क्रेडिट कार्ड लेते वक्त इन बातों का रखें ध्यान

क्रेडिट कार्ड आज बहुत से लोगों की जरूरत बन गई है. कई बार क्रेडिट कार्ड हमारे बुरे वक्त का सहारा भी बनता है. जब आपके पास बैलेंस ना हो और आपको पैसों की बेहद जरूरत है ऐसे में क्रेडिट कार्ड काफी काम आता है. बाजार में कई तरह के क्रेडिट कार्ड्स हैं. जरूरी है कि अपनी जरूरतों को जान कर, परख कर हम सही कार्ड का चुनाव करें. कई बार इसकी जानकारी के अभाव में क्रेडिट कार्ड से हमें नुकसान भी होता है. आम तौर पर लोग जो खरीदारी के काफी शौकीन होते हैं, हाई लिमिट वाला कार्ड लेते हैं पर ये एक बुरा विकल्प है. ये गलती आपको कर्ज में डाल देती है.

जब भी आप क्रेडिट कार्ड का चुनाव करें, जरूरी है कि अपनी भुगतान क्षमता को अच्छे से जाने, इसमें लापरवाही आपका नुकसान करती है. इस खबर में हम आपको कुछ जरूरी टिप्स बताने वाले हैं जिन्हें ध्यान में रखने से आप अपने लिए बेहतर कार्ड का चुनाव कर सकेंगी.

नकद निकासी के नियम

क्रेडिट कार्ड से एटीएम के जरिए कैश निकाल सकते हैं. पर इस पर कुछ शुल्क और ब्याज देना होता है. ऐसे में कार्ड का चुनाव करते वक्त ध्यान रखें कि कार्ड आपको कितना शुल्क और ब्याज दर दे रही है.

रिवार्ड प्वाइंट

कार्ड से पेमेंट या कहें तो खर्च के हिसाब से बैंक अपने ग्राहकों को रिवार्ड प्वाइंट्स देती है. इन्हें मौनिटरी और नौन मौनिटरी गिफ्ट्स में बदला जा सकता है. कार्ड के प्रकार पर प्लाइंट्स निर्भर करते हैं.

डिस्काउंट और कैशबैक

ग्राहकों को क्रेडिट कार्ड से शौपिंग, खरीदारी करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बैंक तरह तरह के औफर्स देते हैं. इन औफर्स में शौपिंग पर कैशबैक, मूवी टिकट पर कैशबैक जैसे औफर्स होते हैं. ऐसे में कार्ड का चुनाव करने से पहले इस तरह की पूरी जाकारी रख लें.

कस्टमर केयर सर्विस

क्रेडिट कार्ट लेने से पहले बैंक की कस्टमर केयर सुविधाओं के बारे में पहले ही सुनिश्चित हो लें. अगर भविष्य में इससे जुड़ी समस्या आती है तो आप इसे कस्टमर केयर से बात कर के सुलझा सकती हैं.

क्रेडिट कार्ड फी

क्रेडिट कार्ड कंपनियां ज्वाइनिंग फी के साथ साथ सलाना फी भी वसूलती हैं. वहीं बहुत सी कंपनियां पहले साल की फी नहीं वसूलती. ऐसे में ऐसे कार्ड का चुनाव करें जो कम ज्वाइनिंग फी और सलाना फी वसूलते हैं.

क्रेडिट लिमिट से  सापेक्ष लोन की सुविधा

आपको कभी भी पैसे की जरूरत आ सकती है. ऐसे में क्रेडिट कार्ड आपको सापेक्ष लोन लेने की सुविधा देता है. इस लोन को आप ईएमआई पर चुका सकती हैं. इस पर ब्याज दर भी देना होता है, ऐसे में उसी कार्ड का चुनाव करें जो कम ब्याज दर लेती हो.

फैमिली के लिए ऐसे बनें फुली Insured

क्‍या आप पूरी तरह से इंश्‍योर्ड (Insured) हैं? आप में से अधिकांश लोग शायद हां में उत्‍तर दें. आपके न रहने के बाद आपके परिवार की वित्‍तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए जीवन बीमा पॉलिसी है और अस्‍पताल में भर्ती होने पर हेल्थ इंश्‍योरेंस पॉलिसी मेडिकल खर्च के लिए धन उपलब्‍ध कराएगी. लेकिन क्‍या यह पर्याप्‍त है? विशेषज्ञ इसे पर्याप्‍त नहीं मानते.

दुर्घटना के कारण यदि आपके अपंग होने की वजह से आय का जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई न तो जीवन बीमा पॉलिसी और न ही हेल्‍थ इंश्‍योरेंस कवर कर पाएंगे. ऐसी स्थिति में पर्सनल एक्‍सीडेंटल कवर ही आपको बचा सकेगा.

पर्सनल एक्‍सीडेंट पॉलिसी स्‍थाई और अस्‍थाई विकलांगता के कारण आय को होने वाले नुकसान की वित्‍तीय भरपाई करती है. अगर दुर्घटना में पॉलिसी होल्डर की मृत्यु हो जाती है तो ऐसे में बीमा कंपनी उसके नॉमिनी को सम एश्‍योर्ड राशि का भुगतान करती है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि यदि घर में आप अकेले कमाने वाले सदस्य हैं तो आपको अपने इंश्‍योरेंस पोर्टफोलियो में पर्सनल एक्‍सीडेंट पॉलिसी को जरूर जोड़ना चाहिए.

पर्सनल एक्‍सीडेंट पॉलिसी न केवल बड़ी दुर्घटनाओं को कवर करती है बल्कि यह छोटी दुर्घटनाओं में भी सहायता प्रदान करती है. यहां तक कि छोटे से एक्‍सीडेंट में होने वाले मामूली फ्रेक्‍चर को भी इसमें शामिल किया जाता है. इसके साथ ही यह पॉलिसी काफी किफायती होती है और इसका प्रीमियम कम होता है.

पर्सनल एक्‍सीडेंट इंश्योरेंस पॉलिसी में पर्मानेंट टोटल डिसेबिलिटी, पर्मानेंट पार्शियल डिसेबिलिटी और टेंपरेरी टोटल डिसेबिलिटी शामिल होती है. मृत्यु या पर्मानेंट टोटल डिसेबिलिटी (शरीर के किसी अंग के काम करना बंद कर देना या आंखों की रोशनी खो जाने की स्थिति में) 100 फीसदी सम एश्‍योर्ड राशि का भुगतान किया जाता है. दुर्घटना के दौरान पर्मानेंट पार्शियल डिसेबिलिटी में अंगुली कट जाए तो पॉलिसी में स्पष्ट उल्‍लेखित की गई राशि दी जाती है.

हालांकि आपको ध्यान रखना चाहिए कि पर्सनल एक्सिडेंट पॉलिसी एक तरह से बेनेफिट स्कीम होती है. यह मृत्यु या फिर विकलांगता की स्थिति में ही कवर मुहैया कराती है. अगर किसी बीमारी के कारण मृत्यु या फिर विकलांगता होती है तो यह इंश्योरेंस पॉलिसी किसी भी तरह का कवर नहीं देती है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि पर्सनल एक्‍सीडेंट कवर खरीदते हुए कॉम्प्रिहेंसिव पॉलिसी का चयन करना चाहिए.

4 Tips: ऐसे सिखाएं बच्चों को सेविंग करना

मोबाइल, इंटरनेट व शौपिंग क्रेज से बच्चों में खर्च करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. बच्चों की खर्चीली आदतों को देखते हुए हाल ही में कुछ बैंकों के ब्रांच मैनेजरों ने एक गोष्ठी का आयोजन किया. यहां बैंकर्स ने ‘बच्चों को सेविंग के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए?’ जैसे विचारों से लोगों को अवगत कराया तथा अपनी कई स्कीमें समझाईं. कई बैंक तो बच्चों के लिए डिफरेंट सेविंग स्कीम्स भी ला रहे हैं. बैंक अब बच्चों के लिए एटीएम कार्ड भी जारी कर रहे हैं. आज मातापिता के लिए बच्चों को पाकेटमनी देना तो स्टेटस सिंबल बन चुका है. वे यह नहीं समझते कि जानेअनजाने में वे अपने बच्चों के अंदर एक ऐसी आदत को जन्म दे रहे हैं, जो भविष्य में उन्हीं के लिए नुकसानदायक साबित होगी.

आज टीनएजर्स स्कूल की छुट्टी के बाद पान की दुकान पर सिगरेट, गुटखा इत्यादि खरीदते आसानी से दिख जाते हैं. कहींकहीं ये बच्चे शराब की दुकान पर बीयर खरीदते दिख जाते हैं. हो सकता है उस समय इन की माताएं किटी पार्टी और पिता व्यवसाय में व्यस्त हों. जेब में पैसा जरूरत को जन्म देता है, इसलिए अगर बच्चे को पैसे देना बहुत जरूरी है तो उस का उपयोग सिखाना उस से भी ज्यादा जरूरी है.

1. जरूरत पड़ने पर ही दें पैसा

अधिक पाकेटमनी देने से बच्चे अनावश्यक खर्च करते हैं. इसलिए बच्चों को जरूरत के मुताबिक ही पैसे देने चाहिए. आप बच्चों को उत्साहित करें कि वे पैसा बचाएं. यदि आप अपनी बेटी की पाकेटमनी में से कुछ पैसा उस के अकाउंट में जमा करा दें तो वह पैसा उसी के किसी काम आएगा.

2. मोबाइल और शौपिंग पर खर्च

खर्चीली लाइफस्टाइल के चलते बच्चों की पाकेटमनी का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है. छात्रा जेसिका का कहना है कि उस की पाकेटमनी का अधिकांश हिस्सा मोबाइल और शौपिंग पर खर्च होता है. पैसा बचने पर वह मम्मी के पास जमा करा देती है. छात्रा चारु का कहना है कि उस ने पेरेंट्स के साथ ज्वाइंट अकाउंट खुलवा रखा है. अपनी जरूरत पर खर्च करने के बाद बचने वाले पैसों को उस में जमा करा देती है. विनीत गोयल ने बताया कि अधिकांश खर्च क्रिकेट या दूसरे खेल के सामान खरीदने पर ही होता है. मनीष भारद्वाज का कहना है कि वह गेम्स खेलने और दोस्तों के साथ खानेपीने पर अपना पैसा खर्च करता है.

3. बचत है जरूरी

बच्चों के लिए पाकेटमनी को जरूरी मानने वाले मातापिता का कहना है कि अब बच्चे मोबाइल, गेम्स और फास्ट फूड पर खूब खर्च करते हैं. अत्यधिक खर्च करने से बच्चों की आदतें बिगड़ रही हैं. इसलिए बच्चों में बचत की आदत डालनी चाहिए.

4. जीरो बैलेंस पर अकाउंट

भारतीय स्टेट बैंक के ब्रांच मैनेजर डी.के. तनेजा का कहना है कि 10 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को सेविंग के लिए प्रमोट करने के लिए एसबीआई ने जीरो बैलेंस पर अकाउंट खोलने की योजना बनाई है. बच्चे का अकाउंट और एटीएम कार्ड भी जीरो बैलेंस पर देते हैं. सहकार मार्ग स्थित राजस्थान स्टेट कोपरेटिव बैंक के ब्रांच मैनेजर सुनील दत्त आर्य के अनुसार, इस तरह के अकाउंट खुलवाने में अब मातापिता अधिक रुचि ले रहे हैं.

छोटी छोटी बचत में बड़ी बड़ी खुशियां

एक दिन सीमा की बेटी कविता की तबीयत अचानक खराब हो गई. उस दिन रविवार था. बैंक बंद थे और एटीएम घर से बहुत दूर थे. घर में 6-7 सौ रुपए ही थे. सीमा के पति विवेक के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उन्होंने कहा कि किसी से पैसा उधार लेना होगा. पता नहीं कोई देगा या नहीं. पति को बेचैन देख कर सीमा ने कहा कि मेरे पास कुछ रुपए हैं, उन से काम चल जाएगा. विवेक ने हैरानी से उस की ओर देख कर कहा कि तुम्हारे पास पैसे कहां से आए? जितने रुपए देता हूं वे तो खर्च ही हो जाते हैं? तब सीमा ने बताया कि वह हर महीने उन के दिए पैसों से कुछ बचा कर रख लेती थी. विवेक ने उसे गले से लगा लिया और कहा कि तुम ने तो मुझे किसी के सामने हाथ फैलाने से बचा लिया. इसी तरह प्रियंका बताती हैं कि एक रात उस की सास की तबीयत अचानक खराब हो गई. पति बाहर गए हुए थे. वे उसे कुछ रुपए दे कर गए थे, पर उतने कम रुपयों से सास का इलाज मुमकिन नहीं था. पड़ोसी एंबुलैंस मंगा कर सास को अस्पताल ले जाने की तैयारी करने लगे. प्रियंका ने अपनी अलमारी खोली और अपने बचत किए गए पैसों को जोड़ा तो करीब 10 हजार रुपए निकल आए. तब जा कर उस की जान में जान आई. सासूमां को सही समय पर अस्पताल ले जाया गया और बेहतर इलाज कराया गया. 3 दिन के बाद प्रियंका के पति लौटे तो छूटते ही उन्होंने पूछा कि इतने रुपए कहां से आए? किसी से कर्ज लिया क्या? जब प्रियंका ने उन्हें सारा माजरा बताया तो बीवी की बचत करने की आदत पर फख्र से उन का सीना चौड़ा हो गया.

छोटी बचत बड़ा समाधान

इस तरह के वाकेआ यही सीख देते हैं कि छोटीछोटी बचत बूंदबूंद से सागर भरने की तरह ही है, जो ऐन मौके पर आई किसी परेशानी से बचाने में मददगार साबित होती है. आईसीआईसीआई बैंक के सीनियर अफसर संजीव दयाल कहते हैं कि छोटी बचत से बड़ी परेशानी से निबटा जा सकता है. हमारे आसपास इस के कई उदाहरण मिल जाते हैं. पुराने जमाने में गुल्लक का इस्तेमाल इसी के लिए किया जाता था. हमें अपने बच्चों में भी बचत करने की आदत डालनी चाहिए. उन्हें बताना चाहिए कि उन्हें जो भी जेबखर्च मिलता है, उस का 5-10% गुल्लक में डालने की आदत डालें. ज्यादातर पत्नियां पति से छिपा कर कुछ बचत करती रहती हैं और कठिन हालातों में उस रकम से अपने पति की मदद करती हैं. अनुपमा के किस्से से हरेक औरत सीख ले सकती है. अनुपमा बताती हैं कि शादी के बाद वह पति के साथ हनीमून मनाने नेपाल गई थी. वीरगंज, काठमांडू और पोखरा में घूमते हुए 7 दिन बीत गए. दोनों ने खूब मौजमस्ती की. बढि़या होटलों में ठहरे और जम कर शौपिंग की. वापसी के 1 दिन पहले अनुपमा ने पति को कुछ परेशान देखा. परेशानी की वजह पूछी तो पति ने कहा कि उन के सारे पैसे खर्च हो चुके हैं. होटल का बिल चुकाने और गाड़ी का भाड़ा तो हो जाएगा, फिर भी घर से इतनी दूर हैं, तो कुछ रुपए तो हाथ में होने चाहिए.

पति की परेशानी देख अनुपमा ने अपने पर्स से 7 हजार रुपए निकाल कर उन के हाथ में रख दिए. अनुपमा बताती है कि पति के दिल खोल कर खर्च करने के तरीके को देखते हुए उस ने शौपिंग के दौरान ही कुछ पैसे चुपके से बचा लिए थे.

नामुमकिन नहीं बचत करना

पारिवारिक खर्चों के बढ़ते बोझ का हवाला देते हुए कई औरतें यह तर्क देती हैं कि बचत करना मुमकिन ही नहीं है. जब घर का खर्च ही ठीक से नहीं चलता है, तो ऐसे में बचत की बात करना ही बेकार है. किराने का सामान, दूध, गैस, बच्चों के स्कूल की फीस, मकान का किराया आदि के बाद हाथ में कुछ बचता ही नहीं है. ऐसी सोच वाले लोगों के लिए एक बड़ी कंपनी के फाइनैंस मैनेजर रजनीश कहते हैं कि बचत करने की आदत और सोच से ही बचत की जा सकती है. हर महीने के तयशुदा खर्चे के बाद एक मिडिल क्लास फैमिली के हाथ में सच में कुछ नहीं बचता है, पर रोज 10-20 या हर महीने 500-1,000 रुपए तक की बचत की ही जा सकती है. कई औरतें तमाम खर्चों के बाद भी कुछ न कुछ बचत कर ही लेती हैं. खर्च का कोई अंत नहीं है और हर महीने कुछ न कुछ नया खर्च सामने आ खड़ा होता है. इस के बाद भी बचत करने की सोच हो तो कुछ न कुछ बचत की ही जा सकती है, जो मौकेबेमौके काम दे ही जाती है.

हर औरत को कुछ न कुछ बचत करने की आदत डालनी ही चाहिए. औरत को ही क्यों मर्द और बच्चों को भी बचत की आदत बना लेनी चाहिए. इस से अचानक आई माली परेशानी से बचा जा सकता है

रिटायरमेंट के बाद नहीं होगी पैसे की दिक्कत

हर आदमी आम तौर पर चाहता है कि रिटायरमेंट के बाद या बुढ़ापे में उसका जीवन सुखमय रहे. अगर आप भी रिटायरमेंट के बाद आज की तरह ही सुख सुविधाओं वाली जिंदगी जीना चाहते हैं तो इसके लिए आज से ही रिटायरमेंट प्‍लानिंग शुरू कर दें.फाइनेंशियल प्‍लानर के मुताबिक अगर आप 40 साल की उम्र के हैं और आप 60 वर्ष की उम्र में रिटायर हो रहे हैं.

भारत में इन दिनों आम तौर पर लोग 80 साल की उम्र तक जीते हैं. अगर इस समय आपका मासिक खर्च 50,000 रुपये है तो 7 फीसदी महंगाई के हिसाब से आपको 60 से 80 उम्र के बीच आपको प्रति माह 2 लाख रुपया महीना चाहिए.

कैसे करें प्‍लानिंग

– मौजूदा उम्र : 40 साल

– रिटायरमेंट उम्र : 60 साल

– संभावित लाइफ : 80 साल

-मौजूदा मासिक खर्च : 50 हजार रुपये

– रिटायरमेंट के बाद मासिक खर्च : 2 लाख रुपये

– रिटायरमेंट फंड : 4 करोड़ रुपए

– मासिक निवेश : 40 हजार रुपये

– महंगाई दर : 7 फीसदी

फंड कितना हो

– अगर आप 60 से 80 साल की उम्र के बीच प्रति माह 2 लाख रुपये चाहते है तो आपके पास रिटायरमेंट के समय 4 करोड़ रुपये होने चाहिए.

– आप इस 4 करोड़ रुपये को सही जगह निवेश करके 9 फीसदी रिटर्न हासिल कर सकेंगे.

कैसे बनाएं फंड

– अगर आपकी उम्र 40 साल है और आपने अब तक कोई भी निवेश नहीं किया है तो आप अभी से प्रति माह 40,000 हजार रुपये जोड़ना शुरू कर दें.

– अगर आपको इस पर सालाना 12 फीसदी रिटर्न मिलता है तो अगले 20 साल में आपका 4 करोड़ रुपये का कॉपर्स तैयार हो जाएगा.

20,000 रुपये प्रति माह से भी बन जाएगा कॉपर्स

– अगर आप को लगता है कि आपके खर्चे अधिक हैं और आप हर माह 40,000 रुपये निवेश नहीं कर सकते हैं तो आप हर माह 20,000 रुपये बचाना शुरू कर सकते हैं.

– अगर आपकी सैलरी या इनकम सालाना 10 फीसदी बढ़ती है तो आप हर साल 10 फीसदी निवेश बढ़ाते जाएं.

– अगले 20 साल में आपका 4 करोड़ रुपये का कॉपर्स तैयार हो जाएगा.

कहां करें निवेश

– एक्सपर्ट्स का कहना है कि बड़ा फंड बनाने के लिए आप म्‍यूचुअल फंड में निवेश करें.

– अगर आप जोखिम नहीं उठा सकते हैं तो इक्विटी फंड में न जाएं.

आपके लिए बैलेंस फंड बेहतर रहेगा. इसमें थोड़ा डेट फंड होता है और थोड़ा इक्विटी फंड होता है.

– इसमें आपको सालान 12 फीसदी का औसत रिटर्न मिल जाएगा.

– अगर आप थोड़ा रिस्‍क उठा सकते हैं तो आप इक्विटी फंड में जा सकते हैं. इसमें आपको 15 फीसदी तक रिटर्न मिल जाएगा.

इन्‍वेस्‍टमेंट का करें समीक्षा

– आप अपने इन्‍वेस्‍टमेंट और इस पर मिलने वाले रिटर्न को हर साल रिव्‍यू करें कि आपको सालाना 12 फीसदी रिटर्न मिल रहा है या नहीं.

– इस बारे में अपने फाइनेंशियल प्‍लानर से भी बात करें.

– आम तौर पर लांग टर्म इन्‍वेस्‍टमेंट में रिटर्न में उतार चढ़ाव आता है.

– ऐसे में इसको लेकर घबड़ाना नहीं चाहिए.

7 Tips: होम मेकर भी कर सकतीं हैं फाइनेंशियल प्लानिंग

ऐसी बहुत सी होम मेकर हैं, जो पूरी तरह से अपने परिवार को समर्पित होती हैं, पर फाइनेंस के मामले में वे खुद को शामिल नहीं करती हैं. लेकिन घर को चलाने की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं की होती है. फाइनेंस की सारी टेंशन पति की होती है. हालांकि, घरेलू बजट में घर का सारा खर्च चलाने की जिम्मेदारी उन्हीं पर होती है. पिछले कुछ सालों में मंहगाई तो बढ़ गई है, लेकिन सैलरी में कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है.

कई बार ऐसा देखा गया है कि घर में कोई बड़ी मुसीबत आ जाने पर होम मेकर पर बहुत सारे बोझ आ जाते हैं. यदि पति की नौकरी चली जाए या फिर उन्हें कोई गंभीर बीमारी हो जाए, तो आमदनी रुक जाती है, लेकिन खर्च नहीं. ऐसे में महिलाओं को भी फाइनेंशियल प्लानिंग के बारे में पूरी जानकारी रखना जरूरी है.

आइए जानते हैं कि महिलाओं को जीवन में किस तरह फाइनेंशियल प्लानिंग करनी चाहिए-

1. कैश फ्लो को मैनेज करने की आदत डालें

आम तौर पर होम मेकर्स तभी बजट बनाती हैं जब वह किराने का सामान या घरेलू जरूरत का अन्य सामान खरीदती हैं. लेकिन आपको घर के हर तरह के खर्च के लिए बजट बनाने की आदत विकसित करें. इस बजट में वे चीजें भी शामिल करें, जो अब तक आपके पति संभालते आए हैं, जैसे लोन, बिजली का बिल, टेलीफोन का बिल, क्रेडिट कार्ड का बिल, घर का किराया आदि.

फिर अपने परिवार की आमदनी का विश्लेषण करें और देखें कि क्या यह घर के कुल खर्च से अधिक है या कम. इसके लिए आपको किसी एक्सपर्ट की जरूरत नहीं है. अपने घर के पूरे बजट पर निगाह रखने के लिए आप एक्सेल शीट का इस्तेमाल कर सकती हैं. अगर आप तकनीक से परिचित नहीं हैं, तो आप इसके लिए डायरी का उपयोग कर सकती हैं. अगर जरूरत हो, तो इसके लिए आप पति की मदद भी ले सकती हैं.

2. अपने खर्चों पर लगाएं लगाम

कैश फ्लो के विश्लेषण से आपको पता चलेगा कि आप कहां अधिक खर्च कर रही हैं. आप ऐसे तरीकों की तलाश करें जिनको अपना कर आप अपने खर्चे कम कर सकते हैं. रेस्तरां में खाना, वीकेंड पर मॉल में शॉपिंग करना, महीने में कई बार बाहर फिल्म देखने जाना ऐसे खर्च हैं जिनमें आप कटौती कर सकते हैं. इसके अलावा आप अपने विभिन्न बिल भी घटा सकते हैं. इसके अलावा घरेलू सामान की थोक शॉपिंग वहां से करें, जहां आपको लागत कम पड़े.

3. बचत, बचत और बचत

हर होम मेकर में पैसे बचाने की आदत होती है. इस आदत को विकसित करते हुए अपने लिए और परिवार के भविष्य के लिए बचत करना शुरू करें. इसके लिए आप एक सेविंग्स एकाउंट खोल लें और जब भी आप बचत करें, उसमें पैसे जमा करें. आजकल बैंक महिलाओं के लिए बचत और निवेश के विभिन्न विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं. इस तरह आप छोटी-छोटी राशि से बड़ी बचत करने में कामयाब हो सकते हैं.

4. वित्तीय जागरुकता बढ़ाएं

महिलाओं के लिए भी वित्तीय जागरुकता बहुत जरूरी है. अगर आप बाजार में उपलब्ध विभिन्न वित्तीय विकल्पों के बारे में जानेंगी, तो यह आपके भविष्य के लिए काफी मददगार साबित होगा. बेहतर होगा कि आप बैंकिंग प्रॉडक्ट्स से इसकी शुरुआत करें. बैंक जाएं और इन प्रॉडक्ट्स के बारे में पता करें.

5. फाइनेंशियल प्लान बनाने की जरूरत

अगर आप होम मेकर हैं, तो मोटे तौर पर आप पति की प्लानिंग पर निर्भर होंगी. लेकिन आपात स्थितियां कभी भी आ सकती हैं, जिनकी वजह से आपको खुद से वित्तीय निर्णय लेने पड़ सकते हैं. यह पता करें कि आपातकालीन स्थितियों के लिए आपको किस तरह की योजना बनानी चाहिए. यह भी पता करें कि बच्चों की पढ़ाई के लिए आपको कितनी पूंजी की जरूरत होगी. सबसे बड़ी प्लानिंग रिटायरमेंट के बाद के लिए होनी चाहिए, जब आप अपने पति के साथ लंबा वक्त बिताएंगी.

6. निवेश करें ताकि बढ़े पूंजी

अगर आप बचत कर रहे हैं, तो यह जरूरी है कि भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए आपकी पूंजी में बढ़ोतरी हो. आपकी बचत आपके घर में पड़ी रहे या फिर आपके सेविंग्स एकाउंट में पड़ी रहे, तो यह बढ़ती महंगाई दर को नहीं पछाड़ सकती. ऐसे में यह जरूरी है कि पूंजी में बढ़ोतरी के लिए उसे निवेश किया जाए. इसके लिए या तो खुद को वित्तीय निर्णय लेने में सक्षम बनाएं या फिर किसी जानकार की मदद लें.

7. पढ़ना है बहुत जरूरी

कई ऐसी पत्रिकाएं, अखबार और ब्लॉग ऐसे हैं, जहां पर्सनल फाइनेंस की जानकारी उपलब्ध होती है. यहां तक कि महिलाओं पर केंद्रित कई पत्रिकाएं भी पर्सनल फाइनेंस पर जानकारी देने लगी हैं. असल उद्देश्य है मनी मैटर्स के बारे में जानकारी बढ़ाना. इससे न केवल आपको मिससेलिंग से बचने में मदद मिलेगी, बल्कि वित्तीय निर्णय लेने में भी आपकी सक्षमता बढ़ेगी.

जानें एटीएम कार्ड सुरक्षित रखने के 12 टिप्स

देश के सबसे बड़े बैंक ने एटीएम से बढ़ते फ्रॉड को देखते हुए यूजर्स के लिए 12 गोल्डेन टिप्स बनाए हैं. जिन्हें इस्तेमाल कर आप अपने एटीएम कार्ड को किसी भी तरह के रिस्क से सेफ करते हैं. आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार बैंकों के पास सबसे ज्यादा शिकायतें एटीएम कम डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड से होने वाले फ्रॉड की आती है.

60 फीसदी कार्ड हाई रिस्क पर

कुल शिकायतों में 22 फीसदी तक शिकायतें इसी से रिलेटेड होती है. इसके अलावा अभी भी देश में 60 फीसदी डेबिट और क्रेडिट कार्ड हाई रिस्क में आते हैं. इसे देखते हुए एसबीआई के ये 12 गोल्डेन टिप्स यूज कर फ्रॉड से अपने आप को बचा सकते हैं.

1. हमेशा  ATM  की ग्रीन लाइट का रखें ध्यान

बैंक के अनुसार ज्यादातर यूजर्स एटीएम से पैसा निकालते वक्त उसमें ब्लिंक करने वाली लाइट पर ध्यान नहीं देते हैं. ऐसे में फ्रॉड होने के चांस बढ़ जाते हैं. इसे देखते हुए यह जरूरी है एटीएम से निकलने के पहले यह जरुर चेक कर लें, कि लाइट ग्रीन कलर में ब्लिंक करने लगी हो. ऐसा होने के बाद ही आपका ट्रांजैक्शन पूरी तरह से सेफ होता है.

2. एटीएम स्लिप को हमेशा रखें पास

एटीएम स्लिप को कभी भी उसके केबिन में मत फेंके. बैंक के अनुसार स्लिप में आपके बैंक अकाउंट की डिटेल होती है. ऐसे में स्लिप का इस्तेमाल अकाउंट हैक करने में किया जा सकता है. स्लिप को हमेशा छोटे-छोटे टुकड़ों में फाड़कर भी डस्टबिन में फेंके. इसके लिए कोशिश करें की स्लिप प्रिंट करने का ऑप्शन एटीएम को न दें, क्योंकि आपके सारे ट्रांजैक्शन डिटेल ऑनलाइन और मोबाइल पर आ ही जाती है.

3. कार्ड स्वैप करते समय कभी न करें ये गलतियां

बैंक के अनुसार शॉपिंग करते वक्त कई बार यूजर अपने कार्ड को सर्विस मैन को स्वैप करने के लिए दे देते हैं. ऐसा अकसर पेट्रोल पंप, रेस्टोरेंट , या शॉपिंग मॉल में होता है. यूजर्स को कभी ऐसा नहीं करना चाहिए. बैंक के अनुसार इस तरह के भी मामले आए हैं, कि यूजर्स यह सोच कर सर्विस मैन को पिन भी बता देते हैं, कि यह सामने ही यूज करेगा. इस तरह के कदम नुकसान दे होते हैं. ऐसा करने से आपका डाटा चोरी हो सकता है.

4. पिन डालते समय रहें सावधान

शॉपिंग के दौरान पिन डालते समय होटल, शॉप, पेट्रोल पंप या दूसरी जगहों पर यूजर सेफ्टी का ध्यान नहीं देते हैं. वह अपने पिन को बिना छुपाए फीड करते हैं. ऐसे में पिन की जानकारी लीक होने का डर होता है. इसी तरह एटीएम में पैसे निकालते वक्त भी यूजर पिन फीड करने में सेफ्टी नहीं बरतते हैं. उस समय भी डाटा लीक होने का डर बना रहता है.

5. अस्थायी स्टॉल से शॉपिंग करते समय रहें सावधान

बैंक के अनुसार आजकल ऑनलाइन शॉपिंग के ऑप्शन बहुत सारे अस्थायी इवेंट में भी मौजूद होते हैं. मसलन आईपीएल मैच, प्रोकबड्डी मैच, ट्रेड फेयर, ऑटो फेयर, कई सारी प्रदर्शनी, दूसरे स्टेज शो में भी कई सारे अस्थायी स्टॉल लगाए जाते हैं. वहां पर भी कार्ड से पेमेंट होता है. ऐसे में वहां कार्ड पेमेंट से बचें या फिर केवल रेप्युटेड कंपनी के स्टॉल पर ही कार्ड का यूज करें.

6. पुराने कार्ड से भी डाटा होता है चोरी.

ज्यादातर बैंक एक कार्ड की लाइफ 3 से 4 साल रखते हैं. ऐसे में जब वह कार्ड एक्सपायर होता है, तो उसके बदले में बैंक आपको नया कार्ड आपके एड्रेस पर भेज देते हैं. ऐसे में हम अपने पुराने कार्ड को कई बार इधर-उधर यह सोच कर फेक देते हैं, कि वह अब बेकार हो गया है. ऐसा लेकिन नहीं होता है, उस कार्ड पर आपका 16 या 19  डिजिट नंबर होता है. जिसका इस्तेमाल हैकर कर सकते हैं. ऐसे में नया कार्ड मिलने पर पुराने कार्ड को जरुर नष्ट करें.

7. बैंक अकाउंट को Insta Alert डालें.

कई बार हम अपने अकाउंट नंबर को मोबाइल से लिंक करते हैं. ऐसे में एटीएम से फ्रॉड होने पर हमें रियल टाइम जानकारी नहीं मिलती है. ऐसे में अपने अकाउंट को हमेशा आपके द्वारा यूज किए जाने वाले मोबाइल नंबर से जरूर लिंक करें. उसमें भी इंस्टा अलर्ट फैसिलिटी बैंक से ले. इसके अलावा अकाउंट को अपने ई-मेल से भी लिंक रखे. इससे आप 24 घंटे अपने अकाउंट पर नजर रख सकते हैं.

8. बैंक से मांगे ईवीएम चिप वाले कार्ड

नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के अनुसार देश में करीब 60 फीसदी कार्ड ऐसे हैं, जो मैगनेटिक चिप वाले हैं. जो कि अभी नए फ्रॉड के तरीकों से पूरी तरह से सेफ नहीं है. ऐसे बैंकों को साल 2018 तक ईवीएम चिप वाले कार्ड पर शिफ्ट होना है और पुराने कार्ड को रिप्लेस करना है. ऐसे में अगर आपके पास मैगनेटिक चिप वाला कार्ड हैं, तो उसे रिप्लेस कराएं और ईवीएम चिप वाला कार्ड लें.

9. एटीएम के बैक साइड पर अपना साइन जरूर करें.

10. इसके अलावा एक निश्चित समय पर अपने एटीएम का पिन जरुर चेंज करें.

11. पिन नंबर को हमेशा याद करें, कहीं लिखे नहीं, चाहे वह फोन हो या फिर आपका ई-मेल आईडी.

12. कभी भी किसी बैंक, आरबीआई, बैंकिंग कॉरस्पॉडेंट, एजेंट आदि को अपना पिन नंबर न बताएं.

अपनी फैमिली को दें ये 5 तोहफे

बदलती लाइफस्टाइल के कारण बहुत से लोग फैमिली के साथ कम टाइम स्पेंड कर पाते हैं. ऐसे दौर में भी कुछ ऐसे तरीके हैं जिन्हें अपनाकर आप खुद भी और अपनी फैमिली को खुशहाल रख सकते हैं.

1. इन ऑप्शन पर करें फोकस

देश के प्रमुख बैंक, इन्श्योरेंस कंपनियां, पोस्ट ऑफिस ने कई ऐसे प्रोडक्ट्स लाए हैं जिन्हें आप अपने फैमिली मेंबर्स को गिफ्ट कर सकते हैं. इसमें जहां मां-बाप के लिए खास तौर से डिजाइन किए गए हेल्थ इन्श्योरेंस प्रोडक्ट हैं, वहीं बैंकों द्वारा खास तौर से महिलाओं के लिए डिजाइन किए सेविंग अकाउंट और आरडी अकाउंट है.

2. मां-बाप का कराइए हेल्श इन्श्योरेंस

आम तौर पर हमारे मां-बाप ने अपनी लाइफ में हेल्थ इन्श्योरेंस नहीं लिया होता है. आज के दौर में लेकिन हेल्थ इन्श्योरेंस हम सभी की जरूरत है. ऐसे में कई कंपनियों ने खास तौर से सीनियर सीजिटन के लिए प्रोडक्ट लांच किए हैं. अपोलो म्युनिख सीनियर सिटीजन के लिए ऑप्टिमा सीनियर पॉलिसी देती है. इसमें 61 साल या उससे ज्यादा के उम्र के लोगों को कवर किया जाता है

इसी तरह मैक्स बूपा ने एक खास हेल्थ इन्श्योरेंस प्रोडक्ट लांच किया है, जिसमें आप अपने 19 रिलेटिव तक का कवर ले सकते हैं. इन कंपनियों के अलावा भी दूसरी कंपनियां हेल्थ इन्श्योरेंस प्रोडक्ट दे रही हैं.

3. पत्नी,बहन के लिए खोले वुमेन सेविंग अकाउंट

आज कर देश के प्रमुख बैंक महिलाओं के लिए उनकी जरूरतों को देखते हुए खास फीचर्स वाले सेविंग अकाउंट लेकर आए है. जिसे खुलवाकर आप अपनी पत्नी, बहन, बेटी को खास गिफ्ट दे सकते हैं. जिनमें कई ऐसी सुविधाएं उन्हें मिलेंगी, जो नार्मल सेविंग अकाउंट पर नहीं मिलती है. इसमें आपको अनलिमिटेड ATM ट्रांजैक्शन की सुविधा के साथ-साथ लाइफ, हेल्थ और एक्सीडेंट इन्श्योरेंस की सुविधा मिलती है. इसके अलावा लॉकर रेंट पर डिस्काउंट, होम लोन में छूट से लेकर कैश बैक की सुविधा मिलती है.

4. खोलिए सुकन्या समृद्धि अकाउंट

अगर आपकी बेटी की उम्र 10 साल या उससे कम है, तो उसके फ्यूचर के लिए सुकन्या समृद्धि स्कीम सबसे बेस्ट ऑप्शन है. ऐसा इसलिए है कि इन स्कीम के जरिए जहां आपको टैक्स की सेविंग होती है. वहीं दूसरी आरडी या एफडी की तुलना में ज्यादा इंटरेस्ट रेट भी मिलता है.

– 10 साल या उसे कम उम्र की लड़की का अकाउंट खुल सकता है.

– आप दो बेटी तक सुकन्या समृद्धि अकाउंट खोल सकते हैं.

– एक साल में न्यूनतम 1000 रुपए से लेकर 1.5 लाख रुपए तक डिपॉजिट कर सकते हैं.

– 21 साल तक अकाउंट में पैसे जमा करने होंगे. इसके पहले आप पैसे नहीं निकाल सकते हैं, केवल 18 साल की उम्र बेटी के होने के बाद ही 50 फीसदी तक अमाउंट मैच्योरिटी से पहले निकाल सकते हैं.

– सुकन्या समृद्धि पर आपको 8.6 फीसदी इंटरेस्ट मिलेगा.

5. पूरे फैमिली को दें इसका लाभ

केंद्र सरकार ने सस्ते लाइफ इन्श्योरेंस और एक्सीडेंट इन्श्योरेंस की स्कीम प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना लांच की है. इसके लिए आपको केवल 342 रुपए साल में खर्च करने होंगे.

प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना एक्सीडेंट इन्श्योरेंस की सुविधा देती है. जिसमें 12 रुपए का प्रीमियम हर साल देना होगा. जिसमें 2 लाख रुपए का इन्श्योरेंस कवर मिलता है. इसी तरह प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना में एक लाख रुपए का लाइफ इन्श्योरेंस कवर मिलता है. इसके लिए जरूरी है कि इन्श्योरेंस लेने वाले का बैंक अकाउंट हो.

बेहतर शिक्षा से संवारें बच्चों का भविष्य

देश में बढ़ती महंगाई के कारण अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा मुहैया कराना सब से मुश्किल काम है. अच्छी शिक्षा से मतलब उसे सिर्फ स्कूल भेजना मात्र नहीं है, बल्कि उस की प्राइमरी एजुकेशन से ले कर उच्च शिक्षा तक इस तरह से करानी है कि उस की पढ़ाई व कैरियर निर्माण के दौरान कभी आर्थिक अड़चन न आए और वह अपने मनमुताबिक कैरियर चुन सके.

अमूमन हम बच्चों की शिक्षा के खर्च में स्कूल, कालेज और स्नातकोत्तर तक की शिक्षा पर होने वाले खर्च को ही शामिल करते हैं, जबकि आजकल बच्चों की स्कूली शिक्षा में स्कूल की फीस के साथसाथ ट्रांसपोर्ट, रचनात्मक गतिविधियां, दाखिला, ट्यूशन फीस, ड्रैस, स्कूलबैग, स्टेशनरी और उच्च शिक्षा हेतु विदेश जाने से ले कर और न जाने कितने खर्च शामिल होते हैं, जो जेब में पैसा न होने पर भविष्य में आप के बच्चों की शिक्षा व कैरियर में दीवार बन जाते हैं.

इन हालात में बच्चों की उच्चस्तरीय पढ़ाई का खर्च उठाना क्या आसान है? बिलकुल नहीं. तो क्या आप बच्चों की शिक्षा के लिए पर्याप्त राशि जमा कर रहे हैं? अगर नहीं तो अभी से कमर कस लीजिए. बच्चों की बेहतर शिक्षा और भविष्य के लिए अभी से पैसा जमा करना शुरू कर दीजिए.

शिक्षा की सुयोजना अभी से

देश में शिक्षा को 3 अहम भागों में बांटा जा सकता है. पहला भाग है प्राथमिक शिक्षा. इस में शुरुआती स्तर पर बच्चों की प्राथमिक शिक्षा संपन्न होती है. यह शिक्षा का सब से आसान हिस्सा है. इस के बाद आता है दूसरा भाग, मध्य यानी माध्यमिक शिक्षा. इस में हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की पढ़ाई आ जाती है. यह काफी हद तक आगे के भविष्य की नींव रखती है.

इस के बाद आता है तीसरा और सब से अहम हिस्सा उच्च शिक्षा. उच्च शिक्षा में अकादमिक और प्रोफैशनल यानी व्यावसायिक शिक्षा आती है. यही शिक्षा सब से ज्यादा खर्चीली होती है. लगभग सभी तरह की व्यावसायिक शिक्षा पर लाखों रुपए खर्च होते हैं. इसलिए अभिभावक बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए आज से ही जरूरी कदम उठाएं.

हम बच्चों की प्राथमिक शिक्षा का खर्च तो जैसेतैसे निकाल लेते हैं पर कालेज और व्यावसायिक शिक्षा पर खर्च होने वाले पैसों का इंतजाम करना मुश्किल हो जाता है. तब आपातकाल में किसी को लोन लेना पड़ता है, तो किसी को अपने गहने आदि बेचने पड़ते हैं. इसलिए अगर बच्चों के बचपन से ही उन की पढ़ाईलिखाई के लिए पैसे जमा करना शुरू कर दिए जाएं तो बाद में आर्थिक परेशानी से छुटकारा पाया जा सकता है.

एक बीमा कंपनी से जुड़े फाइनैंशियल प्लानर नितिन अरोड़ा इस बाबत कुछ सुझाव देते हैं. उन के मुताबिक, अगर बच्चों की पढ़ाई को ले कर पहले से कुछ वित्तीय योजनाएं बना ली जाएं तो आगे का रास्ता काफी हद तक सुलभ हो जाता है और इन योजनाओं के आधार पर आप अपने बच्चे की एजुकेशन प्लान कर सकते हैं.

सब से पहले लक्ष्य का समय यानी तारीख तय कीजिए यानी उस तारीख और वर्ष की गणना कीजिए जब आप का बच्चा उच्चशिक्षा लेने लायक हो जाएगा. उस के बाद वर्तमान में होने वाले शिक्षण व्यय का हिसाबकिताब कर लीजिए. फिर उसे बच्चे की शिक्षा के अनुरूप भविष्य की महंगाई दर के मुताबिक जोडि़ए. इस हिसाब के बाद आप को भविष्य में होने वाले खर्च की रकम का मोटा सा अंदाजा हो जाएगा.

इसे आसान भाषा में समझते हैं. मान लीजिए आज उच्च शिक्षा में लगभग 5 लाख से 10 लाख रुपए का खर्च आता है, तो बढ़ती महंगाई के हिसाब से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि 20-21 साल तक यह खर्च बढ कर 20 लाख से 30 लाख रुपए या उस से भी अधिक तक तो हो ही जाएगा. अब आप के पास एक टारगेट रकम का अनुमान आ चुका है. बस, इसी रकम के इंतजाम के लिए आप को अपनी आय व हैसियत के हिसाब से पैसे जोड़ने या फिर निवेश करना होता है.

अगर आप इस गणना के मुताबिक सही समय में इस राशि को जमा कर पाते हैं, तो आप के बच्चे की शिक्षा में किसी भी तरह की मुश्किल नहीं आ सकती. इस तरह से शिक्षा के लिए वित्तीय योजनाओं का खाका खींच कर आप अपने बच्चे का आज ही से बेहतर भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं.

समझदारी से करें शिक्षा निवेश

एक इंश्योरैंस कंपनी से जुड़े एक्सपर्ट बताते हैं कि जिस अनुपात से लोगों का वेतन बढ़ रहा है उस से कहीं ज्यादा तेजी से पढ़ाई में होने वाला खर्च बढ़ रहा है. ऐसे में बच्चों की एजुकेशन प्लानिंग हम कुछ चरणों में बांट लेते हैं. ये चरण अभिभावकों के वेतन और शिशु की अवस्था के आधार पर बांटते हैं.

पहले चरण के तहत शिशु के पैदा होने से उस के लगभग 5 साल के होने तक आप ज्यादा से ज्यादा सेविंग करें, क्योंकि इस दौरान शिशु की पढ़ाई पर खर्च अपेक्षाकृत कम होता है. उस के बाद बच्चा स्कूल जाना शुरू कर देता है. इस चरण में सेविंग कम हो जाती है, क्योंकि उस की पढ़ाई का खर्च आ जाता है. 9 से 16 साल की उम्र के दौरान बहुत ही संतुलित राशि जमा करें. फिर 18 से 25 साल की उम्र में बच्चा युवा होने पर आप की जमाराशि का सही उपयोग करने लायक हो जाता है. इस तरह आप अपनी राशि को अलगअलग चरणों में घटातेबढ़ाते हुए जमा करेंगे तो आप की जेब पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा.

एजुकेशन प्लान के अलावा

बाजार में लगभग सभी बड़े बैंक और वित्तीय कंपनियां बच्चों के लिए लुभावने औफर देती हैं. इन के अलावा और भी कई तरह के निवेश के विकल्प हैं, जो अच्छा रिटर्न देते हैं. मसलन, म्यूचुअल फंड, बौंड्स, प्रौविडैंट फंड, राष्ट्रीय बचत खाता आदि. साथ ही, डाकघर की निवेश योजनाओं का इस्तेमाल भी अपने बच्चों के लिए निवेश करने में कर सकते हैं. म्यूचुअल फंड कंपनियों ने तो बच्चों की शिक्षा को ध्यान में रख कर 20 से भी ज्यादा ऐसी योजनाएं लौंच की हैं. बस, आप को अपनी आवश्यकता के अनुसार योजना का चयन करना है.

बच्चों के शैक्षिक भविष्य को सुरक्षित करने के लिए इस समय मार्केट में कई इनवैस्टमैंट टूल मौजूद हैं. लेकिन जानकारी के अभाव में आमतौर पर अधिकांश पेरैंट्स सिर्फ लाइफ इंश्योरैंस स्कीम्स में ही निवेश करते हैं. जबकि कई इन्वैस्टमैंट टूल्स, इंश्योरैंस स्कीम्स से बेहतर रिटर्न देते हैं. आप के लिए जरूरी है कि इंश्योरैंस के साथ ही पीपीएफ, म्यूचुअल फंड, यूनिट लिंक्ड प्लान जैसे विकल्पों में भी निवेश करें.

पीपीएफ यानी पब्लिक प्रौविडैंट फंड में आप अपने बच्चे की शिक्षा के लिए एक बड़ी बचत का निर्माण कर सकते हैं. इस के अलावा आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत आप को कर में 1.5 लाख रुपए तक की छूट मिलती है. सुकन्या समृद्घि खाता भी एक अच्छा विकल्प है. यह योजना भी 8.1 फीसदी के ब्याज दर के साथ पूरी तरह कर मुक्त है. यहां भी आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत कर लाभ प्रदान किया गया है. हालांकि, यह योजना केवल लड़कियों के लिए है. इक्विटी म्यूचुअल फंड भी एक विकल्प हो सकता है.

गैरपरंपरागत निवेश

कुछ लोग अपने बच्चे के नाम पर प्रौपर्टी खरीद लेते हैं, जो बाद में बच्चे के काफी काम आती है. साथ ही, सोनाचांदी और शेयरों में भी कुछ अभिभावक निवेश करते हैं. यहां समझने वाली बात यही है कि बच्चे की शिक्षा के लिए पैसा सिर्फ एजुकेशन प्लान या परंपरागत तरीकों से ही जोड़ा जाए, ऐसा जरूरी नहीं है. आप को तो बस पैसा जोड़ना है, जिसे भविष्य में उस की पढ़ाई पर खर्च कर सकें.

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