नजरें मेरा पीछा कर रही थीं पर मैं ने मुड़ कर नहीं देखा.

सारी रात उस की बातें मेरे दिमाग में घूमती रहीं. कितनी कोशिश की थी मैं ने उन सब बातों और यादों से खुद को दूर रखने की, लेकिन आज जब फिर से वह मेरे सामने खड़ा था तो खुद को कमजोर ही पा रही थी मैं. मुझे ब्रेकअप के कुछ महीने बाद उस से हुई आखिरी मुलाकात याद आ गई.

‘‘तुम्हें मेरी याद आती है?’’ मैं ने उस से पूछा था.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ वह मेरी ओर देखे बिना बोला था. फिर पूरे वक्त वह अपनी जौब, कुलीग्स, घूमनेफिरने की ही बातें करता रहा. हालांकि मैं ने ही उसे मिलने के लिए बुलाया था, लेकिन मैं बिलकुल खामोश थी. बस, अलविदा कहते वक्त उस से पूछा था, ‘‘तुम क्या चाहते हो विवान मुझ से?’’

‘‘मतलब?’’ उस ने अचकचा कर पूछा.

‘‘हमारा ब्रेकअप हो चुका है न. फिर भी तुम जबतब मुझ से बात करने लगते हो और जब मैं बात करना चाहूं तो मुझे झिड़क देते हो. क्या चाहते हो? फिर से रिलेशनशिप में आना या फिर सच में बे्रकअप?’’ मैं ने उस से पूछा, क्योंकि पिछले कुछ महीनों से बहुत टैंशन में थी मैं. वह न तो मुझे खुद से जुड़े रहने देता और न ही पूरी तरह अलग करना चाहता था.

‘‘देखो, अब हम साथ तो नहीं रह सकते,’’ इतना ही बोला उस ने.

‘‘तो फिर मुझ से बात करना बिलकुल बंद कर दो. मुझे अकेला छोड़ दो. यह औनऔफ मुझ से बरदाश्त नहीं होता,’’ रो पड़ी थी मैं.

उस के बाद से अकेली ही थी मैं. कमजोर थी इसलिए कई लोगों ने भावनात्मक रूप से फायदा उठाने की कोशिश भी की. पर इन सब चीजों ने मुझे और मजबूत बना दिया. लोगों की थोड़ीबहुत पहचान भी मैं करने लगी थी अब. किसी पर आसानी से विश्वास नहीं करती थी. कुल मिला कर अपनी छोटी सी दुनिया में खुद को बचाए किसी तरह चैन से जी रही थी मैं. पर अब फिर से… नहीं. मैं अब किसी को अपनी अच्छाई का फायदा नहीं उठाने दूंगी. मैं मदद करूंगी लेकिन एक शर्त पर.

हम अगली बार एक कौफी शौप में बैठे थे. मेरे ‘हां’ कहने पर विवान बहुत खुश था. लेकिन मेरी शर्त की बात सुन कर वह थोड़ा परेशान हो गया.

‘‘क्या?’’ उस ने पूछा तो मैं ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘वह तुम्हें 6 महीने बाद बताऊंगी.’’

‘‘अरे, प्लीज बताओ न, तुम्हें पता है मुझे सस्पैंस बिलकुल पसंद नहीं है,’’ वह मेरा हाथ पकड़ कर जिद करने लगा. मैं ने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया. उस की छुअन से अब भी…नहींनहीं, फिर से नहीं.

‘‘सौरी,’’ वह डरते हुए बोला, ‘‘बताओ न प्लीज.’’

‘‘विवान, तुम चाहते हो न कि मैं तुम्हारी हैल्प करूं?’’ मैं ने तल्ख स्वर में पूछा. ‘‘हां, लेकिन…’’ उस की बात पूरी होने से पहले ही मैं बोली, ‘‘बस तो फिर अब कुछ काम मेरी पसंद के भी करो और मुझे बताओ कि कब कैसे क्या करना है.’’

‘‘अगले दिन हम दोनों उस के घर के ड्राइंगरूम में बैठे थे. मैं उस के कहे अनुसार सलवारकमीज में थी और हमेशा की तरह उस ने असहज महसूस कर रही थी. उस में मम्मीपापा सामने बैठे मुझे ऊपर से नीचे तक देख रहे थे.  -क्रमश:

फिर से नहीं: भाग-3

अब तक आप ने पढ़ा:

वादे के अनुसार प्लाक्षा ने विवान के घर जा कर उस के मातापिता को 6 महीने बाद शादी के लिए राजी कर लिया. विवान बहुत खुश था. उधर प्लाक्षा के मातापिता भी उस पर शादी के लिए दबाव बनाने लगे थे. शादी से कुछ समय बचने के लिए प्लाक्षा ने अब विवान से वही सब नाटक करने को कहा, जो विवान ने कुछ दिनों पहले प्लाक्षा से कराया था.

– अब आगे पढ़ें:

 

विवान बुरी तरह घबरा रहा था. मैं ने माहौल को हलका करने की कोशिश की, ‘‘पापा, बैड मैनर्स. लड़कियों से उन की उम्र और लड़कों से उन की सैलरी नहीं पूछते,’’ सभी हंसने लगे. विवान के चेहरे पर भी हलकी सी मुसकान आ गई.

मम्मी ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘बेटा, पैसेवैसे की तो कोई बात नहीं है. प्लाक्षा भी ठीकठाक कमा लेती है और तुम भी अच्छीखासी जौब कर रहे हो. यह बताओ कि प्लाक्षा के साथ ऐडजस्ट तो कर पाओगे न?’’

‘‘जी आंटी…’’ विवान ने हकलाते हुए कहा.

‘‘देखो बेटा, तुम तो इसे इतने सालों से जानते हो. यह भी जानते होगे कि यह कितनी स्पष्टवादी है, जो इसे अच्छा लगता है वह भी और जो नहीं लगता वह भी, बताने में देर नहीं करती. इस के इसी स्वभाव के कारण कम ही लोग इस के साथ ऐडजस्ट कर पाते हैं,’’ मम्मा ने कहा.

‘‘आंटी, मैं प्लाक्षा को कई सालों से जानता हूं. सब से बड़ी बात जो मैं इस के बारे में कह सकता हूं वह यह है कि मुझे इस के जैसा कोई आज तक नहीं मिला. चाहे जितनी मुंहफट हो पर दिल की साफ है. मैं यह तो नहीं कह सकता कि हम कभी झगड़ेंगे नहीं, क्योंकि इनसान सिर्फ मीठा खा कर तो जिंदा रह नहीं सकता. मैं इतना वादा जरूर कर सकता हूं कि इसे पूरी तरह समझने की कोशिश करूंगा.’’

यह विवान कह रहा था? वह इतनी परिपक्व बातें भी कर सकता है? वह मेरे बारे में सकारात्मक बातें बोल रहा था. क्या वह अब भी मुझ से…? नहींनहीं, वह सिर्फ ऐक्टिंग कर रहा होगा.

‘‘तो कैसा रहा?’’ घर से बाहर आते हुए विवान ने पूछा. मम्मीपापा उस से बहुत खुश नजर आ रहे थे.

‘‘तुम तो बहुत बड़े ऐक्टर निकले. क्या बड़ेबड़े डायलौग मार रहे थे. मम्मीपापा तो बहुत इंप्रैस हो गए तुम से. कहीं सच में हमारी शादी न  करा दें,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

‘‘और अगर मैं कहूं कि वह ऐक्टिंग नहीं थी. वे डायलौग नहीं बल्कि मेरे दिल के जज्बात थे, तो?’’ वह मेरी आंखों में झांकते हुए बोला. पहले कभी वह मेरी आंखों में आंखें डाल कर बात नहीं करता था. उसे शर्म आती थी. आजकल न जाने उसे क्या हो गया था. उस की ये नजरें मेरे अंदर तूफान पैदा कर देती थीं. लगता था जैसे कहीं दबी भावनाएं फिर से सिर उठाने लगी हों. मैं बिलकुल ठहर सी जाती थी.

‘‘मजाक कर रहा हूं. ऐक्टर तो मैं बचपन से ही हूं. बस कोई आज तक मेरा टेलैंट समझ ही नहीं पाया. एक तुम ही हो मेरी सच्ची पारखी,’’ वह शरारती अंदाज में बोला.

उस की धूल उड़ाती कार को देखते हुए मेरे मन में फिर से वही उथलपुथल शुरू हो गई. क्या हम दोनों सिर्फ अपनेअपने स्वार्थ के लिए एकदूसरे का इस्तेमाल कर रहे हैं या फिर अब भी हमारे बीच कुछ है? उस का तो मुझे नहीं पता, लेकिन मेरे मन में अब भी उसे देख कर कुछकुछ होने लगता था. जब भी वह पास आता था तो खुद को संभालना बहुत मुश्किल हो जाता था. मैं अब भी उस से…? नहींनहीं, फिर से नहीं.

आंखों से ढलके आंसू पोंछते हुए मैं वापस अंदर आ गई. विवान वापस दिल्ली चला गया था. मैं अभी 2 दिन और जयपुर में ही थी. सोचा इसी बहाने कुछ पुराने दोस्तों से भी मिलना हो जाएगा. आदित्य मेरा कालेज के दिनों से दोस्त था. विवान के साथ रिश्ते की शुरुआत करने पर जिन दोस्तों का साथ छूटा था, आदित्य भी उन में से एक था. एक डेढ़ साल पहले हम ने फिर से बात करना शुरू किया था. दोस्ती में कुछ वक्त का अंतराल जरूर आया था, लेकिन दूरी नहीं. हम अब भी अच्छे दोस्त थे.

शाम के वक्त हम दोनों एक मौल में बैठे थे. वह बता रहा था कि उस की शादी पक्की हो गई.

‘‘अच्छा कब चढ़ रहा है सूली पर?’’ मैं ने उसे छेड़ते हुए पूछा था.

वह शरमा गया था, ‘‘अरे, अभी तो सगाई भी नहीं हुई. सिर्फ रिश्ता पक्का हुआ है.’’

‘‘अच्छा जी. तो कब है सगाई?’’

‘‘अगले महीने और तुझे आना है,’’ वह हक से बोला.

‘‘तू नहीं बुलाएगा तब भी आऊंगी. आ कर यह हंगामा भी तो करना है कि मेरे आदित्य को छीन लिया मुझ से…’’ मैं ने उस की टांग खींचते हुए कहा. वह हंसने लगा.

‘‘अच्छा नाम तो बता दे हमारी होने वाली भाभी का,’’ मैं आज उसे इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी. वैसे भी उस की टांग खींचने में बड़ा मजा आता था. वह भी हंस कर साथ देता रहता.

‘‘अरे नाम क्या, तू फोटो देख उस का. तू कहे तो बात भी करा दूं,’’ उस ने फोन निकालते हुए कहा.

‘‘अब तू बस नाम बता और फोटो दिखा. अभीअभी शादी पक्की हुई है तेरी, क्यों तुड़वाने पर तुला है?’’

उस ने हंस कर मोबाइल स्क्रीन मेरे सामने कर दी, ‘‘ये देख, नाम साक्षी है. अपनी ही तरह इंजीनियर है. दिल्ली में जौब करती है.’’

फोटो देखते ही मेरा मुंह लटक गया. यह वही साक्षी थी जिस का फोटो मुझे विवान ने दिखाया था. यह तो विवान की गर्लफ्रैंड थी फिर आदित्य से कैसे…?

‘‘तुम…तुम इस से मिले हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कल ही मिला. वैसे बात तो काफी पहले से चल रही थी, लेकिन कल ही यह जयपुर आई थी,’’ उस ने जवाब दिया.

क्या मुझे इसे कुछ बताना चाहिए? नहीं, पहले मुझे विवान से बात करनी होगी. क्या ऐसा कुछ था जो वह मुझ से छिपा रहा था? मैं सोच रही थी.

‘‘क्या हुआ प्लाक्षा, कुछ परेशानी है?’’ आदित्य ने मेरा हाथ थपथपाते हुए पूछा.

‘‘नहीं, कुछ नहीं बहुत देर हो गई. घर चलना चाहिए,’’ मैं ने उठते हुए कहा.

कार में बैठते ही सब से पहले मैं ने विवान को फोन लगाया. फोन उठाते ही वह बोला, ‘‘हां प्लाक्षा, क्या हुआ बोलो?’’

‘‘विवान मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है,’’ मैं ने अपनी आवाज संयमित रखते हुए कहा.

‘‘हां बोलो न.’’

‘‘अभी फोन पर नहीं. कल सुबह मैं दिल्ली आ रही हूं. तब तुम मुझ से मिलो.’’

‘‘सुबहसुबह तो कहीं आना मुश्किल है, क्योंकि औफिस जाना है. तुम एक काम करना, लंच टाइम में औफिस ही आ जाना. तब बात कर लेंगे,’’ उस ने कहा.

‘‘ठीक है,’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया.

फिर पता ही नहीं चला कि वहां से घर तक का रास्ता कैसे तय किया. कब मैं मम्मापापा और भाई के साथ बैठ कर टीवी देख रही थी और कब हम ने डिनर किया. वे थोड़े नाराज थे कि मैं एक दिन पहले ही वापस जा रही थी, लेकिन मैं ने औफिस का जरूरी काम है कह कर उन्हें मना लिया. सुबह जल्दी उठाना था इसलिए बिस्तर पर भी जल्दी आ गई, लेकिन आंखों से नींद गायब थी. रात भर बस करवटें बदलती रही.

लंच होने में अभी 10 मिनट बाकी थे. मैं वेटिंग रूम में बैठ कर औफिस की सजावट देख कर टाइम पास कर रही थी. रिसैप्शन के पीछे एक बहुत ही खूबसूरत पेंटिंग लगी हुई थी. हमारा औफिस तो इस की तुलना में कुछ भी नहीं था. कुछ ही देर में हलचल शुरू हो गई. कुछ लोग कैंटीन की तरफ जा रहे थे, तो कुछ बाहर निकल रहे थे. मेरी नजर उन में विवान को ढूंढ़ रही थी. तभी मेरी नजर एक लड़की पर पड़ी. मुझे लगा मैं ने उसे कहीं देखा है. कहीं यह साक्षी तो नहीं? यह भी मेरे दिमाग में आया. मैं उठ कर उस की तरफ गई.

‘‘ऐक्सक्यूज मी,’’ मैं ने उस का कंधा थपथपाते हुए कहा.

‘‘यस,’’ वह साक्षी ही थी.

‘‘आर यू साक्षी?’’

‘‘यस. आप?’’ वह हैरानी से मुझे देखने लगी.

‘‘आप विवान को जानती हो?’’ उसे सीधे अपना परिचय देना मैं ने ठीक नहीं समझा.

‘‘विवान… यस. ही इज माई फ्रैंड. आप मुझे कैसे जानती हो?’’

‘‘मैं प्लाक्षा…विवान की फ्रैंड. उसी ने मुझे आप के बारे में बताया था.’’ हम दोनों ने हाथ मिलाया.

अब उस के चेहरे पर मुसकान थी, ‘‘ओह प्लाक्षा. विवान बहुत बात करता है तुम्हारे बारे में.’’

विवान मेरे बारे में बात करता है सच में?

‘‘प्लाक्षा….साक्षी…ओह…हाय प्लाक्षा, ये साक्षी है. तुम्हें बताया था न,’’ विवान आ गया था.

‘‘हां, हम मिल चुके हैं,’’ साक्षी ने कहा.

उन दोनों के बीच पल भर को आंखोंआंखों में कुछ बात हुई. फिर विवान ने मुझ से मुखातिब हो कर कहा, ‘‘कैंटीन में चलें? वहीं बैठ कर बात करते हैं,’’ साक्षी से बाय कह कर हम दोनों कैंटीन की तरफ चल पड़े.

‘‘क्या लोगी?’’ विवान ने बैठते हुए पूछा. मैं ने कुछ भी लेने से इनकार कर दिया.

‘‘अरे कुछ तो खा लो. मुझे पता है तुम ने सुबह से कुछ नहीं खाया. स्टेशन से सीधी यहीं आई हो,’’ उस ने डांटते हुए कहा.

‘‘प्लीज विवान…तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं कि साक्षी वापस आ गई है? तुम तो ऐसे शो कर रहे हो जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो,’’ मेरी आवाज सुन कर कुछ लोग हमारी तरफ देखने लगे.

‘‘प्लाक्षा प्लीज धीरे बोलो. सब हमारी तरफ देख रहे हैं,’’ उस ने इधरउधर देखते हुए कहा,  ‘‘पहले तुम कुछ खा लो फिर तुम जो जानना चाहती हो मैं तुम्हें बताऊंगा, ठीक है?’’ मैं ने कोई जवाब नहीं दिया.

मैं सच में बहुत भूखी और थकी हुई थी, इसी कारण चिड़चिड़ी भी हो रही थी और फिर अचानक साक्षी को देख लिया तो दिमाग बिलकुल खराब हो गया. उसी के बारे में तो बात करने मैं यहां आई थी. मैं ने खाना खाते वक्त विवान से यह कह भी दिया.

‘‘क्या बात करने आई थीं?’’ उस ने हैरानी से पूछा.

‘‘पहले तुम मुझे बताओ कि वह यहां क्या कर रही है? वह तो 4 महीने बाद आने वाली थी न. इतनी जल्दी कैसे आ गई?’’ मैं ने पूछा.

‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?’’ मैं इस बात पर अभी चिढ़ी हुई थी. कभीकभी मैं भूल जाती थी कि अब मेरा विवान पर वह हक नहीं था.

वह सहम गया, ‘‘तुम जयपुर में थीं प्लाक्षा. मैं ने सोचा कि जब वापस आओगी तब बता दूंगा.’’

‘‘उसे पता था तुम जयपुर में मेरे साथ थे?’’ मैं ने पूछा, ‘‘1 मिनट रुको, वह भी जयपुर तुम्हारे साथ ही आई थी न?’’

‘‘हां, पर तुम्हें कैसे पता?’’ विवान मेरी बात सुन कर असमंजस में पड़ गया.

‘‘तुम ने फिर भी मुझे नहीं बताया. विवान तुम ऐसा कैसे…?’’ मेरा दिमाग अब गुस्से से फट रहा था.

‘‘प्लाक्षा, उस वक्त तुम्हारी प्रौब्लम ज्यादा जरूरी थी. तुम वैसे ही इतनी परेशान थीं. तुम्हें कुछ भी बताना ठीक नहीं लगा.’’

उस की बात सुन कर भी मेरा पारा नहीं उतरा, ‘‘ओह हां, तुम्हारी गर्लफ्रैंड का किसी और के साथ रिश्ता हो रहा है और तुम किसी और की बड़ी प्रौब्लम को सौल्व करने में लगे थे. एक बात बताओ विवान, क्या मैं तुम्हें बेवकूफ लगती हूं या फिर तुम कुछ ज्यादा ही सीधे हो?’’ हर एक बात के साथ मेरा स्वर ऊंचा होता जा रहा था.

विवान मेरी बात से भौचक्का रह गया. अब उस का दिमाग भी गरम होने लगा था, ‘‘इतनी बड़ी क्या बात हो गई यार? तुम मेरी बीवी नहीं हो जो मैं तुम्हें हर बात बताऊं और अब तो मेरी गर्लफ्रैंड भी नहीं हो. मेरी पर्सनल लाइफ में कुछ भी हो, उस से तुम्हें क्या मतलब?’’

‘‘राइट, मैं तो बस तुम्हारी भाड़े की गर्लफ्रैंड हूं. एक नौकर, जिसे तुम शायद पैसे या समयसमय पर बोनस दे कर खुश करना चाहते थे,’’ मेरा गुस्सा अब हद से बाहर हो चुका था.

‘‘प्लाक्षा, आई एम सौरी. मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था. आई एम सो सौरी,’’ उस का स्वर फिर से मीठा हो गया था. वैसे भी जब मेरा गुस्सा चरम पर होता था तो वह कुछ बोल नहीं पाता था, निरुत्तर सा हो जाता था.

‘‘नहीं विवान, तुम्हें यही कहना चाहिए था. अगर तुम ये नहीं कहते तो मुझे समझ में नहीं आता कि क्यों मुझे तुम से कभी प्यार नहीं करना चाहिए था. मुझे तुम्हारी फिक्र ही नहीं करनी चाहिए. मैं ही पागल थी जो आदित्य और साक्षी की शादी की खबर सुन कर यहां भागीभागी चली आई. मुझे लगा कि तुम्हें पता नहीं होगा. मुझे लगा कि तुम इतने सीधे हो, शायद तुम्हें पता न हो कि तुम्हारे साथ क्या हो रहा है,’’ मेरा गुस्सा अब आंसुओं में बदल गया था.

‘‘मैं ही पागल थी, जो तुम्हारी मदद करने को तैयार हो गई. यह भूल गई थी कि मेरी कितनी इज्जत है तुम्हारे मन में. सोचा शायद बदल गए हो, लेकिन तुम अब भी वैसे ही हो. हमेशा खुद को सब से ऊपर रखने वाले, अपनी गलती न मानने वाले, हमेशा दूसरों को हर बात के लिए दोषी ठहराने वाले.’’

‘‘प्लाक्षा प्लीज, सुनो तो,’’ उस ने मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन मैं ने उसे झटक दिया.

‘‘नहीं, अब और नहीं. वैसे भी अब तुम्हारी गर्लफ्रैंड वापस आ चुकी है तो तुम्हें मेरी जरूरत तो होगी नहीं. इतने दिनों में तुम ने मेरे लिए इतना कुछ किया, उस के लिए शुक्रिया और तुम्हारे भविष्य के लिए ‘औल द बैस्ट’. बस एक आखिरी एहसान कर देना मुझ पर कि अब मेरी जिंदगी में कभी वापस मत आना. वैसे तो मैं यह तुम्हारी मदद करने के बदले में मांगना चाहती थी, लेकिन वह हिसाब तो बराबर हो गया, इसलिए एहसान मांग रही हूं, गुडबाय,’’ इतना कह कर मैं कैंटीन से बाहर आ गई. विवान मुझे पीछे से पुकार रहा था.

अब रोने से क्या फायदा? जब पहले से ही पता था कि वह हमेशा दुख देता आया है, तो इस बार कुछ अलग कैसे करता? मैं सोचती रही. लेकिन उस दिन के बाद काफी दिनों तक मेरे मूड में कोई सुधार नहीं हुआ. औफिस में तो सामान्य रहती, लेकिन घर आते ही अकेलापन जैसे काटने को दौड़ता. यही एक ऐसी चीज थी जिस से मैं सब से ज्यादा डरती थी और यही वह चीज है जिस का मैं ने आज तक सब से ज्यादा सामना किया था. रोना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन पिछले 2 सालों में ऐसा लगता था जैसे आंसू सूख गए हों. किसी भी चीज से खास फर्क नहीं पड़ता था. हालांकि इन 2 सालों में मैं ने सब से ज्यादा धोखे खाए थे, लेकिन हमेशा यह सोच कर आगे बढ़ती रही कि इन सब से मैं और ज्यादा मजबूत हो रही हूं.

आज फिर से विवान ने पुराने जख्मों को कुरेद दिया था. मैं भी बहुत बहादुर बन कर उस की बातें मानती चली गई. यह भूल गई कि मैं कभी भी भावनात्मक रूप से मजबूत हो ही नहीं सकती थी और विवान के मामले में तो यह लगभग असंभव था. खुद को भुला कर प्यार किया था उस से. इतना आसान नहीं होता एक दर्द को बारबार जीना.

उस दिन विवान के औफिस से इस तरह आने के बाद उस ने कई बार मुझ से बात करने की कोशिश की, लेकिन मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. 1-2 बार वह मेरे औफिस भी आया, लेकिन मैं ने व्यस्त होने का बहाना बना कर मिलने से मना कर दिया. अब वह मुझ से क्यों मिलना चाहता था, उस का काम तो हो गया था? उस की गर्लफ्रैंड वापस आ चुकी थी. अब उसे मेरी कोई जरूरत नहीं थी.

मुझे नहीं पता मैं किस बात से ज्यादा नाराज थी. उस के मुझे साक्षी के आने के बारे में न बताने की वजह से या फिर साक्षी के सचमुच आ जाने से. पिछले कुछ दिनों में मुझे लगने लगा था कि हम अपने पुराने दिनों में वापस लौट गए हैं, जहां अब मेरी जगह विवान ने ले ली है. अब वह स्पैशल चीजें करता था, अब वह मुझे निहारता था, और अब वह रोमांटिक बातें करता था. पर शायद वह सब मेरा वहम था. वह जो कुछ भी कर रहा था अपने स्वार्थ के लिए कर रहा था. वह जानता था कि मैं एक ‘इमोशनल फूल’ हूं और मुझ से प्यार भरी बातें कर के कोई भी अपना काम निकलवा सकता है. इसी बात का उस ने फायदा उठाया. दुनिया के सामने चाहे मैं कितनी भी मजबूत बन लूं, थी असल में एक ‘इमोशनल फूल’ ही.

अभी मेरे सामने एक और परेशानी थी. मम्मीपापा का भी सामना करना था. उस ने झूठ तो बोल दिया था पर उस झूठ को चलाने के लिए विवान नहीं था. मैं जानती थी कि यह झूठ ज्यादा वक्त तक नहीं चलने वाला था. कभी न कभी तो इसे खत्म होना ही था. मां का जब भी फोन आता, वे विवान के बारे में जरूर पूछतीं.

‘‘हमारा ब्रेकअप हो गया है मां,’’ एक दिन हिम्मत कर के मैं ने कह ही दिया.

‘‘क्या? मजाक मत कर बेटा. यहां हम तेरी शादी की प्लानिंग कर रहे हैं और तू ऐसी बातें कर रही है. क्या हुआ बेटा? किसी बात पर झगड़ा हुआ क्या?’’ मां ने प्यार से पूछा.

‘‘नहीं मां कुछ नहीं हुआ. बस हमारा ब्रेकअप हो गया. आप अब शादी की प्लानिंग करना छोड़ दो. मुझे कोई शादीवादी नहीं करनी,’’ मैं ने सख्ती से कहा.

‘‘ऐसे कैसे नहीं करनी. मैं तेरे पापा से क्या कहूंगी? मजाक बना रखा है तू ने तो. कभी नहीं करनी, कभी करनी है, अब फिर से नहीं करनी. हम लोगों को क्यों बिना मतलब उलझा रखा है?’’ मां गुस्से में थीं जो एक गंभीर बात थी. वे अकसर शांत रहती थीं. उन्हें गुस्सा छू भी नहीं पाता था. मुझे अब खुद पर गुस्सा आ रहा था और रोना भी.

‘‘मां, मैं क्या जबरदस्ती किसी से शादी करूं?’’ अब ब्रेकअप हो गया तो कैसे करूं उस से शादी? ’’ मैं ने बेबस हो कर कहा.

मेरी आवाज सुन कर मां के स्वर में भी थोड़ी नरमी आ गई, ‘‘अच्छा तू परेशान मत हो. तेरे पापा को मैं समझा लूंगी, लेकिन तुझे मेरी एक बात माननी होगी.’’

मैं कुछ भी मानने को तैयार थी, ‘‘आप जो कहोगी मैं उसे मानने को तैयार हूं. बस शादी करने को मत कहना.’’

‘‘नहीं तुझे बस उस लड़के से मिलना होगा जो हम ने तेरे लिए पसंद किया था.’’

‘‘मां, लेकिन…’’

‘‘मैं शादी कराने को नहीं कह रही सिर्फ मिलने को कह रही हूं. हम अगले हफ्ते दिल्ली आ रहे हैं. तभी उस से मिलना होगा,’’ इतना कह कर मां ने फोन काट दिया.

मेरे मन में यह बात चल रही थी कि सब मेरी दिमागी शांति के पीछे क्यों पड़े हैं? मुझे नहीं मिलना किसी से. मुझे पता है वह पसंद नहीं आएगा. कभी भी कोई पसंद नहीं आएगा.

– क्रमश:

फिर से नहीं: भाग-5

अब तक आप ने पढ़ा:

प्लाक्षा और विवान में गहराई तक दोस्ती थी. बात शादी तक पहुंचती, इस से पहले ही दोनों का ब्रेकअप हो गया. कुछ साल बाद दोनों की फिर से मुलाकात हुई, जो बढ़ती ही गई. अपनीअपनी शादी रुकवाने के लिए दोनों ने एकदूसरे के घर वालों के सामने नाटक किया और कुछ दिनों तक के लिए शादी रुकवा ली. उधर जिस लड़की साक्षी को विवान ने अपनी मंगेतर बताया था, उसे प्लाक्षा के बचपन के एक दोस्त आदित्य ने भी अपनी मंगेतर बता कर प्लाक्षा की उलझनें बढ़ा दी थीं. उन दोनों को एकसाथ प्लाक्षा ने मौल में भी खरीदारी करते देखा था. पर जब इस बात की जानकारी उस ने विवान को दी तो विवान ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. प्लाक्षा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है. जब वह विवान से मिली तो यह सुन कर और भी हैरान रह गई कि यह सब उस ने उसे ही पाने के लिए किया था.

– अब आगे पढ़ें:

 

वह हार कर सोफे पर बैठ गया. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोलूं. दिमाग में पिछले कुछ दिनों की घटनाएं एक के बाद एक फिल्म की तरह चल रही थीं. विवान का अचानक मुझ से मिलना, अपनी मदद करने का आग्रह, मम्मीपापा से मिलवाना, साक्षी का फोटो, शादी… क्या वह सब कुछ झूठ था. इतनी आसानी से उस ने मुझे बेवकूफ बना दिया. इन सब चीजों के बीच उस का बदला हुआ रूप, मेरे लिए उस की परवाह, उस की आंखें क्या वह सब सच था या फिर वह भी बस झूठ, दिखावा था? मेरे लिए सच और झूठ के बीच भेद करना मुश्किल हो रहा था.

‘‘कुछ बोलो प्लाक्षा, ऐसे चुप मत रहो. मुझ पर चीखोचिल्लाओ लेकिन प्लीज कुछ तो बोलो,’’ विवान ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा.

‘‘यह सब कर के तुम्हें क्या मिला विवान? तुम सीधे मुझ से आ कर कह भी तो सकते थे कि मुझ से शादी करना चाहते हो. इतना बड़ा नाटक करने की क्या जरूरत थी?’’ मेरी आवाज अब भी धीमी थी.

वह मेरे सामने घुटनों के बल बैठ गया, ‘‘जरूरत थी प्लाक्षा. मैं तुम्हें यह एहसास कराना चाहता था कि तुम मेरे लिए कितनी स्पैशल हो. तुम्हारे साथ वक्त गुजार कर तुम्हारी छोटीछोटी बातों पर गौर करना चाहता था. तुम्हें बताना चाहता था कि मैं तुम्हारी कितनी परवाह करता हूं. इस थोड़े से वक्त में मैं 5 साल की भरपाई करना चाहता था. तुम्हें वह सब कुछ देना चाहता था, जो उन 5 साल में नहीं दे पाया. अटैंशन, केयर, प्यार सब कुछ.’’

‘‘और कभी मुझे सचाई पता चलती ही नहीं तो? तुम कब तक मुझ से झूठ पर झूठ बोलते रहते?’’ उस की बातें मुझे फिल्मी लग रही थीं. अगर आज से कुछ साल पहले वह ऐसी बातें करता तो मैं बहुत खुश हो जाती. लेकिन अब इन सब बातों को कोई मतलब नहीं था. दिल अब ऐसा नहीं था कि इस तरह की बातों से पिघल जाए. और अब जब मैं ने जान लिया था कि उस ने मुझ से इतना बड़ा झूठ बोला था तो उस की किसी भी बात पर विश्वास करना मुश्किल था.

‘‘मैं नहीं जानता प्लाक्षा, मैं बस किसी भी तरह तुम्हारे साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त गुजाराना चाहता था.’’

मैं हंस पड़ी. वक्त ही तो नहीं था कभी उस के पास मेरे लिए. बाकी सब चीजों- फिल्म, बाइक, दोस्त, जिम, घूमनाफिरना वगैरह के लिए था. मैं तो कहीं थी ही नहीं उस की जिंदगी में. हमेशा भीख मांगती रहती थी उस के वक्त की, उस के अटैंशन की लेकिन वह मेरे साथ हो कर भी नहीं होता था. मुझे देख कर भी नहीं देखता था. अब इन सब बातों का क्या फायदा? मैं चाह कर भी उस पर विश्वास नहीं कर सकती थी.

‘‘प्लाक्षा, प्लीज मेरी बात सुनो,’’ उस ने मेरे हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा. मैं चुप थी, अपने अंतर्द्वंद्व को छिपाए हुए.

‘‘प्लाक्षा, मैं ने तुम्हें कभी प्रपोज नहीं किया. कभी तुम से ‘आई लव यू’  नहीं कहा. आज मैं तुम्हारी यह शिकायत भी दूर कर देता हूं,’’ उस ने अपनी जेब से अंगूठी निकाल कर मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘प्लाक्षा, मैं तुम से बहुतबहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना मेरी लाइफ बिलकुल बकवास है. मैं चाहता हूं कि पूरी जिंदगी तुम मुझे झेलो और मेरी फालतू बातों पर हंसती रहो. मैं हर पल तुम्हें खुश रखने की कोशिश करूंगा. प्लीज मुझ से शादी कर लो. मैं कुंआरा नहीं मरना चाहता.’’

उस की बात सुन कर मैं खुश नहीं हुई. लग रहा था जैसे अंदर सब कुछ मर सा गया था. इतने दिनों उस के लिए जो प्यार उमड़ रहा था वह अचानक कहीं गायब हो गया था. वह मेरे जवाब का इंतजार कर रहा था. मेरा मन नहीं था कि मैं उस से कुछ भी कहूं. कुछ भी कह कर अपनेआप को ही और परेशान करने का मेरा कोई इरादा नहीं था. मैं अपना हाथ छुड़ा कर उठ खड़ी हुई. विवान भी सकपका कर खड़ा हो गया. उसे मुझ से ऐसी प्रतिक्रिया की शायद उम्मीद नहीं थी.

‘‘प्लाक्षा, कुछ तो बोलो,’’ वह निवेदन के स्वर में बोला.

मेरा दिमाग अब और सहन नहीं कर सकता था. वह फट पड़े उस से पहले ही मैं ने बोलना शुरू कर दिया, ‘‘क्या सुनना चाहते हो? यही न कि मैं तुम से शादी करूंगी या नहीं? तो सुनो, मैं नहीं करूंगी. अब तुम्हें एक पल भी बरदाश्त करना मेरे लिए मुश्किल है. तुम ने कैसे सोच लिया कि वे सब बातें मैं इतनी आसानी से भूल जाऊंगी? तुम्हारी कुछ दिनों की केयर उन 5 सालों के खालीपन की भरपाई नहीं कर सकती. तरसती और रोती थी मैं तुम्हारे अटैंशन के लिए. तुम्हारी जिंदगी में थोड़ी सी इंपौर्टैंस के लिए, लेकिन मुझे पूरा बदल दिया तुम ने, तुम्हारे व्यवहार ने. अब चाह कर भी किसी को अपनी जिंदगी में जगह नहीं दे सकती. तुम्हें भी तुम्हारी वह जगह वापस नहीं मिल सकती. हर चीज का एक वक्त होता है. उस के बाद उस की अहमियत खत्म हो जाती है. जब मुझे तुम्हारे प्यार की बहुत ज्यादा जरूरत थी तब तुम्हारे लिए दूसरी चीजें ज्यादा महत्त्व रखती थीं. अब मैं आगे बढ़ चुकी हूं. अब ये सब बातें मेरे लिए फुजूल हैं.’’

विवान को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे अभी रो पड़ेगा. उस ने रूंधे गले से कहा, ‘‘पर प्लाक्षा मैं बदल चुका हूं. मुझे तुम्हारी अहमियत पता चल चुकी है. मैं बहुत खुश रखूंगा तुम्हें…’’

‘‘अच्छा और इस बात की क्या गारंटी है कि मुझे एक बार फिर से पा लेने के बाद मेरी अहमियत खत्म नहीं होगी? अभी तुम मुझे पाना चाहते हो, क्योंकि मैं तुम्हारी नहीं हूं. एक बार फिर से जब मैं तुम्हारे साथ होऊंगी तो तुम फिर से मेरे अस्तित्व के बारे में भूल जाओगे और अगर यह फिर से हुआ तो मैं खुद को संभाल नहीं पाऊंगी. एक बार ही बड़ी मुश्किल से संभाला था. अब और हिम्मत नहीं है. मैं फिर से तुम्हारे प्यार में पागल नहीं हो सकती. फिर से तुम्हें चोट पहुंचाने नहीं दे सकती. मैं फिर से खत्म नहीं होना चाहती विवान नहीं, फिर से नहीं…’’

अपने आंसुओं की बाढ़ को अब मैं नहीं रोक पाई. हां, मैं उस से प्यार करती थी. जब उस के साथ थी तब भी और जब नहीं थी तब भी. आज भी अब भी हर एक पल मैं ने उस से प्यार किया था. बस अब उसे इस बात का और फायदा उठाने नहीं दे सकती थी.

उस दिन मेरे घर से जाने के बाद विवान ने मुझ से संपर्क करने की कोई कोशिश नहीं की. यही हम दोनों के लिए ठीक भी था. बारबार सामने आने से खुद को संभाल पाना मुश्किल ही होता. हम दोनों जानते थे कि एकदूसरे से कितना प्यार करते हैं, लेकिन जीवन में पहली बार मैं रिश्तों में स्वाभिमान को महत्त्व दे रही थी. मेरे लिए हमेशा रिश्ते सर्वोपरि रहे थे. उन्हें बनाए रखने के लिए कितना भी झुकने को तैयार रहती थी पर अब खुद को अहमियत देने का वक्त आ गया था, नहीं तो मेरे अस्तित्व को खत्म होते देर नहीं लगती. विवान भी शायद यह बात समझ गया था. अब मुझे उस से कोई शिकायत नहीं थी. उस के बारे में अच्छा या बुरा कुछ भी सोचना नहीं चाहती थी.

मम्मीपापा दिल्ली आ चुके थे. आज हम लड़के वालों से मिलने उस के घर जाने वाले थे. मम्मी ने मेरा मूड भांप लिया था. उन्होंने कई बार पूछा भी कि मुझे कोई परेशानी तो नहीं है? लेकिन मैं ने कुछ नहीं कहा. फिर उन्होंने भी ज्यादा जोर नहीं दिया.

मेरा आज तैयार होने का बिलकुल मन नहीं था. वैसे भी मैं मेकअप वगैरह से दूर ही रहती थी. मम्मी भी सादा रहना ही पसंद करती थीं इसलिए उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं कहा. बस मेरे पुराने कपड़ों को देख कर जरूर नाराज हुईं कि बोलने पर भी नए क्यों नहीं लिए? अब क्या बोलती कुछ ले ही कहां पाई थी उस दिन.

मेरे मम्मीपापा की सब से अच्छी बात यह थी कि वे कभी किसी भी काम को करने पर  जोर नहीं देते थे. हमारे घर में जिस का जैसा मन करता, वैसा ही करता. किसी को किसी से कोई परेशानी नहीं होती थी. बस इतना जरूर सिखाया गया था कि खुद की मरजी चलातेचलाते दूसरों की सहूलत के बारे में न भूलें.

कार मैं ही चला रही थी. पापा ने उन से रास्ता पहले ही पूछ लिया था. वे मम्मी से बात करतेकरते रास्ता भी बताते जा रहे थे. कभीकभी मुझ से भी कोई बात कर लेते. लेकिन मैं अलग दुनिया में ही खोई हुई थी. उन की आवाज सुन कर बस ‘हां’ कर देती और निर्देशानुसार गाड़ी चलाती जा रही थी. एक घर के सामने उन्होंने गाड़ी रोकने को कहा.

घर देख कर जैसे मुझे अचानक होश आया. यह तो विवान का घर था. हम यहां क्यों आए थे? क्या मम्मीपापा मेरे लिए विवान से झगड़ा करने आए हैं? पर उन्हें कैसे पता वह यहां रहता है?

‘‘मम्मा, हम यहां क्या करने आए हैं?’’ मैं ने उन पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली. वे हलकी सी मुसकराईं और बोलीं, ‘‘अंदर चल, सब पता चल जाएगा.’’

मेरे पैर अपनी जगह से हिलने को तैयार ही नहीं थे. मैं वहीं ठिठक कर खड़ी रही. मम्मी ने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि मैं वहीं की वहीं खड़ी थी. वे हाथ पकड़ कर मुझे अंदर ले गईं. अंकलआंटी हौल में हमारा इंतजार कर रहे थे. मम्मीपापा बड़ी ही गर्मजोशी से इन से मिले. क्या वे एकदूसरे को पहले से जानते थे? ये सब हो क्या रहा था? मैं ने अंकलआंटी को यंत्रवत नमस्ते किया और बैठ गई. विवान वहां नहीं था.

‘‘बेटा, विवान तुम्हारा अंदर अपने कमरे में इंतजार कर रहा है. जाओ, जा कर मिल लो,’’ आंटी ने प्यार से कहा. मैं उसी तरह यंत्रवत उठ कर उस के कमरे की तरफ चल दी.

दरवाजा हलका सा खुला था. बाहर से विवान दिखाई नहीं दे रहा था. मैं ने दरवाजे को हलका सा धक्का दे कर खोला. वह सामने बिस्तर पर बैठा काफी नर्वस दिखाई दे रहा था. मुझे अंदर आते देख कर उस के चेहरे की परेशानी और बढ़ गई.

‘‘ये सब क्या हो रहा है विवान? मेरे मम्मीपापा…तुम्हारे मम्मीपापा?’’ आखिरकार मेरी जबान ने कुछ हरकत की. विवान ने मुझे पकड़ कर पलंग पर बैठा दिया और खुद सामने कुरसी पर बैठ गया.

‘‘प्लाक्षा, मुझे समझ नहीं आ रहा. मैं तुम्हें कैसे बताऊं,’’ वह नजरें नीची कर के झिझकते हुए बोल रहा था.

‘‘अब भी कुछ बचा है क्या बताने को? और क्याक्या छिपाया है तुम ने मुझ से?’’ मैं ने खीझ कर कहा. मेरे सब्र का बांध टूट रहा था. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर मेरे साथ हो क्या रहा है. कोई मुझे कुछ बता ही नहीं रहा था.

‘‘बोलो अब. ऐसे चुप रहने से क्या होगा? मुझे बताना तो पड़ेगा. आखिर मेरे साथ कर क्या रहे हो?’’ मैं ने उस का चेहरा ऊपर उठाया तो देखा उस की आंखों में आंसू थे. ऐसा लग रहा था जैसे वह पिछले कुछ दिनों में बहुत रोया था. आंखें सूजी हुई और एकदम लाल थीं.

‘‘मुझे माफ कर दो प्लाक्षा. मैं ने आज तक  तुम्हारे साथ जो कुछ भी किया, उस के लिए मुझे माफ कर दो. मैं बस यही चाहता था कि पुरानी गलतियों को सुधार कर तुम्हें वापस पा सकूं. तुम्हारा दिल दुखाने का मेरा कोई इरादा नहीं था. प्लीज…मुझे माफ कर दो,’’ वह अपना चेहरा हाथों में लिए सुबक रहा था. मेरे लिए यह अप्रत्याशित था. वह आजतक कभी मेरे सामने नहीं रोया था. मैं ने उस के चेहरे से हाथ हटाए और आंसू पोंछने लगी.

‘‘कोई बात नहीं. तुम रोओ मत. मैं भी शायद कुछ ज्यादा ही निष्ठुर हो गई थी,’’ मेरी आवाज में नरमी आ गई थी. चाहे मैं उस से कितनी भी नाराज होऊं लेकिन उसे परेशान नहीं देख सकती थी. रोते हुए तो बिलकुल भी नहीं.

‘‘प्लाक्षा, मैं तुम से सच में बहुत प्यार करता हूं. मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. मैं बदल गया हूं प्लाक्षा, अब कभी तुम्हारा दिल नहीं दुखाऊंगा. तुम प्लीज मुझ से नाराज मत रहो,’’ वह फूटफूट कर रो रहा था. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? मेरे दिमाग में पुरानी बातें चल रही थीं. पिछले कुछ दिनों में जो कुछ हुआ वह भी और अब यह प्यार तो मैं भी उस से करती थी, लेकिन फिर से उसे मौका देना…

उसे रोता देख कर लग रहा था जैसे मेरे अंदर भी भावनाओं की बाढ़ आ गई हो. दिल कह रहा था कि सब कुछ भुला कर उसे सीने से लगा लूं. लेकिन दिमाग अब भी नापतौल में लगा था. बुत बन कर बैठी मैं उसे बेबसी से रोते हुए देख रही थी. लेकिन मेरे लिए उसे इस तरह देखना अब असहनीय हो रहा था.

आखिरकार हमेशा की तरह मैं ने दिमाग को परे कर के दिल की बात सुनी. उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर सहलाने लगी और बोली, ‘‘इस तरह रोओ मत विवान. मैं तुम से जरा भी नाराज नहीं हूं. मैं ने तुम्हें माफ भी कर दिया. बस तुम रोना बंद करो. मुझे यह बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा.’’

मेरा स्नेहिल स्पर्श पा कर उस का सुबकना कुछ कम हुआ. पानी पी कर वह थोड़ा सामान्य हो गया. मैं चुप ही थी. मेरे लिए अब भी काफी कुछ जानना बाकी था. मैं बस उस के बोलने का इंतजार कर रही थी.

उस ने हिम्मत कर के मेरी आंखों में देखा और कुरसी से उठ कर उसी दिन की तरह मेरे हाथों को अपने हाथों में लिए घुटनों के बल बैठ गया, ‘‘प्लाक्षा, सब से पहले तो मैं आज तक की अपनी सारी गलतियों के लिए तुम से फिर से माफी मांगना चाहता हूं. क्या तुम अपना समझ कर मेरी सारी गलतियों को माफ कर दोगी?’’

वह आशा भरी नजरों से मेरी तरफ देख रहा था. मैं ने बस हलके से सिर हिला दिया.

‘‘मैं वादा करता हूं कि अब तुम्हारा दिल कभी नहीं दुखाऊंगा,’’ उस की बात पर मुझे विश्वास था. यह बताने के लिए मैं ने उस के हाथों को हलके से दबाया.

‘‘पिछले कुछ दिनों में मैं ने तुम से बहुत सारे झूठ बोले हैं. लेकिन तुम जानती हो कि वह सब सिर्फ और सिर्फ तुम्हें पाने के लिए थे. क्या तुम उन सब के लिए मुझे माफ करोगी?’’ मैं ने अब भी कुछ नहीं कहा. बस पलकों को हिला कर हामी भर दी.

 

– क्रमश:

फिर से नहीं: भाग-4

अब तक आप ने पढ़ा:

विवान के वापस दिल्ली लौट जाने के बाद प्लाक्षा की मुलाकात अपने एक पुराने दोस्त आदित्य से हुई. आदित्य ने बताया कि उस की शादी साक्षी नाम की एक लड़की से होने जा रही है. प्लाक्षा ने जब साक्षी की तसवीर देखी तो चौंक गई. यह वही साक्षी थी, जिसे विवान ने अपनी गर्लफ्रैंड बताया था. वह तुरंत ही दिल्ली जा कर विवान के औफिस पहुंचती है तो वहां उस की मुलाकात साक्षी और विवान दोनों से हो जाती है. उधर प्लाक्षा के मातापिता उस पर शादी के लिए दबाब बना रहे थे और उन्होंने एक लड़का पसंद भी कर लिया था.

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मां का आदेश था कि मुझे नए कपड़े खरीदने हैं उस दिन पहनने के लिए. अब गलती की थी तो भुगतना तो था ही. सप्ताहांत में मैं उन के आदेश का पालन करने के लिए अकेली ही नजदीकी मौल में खरीदारी करने जा पहुंची. मुझे कुछ भी पसंद नहीं आ रहा था. वैसे भी मुझ से अकेले शौपिंग नहीं होती थी. न तो मुझे करनी आती थी और न ही मुझे अकेले घूमना पसंद था. खैर, आजकल जब सब कुछ अकेले ही कर रही थी तो यह भी सही. मैं शौपिंग में और ज्यादा ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी. 2-3 ड्रैसेज पसंद कर के मैं ट्रायल रूम में जाने लगी तो वहां खड़ा एक लड़का आदित्य जैसा दिखाई दिया. पास जाने पर पता चला कि वही था. शायद किसी का इंतजार कर रहा था.

‘‘आदित्य तुम यहां? दिल्ली कब आए? बताया भी नहीं.’’

मेरी आवाज सुन कर वह चौंक पड़ा. उस के चेहरे पर मुसकराहट आ गई, ‘‘आज सुबह ही आया हूं. तुम यहां क्या कर रही हो?’’

‘‘परांठे बेच रही हूं…अरे शौपिंग करने आई हूं और तुम ऐसा सवाल पूछ रहे हो,’’ मैं ने हंसते हुए कहा, तो वह भी हंसने लगा.

‘‘अच्छा हुआ तुम मिल गईं. साक्षी मेरे साथ ही है. उस से भी मिल लेना.’’

साक्षी इस के साथ? मैं ने आदित्य को अब तक कुछ नहीं बताया था. कहीं न कहीं आज भी मेरी वफादारी किसी और से ज्यादा विवान की तरफ ही थी. वैसे भी साक्षी को अपनी जिंदगी अपने तरीके से चलाने की पूरी आजादी थी. एक बार मसीहा बन कर भुगत चुकी थी मैं. फिर कोई बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी. आदित्य की ओर हलका सा मुसकरा कर मैं ट्रायल रूम की ओर बढ़ गई.

सभी ट्रायल रूम व्यस्त थे. मैं एक रूम के बाहर खड़ी हो कर इंतजार करने लगी. तभी पास वाले रूम से साक्षी बाहर निकली. मुझे वहां खड़ी देख कर वह सकपका गई.

‘‘हाय प्लाक्षा, कैसी हो?’’ वह बोली.

‘‘मैं ठीक हूं. तुम कैसी हो? और विवान कैसा है आजकल?’’ मैं ने झूठी मुसकान के साथ पूछा.

‘‘विवान ठीक है. तुम्हारी बात नहीं हुई उस से?’’ उस ने झिझकते हुए पूछा.

‘‘नहीं उस दिन के बाद हमारी बात नहीं हुई. वैसे बाहर मैं आदित्य से मिली. वह भी मेरा दोस्त है. उस ने मुझे बताया कि तुम दोनों की शादी होने वाली है,’’ मैं अपनी आवाज में छिपे क्रोध को छिपाने की कोशिश कर रही थी.

मेरी बात सुन कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया,  ‘‘ओह हां, ऐक्चुअली प्लाक्षा हम दोनों आई मीन मेरा और विवान का ब्रेकअप हो गया. मैं अपने मम्मीपापा के खिलाफ नहीं जा सकती, इसलिए हम अलग हो गए,’’ उस ने झूठी मायूसी के साथ कहा.

क्या तुम्हें पता है कि उस ने तुम्हारे कारण अपने मम्मीपापा से कितना बड़ा झूठ बोला है? और तुम कह रही हो कि तुम अपने मम्मीपापा के खिलाफ नहीं जा सकतीं. तुम उस के साथ ऐसा कैसे कर सकती हो?’’ मेरे स्वर में क्रोध था, आंखें गुस्से से जल रही थीं.

‘‘मुझे सब पता है कि उस ने क्या किया है, क्या नहीं. मैं उस की गर्लफ्रैंड हूं…आई मीन थी. और तुम क्यों इतनी परेशान हो रही हो उस के लिए? क्या अब तुम फिर से उस पर चांस मारने का सोच रही हो?’’

‘‘शटअप. बकवास बंद करो अपनी,’’ मैं ने गुस्से में कपड़े वहीं पटक दिए और वहां से जाने लगी.

‘‘बकवास तो तुम कर रही हो. दूसरों से भी और अपनेआप से भी. आंखें खोल कर देखो सचाई क्या है,’’ वह पीछे से बोलती जा रही थी.

शुक्र था कि आदित्य बाहर नहीं खड़ा था. मैं तेज कदमों से मौल के बाहर आ गई. अब मुझे विवान पर तरस आ रहा था. वह शुरू से ही बहुत सीधा था. कोई बड़ी बात नहीं थी कि साक्षी ने उस के साथ ऐसा किया. पता नहीं किस हाल में होगा वह और यहां साक्षी मजे से शौपिंग कर रही है. इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं लोग? मुझे विवान से बात करनी ही होगी अभी. फोन तो पर्स में था. पर्स कहां गया?

मैं भाग कर वापस मौल में गई. पर्स शायद ट्रायल रूम में ही भूल आई थी. साक्षी के चक्कर में दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया था. पर्स वहीं पड़ा था. सांस में सांस आई. पास के ट्रायल रूम से किसी की आवाज आ रही थी. कोई लड़की गुस्से में फोन पर बात कर रही थी. मैं नजरअंदाज कर के आगे बढ़ने लगी. तभी मेरे कानों ने वह नाम सुना जिस के बाद मेरे कदम वहीं ठिठक गए.

‘‘विवान तुम समझ नहीं रहे हो. मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था,’’ यह साक्षी की आवाज थी. ‘‘मुझे उस से बदतमीजी से बात करनी पड़ी वरना उसे शक हो जाता. तुम भी न कभी ढंग से झूठ नहीं बोल सकते. झूठ बोलते वक्त हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपने भागीदारों से कुछ न छिपाओ पर तुम्हें तो सब कुछ खुद करना होता है.’’

झूठ? विवान ने किस से झूठ बोला था, मुझ से? और साक्षी भी उस में भागीदार थी? मैं सोच रही थी.

‘‘अच्छा अब भड़को मत. यह सोचो कि आगे क्या करना है. मुझे उस वक्त जो समझ आया मैं ने बोल दिया. अब तुम ही सिचुएशन को संभालो.’’

आवाज आनी बंद हो गई. मैं बाहर चल पड़ी. बाहर आदित्य मिल गया.

‘‘अरे प्लाक्षा, तू इतनी देर से अंदर थी? साक्षी भी पता नहीं इतनी देर से क्या कर रही है. मैं पूरा मौल घूम आया और वह अभी बाहर नहीं आई. तुम्हें मिली क्या?’’

मैं उस वक्त उस से बात करने के बिलकुल मूड में नहीं थी. ‘‘नहीं, मैं अभी चलती हूं जरूरी काम है,’’ इतना कह कर मैं बाहर आ गई.

 

कुछ देर पहले विवान के लिए जो तरस था वह अब गुस्से में बदल चुका था. उस ने मुझ से झूठ बोला था? लेकिन वह झूठ कैसे बोल सकता है? उसे तो झूठ से सख्त नफरत थी. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है. मेरा दिमाग चकराने लगा था. मैं फुटपाथ पर ही एक बैंच पर बैठ गई. कुछ भी सोचनेसमझने की क्षमता अब मुझ में नहीं थी. बेहतर यही होगा कि मैं विवान के मुंह से ही सब कुछ सुनूं.

‘‘हैलो विवान, तुम मुझ से अभी मिल सकते हो?’’ इतना ही कह पाई मैं.

उस की आवाज में हैरानी के साथसाथ चिंता भी झलक रही थी, ‘‘प्लाक्षा, तुम कहां हो? इतने दिनों से तुम से मिलने की, बात करने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा.’’

‘‘अभी मिल सकते हो?’’ मैं ने फिर से पूछा.

‘‘हां बिलकुल, बताओ कहां आना है?’’

‘‘घर आ जाओ,’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया. इतने दिनों से मेरे जीवन में चल रही उथलपुथल शायद आज शांत हो जाएगी. थके कदमों से मैं घर की ओर चल पड़ी. अभी सचाई का सामाना करना बाकी था.

मेरे पहुंचने से पहले ही विवान मेरे घर पहुंच चुका था. मैं चुपचाप ताला खोलने लगी. उसे अभी यह नहीं पता था कि मैं ने उस की और साक्षी की फोन पर की गई बात सुन ली थी. मैं देखना चाहती थी कि अब भी मुझे बेवकूफ ही बनाता है या सच बोलता है.

‘‘साक्षी ने मुझे बताया कि आज तुम मिली थीं उस से. उस की तरफ से मैं तुम से माफी मांगता हूं. वह ब्रेकअप और शादी के कारण वैसे ही काफी परेशान है, इसीलिए इतना कुछ बोल गई,’’ मेरे कुछ पूछे बिना ही वह बोलने लगा.

‘‘इट्स ओके,’’ मैं ने इतना ही कहा.

‘‘तुम नाराज हो क्या मुझ से? मैं नहीं बता पाया तुम्हें उस वक्त. तुम्हारी अपनी प्रौब्लम थी और मैं भी साक्षी के कारण परेशान चल रहा था. वह सब मैं उस दिन पता नहीं कैसे कह गया,’’ वह बोलता जा रहा था.

‘‘इट्स ओके विवान. मैं नाराज नहीं हूं,’’ मैं शांत थी.

‘‘फिर तुम ने मुझे यहां क्यों बुलाया?’’ वह थोड़ा हैरान था, ‘‘मम्मीपापा से फिर मिलना है क्या?’’

मैं ने इनकार में सिर हिला दिया. फिर बोली, ‘‘मुझे सच जानना है विवान.’’

‘‘सच? किस बात का सच?’’

बातें घुमाने का अब कोई मतलब नहीं था. मैं ने सीधेसीधे पूछने का निश्चय किया और बोली, ‘‘आज मुझ से लड़ाई के बाद जब साक्षी तुम से फोन पर बात कर रही थी तो मैं ने कुछ बातें सुन ली थीं. उन्हें सुन कर मुझे लगा कि तुम मुझ से कुछ झूठ बोल रहे हो.’’

विवान के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. उसे उम्मीद नहीं थी कि इस तरीके से उस की पोल खुल जाएगी.

‘‘नहीं वह किसी और के बारे में बात कर रही थी. तुम ने शायद गलत समझ लिया,’’ वह बोला. लेकिन पहली बार वह मुझ से नजरें चुरा रहा था.

‘‘और झूठ नहीं विवान, मुझे सिर्फ सच सुनना है,’’ मैं चिल्लाई नहीं थी. अपने शांत स्वर पर मैं खुद हैरान थी.

विवान शब्द ढूंढ़ने की कोशिश कर रहा था. झूठ बोलना आसान होता है, लेकिन उसे स्वीकार करना बहुत मुश्किल. उस ने अपनी आंखों को उंगलियों से ढक कर खुद को शांत करने की कोशिश की, फिर हिम्मत कर के बोलना शुरू किया, ‘‘प्लाक्षा, पिछले कुछ महीनों में मैं ने तुम से पता नहीं कितने झूठ बोले हैं. मैं कोई सफाई नहीं देना चाहता लेकिन मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाने का नहीं था. मैं बस तुम्हें पाने के लिए यह सब झूठ बोलता गया.’’

‘‘मतलब?’’ अब सब कुछ मेरे बरदाश्त से बाहर होता जा रहा था, ‘‘हमारा ब्रेकअप हो चुका है न 2 साल पहले? फिर ये पानाखोना क्या है?’’

विवान के आंसू आने लगे थे, ‘‘प्लाक्षा, मैं तुम्हें सब कुछ सचसच बताता हूं. बस तुम बीच में रिऐक्ट मत करना. पहले पूरी बात सुनना. उस के बाद ही फैसला करना कि मैं सही हूं या गलत.’’ मैं ने हामी में सिर हिला दिया. 2 मिनट तक खुद को संयमित करने के बाद उस ने फिर से बोलना शुरू किया, ‘‘तुम तो जानती हो मैं अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में कितना कमजोर हूं. और शायद सारे लड़के ऐसे ही होते हैं. ऐसा नहीं है प्लाक्षा कि मैं ने तुम से कभी प्यार नहीं किया, लेकिन मुझे कभी उसे जताना नहीं आया. जब हमारा ब्रेकअप हुआ तो मैं तुम्हें जाने से नहीं रोक पाया. कहीं न कहीं मैं जानता था कि मुझ में ही कोई कमी थी. तुम पर हक तो पूरा जताता था, लेकिन बदले में प्यार देना भूल जाता था.

‘‘ब्रेकअप के बाद कुछ वक्त तक तो मैं सामान्य रहा. तब तो कई बार हमारी बात भी हो जाती थी तो लगता ही नहीं था कि हम दूर हुए हैं. उस के बाद जब तुम ने कोई भी संपर्क रखने से मना कर दिया तब भी मैं ने बिना सोचेसमझे हामी भर दी. उस वक्त तक मुझे एहसास नहीं था कि तुम मेरे लिए कितनी इंपौर्टेंट हो.

‘‘इस दौरान मैं कई तरह के लोगों से मिला, कई तरह के अनुभव हुए. धीरेधीरे एक बात समझ आई कि तुम ने जितनी अच्छी तरह मुझे संभाल रखा था, उतना कोई कभी नहीं कर सकता. तब मुझे तुम्हारी कमी का एहसास हुआ. कई बार तो अकेलेपन में मन ही मन रो पड़ता तुम्हें याद कर के. कई बार तुम से बात करने की भी कोशिश की लेकिन तब तक शायद तुम मेरे प्रति बिलकुल निष्ठुर हो चुकी थीं. तुम ने भी ढंग से बात करना छोड़ दिया.

‘‘तुम्हारी जिंदगी में जो भी चल रहा था, उस एकएक बात की खबर थी मुझे. मुझ से अलग हो कर काफी आत्मनिर्भर हो गई थीं तुम. तुम्हें ऐसे देख कर खुशी भी होती थी और दुख भी कि मैं ने इतने सालों तक तुम्हें बांध कर रखा. मैं ने तुम से कभी कहा नहीं लेकिन मुझे हमेशा से तुम पर गर्व था. अपने पुरुष अहं के कारण ही शायद तुम्हें कभीकभार रोक बैठता था पर जब मैं चला गया तो तुम ने अपने हिसाब से जीना शुरू कर दिया. मुझे बस एक ही बात का डर रहता था कि कोई तुम्हारे भोलेपन का फायदा न उठा ले. तुम चाहे कितनी भी मुंहफट, मजबूत और समझदार हो, लेकिन तुम्हारी सब से बड़ी कमजोरी यह है कि तुम किसी को भी बहुत जल्दी अपना मान लेती हो. पहले तो मैं तुम्हें अपने सुरक्षा घेरे में रखता था कि कोई तुम्हें किसी तरह की कोई चोट न पहुंचाए लेकिन अब मैं नहीं था. तुम ने कई बार धोखे खाए और फिर से उठ खड़ी हुईं, वह भी दोगुने आत्मविश्वास के साथ.

‘‘उस वक्त मुझे लगने लगा कि मुझ में भी कई परिवर्तन आ रहे हैं. तुम्हारे जीवन में जो कुछ भी चल रहा था उसे देख कर जलन तो होती थी, लेकिन तुम जिस तरह से अपनेआप को संभाल रही थीं उसे सराहने से खुद को रोक नहीं पाता था. मेरे मन में तुम्हारे लिए इज्जत बढ़ती जा रही थी.’’

‘‘इन सब बातों का तुम्हारे झूठ से क्या संबंध? मुझे इन फालतू फिल्मी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ मैं ने सपाट शब्दों में कहा. वह आखिर साबित क्या करना चाहता था कि वह अब भी मुझ से…? नहीं, अब मैं बेवकूफ नहीं थी. उस के पास पूरे 5 साल थे अपने प्यार को साबित करने के लिए. अब इन सब बातों का क्या मतलब?

‘‘प्लीज प्लाक्षा, मेरी पूरी बात तो सुन लो. फिर तुम्हें जो कहना हो जी भर के कह लेना,’’ उस ने विनती की तो मैं गुस्सा पी कर चुप हो गई.

‘‘मेरे घर पर मेरी शादी की बातें होने लगी थीं. मैं ने उन से कह दिया था कि मुझे शादी नहीं करनी. लेकिन घर वालों को तुम तो जानती ही हो. वे सुनते ही कहां हैं. कुछ लड़कियों से मुझे मिलवा भी दिया. मगर मेरी नजर हर लड़की में तुम्हें ही ढूंढ़ती. सब में कुछ न कुछ तुम सा मिला, लेकिन मुझे तो तुम चाहिए थीं. और कोई पसंद ही कहां आने वाली थी.

‘‘फिर एक दिन मैं ने मम्मीपापा से कह दिया कि मैं शादी करूंगा तो सिर्फ तुम से वरना जिंदगी भर कुंवारा रहूंगा. उन्हें इस में कोई परेशानी नहीं थी. परेशानी तो तुम्हें मनाने की थी. तुम तो मुझ से इतनी दूर चली गई थीं कि तुम्हें वापस पाना कोई आसान काम नहीं था. तभी मुझे पता चला कि तुम दिल्ली आ गई हो.

‘‘मैं बिना कुछ सोचेसमझे तुम से मिलने की योजना बनाने लगा. उस दिन जब मैं तुम्हारे औफिस आया था, वह इत्तफाक नहीं था. मैं जानता था कि तुम वहां काम करती हो. पहले तो मुझे लगा कि अपने चार्म से तुम्हें मना लूंगा, लेकिन उस दिन तुम्हारा रुख देख कर मुझे पता चल गया कि यह काम इतना आसान नहीं है. 2-3 दिन तक यही सोचता रहा कि क्या और कैसे करूं?

‘‘तब साक्षी ने मुझे यह रास्ता बताया. वह मेरी दोस्त है प्लाक्षा. हम दोनों ने मिल कर यह कहानी रची. मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम मेरी बात मान जाओगी पर तुम ने हां कह दिया. मैं हैरान तो था लेकिन खुश भी. यह सोच कर कि शायद तुम्हारे मन में अब भी कहीं न कहीं मेरे लिए थोड़ी जगह है.

‘‘मम्मीपापा को भी अपनी इस योजना में शामिल कर लिया. तुम्हें उन से मिलवाना कोई बड़ी बात नहीं थी. मुश्किल यह थी कि जब तुम्हारे साथ अकेला होता तो खुद को संभाल नहीं पाता था. उस दिन तुम्हारे जन्मदिन पर शायद मैं अपना भांडा फोड देता, लेकिन अच्छा हुआ जो तुम नाराज हुईं और मैं चुपचाप वहां से चला आया.

‘‘जब तुम ने मुझ से अपने मम्मीपापा से मिलने को कहा तो मुझे बहुत हंसी आई. जो काम मैं तुम से झूठ बोल कर करवा रहा था तुम वही मुझ से सच में करवाना चाहती थी. मेरे लिए तो ये सोने में सुहागा था. तुम्हारे साथ ज्यादा वक्त बिताने का मौका जो मिल रहा था, वह भी बिना कोई योजना बनाए.

‘‘और हां, तुम्हारे दोस्त आदित्य को कैसे भूल सकता हूं. उस के कारण तो सारा खेल बिगड़ गया मेरा. मैं कहता था न मुझे वह शुरू से पसंद नहीं था.’’

मैं व्यंग्य से मुसकरा दी. वह बोलता जा रहा था, ‘‘इत्तफाक देखो, औफिस आते ही जिस से तुम सब से पहले मिलीं, वह साक्षी थी. तुम दोनों को साथ देख कर मैं समझ गया कि अब मेरा खेल और नहीं बचा. उस दिन भी मैं तुम से झूठ ही बोला. साक्षी के सामने आने से सब कुछ बिगड़ गया था. अब मेरे पास तुम से मिलने का कोई बहाना नहीं था. प्लान तो यह था कि अपने ब्रेकअप की बात कह कर तुम्हारी सहानुभूति पाने के बहाने तुम्हारे करीब आ जाऊंगा. पर अब तो तुम मुझ से बात करने को ही राजी नहीं थीं.

‘‘आज जो कुछ भी हुआ वह योजनानुसार नहीं था. हालांकि करना मैं भी यही चाहता था जो साक्षी ने किया लेकिन मैं तुम से झूठ बोलबोल कर थक चुका था. आज तुम से मिलने में बहुत डर लग रहा था. जानता था कि आज तुम्हें सच बताना ही पड़ेगा. बस यही सच है. अब तुम मेरे साथ जो सुलूक करना चाहती हो कर सकती हो.’’

-क्रमश:

फिर से नहीं: भाग-2

पूर्व कथा:

ब्रेकअप के 2 साल बाद अचानक प्लाक्षा की मुलाकात अपने ऐक्स बौयफ्रैंड विवान से हुई, तो उस के दिमाग में फिर से वही पुरानी बातें घूमने लगीं. जब एक रोज प्लाक्षा ने विवान को प्रपोज किया था. मगर विवान के शक्की व्यवहार ने उन दोनों के बीच जल्द ही दूरियां पैदा कर दी थीं. 1 हफ्ते बाद विवान फिर प्लाक्षा को उस के औफिस के बाहर मिला. वह उस से कुछ जरूरी बात करना चाहता था. मगर प्लाक्षा जल्दी में थी इसलिए शाम को मिलने का वादा कर के चली गई. शाम को जब दोनों मिले तो विवान ने कहा कि क्या तुम मेरे मम्मीपापा से मेरी गर्लफ्रैंड बन कर मिल सकती हो. सारा मामला जानने के बाद प्लाक्षा मिलने को राजी हो गई.

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‘‘उस का चेहरा मेरे चेहरे के बिलकुल नजदीक था. उस की सांसों को मैं अपनी गरदन पर महसूस कर रही थी. मन कर रहा था कि उस से लिपट जाऊं और जी भर के रोऊं. नहींनहीं…’’

‘‘तुम यह सब क्यों कर रहे हो विवान?’’ प्लाक्षा अंतत: पूछ ही बैठी.

‘‘तुमतो काफी छोटी लगती हो विवान से,’’ उस की मम्मी ने कहा.

‘‘नहीं आंटी, हम तो एक ही…’’ मेरी बात काट कर विवान बीच में ही बोला, ‘‘एक ही औफिस में काम करते हैं, एक ही बैच के हैं.’’ अच्छा हुआ उस ने संभाल लिया. मेरे मुंह से निकलने वाला था कि हम एक ही क्लास में थे.

‘‘फिर भी छोटी लगती है,’’ कह कर वे फुसफुसा कर उस के पापा के कान में कुछ कहने लगीं. मुझे पता था कि वे मेरी हाइट के बारे में बात कर रही होंगी. बचपन से सुनती आई थी ऐसी बातें लोगों के मुंह से, अब तो आदत हो चुकी थी. उन की बात भी सही थी. विवान मुझ से एक फीट से भी ज्यादा लंबा था.

‘‘तो बेटा, तुम यहां अकेली रहती हो?’’ उस के पापा ने पूछा.

‘जी. जौब यहीं है और मम्मापापा का जयपुर में अपनाअपना काम है, इसलिए अकेली ही रहती हूं,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘शादी की बात करने तो वे आएंगे न?’’ उन्होंने आगे पूछा.

‘‘जी…’’ मैं ने झिझक कर विवान की ओर देखा.

‘‘पापा, अभी जयपुर में इन के घर का काम चल रहा है और फिर उन की जौब भी है, तो अभी नहीं आ सकते,’’ उस ने कहा.

‘‘तो हम जयपुर चले चलते हैं,’’ अंकलआंटी दोनों ने एक स्वर में कहा.

‘‘अरे इतनी भी क्या जल्दी है? वैसे भी अगले महीने मुझे प्रमोशन मिलने वाली है. तब तक अंकलआंटी भी फ्री हो जाएंगे,’’ विवान जल्दी से बोला.

‘‘अभी अगर सगाई ही हो जाती तो…’’ आंटी ने उम्मीद भरे स्वर में कहा.

‘‘मां मुझे पता है आप को मेरी शादी की बहुत जल्दी है. इतने दिन रुकी हो, तो अब थोड़े दिन और रुक जाओ,’’ उस ने मां को समझाते हुए कहा.

घर से बाहर आ कर कार में बैठ कर मैं ने चैन की सांस ली. विवान ने कार स्टार्ट की ही थी कि मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा, ‘‘मुझे एक बात बताओ विवान. तुम ने अपने घर वालों को सीधासीधा यह क्यों नहीं बता दिया कि साक्षी अभी यहां नहीं है, 6 महीने बाद आएगी?’’

मेरी बात सुन कर वह कुछ परेशान हो गया. फिर बोला, ‘‘मेरी मौसी की बेटी की सगाई एक लड़के से हुई थी. उस के बाद वह विदेश चला गया. उन लोगों ने 1 साल तक उस का इंतजार किया, लेकिन वह वापस नहीं आया. यहां उस के परिवार को भी उस की कोई खबर नहीं थी. बाद में छानबीन करने पर पता चला कि वह वहां आराम से लिव इन में रह रहा था. उस के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज हुई, लेकिन सगाई में हुए खर्चे और परिवार की इज्जत को हुए नुकसान की तो कोई भरपाई नहीं हुई.’’

‘‘लेकिन साक्षी तो कंपनी की तरफ से गई है न, उसे तो वापस आना ही पड़ेगा 6 महीने बाद?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, लेकिन मां यह बात नहीं समझ सकतीं न. उन्हें तो लगता है कि विदेश जाने वाला हर इनसान धोखेबाज हो जाता है,’’ उस ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

‘‘और जब साक्षी वापस आ जाएगी तब उन से क्या कहोगे? अपने ही बेटे से मिले धोखे को वे बरदाश्त कर पाएंगी?’’ मुझे सब कुछ बिलकुल घालमेल सा लग रहा था.

‘‘मैं इस बारे में नहीं सोचना चाहता पाशी. वह जब होगा तब मैं संभाल लूंगा. अभी बस मुझे मम्मीपापा को किसी तरह 6 महीने तक रोकना है. इस के अलावा मुझे अभी कुछ नहीं सूझ रहा.’’ उस ने कार रोक दी. मेरा घर आ चुका था.

‘‘तुम्हें लगता है कि तुम सही कर रहे हो विवान?’’ मैं ने इन दिनों में पहली बार उस की आंखों में देखते हुए पूछा.

‘‘नहीं, लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं है अपने प्यार को पाने का,’’ उस ने मेरी आंखों में आंखें डालते हुए कहा. एक पल को लगा जैसे दुनिया ठहर गई हो पर फिर ध्यान आया उस का प्यार यानी साक्षी. मैं चुपचाप कार से उतर गई. वह चला गया.

अगले कुछ दिनों तक न तो उस का कोई काल आया और न ही वह कहीं नजर आया. मैं जानती थी कि वह मेरे पास सिर्फ काम से आया था पर फिर भी मुझे बुरा लगा. ऐसा नहीं था कि मैं ने उस से कोई उम्मीद की थी, लेकिन शायद फिर से उसे सामने देख कर दिल एक बार फिर ख्वाब संजोने लगा था. कई बार काफी दुखी हो जाती, उसे काल करने की भी सोचती. कई बार जी में आया कि मना कर दूं कि मुझे नहीं करनी किसी भी तरह की कोई भी मदद. लेकिन उस से जो मांगना था, उस के लालच में खुद को मना लेती. इस बार मैं कुछ भी भावनाओं में बह कर नहीं कर रही थी. इस में मेरा भी स्वार्थ था.

एक रात इन्हीं विचारों में डूबी मैं बिस्तर पर लेटी करवटें बदल रही थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं चौंक कर उठ बैठी. इतनी रात को कौन हो सकता है? घड़ी में देखा, पौने 12 बज रहे थे. वैसे तो जिस प्रोफैशन में मैं थी मुझे डरना नहीं चाहिए था, लेकिन इतने बड़े शहर में अकेली लड़की का फ्लैट में रहना आसान नहीं था. आज तक कोई खास परेशानी तो नहीं हुई थी पर आज इस घंटी की आवाज सुन कर दिल जोरजोर से धड़कने लगा. पिछले कुछ समय में लड़कियों के साथ हुए सारे हादसे याद आने लगे.

पलंग से उतर कर धीमे कदमों से मैं दरवाजे तक पहुंची. डोर व्यूवर में देखा तो बाहर विवान खड़ा था.

‘‘तुम इतनी रात को यहां क्या कर रहे हो?’’ दरवाजा खोलते ही मैं ने पूछा.

उस ने जवाब दिए बिना ही कहा, ‘‘अंदर आ जाऊं? मैं किनारे हो गई. अंदर जा कर वह कुरसी पर बैठ गया. मैं भी दरवाजा बंद कर के अंदर आ गई.

‘‘एक गिलास पानी पिलाओगी?’’ वह बोला, तो पानी पिला कर उस के पास ही कुरसी पर बैठ कर मैं उस के बोलने का इंतजार करने लगी. मुझे अपनी तरफ घूरते देख वह बोला,  ‘‘सौरी, तुम्हें इतनी रात को परेशान किया. मैं अपने घर की चाबी न जाने कहां भूल गया. मम्मीपापा जयपुर गए हैं, तो समझ नहीं आया क्या करूं. इसलिए यहां आ गया.’’

‘‘जयपुर क्यों?’’ मैं ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘अरे ऐसे ही कुछ काम था. तुम क्यों इतनी परेशान हो रही हो?’’

‘‘नहीं, मुझे लगा कि…’’

‘‘कि?’’

‘‘कुछ नहीं…’’ लेकिन मेरे बिना बोले ही वह समझ गया.

‘चिंता मत करो. मैं ने मम्मीपापा को मना कर दिया है कि वे तुम्हारे मम्मीपापा से न मिलें,’’ उस ने तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘अच्छा 1 कप कौफी पिलाओगी?’’ उस की बात सुन कर मेरा ध्यान टूटा.

‘‘हां क्यों नहीं. अभी लाती हूं,’’ कह कर मैं उठ कर किचन में चली गयी. 2 मिनट बाद ही बाहर से विवान जोरजोर से आवाज लगाने लगा. मैं दौड़ कर बाहर आई तो देखा हौल में बिलकुल अंधेरा था, विवान वहां नहीं था. तभी फिर से उस की आवाज आई, ‘‘हैपी बर्थडे टू यू…हैपी बर्थडे टू यू…हैपी बर्थडे टू डियर पाशी…,’’ वह हाथ में केक लिए मेरे पास आ रहा था. उसे याद था पर कैसे और क्यों? इस बार तो मुझे भी याद नहीं था.

‘‘थैंक्यू विवान. पर यह सब किसलिए?’’ मेरे स्वर में हैरानी थी.

उस ने मेरे होंठों पर उंगली रख कर कहा, ‘‘आओ पहले केक काटो. बाद में तुम्हारे परवर का जवाब दूंगा.’’

केक मेरा फेवरेट था यानी चौकलेट केक. उस पर लिखा था, ‘हैपी बर्थडे पाशी.’ आज कई सालों बाद मैं ने केक काटा था. विवान ने रिलेशनशिप के 5 सालों में मेरे बर्थडे पर कभी कुछ स्पैशल नहीं किया था. हर साल हमारा एक ही प्लान होता था मूवी और लंच. मैं हर साल उत्साहित होती कि शायद इस बार वह कुछ करेगा. लेकिन जब 2-3 साल यही सिलसिला चला, तो मैं ने उम्मीद करना ही छोड़ दिया.

कुछ जलने की बदबू आ रही थी. कौफी…मेरे मुंह से निकला. फिर मैं केक का टुकड़ा उस के हाथ में थमा कर किचन की तरफ भागी. गैस स्टोव खुला पड़ा था. पानी उबलउबल कर खत्म हो गया था और कौफी जलने की बदबू आ रही थी. मैं ने जल्दी से नौब बंद किया. विवान भी अंदर आ गया. यह सब देख कर वह बोला, ‘‘कोई बात नहीं. मैं कोल्ड ड्रिंक्स लाया हूं और खाने का सामान भी. मैं ने डिनर भी नहीं किया. चलो बाहर चलें.’’ वह बैग से एकएक कर के चीजें निकाल रहा था. पिज्जा, कोल्ड ड्रिंक और तोहफा.

‘‘ये लो तुम्हारा गिफ्ट,’’ उस ने तोहफा मुझे थमा दिया जो एक बहुत खूबसूरत कोलाज था. बचपन से ले कर आज तक की मेरी सारी तसवीरें. उन में से अधिकतर वे थीं, जो विवान ने मुझ से ली थीं. कुछ तो उन्हीं दिनों की थीं. मुझे पता ही नहीं चला उस ने कब खींची थीं.

‘‘विवान,’’ मैं ने उसे अपनी ओर घुमाते हुए कहा.

‘‘हां गोरी मेम.’’

एक सैकंड को मेरे चेहरे पर मुसकान आ गई. वह हमेशा मुझे प्यार से ऐसे ही बुलाता था. अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम यह सब क्यों कर रहे हो विवान?’’

‘मैं ने क्या किया?’’ उस ने मासूम बन कर पूछा.

‘‘यही सब…मेरा बर्थडे मना रहे हो रात के 12 बजे. 5 साल के रिलेशनशिप में कभी भी मेरे लिए कुछ स्पैशल नहीं किया. अब यह सब किसलिए?’’ मेरी आंखों में आंसू थे.

‘‘अरे तुम रो क्यों रही हो…तुम मेरी इतनी हैल्प कर सकती हो तो क्या मैं तुम्हारा बर्थडे भी नहीं मना सकता? क्यों इतना भी हक नहीं है मुझे?’’ वह मेरे गाल थपथपाते हुए बोला.

‘‘नहीं है. मुझे यह सब नहीं चाहिए विवान. मैं ने बहुत प्यार ले लिया सब से. अब और नहीं चाहिए. बेहतर होगा कि तुम यह सब न करो,’’ मेरे स्वर में दृढ़ता थी.

‘‘आगे से ध्यान रखूंगा पर अभी जो प्लान किया है वह तो करने दो प्लीज.’’

हम दोनों खामोशी से बैठ कर खाते रहे. अपना पसंदीदा पिज्जा खा कर मेरे मूड में कुछ सुधार हुआ. अब हम आराम से बैठ कर कोल्ड ड्रिंक पी रहे थे.

‘‘तुम्हारे पास साक्षी का कोई फोटो है?’’ मैं ने विवान से पूछा.

‘‘हां, क्यों?’’

मैं ने उस से दिखाने को कहा. साक्षी सुंदर थी. मुझ से ज्यादा सुंदर. मैं तो वैसे भी खुद को कभी सुंदर नहीं मानती थी. मैं ने विवान से कह भी दिया कि साक्षी बहुत सुंदर है, उस के लायक है. विवान खुद भी बहुत स्मार्ट था. अच्छीखासी कदकाठी, आकर्षक चेहरा. मैं तो उस के सामने कुछ भी नहीं थी.

‘‘तुम से ज्यादा क्यूट नहीं है,’’ उस ने शरारती अंदाज में कहा.

‘‘मजाक मत करो विवान,’’ मैं ने उसे हंस कर टाल दिया.

वह मुझे एकटक देख रहा था. मैं नजरें चुरा कर दूसरी ओर देखने लगी. यह देख कर उस ने भी अपनी नजरें हटा लीं और सहज हो कर कहा,  ‘‘चलो डांस करते हैं.’’

‘‘डांस? विवान तुम मजाक कर रहे हो. तुम और डांस?’’

‘‘हां, आजकल खूब डिस्को जा रहा हूं. चलो उठो.’’

‘‘अरे नहीं, मन नहीं है,’’ मैं ने आनाकानी करने की कोशिश की, लेकिन उस ने एक ही झटके में मुझे उठा लिया.

काफी वक्त बाद हम इतने करीब थे. विवान सहज था पर मैं असहज महसूस कर रही थी. उस का स्पर्श उस के पास होने का एहसास मुझे विचलित कर रहा था. कहीं अब भी मैं उस से…? नहींनहीं फिर से नहीं. उस का चेहरा मेरे चेहरे के बिलकुल नजदीक था. उस की सांसों को मैं अपनी गरदन पर महसूस कर रही थी. मन कर रहा था कि उस से लिपट जाऊं और जी भर के रोऊं. नहींनहीं…

मैं छिटक कर उस से अलग हो गई. उस की आंखों में ग्लानि और हैरानी का मिलाजुला भाव था. ‘‘तुम अब जाओ विवान,’’ मैं ने उस से नजरें मिलाए बिना कहा. वह बिना कुछ कहे चला गया. सुबहसुबह मां के फोन से आंखें खुलीं. जन्मदिन की बधाई देने के बाद वे घर आने के कार्यक्रम के बारे में पूछने लगीं. वे जानती थीं कि नईनई नौकरी में छुट्टी मिलना आसान नहीं होता इसलिए कभी ज्यादा जोर नहीं देती थीं. लेकिन मैं पहली बार घर से दूर अकेली रह रही थी इसलिए उन्हें याद भी आती थी और फिक्र भी होती थी. मैं ने उन्हें तसल्ली दी कि राखी पर पक्का आ जाऊंगी. इसी बहाने भाई से भी मिलना हो जाएगा.

मां ने संतुष्ट हो कर फोन पापा को दे दिया. पापा ने बधाई दे कर और हालचाल पूछ कर फोन वापस मां को थमा दिया. इस बार मां के स्वर में उत्साह था,  ‘‘अच्छा सुन तेरे लिए एक रिश्ता आया है. तेरे पापा को तो पसंद भी आ गया.’’

‘‘मम्मा, आप को पता है न मुझे शादी नहीं करनी, फिर भी आप…’’ मैं ने चिढ़ कर कहा.

‘‘अरे कभी न कभी तो करनी है न. वे लोग इंतजार करने को तैयार हैं.’’

‘‘जरूर कोई कमी होगी लड़के में. ऐसे कौन इंतजार करता है.’’

‘‘कोई कमी नहीं है. मैं ने देखा है. अच्छाखासा दिखता है. इंजीनियर है, कमाई भी ठीकठाक है. तुझे भी जरूर पसंद आएगा.’’

अच्छा तो बात यहां तक पहुंच चुकी है. मुझ से पूछे बिना मेरी शादी की बातें हो रही हैं. लड़के देखे जा रहे हैं और पसंद भी किए जा रहे हैं. मुझे अब बहुत चिढ़ होने लगी तो मैं गुस्से से बोली, ‘‘इंजीनियर होने से क्या होता है मम्मा, वह तो मैं भी थी. आजकल तो हर दूसरा बंदा इंजीनियर है.’’

मेरा जीवन भर शादी करने का कोई इरादा नहीं था. लगता था जैसे दुनिया भर की परेशानियां पिछले कुछ सालों में झेल ली थीं और लड़कों को तो मैं बरदाश्त भी नहीं कर सकती थी. विवान की बात अलग थी. मैं उस की एकएक आदत जानती थी और वह मेरी. मुझे पता था उसे किस स्थिति में कैसे संभालना है. बाकी तो आज तक सब लड़कों ने मुझे बेवकूफ ही बनाया था चाहे वे दोस्त हों या कुछ और.

‘‘एक बार मिलने में क्या हरज है बेटा? हम कौन सा जबरदस्ती तेरी शादी करा देंगे,’’ मां ने मनुहार करते हुए कहा.

‘‘पर मुझे शादी करनी ही नहीं है मां,’’ मैं किसी कीमत पर नहीं मानने वाली थी. ये सब घर वालों की साजिश होती है. पहले मिलने में क्या हरज है, फिर रिश्ता ही तो पक्का हुआ है, फिर सगाई भी कर ही देते हैं और आखिर में शादी करा के ही मानते हैं. मुझे इस जाल में नहीं फंसना था.

‘‘क्यों नहीं करनी? मुझे कारण तो बता. कोई है क्या? हो तो बता दे. तू तो जानती है हमें कोई प्रौब्लम नहीं होगी.’’

‘‘हां मां, कोई है.’’ मैं ने हकलाते हुए कहा. मां से झूठ बोलना बहुत बड़ी बात थी. हम दोनों मां बेटी होने से ज्यादा दोस्त थीं, लेकिन अभी मुझे कुछ और सूझ ही नहीं रहा था.

‘‘कौन है, क्या करता है? वहीं का ही है क्या? बताया क्यों नहीं?’’ मां ने एक के बाद एक सवाल दागने शुरू कर दिए.

‘‘मम्मा, आप उस को जानती हो. मेरे साथ कालेज में था. इंजीनियरिंग में. आजकल यहीं है.’’

‘‘कौन, विवान?’’

मां भी न मां ही होती है. मैं हंस पड़ी,  ‘‘हां मां, आप को कैसे पता?’’

‘‘बेटा मैं आप की मां हूं. तू जिस तरीके से उस के बारे में बात करती थी, उस से मुझे लगता तो था कि कुछ न कुछ तो है.’’ मैं कुछ नहीं बोली. मां ही आगे बोलने लगीं, ‘‘तो घर कब ला रही है उसे? पापा से भी तो मिलवाना पड़ेगा न.’’

‘‘नहीं मां, पापा को मत बताना प्लीज. वे पता नहीं क्या सोचेंगे.’’

पापा से मेरा रिश्ता थोड़ा अलग किस्म का था. वह न तो दोस्ती जितना खुला था और न ही पारंपरिक पितापुत्री जैसा दकियानूसी. हम दोनों दुनिया के किसी भी बौद्धिक मुद्दे पर बात कर सकते थे, लेकिन बायफ्रैंड, शादी वगैरह पर कभी नहीं.

‘‘क्या सोचेंगे? वे जानते हैं कि उन की बेटी समझदार है. जो भी फैसला लेगी सोचसमझ कर ही लेगी,’’ मां मेरी बात को समझ ही नहीं रही थीं और मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे रोकूं मां को?

‘‘मां, लेकिन…’’ मैं ने बोलने की कोशिश की.

‘‘अब कुछ लेकिनवेकिन नहीं. तू जब राखी पर आएगी उसे भी साथ ले आना. सब मिल लेंगे,’’ मां ने अंतिम फैसला सुनाते हुए कहा.

मैं ने फोन रख दिया. लेकिन सोच रही थी अब यह एक और नई परेशानी. विवान को मनाना पड़ेगा और कल जो हुआ उस के बाद पता नहीं विवान मानेगा या नहीं. फिर भी कोशिश तो करनी होगी. मैं ने उसे फोन लगाया. उस ने उठाया नहीं. 2-3 बार करने पर भी नहीं उठाया. क्या वह नाराज था या फिर शर्मिंदा?

औफिस भी जाना था. अब बचपन तो था नहीं कि सारा दिन जन्मदिन मनाती फिरूं. बड़े होने का यही नुकसान है. आप छोटीछोटी खुशियों को मनाना छोड़ देते हो. खैर, फटाफट तैयार हो कर औफिस के लिए निकल गई. विवान से बाद में भी बात हो सकती थी.

लंच टाइम के दौरान उस का काल आया,  ‘‘सौरी यार, मीटिंग में था इसलिए फोन नहीं उठा पाया. बोलो?’’

ओह तो यह बात थी. मैं बिना मतलब ही फालतू की बातें सोच रही थी. वह सामान्य रूप से ही बात कर रहा था. फिर भी मैं ने सावधानी से पूछा, ‘‘आज डिनर साथ करें? मुझे कुछ बात करनी है.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. यह भी कोई पूछने की बात है. मैं शाम को तुम्हें पिक कर लूंगा,’’ उस ने सहजता से कहा.

चलो एक बाधा तो पार हुई. अब सब से बड़ी मशक्कत तो उसे मनाने की थी. सारा दिन यही सोचती रही कि उस से कैसे और क्या कहना है. कभीकभी लगता है कितने झमेले हैं जिंदगी में. आधी से ज्यादा तो लोगों को मनाने में ही निकल जाती है औरबाकी उन की बातें मान कर उन के अनुसार चलने में. शाम को मैं समय से पहले ही नीचे पहुंच गई. मेरे मन में जो उथलपुथल चल रही थी उसे मैं जल्दी से जल्दी शांत करना चाहती थी. कार में बैठ कर भी खुद को संयमित कर पाना मुश्किल हो रहा था.

‘‘विवान, मुझे तुम से एक फेवर चाहिए,’’ मैं ने झिझकते हुए कहा.

‘‘हां बोलो,’’ वह अपनी नजरें सड़क से हटाए बिना बोला.

‘‘क्या तुम मेरे लिए वही कर सकते हो जो मैं तुम्हारे लिए कर रही हूं?’’

‘‘मतलब?’’ उस ने हैरानी से मेरी तरफ देखा.

मैं ने उसे मां से सुबह हुई बात के बारे में बताया. यह भी बताया कि मैं ने मां से कहा है कि वह मेरा बौयफ्रैंड है और क्योंकि मां तुम्हें जानती हैं, इसलिए तुम्हें यह नाटक करना ही पड़ेगा.

‘‘तो यही था जो तुम बदले में मुझ से चाहती थीं?’’ उस ने पूछा.

‘‘नहीं. यह सब तो आज ही हुआ. उस बात को रहने दो. तुम बस मेरी इतनी हैल्प कर दो. मुझे और कुछ नहीं चाहिए,’’ मैं ने दयनीय स्वर में कहा.

वह हंसने लगा, ‘‘तुम पागल हो? तुम जो बोलो मैं वह करने को तैयार हूं. बस परेशानी यह है कि तुम कभी कुछ बोलतीं ही नहीं,’’ उस का हाथ मेरे हाथ पर था, आंखें मेरे चेहरे पर जमी हुई थीं. क्या उस की आंखों में मेरे लिए…? नहींनहीं…

‘‘राखी पर चलना है,’’ मैं ने गला खंखार कर कहा.

‘‘क्या?’’ इस से उस का ध्यान टूट गया,  ‘‘राखी पर तो नहीं उस के 1-2 दिन पहले या बाद में आ जाऊंगा, चलेगा?’’

‘‘थैंक्यू,’’ अब जा कर सांस में सांस आई. अब बस घर जा कर सब ठीक हो जाए.

एक बार फिर से हम मम्मीपापा के सामने बैठे थे. फर्क इतना था कि इस बार मम्मीपापा मेरे थे. घबराहट के मारे विवान के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. मुझे बड़ा मजा आ रहा था उसे ऐसे देख कर. बड़ी मुश्किल से मैं अपनी हंसी रोक पा रही थी.

‘‘मैं ने शायद पहले तुम्हें कहीं देखा है,’’ पापा ने विवान को देखते हुए कहा. उस ने डर कर मेरी तरफ देखा.

‘‘हां पापा, कालेज में देखा होगा कभी,’’ मैं ने अपना चेहरा सामान्य रखते हुए कहा.

‘‘हो सकता है. अच्छा बेटा पैकेज कितना है तुम्हारा?’’ पापा ने इंटरव्यू शुरू किया.   -क्रमश:

फिर से नहीं: भाग-6

अब तक आप ने पढ़ा:

प्लाक्षा और विवान में गहराई तक दोस्ती थी. बात शादी तक पहुंचती, इस से पहले ही दोनों का ब्रेकअप हो गया. कुछ साल बाद दोनों की फिर से मुलाकात हुई, जो बढ़ती ही गई. अपनीअपनी शादी रुकवाने के लिए दोनों ने एकदूसरे के घर वालों के सामने नाटक किया और कुछ दिनों तक के लिए शादी रुकवा ली. उधर जिस लड़की साक्षी को विवान ने अपनी मंगेतर बताया था, उसे प्लाक्षा के बचपन के एक दोस्त आदित्य ने भी अपनी मंगेतर बता कर प्लाक्षा की उलझनें बढ़ा दी थीं. उन दोनों को एकसाथ प्लाक्षा ने मौल में भी खरीदारी करते देखा था. पर जब इस बात की जानकारी उस ने विवान को दी तो विवान ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. प्लाक्षा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है. जब वह विवान से मिली तो यह सुन कर और भी हैरान रह गई कि यह सब उस ने उसे ही पाने के लिए किया था.

विवान के बारबार झूठ बोलने की वजह से प्लाक्षा का उस से मोहभंग हो चुका था. विवान के बारबार मनाने के बावजूद भी दोबारा जुड़ने और शादी करने को ले कर प्लाक्षा ने साफसाफ मना कर दिया था. आंखों में आंसू लिए विवान वापस लौट गया और फिर कभी उसे फोन नहीं किया.

कुछ दिनों बाद अपने मम्मीपापा की बारबार विवाह करने की जिद पर वह एक लड़के वाले के घर मिलने जाने के लिए तैयार हो गई. एक दिन जब प्लाक्षा अपने मम्मीपापा के साथ लड़के वाले के यहां पहुंची तो उस के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. प्लाक्षा के मम्मीपापा उसे जिस लड़के वाले के यहां ले कर आए थे, वह तो विवान का ही घर था. वहां भी विवान उसे अकेले में कमरे में मिला तो रोरो कर उस की आंखें लाल हो गई थीं. विवान अपने किए पर शर्मिंदा था और बारबार प्लाक्षा से माफी मांग रहा था. प्लाक्षा ने शादी के लिए उस वक्त हां कर दी.

– अब आगे पढ़ें:

 

मेरे लिए यह सब किसी सपने से कम नहीं था. उस दिन तो अचानक सारा सच सामने आ जाने के कारण कुछ महसूस नहीं कर पा रही थी. लेकिन आज यह सब मुझे अच्छा लग रहा था. आज लग रहा था कि मैं खास हूं. कोई मुझ से इतना प्यार करता है और सब से बड़ी बात यह कि वह और कोई नहीं बल्कि विवान है, जिस से मैं ने अपनी जिंदगी में सब से ज्यादा प्यार किया है.

‘‘थैंक्यू सो मच प्लाक्षा. अब आखिरी और सब से अहम सवाल,’’ एक पल को चुप्पी छा गई. मेरा दिल बहुत जोरजोर से धड़क रहा था, क्योंकि मुझे पता था कि वह क्या पूछने वाला था. वह उस की आंखों में साफ लिखा था. यह पहली बार नहीं था कि वह मुझ से यह पूछने वाला था, लेकिन उस दिन मैं कोई और ही थी. आज विवान के आंसुओं ने मेरा कड़वापन धो दिया था. आज मैं फिर से उस की पहले वाली प्लाक्षा बन गई थी, जो उस के मुंह से प्यार भरे शब्द सुनने को हर पल बेकरार रहती थी. कई दिनों बाद मेरी आंखों में फिर से वही हसरत थी. आखिरकार उस ने खामोशी तोड़ी.

‘‘तुम तो जानती हो प्लाक्षा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. मेरी अब तक की हरकतों से तो शायद तुम्हें समझ आ ही गया होगा,’’ विवान मासूमियत से बोला.

मैं हंस पड़ी. सच में अब उस की हरकतें याद कर के मुझे हंसी आ रही थी. अब गुस्सा कहीं नहीं था. बस यह लग रहा था कि उस ने जो कुछ भी किया मेरे लिए किया. मुझे यह बताने के लिए किया कि मैं उस के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण हूं. उस के एकएक शब्द से मेरे शरीर में अजीब सी लहर दौड़ रही थी.

‘‘पहले शायद मैं तुम्हारे प्यार को समझ नहीं पाया, लेकिन जिस दिन से समझ आया तो जीना दुश्वार हो गया. तुम्हें पाने का जनून सा सवार हो गया. उसी जनून में न जाने क्याक्या कर गया.’’

मैं बस मुसकरा रही थी. वह बोलता जा रहा था और आज मैं बस उसे सुनना चाहती थी.

‘‘तुम ने मुझ से बहुत प्यार किया है प्लाक्षा. उस का हिसाब तो मैं जीवन भर नहीं चुका सकता. बस इतनी कोशिश कर सकता हूं कि हमेशा तुम्हें और तुम्हारे प्यार को पूरी अहमियत दे पाऊं. मैं तुम से प्यार करता हूं प्लाक्षा और हमेशा करता रहूंगा.’’

मेरी आंखों से आंसू छलक पड़े. लेकिन इस बार ये दुख के नहीं, बल्कि खुशी के थे.

‘‘मैं भी तुम से प्यार करती हूं विवान. मैं ने हमेशा सिर्फ और सिर्फ तुम से ही प्यार किया है और जिंदगी भर करती रहूंगी,’’ मैं उस से लिपट कर रो पड़ी. आज अपने अंदर का सारा जहर निकाल देना चाहती थी. उस की बांहों का एहसास मुझे सुकून दे रहा था. एक यही वह जगह थी जहां मुझे शांति मिल सकती थी. वह हौलेहौले मेरी पीठ सहला रहा था. धीरेधीरे मेरे आंसुओं का सैलाब थमने लगा. आज सालों बाद उस का स्पर्श पा कर लग रहा था जैसे मैं फिर से जी उठी थी.

‘‘प्लाक्षा, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’ उस ने मुझे बांहों में लिए हुए ही पूछा.

‘‘शादी? मम्मीपापा को तो मैं ने शादी के लिए मना कर दिया था. अब फिर से क्या कहूंगी उन से? वे तो किसी और के साथ मेरी बात चला रहे थे,’’ मैं उस की बांहों से निकल कर हकीकत में आ गई, ‘‘क्योंकि मैं ने उन से कह दिया था कि हमारा ब्रेकअप हो गया है.’’

मेरी बात सुन कर वह परेशान होने के बजाय हंस पड़ा.

फिर बोला, ‘‘अरे हां, एक बात बताना तो मैं भूल ही गया. मैं ने तुम से एक और बात छिपाई है.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने संदेह से उस की तरफ देखा.

‘‘मैं तुम्हारे मम्मीपापा से पहले मिल चुका हूं.’’

‘‘हां, मुझे पता है. मेरे साथ ही तो गए थे.’’

मैं उस की बात बीच में ही काट कर बोला, ‘‘उस से भी पहले मैं उन से मिला था, अपने मम्मीपापा के साथ अपनी शादी की बात करने के लिए,’’ वह हलकी मुसकान के साथ डरते हुए मुझे देख रहा था.

‘‘क्या?’’ पिछले कुछ दिनों में क्याक्या कर गया था विवान. और मम्मीपापा ने भी मुझे कुछ नहीं बताया.

‘‘हां बेटा यही है वह लड़का जिसे हम ने तेरे लिए पसंद किया था,’’ मम्मी ने कमरे में दाखिल होते हुए कहा. पापा और विवान के मम्मीपापा भी अंदर आ चुके थे.

‘‘बेटा, पहली बार विवान जब अपने मम्मीपापा के साथ हमारे घर आया तो हमें भी कुछ अटपटा लगा. मैं तो इसे पहले से जानती ही थी, कुछ तुम ने भी इस के बारे में बताया था. इस से बात करने पर पहले तो यह हमें नहीं जंचा. लेकिन खुशी इस बात की थी कि कोई हमारी बेटी से इतना प्यार करता है कि उस के लिए कुछ भी करने को तैयार है. फिर भी हम शंकित तो थे ही. जब तुम ने इसे घर बुलाया तब हम जानते थे कि तुम दोनों नाटक कर रहे हो. उस दिन विवान की बातें सुन कर यकीन हो गया कि वह तुम से कितना प्यार करता है.’’

कितना कुछ हो रहा था मेरी पीठपीछे और मुझे कोई खबर ही नहीं थी. बड़ी होशियार समझती थी खुद को. मगर आज इन सब ने मिल कर कितनी सफाई से मुझे बेवकूफ बना दिया था.

‘‘लेकिन हमारे लिए यह जानना ज्यादा जरूरी था कि तुम्हारे मन में क्या है. मैं ने कई बार तुम्हारे मन को टटोलने की कोशिश की और हर बार यही पाया कि तुम विवान से अपने प्यार को दबाती रही हो.’’

मां मेरे पास आ कर बैठ गईं और मेरा सिर सहलाने लगीं. फिर बोलीं, ‘‘जब तुम ने ब्रेकअप की खबर सुनाई तो मैं घबरा ही गई थी. मैं ने उसी वक्त विवान को फोन लगाया, तो उस ने बताया कि तुम ने साक्षी को देख लिया है. उसे मैं ने हमारे दिल्ली आने के प्लान के बारे में बताया और आगे कुछ भी करने को मना कर दिया. मुझे लगा कि तुम दोनों की आमनेसामने अच्छे से बात कराने से ही सब कुछ ठीक होगा. लेकिन फिर तुम ने साक्षी और आदित्य को साथ देख लिया जिस से मामला और बिगड़ गया.

‘‘विवान तो बिलकुल हिम्मत हार चुका था लेकिन हम ने प्लान में कोई बदलाव नहीं किया. यहां आ कर तुम्हें देखा तो यह भी विश्वास हो गया कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं सही है. हम जानते थे कि तुम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हो. बस कुछ गलतफहमियां और अहं ही बीच में आ रहा है. जब आमनेसामने बैठ कर एकदूसरे की दिल की बात सुनोगे तो सब ठीक हो जाएगा.’’

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या प्रतिक्रिया करूं. सब को सब कुछ पता था, एक मैं ही इन सारी बातों से अनजान थी. सब मेरी तरफ देख कर मुसकरा रहे थे. विवान माफी मांगने के अदांज में मेरी तरफ देख रहा था. मैं कुछ कहूं उस से पहले ही पापा बोल पड़े, ‘‘तुझे जितना गुस्सा आ रहा है उसे इस विवान पर निकालना. यही मुजरिम है तेरा. हम बस तुम्हें खुशी देना चाहते थे. इसी ने हमें झूठ बोलने पर मजबूर किया. अब जी भर के इस की पिटाई करो,’’ सब हंस पड़े साथ में मैं भी.

विवान के मम्मीपापा ने भी उन का साथ देते हुए कहा, ‘‘हमारी बातों का कुछ बुरा लगा हो, तो माफ कर देना बेटा. हम तो बस इस के कहे अनुसार चल रहे थे. यही तुम्हारा गुनहगार है. अब तुम ही इस से निबटो,’’ इतना कह कर वे सब बाहर चले गए.

एक बार फिर हम दोनों अकेले थे. विवान मेरे पास आ कर बैठ गया. टेबल से अंगूठी उठा कर मेरे सामने कर दी और बोला, ‘‘अब तो हां कर दो या अब भी कोई ऐतराज है?’’

मैं ने हामी में सिर हिलाया, ‘‘अब क्या, अब तो सब कुछ साफ हो गया न? अब क्या बचा है?’’ वह फिर से नर्वस दिखने लगा.

‘‘वादा करो अब कभी मुझे परेशान नहीं करोगे, झूठ नहीं बोलोगे और…’’ मैं ने गंभीरता से कहा.

‘‘और?’’ उस ने पूछा.

‘‘और रोज मुझे दिन में कम से कम एक बार ‘आई लव यू’ कहोगे. कभी गुस्सा हुए तब भी,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

‘‘पक्का,’’ कह कर उस ने मुझे सीने से लगा लिया. अब मुझे कोई डर नहीं था. उस की आंखें, उस का स्पर्श, उस की खुशी सब कुछ एक ही बात कह रहे थे कि वह अब कभी मेरा दिल नहीं दुखाएगा. उस की बांहों का घेरा यही सुकून दे रहा था कि अब फिर से मुझे कभी प्यार के लिए तरसना नहीं पड़ेगा.

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