बहू का रिवीलिंग लिबास क्या करें सास

सुशीला का विवाह 30 साल पहले एक गांव में हुआ था. उन दिनों को याद करते हुए वह अकसर सोचती कि उस ने गांव में कितनी कठिनाइयों का सामना किया. उस की सास उसे हर समय घूंघट निकाले रखने को कहती. पढ़ीलिखी सुशीला के लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल था. जब विवाह के कुछ समय बाद उस के पति नौकरी के सिलसिले में शहर आ गए तो उसे राहत की सांस मिली. पहले लंबा घूंघट छूटा और फिर अपने आसपास वालों की देखादेखी साड़ी की जगह सूट पहनना शुरू हो गया. सूट उसे साड़ी के मुकाबले आरामदायक और सुविधाजनक लगता. कुछ समय बाद सूट से दुपट्टा भी गायब हो गया.

अब जब कभी उस की सास गांव से उस के पास रहने आती तो वह उस के कपड़ों को देख कर खूब मुंह बनाती और बारबार ताने मारती. ‘‘क्या जमाना आ गया है. बहुओं ने लाजशरम बिलकुल छोड़ रखी है… नंगे सिर, बिना दुपट्टे परकटी बन घूम रही है. हमारा पल्लू आज भी सिर से नीचे नहीं गया. मेरी सास मुझे यों देखती तो मार ही डालती.’’

ऐसी तानाकशी से दुखी सुशीला मुंह बंद कर के रह जाती और सास के वापस जाने के दिन गिनती. उस वक्त सुशीला सोचा करती कि वह अपनी बहू के साथ कभी ऐसा नहीं करेगी.

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धीरेधीरे समय बदला. सुशीला के बच्चे बड़े हुए. उस की बेटी जींस पहनती तो उसे बुरा नहीं लगता. उसे लगता कि वह समय के साथ बदल गई है और अपनी सास की तरह दकियानूसी नहीं है. उस के बेटे की मुंबई में अच्छी नौकरी लगी. वहीं एक सहकर्मी से प्यार हुआ और दोनों ने परिवार की रजामंदी से शादी कर ली.

सुशीला के पति का देहांत हो गया था, इसलिए वह भी बेटेबहू के साथ मुंबई रहने आ गई. शादी के शुरूशुरू में बहू ने एक आदर्श बहू वाले पारंपरिक कपड़े पहने, मगर धीरेधीरे वह उन्हीं पुराने सुविधाजनक कपड़ों में रहने लगी जो शादी से पहले पहना करती थी जैसे कैप्री, शौर्ट्स, विदाउट स्लीव और औफ शोल्डर टौप, मिडीज आदि. मगर सुशीला को बहू का ऐसा रिवीलिंग पहनावा अखरने लगा.

वह बहू को अकसर टोकने लगी, ‘‘शादी के बाद भी कोई ऐसे कपड़े पहनता है भला?’’

एक दिन तो हद हो गई जब बहूबेटे दोनों एक पार्टी में जा रहे थे. बहू ने औफशौल्डर टौप और स्कर्ट पहन लिया. उस दिन सुशीला भड़क उठी, ‘‘तुम लोगों के ज्यादा पर निकल आए हैं… बिलकुल नंगापन मचा रखा है. मैं भी कभी बहू थी, मगर हमारी क्या मजाल थी जो अपने सासससुर के सामने ऐसे कपड़े पहन लेते. मेरी सास मुझे ऐसा देखती तो मार ही डालती.’’

यह सुन कर सुशीला का बेटा बोला, ‘‘अरे मम्मी यह तो सेम वही डायलौग है न जो दादी आप को सुनाया करती थीं. आप ने यह हमें कितनी बार बताया है.’’

यह सुन कर सुशीला को एक झटका लगा कि अरे हां, सही तो है मेरी सास मुझे सूट पहनने पर ऐसे ही तो ताने मारा करती थी. मगर सूट अलग बात थी. उस में शरीर ढका रहता है. मगर बहू के कपड़े… इन्हें कैसे बरदाश्त करूं?

जो सुशीला की स्थिति है, वही आजकल की बहुत सी सासों की है. उन की सोच में बदलाव तो आ रहे हैं, मगर उतनी तेजी से नहीं जितनी तेजी से नई पीढ़ी आगे बढ़ रही है. दोनों पीढि़यों की गति में बहुत अंतर है. सामान्यतया बहू जब भी कुछ ऐसा पहनती है जो सास को अशोभनीय लगता है तो वह तुरंत मुंह बनाते हुए अपने जमाने में पहुंच जाती है और कहती है कि अरे, हमारे जमाने में तो ऐसा नहीं होता था. उन की इस प्रतिक्रिया के कारण सासबहू का रिश्ता तनावपूर्ण रहता है और बहू सास से अलग रहने के मौके ढूंढ़ती है. ऐसा न हो, इस के लिए कुछ बातों को समझना जरूरी है.

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बदलाव को स्वीकारें

एक बहुत प्रसिद्ध कहावत है कि परिवर्तन संसार का नियम है. संसार में रोज कुछ न कुछ परिवर्तन हो रहे हैं. जलवायु में, सुविधाओं में, तकनीक में, रहनसहन में, रिश्तों में… हर जगह कुछ भी पहले जैसा नहीं है और न ही हो सकता है. यही बात पहनावे की भी है. पीढ़ीदरपीढ़ी लोगों के खासकर महिलाओं के पहनावे में परिवर्तन होता आ रहा है और आगे भी होता रहेगा. समय के बदलते दौर की नब्ज पकड़ें और उसे स्वीकार कर अपनी सोच को लचीला बनाएं.

रिवीलिंग का यदि शाब्दिक अर्थ पकड़ें तो वह ‘राहत’ या ‘सुविधाजनक’ होता है. सुविधा की परिभाषा सब के लिए अलगअलग है. सुशीला की सास को उस का सूट पहनना पसंद नहीं था जबकि वह उस के लिए सुविधाजनक था. इसी तरह सुशीला को बहू का कैप्री, स्लीवलैस टौप, मिडीज पहनना पसंद नहीं है, जबकि बहू को ये ड्रैस सुविधाजनक लगती हैं. सास यानी सुशीला को समझना चाहिए कि बहू अपनी सुविधानुसार कपड़े पहनेगी उन की सोच के हिसाब से नहीं. और यदि दबाव में पहन भी लिए तो यह ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा. बेहतर है सुशीला अपने दृष्टिकोण में बदलाव करे ताकि दोनों के बीच फालतू का तनाव न पैदा हो.

कोई भी पहनावा अच्छा या बुरा नहीं होता. उसे अच्छा या बुरा हमारी सोच बनाती है. हम उसे जिस नजरिए से देख रहे हैं वह नजरिया उस पहनावे की परिभाषा तय करता है. जैसे तीखा खाने वाले के सामने सादा भोजन रख दिया जाए तो वह बकवास बताएगा और सादा खाने वाले के सामने तीखा भोजन रख दिया जाए तो वह उस की बुराई करेगा. जरा सोचिए, क्या आज आप स्वयं अपनी पुरानी पीढ़ी के पहनावे को पहन रहे हैं? पुरुषों की धोतियां, महिलाओं के घूंघट लगभग गायब हो चुके हैं. इसी तरह आजकल की बहुएं अपने समय के अनुसार कपड़े पहन रही हैं.

न बनें टिपिकल सास

जब कोई मां अपने पढ़ेलिखे बेटे के लिए बहू ढूंढ़ती है तो उस की चाहत होती है उस की बहू भी आधुनिक और पढ़ीलिखी हो जो उस के बेटे के साथ कदम से कदम मिला कर चल सके. मगर जब रहनसहन और पहनावे की बात आती है तो वह वही टिपिकल सास बन जाती है, जो चाहती है उस की बहू उस की सोच के हिसाब से चले. जो उसे अच्छा नहीं लगता वह न पहने. मगर ऐसा नहीं होता. आप को यह समझना जरूरी है कि आप की बहू एक आत्मनिर्भर व्यक्तित्व है. उस की अपनी सोच, अपनी पसंदनापसंद है. वह

आप के आदर की वजह से आप की बात मान सकती है, मगर आप अपनी सोच उस पर थोप नहीं सकतीं.

यदि आप को बहू की रिवीलिंग ड्रैस पर कोई आपत्ति है और आप यह बात उस तक पहुंचाना चाहती हैं तो इस तरह से कहें कि उसे बुरा भी न लगे और आप भी अपनी बात कह पाएं. लेकिन क्या पहनना है क्या नहीं, इस का निर्णय उसी पर छोड़ देना चाहिए.

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रमा की बहू एक फैमिली फंक्शन में जाने के लिए औफशौल्डर गाउन पहन कर तैयार हो रही थी. जहां उन्हें जाना था वहां का माहौल रूढि़वादी था. रमा ने जब उसे देखा तो पहले उस की बहुत तारीफ करते हुए बोलीं, ‘‘अरे, वाह बहू, आज तो तुम गजब ढा रही हो. बहुत ही सुंदर लग रही हो, मगर आज जहां यह पार्टी है उन लोगों का नजरिया थोड़ा पुराना है. हो सकता है उन्हें तुम्हारा यह आधुनिक पहनावा अच्छा न लगे, वे तुम पर कुछ कमैंट करें. और मेरी प्यारी बहू के लिए कोई उलटासीधा बोलेगा तो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा, इसलिए मैं चाहूंगी कि तुम कोई पारंपरिक डै्रस पहन लो. लेकिन

मैं तुम्हें फोर्स नहीं करूंगी, जैसा तुम्हें सही लगे तुम करो.’’

बहू ने सास की प्यार से कही गई बात को सुना और तुरंत चेंज करने के लिए तैयार हो गई.

बहू को बदलने के बजाय सास ही जमाने की नब्ज पकड़ कर अपने पहनावे में बदलाव ले आए. टिपटौप बहू के साथ वह भी आधुनिक बन जाए. वह बहू के साथ जींसशर्ट पहन कर कदम से कदम मिला कर चले और 2 पीढि़यों का भेद ही मिटा दे. लगेगा जैसे उम्र आगे बढ़ने के बजाय पीछे जा रही है और आप स्वयं को आउटडेटेड भी महसूस नहीं करेगी.

आजकल की लड़कियां आजकल चलने वाले कपड़े ही पहनेंगी. सिर्फ इसलिए कि उन की शादी आप के बेटे से हो गई, उन की सोच, उन का व्यक्तित्व और पसंद बदल नहीं जाएगी. बेहतर है, आप उन्हें अपना पहनावा चुनने की और पहनने की आजादी दें. उन पर कोई दबाव न बनाएं. यदि आप को उन का पहनावा पसंद आ रहा है तो खुल कर तारीफ करें और यदि नहीं आ रहा है तो मुंह बनाने या ताने मारने जैसी छोटी हरकतें तो बिलकुल न करें. वह आप की बहू है, उसे उस की पसंदनापसंद के साथ पूरे प्यार से स्वीकार करें. यह कदम आप के रिश्तों में मिठास घोल देगा.

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जब बहुएं ही देती हैं धमकी…..

अगर एक जगह कोई महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है तो वहीं दूसरी ओर कुछ महिलाएं ऐसी होती हैं जो घरेलू हिंसा का शिकार तो नहीं होती लेकिन अपने ही ससुरास वालों को झूठे केस में फंसाने की धमकी देती हैं और पति के साथ-साथ पूरे परिवार को अपने काबू में रखना चाहतीं हैं. लेकिन जब वो ऐसा नहीं कर पातीं तो घरवालों को धमकी तक दे देती हैं.इतना ही नहीं उस लड़की के अपने माता-पिता भी बेटी के इन कामों में उसका साथ देते हैं.

अक्सर ऐसा होता है कि जब सास चाहती है कि बहु घर के कामों में हाथ बंटाए लेकिन जब बहु कुछ नहीं करती तो सास बेटे से शिकायत कर बैठती है कि तेरी पत्नी घर के काम नहीं करती मैं अकेले कितना करूं.जब यही बात पति कहता तो पत्नी से उसकी कहा-सुनी होती है साथ ही उसकी नजरों में सास गलत हो जाती है. बस बहु सास को अपना दुश्मन मान बैठती है जो सही नहीं है. भले ही कुछ सासें अच्छी नहीं होती हैं लेकिन हर जगह ऐसी नहीं होती है सास बहु को बेटी मानती है लेकिन मामला तब बिगड़ जाता है जब बहु ही सास को अपना नहीं मानती….

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इनके रिश्तों में खटास इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि बहुएं कभी-कभी तो पति को ही उसके मां के खिलाफ भड़काना शुरू कर देंती हैं…मामला इस हद तक आगे आ चुका होता है यदि सास-ससुर कमजोर पड़ते हैं तो बहुएं उन्हें वृध्दाश्रम तक भेज देती हैं…..पति के सामने खुद में और मां-बाप में से किसी एक को चुनने पर मजबूर कर देती हैं. इस बात का उदाहरण आपर अमिताभ बच्चन के बागबान फिल्म या राजेश खन्ना और गोविंदा की फिल्म स्वर्ग से बखूबी समझ सकते हैं.

हमेशा सास ही गलत नहीं होत है…जरा आप सोचिए भला कौन सी सास ये नहीं चाहती कि उसकी बहु उसकी सेवा न करें…जिस तरह बहु अपने माता-पिता की सेवा करती है वैसे ही अगर थोड़ा अपने सास-ससुर की सेवा कर ले तो भला क्यों हो तकरार.बहुएं हमेशा अपना हक मांगती हैं लेकिन क्या वो अपना फर्ज निभाती हैं जो उनके ससुराल के प्रति है? अगर नहीं तो फिर अपने हक की उम्मीद कैसे कर सकती हैं. अक्सर ही घरों में सास-बहु में 36 का आंकड़ा होता है,लेकिन इसमें हमेशा सास ही गलत हो ये जरूरी नहीं हैं.

हम हमेशा ये देखते हैं कि बहुएं दहेज मांगने का आरोप लगाती हैं शिकायत करती हैं…तो पहली बात तो ये आज भी बहुत सी लड़कियों की फैमिली ऐसी होती है जो खुद ही दहेज देती है,इसमें उसकी खुद की मर्जी होती है तो क्या वो दोषी नहीं हैं?क्या उनकों सजा नहीं होनी चाहिए? एक रिपोर्ट पढ़ने पर पता चला कि महिलाएं खुद की मां के द्वार भी हिंसा का शिकार होती हैं पर वे इस पर ध्यान नहीं देती हैं और तो और उन्हें बचपन से ही सास से घृणा करना सिखा दिया जाता है इसलिए वो सास को अपना दुश्मन समझने लगती हैं.  एक सास अपनी बहु को अपना बेटा देती हैं हमेशा के लिए और अगर वही लड़का अपनी बीवी के कहने पर मां को गलत समझे तो क्या ये सही है नहीं बिल्कुल भी नहीं,मेरी नजर में ये कहीं से भी सही नही है इसलिए बहुओं को अपना नजरिया बदला होगा.

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बहु अगर सच में एक अच्छी बहु बनना चाहती है अपने सास की बेटी बनना चाहती है तो उसको कुछ अपनी जिम्मदारियों को निभाना होगा जिससे सास और बहु के रिश्ते को अच्छा बनाया जा सकता है..जैसे..

  • सास को सास नहीं मां समझे
  • सास की मां की तरह सेवा करें
  • ससुराल को सिर्फ ससुराल नहीं अपना घर समझें
  • घर के कामों में हांथ बटाएं
  • अपने मायके में ससुराल की बुराई न करें
  • पति से सास की बुराई न करें

Edited by Rosy

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