जब आपका पार्टनर हो बहुत ज्यादा इमोशनल, तो रिश्ते को इस तरह संभालें

मेघा की नईनई शादी हुई थी. एक दिन जब वह औफिस से घर आई, तो देखा उस का पति रजत सोफे पर बैठा फूटफूट कर रो रहा है. मेघा की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ. वह परेशान हो गई कि उस का पति ऐसे क्यों रो रहा है. मेघा के कई बार पूछने पर रजत ने बताया, ‘‘मैं ने तुम्हें फोन किया था, लेकिन तुम ने फोन नहीं उठाया. बस बिजी हूं का मैसेज भेज दिया.’’

मेघा हैरान हो गई. उसे समझ नहीं आया कि क्या जवाब दे. जिस समय रजत का फोन आया उस समय वह बौस के साथ मीटिंग में थी. उस समय तो मेघा ने रजत को सौरी कह कर किसी तरह मामला दफादफा कर दिया. लेकिन जब यह रोजरोज की बात बन गई, तो उस के लिए रजत के साथ रहना मुश्किल हो गया.

इस बाबत जब मेघा ने अपनी सास से बात की, तो वे बोलीं, ‘‘रजत बचपन से ही बहुत ज्यादा भावुक है. छोटीछोटी बातों का बुरा मान जाता है.’’

रजत की तरह बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं, जो बेहद भावुक होते हैं. उन के साथ जिंदगी बिताना कांटों पर चलने के समान होता है. कब कौन सी बात उन्हें चुभ जाए पता ही नहीं चलता. पतिपत्नी का संबंध बेहद संवेदनशील होता है. संबंधों की प्रगाढ़ता के लिए प्यार के साथसाथ एकदूसरे की भावनाओं को समझने और अपने साथी पर भरोसा बनाए रखने की भी जरूरत होती है. सच तो यह है कि पतिपत्नी का रिश्ता तभी खूबसूरत बनता है, जब आप अपने साथी को पूरी स्पेस देते हैं. मशहूर लेखक खलील जिब्रान का कहना है कि रिश्तों की खूबसूरती तभी बनी रहती है, जब उस में पासपास रहने के बावजूद थोड़ी सी दूरी भी बनी रहे. आज रिश्तों की सहजता के लिए दोनों के बीच स्पेस बेहद जरूरी है.

आमतौर पर तो पतिपत्नी एकदूसरे को पूरा समय देते हैं, लेकिन कभीकभार स्थिति उलट हो जाती है. अगर आप का जीवनसाथी बेहद इमोशनल है, तो उस की यही डिमांड रहती है कि हर समय आप उस के आसपास ही घूमती रहें. आप की प्राइवेसी उस की भावनाओं के आहत होने का सबब बन जाती है. बहुत ज्यादा भावुक पति के साथ जीवन बिताना सच में बेहद मुश्किल होता है. आप समझ नहीं पाती हैं कि आप की कौन सी बात आप के पति को बुरी लग रही है.

इस संबंध में वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डाक्टर तृप्ति सखूजा का कहना है कि बेहद संवेदनशील या यों कहें भावुक व्यक्ति के साथ निर्वाह करने में दिक्कत होती है. अगर दूसरा साथी समझदार न हो, तो कई बार संबंध टूटने के कगार पर भी पहुंच जाते हैं. अगर आप के पति जरूरत से ज्यादा इमोशनल हैं, तो आप को उन के साथ बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है. उन की भावनाओं का खयाल रख कर ही आप उन्हें अपने प्यार का एहसास दिला सकती हैं. पति की भावनाओं को ठीक तरह से समझ न पाने के कारण संबंधों में दूरी आने लगती है. कारण यह है कि इमोशनल व्यक्ति की सब से बड़ी कमी यह होती है कि अगर आप उस से कोई सही बात भी कहेंगी, तो उसे ऐसा महसूस होगा कि आप उस की अवहेलना कर रही हैं. वह अपने संबंधों को ले कर हमेशा असुरक्षित रहता है, इसलिए उस के साथ रहने के लिए छोटीछोटी बातों का भी ध्यान रखना होगा ताकि आप उस के साथ अपने संबंधों को मजबूती दे सकें.

बात को तरजीह दें

आप के पति भावुक हैं, तो यह बेहद जरूरी है कि आप उन की कही सारी बातों को ध्यानपूर्वक सुनें. इस से आप को पता चलेगा कि उन के मन में क्या चल रहा है. पति की बातों को सुन कर आप यह निर्णय ले पाएंगी कि उन के साथ आप को कैसा व्यवहार करना है. जब भी आप के पास फुरसत हो, उन के साथ बैठ कर बातचीत करें. बात करते समय इस बात का ध्यान रखें कि जब वे कुछ कहें, तो आप बीच में टोकें नहीं. उन की बात को सुन कर आप को इस बात का एहसास हो जाएगा कि वे परेशान क्यों हैं.

सच जानने की कोशिश करें

अगर आप के पति हर समय भावुक बातें करते हैं और यह चाहते हैं कि आप हर समय उन के आसपास ही रहें, तो उन के पास बैठ कर उन के इस तरह के व्यवहार का कारण पूछें. अगर वे कोई तार्किक जवाब न दे पाएं, तो आप उन्हें प्यार से समझाएं कि आप उन के साथ हर समय हैं. जब भी उन्हें कोई दिक्कत होगी, तो वे आप को अपने करीब पाएंगे. आप के आश्वासन से आप के पति के मन में आप के साथ अपने रिश्ते को ले कर सुरक्षा का भाव आएगा. यकीन मानिए आप के प्रयास से धीरेधीरे उन की अनावश्यक भावुकता कम होने लगेगी.

उन के करीब आएं

आप पति के जितना ज्यादा करीब जाएंगी, आप को उन के व्यवहार के बारे में

उतना ही ज्यादा पता चलेगा. आप की नजदीकी से आप के पति को इस बात का एहसास होगा कि आप उन्हें प्यार करती हैं. जब वे आप के प्यार को महसूस करेंगे, तो उन की भावनात्मक असुरक्षा कम होगी. ऐसे में वे अपने मन की सारी बातें आप के साथ शेयर करेंगे. उस समय आप उन की भावुकता का कारण जान कर उन्हें उस से छुटकारा दिला सकती हैं. आप उन्हें हर समय इस बात का एहसास दिलाती रहें कि अच्छीबुरी हर स्थिति में आप उन के साथ हैं.

कारण जानने की कोशिश

आप के पति इतने ज्यादा इमोशनल क्यों हैं, इस के पीछे का कारण जानने की कोशिश करें. इस के लिए आप परिवार के सदस्यों मसलन, अपनी सासूमां और ननद की सहायता ले सकती हैं. कोई भी पुरुष विवाह पूर्व अपनी मां और बहन के सब से ज्यादा करीब होता है. अगर उन की यह भावुकता किसी लड़की के कारण है, जो उन्हें छोड़ कर चली गई है, तो आप उन्हें समझाएं कि उन के साथ जो हुआ अच्छा नहीं हुआ, लेकिन अब उन के जीवन में कुछ भी बुरा नहीं होगा. आप उन के साथ हमेशा रहेंगी. आजीवन उन्हें प्यार करेंगी.

स्थिति का धैर्यपूर्वक सामना करें

आप के पति भावुक हैं, तो उन के साथ अपने संबंधों को पटरी पर लाने के लिए आप को उत्तेजना नहीं धैर्य की जरूरत है. भले ही उन की बातों से आप को गुस्सा आता हो. उन्हें पलट कर जवाब देने की बजाय उन की बातों को ध्यानपूर्वक सुन कर उन्हें सांत्वना दें.

पति को प्यार का एहसास कराएं

भावुक पति को मानसिक तौर पर संतुष्ट और सुरक्षित रखने के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप उन्हें इस बात का एहसास दिलाएं कि आप उन्हें बहुत प्यार करती हैं. उन की पसंदनापसंद आप के लिए बहुत माने रखती है. इस के लिए आप उन्हें समयसमय पर उपहार दें या फिर उन की पसंद का काम कर के उन्हें इस बात का एहसास दिला सकती हैं कि आप को उन की परवाह है और आप उन की भावनाओं का खयाल रखती हैं.

पतिपत्नी के बीच उम्र में कितना होना चाहिए गैप ?

कहा जाता है कि प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती, किसी भी उम्र में प्यार हो सकता है, वैसे ही शादी की कोई उम्र नहीं होती, किसी भी उम्र में शादी की जा सकती है और पति-पत्नी में अंतर कितना सही है, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि प्यार सबसे पहले होता है, जिसमे मानसिक और शारीरिक अट्रैक्शन शामिल होता है. इसमें आयु का अंतर किसी रिश्ते को कितना प्रभावित करता है, उसे समझ पाना काफी मुश्किल है, क्योंकि आयु के अंतर का असर सिर्फ सेक्स के समय होता है, अगर सेक्स जरुरी नहीं, तो शादी किसी भी आयु में कितने भी फर्क के साथ की जा सकती है और उसका असर रिश्ते की बोन्डिंग पर कभी नहीं पड़ता.

यही वजह है कि क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और अंजलि तेंदुलकर के बीच 6 साल का ऐज गैप है, जिसमे अंजलि 6 साल बड़ी है, प्रियंका चोपड़ा और निक जोनास के बीच 10 साल का एज गैप है, जिसमे प्रियंका निक से 10 साल बड़ी है. जबकि दिलीप कुमार और सायरा बानो के बीच 22 साल का एज गैप रहा और उनकी जोड़ी हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री की मिसाल रही. धर्मेन्द्र और हेमामालिनी के बीच 13 वर्ष, राजेश खन्ना और डिंपल के बीच 16 वर्ष, कबीर बेदी और प्रवीण दुसांज के बीच 29 वर्ष, मिलिंद सुमन और अंकिता कुंवर के बीच 25 साल का एज गैप आदि कई उदहारण है. उन सभी की जोड़ी अच्छी चल रही है. हालांकि लम्बे समय से भारत में उम्र के गैप को शादी के लिए जरुरी माना गया है, जिसमे पति का पत्नी से बड़ा होना जरुरी माना गया है, लेकिन समय के साथ इसमें आज परिवर्तन आ रहा है और उम्र के गैप को जरुरी अब नहीं समझा जाता.

अटलांटा की यूनिवर्सिटी में हुई एक रिसर्च के हिसाब से पति-पत्नी के बीच 5 साल का एज गैप सही माना गया है. रिसर्च के अनुसार जिन कपल्स के बीच ऐज गैप 5 साल होता है, उनमें तलाक की संभावना 18% होती है. वहीं, जिन कपल्स के बीच ऐज गैप 10 साल है, उनमें तलाक की संभावना 39% है और यदि एज गैप 20 साल है तो तलाक की संभावना 95% होती है.

विवाह में एज गैप की नहीं होती परिभाषा

इस बारें में हीलिंग सर्कल की मैरिज काउंसलर आरती गुप्ता कहती है कि मैरिज में एज गैप की कोई परिभाषा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि दो व्यक्ति के व्यक्तिगत भावनाएं अलग होती है, जिसमे उनके माहौल, शिक्षा, जॉब, रहन-सहन आदि कई बातें उससे जुडी हुई होती है. गैप की जरुरत भी क्यों चाहिए, पहले जमाने में लोग सोचते थे कि एक की अधिक उम्र होने पर वह अधिक परिपक्व रहेगा, सम्हालेगा, जिसमे लड़के को ही बड़ा होना जरुरी मानते थे. तब पुरुष डोमिनेट समाज की ये सोच थी. अब भी समाज पुरुष प्रधान रखना चाहती है, लेकिन वह अब नहीं है, क्योंकि ग्लोबलाईजेशन और वुमन एम्पावरमेंट की वजह से ये सब आज मायने नहीं रखती. अब दो लोगों का आपस में गठबंधन हो रहा है और उन दोनों का आपस में क्या कम्फर्ट लेवल है, उनकी परिपक्वता कितनी है, उनकी सोच क्या है, आदि, ये सब फ्लेक्सिबल चीजे है, जिसमे किसी को भी जज करने की जरुरत नहीं. अभी लडकियां कई जगहों पर लड़के से बड़ी होने पर भी शादियाँ हो रही है और उनकी जिंदगी अच्छी चल रही है. सभी मानते है कि लड़कियां लड़कों से अधिक मेच्योर होती है. पहले भी देखा गया है कि महिलाओं में जन्म से ये सारी बातें अंतर्निहित होती है, जिसमे घर, रिश्ते, बच्चे  सबको सम्हालते हुए पति के पैसे से परिवार चलाती थी. मेरे पास मेडिकली कोई प्रूव नहीं है कि लड़की की उम्र कम होने पर सेक्सुअली या रिप्रोडक्शन में वह बेहतर होती है. मैं उस बात से सहमत नहीं हूँ.

शिक्षित होना आवशयक  

भारत सरकार ने महिलाओं की शादी की न्‍यूनतम कानूनी उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का विधेयक संसद में पेश किया था. महिलाओं की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव दिया था. जबकि पुरुषों के लिए उम्र 21 साल ही रहेगा, क्या इससे जनसंख्या कंट्रोल हो सकेगा? पूछने पर हंसती हुई अंजलि कहती है कि जनसँख्या कंट्रोल होगा या नहीं, ये कहना मुश्किल है, क्योंकि मैं अर्बन एरिया में रहती हूँ और ये भी सही है कि लड़कियों की शादी की उम्र बढाने पर जनसँख्या पर कुछ असर देखने को मिल सकता है, क्योंकि उनमे जागरूकता जनसँख्या को लेकर बढ़ सकती है. गांवों में बहुत कम उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती है और बर्थ कंट्रोल की सुविधा नहीं है, ऐसे में कानून बनाकर और शिक्षित कर ही इस पर कंट्रोल किया जा सकता है. इसके साथ-साथ आकड़ों पर अधिक गौर करना होगा, जिससे जनसँख्या कंट्रोल के बारें में जानकारी मिल सकती है, लेकिन इन सबमे लड़कियां और लड़कों का शिक्षित होना सबसे अधिक जरुरी है.

हर उम्र में शादी की परिभाषा अलग  

अधिक उम्र में शादी करने वालों की संख्या आज बढ़ रही है, इसकी वजह के बारें में पूछने पर आरती कहती है कि आजकल लोग अधिक उम्र में भी शादियाँ कर रहे है, ये अच्छी बात है. इसमें वे सेक्स के लिए शादी नहीं कर रहे है. वे अपना एक साथी चाहते है, सेटल होना चाहते है, वे अपनी जिंदगी को किसी के साथ शेयर करना चाहते है और ये किसी भी रूप में गलत नहीं. उस रिलेशनशिप में शादी की परिभाषा अलग होती है. यंग एज में शादी करने का अर्थ है कि लड़के और लड़कियां मैच्योर हो चुके है, बच्चे पैदा करने की उम्र है और परिवार को आगे बढ़ाना है. इन सारी जरूरतों को पूरा करने के लिए दो परिवार एकसाथ होते है और उनकी शादी होती है.

वजह डोमिनेशन  

इसके आगे काउंसलर कहती है कि आयु का अंतर सिर्फ डोमिनेशन के लिए होता है, जहाँ पुरुष खुद को महिला से बड़े होने की वजह से अकलमंद, अधिक पढ़ा-लिखा समझते है और अपनी बातें पत्नी को मनवाने की कोशिश करते है. लकिन यहाँ यह समझना जरुरी है कि अब वे दिन रहे नहीं. यहाँ मैं अर्बन परिवेश की बात कर रही हूँ, क्योंकि मैं बड़े शहर में रहती हूँ, जबकि गांवों और छोटे शहरों में आज भी लड़के का लड़की से बड़े होने को सही मानते है. उसमे भी बदलाव आ रहा है और पूरी तरह से बदलाव आने में समय लगेगा. जितनी जल्दी समाज और परिवार इसे समझ लें, सोच को बदल लें और बहाव में बहने के लिए तैयार हो, उतना ही पारिवारिक सुख-शांति बनी रहेगी. जितना उसका विरोध करेंगे, परिवार टूटता चला जायेगा और आज कई घर, विरोध की वजह से टूट चुके है.

मेंटल और इमोशनल कम्पेटिबिलिटी जरुरी

आरती कहती है कि कई लोग मुझसे एज गैप को लेकर अपनी समस्या का जिक्र करते है और मुझे उन्हें समझाना पड़ता है, कि हर उम्र की सोच और जरूरतें अलग होती है. आज जमाना समानता का होता जा रह है, दोनों में परिपक्वता खुद को ही लाना पड़ता है, एज गैप से अधिक मेंटल और इमोशनल कम्पेटिबिलिटी का होना बहुत जरुरी है. मेरे और मेरे पति के बीच काफी एज गैप है, लेकिन उन्होंने मुझे शादी के बाद सारी शिक्षा लेने के लिए सहयोग दिया. रिलेशनशिप को निखारना पड़ता है. मेरा सभी यूथ से कहना है कि एक्सेप्टिंग, एडजस्टमेंट, कोम्प्रोमाईज़, लव, गिविंग एंड रिसीविंग आदि सभी चीजे ह्यूमन रिलेशनशिप को बनाए रखने में सहायक होती है, इसे अपनाने की कोशिश करें, ताकि एक मजबूत रिश्ता बनी रहे.

कहीं, पति उम्र में बड़ा है, तो कहीं पत्नी लेकिन फिर भी शादी अच्छी चल रही है. ऐसे में यह निष्कर्ष निकला जा सकता है कि सफल शादी के लिए पति-पत्नी में एज गैप से ज्यादा एक दूसरे के लिए प्यार, इज्जत और समझ होना जरूरी है.

फिट और खुश रहना है तो प्यार करें

शारीरिक रूप से फिट, दिल से कल्पनाशील और दिमाग से तरोताजा रहने के लिए न तो किसी जादू की जरूरत है और न ही किसी बहुत जटिल एक्सरसाइज से पसीना बहाने की. बस किसी से डूबकर प्यार करिये और ये तीनों मकसद हासिल कर लीजिए, बशर्ते आपकी किस्मत अच्छी हो यानी आपका प्यार एकतरफा न हो, उसे उतने ही गर्मजोशी से स्वीकारा जाए, जितनी गर्मजोशी से आपने पहल की होे. जी हां, यह कोई मजाक नहीं है. विज्ञान की कसौटी में बार बार कसा गया वह सच है, जिसे एक-दो नहीं लाखों लोगों ने आजमाकर देखा है और किसी ने धोखा नहीं खाया. दरअसल जब हम किसी से प्यार करते हैं तो दिल में, आसमान में उड़ने के लिए उमंगे मचलती हैं. ये उमंगें बहुत कुछ करती हैं मसलन- पेट में गुदगुदी करती हैं और हमारी ढेर सारी कैलोरी भी जलाती हैं. नतीजे में हम फिट रहते हैं, खुश रहते हैं और दिमागी रूप से चैतन्य रहते हैं.

रिसर्च बताती है कि जब हम जिसे प्यार करते हैं, उसे गर्मजोशी से चूमते हैं तो 90 कैलोरी जलती हैं. पता नहीं पिछली सदी के 70 के दशक में पश्चिमी दुनिया में धूम मचाने वाले म्यूजिक बैंड बीट्लस को यह बात पता थी या नहीं, लेकिन जब बीट्लस ने झूमकर गया ‘आई नीड समबडी टू लव’ और कुछ लोगों ने इस गीत को व्यवहार में आजमाया तो पाया कि हां, आश्चर्यजनक रूप से किसी को प्यार करना, खुश और सेहतमंद होने की गारंटी है. जब हम किसी के साथ एक बेहद नशीले रोमांस से गुजरते हैं तो दिल से लेकर दिमाग तक पोर पोर तरोताजा हो जाते हैं. इससे हमारे शरीर का अतिरिक्त बौडी फैट पिघलकर हमें सांचे में ढाल देता है. हालांकि यह सब कुछ इतना मशीनी भी नहीं है, इस मामले में सबके अनुभव अलग अलग हैं.

मानव संबंधों के विश्वकोश के सह-संपादक रहे पीएचडी हैरी रीस कहते हैं, ‘हमने बहुत से लोगों से इस संबंध में उनके निजी अनुभवों को जाना है कि एक दूसरे को बहुत गहराई से प्यार करने पर प्यार की भावनाएं दोनो पार्टनरों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के नजरिये से गहरे तक प्रभावित करती हैं. रिसर्च बताती है कि एक दूसरे को बहुत गहरे प्यार करने वाले जोड़े आमतौर पर डॉक्टर के पास बहुत कम जाते हैं. हजारों लोगों के निजी अनुभवों के जरिये यह जाना गया है कि ऐसे जोड़ों को किसी वजह से अगर डॉक्टर के पास जाना भी पड़ता है, तो अव्वल तो इन्हें अस्पताल में ठहरने की जरूरत नहीं पड़ती और रूकना भी पड़ा तो बाकी लोगों के मुकाबले यह अवधि बहुत कम होती है.’

हालांकि रीस कहते हैं विज्ञान इसके पीछे के अंतिम सच को यूनिवर्सल तथ्य के रूप में जान पाने में असमर्थ है. लेकिन जो ठोस अनुमान है, वो यही है कि जब हम किसी से प्यार करते हैं तो अपना और उसका अच्छे से ख्याल रखते हैं. एक दूसरे को अच्छा लगने की कोशिश करते हैं. साफ सुथरा और खुश रहते हैं. अवसाद से मुक्त रहते हैं. ऐसे में इस तरह के हार्मोन्स का स्राव नहीं होता या बहुत कम होता है, जो हमें थकाते और चिड़चिड़ा बनाते हैं. वास्तव में जब हम किसी के साथ दिल की गहराईयों तक प्रेम में डूबे होते हैं तो शराब कम पीते हैं, नकारात्मक बातें कम करते हैं, इस सबसे भी सेहत पर बहुत फर्क पड़ता है. प्यार की खुशी हमारे रक्तचाप को संतुलित रखती है. न यह इसे बहुत ज्यादा बढ़ने देती है और न ही डूबने की हद तक घटने देती है. जब हम किसी के साथ प्यार में डूबे होते हैं तो चिंताएं बहुत कम होती हैं, जरूरतें भी बहुत ज्यादा नहीं होतीं. किसी को डूबकर प्यार करने से हमें तमाम किस्म के प्राकृतिक दर्दों से छुट्टी मिल जाती है. 1 लाख 27 हजार ऐसे वयस्क लोगों के बीच यह सर्वे किया गया, जो किसी के प्यार में थे या उनकी कुछ ही दिन पहले शादी हुई थी.

ऐसे लोगों में महज 5 फीसदी सिरदर्द और कमरदर्द की शिकायतें पायी गईं. दरअसल जब हम किसी के प्यार में होते है तो हम तनाव में नहीं जाते. अगर कभी किसी वजह से तनाव में घिरे भी तो इसका बहुत बेहतर तरीके से प्रबंधन कर लेते हैं. तनाव का सोशल सपोर्ट से बहुत सीधा रिश्ता होता है यानी अगर हम तनाव में हों और कोई हमारे तनाव को बांटने के लिए कोई हो तो भले व्यवहारिक रूप से ये तनाव बंटे न, पर कम जरूर हो जाता है. जब हम किसी से गहरे प्यार में होते हैं तो हमें सर्दी जुकाम जैसी छोटी मोटी शारीरिक समस्याएं नहीं होती. एंजायटी और डिप्रेशन से भी हम बचे रहते हैं और अगर कभी ऐसी समस्याएं हो जाएं तो भी बहुत जल्द ही खत्म हो जाती हैं. इससे पता चलता है कि प्यार करने और फिट रहने का सिर्फ भावनात्मक रिश्ता ही नहीं है, इसका शारीरिक रिश्ता भी है. जब आपको दिल से प्यार करने वाला पार्टनर अंतरंगता के क्षणों में आपके कपड़े उतारता है, तो 80 कैलोरी तक बर्न होती हैं. यही फायदा मालिश से होता है और संभोग में 144 से 207 तक कैलोरी जलती है. जब आप अपने प्रेम करने वाले पार्टनर के साथ डांस करते हैं तो 200 कैलोरी जलती है. इस तरह हम प्यार में सिर्फ खुश नहीं रहते, फिट भी रहते हैं.

मैं जिंदगीभर शादी नहीं करना चाहता हू्ं, क्या मेरा यह फैसला सही है?

सवाल

मैं 28 वर्षीय अविवाहित युवक हूं. मातापिता दोनों इस दुनिया में नहीं हैं. हम 2 भाई हैं. मैं छोटा हूं और बड़े भाई का विवाह हो चुका है. वे अपने परिवार के साथ खुश हैं. वे मुझे भी शादी करने के लिए कहते हैं. लेकिन मैं शादी नहीं करना चाहता. इस के पीछे एक वजह है. जब मैं स्कूल में था तो पड़ोस की एक लड़की से प्यार करने लगा था, वह भी मुझे चाहती थी. हम दोनों के परिवार वालों को भी हमारे प्यार के बारे में पता था. लेकिन फिर भी लड़की के परिवार वालों ने उस की शादी कहीं और कर दी. मुझे यह जान कर बहुत दुख हुआ. लेकिन मैं ने अपने कैरियर पर ध्यान दिया और आज मैं नेवी में कार्यरत हूं. मैं उस लड़की के सिवा किसी और को अपनी पत्नी के रूप में नहीं देख सकता. मैं ताउम्र अविवाहित रहना चाहता हू्ं. क्या मेरा यह फैसला सही है?

जवाब

आप का फैसला बिलकुल भी सही नहीं है. आप पढ़ेलिखे हैं. अपने पैरों पर खड़े हैं. सिर्फ उस लड़की के बारे में सोच कर विवाह न करने का फैसला पूरी तरह से गलत है. आप के परिवार में आप के बड़े भाई के अलावा और कोई नहीं है. आप अपने बड़े भाई का कहा मान कर किसी अच्छी पढ़ीलिखी लड़की से विवाह कर लें. जब आप एक रिश्ते में बंध जाएंगे तो धीरेधीरे उस लड़की के बारे में सबकुछ भूल जाएंगे.

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विवाह सैक्स के बाद नहीं पैसों के बाद

विवाह को ले कर युवाओं की धारणा अब बदल रही है. पहले जहां सैक्स संबंध कायम होने के बाद शादी करने की मांग जोर पकड़ लेती थी वहीं अब सैक्स के बाद भी ऐसी मांग नहीं उठती. कई बार तो लिव इन रिलेशनशिप लंबी चलती रहती है. फिल्मों में ही नहीं सामान्यतौर पर भी कई दोस्त आपस में एकसाथ रहते हैं. अब सैक्स कोई मुद्दा नहीं रह गया है. जब कभी शादी की बात चलती है तो युवकयुवती दोनों की एक ही सोच होती है कि पहले आत्मनिर्भर हो जाएं व अच्छा कमाने लगें, जिस से जिंदगी अच्छी कटे, फिर शादी की सोचें.

केवल युवा ही नहीं, उन के पेरैंट्स भी शादी की जल्दी नहीं करते. वे भी सोचते हैं कि पहले बच्चे कुछ कमाने लगें उस के बाद ही विवाह की सोचें. जो बच्चे कमाने लगते हैं वे बाकी फैसलों की तरह शादी के फैसले भी खुद लेने लगे हैं.

सैक्स अब पहले की तरह समाज में टैबू नहीं रह गया है. युवा इस को ले कर सजग और जागरूक हो गए हैं, उन्हें घरपरिवार से दूर अकेले रहने के अवसर ज्यादा मिलने लगे हैं. जहां वे अपनी सैक्स जरूरतों को पूरा कर सकते हैं. सैक्स को ले कर वे इतने सजग हो गए हैं कि अब उन को अनचाहे गर्भ या गर्भपात जैसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता. आज उन्हें गर्भ से बचने के उपाय पता हैं. पहले सैक्स एक ऐसा विषय था जिस पर लोग चर्चा करने से बचते थे. युवा जब इस विषय पर चर्चा करनी शुरू करते थे तब परिवार के लोग उन की शादी के बारे में सोचना शुरू कर देते थे. अब केवल युवक ही नहीं युवतियां तक अपने घर से दूर पढ़ाई, कंपीटिशन और जौब को ले कर शहरों में होस्टल या पीजी में अकेली रहने लगी हैं. ऐसे में सैक्स उन के लिए कोई मुद्दा नहीं रह गया है. अब युवाओं की प्राथमिकता है कि शादी की बात तब सोचो जब पैसे कमाने लगो.

फैशन और जरूरतें बनीं वजह

‘विवाह सैक्स के बाद नहीं पैसे के बाद’ इस बदलती सोच के पीछे सब से बड़ी वजह आज के समय में बढ़ती महंगाई है. पहले विवाह के बाद जहां 20 से 40 हजार में हनीमून ट्रिप पूरा हो जाता था वहीं अब यह खर्च बढ़ कर 90 हजार से 1 लाख रुपए के ऊपर पहुंच गया है. शादी के बाद पतिपत्नी के बीच इतना सामंजस्य नहीं होता कि बिना कहे वे इस आर्थिक परेशानी को समझ सकें. एक नए शादीशुदा जोड़े की हनीमून कल्पना पूरी तरह से फिल्मी होती है. जहां पत्नी किसी राजकुमारी सा अनुभव करना चाहती है. अब इस अनुभव और फीलिंग्स के लिए पैसों की जरूरत होती है. ज्यादातर युवा प्राइवेट जौब में होते हैं, जहां पैसा भले होता है पर समय नहीं होता. ऐसे में युवाओं को ऐसी नौकरी की प्रतीक्षा रहती है जिस में पैसा हो, जिस के सहारे वे शादी के बाद सभी सुखों का आनंद ले सकें.

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शादी के समय ही नहीं उस के बाद भी अब नई स्टाइलिश ड्रैस रेंज बाजार में आने लगी हैं. अब तो शौपिंग के लिए बाजार जाने की जरूरत भी नहीं होती. औनलाइन शौपिंग का दौर है, जहां आप को बिना बाजार गए ही सबकुछ मिल सकता है. जरूरत होती है पैसों की. इसलिए अब युवा शादी तब करना चाहते हैं जब शादी के मजे लेने के लिए उन के पास पैसे हों. फेसबुक, व्हाट्सऐप और सोशल मीडिया के इस दौर में जीवन के किसी पल को दोस्तों व नातेरिश्तेदारों से छिपाया नहीं जा सकता. ऐसे में अपनी खुशियों को पूरा करने के लिए पैसों की अहमियत अब सभी को समझ आने लगी है.

‘विवाह सैक्स के बाद नहीं पैसे के बाद’ यह सोच अब दिनोदिन और मजबूत होती जा रही है. पहले की तरह यह नहीं होता कि शादी हुई उस के बाद सबकुछ घरपरिवार की जिम्मेदारी पर होता था. अब अपना बोझ खुद उठाना पड़ता है. ऐसे में ‘पहले कमाई फिर शादी’ की सोच बढ़ रही है.

बच्चों की प्लानिंग

‘विवाह सैक्स के बाद नहीं पैसे के बाद’ की धारणा में कई बार आलोचक कहते हैं कि जब शादी से पहले ही सैक्स हो गया तो शादी के बाद क्या बचता है? इस सवाल के जवाब में युवा कहते हैं कि शादी के पहले वाले और शादी के बाद वाले सैक्स में फर्क होता है. शादी के बाद हमारी प्राथमिकता परिवार की होती है. हम अपने हिसाब से बच्चे का जन्म प्लान करते हैं. आज के समय में बच्चे के जन्म से ले कर स्कूल जाने तक बहुत सारे खर्चे होने लगे हैं. इन को सही तरह से संभालने के लिए अच्छे बजट की जरूरत होती है. एक बच्चे की प्राइवेट अस्पताल में डिलीवरी का खर्च ही लाख से ऊपर पहुंच जाता है. उस के बाद तमाम तरह के खर्च और फिर बच्चे के प्ले स्कूल जाने का खर्च महंगा पड़ने लगा है. अस्पताल हो या प्ले स्कूल उस में किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया जा सकता.

3 साल की उम्र में ही बच्चे का स्कूल जाना शुरू हो जाता है. इस में अच्छे स्कूल में प्रवेश से ले कर पढ़ाई के खर्च तक बड़े बजट की जरूरत होती है, जो यह सिखाता है कि शादी के लिए सैक्स की नहीं पैसे की ज्यादा जरूरत है. बच्चा जैसेजैसे एक के बाद एक क्लास आगे बढ़ता है उस का खर्च भी बढ़ता है, जिसे वहन करना सरल नहीं होता. कई बार युवा ऐसे लोगों को देखते हैं जो इस तरह के हालात से गुजर रहे होते हैं. ऐसे में वे अपना हौसला नहीं बना पाते.

शादी के लिए पहले मातापिता व घरपरिवार का हस्तक्षेप ज्यादा होता था लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब ज्यादातर फैसले या तो युवा खुद लेते हैं या फिर फैसला लेते समय उस की सहमति ली जाती है. शादी की उम्र बढ़ गई है, जिस में सैक्स से ज्यादा पैसे का फैसला प्रमुख हो गया है.

सैक्स का सरल होना

सैक्स अब ऐंजौयमैंट का साधन बन गया है. युवकयुवतियां भी खुद को अलगअलग तरह की सैक्स क्रियाओं के साथ जोड़ना चाहते हैं. इंटरनैट के जरिए सैक्स की फैंटेसीज अब चुपचाप बैडरूम तक पहुंच गई हैं, जहां केवल युवकयुवतियां आपस में तमाम तरह की सैक्स फैंटेसीज करने का प्रयास करते हैं. इंटरनैट के जरिए सैक्स की हसरतें चुपचाप पूरी होती रहती हैं. सोशल मीडिया ग्रुप फेसबुक और व्हाट्सऐप इस में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं. फेसबुक पर युवकयुवतियां दोनों ही अपने निकनेम से फेसबुक अकाउंट खोलते हैं और मनचाही चैटिंग करते हैं. इस में कई बार युवतियां अपना नाम युवकों की तरह रखती हैं, जिस से उन की पहचान न हो सके. चैटिंग करते समय वे इस बात का खास खयाल रखती हैं कि उन की सचाई किसी को पता न चले. यह बातचीत चैटिंग तक ही सीमित रहती है. बोर होने पर फ्रैंड को अनफ्रैंड कर नए फ्रैंड को जोड़ने का विकल्प हमेशा खुला रहता है.

इस तरह की सैक्स चैटिंग बिना किसी दबाव के होती है. ऐसी ही एक सैक्स चैटिंग से जुड़ी महिला ने बातचीत में बताया कि वह दिन में खाली रहती है. पहले बोर होती रहती थी, जब से फेसबुक के जरिए सैक्स की बातचीत शुरू की तब से वह बहुत अच्छा महसूस करने लगी है. कई बार वह इस बातचीत के बाद खुद को सैक्स के लिए बहुत सहज पाती है. पत्रिकाओं में आने वाली सैक्स समस्याओं में इस तरह के बहुत सारे सवाल आते हैं, जिन को देख कर लगता है कि सैक्स की फैंटेसी अब फैंटेसी नहीं रह गई है. इस को लोग अब अपने जीवन का अंग बनाने लगे हैं.

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शादी के पहले सैक्स का अनुभव जहां पहले बहुत कम लोगों को होता था, अब यह अनुपात बढ़ गया है. अब ऐसे कम ही लोग होंगे, जिन को सैक्स का अनुभव शादी के बाद होता है. ऐसे में सैक्स के लिए शादी की जरूरत खत्म हो गई है. शादी के बाद जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए पैसों की जरूरत बढ़ गई है. यही वजह है कि शादी सैक्स के बाद नहीं शादी पैसों के बाद का चलन बढ़ गया है.

आज इन विषयों को ले कर कई पुस्तकें, सिनेमा और टीवी सीरियल्स भी बनने लगे हैं, जो इस बात का समर्थन करने लगे हैं कि शादी से पहले सैक्स की नहीं पैसों की जरूरत होती है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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अपने युवा बच्चे के दोस्त बनें

कल शाम अपनी पड़ोसिन नविता गुप्ता से मिलने गई तो उन के चेहरे पर परेशानी और झुंझलाहट साफ झलक रही थी. पूछने पर बेचारगी से बोलीं, ‘‘निकिता (उन की 13 वर्षीय बेटी) पिछले कुछ दिनों से खोईखोई, गुमसुम सी रहती है. न पहले की तरह चहकती है, न ही सहेलियों के साथ घूमने जाती है. पूछने पर कोई ढंग का जवाब भी नहीं देती.’’

आजकल ज्यादातर मांएं अपने टीनऐजर बच्चों को ले कर परेशान नजर आती हैं कि दोस्तों से घंटों गप्पें मारेंगे, इंटरनैट पर चैटिंग करते रहेंगे पर हमारे पूछने पर कुछ नहीं मम्मी कह कर चुप्पी साध लेंगे. मुझे अच्छी तरह याद है, अपने जमाने में कालेज के दिनों में मेरी मां मेरी सब से अच्छी दोस्त होती थीं. भलेबुरे का ज्ञान मां ही कराती थीं और मेरी सहेलियों के घर आने पर मम्मी उन से भी खूब घुलमिल कर हर विषय पर बातें करती थीं. इसीलिए आज की पीढ़ी का अपने मांबाप के साथ व्यवहार देख कर मुझे बेहद हैरानी होती है.

क्या है वजह

सचाई की तह तक पहुंचने के लिए मैं ने कुछ किशोरकिशोरियों से चर्चा की.  14 साल की नेहा छूटते ही बोली, ‘‘आंटी, मम्मी एक काम तो बहुत अच्छी तरह करती हैं और वह है टोकाटाकी कि यह न करो, वहां न जाओ, किचन का काम सीखो.’’  10वीं कक्षा की छात्रा स्वाति वैसे तो अपनी मम्मी की पूरी इज्जत करती है पर सारी बातें मम्मी के साथ शेयर करना पसंद नहीं करती.

17 साल की शैली को मलाल है कि मम्मी ने भाई को तो रात 9 बजे तक घर आने की छूट दे रखी है पर मुझ से कहेंगी कि लड़की हो, टाइम पर घर आ जाया करो. कहीं नाक न कटवा देना वगैरह.  कोई व्यक्तिगत समस्या या स्कूल की कोई समस्या आ जाने पर किस से डिस्कस करना पसंद करती हो, पूछने पर 17 वर्षीय मुक्ता बोली, ‘‘बीमार होने पर, अपसैट होने पर या कोई और बड़ी समस्या आने पर सब से पहले मां की याद आती है. वे न केवल बड़े धीरज से सुनती हैं, बल्कि कई बार तो मिनटों में समस्या हल कर के टैंशन फ्री कर देती हैं. मम्मी जैसा तो कोई हो ही नहीं सकता.’’

इन सभी टीनऐजर्स से बातचीत करने पर यह साफ हो जाता है कि खेलने, फिल्म देखने, गपशप करने या मौजमस्ती के लिए भले टीनऐजर दोस्तों को ढूंढ़ें, किंतु जब किसी तरह की समस्या उन के समक्ष आती है, तो वे बेहिचक जिस तरह अपनी मां के पास जा सकते हैं, उस तरह पापा, बहन, भाई या फिर पक्के दोस्त के पास नहीं. ऐसे में मां ही उन की गाइड होती है और बैस्ट फ्रैंड भी.  तो फिर ज्यादातर किशोरकिशोरियां अपनी मां से दोस्ताना रिश्ता कायम क्यों नहीं कर पाते? सच तो यह है कि इस प्रभावात्मक अवस्था में आज के बच्चे यह मान कर चलते हैं कि आज के हिसाब से वे सब कुछ जानते हैं और उन की मांएं कुछ नहीं.

15 वर्षीय ऋतु का कहना है, ‘‘मम्मी जमाने के हिसाब से चलने को तैयार ही नहीं. अच्छे कपड़े पहन कर कालेज जाना, फोन पर दोस्तों से लंबीलंबी बातें करना, महीने में कम से कम  1 बार दोस्तों के साथ मूवी या रेस्तरां जाना कितना वक्त के अनुसार चलने के लिए जरूरी है, ये सब मम्मी नहीं समझतीं.’’

मेरा भानजा नवनीत कहता है, ‘‘पिज्जा और मैकडोनल्ड के बर्गर का स्वाद मम्मी क्या समझेंगी.’’

गलती मातापिता की भी

ईमानदारी से देखें तो आज की तेज रफ्तार जिंदगी में मांबाप शोहरत, रुतबा पूरा करने की होड़ में तो भाग रहे हैं पर अपने बच्चों के मन में संस्कारों के बजाय पैसे की प्रधानता और उम्र से पहले बड़प्पन पैदा कर रहे हैं. पुराने जमाने में बच्चे संयुक्त परिवार में पलते थे, हर चीज भाईबहनों से शेयर की जाती थी. आज एकल परिवारों में 1 या 2 बच्चे होते हैं. बच्चों पर मां का प्रभाव सब से ज्यादा पड़ता है. बेशक पहले के मुकाबले मां और बच्चे में लगाव बढ़ा है. पहले से ज्यादा इन्टैंस भी हुआ है. आज के किशोर यह जरूर चाहते हैं कि मांएं उन्हें समझें, उन की जरूरतें समझें पर मांओं की भी उन से कुछ अपेक्षाएं होती हैं, यह समझने के लिए वे तैयार नहीं होते.

मनोवैज्ञानिक स्नेहा शर्मा के अनुसार, ‘‘आज की पीढ़ी ने आंखें ही उपभोक्तावाद के माहौल में खोली हैं. आज के बच्चे जब मां को यह बताएं कि आप को किस तरह तैयार हो कर, कौन सी ड्रैस पहन कर हमारे स्कूल आना है, तो आप समझ सकते हैं कि बच्चों का मातापिता पर कितना दबाव है.’’  कालेज में लैक्चरर मोहिनी का मानना है, ‘‘नई पीढ़ी द्वारा अपनी बातें मांओं से शेयर न करने के लिए कुछ हद तक मांएं खुद ही जिम्मेदार हैं. नौकरीपेशा मांएं बच्चों को वक्त न दे पाने की मजबूरी को उन्हें ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं दे कर छिपाने की कोशिश करती हैं.’’

स्कूल टीचर निर्मला उदाहरण देते हुए कहती हैं, ‘‘मेरे स्कूल में 12वीं कक्षा की एक छात्रा रोज स्कूल 15-20 मिनट देर से आती थी. उस के मातापिता उस के देर से पहुंचने की पैरवी करते हुए कहते कि क्या हुआ, अगर थोड़ी देर से पहुंचती है? जब मांबाप खुद ही अनुशासन का महत्त्व भूल चुके हों, तो बेटी को क्या अनुशासन सिखाएंगे. अच्छी देखभाल का मतलब अब अच्छा खानापीना, दिखना रह गया है. बच्चों में अच्छे जीवनमूल्य डालना अब अच्छे लालनपालन का हिस्सा नहीं रह गया है.’’

कुछ उन की भी सुनें

मातापिता दोनों के कामकाजी होने की वजह ने भी बच्चों की सोच पर असर डाला है. कामकाजी मातापिता समयसमय पर बच्चों को यह एहसास दिलाते रहते हैं कि वे बड़े हो गए हैं. स्वाभाविक है कि बच्चे भी बड़ों की तरह व्यवहार करने लगें. ऐसी हालत में बच्चों के बचपन के साथसाथ बालसुलभ भोलापन खो गया है और उस की वजह सैटेलाइट की दुनिया में घुला सैक्स और मारधाड़ ले चुका है. मातापिता अपनी टूटीबिखरी आकांक्षाओं को बच्चों के जरीए पूरा करना चाहते हैं. ऐसे हालात में क्या जरूरी नहीं कि मातापिता अपने बच्चों को जो चाहे दें, पर साथ ही अपना बहुमूल्य समय भी उन्हें अवश्य दें.

आखिरकार वे आप के बच्चे हैं, उन के किशोरावस्था में बढ़ते कदम आप की सांसों के साथ जुड़े हैं. इसलिए आप को उन का दोस्त बनना सीखना होगा और इस के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप उन्हें बराबरी का सम्मान दें. उन्हें गलत और सही का ज्ञान करवाएं. कुछ उन की मानें, कुछ अपनी मनवाएं.

मेरी सहेली शर्बरी का बेटा शाम होते ही कार्टून चैनल लगा कर बैठ जाता. दफ्तर से घर आने पर शर्बरी का मन होता कि अपना पसंदीदा टीवी सीरियल देखे. यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा जब उन्होंने डांटनेफटकारने के बजाय बेटे को प्यार से यह समझाया, ‘‘बेटा, रोज शाम को पहले मेरी पसंद का सीरियल देखा करेंगे और फिर तुम्हारा कार्टून चैनल.’’

इस तरह प्यार से समझाई गई बात बेटे की समझ में आ गई और मम्मी उस की सब से अच्छी फ्रैंड भी बन गईं.  दूसरी ओर सुनीता ने अपने बच्चों से सुविधा का संबंध कायम किया हुआ है. खुद मिनी को ‘सिली’, ‘स्टूपिड’ जैसे विशेषणों से पुकारती हैं और फिर जब वही अल्फाज बच्चों के मुंह से निकलते हैं, तो उन्हें डांटती हैं. इस से अच्छा होता सुनीता पहले खुद की जबान पर कंट्रोल करतीं.  अकसर देखने में आता है सैटेलाइट के इस युग में जब हर चैनल सैक्स संबंधी बातों/विज्ञापनों को खुलेआम परोस रहा है तो भी मांएं किशोरावस्था की दहलीज पर खड़ी अपनी बेटियों को सैक्स के बारे में स्वस्थ जानकारी नहीं देतीं. ऊपर से उस विषय की कोई मैग्जीन या किताब पढ़ने पर उन्हें डांट देती हैं, जबकि उन की यह जिज्ञासा सहज और स्वाभाविक है. ऐसे में बेहतर होगा मांएं अपनी ड्यूटी समझें. किशोर बेटियों को सही तरीके से पूरी जानकारी दें ताकि वे अपनी मां पर पूरा विश्वास कर सकें, बेहिचक अपनी समस्याएं उन के सामने रख सकें और भटकें नहीं.

बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार, उन के साथ बिताया गया समय भले ही वह क्वालिटी टाइम बहुत कम हो, उन्हें आप से उन के  रिश्ते की कद्र समझाएगा और तब आप स्वयं अपने प्यारे बच्चों की फ्रैंड, फिलौस्फर और  गाइड होंगी.

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जब बच्चे छिपाएं अफेयर की बात

प्रतिदिन अपनी पसंदीदा डिश की फरमाइश करने वाली पंखुड़ी आजकल जो बनता चुपचाप खा लेती. किसी रिश्तेदार के घर कोई फंक्शन हो या सहेलियों के साथ पार्टी, अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने को हमेशा तैयार रहने वाली पंखुड़ी इन दिनों मां के कहने पर भी साथ चलने को मना कर देती. सहेलियों के फोन आते तो उठाती ही नहीं. मातापिता उस के बदले व्यवहार से चिंतित थे.

मां ने एक दिन दुलार से उस का सिर सहलाते हुए कारण जानना चाहा तो पंखुड़ी के आंसू बहने लगे. 8 महीने पहले अपने ही कालेज के एक सीनियर नमन से प्रेम का रिश्ता बन जाना और 15 दिन पहले उस के टूट जाने की बात मां को बता कर वह सुबकने लगी.

मां एकाएक यह सब सुन सकते में आ गईं, लेकिन पंखुड़ी की पीड़ा देख उन का मन भर आया. उस लड़के के बारे में पंखुड़ी ने जो भी बताया उस से पता लगा कि शुरू में पंखुड़ी की प्रशंसा करते हुए उस के आगेपीछे घूम कर उसे अपने वश में करने के बाद नमन उस पर हावी होने लगा था. पंखुड़ी पर अपने मित्रों और शुभचिंतकों से दूरी बनाने पर वह जोर डालने लगा था. पंखुड़ी से उम्मीद करता कि वह उस की हर बात माने साथ ही खूब तारीफ भी करे. पंखुड़ी कोई सलाह देती तो उसे अपनी बात का विरोध मान झगड़ने लगता.

इन बातों से जब पंखुड़ी का मूड उखड़ाउखड़ा रहने लगा तो नमन ने यह कह कर ब्रेकअप कर लिया कि वह अब पहले सी नहीं रही. ब्रेकअप का दर्द पंखुड़ी झेल नहीं पा रही थी. उस की 1-1 बात उस दिन मां ने धैर्य से सुनी और नमन के चरित्र को समझ कर पंखुड़ी को बताया कि वह लड़का नार्सिसिस्टिक पर्सनैलिटी डिसऔर्डर से ग्रस्त लग रहा है. ऐसे लोगों का पार्टनर बन कर रिश्ता निभाना टेढ़ी खीर है. पंखुड़ी से उन्होंने यह भी कहा कि वह यदि पहले ही उस लड़के के बारे में मां से जिक्र करती तो रिश्ता शायद आगे न बढ़ता. भविष्य को ले कर सचेत हो चुकी पंखुड़ी स्वयं को तब बहुत हलका महसूस कर रही थी.

रिश्तों में उतारचढ़ाव

विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित हो कर या भावी जीवनसाथी की तलाश में रिलेशनशिप हो जाना सामान्य है. ऐसे रिश्तों में अनेक उतारचढ़ाव आना भी सामान्य है, लेकिन समस्या तब होती है जब रिश्तों का प्रतिकूल प्रभाव सुकून छीनने लगता है. जब तक बात आपसी मतभेद को ले कर हो, किसी तीसरे की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन जब पार्टनर में भावी जीवनसाथी का रूप दिखना बंद हो जाए या ब्रेकअप हो जाए तो मामला गंभीर हो जाता है.

ऐसी परिस्थितियां कभीकभी किसी के जीवन को संकट में भी डाल देती हैं. पेरैंट्स को समयसमय पर रिलेशनशिप की जानकारी मिलती रहे तो संभव है कि ऐसे हालात का सामना ही न करना पड़े या इन से निबटना आसान रहे.

जब उस में लाइफ पार्टनर का रूप दिखना बंद हो जाए रिश्ता तब खोखला लगने लगता है और उस के आगे बढ़ने की गुंजाइश नहीं बचती. उन परिस्थितियों में पेरैंट्स की भूमिका क्या हो सकती है इस पर एक नजर डालते हैं:

एक हो गंभीर दूसरे के लिए रिश्ता टाइम पास: जब एक साथी रिलेशन को सीरियसली ले और दूसरा उसे शारीरिक आवश्यकता की पूर्ति का साधन मात्र माने, जब एक के लिए पार्टनर ही दुनिया हो और दूसरे का कई लोगों से रिश्ता रखने पर भीजी न भरता हो तो ऐसे रिश्ते तनाव का कारण बनने के साथ ही जानलेवा भी साबित हो जाते हैं. छत्तीसगढ़ की रहने वाली न्यूज एंकर सलमा सुल्तान की जिम संचालक मधुर साहू के हाथों हुई नृशंस हत्या कुछ ऐसे ही रिश्ते का परिणाम है. सलमा मधुर द्वारा दिए गए शादी के झांसे में आ कर उस के साथ रहने लगी थी.

जब सलमा ने मधुर के अन्य लड़कियों से संबंध पर ऐतराज जताया तो उसे जान से हाथ धोना पड़ा. इस हत्या का खुलासा लगभग 5 वर्ष बाद हुआ, कारण कि सलमा के परिवार वाले उस के और मधुर के रिश्ते का सच नहीं जानते थे. काम की व्यस्तता के बहाने सलमा मधुर के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी.

मातापिता को यदि कुछ अंदाज होता तो शायद सलमा की जान बच जाती. हिंसा करने वाला हो जब पार्टनर:

बातबात में मारनेपीटने पर उतारू हो जाने वाले बौयफ्रैंड को कोई लड़की तभी सहती है जब वह मानसिक रूप से उस पर निर्भर हो गई हो और रिश्ता टूटने का डर उसे अकेलेपन का पर्याय लगने लगे. मातापिता को अफेयर की जानकारी होगी तो कुछ संबल मिलेगा और हिंसा करने वाले पार्टनर से पीछा छुड़ाने में संकोच नहीं होगा.

मानसिक स्वास्थ्य दुरूस्त न होना: छोटीछोटी बातों पर चिल्लाना, पब्लिक में डांटनाडपटना, आत्महत्या की धमकियां देना या स्वयं को चोट पहुंचाना, शक करना आदि बातें रिलेशनशिप को नुकसान पहुंचाती हैं. मैंटल हैल्थ से जुड़ी समस्याएं रिश्ते में तनाव और अलगाव का कारण बनती चली जाती हैं जो एक दिन रिलेशनशिप की टूट के रूप में सामने आती हैं. मातापिता को सब बातें समयसमय पर बताते रहें तो वे अनुभवी होने के कारण पहले ही भांप कर आगाह कर देंगे.

प्रेम की आड़ में सौदा: चेतना की मित्रता यूएसए में रहने वाले हैरी से हुई फिर यह संबंध ‘लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप’ में बदल गया. चेतना को शुरू में सब ठीक लग रहा था, लेकिन धीरेधीरे हैरी का रवैया बदला सा लगने लगा. भावी जीवनसाथी तो क्या वह उस में एक प्रेमी की छवि भी नहीं देख पा रही थी. हैरी वीडियो कौल करते हुए उसे बहुत कम कपड़े पहनने को कहने लगा.

ऐसे ही कपड़ों में वह फोटो भेजने की मांग भी करता. चेतना ने अपनी मम्मी को हैरी से दोस्ती के विषय में बताया था. हैरी की अटपटी मांग से उल?ान में पड़ी चेतना ने उन को यह बात भी बता दी. तब मां ने समझाया कि ऐसी तसवीरें अकसर पोर्नसाइट पर डाल दी जाती हैं. इस प्रकार प्यार के नाम पर धोखे को चेतना ने समझ लिया.

ईशानी का लिवइन पार्टनर रोहित प्रेम के नाम पर अंतरंग पलों को वीडियो में कैंद कर लिया करता था. ईशानी को उस की मरजी के खिलाफ रोहित का उन पलों में वीडियो बनाना बहुत अखर रहा था, लेकिन क्या करती? पेरैंट्स से लड़झगड़ कर लिवइन में रह रही थी.

रिश्ता तोड़ने की बात सोचती तो लगता पता नहीं मातापिता कैसा व्यवहार करेंगे? क्या करे और क्या नहीं, इसी उधेड़बुन में ईशानी दिनरात घुलने लगी. उस के पैरों तले तब जमीन खिसक गई, जब उसे अपनी एक सहेली से पता लगा कि कुछ लड़कों का एक ग्रुप व्हाट्सऐप पर ऐसे वीडियो शेयर करता है, रोहित भी ऐसा ही कर रहा है. अंतत: उसे घर का रुख करना पड़ा लेकिन एक पश्चात्ताप के साथ.

छोटीछोटी बातें: कई बार पार्टनर की छोटीछोटी बातें अखरने लगती हैं और यह फैसला करना मुश्किल हो जाता है कि ये आदतें बदली जा सकती हैं या भविष्य के लिए खतरा हैं. पेरैंट्स को अफेयर की जानकारी होगी तो इन छोटीछोटी बातों को समझना आसान हो जाएगा और सही निर्णय लिया जा सकेगा. दिखने में छोटी लेकिन मनमुटाव पैदा करने वाली ये बातों हैं- कौल या मैसेज को इग्नोर करना, अन्य मित्रों व सोशल मीडिया में व्यस्त हो जाना, ऐक्स की बातें करना, ताने मारना, बातबात पर नाराज होना फिर रूठ कर जल्दी से न मानना जिस से लंबे समय तक बातचीत का बंद हो जाना, बेहद खर्चीला या कंजूस होना आदि. स्वार्थी पार्टनर भी जल्द ही नापसंद किया जाने लगता है.

अपनी पसंद की फिल्में, खुद की पसंद का खाना और घूमने के लिए अपनी पसंद की जगह चुन कर पार्टनर पर थोपना रिलेशनशिप को आगे बढ़ने से रोकता है. पेरैंट्स से बातचीत कर यह जानना सरल हो जाएगा कि कौन सी आदत समय के साथ बदल जाएगी और कौन सी रिश्ते को पनपने से रोक देगी.

जब हो जाए ब्रेकअप

सही पार्टनर न मिलने से, कैरियर के कारण, पार्टनर के बेरोजगार होने या अन्य किसी कारण से ब्रेकअप हो सकता है. उस समय कोशिश यह होनी चाहिए कि अपना ध्यान वहां से हटा लिया जाए. पेरैंट्स का साथ ऐसे में मददगार साबित हो सकता है. जानते हैं कैसे-

बीता वक्त शेयर करना जरूरी: ब्रेकअप होने पर किसी से बात करना बहुत जरूरी होता है. यह कदम सही था या नहीं, यह सवाल मन में बारबार उठता है. पेरैंट्स से मन की बातें शेयर करते हुए इस स्थिति से उबरा जा सकता है.

चाहिए व्यस्त रहना: ब्रेकअप के बाद अवसाद से घिर कर अपना खयाल न रखना बड़ी भूल है. किसी भी काम में बिजी हो जाने से तनाव कम होने लगता है. मातापिता समय पर भोजन करने, रिश्तेदारों से मिलनेजुलने व घर के किसी काम में लगाए रख कर व्यस्त रखने में मदद कर सकते हैं.

जब ऐक्स देने लगे धमकी: तान्या का पार्टनर दोस्ती के नाम की आड़ ले कर रिलेशनशिप को जारी रखना चाहता था जबकि तान्या उस से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती थी. तान्या पर दबाव बनाने के लिए वह निजी तसवीरों को सार्वजानिक करने की धमकी दे रहा था. तान्या ने अपने पिता को बताया तो उन्होंने पुलिस में शिकायत कर दी. उस के बाद धमकियां मिलनी बंद हो गईं.

मन में आ जाए हीनभावना: श्रेया अपने बौयफ्रैंड सारांश द्वारा ब्रेकअप किए जाने से हीनभावना से घिर गई. अपने को इस टूट का जिम्मेदार मान वह सारांश के पीछे लग कर वापस रिश्ता जोड़ने की विनती करने लगी. सारांश का दिल तो कहीं और ही लग गया था. श्रेया को वह हर बार ?िड़क देता था. श्रेया की हीनभावना दूर होने के स्थान पर बढ़ती चली गई. श्रेया के विपरीत मुग्धा ने खुल कर मातापिता को अपने पार्टनर द्वारा रिश्ता तोड़ने की बातें बताईं तो पेरैंट्स ने मुग्धा जैसी गुणी लड़की से रिश्ता न रख पाने के लिए पार्टनर को दोषी बताया और कहा कि मुग्धा को वह डिजर्व ही नहीं करता था. पुराने पार्टनर के पीछे लग कर वापस रिश्ता जोड़ने की भूल से मातापिता की मदद से बचा जा सकता है.

नशे का सहारा: कुछ लोग रिलेशनशिप खत्म होने के बाद सब भूलने के लिए नशे का सहारा ले लेते हैं, जो सही नहीं है. पेरैंट्स के संपर्क में रहा जाए तो दिल का गुबार निकल जाएगा और सब भूलने की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी.

रिक्तता लगे तो: ब्रेकअप के बाद जीवन में एक खालीपन आने से जल्द ही किसी से रिश्ता बनाने की इच्छा जाग्रत होने लगती है. जल्दबाजी में उठने वाले ऐसे कदम पूर्व में बने कच्चे रिश्ते से भी कहीं घातक सिद्ध हो सकते हैं. मातापिता से बातचीत कर खालीपन को दूर किया जा सकता है. उन के साथ कहीं घूमने का कार्यक्रम बना कर भी इस स्थिति से बचा जा सकता है.

अफेयर की जानकारी समयसमय पर मातापिता को देते रहना सही कदम है. वे हाथ थाम कर प्रेम की राह में आने वाले गड्ढों में गिरने से बचा सकते हैं.

इनफर्टिलिटी के दौर से गुजर रहे अपने सहकर्मी को कैसे कर सकते हैं सपोर्ट?

आज हर दस में से एक व्‍यक्ति प्रजनन संबंधी समस्‍या का सामना कर रहा है, और किसी भी कार्यस्‍थल पर यह एक बहुत संवेदनशील मामला हो गया है. इनफर्टिलिटी के दौर से गुजर रहे लोगों को काफी तनाव एवं चिंता का सामना करना पड़ता है. जब इसके साथ-साथ व्‍यक्ति फर्टिलिटी का उपचार कराने से होने वाले शारीरिक दबाव को भी झेलता है तो उसकी उत्‍पादकता, ऊर्जा, और मानसिक सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है.

डॉ डायना दिव्या क्रैस्टा,  मुख्य मनोवैज्ञानिक, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी सेंटर की बता रही हैं ऎसे उपाय जो इनफर्टिलिटी के दौर से गुजर रहे अपने सहकर्मी को सपोर्ट कर सके.

डायना दिव्या क्रैस्टा का कहना है कि -सांस्‍कृतिक रूप से, इनफर्टिलिटी और प्रेग्‍नेंसी लॉस को लेकर काफी वर्जनाएँ हैं. दुर्भाग्‍यवश, कपल्‍स जिस पीड़ा को सहते हैं, वह सामाजिक स्‍तर पर वास्‍तविक ‘लॉस’ के तौर पर वाकई प्रमाणित नहीं है. लेकिन यदि कोई आपके बेहद करीब है, जैसे कि आपका दोस्‍त या सहकर्मी जो कुछ इसी तरह के दौर से गुजर रहा है, तो हमें नीचे दी गई कुछ बातें ध्‍यान में रखनी चाहिए :

ध्यान दें और धैर्यपूर्वक सुनें-

सबसे पहले उनकी बात सुनें, उन्‍हें गले लगायें और उनके दिमाग में क्‍या चल रहा है, उसे आपके साथ शेयर करने का मौका दें.  खुली बातचीत सहयोगी एवं समावेशी कार्यस्‍थल की नींव है. अपने वर्कफोर्स को उन चिकित्‍सा स्थितियों को समझने पर जोर देने और सहयोग देने के लिए प्रोत्‍साहित करें जिनकी वजह से नियोक्‍ताओं को अधिक लचीलापन या अनुकूलन का अवसर प्रदान करने की जरूरत पड़ सकती है. कर्मचारियों पर ध्‍यान देने वाली संस्‍कृ‍ति का निर्माण करें जहाँ कर्मचारी प्रजनन संबंधी समस्‍याओं के बारे में खुलकर बातचीत और अपने दुख-दर्द आपस में साझा कर सकें.

संस्‍कृति में बदलाव शिक्षा पर निर्भर है-

सहयोग देने से पहले (या नीतियाँ बनाने से पहले), उन उपचारों के बारे में पूरी जानकारी पाना महत्‍वपूर्ण है जिन्‍हें कर्मचारी ले रहा है. इनफर्टिलिटी को किसी दूसरी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या से अलग नहीं करना चाहिए और न इससे डरना चाहिए. इसमें उपचार की जरूरत होती है और संस्‍थानों को इनफर्टिलिटी के सम्बन्ध में भी वैसे ही रिस्‍पॉन्‍स करना चाहिए जैसे वह दूसरी स्‍वास्‍थ्‍य स्थितियों को लेकर करते हैं.

उपचार की अलग-अलग प्रतिक्रिया-

हम आमतौर पर ‘फर्टिलिटी ट्रीटमेंट’ को ‘आईवीएफ’ (इन विट्रो फर्टि‍लाइजेशन) से जोड़कर देखते हैं, लेकिन इसमें कुछ दूसरे प्रोटोकॉल भी होते हैं जैसेकि ‘ओवुलेशन इंडक्‍शन’ या ‘आइयूआइ’ या फिर ‘सरोगेसी’ जिनमें चीरफाड़ या और कभी-कभी जटिल हस्‍तक्षेप करने पड़ते हैं. प्रत्‍येक आइवीएफ साइकल हर दूसरे साइकल से एकदम अलग हो सकता है क्‍योंकि हर व्‍यक्ति उपचार को लेकर अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया देता है.

लचीले बने रहना ही कुंजी है-

कई लोग परिवार को बढ़ाने को एक सीधी प्रक्रिया के तौर पर नहीं देखते हैं. हो सकता है कि, कर्मचारी अपनी इनफर्टिलिटी जाँच का भले ही सीधे खुलासा नहीं करें,  उन्‍हें अपने खुद के (या पार्टनर के) इलाज के लिए काम करने के ज्‍यादा लचीले शेड्यूल या अस्‍थायी इंतजाम पर चर्चा करने की जरूरत भी महसूस हो सकती है. व्‍यक्ति के रूटीन में बदलावों (या टेलीकम्‍युटिंग) की अनुमति देनी चाहिए ताकि वह अपने समय को उपचार की जरूरतों तथा बार-बार फर्टिलिटी क्‍लीनिक जाने के अनुसार अस्‍थायी रूप से समायोजित कर सके. इससे कर्मचारी को काम और जिंदगीके बीच बेहतर संतुलन बनाने में मदद मिल सकती है और उसे अपने संस्‍थान से लगाव का अहसास होता है तथा वह अपनी पेशागत भूमिकाओं एवं कर्तव्‍यों के लिए प्रशंसा मिलती है.

सपोर्ट ग्रुप्‍स का निर्माण करें-

फर्टिलिटी का इलाज करा रहे रोगियों का आमतौर पर यह मानना होता है कि उन्‍हें वही लोग समझ सकते हैं जो वाकई इस अनुभव से गुजर रहे हैं. चर्चा के लिए ग्रुप बनाने का सुझाव दें और निजी तौर पर सहयोग प्रदान करें या फिर रोगियों को सपोर्ट करने के लिए उनके मौजूदा ग्रुप में शामिल हों तथा गर्भधारण की कोशिश कर रहे कपल्‍स की भावनात्‍मक सेहत सुधारने की दिशा में काम करें. ग्रुप सभी कर्मचारियों के लिए खुला होना चाहिए, इनमें चिकित्‍सा संबंधी चुनौती का सामना कर रहे रोगी से लेकर, बच्‍चे को खोने का दर्द झेल रहे लोग और इनफर्टिलिटी का सामना कर रहे कपल्‍स शामिल हो सकते हैं. इस तरह के ग्रुप्‍स अलगाव के अहसास को दूर करने में मदद कर सकते हैं और लोगों को उनकी जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने के नजरिये को बहाल करने में मददगार हो सकते हैं. ये ग्रुप्‍स कपल्‍स को आश्‍वासन दे सकते हैं कि जिंदगी के इस कठिन दौर में वे अकेले नहीं हैं.

सहयोग प्रदान करें

इनफर्टिलिटी के कारण महिला और पुरुष मैनेज करने योग्‍य तनाव से मैनेज नहीं किये जाने वाले तनाव की ओर बढ़ सकते हैं. या फिर उन्‍हें गंभीर मानसिक बीमारियाँ भी हो सकती हैं जैसे चिंता, उदासी और यहाँ तक कि वे सदमे का शिकार भी हो सकते हैं. अपने कर्मचारी पर नजर रखना बहुत महत्‍वपूर्ण है, और यह उन तक पहुँचने के योग्य बात है, जैसे कि एक कर्मचारी सहायता कार्यक्रम या परामर्शी सेवा उपयोगी हो सकती है.

हमें बातचीत के सभी मार्ग भी खुले रखने चाहिए  ताकि हर किसी को ऐसा लगे कि उसे पूरा सपोर्ट मिल रहा है. जैसे कि, कर्मचारी को हर सप्‍ताह एक ईमेल भेजकर उसकी जानकारी ले सकते हैं या फिर साप्‍ताहिक रूप से आमने-सामने बैठकर बात कर सकते हैं.

अगर आपके संगठन में कई कर्मचारियों का उपचार चल रहा है तो उनमें से उन सभी कर्मचारियों को खोजने की कोशिश करें जिन्‍हें नेटवर्क के जरिए एक-दूसरे के सपोर्ट की आवश्यकता है.

जानें क्या हैं हैप्पी मैरिड लाइफ के 5 टिप्स

अरेंज्ड या लव, शादी कैसे भी हो, ससुराल में आपसी अनबन, विचारों में मतभेद जैसी शिकायतें घर-घर की कहानी है, क्योंकि हमारे समाज में शादी केवल 2 व्यक्तियों की नहीं, बल्कि 2 परिवारों की होती है, जहां लोग एकदूसरे के विचारों और स्वभाव से अनजान होते हैं.

आजकल लड़कालड़की शादी से पहले मिल कर एकदूसरे को समझ लेते हैं, लेकिन परिवार के बाकी सदस्यों को समझने का मौका शादी के बाद ही मिलता है. जिस तरह से बहू असमंजस में रहती है कि ससुराल के लोग कैसे होंगे, उसी तरह ससुराल वाले भी बहू के व्यवहार से अनजान रहते हैं. ससुराल में पति के अलावा सासससुर, ननद, देवर, जेठजेठानी सहित कई महत्त्वपूर्ण रिश्ते होते हैं. एक छत के नीचे 4 लोग रहेंगे तो विचारों में टकराव होना स्वाभाविक है, लेकिन जब यह जरूरत से ज्यादा बढ़ जाए तो रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है.

आपसी मनमुटाव की वजहें

जैनरेशन गैप, विचारों को थोपना, अधिकार जमाने की मानसिकता, बढ़ती उम्मीदें, पूर्वाग्रह, फाइनैंशियल इशू, बहकावे में आना, प्यार में बंटवारे का डर इत्यादि रिश्तों में मनमुटाव की वजहें होती हैं. कभीकभी तो स्वयं पति भी सासबहू में मनमुटाव का कारण बन जाता है. इन सब के अलावा आजकल सासबहू के रिश्तों पर आधारित टीवी सीरियल भी आग में घी का काम कर रहे हैं. शादीशुदा अंजलि बताती है, ‘‘घर में पति और 2 बच्चों के अलावा सास, ननद, देवर, जेठजेठानी एवं उन के बच्चे हैं. घर में अकसर एकदूसरे के बीच झगड़े व मनमुटाव का माहौल बना रहता है, क्योेंकि सासननद को लगता है कि हम बहुएं केवल काम करने की मशीनें हैं. हमारा हंसनाबोलना उन को कांटे की तरह चुभता है.

स्थिति ऐसी है कि परिवार के सदस्य आपस में बात तक नहीं करते हैं.’’ मुंबई की सोनम कहती हैं, ‘‘मेरी शादी को 1 साल हो गया है. मैं ने देखा है कि मेरे पति या तो अपनी मां की बात सुनते हैं या फिर पूरी तरह से हमारे बीच के मतभेद को नजरअंदाज करते हैं, जोकि मुझे सही नहीं लगता. पति पत्नी और घर के अन्य सदस्यों के बीच एक कड़ी होता है, जो दोनों पक्षों को जोड़ती है. वह भले किसी एक पक्ष का साथ न दे, परंतु सहीगलत के बारे में एक बार जरूर सोचना चाहिए.’’

इसी तरह 50 वर्षीय निर्मला बताती हैं, ‘‘घर में बहू तो है लेकिन वह सिर्फ मेरे बेटे की पत्नी है. उसे अपने पति और बच्चों के अलावा घर में कोई और दिखाई ही नहीं देता है. उन लोगों में इतनी बिजी रहती है कि एकाध घंटा भी हमारे पास आ कर बैठती तक नहीं है, न ही हालचाल पूछती है. उस के व्यवहार या रहनसहन से कभी भी हम खुश नहीं होते, जिस का उस पर कोई असर नहीं होता. बेटियों का हवाला दे कर अकसर उलटा जवाब देती है. ऐसे में उस के होने न होने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है.’’

नवी मुंबई की आशा कहती हैं, ‘‘मेरे पति हर साल करवाचौथ पर अपनी मां के लिए साड़ी लाते थे. इस साल किसी वजह से नहीं ला पाए तो ‘मैं ने उन्हें अपने वश में कर लिया है,’ कहते हुए सास ने पूरे घर में हंगामा मचा दिया. ससुराल वालों को लगता है कि मैं पैसे कमा कर मायके में देती हूं. शादी के बाद उन का बेटा कम पैसा देता है तो उस के लिए भी मुझे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है.’’ शादी के बाद रिश्तों में आई कुछ ऐसी ही कड़वाहट को कैसे दूर करें कि विवाह बाद भी सदैव खुशहाल रहें, पेश हैं कुछ सुझाव:relationship

कैसे मिटाएं दूरियां: मनोचिकित्सक डा. वृषाली तारे बताती हैं कि संयुक्त परिवार में आपस में मधुरता होनी बहुत जरूरी है. रिश्तों में मिठास बनाए रखने की जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि घर के सभी सदस्यों की होती है. इसलिए परिवार के हर सदस्य को एक समान प्रयास करना चाहिए.

विचारों में पारदर्शिता लाएं: डा. वृषाली के अनुसार, परिवार में एकदूसरे के बीच ज्यादा से ज्यादा कम्यूनिकेशन होना चाहिए, जो डिजिटल न हो कर आमनेसामने हो. दूसरी बात एकदूसरे के विचारों में पारदर्शिता हो, जो किसी भी मजबूत रिश्ते की बुनियाद होती है. उदाहरण के लिए, यदि आप शादी के बाद भी नौकरी करती हैं या कहीं बाहर जाती हैं, तो घर पहुंच कर जल्दी या देर से आने का कारण, औफिस में दिन कैसा रहा जैसी छोटीछोटी बातें घर वालों से शेयर करें. इस से घर का माहौल हलका होने के साथसाथ एकदूसरे पर विश्वास बढ़ेगा. जितना ज्यादा आप इन्फौर्म करेंगी, उतना ही ज्यादा खुद को स्वतंत्र महसूस कर पाएंगी. इस के लिए फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे डिजिटल साधनों का कम से कम इस्तेमाल करें ताकि रिश्तों में गलतफहमी न आए. ऐसा बहू को ही नहीं, बल्कि घर के बाकी सदस्यों को भी करना चाहिए.

मैंटल प्रोटैस्ट से बचें: आजकल सब से बड़ी समस्या यह है कि हम पहले से ही अपने दिमाग में एक धारणा बना चुके होते हैं कि बहू कभी बेटी नहीं बन सकती, सास कभी मां नहीं बन सकतीं. ऐसी नकारात्मक सोच को मैंटल प्रोटैस्ट कहते हैं. अकसर देखा जाता है कि बहुओं की मानसिकता ऐसी होती है कि घर पर उस के हिस्से का काम पड़ा होगा. सास, ननद जरूर कुछ बोलेंगी. ऐसी सोच रिश्तों पर बुरा असर डालती है और इसी सोच के साथ लोग रिश्तों में सुधार की कोशिश भी नहीं करते हैं. इसलिए जरूरी है कि इस तरह की नकारात्मक सोच के घेरे से बाहर निकलें और एकदूसरे के बीच बढ़ती दूरियों को कम करें.relationship

काउंसलर की मदद लें: डा. वृषाली तारे कहती हैं कि संयुक्त परिवार में छोटीमोटी नोकझोंक, विचारों में मतभेद आम बात है, जिसे बातचीत, प्यार और धैर्य से सुलझाया जा सकता है और यह तभी संभव है जब आप का शरीर और मन स्वस्थ हो. लेकिन मामला गंभीर है तो घर के सभी लोगों को बिना संकोच काउंसलर की मदद लेनी चाहिए. ज्यादातर रिश्तों में कड़वाहट का कारण मानसिक अस्वस्थता होती है, जिसे लोग नहीं समझ पाते हैं. ऐसे में जिस तरह से कोई बीमारी होने पर हम डाक्टर की मदद लेते हैं, उसी तरह रिश्तों में आई कड़वाहट और उलझनों को सुलझाने के लिए किसी ऐक्सपर्ट की सलाह लेने में शर्म या संकोच न करें, क्योंकि रिश्तों में स्थिरता और मधुरता लाने की जिम्मेदारी किसी एक सदस्य की नहीं होती है, बल्कि इस के लिए संयुक्त प्रयास होना चाहिए.

रूढि़वादी मानसिकता से बाहर निकलें: विज्ञान और आधुनिकता के समय में रूढि़वादी रीतिरिवाजों से बाहर निकलने की कोशिश करें. घर के सदस्यों के रहनसहन और जीवनशैली में हुए बदलाव को स्वीकार करें, क्योंकि एकदूसरे पर विचारों को थोपने से रिश्तों में कभी मिठास नहीं आ सकती है. सहनशीलता और मानसम्मान देना केवल कम उम्र के लोगों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि बड़े लोगों में भी यह भावना होनी चाहिए. अधिकार जमाने या विचार थोपने से हट कर रिश्तों से ज्यादा व्यक्ति को महत्त्व देंगे तो संबंध अपनेआप खूबसूरत बन जाएंगे. जाहिर सी बात है कि रिश्तों में खुलापन और अपनापन आने में वक्त लगता है, परंतु रिश्ते यों ही नहीं बनते हैं. इस के लिए संस्कार और परवरिश तो माने रखते ही है, कभीकभी सही वक्त पर सही सोच भी बहुत जरूरी होती है.

जब कोर्ट मैरिज हो जरूरी

प्यार करने वालों को अक्सर घरवालों के विरोध का सामना करना पड़ता है. यह ऐतराज कई बार औनर किलिंग जैसी हैवानियत की वजह भी बन जाता है जो प्यार करने वालों के सपनों को तहस नहस कर देता है. इस समस्या से निबटने का एक आसान रास्ता है , कोर्ट मैरिज.

इस संदर्भ में 2 अलग धर्म के बौलिवुड सितारे सैफ और करीना की शादी का उदाहरण लिया जा सकता है जिन्होंने शादी के लिए कानूनी रास्ता अख्तियार किया. बांद्रा स्थित रजिस्ट्रार औफिस जा कर उन्होंने शादी से सम्बंधित जरूरी कागजात जमा किए और आवेदन के 30 दिनों के भीतर कोर्ट मैरिज कर ली.

स्पेशल मैरिज एक्ट 1945 के अंतर्गत होने वाले विवाह को कोर्ट मैरिज कहते हैं. कोर्ट मैरिज में 2 लोगों के धर्म ,जाति या उम्र को नहीं देखा जाता बल्कि उन की सहमति और पात्रता देखी जाती है .

पात्रता

युवक-युवती दिमागी तौर स्वस्थ हों. संतानोत्पति में समर्थ हों.

लड़के की उम्र काम से काम 21 वर्ष और लड़की की उम्र 18 साल होनी चाहिए. दोनों ने अपनी इच्छा से पूरे होशोहवाश में शादी की सहमति दी हो. विवाह में कोई क़ानूनी अड़चन न हो.

कोर्ट मैरिज करने के लिए युवक और युवती को इस बाबत एक फौर्म भर कर लिखित सूचना अपने क्षेत्र के जिला विवाह अधिकारी को देनी होती है. फिर नोटिस जारी करने का शुल्क जमा करना होता है जो काफी कम होता है. इस आवेदन के साथ युवकयुवती को फोटो पहचान पत्र, और एड्रैस प्रूफ भी प्रस्तुत करना होता है. उस के बाद विवाह अधिकारी द्वारा 30 दिन का नोटिस जारी किया जाता है. इस नोटिस को कार्यालय के नोटिस बोर्ड और किसी सार्वजनिक जगह पर चिपकाया जाता है. ताकि किसी को आपत्ति हो तो वह अपना पक्ष रख सके.

यदि विवाह इच्छुक दोनों व्यक्ति या दोनों में से कोई एक किसी दूसरे जिले का निवासी है तो यह नोटिस उस जिले के कलेक्टर को भेजा जाता है और वहां सार्वजनिक स्थान पर इस से सम्बद्ध नोटिस चिपकायी जाती है. इस नोटिस का उद्देश्य यह जानना है कि युवक-युवती के विवाह में कोई क़ानूनी अड़चन तो नहीं है. मसलन कहीं दोनों में से कोई एक पहले से विवाहित तो नहीं. यदि विवाहित हैं तो भी वे क़ानूनी रूप से अलग हो चुके हैं या नहीं.

यदि विवाह में कोई कानूनी बाधा न हो तो नोटिस जारी करने के 30 दिन के अंदर या फिर आवेदन लगाने के 3 माह समाप्त होने से पहले कभी भी जिला विवाह अधिकारी के सामने विवाह किया जा सकता है . लड़का-लड़की और तीन गवाहों के द्वारा विवाह अधिकारी की उपस्थिति में घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए जाते हैं. लड़का- लड़की चाहे तो वरमाला ,सिंदूर,मंगलसूत्र, लहंगाचुनरी पंडित वगैरह का इंतजाम भी कर सकते हैं.

विवाह संपन्न होने के बाद जिला विवाह अधिकारी द्वारा विवाह प्रमाणपत्र भी जारी किया जाता है. कोर्ट मैरिज की प्रक्रिया पूरे भारत में एक समान है. विवाह खर्च कम मगर धांधली यहां भी शादी में कोई अड़चन न आये , कोई किडनैपिंग चार्ज न लगे ,सब काम जल्दी निबट जाए ,नोटिस घर न भेजा जाए और उसे नोटिस बोर्ड से भी तुरंत उतार दिया.

कई बार ऐसा भी होता है कि कोर्ट में 30 दिन पहले नोटिस न लगाने की बात पर युवकयुवती से 10 -20 हजार या उस से भी ज्यादा की मांग की जाती है. यदि रुपए नहीं दिए जाते तो उन के घर वालों को शादी की जानकारी देने की धमकी दी जाती है. इस तरह से यह कोर्ट में काम कर रहे लोगों ने एक धंधा बना लिया है. मजबूर युवकयुवती को हर मांग स्वीकार करनी पड़ती है क्यों कि उन के लिए उस वक़्त सुरक्षित विवाह करने से महत्वपूर्ण कुछ नहीं होता.

फायदे

कोर्ट मैरिज भारत सरकार और कानून द्वारा मान्यता प्राप्त विवाह है. यदि शादी के बाद किसी वजह से तलाक की नौबत आती है तो सेटेलमेंट आसान हो जाता है.

वैसे भी लाखों करोड़ों लगा कर की जाने वाली शादियों में रुपयों की जैसी बर्बादी होती है उसे रोकने के लिए भी कोर्ट मैरिज काफी अहम् है. आप की शादी कुछ हजार रुपयों में संपन्न हो जाती है. आप बाकी के रुपए अनाथ और गरीबों को खिलाने में खर्च कर सकते हैं. अपने लिए अच्छा हनीमून पैकेज  ले सकते हैं.

शादी का सर्टिफिकेट आप के हाथों में हो तो धोखाधड़ी की संभावना भी नहींरहती. दोनों पक्ष अपनी इच्छा से शादी करते हैं इसलिए शादी के बाद उलझनों की जिम्मेदारी भी वे स्वयं लेते हैं.

मुझे एक लड़की ने रिजेक्ट कर दिया, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं 17 साल का लड़का हूं और एक लड़की से प्यार करता हूं. मैं ने उसे आई लव यू कहा तो उस ने ना कर दी, लेकिन वह अब भी मेरे साथ बातचीत करती है. मैं उसे एक बार फिर से आई लव यू कहना चाहता हूं, तो बताइए उसे किस प्रकार आई लव यू बोलूं?

जवाब

पहले तो यह समझ लीजिए कि प्यार किया नहीं जाता हो जाता है, जो आप को उस से हो गया है लेकिन उसे आप से नहीं. आप के पत्र से लगता है कि वह आप की फ्रैंडशिप में तो है, लेकिन आप से प्यार नहीं करती. इस तरह आप का प्यार एकतरफा है. ऐसे में आई लव यू कहने से बात बनने वाली नहीं. उस के दिल में उतरना होगा आप को. उस की पसंदीदा हर बात कीजिए, फिर शायद उधर से ही आई लव यू कह दिया जाए, लेकिन जल्दबाजी न कीजिए. उस की भावनाओं का सम्मान करते हुए उचित मौका देख कर प्यार से एक बार फिर इश्क का इजहार कर दीजिए. यदि वह आंखें नीची कर मुसकरा दे तो प्यार का इकरार समझ लीजिए. हां, जोरजबरदस्ती कभी न कीजिएगा वरना दोस्ती से भी हाथ धो बैठेंगे.

किशोरावस्था में स्कूल व ट्यूशन में कब कोईर् किशोरी अच्छी लगने लगती है, इस का पता ही नहीं चलता लेकिन उसे देख कर हमें कुछकुछ होने लगता है. हम उस से बात करने का बहाना ढूंढ़ते हैं, फ्रैंडशिप की कोशिश करते हैं. यहां तक कि फेसबुक पर सर्च कर उसे फैंरड रिक्वैस्ट तक भेज देते हैं.

कभीकभी हम जल्दबाजी में कई ऐसी गलतियां कर देते हैं जिन से सब के बीच हम मजाक के पात्र बन जाते हैं. कई बार तो किशोरी हमें ठीक से जानती भी नहीं है, लेकिन हम अपने दिल की बात उसे बता देते हैं और वह इसे डिफ्यूज कर देती है, इस से सबकुछ गड़बड़ हो जाता है.

अगर आप को कोई किशोरी अच्छी लगने लगी है तो उसे तुरंत प्रपोज करने के बजाय पहले उस से दोस्ती करें. यदि दोस्ती के बाद भी आप को समझ नहीं आ रहा कि कैसे शुरुआत करें तो कुछ बातों का ध्यान रखें:

अच्छा व्यवहार करें

आप अपने क्रश से अच्छा व्यवहार करें. ऐसा न हो कि उस के आते ही आप की बौडी लैंग्वेज और आवाज बदल जाए. आप के लहजे से ऐसा लगे कि आप किसी राजकुमारी से बात कर रहे हैं. आप उस के साथ भी वैसे ही बरताव करें जैसा आप अपने बाकी दोस्तों के साथ करते हैं.

साफसुथरे नजर आएं

यदि आप किसी लड़की को पसंद कर रहे हैं तो आप का साफ और अच्छा दिखना बहुत जरूरी है, क्योंकि हमारा ध्यान किसी भी आकर्षक पर्सनैलिटी पर जाने से पहले कई चीजों पर जाता है जैसे मुंह की बदबू, पसीने की बदबू, इसलिए अच्छी हाइजिन हैबिट बनाएं ताकि किशोरी आप से बात करने में हिचकिचाए नहीं बल्कि खुद भी दोस्ती की पहल करे.

पौजिटिव नजरिया रखें

हमेशा लोग उन के साथ रहना पसंद करते हैं जो खुश रहते हैं और पौजिटिव नजरिया रखते हैं, इसलिए आप भी अच्छा बनने की कोशिश करें. दूसरों की बुराई करने के बजाय उन की अच्छाइयों को देखें.

नर्वस न हों

अकसर हम जब किसी को पसंद करते हैं तो उस के सामने आते ही हमारी धड़कन तेज हो जाती है और हम नर्वस हो जाते हैं. समझ नहीं पाते कि क्या करें. इसी वजह से छोटीछोटी गलतियां कर बैठते हैं, इसलिए यदि आप चाहते हैं कि कोई गलती न हो तो बजाय नर्वस होने के कौन्फिडैंट हो कर दिल जीतने की कोशिश करें.

प्रपोज करने के बजाय दोस्ती करें

जब आप को कोई किशोरी अच्छी लगने लगे तो उसे एकदो मुलाकातों के बाद ही प्रपोज न करें बल्कि दोस्ती करें. उसे जानने की कोशिश करें तथा उस की पसंदनापसंद को जानें. एकदम से प्रपोजल मिलने से लड़कियां थोड़ी घबरा जाती हैं और दोस्ती करने से मना कर देती हैं.

दिल की बात जानने की कोशिश करें

आप के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप सामने वाले के दिल की बात जानें. ऐसा भी हो सकता है कि आप जिसे लाइक कर रहे हैं वह किसी और को लाइक करती हो और आगे जा कर आप को तकलीफ हो इसलिए बातोंबातों में पहले ही दिल की बात जानने की कोशिश करें.

सरप्राइज दें

आप अपनी बौंडिग बढ़ाने के लिए सरप्राइज प्लान करें. उस के पसंदीदा काम करें जिसे देख वह खुश हो जाए, पर ध्यान रहे ऐसा सरप्राइज न प्लान करें कि वह सरप्राइज के बजाय शौक्ड हो जाए.

प्रोत्साहित करें

हर किसी को प्रोत्साहन अच्छा लगता है. ऐसा लगता है कि कोई है जिसे हमारा काम पसंद आता है. अगर वह किसी काम को नहीं कर पा रही है तो उस में विश्वास पैदा करें कि वह कर सकती है. यदि उसे किसी चीज से फोबिया है तो उस का फोबिया दूर करने की कोशिश करें. यकीन मानिए आप का केयरिंग नेचर देख कर किशोरी जरूर इंप्रैस होगी.

हौबी में दिखाएं रुचि

हर किसी की हौबी अलग होती है, लेकिन फिर भी आप किशोरी की हौबी में रुचि दिखाएं, इस से आप दोनों को बातचीत करने और एकदूसरे को जाननेसमझने का मौका तो मिलेगा ही, साथ ही आप कुछ नया भी सीख पाएंगे. लेकिन ऐसी बातें न करें जिन में आप को मजा न आता हो.

पढ़ाई को बनाएं प्यार का टूल

जब आप को क्लास की कोई लड़की अच्छी लगने लगती है तो आप अपने प्यार का एहसास कराने के लिए पढ़ाई को टूल बनाएं. पढ़ाई के बहाने उस के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं. एकदूसरे से नोट्स शेयर करें. इस से आप की पढ़ाई भी हो जाएगी और आप एकदूसरे के करीब भी आ जाएंगे.

तारीफ से मिटाएं दूरियां

अपनी तारीफ सुनना भला किसे अच्छा नहीं लगता. आप भी तारीफ से दिल में जगह बना सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे जब तारीफ करें तो ऐसा नहीं लगना चाहिए कि आप चापलूसी कर रहे हैं.

खास अवसरों को रखें याद

किशोरियों को बहुत अच्छा लगता है जब कोई उन्हें उन के स्पैशल डे पर सरप्राइज देता है, इसलिए अपने क्रश के खास दिन को याद रखें. आप चाहें तो फोन में रिमाइंडर लगा सकते हैं या डायरी में नोट कर के रख सकते हैं ताकि आप भूलें नहीं.

क्या न करें

चिपकू बनने की गलती न करें

जब कोई लड़की हमें अच्छी लगने लगती है तो हम उस के आसपास मंडराने का बहाना ढूंढ़ते हैं. वह जहां जाती है उस के पीछेपीछे चले जाते हैं. उस का बात करने का मन हो चाहे न हो, लेकिन फिर भी किसी न किसी बहाने उस से बात करते हैं. अगर आप ऐसा करते हैं तो अब मत करिए, क्योंकि ऐसा कर के आप खुद को चिपकू साबित करते हैं. अत: ऐसा माहौल बनाएं कि वह खुद आप के पास आने की कोशिश करे.

क्लास में न पीटें ढिंढोरा

अगर आप को क्लास की कोई लड़की अच्छी लगती है तो सब को इस बारे में न बताएं, क्योंकि जब किशोरी को क्लास के किसी स्टूडैंट से पता चलेगा तो वह सब के सामने आप को भलाबुरा कह देगी, इसलिए अपने दिल की बात अपने तक ही सीमित रखें. यदि आप किसी को बताना भी चाहते हैं तो अपने किसी ऐसे दोस्त को बताएं जिस पर आप को भरोसा हो कि वह यह बात किसी से नहीं कहेगा.

पढ़ाई के समय न करें चैटिंग से डिस्टर्ब

आप को कोई लड़की अच्छी लगती है तो इस का यह मतलब नहीं कि आप हर समय मैसेज करते रहें, खासकर पढ़ाई के समय. ऐसा कर के आप न केवल सामने वाले को डिस्टर्ब करते हैं बल्कि इस से आप की पढ़ाई पर भी असर पड़ता है इसलिए हर वक्त मैसेज करने के बजाय एक समय तय करें.

महंगे गिफ्ट्स में न करें पैसे बरबाद

किशोर सोचते हैं कि गिफ्ट दे कर ही दिल जीता जा सकता है और इस के लिए वे अपने दोस्तों से पैसे उधार लेते हैं. आप ऐसा कुछ न करें, अगर गिफ्ट देना ही चाहते हैं तो हैंडमेड चीजें दें, ताकि सामने वाले को आप की मेहनत व प्यार दिखे.

रिजैक्शन खुद पर हावी न करें

अगर किसी लड़की ने आप के प्रपोजल को ठुकरा दिया है तो इस रिजैक्शन को खुद पर हावी न होने दें, न ही उलटीसीधी हरकतें करें. कईर् बार ऐसा होता है कि किशोर रिजैक्शन से डिप्रैशन में चले जाते हैं, दोस्तों से मिलना छोड़ देते हैं, ऐसा न करें बल्कि अपने दिल का दरवाजा खोल कर रखें, क्या पता कब कौन दस्तक दे दे.

कुछ जरूरी बातें

– करीब आने के लिए कभी भी बौडी टचिंग का सहारा न लें.

– ईमानदार बनें. इंप्रैस करने के लिए झूठ का सहारा न लें.

– अपने बारे में वास्तविक बातें बताएं. ऐसा न सोचें कि आप अगर अपनी या पेरैंट्स की सचाई बता देंगे तो वह आप से दोस्ती नहीं करेगी.

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