खूबसूरत एक्ट्रेस रकुल प्रीत सिंह को सुपर पॉवर मिलने पर क्या बदलना चाहती है, पढ़े इंटरव्यू

फिल्म ‘यारियां’ से चर्चा में आने वाली मॉडल और अभिनेत्री रकुल प्रीत सिंह दिल्ली की है. उसने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की है. हिंदी के अलावा उसने तमिल, तेलगू, कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. माध्यम चाहे कोई भी हो, रकुल को किसी प्रकार की समस्या नहीं होती. उसे अच्छी और चुनौतीपूर्ण कहानियां प्रेरित करती है.

छरहरी काया और इंडस्ट्री की खूबसूरत रकुल को हर तरह की फिल्मों में काम करना पसंद है. उसे एडवेंचर और समुद्री तट अच्छा लगता है. कॉलेज के दिनों में वह गोल्फ प्लेयर भी रह चुकी है और फिटनेस को जीवन में अधिक महत्व देती है. गृहशोभा के लिए उन्होंने खास बात की पेश है कुछ खास अंश.

 

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सोशल फिल्में करना जरुरी

रकुल ने अब तक कई सुपरहिट फिल्में की है, जिसमे फिल्म ‘छतरीवाली’ काफी लोकप्रिय रही, क्योंकि ये सोशल मेसेज देती है. रकुल का कहना है कि इस फिल्म को करने का मकसद यही था कि लोग सेक्स एजुकेशन के बारें में खुलकर बात करें. हालाँकि सरकार ने इसे शिक्षा में अनिवार्य बताया है और पाठ में भी है, लेकिन बच्चे और अध्यापक इस पर आज भी बात करने से कतराते है.

लोग अपने दिल की बात कर सकते है, पेट से जुडी बिमारियों के बारें में बात कर सकते है, लेकिन रिप्रोडक्शन के बारें में बात क्यों नहीं कर सकते? इन सब बातों को नार्मल तरीके से लेना जरुरी है, क्योंकि ये एक बॉडी पार्ट है, इसी बात पर ये फिल्म फोकस करती है. इस फिल्म में मैंने सतीश कौशिक के साथ काम किया है, जो एक अच्छा अनुभव रहा, वे एक अनुभवी, मेहनती और खुश रहने वाले इंसान थे. उनको खो देना इंडस्ट्री के लिए एक बड़ी लॉस है.

 

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इसके अलावा रकुल बेटी बचाओं बेटी पढाओं की ब्रांड एम्बेसेडर भी रही. इसका उद्देश्य छोटे शहरों और गावं में जाकर काम करना है. तेलंगाना के नालगोडा में जाकर रकुल इस पर काम किया. अभी उनकी रोमांटिक थ्रिलर फिल्म ‘आई लव यू’ जियो सिनेमा पर रिलीज हो चुकी है, जिसमे उन्होंने शोर्ट हेयर के साथ एक अलग लुक दिया है.

मिली प्रेरणा

रकुल कहती है कि बचपन मेरा खेलकूद में गुजरा, क्योंकि मैं एक फौजी की बेटी हूँ. 10वीं कक्षा के बाद मैंने फिल्में देखनी शुरू की थी, लेकिन मेरी माँ रिनी सिंह चाहती थी कि मैं अभिनय के क्षेत्र में कुछ करूँ, क्योंकि मेरी कद काठी अच्छी थी. उन्होंने मुझे मिस इंडिया में भी भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था, लेकिन तब मुझे जाना नहीं था. 12वीं के बाद मुझे लगने लगा कि मैं मॉडलिंग करूँ और मैंने पढ़ाई ख़त्म करने के बाद मॉडलिंग शुरू की, साथ में फिल्मों के लिए भी ऑडिशन देती रही. इस तरह इस प्रोफेशन में आ गयी.

मिला ब्रेक

रकुल आगे कहती है कि जब मॉडलिंग शुरू की थी तो मुझे साउथ की इंडस्ट्री के बारें में कोई जानकारी नहीं थी. मैंने पहली बार तो उन्हें मना भी कर दिया था, लेकिन बाद में फिल्म समझ कर अभिनय किया. इससे मुझे कुछ पैसे भी मिले. मैंने अपने पैसे से कार भी खरीद ली और अभिनय के बारें में बहुत कुछ सीखने को भी मिला. अभिनय में मुझे मज़ा भी आने लगा. मेरे लिए माध्यम कोई बड़ी बात नहीं है. काम करते रहना जरुरी है. ‘यारियां’ मेरी पहली हिंदी फिल्म सफल थी, जिससे काम मिलना थोडा आसान हुआ था.

नहीं हुई हताश

इंडस्ट्री में कभी रकुल को किसी गलत परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़ा, क्योंकि उन्होंने कभी भी काम के लिए हताश नहीं थी. वह कहती है कि अगर आप हताश है और जब ये बात किसी को पता चलता है तो लोग उसका फायदा उठाने की कोशिश करते है. मुझे जो काम मिला उसे करती गयी. इसके अलावा मेरे पास एक अच्छी फॅमिली सपोर्ट है, जिससे ‘डू ऑर डाई’ वाली परिस्थिति कभी भी नहीं आई. मैं जानती हूँ कि ऐसे कई कलाकार है, जो काम की तलाश में यहाँ आ जाते है और संघर्ष करते है, पर अच्छा काम नहीं मिल पाता.

केवल ग्लैमर इंडस्ट्री ही नहीं, दुनिया में हर कोई लाभ उठाने के लिए बैठा है, ऐसे में आप उन्हें कितना उसे लेने देते है, ये आप पर निर्भर करता है. मेरी जर्नी अच्छी चल रही है, जितना मिला उससे संतुष्ट हूँ, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है. अच्छे काम के लिए हंगरी हूँ. मैं इंडस्ट्री में जब आई थी, तो किसी को नहीं जानती थी, ऐसे में अपनी बलबूते पर आना, दक्षिण की फिल्मों और यहां की फिल्मों में बड़े- बड़े कलाकारों के साथ काम करना, इसे जब मैं देखती हूँ तो लगता है कि मैंने वाकई एक अच्छी जर्नी अबतक तय की है.

 

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इंटरेस्टिंग है कहानी

रकुलप्रीत सिंह आगे कहती है कि ‘आई लव यू’ की स्क्रिप्ट बहुत अच्छी थी. मुझे सत्या का ये चरित्र इंटरेस्टिंग और स्ट्रोंग लगा. ये एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो प्यारी है, फॅमिली वुमन है, काम भी अच्छा करती है, लेकिन जब मुसीबत आती है, तो कैसे कंट्रोल करती है, ये सारी बातें मेरे लिए नई और चुनौतीपूर्ण थी. ये फिल्म डर और गुप्त जैसी है, लेकिन अंतर यह है कि इस फिल्म में मेरी भूमिका सत्या लाचार नहीं, स्ट्रोंग है.

फिल्म शुरू करने के दो हफ्ते पहले मैंने कई वर्कशॉप किये है, जिसमे कलाकार के साथ निर्देशक भी थे. ये बहुत ही इनोवेटिव सेशन था, जहां चरित्र को पूरी तरह से समझने में कामयाबी मिली. फिल्म में एक्टिंग से अधिक रियल इमोशन को प्रयोग करना था. इसके अलावा मैंने अंडरवाटर ट्रेनिंग भी ली है. एक दृश्य में ढाई मिनट पानी के अंदर रहना पड़ा था.

इसे एक स्क्यूबा इंस्ट्रक्टर ने सिखाई थी. ये अलग चीजे करना ही मेरे लिए चुनौती होती है. आगे रकुल एक कम्पलीट लव स्टोरी करने की ड्रीम रखती है. वह कहती है कि मैंने अभी तक रोमांटिक लव स्टोरी नहीं की है. इसके अलावा मुझे हिस्टोरिकल फिल्म करने की इच्छा है, जिसमे हिस्टोरिकल ऑउटफिट पहननी पड़े. मैं एक डायरेक्टर की एक्टर हूँ और उनके विज़न के हिसाब से फिल्में करती हूँ, क्योंकि एक निर्देशक के सामने उसकी पूरी फिल्म होती है. कुछ भी अलग करने की इच्छा होने पर निर्देशक के साथ बैठकर चर्चा कर फिर उसे अमल करती हूँ.

खूबसूरत अभिनेत्री होने का फायदा

इंडस्ट्री की खुबसूरत अभिनेत्री होने का कोई फायदा या नुकसान के बारें में पूछने पर रकुल हंसती हुई कहती है कि कोई सुंदर होने पर न तो नुकसान होता है और न ही कुछ फायदा. असल में काम के प्रति डेडीकेशन, हार्ड वर्क, एक्टिंग स्किल्स, आदि ही मुख्य होता है, क्योंकि मैं जानती हूँ कि मुझसे भी अधिक सुंदर और प्रतिभावान कलाकार अवश्य इंडस्ट्री में होंगे, लेकिन मुझसे अधिक हार्ड वर्क करने वाला कोई नहीं होगा. ये सब किसी को भी आगे बढ़ने में हेल्प करता है. आगे हिंदी और तमिल में कई फिल्में आने वाली है और कुछ की शूटिंग शुरू होने वाली है.

मिला पिता का सहयोग

रकुल का कहना है कि मेरे परिवार का मेरे काम के प्रति बहुत सहयोग रहा है. पिता कर्नल के जे सिंह के साथ बिताया मेरे कई पल है, खासकर जब मैं घर से दूर रहती हूँ तो वे पल काफी याद आते है. आज जो मैं हूँ, मेरी कॉन्फिडेंस, मेरी वैल्यू सिस्टम, अनुसाशन सब मेरे पिता की वजह से मेरे अंदर आये है. मैंने 18 साल की उम्र में अभिनय शुरू किया था, उस समय पिता ने मुझे किसी से बात करना तक सिखाया है .

मेरे अकाउंट मेरे पिता ही हैंडल करते है. किसी भी स्ट्रेस को मैं उनसे डिस्कस करती हूं, वे मेरे लिए एक स्ट्रोंग पिलर है. बचपन मैं बहुत अच्छी बच्ची थी, किसी प्रकार की शैतानी करने पर भाई पर डाल देती थी. उसे ही डांट पड़ती थी. मेरा सभी यूथ के लिए सन्देश है कि जब हम छोटे होते है, तो लगता है कि हमारे पेरेंट्स हमें नहीं समझते, लेकिन जब बड़े होते है, तो समझ में आती है कि उनसे बेहतर हमें कोई भी समझ नहीं सकता.

आज के यूथ को इसकी समझ होना जरुरी है. खासकर इंडियन पेरेंट्स की पूरी जिंदगी बच्चों की परवरिश में लग जाती है, इसलिए उनकी दी हुई सीख को जीवन में उतारना है और अपने पेरेंट्स की देखभाल जितना हो सकें, दिल से करें, उन्हें कभी दुःख न दें. करती हूँ खुद की देखभाल वह आगे कहती है कि मानसून स्किन के लिए सबसे सुरक्षित समय होता है, विंटर और समर में स्किन की समस्या सबसे अधिक होती है.

मैं अधिक पानी पीती हूँ, वर्कआउट करती हूँ, ताकि पसीने से शारीर की टोक्सिन्स बाहर निकलती रहे और ये मेरे रोज का रूटीन रहता है, जिसमे समय से खाना, सोना, स्किन को हमेशा मोयास्चराइज करना, मेकअप उतार कर सोना और सबसे जरुरी होता है, अंदर से खुश रहना. इससे किस भी सीजन में स्किन हमेशा ग्लो करती है. अंत में वह मुस्कुराती हुई कहती है कि सुपर पॉवर मिलने पर मैं पूरे देश से क्राइम और नकारात्मकता को हटाना चाहती हूँ.

90s की तवायफ के रोल में नजर आएगी फिल्म ‘यारियां’ की ये एक्ट्रेस, जानें क्या है कहना

फिल्म ‘यारियां’ से चर्चा में आने वाली मौडल और अभिनेत्री रकुल प्रीत सिंह दिल्ली की है. उसने अपने कैरियर की शुरुआत मौडलिंग से की है. हिंदी के अलावा उसने तमिल, तेलगू,कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. माध्यम चाहे कोई भी हो रकुल को किसी प्रकार की समस्या नहीं होती. उसे अच्छी और चुनौतीपूर्ण कहानियां प्रेरित करती है. छरहरी काया की धनी रकुल को एक्शन फिल्मों में काम करने की इच्छा है. उसे एडवेंचर और समुद्री तट बहुत पसंद है. समय मिलने पर वह नेचर के करीब जाना पसंद करती है. कौलेज के दिनों में वह गोल्फ प्लेयर रह चुकी है और फिटनेस को जीवन में अधिक महत्व देती है. उसके कई जिम सेंटर है, जिसकी देखभाल वह खुद करती है. इन दिनों उसकी हिंदी फिल्म ‘मरजावां’ के प्रमोशन को लेकर वह काफी उत्सुक है, पेश है उससे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल-इस फिल्म में आपकी भूमिका कैसी है?

तारा सुतारिया इस फिल्म में मूक अभिनय कर रही है और मुझे भारी भरकम संवाद निर्देशक ने दिए है. जब उन्होंने मुझे इस फिल्म के लिए नैरेट दिया तो उनका कहना था कि आजतक मेरी फिल्म में हीरो के लिए बड़ा संवाद होता है, लेकिन इस फिल्म में ये मौका मुझे मिलेगा और मुझे अच्छा भी लगा. इसमें मैंने 90 के दशक की तवायफ की भूमिका निभाई है, जो अदा और नजाकत के साथ शायरी बोलती है. पिछले कई सालों से ऐसी फिल्में आई नहीं है और मुझे लगता है, दर्शकों को ये फिल्म पसंद आयेगी. मेरे लिए ये चुनौती है, जिसमें मुझे कुछ नया करने को मिला है.

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सवाल-इसके लिए क्या-क्या तैयारियां की है?

मैंने पुरानी हीरोइनों के अभिनय नहीं देखे, पर ‘बार’ में जाकर बार डांसर्स के हाव-भाव को देखा है. वही मेरा होम वर्क रहा.

सवाल-एक्टिंग में आना इत्तफाक था या बचपन से ही सोचा था?

बचपन मेरा खेलकूद में गुजरा, क्योंकि मैं एक फौजी की बेटी हूं. 10वीं कक्षा के बाद मैंने फिल्में देखनी शुरू की थी, लेकिन मेरी मां चाहती थी कि मैं अभिनय के क्षेत्र में कुछ करूं, क्योंकि मेरी कद काठी अच्छी थी. उन्होंने मुझे मिस इंडिया में भी भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था. तब मुझे अच्छा नहीं लगा था, पर 12वीं के बाद मुझे लगने लगा कि मैं मौडलिंग करूं और मैंने पढ़ाई ख़त्म करने के बाद मौडलिंग शुरू की, साथ में फिल्मों के लिए भी औडिशन देती रही. इस तरह इस प्रोफेशन में आ गयी.

सवाल-आपने दक्षिण की फिल्मों में अधिक काम किया है, इसकी वजह क्या थी?

जब मौडलिंग शुरू की थी तो मुझे साउथ की इंडस्ट्री के बारें में कोई जानकारी नहीं थी. मैंने पहली बार तो उन्हें मना भी कर दिया था, लेकिन बाद में फिल्म जान कर अभिनय किया. इससे मुझे कुछ पैसे भी मिल गए मैंने अपने पैसे से कार भी खरीद ली, इतना ही नहीं अभिनय के बारें में बहुत कुछ सीखने को भी मिला. ऐसे ही आगे बढती गयी और अभिनय में मुझे मज़ा भी आने लगा. अब मेरे लिए माध्यम कोई बड़ी बात नहीं है. काम करते रहना जरुरी है. ‘यारियां’ मेरी पहली हिंदी फिल्म सफल थी, जिससे काम मिलना थोडा आसान हो गया था.

सवाल-आप बेटी बचाओ, बेटी पढाओं की ब्रांड एम्बेसेडर है, इसके तहत क्या-क्या करती है?

मैं ढाई सालों से इस अभियान के साथ जुडी हूं. हमारा उद्देश्य छोटे शहरों और गावं में जाकर काम करना है, जिसमें उन्हें बताना है कि सरकार की तरफ से उन्हें किस तरह की फंडिंग मिलती है और वे उसका फायदा कैसे उठा सकते है. जागरूकता अभियान भी करती हूं. तेलंगाना के नालगोडा में जाकर मैंने लोगों से बात की और विज्ञापन लगवाएं. ये एक धीमी प्रक्रिया है, जो धीरे-धीरे कारगर होती है.

सवाल-इस तरह के काम में समस्या क्या आती है?

समस्या पैसों की कमी की है. उन्हें बेटी पसंद नहीं, क्योंकि बेटी के लिए दहेज़ देने पड़ते है. सरकार की स्कीम के अंतर्गत जो मुफ्त शिक्षा है. उन्हें पता नहीं होता. बेटियों को वे पढ़ाते नहीं. इन सारी चीजों को दूर दराज तक पहुँचाना मुश्किल होता है.

सवाल-इंडस्ट्री में कभी आपको किसी गलत परिस्थिति का सामना करना पड़ा?

मैं कभी भी काम के लिए हताश नहीं थी. अगर आप हताश है और जब ये बात किसी को पता चलता है तो लोग उसका फायदा उठाने की कोशिश करते है. मुझे जो काम मिला उसे करती गयी. इसके अलावा मेरे पास एक अच्छी फॅमिली सपोर्ट है, जिससे ‘डू ऑर डाई’ वाली परिस्थिति कभी भी नहीं आई. ऐसे कई कलाकार है, जो काम की तलाश में यहाँ आ जाते है और संघर्ष करते है, पर अच्छा काम नहीं मिल पाता. केवल ग्लैमर इंडस्ट्री ही नहीं, दुनिया में हर कोई लाभ उठाने के लिए बैठा है, ऐसे में आप उन्हें कितना उसे लेने देते है, ये आप पर निर्भर करता है.

सवाल-सिद्दार्थ मल्होत्रा के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

सिद्दार्थ और मैं दोनों ही दिल्ली से है. दोनों की सोच अच्छी है, इसलिए काम करना मुश्किल नहीं था.

सवाल-आप कितनी फूडी है?

मुझे जंक फ़ूड पसंद नहीं. मां के हाथ का बना खाना बहुत पसंद है. घर जाने से पहले ही उन्हें मैं अपना मेन्यु दे देती हूं. काले चने, करेला, पालक सब मुझे उनके हाथ का बना पसंद है.मुझे खाना बनाना नहीं आता, पर बेकिंग पसंद है और करती हूं. मैं छोले भटूरे और बटर चिकन नहीं खाती. मैं फिटनेस पर अधिक ध्यान देती हूं. आयल मैं एकदम नहीं लेती.

सवाल-आपकी फिटनेस कोच कौन है?

मैं खुद अपने स्वास्थ्य के हिसाब से अपने आपको कोच करती हूं. मेरा ट्रेनर कुनाल सालों से है. इसके अलावा कई और ट्रेनर है.

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सवाल-अभिनय के अलावा किस बात में रूचि रखती है?

मेरे कई जिम सेंटर है, जिसकी देखभाल मैं खुद करती हूं.

सवाल-फिटनेस के लिए बेसिक क्या है?

हर किसी को अपनी फिटनेस का ख्याल रखनी चाहिए. जब आप घर को साफ रखते है, तो शरीर को क्यों नहीं और उसके लिए थोडा समय अवश्य निकाले. 20 मिनट भी आपके लिए काफी होता है. फिटनेस एक लाइफस्टाइल है और उसके लिए जिम की जरुरत नहीं होती.

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