डिलीवरी को आसान बनाने के लिए रोजाना करें ये एक्सरसाइज

पिछली पीढ़ी की ज्यादातर महिलाएं प्रसव से पहले तक रसोई और घर का सारा काम आसानी से संभालती थीं. लेकिन आज की महिलाओं के लिए प्रसव उतना आसान नहीं है. अब ज्यादा से ज्यादा महिलाएं गर्भधारण एवं प्रसव को कठिन कार्य मानती हैं. उन्हें प्रसव बेहद कष्टदायी लगने लगा है. इस कष्ट से बचने के लिए वे सिजेरियन डिलिवरी ज्यादा पसंद कर रही हैं, जो शरीर को आगे चल कर कमजोर बना देती है. इसलिए गर्भधारण से ले कर प्रसव व प्रसवोपरांत तक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए व्यायाम एक बेहतर विकल्प है. प्रसवकाल को सुखद बनाए रखने के लिए व्यायाम में फिजियोथेरैपी एक अच्छा माध्यम है. यह गर्भकाल और प्रसव के दौरान होने वाली कई तरह की परेशानियों से छुटकारा दिलाती है. 9 महीने के लंबे गर्भकाल में स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. इस के लिए फिजियोथेरैपी को नियमित रूप से अपनाना चाहिए-

स्ट्रैंथनिंग

कमर के लिए : पैरों को एकसाथ मिला कर कमर के आगे की तरफ लाते हुए आसन पर बैठ जाएं, फिर घुटनों को धीरेधीरे जमीन से छुआने की कोशिश करें. इस क्रिया को भी कई बार करें.

गले के लिए : इसे करने के लिए सीधे बैठें, फिर एक हाथ को मोड़ कर सिर के पीछे की तरफ का हिस्सा पकड़ें और कुहनियों को ऊपर की ओर उठाएं. यही क्रिया दूसरे हाथ से भी दोहराएं. आसन पर बैठ कर दोनों हाथों को आगे की ओर ले जाएं. फिर धीमी गति से सांस लेते हुए हाथों को दोनों ओर फैलाएं. इस क्रिया को 10-12 बार दोहराएं.

 पीठ के लिए : पैरों को जमीन पर टिकाते हुए कुरसी पर सीधी बैठ जाएं. फिर दोनों हाथों से कमर को पकड़ें. आसन पर धीरे से हाथों और घुटनों के बल टेक लगाते हुए झुकें, फिर धीरेधीरे पीछे के मध्य भाग को ऊपर और नीचे की ओर ले जाएं.

गले की पीछे की पेशियों के लिए : इस क्रिया को करने के लिए घर की किसी दीवार के पास खड़ी हो जाएं. कंधों के बराबर दोनों हथेलियों को जोड़ कर रखें. दोनों पैरों के बीच थोड़ी दूरी बना कर रखें यानी पैर मिलें नहीं. फिर दीवार से 30 सैंटीमीटर की दूरी पर खड़े हो कर कुहनियों को मोड़ कर धीरेधीरे नाक से दीवार छूने की कोशिश करें. यह क्रिया फिर दोहराएं. यह व्यायाम प्रसव को भी आसान बनाता है.

जांघों की पेशियों के लिए : इसे करने के लिए सीधी लेट जाएं और फिर एक मोटे तकिए को बारीबारी से घुटनों के बीच 10 मिनट तक दबाए रखें. ऐसा कई बार करें.

रिलैक्सेशन मैथेड : सब से पहले आसन पर लेट जाएं और अपनी सांस की गति पर ध्यान दें. फिर दोनों एडि़यों को 5 सैकंड तक दबा कर रखें. फिर ढीला छोड़ दें. यह क्रिया घुटनों, हथेलियों, कुहनियों, सिर आदि हिस्सों के साथ भी करें. इस से शरीर की पेशियां रिलैक्स होती हैं.

कीगल्स व्यायाम : कीगल्स व्यायाम को मूत्रत्याग के दौरान किया जाता है. इसे करने के लिए मूत्र के दौरान 3 से 5 सैकंड तक मूत्र को रोकरोक कर करें. इस से पेट के निचले हिस्से में कसावट आती है. गर्भवती महिलाओं के लिए यह बेहद महत्त्वपूर्ण व्यायाम है.

पैरों की पेशियों के लिए : इस क्रिया को करने के लिए पहले तो आसन पर बैठें. फिर आसन के ऊपर एक मोटा कपड़ा बिछा कर एडि़यों से उसे दबाएं. इस के बाद पैरों की उंगलियों से कपड़े को भीतर की ओर खींचने की कोशिश करें. इस क्रिया को भी कई बार दोहराएं. यह व्यायाम पैरों की पेशियों में कसावट लाने के साथसाथ फ्लैट फुट की समस्या को भी रोकता है, रक्तसंचार को बढ़ा कर पैरों की सूजन को भी कम करता है.

ध्यान देने योग्य बातें :

  1. दिन भर में एक बार व्यायाम जरूर करें और व्यायाम करते समय थकान और दर्द का ध्यान जरूर रखें.
  2. शुरू में व्यायाम कम समय के लिए करें. फिर धीरेधीरे समय बढ़ाएं.
  3. चिकनी फर्श पर व्यायाम बिलकुल न करें.
  4. व्यायाम करते समय ढीले वस्त्र पहनें.
  5. खाने के तुरंत बाद व्यायाम कभी न करें. खाने के कम से कम 2 घंटे बाद ही व्यायाम करें.
  6. गर्भावस्था के दौरान महिलाएं कम जगह वाले फर्नीचर पर न बैठें. इस से पेशियों पर ज्यादा दबाव पड़ता है.
  7. बैठते समय पीठ को कुरसी से सटा कर बैठें और पैरों को फर्श पर रखें.
  8. गर्भधारण के 20 सप्ताह बाद सीधी न लेटें, बल्कि सिर और कंधों को ऊंचा कर के लेटें. इस के लिए सिर के नीचे 2 तकिए लगा कर लेटें. ऐसा करना गर्भाशय की रक्तनलिकाओं में पड़ने वाले दबाव के कारण होने वाले हाइपरटैंशन को रोकता है.
  9. हाई हील के सैंडल पहनने से बचें, फ्लैट फुटवियर ही पहनें, इस से रीढ़ की हड्डी पर खिंचाव कम होगा.
  10. गर्भकाल के समय व्यायाम करने पर किसी भी प्रकार का दर्द या समस्या हो तो तुरंत स्त्रीरोग विशेषज्ञा की सलाह लें.व्यायाम से संबंधित विशेष जानकारी फिजियोथेरैपिस्ट से भी ले सकती हैं.

गर्भकाल के दौरान होने वाली समस्याएं

  1. पेट के निचले हिस्से में सिकुड़ी अवस्था में स्थित यूटरस गर्भकाल के हफ्तों बीतने के बाद विकसित हो जाता है. इस कारण शरीर के आगे के हिस्से में शरीर का भार बढ़ता है, जिस से शरीर का संतुलन बनाए रखने में समस्या उत्पन्न होने लगती है.
  2. कंधे लटकने लगते हैं. ऐसी अवस्था में मांसपेशियों में खिंचाव पड़ने लगता है.
  3. घुटने फूलने लगते हैं और दोनों पैरों में अंतर बढ़ जाता है, जिस की वजह से कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
  4. जिन महिलाओं का वजन ज्यादा होता है, उन की पेशियां ढीली होने की वजह से उन में फ्लैट फुट की समस्या उत्पन्न हो सकती है.
  5. पेट की मांसपेशियों में खिंचाव पड़ने की वजह से स्ट्रैस की समस्या उत्पन्न होने लगती है.
  6. आम अवस्था की अपेक्षा गर्भावस्था के दौरान ज्यादा आराम करने से मांसपेशियां कमजोर पड़ने लगती हैं.
  7. शरीर के आकार में बदलाव आने के कारण शरीर फैलने लगता है.

फिजियोथेरैपी के फायदे

  1. स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है और शारीरिक परेशानियां कम होती हैं.
  2. व्यायाम सर्कुलेटरी प्रौब्लम्स, वैरिकोस वेंस समस्या और पैरों की सूजन को कम करता है.
  3. प्रसव के बाद स्वास्थ्य में भी बहुत तेजी से सुधार आता है.
  4. यह जोड़ों से संबंधित समस्याओं को कम करने के साथसाथ उन्हें रोकने में भी सहायक है.
  5. शरीर को नियंत्रित करने में मदद करती है.
  6. गर्भकाल के दौरान मधुमेह की समस्या होने से रोकती है.
  7. यह शरीर के आकार में भी संतुलन बनाए रखने के लिए सहायक है.
  8. फिजियोथेरैपी पेट की मांसपेशियों को सुचारु बनाए रखने में भी प्रभावकारी है.

ध्यान दें

गर्भावस्था के दौरान व्यायाम अच्छा है, लेकिन जरूरी नहीं है कि हर तरह का व्यायाम हर किसी के लिए फायदेमंद हो. गर्भावस्था और किसी भी प्रकार की शारीरिक बीमारी जैसे उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी बीमारी, एक से ज्यादा बार गर्भपात होना, गर्भाशय के द्रव में होने वाले बदलाव आदि में व्यायाम करना जोखिम भरा काम है. इस स्थिति में अपनी इच्छा से कोई व्यायाम न करें. गर्भकाल के शुरुआत से ही स्त्रीरोग विशेषज्ञा के निर्देशानुसार ही व्यायाम करें.

– डा. अरुण कुमार पी.टी, चीफ फिजियोथेरैपिस्ट, लक्ष्मी हौस्पिटल, कोच्चि

6 TIPS: Pregnancy में पहनें मैटरनिटी बेल्ट

मैटरनिटी बेल्ट एक किस्म का पट्टा होता है जो गर्भवती महिलाओं के पेट और कमर को सहारा देता है. ये बेल्ट गर्भावस्था के बाद भी पहनी जा सकती है.  इसको पहनने से उभरी और सूजी हुई मांसपेशियां वापस अपने पुराने आकार में आ जाती हैं. यह लचीली बेल्ट गर्भवती महिलाओं को गर्भ के दूसरे और तीसरे तिमाही चरण में बहुत सहायता करती है.

गर्भवती महिलाओं को मैटरनिटी बेल्ट से कई फायदे होते हैं. गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद भी मैटरनिटी बेल्ट को पहनना जा सकता है.

1. दर्द कम करती है

गर्भावस्था के दौरान अधिकतर महिलाओं को पीठ, कमर और जोड़ों में दर्द होता है. इस कारण वो अपने दैनिक काम करने में भी बहुत तकलीफ महसूस करती हैं. मैटरनिटी बेल्ट उनके गर्भ और पीठ को सहारा देती है और बिना किसी दर्द के काम करने में सहायता करती है. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई तरह के दर्द होते हैं.

यह दर्द स्नायु, नितम्ब के अगले हिस्से और पेट के नीचे की तरफ होते हैं. इस दर्द का कारण मुख्यतः गर्भ के बढ़ने के कारण स्नायु और हड्डियों पर पड़ने वाला अतिरिक्त भार होता है. बेल्ट के कारण यह भार बंट जाता है. अतः किसी एक स्थान पर अतिरिक्त भार नहीं पड़ता. इसके साठ ही गर्भावस्था के दौरान शरीर में रिलैक्सिन नाम के होर्मोन की मात्रा बढ़ जाती है. इस कारण नितम्ब के जोड़ों पर असहाय दर्द होता है. कई बार इसी कारण पीठ के नीचले हिस्से में भी दर्द होता है. बेल्ट पहनने से जोड़ों को सहारा मिलता है और दर्द में आराम मिलता है.

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2. हल्का दबाव

यदि दिन भर के काम के दौरान पेट को हल्का-हल्का दबाव दिया जाता रहे तो यह गर्भाशय को सहारा देता है और चलने-फिरने के दौरान होने वाली मुश्किल को भी कम करता है. लेकिन यह ध्यान में रखा जाना चाहिए की दबाव बहुत ज्यादा ना हो और बेल्ट इतनी कसकर ना बांधी जाए कि पेट में खून का बहाव प्रभावित हो.

3. दैनिक क्रियाकलापों में सहायता

गर्भावस्था में नियमित रूप से चलने-फिरने से उच्च रक्तचाप, अवसाद और डायबिटीज जैसी बीमारियां दूर रहती हैं. लेकिन शारीरिक मेहनत के दौरान होने वाला दर्द और असहजता बहुत सी औरतों को टहलने-घूमने से रोक देते हैं. मैटरनिटी बेल्ट पहनने से आपका दर्द और असहजता कम होगी और आप अपनी दैनिक दिनचर्या को जी पाएंगी.

4. हर्निया के मरीजों के लिए लाभदायक

जिन महिलाओं को हर्निया की समस्या है, गर्भावस्था के दौरान यह बेल्ट उनके लिए बहुत आवश्यक और सहायक है.

5. शरीर की मुद्रा को सही रखती है

मैटरनिटी बेल्ट पहनने से आपकी पीठ को सहारा मिलता है जिस कारण शरीर की मुद्रा सही बनी रहती है. इससे नीचली पीठ जरुरत से ज्यादा खिंचने से बच जाती है. गर्भावस्था के दौरान अतिरिक्त वजन के कारण कई बार रीढ़ की मासपेशियां खिंच जाती हैं. मैटरनिटी बेल्ट इन मासपेशियों को खिंचचने से बचाती है और शरीर को सीधे रखने में सहायता करती है.

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6. प्रसव के पश्चात के फायदे

प्रसव के बाद मॉसपेशियां और स्नायु ढीले पड़ जाते है. उनको वापस अपने पुराने आकार में आने में समय लगता है. इसके साथ ही महिलाओं को अपने नवजात शिशु को भी देखना पड़ता है. प्रसव के बाद बेल्ट पहनने से यह आसान हो जाता है. नवजात शिशु के साथ ही नयी-नवेली मां के शरीर को भी स्वस्थ होने का मौका मिल जाता है.

इन सबके बावजूद, यह मैटरनिटी बेल्ट आपकी समस्याओं के समाधान का मात्र एक बाहरी सहारा है. यह भी जरूरी है कि इसपर आवश्यकता से अधिक निर्भर ना हों. जरूरी है कि मांसपेशियों और स्नायु की बेहतरी हेतु व्यायाम और खान-पान का खास ध्यान रखा जाए. यह बेल्ट पहनने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें.

10 टिप्स: प्रेग्नेंसी के पहले और बाद में ऐसे रखें अपना ख्याल

गर्भावस्था के दौरान महिला को कई शारीरिक और भावनात्मक बदलावों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में मां और जन्म लेने वाले बच्चे के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि गर्भधारण करने से पहले ही प्लानिंग कर ली जाए -पूर्व गर्भावस्था, गर्भावस्था के दौरान, प्रसव अवधि और प्रसव के बाद. आइए जानते हैं इन चारों चरणों के दौरान जरूरी सावधानियों के बारे में:

गर्भावस्था से पहले अगर आप मां बनने की योजना बना रही हैं तो सब से पहले किसी स्त्री रोग विशेषज्ञा से मिलें. इस से आप को स्वस्थ प्रैगनैंसी प्लान करने में सहायता मिलेगी.

गर्भधारण करने के 3 महीने पहले से जिसे प्री प्रैगनैंसी पीरियड कहते हैं, डाक्टर के सुझाव अनुसार जीवनशैली में परिवर्तन लाने से न केवल प्रजनन क्षमता सुधरती है, बल्कि गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याएं भी कम होती हैं और प्रसव के बाद रिकवर होने में भी सहायता मिलती है.

1 सर्वाइकल स्मीयर:

याद करें कि आप ने पिछली बार सर्वाइकल स्मीयर टैस्ट कब करवाया था. यदि अगला टैस्ट आने वाले 1 साल में करवाना बाकी है तो उसे अभी करा लें. स्मीयर जांच सामान्यत: गर्भावस्था में नहीं कराई जाती है, क्योंकि गर्भावस्था की वजह से ग्रीवा में बदलाव आ सकते हैं और सही रिपोर्ट आने में कठिनाई हो सकती है.

2 वजन:

अगर आप का वजन ज्यादा है और बौडी मास इंडैक्स (बीएमआई) 23 या इस से अधिक है, तो डाक्टर आप को वजन कम करने की सलाह देंगे. वजन घटाने से आप के गर्भधारण करने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं और आप अपनी गर्भावस्था की सेहतमंद शुरुआत कर सकती हैं. अगर आप का वजन कम है तो डाक्टर से बीएमआई बढ़ाने के सुरक्षित उपायों के बारे में बात करें. यदि आप का वजन कम है तो माहवारी चक्र अनियमित रहने की भी संभावना अधिक होती है. इस से भी गर्भधारण में समस्याएं आती हैं. आप का बीएमआई 18.5 और 22.9 के बीच होना चाहिए.

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3 गर्भावस्था के दौरान:

द इंस्टिट्यूट औफ मैडिसिन की गाइडलाइंस के अनुसार प्रैगनैंसी के दौरान महिला को अपने बीएमआई के हिसाब से वजन बढ़ाना चाहिए. अंडरवेट वूमन यानी बीएमआई 18.5 से कम हो तो उसे 12 से 18 किलोग्राम तक वजन बढ़ाना चाहिए. नौर्मल वेट वूमन यानी बीएमआई 18.5 से 25 हो तो 11 से 15 किलोग्राम तक वजन बढ़ाएं. महिला ओवर वेट हो यानी 25 से 30 तक बीएमआई हो तो उसे 7 से 11 किलोग्राम तक वजन बढ़ने देना चाहिए. 30 से ज्यादा बीएमआई होने पर 5 से 9 किलोग्राम तक वजन बढ़ाना चाहिए.

4 व्यायाम:

व्यायाम हैल्दी लाइफस्टाइल का अहम हिस्सा है. कोई कौंप्लिकेशन न हो तो प्रैगनैंट वूमन को हैल्दी रहने के लिए नियमित व्यायाम करते रहना चाहिए. कम से कम 30 मिनट का सामान्य व्यायाम जरूर करें. आइस हौकी, किक बौक्सिंग, राइडिंग आदि न करें.

5 संतुलित और पोषक भोजन खाएं:

मैक्स हौस्टिपल, शालीमार बाग, दिल्ली के डाक्टर एसएन बासु कहते हैं कि गर्भावस्था के दौरान संतुलित और पोषण भोजन का सेवन करें ताकि बच्चे के विकास और आप के शरीर में हो रहे बदलावों के लिए आप का शरीर तैयार हो सके. एक मां बनने वाली महिला को आमतौर पर प्रतिदिन 300 अतिरिक्त कैलोरी की आवश्यकता होती है.

6 सप्लिमैंट्स:

गर्भावस्था के दौरान प्रतिदिन कैल्सियम, फौलेट और आयरन की निश्चित मात्रा की निरंतर आवश्यकता होती है. इन की पूर्ति के लिए सप्लिमैंट्स का सेवन करना जरूरी होता है. कैल्सियम-1200 एमएल, फौलेट-600 से 800 एमएल, आयरन-27 एमएल. हर गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान 100 एमजी की आयरन की 100 गोलियों का सेवन अवश्य करना चाहिए. ये मां और बच्चे दोनों के लिए जरूरी हैं. प्रैगनैंसी के शुरुआती दिनों में विटामिंस की मेगा डोज बर्थ डिफैक्ट्स की वजह बन सकती है. प्रैगनैंट महिलाओं को अनपाश्चराइज्ड दूध, सौफ्ट चीज और रौ रैड मीट भी नहीं लेना चाहिए. इस से मिसकैरेज और दूसरी समस्याएं पैदा हो सकती है. प्रैगनैंट वूमन को हमेशा फल और सब्जियां अच्छी तरह धो कर खानी चाहिए.

7 पर्याप्त नींद लें:

गर्भवती महिलाओं को पर्याप्त आराम और नींद की जरूरत होती है. उन्हें रात में कम से कम 8 घंटे और दिन में 2 घंटे सोना चाहिए. नींद की कमी के कारण शरीर की लय गड़बड़ा जाती है.

8 शारीरिक रूप से सक्रिय रहें:

गर्भावस्था के दौरान भी अपनी सामान्य दिनचर्या जारी रखें. घर का काम करें. अगर नौकरी करती हैं तो औफिस जाएं, रोज आधा घंटा टहलें. डाक्टर की सलाह के हिसाब से अपना वर्कआउट जारी रखें. ध्यान रखें, इस दौरान रस्सी न कूदें और न ही कोई ऐसा कार्य करें जिस से शरीर को झटका लगे.

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9 भावनात्मक स्वास्थ्य का ध्यान रखें:

गर्भावस्था में भावनात्मक स्वास्थ्य का खयाल रखें. मूड स्विंग अधिक हो तो अवसाद की शिकार हो सकती हैं. अगर 2 सप्ताह तक यह स्थिति बनी रहती है तो डाक्टर से संपर्क करें.

10 प्रसव:

सामान्य प्रसव में रिकवरी जल्दी हो जाती है. 7 से 10 दिनों में शरीर में ऊर्जा का स्तर सामान्य हो जाता है. जबकि आमतौर पर सिजेरियन डिलिवरी के बाद 4 से 6 सप्ताह तक कोई काम न करने की सलाह दी जाती है. अस्पताल से घर आने पर अधिक शारीरिक मेहनत न करें. प्रसव के तुरंत बाद वजन घटाने में जल्दबाजी न करें. संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें. बच्चे को स्तनपान जरूर कराएं.

डिलीवरी से पहले ऐसे करें देखभाल

एक रिसर्च के अनुसार, जिन महिलाओं की प्रसव पूर्व केयर नहीं होती है, उनके बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में वजन में कम होने के साथसाथ उनमें मृत्यु का खतरा भी कहीं अधिक होता है. इसलिए प्रैगनैंसी में केयर है जरूरी.

डॉक्टरी जांच है जरूरी

जैसे ही आपको अपनी प्रैगनैंसी के बारे में पता चले तो आप तुरंत ही डाक्टर के पास जाएं, ताकि जरूरी जांच से प्रैगनैंसी कंफर्म हो सके और सभी जरूरी टेस्ट्स समय पर हो पाएं. साथ ही पेट में पल रहे शिशु को पोषण देने के लिए व मष्तिक व रीढ़ की हड्डी में जन्म दोष को रोकने के लिए जरूरी विटामिंस, जिसमें फोलिक एसिड का अहम रोल होता है आदि को समय पर शुरू किया जा सके. ताकि मां और बच्चे में किसी तरह की कमी न रहने पाए.

समयसमय पर टेस्ट करवाएं

प्रैगनैंसी को 3 ट्राइमेस्टर में बांटा गया है. जिसमें पहली स्टेज पहले हफ्ते में 12 हफ्ते की होती है. दूसरी स्टेज 13 हफ्ते से 26 हफ्ते की होती है. और आखिरी यानि तीसरी स्टेज  27 हफ्ते से शुरू हो कर आखिर तक मानी जाती है. इस दौरान शिशु में कोई जेनरिक दोष तो नहीं है, सही से अंगों का विकास तो हो गया है, दिल की धड़कन, ब्लड टेस्ट जैसी चीजों की समयसमय पर जांच की जाती है. ताकि समय पर परेशानी के बारे में पता लगाकर सही समय पर इलाज शुरू किया जा सके. इसलिए आप इस दौरान टेस्ट्स में लापरवाही बिलकुल न करें. जो टेस्ट जब करवाना है उसे तभी करवाएं. वरना थोड़ी सी देरी आप पर भारी पड़ सकती है.

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वीकली चेकअप

प्रैगनैंसी का समय बहुत ही चैलेंजिंग होता है. इस दौरान शरीर में कई तरह के बदलाव होते रहते हैं. जैसे अचानक से शरीर के तापमान का बढ़ना, ब्लड प्रेशर का बढ़ना व कम हो जाना, वजन का कम होने जैसे लक्षण. इसलिए आप इन्हें वीकली मोनिटर करने के लिए घर पर ही इन्हें मापने की मशीन लाएं. और अगर संभव न हो तो इन्हें रेगुलर मोनिटर करवाते रहें. ताकि जरा भी गड़बड़ी होने पर एडवांस्ड ट्रीटमेंट देकर आपकी व बच्चे की सुरक्षा की जा सके.

डाइट हो न्यूट्रिएंट्स से भरपूर

आपको सामान्य महिला की तुलना में हर रोज 300 से 500 कैलोरीज ज्यादा लेने की जरूरत है. बता दें कि प्रैगनैंट महिला को रोज 60 ग्राम प्रोटीन, 35-40 मिलीग्राम आयरन, 1000 मिलीग्राम कैल्शियम व 400 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड लेने की जरूरत होती है. इसके लिए आप डाक्टर द्वारा दिए गए डाइट चार्ट की मदद लें या फिर समयसमय पर डाक्टर से अपनी डाइट के बारे में सलाह लेते रहें.

बॉडी को रखें एक्टिव

प्रैगनैंसी कोई बीमारी नहीं है, जो आप पूरे 9 महीने कुछ नहीं कर सकते. अगर आपकी प्रैगनैंसी में किसी भी तरह का कोई कॉम्प्लिकेशन नहीं है और डाक्टर आपको एक्टिव रहने के लिए लाइट एक्सरसाइज, की की सलाह देते हैं तो आप इसे अपने डेली रूटीन में जरूर शामिल करें. क्योंकि इससे एक तो नार्मल डिलीवरी में मदद मिलेगी और दूसरा आपकी एनर्जी बूस्ट होने से आप चीजों को ज्यादा अच्छे से एंजोय कर पाएंगे. साथ ही इससे बीपी कंट्रोल में होने के साथ पीठ के दर्द से राहत मिलने के साथसाथ पेल्विक एरिया में होने वाले खिंचाव में भी कमी आती है.

हाइजीन का खास खयाल

प्रैगनैंट महिलाओं को इस दौरान अपनी पर्सनल हाइजीन का खास ध्यान रखना चाहिए. क्योंकि इस दौरान हार्मोन्स में हुए बदलाव के कारण पसीना आने के साथ वेजाइनल डिस्चार्ज बहुत अधिक होता है. और यह माहौल कीटाणुओं के पनपने के लिए बिलकुल उपयुक्त माना जाता है. ऐसे में अगर आप हाइजीन का ध्यान नहीं रखते हैं तो इंफेक्शन होने के चांसेस काफी ज्यादा बढ़ सकते हैं.

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मां की सेहत में छिपा बच्चे की सेहत का राज 

गर्भ में पल रहे शिशु की सेहत मां की सेहत पर निर्भर करती है, इसलिए प्रैग्नेंसी के दौरान मां का अपनी सेहत का खास खयाल रखना और स्वास्थ्यवर्धक चीजों को अपनी डाइट में शामिल करना बेहद जरूरी है. इन दिशानिर्देशों का पालन कर प्रैग्नेंट एक हेल्दी शिशु को जन्म दे सकती है:

प्रैग्नेंसी के दौरान क्या करें

अच्छा खाएं

आप प्रैगनैंट हैं इस का यह अर्थ नहीं है कि आप को अब 2 लोगों के लिए खाने की जरूरत है. आप को बस ऐसा आहार लेना है जिस से आप को अधिक से अधिक पोषण मिले. प्रैग्नेंसी के दौरान शरीर को पोषण की बहुत आवश्यकता होती है. आप हेल्दी रहेंगी तभी हेल्दी बच्चे को जन्म दे पाएंगी.

– खासतौर पर प्रोटीनयुक्त चीजों को अपनी डाइट में शामिल करें. इन में दाल, अंकुरित अनाज, दूध एवं दूध से बने पदार्थ, अंडा, मीट आदि को रोज की डाइट में जरूर शामिल करें ताकि शरीर में प्रोटीन की कमी न रहे.

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– हेल्दी प्रैगनैंसी के लिए आयरन को भोजन में शामिल करना बेहद जरूरी है. इसलिए हरी पत्तेदार सब्जियां, अनार, फलियां, लीची, किशमिश, अंजीर जैसी चीजों का रोज सेवन करें. इन के अलावा विटामिन सी का प्रयोग जरूर करें ताकि शरीर में आयरन की कमी न हो सके.

– दिन में 3 बार बड़ी मात्रा में भोजन लेने के बजाय 5-6 बार थोड़ाथोड़ा और संतुलित आहार लेना ज्यादा बेहतर होगा. ध्यान रहे किसी भी समय के भोजन को न छोड़ें. हलके-फुलके नाश्ते के जरीए अपनी ऊर्जा का स्तर बनाए रखें.

– होने वाले शिशु की हड्डियों और दांतों के विकास के लिए कैल्सियम की मात्रा अधिक लें. ऐसा करना आप को पीठ और कमर के दर्द से भी छुटकारा दिलाएगा और ब्रैस्ट फीडिंग के लिए भी तैयार करेगा. इस के लिए दूध व दूध की बनी चीजें, फलियां, हरी पत्तेदार सब्जियां खासतौर से पालक, मूंगफली आदि को डाइट में शामिल करें.

ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं

– वैसे तो पानी का ज्यादा से ज्यादा सेवन सभी के लिए जरूरी है, लेकिन प्रैग्नेंट होने पर कम पानी पीने का रिस्क बिलकुल नहीं लें. प्रैगनैंसी के वक्त खुद और होने वाले बच्चे को हेल्दी रखने के लिए दिन में कम से कम 8-10 गिलास पानी जरूर पीएं.

– पानी शरीर की नमी बरकरार रखता है, जिस से शरीर का तापमान भी संतुलित रहता है.

– कुछ महिलाओं को लगता है कि प्रैग्नेंट होने पर व्यायाम या ऐक्सरसाइज नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करना प्रैग्नेंट महिलाओं के लिए खतरनाक हो सकता है, लेकिन यह गलत है. डाक्टर की सलाह पर व्यायाम जरूर करें और नियमित करें.

– अच्छा व्यायाम ताकत और सहनशक्ति देता है. इस शक्ति की जरूरत आप को प्रैग्नेंसी के दौरान बढ़ते वजन को संभालने और प्रसवपीड़ा के दौरान होने वाले शारीरिक तनाव को झेलने के दौरान होगी. यह शिशु के जन्म के बाद वजन घटाने में भी आप की सहायता करता है.

– व्यायाम ऐक्टिव बनाता है और प्रैग्नेंसी के अवसाद को दूर करने में भी मदद करता है.

– मौर्निंग वाक या ईवनिंग वाक करें.

– घर के छोटेमोटे काम करना भी फायदेमंद होता है.

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वैक्सिनेशन का रखें खयाल

– प्रैगनैंसी के दौरान लगने वाला कोई भी टीका लगवाना न भूलें. अगर कुछ दिन लेट हो जाती हैं तो डाक्टर से परामर्श ले कर तुरंत लगवा लें.

साफ-सफाई रखनी जरूरी

– प्रैग्नेंट होने पर आप की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं, क्योंकि आप को अपने साथसाथ अपने होने वाले बच्चे का भी ध्यान रखना होता है. बाकी सभी चीजों की तरह ही प्रैगनैंसी के दौरान साफसफाई रखना बहुत जरूरी है. साफसफाई न रखने से संक्रमण हो सकता है जो सीधा आप के स्वास्थ्य पर असर डालता है.

– घर की रोज सफाई करवाएं.

– रोज धुले कपड़े पहनें.

– रोज नहाएं और त्वचा में नमी बनाए रखें.

– बैडशीट को हर हफ्ते चेंज करें.

– धूलमिट्टी से दूर रहें.

आराम जरूर करें

प्रैग्नेंसी के शुरुआती और आखिरी दिनों में आराम करने की बेहद जरूरत होती है. आप खुद को जरूरत से ज्यादा न थकाएं. दोपहर में झपकी आपके और आप के बच्चे दोनों के लिए लाभदायक रहेगी. कामकाज में किसी और की मदद लें.

इन चीजों से बचाव करें

– कच्चा दूध, पानी प्रैग्नेंट के लिए हानिकारक होगा.

– ज्यादा वसा वाले खाने से दूर रहें.

– एकसाथ या एक बार में अधिक पानी न पीएं. इस से पेट में दर्द हो सकता है. शरीर में भारीपन भी महसूस होगा.

प्रैगनैंसी के पहले महीने में इन चीजों से बचें:

– हील से दूर रहें.

– लंबी यात्रा न करें.

– भारी चीजें न उठाएं.

– ज्यादा झुकने से बचें.

– तनाव से दूर रहें.

– शराब और धूम्रपान का सेवन भूल कर भी न करें. इस से प्रैग्नेंट के साथसाथ उस के होने वाले बच्चे को भी बड़ा खतरा हो सकता है.

– कैफीन का सेवन कम करें, क्योंकि इस के अधिक सेवन से गर्भपात की भी समस्या हो सकती है.

– प्रैग्नेंट उपवास न करें.

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– नमक का अधिक मात्रा में सेवन करने से बचें.

– जंक फूड या बाहरी चीजों के सेवन से बचें.

– तेज धूप में बाहर न जाएं.

-डा. नुपुर गुप्ता, गाइनोकोलौजिस्ट ऐंड डाइरैक्टर वैल वूमन क्लीनिक, गुरुग्राम

 

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