सीलन: उमा बचपन की सहेली से क्यों अलग हो गई?

बचपन से ही वह हमेशा नकाब में रहती थी. स्कूल के किसी बच्चे ने कभी उस का चेहरा नहीं देखा था. हां, मछलियों सी उस की आंखें अकसर चमकती रहती थीं. कभी शरारत से भरी हुई, तो कभी एकदम शांत और मासूम. लेकिन कभीकभी उन आंखों में एक डर भी दिखाई देता था. हम दोनों साथसाथ पढ़ते थे. पढ़ाई में वह बेहद अव्वल थी. जोड़घटाव तो जैसे उस की जबां पर रहता था. मुझे अक्षर ज्ञान में मजा आता था. कहानियां, कविताएं पसंद आती थीं, जबकि गणित के समीकरण, विज्ञान, ये सब उस के पसंदीदा सब्जैक्ट थे.

वह थोड़ी संकोची, किसी नदी सी शांत और मैं एकदम बातूनी. दूर से ही मेरी आवाज उसे सुनाई दे जाती थी, बिलकुल किसी समुद्र की तरह. स्कूल में अकसर ही उसे ले कर कानाफूसी होती थी. हालांकि उस कानाफूसी का हिस्सा मैं कभी नहीं बनता था, लेकिन दोस्तों के मजाक का पात्र जरूर बन जाता था. मैं रिया के परिवार के बारे में कुछ नहीं जानता था. वैसे भी बचपन की दोस्ती घरपरिवार सब से परे होती है. बचपन से ही मुझे उस का नकाब बेहद पसंद था, तब तो मैं नकाब का मतलब भी नहीं जानता था. शक्लसूरत उस की अच्छी थी, फिर भी मुझे वह नकाब में ज्यादा अच्छी लगती थी.

बड़ी क्लास में पहुंचते ही हम दोनों के स्कूल अलग हो गए. उस का दाखिला शहर के एक गर्ल्स स्कूल में हो गया, जबकि मेरा दाखिला लड़कों के स्कूल में करवा दिया गया. अब हम धीरेधीरे अपनीअपनी दिलचस्पी के काम के साथ ही पढ़ाई में भी बिजी हो गए थे, लेकिन हमारी दोस्ती बरकरार रही. पढ़ाईलिखाई से वक्त निकाल कर हम अब भी मिलते थे. वह जब तक मेरे साथ रहती, खुश रहती, खिली रहती. लेकिन उस की आंखों में हर वक्त एक डर दिखता था. मुझे कभी उस डर की वजह समझ नहीं आई. अकसर मुझे उस के परिवार के बारे में जानने की इच्छा होती. मैं उस से पूछता भी, लेकिन वह हंस कर टाल जाती.

हालांकि अब मुझे समझ आने लगा था कि नकाब की वजह कोई धर्म नहीं था, फिर ऐसा क्या था, जो उसे अपना चेहरा छिपाने को मजबूर करता था? मैं अकसर ऐसे सवालों में उलझ जाता. कालेज में भी मेरे अलावा उस की सिर्फ एक ही सहेली थी उमा, जो बचपन से उस के साथ थी. मेरे मन में उसे और उस के परिवार को करीब से जानने के कीड़े ने कुलबुलाना शुरू कर दिया था. शायद दिल के किसी कोने में प्यार के बीज ने भी जन्म ले लिया था. मैं हर मुलाकात में उस के परिवार के बारे में पूछना चाहता था, लेकिन उस की खिलखिलाहट में सब भूल जाता था. अकसर मैं अपनी कहानियों और कविताओं की काल्पनिक दुनिया उस के साथ ही बनाता और सजाता गया.

बड़े होने के साथ ही हम दोनों की मुलाकात में भी कमी आने लगी. वहीं मेरी दोस्ती का दायरा भी बढ़ा. कई नए दोस्त जिंदगी में आए. उन्हें मेरी और रिया की दोस्ती की खबर हुई. एक दिन उन्होंने मुझे उस से दूर रहने की नसीहत दे डाली. मैं ने उन्हें बहुत फटकारा. लेकिन उन के लांछन ने मुझे सकते में डाल दिया था. वे चिल्ला रहे थे, ‘जिस के लिए तू हम से लड़ रहा है. देखना, एक दिन वह तुझे ही दुत्कार कर चली जाएगी. गंदी नाली का कीड़ा है वह.’ मैं कसमसाया सा उन्हें अपने तरीके से लताड़ रहा था. पहली बार उस के लिए दोस्तों से लड़ाई की थी. मैं बचपन से ही अकेला रहा था. मातापिता के पास समय नहीं होता था, जो मेरे साथ बिता सकें. उमा और रिया के अलावा किसी से कोई दोस्ती नहीं. पहली बार किसी से दोस्ती हुई और

वह भी टूट गई. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह एक सर्द दोपहर थी. सूरज की गरमाहट कम पड़ रही थी. कई महीनों बाद हमारी मुलाकात हुई थी. उस दोपहर रिया के घर जाने की जिद मेरे सिर पर सवार थी. कहीं न कहीं दोस्तों की बातें दिल में चुभी हुई थीं.

मैं ने उस से कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे मातापिता से मिलना है.’’

‘‘पिता का तो मुझे पता नहीं, लेकिन मेरी बहुत सी मांएं हैं. उन से मिलना है, तो चलो.’’ मैं ने हैरानी से उस के चेहरे की ओर देखा. वह मुसकराते हुए स्कूटी की ओर बढ़ी. मैं भी उस के साथ बढ़ा. उस ने फिर से अपने खूबसूरत चेहरे को बुरके से ढक लिया. शाम ढलने लगी थी. अंधेरा फैल रहा था. मैं स्कूटी पर उस के पीछे बैठ गया. मेन सड़क से होती हुई स्कूटी आगे बढ़ने लगी. उस रोज मेरे दिल की रफ्तार स्कूटी से भी ज्यादा तेज थी. अब स्कूटी बदनाम बस्ती की गलियों में हिचकोले खा रही थी.

मैं ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘रास्ता भूल गई हो क्या?’’

उस ने कहा, ‘‘मैं बिलकुल सही रास्ते पर हूं.’’ उस ने वहीं एक घर के किनारे स्कूटी खड़ी कर दी. मेरे लिए वह एक बड़ा झटका था. रिया मेरा हाथ पकड़ कर तकरीबन खींचते हुए एक घर के अंदर ले गई. अब मैं सीढि़यां चढ़ रहा था. हर मंजिल पर औरतें भरी पड़ी थीं, वे भी भद्दे से मेकअप और कपड़ों में सजीधजी. अब तक फिल्मों में जैसा देखता आया था, उस से एकदम अलग… बिना किसी चकाचौंध के… हर तरफ अंधेरा, सीलन और बेहद संकरी सीढि़यां. हर मंजिल से अजीब सी बदबू आ रही थी. जाने कितनी मंजिल पार कर हम लोग सब से ऊपर वाली मंजिल पर पहुंचे. वहां भी कमोबेश वही हालत थी. हर तरफ सीलन और बदबू. बाहर से देखने पर एकदम छोटा सा कमरा, जहां लोगों के होने का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था. ज्यों ही मैं कमरे के अंदर पहुंचा, वहां ढेर सारी औरतें थीं. ऐसा लग रहा था, मानो वे सब एक ही परिवार की हों.

मुझे रिया के साथ देख कर उन में से कुछ की त्योरियां चढ़ गईं, लेकिन साथ वालियों को शायद रिया ने मेरे बारे में बता रखा था, उन्होंने उन के कान में कुछ कहा और फिर सब सामान्य हो गईं.

एकसाथ हंसनाबोलना, रहना… उन्हें देख कर ऐसा नहीं लग रहा था कि मैं किसी ऐसी जगह पर आ गया हूं, जो अच्छे घर के लोगों के लिए बैन है. वहां छोटेछोटे बच्चे भी थे. वे अपने बच्चों के साथ खेल रही थीं, उन से तोतली बोली में बातें कर रही थीं. घर का माहौल देख कर घबराहट और डर थोड़ा कम हुआ और मैं सहज हो गया. मेरे अंदर का लेखक जागा. उन्हें और जानने की जिज्ञासा से धीरेधीरे मैं ने उन से बातें करना शुरू कीं.

‘‘यहां कैसे आना हुआ?’’

‘‘बस आ गई… मजबूरी थी.’’

‘‘क्या मजबूरी थी?’’

‘‘घर की मजबूरी थी. अपना, अपने बच्चों का, परिवार का पेट पालना था.’’

‘‘क्या घर पर सभी जानते हैं?’’

‘‘नहीं, घर पर तो कोई नहीं जानता. सब यह जानते हैं कि मैं दिल्ली में रहती हूं, नौकरी करती हूं. कहां रहती हूं, क्या करती हूं, ये कोई भी नहीं जानता.’’

मैं ने एक और औरत को बुलाया, जिस की उम्र 45 साल के आसपास रही होगी.

मेरा पहला सवाल वही था, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘‘मजबूरी.’’

‘‘कैसी?’’

‘‘घर में ससुर नहीं, पति नहीं, सिर्फ बच्चे और सास. तो रोजीरोटी के लिए किसी न किसी को तो घर से बाहर निकलना ही होता.’’

‘‘अब?’’

‘‘अब तो मैं बहुत बीमार रहती हूं. बच्चेदानी खराब हो गई है. सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए गई. डाक्टर का कहना है कि खून चाहिए, वह भी परिवार के किसी सदस्य का. अब कहां से लाएं खून?’’

‘‘क्या परिवार में वापस जाने का मन नहीं करता?’’

‘‘परिवार वाले अब मुझे अपनाएंगे नहीं. वैसे भी जब जिंदगीभर यहां कमायाखाया, तो अब क्यों जाएं वापस?’’

यह सुन कर मैं चुप हो गया… अकसर बाहर से चीजें जैसी दिखती हैं, वैसी होती नहीं हैं. उन लोगों से बातें कर के एहसास हो रहा था कि उन का यहां होना उन की कितनी बड़ी मजबूरी है. रिया दूर से ये सब देख रही थी. मेरे चेहरे के हर भावों से वह वाकिफ थी. उस के चेहरे पर मुसकान तैर रही थी. मैं ने एक और औरत को बुलाया, जो उम्र के आखिरी पड़ाव पर थी. मैं ने कहा, ‘‘आप को यहां कोई परेशानी तो नहीं है?’’

उस ने मेरी ओर देखा और फिर कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘जब तक जवान थी, यहां भीड़ हुआ करती थी. पैसों की कोई कमी नहीं थी. लेकिन अब कोई पूछने वाला नहीं है. अब तो ऐसा होता है कि नीचे से ही दलाल ग्राहकों को भड़का कर, डराधमका कर दूसरी जगह ले जाते हैं. बस ऐसे ही गुजरबसर चल रही है. ‘‘आएदिन यहां किसी न किसी की हत्या हो जाती है या फिर किसी औरत के चेहरे पर ब्लेड मार दिया जाता है. ‘‘अब लगता है कि काश, हमारा भी घर होता. अपना परिवार होता. कम से कम जिंदगी के आखिरी दिन सुकून से तो गुजर पाते,’’ छलछलाई आंखों से चंद बूंदें उस के गालों पर लुढ़क आईं और वह न जाने किस सोच में खो गई.मुझे अचानक वह ककनू पक्षी सी लगने लगी. ऐसा लगने लगा कि मैं ककनू पक्षियों की दुनिया में आ गया हूं. मुझे घबराहट सी होने लगी. धीरेधीरे उस के हाथों की जगह बड़ेबड़े पंख उग आए. ऐसा लगा, मानो इन पंखों से थोड़ी ही देर में आग की लपटें निकलेंगी और वह उसी में जल कर राख हो जाएंगी. क्या मैं ऐसी जगह से आने वाली लड़की को अपना हमसफर बना सकता हूं? दिमाग ऐसे ही सवालों के जाल में फंस गया था.

अचानक ही मुझे बुरके में से झांकतीचमकती सी रिया की उदास डरी हुई आंखें दिखीं. मुझे अपने मातापिता  की भागदौड़ भरी जिंदगी दिख रही थी, जिन के पास मुझ से बात करने का वक्त नहीं था और साथ ही, वे दोस्त भी दिखे, जो अब भी कह रहे थे, ‘निकल जा इस दलदल से, वह तुम्हारी कभी नहीं होगी.’ मेरा वहां दम घुटने लगा. मैं वहां से बाहर भागा. बाहर आते ही रिया की अलमस्त सुबह सी चमकती हंसी ने हर सोच पर ब्रेक लगा दिया. मैं दूर से ही उसे खिलखिलाते देख रहा था. उफ, इतने दमघोंटू माहौल में भी कोई खुश रह सकता है भला क्या?

सीलन: दकियानूसी सोच से छटपटाती नवेली

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सीलन- भाग 4: दकियानूसी सोच से छटपटाती नवेली

दुबई जा कर मोहित ने एक घर किराए पर ले लिया था. मोहित को घर का खाना पसंद है. मोहित घर के काम नहीं कर सकता है. मगर, नवेली प्यार के कारण सारे काम बिना किसी शिकायत के करती रही थी. नवेली को लगता था, ऐसा करने से वह अपने प्यार को सीमेंट की  दीवार की तरह मजबूत बना रही है. वक्त के थपेड़े उस दीवार को चाह कर भी गिरा नही पाएंगे.

रात को सैक्स करते समय मोहित ने प्रोटेक्शन इस्तेमाल करने से मना कर दिया.

“क्या तुम मुझ पर शक करती हो?” मोहित गुस्से से बोला.

नवेली बोली नहीं, मगर मैं अभी मां नहीं बनना चाहती हूं.

मोहित बोला, “विश्वास रखो, मैं तुम्हें किसी मुसीबत में नहीं डालूंगा.”

मगर जब नवेली के यूरिन में इंफेक्शन हो गया, तो डाक्टर ने कंडोम यूज करने की सलाह दी थी, मगर डाक्टर की सलाह के बावजूद भी मोहित प्रोटेक्शन यूज करने को तैयार न था.

“मैं तुम्हारे और अपने मध्य किसी तीसरे को बरदाश्त नहीं कर सकता.”

नवेली को लगता कि क्या प्यार ये ही होता है?

जब नवेली ने ये बात मोहित के दोस्त की पत्नी अनुकृति को बताई, तो उस ने कहा, “अरे, मोहित पागल है क्या?

वह बस तुम्हें दबा रहा है.”

जब रात में नवेली ने मोहित से बात करनी चाही, तो मोहित बोला, “अगर तुम मुझ पर शक करती हो, तो मैं आज से तुम्हें छुऊंगा भी नहीं.”

एक हफ्ता हो गया था. मोहित नवेली से दूरदूर रहता. वह ऐसे जताता जैसे नवेली ने कोई अपराध कर दिया हो.

नवेली को लगता, जैसे उस ने कुछ गलत कर दिया हो और फिर नवेली ने ही माफी मांगी. मोहित ने कुछ नहीं

कहा. बस उस रात फिर से बिना प्रोटेक्शन के ही

सैक्स किया. नवेली बस अपने शरीर को प्यार के नाम पर कुरबान करती रही.

नवेली अपना प्यार साबित करने के लिए सब करती, मगर मोहित और अधिक की दरकार करता. नवेली

अपने प्यार की दीवार से एक ईंट निकाल कर

मोहित के प्यार की दीवार को पूरा करती रही, मगर अंदर से वो खोखला होती चली गई थी.

मोहित का प्यार सीलन की तरह उस के अंदर पनप रहा था और उस के पूरे वजूद को फफूंदी की तरह गला रहा था. जैसे फफूंदी सड़ेगले पदार्थों से अपना पोषण लेती है, वैसा ही कार्य मोहित का प्यार नवेली के लिए कर रहा था.

आज मोहित ने बाहर घूमने का प्रोग्राम बनाया था. नवेली जैसे ही तैयार हो कर बाहर आई, तो मोहित ने चिल्ला कर कहा, “ये टौप अभी के अभी बदल कर आओ. मैं नहीं चाहता कि लोग तुम्हारे जिस्म को देखें.”

मोहित का दोस्त अंकित और उस की पत्नी अनुकृति भी वहीं थे. मोहित ने इस बात का भी लिहाज नहीं किया.

आंखों में आंसू भरे हुए नवेली सूट पहन कर बाहर आई, तो मोहित फिर से बोला, “ये मुंह पर 12 क्यों बजा रखे हैं?”

ना जाने क्यों औरतों को सब को रिझाने में क्या मजा आता है?

रात में भी मोहित नवेली को कुछकुछ सुनाता रहा था, “तुम्हारी गलती नहीं है. तुम तो अच्छी लड़की हो, मगर तुम्हारे परिवार के संस्कार कुछ अलग हैं.”

नवेली मोहित के प्यार में ऐसी अंधभक्त हो चुकी थी कि उसे सही और गलत के बीच का फर्क ही समझ नहीं आ रहा था.

आज फिर से नवेली के पेट मे बहुत दर्द हो रहा था. डाक्टर ने आज उसे बहुत डांटा. पढ़ीलिखी हो कर भी तुम्हें क्यों समझ नहीं आ रहा है? तुम्हारा एरिया सेंसिटिव है. बारबार इंफेक्शन होना सही संकेत नहीं है.

रात में जब मोहित ने यह बात सुनी, तो उस ने फिर से अबोला कर लिया. सुबह नवेली की आंखें थोड़ी देर से खुली, तो मोहित बिना नाश्ता करे ही दफ्तर चला गया.

रात में नवेली ने बिरयानी और्डर कर दी थी, तो मोहित फिर से चिल्लाने लगा, “कैसी पत्नी हो? पति सुबह से भूखा अब घर आया है. और तुम ने बाहर से खाना मंगवा लिया. तुम्हें तो इतना भी नहीं पता कि मुझे चावल पसंद नहीं हैं.

“मगर, तुम्हारे घर में तो ऐसा ही चलता है.”

मोहित ने बेहद मानमनोव्वल के बाद भी खाना नहीं खाया था. नवेली भी उस रात भूखी ही सो गई थी.

सुबह उठ कर नवेली ने मोहित की पसंद के पोहे और हलवा बनाया. मोहित ने नवेली को खुशी से चूम लिया.

मोहित ने अच्छे से नाश्ता किया और गुनगुनाते हुए काम पर चला गया. एक बार भी मोहित ने ये नहीं पूछा कि नवेली ने नाश्ता किया है या नहीं.

रात में जब नवेली ने ये बात मोहित से कही, तो मोहित बोला, “तुम तो क्लेश करती रहती हो. अरे, तुम्हारा घर

है. मैं कौन होता हूं पूछने वाला?

“तुम्हें क्या समझ में आएगा, तुम्हारी परवरिश ही ऐसी हुई है.”

नवेली से रहा नहीं गया और बोल उठी, “तुम्हारी परवरिश  कैसी हुई है? बातबात पर दूसरों को नीचे दिखाना, बस अपने बारे में सोचना.”

मोहित ये सुनते ही आगबबूला हो उठा और गुस्से में तकिए को पटकने लगा. नवेली को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मोहित तकिए को नहीं उसे पटक रहा है.

नवेली रातभर सोचती रही, क्या सब शादियों में ऐसा ही होता है? क्या उस के परिवार में ही कुछ अलग तरीका है, जैसे मोहित कहता है. क्या वाकई में उस की मम्मी पापा की

कद्र नहीं करती हैं? क्या उस के परिवार में प्यार की परिभाषा ही गलत है? क्या प्यार में सांस लेने की भी जगह नहीं होती है?

नवेली बारबार अतीत में झांकने लगी, क्या हर बात पर पापा का मम्मी से सलाह लेना उन का दब्बूपन

दर्शाता है या उन का प्यार दर्शाता है? मम्मी को या उसे कभी भी किसी बात पर ना टोकना, क्या दर्शाता है? उन्हें बस सलाह दे कर फैसला उन पर छोड़ देना, इन सारी बातों में क्या मम्मीपापा के बीच प्यार की मजबूती नहीं झलकती है, जो उन के प्यार को सीमेंट की तरह मजबूत करता है?

क्यों मोहित का प्यार बस लेना जानता है? मोहित का प्यार तभी तक नवेली के लिए बरकरार रहता है, जब

तक नवेली मोहित के अनुसार काम करती है. जैसे ही नवेली थोड़ा सा इधरउधर होती है, मोहित नवेली को उस की गलत परवरिश और उस के स्वार्थी होने की दुहाई देना आरंभ कर देता है.

काफी सोचसमझ कर नवेली ने खुद को इस सीलन भरे प्यार से छुटकारा लेने का फैसला ले लिया था. नवेली ने अपनी मम्मी को फोन किया, “मम्मी, मैं घर आ रही हूं.”

राशि को नवेली की आवाज से समझ आ गया था कि नवेली खुश नहीं है. राशि ने बस इतना कहा, “तुम्हारा ही

घर है. जब मरजी तब आ जाओ.”

नवेली ने पैकिंग आरंभ कर दी थी. मोहित जब शाम को घर आया, तो नवेली को सामान बांधते देख कर

बोला, “तुम्हारे मम्मीपापा से मुझे ये ही उम्मीद थी. अपनी मरजी से जा रही हो और अपनी मरजी से ही आना.”

नवेली आंखों में आंसू भरते हुए बोली, “क्या तुम्हें मेरा दर्द समझ नहीं आता है? हां, मैं ने तुम्हें अपना समझ कर कुछ बातें बताई थीं, मगर इस का ये मतलब नहीं है कि तुम उन बातों को पकड़ कर मुझे रातदिन जलील करते रहो.”

मोहित जोरजोर से रोने लगा, “अरे नवी, यह क्यों नहीं बोलती कि तुम्हें आजादी पसंद है. तुम्हारा मन भर गया है मेरे प्यार से. तुम्हें तो डालडाल पर फुदकने की आदत पड़ गई है.”

नवेली ने चिल्लाते हुए कहा, “चुप. अब बस एक शब्द और नहीं. तुम्हारे इस सीलन भरे प्यार से मैं अपने वजूद को फफूंदी नहीं बनने दूंगी. मैं तुम्हारे इस खोखले इश्क के ताजमहल को हमेशाहमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूं.”

बाहर अचानक से बादलों को चीरते हुए तेज सूरज की किरणें जगमगा रही थीं. ये किरणें शायद कुछ सालों

तक नवेली के वजूद को तपा जरूर सकती हैं, मगर इस सीलन से छुटकारा अवश्य दिलाएंगी.

सीलन- भाग 3: दकियानूसी सोच से छटपटाती नवेली

मोहित ने गिफ्ट लिया और कहा कि मैं ने तो तुम्हारे लिए कुछ नहीं लिया है. मुझे ये चोंचलेबाजी पसंद नहीं है.

नवेली कुछ नहीं बोली. मगर उस रात मोहित ने नवेली को जी भर कर प्यार किया. नवेली का तनमन प्यार से भीग गया था.

अगली सुबह मोहित नवेली को बांहों में भरते हुए बोला, “ये गिफ्ट तो वो मर्द देते हैं, जो दब्बू होते हैं. मैं तो तुम्हें अपने बच्चों का तोहफा दूंगा, वह भी एक नहीं पूरे तीन. घर भराभरा सा लगना चाहिए.”

नवेली इस से पहले कुछ बोलती, मोहित ने उस के होंठों पर उंगली रखते हुए कहा, “परिवार के निर्णय मैं लूंगा, तुम क्यों दिमाग पर जोर देती हो. तुम बस घर का और अपना ध्यान रखो.”

नवेली को मोहित का ये रवैया पसंद भी था और नापसंद भी.

बचपन से नवेली ने अपने पापा को मम्मी से हर छोटीबड़ी बात पर दबते देखा था, इसलिए उसे मोहित का ये रूखापन ना जाने क्यों आकर्षित करता था. नवेली को लगता था कि अब उस की जिंदगी मोहित के प्यार के साए में महफूज है.

शाम को नवेली के मम्मीपापा का फोन आया था. नवेली की मम्मी राशि बोली, “बेटा, हनीमून के लिए कहां जा रहे हो?”

नवेली बोली, “मम्मी, मोहित ने अभी निर्णय नहीं लिया है.”

राशि बोली, “तुम्हारी कोई इच्छा नही है?”

नवेली बोली, “अरे मम्मी, मैं तो बड़े आराम से हूं. मैं आप के और पापा द्वारा दिए गए स्पेस से बहुत बोर हो गई हूं.”

राशि ने बिना कुछ बोले फोन रख दिया था.

अगले दिन मोहित ने नवेली से कहा, “नवेली, मुझे बिजनैस के सिलसिले में जरूरी काम से दुबई जाना होगा.”

नवेली बोली, “मैं भी साथ चलूंगी ना.”

मोहित कुछ सोचता हुआ बोला, “अरे, अगर तुम चलोगी, तो परिवार के साथ समय कैसे बिताओगी?मौसी, मामी, बूआ, नानी सब यहीं हैं, ऐसे में तुम्हें साथ ले कर जाना ठीक रहेगा क्या?”

नवेली बेचैन होते हुए बोली, “हम बिजनैस ट्रिप और हनीमून एकसाथ नहीं कर सकते क्या?”

मोहित बोला, “तुम को और मुझे हमेशा एकसाथ ही रहना है, फिर इतनी बेचैनी क्यों?

“यहां रुको और सब से रिश्ते बनाओ, ताकि तुम इस परिवार का हिस्सा बन पाओ.

“तुम्हारी मम्मी की तरह नहीं बस मैं और मेरे हस्बैंड.”

नवेली के चेहरे का रंग उतर गया. वह धीमे से बोली, “तुम हर बात पर मेरे मम्मीपापा को बीच में क्यों लाते हो?”

मोहित प्यार से बोला, “क्योंकि, मैं नहीं चाहता कि तुम किसी भी टेस्ट में फेल हो जाओ. मैं तुम्हें एक सफल पत्नी और बहू के रूप में देखना चाहता हूं. यह एक पति के रूप में मेरी जिम्मेदारी भी है. तुम्हें क्या पता होगा, क्योंकि तुम्हारे घर से तो रिश्तों से अधिक दोस्ती को महत्व दिया जाता है.”

उस रात नवेली ने मोहित के सामान की पैकिंग कर दी. ढेर सारी हिदायतें दे कर मोहित चला गया था.

दिनभर नवेली महिलाओं में घिरी रहती, पर रात होते ही उसे मोहित की याद आ जाती थी. मोहित रात में एक बार ही फोन करता था, जहां वो सब से बात करने के पश्चात ही उस से 2-3 मिनट बात कर के फोन रख देता था.

नवेली के कुछ बोलने से पहले ही वह बोल देता, ऐसे ही रोमांस बरकरार रहेगा.

सारी बातें अभी कर लोगी, तो बाद में क्या करोगी?

नवेली कुछ बोल नहीं पाती थी, मगर उसे मोहित की बात समझ नहीं आती थी.

मोहित चार दिन की बोल कर गया था, मगर एक हफ्ता हो गया था.

नवेली जब भी पूछती, एक ही उत्तर आता कि परिवार के साथ समय बिताओ, पूरे 22 साल अकेली रही हो.

नवेली के सासससुर और बाकी परिवार उस के साथ ठीकठाक ही थे, मगर नवेली के सारे शौक मन ही मन में रह गए थे.

कितने शान से वह सभी सहेलियों से कहती थी कि हनीमून के लिए तो यूरोप ट्रिप ही प्लान करेंगे. पर, यहां वह शादी के 5 दिन बाद से ही अकेली रह रही है.

नवेली को आज पहली बार रसोई में कुछ बनाना था. नवेली को तो बस थोड़ाबहुत ही कुछ बनाना आता था. सास ने कहा, “नवी, हलवा बना दो.”

नवेली ने कोशिश की, मगर हलवे में ना मीठा ठीक था और ना ही वो ठीक से भुना हुआ था.

सास ने कड़वा सा मुंह

बनाते हुए कहा, “अरे, कम से कम हलवा तो सीख लेती.”

शिप्रा मुसकराते हुए बोली, “भाभी, आप तो मुझ से भी कम जानती हो.”

नवेली बोली, “हमारे घर में कुक हैं ना.”

तभी सास बोली, “हमारे घर में खाना घर की लक्ष्मी ही बनाती है.”

नवेली बोली, “मैं धीरेधीरे सीख लूंगी.”

रात में नवेली की मम्मी राशि का फोन आया और वह शिकायत करते हुए बोली, “तुम अपनी फ्रैंड्स को फोन क्यों नहीं करती हो?”

“बेटा, शादी का मतलब ये नहीं कि तुम पुराने रिश्ते तोड़ दो.”

नवेली झुंझलाते हुए बोली, “मम्मी, नई जगह रिश्ते बनाने में थोड़ा समय तो लगता है.”

नवेली फोन रखते हुए सोच रही थी कि उस की मम्मी परिवार के लिए कभी कुछ नहीं करती हैं. उन्हें तो हमेशा अपने दोस्त, अपनी जिंदगी प्यारी लगती है.

आज अगर नवेली अपने नए परिवार के लिए कुछ करना चाहती है, तो उन्हें इस में भी दिक्कत है.

रात को नवेली ने सब के लिए खाना बनाया. मोहित को कल आना था. नवेली सोच रही थी कि क्या मोहित भी उसे मिस करता होगा.

देर रात मोहित आया और आते ही पहले अपने मम्मीपापा के कमरे में चला गया. नवेली प्रतीक्षा करती रही और जब मोहित कमरे में आया तो सो गया.

पूरी रात नवेली तकिए को आंसुओं से भिगोती रही थी.

सुबह जब वह सो कर उठी, तो सूरज सिर पर आ गया था. मोहित बिस्तर पर नहीं था. नीचे देखा तो मोहित अपनी मम्मी के साथ चाय पी रहा था.

मोहित नवेली को देख कर बोला, “तुम्हारे होते हुए मम्मी को काम करना पड़े, ये ठीक नहीं है.”

नवेली बिना कुछ बोले नहाने चली गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मोहित क्यों उसे प्यार के लिए तरसा रहा है?

दोपहर खाने के बाद मोहित ने अपनी जिस्म की भूख भी मिटाई और फिर सो गया. रात को भी वही प्रक्रिया दोहराई गई. जब नवेली कुछ बोलती, तो मोहित कहता, “अरे, तुम्हारे साथ तो हमेशा रहूंगा, मगर

परिवार के साथ भी तो समय बिताना जरूरी है. जिस प्यार में परिवार नहीं होता, वो सीलन की तरह पूरी जिंदगी को खोखला कर देता है.

“परिवार का प्यार ही तो सीमेंट की तरह हर रिश्ते को मजबूती देता है.”

एक हफ्ते बाद नवेली को मोहित के साथ दुबई जाना था. वह बेहद खुश थी. जब नवेली पैकिंग कर रही थी, तो मोहित बोला, “ये शॉर्ट्स, क्रौप टौप सब घर पर ही पहनना. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे शरीर पर किसी और की नजर पड़े.”

नवेली ऐसी बातें सुन कर रोमांचित हो उठती थी. कितना प्यार करता है मोहित उस को.

सीलन- भाग 2: दकियानूसी सोच से छटपटाती नवेली

मोहित लड़कियों की पवित्रता को ले कर बहुत बातें करता था. नवेली को

लगता कि वह मोहित से धोखा कर रही है. नवेली ने अपने फोन नंबर को बदल लिया और अपने सारे सोशल मीडिया एकाउंट्स डिलीट कर दिए थे.

मोहित का प्यार धीरेधीरे नवेली के अंदर सीलन की तरह पनप रहा था. नवेली ने अपने सारे छोटे कपड़े इधरउधर बांट दिए थे. नवेली को लगने लगा था कि मोहित के प्यार में इतना तो वो कर सकती है.

मोहित अकसर फोन पर  नवेली को बताता था कि कैसे वो उस के लिए रातदिन मेहनत कर रहा है, ताकि वो लोग यूरोप के लिए हनीमून जा पाएं. तुम्हें मैं जमीन पर पैर नहीं रखने दूंगा, पर बस मेरे घर और दिल की रानी बन कर रहना.

नवेली मोहित की ऐसी बात सुन कर रोमांचित हो उठती थी. उस की जिंदगी में कभी ऐसा कोई नहीं आया था, जो उस पर इतनी रोकटोक करे.

नवेली ने एक बार फोन पर कह भी दिया था, “मोहित, तुम्हारे जितनी रोकटोक तो मेरे अपने पापा ने भी नहीं की है.”

मोहित बोला, “मैं तुम्हें बेहद प्यार करता हूं, इसलिए किसी और के साथ बांट नहीं सकता हूं.”

नवेली को मोहित का व्यवहार रोमांचित भी करता, पर साथ ही साथ डराता भी था.

नवेली एक अजीब सी दुविधा में फंस गई थी. मोहित अच्छा कमाता था, देखने में बेहद अच्छा था. बस, उस के विचार कुछ अलग थे. नवेली को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने अंदर की दुविधा किसे समझाए.

मोहित कभी भी विवाह से पहले नवेली से मिलने नहीं आया था. मोहित के शब्दों में अगर पास रहना है, तो थोड़ी दूरी भी जरूरी है. अगर सबकुछ जान जाओगी, तो शादी का मजा चला जाएगा.

मोहित की इन्हीं बातों ने नवेली को एक सूत्र में बांध रखा था. नवेली को यह तो समझ आ गया था कि इस रिश्ते का गणित और रिश्तों से कुछ अलग ही होगा.

नवेली कभीकभी सोचती, ‘क्या वह इस सवाल को सुलझा पाएगी?’

विवाह धूमधाम से संपन्न हो गया था, मगर नवेली को वह लाड़दुलार नहीं मिला, जिस की वह प्रतीक्षा कर रही थी.

फेरों के समय मोहित ने वधू पक्ष के देवताओं की पूजा करने को मना कर दिया था. दोनों परिवार में इस बात को ले कर थोड़ी कहासुनी हो गई थी.

विदाई के बाद जब नवेली ससुराल पहुंची, तो उसे एक कमरे में बैठा दिया था. उस ने तो सुना था कि ससुराल में नईनवेली दुलहन को एक मिनट के लिए भी अकेला नहीं छोड़ते हैं. करीब आधे घंटे बाद नवेली की सास कमरे में आईं और उस के बराबर में आ कर बैठ गईं. उस के कड़े को देख कर

बोलीं, “पापा के पैसों से सोने के कड़े लिए हैं और मोहित के पैसे होते तो हीरे के खरीदती. मेरा मोहित थोड़ा स्वभाव का सख्त है, मगर दिल से मोम है.

“बारबार उसे मैसेज मत करो. जब तक हमारी कुलदेवी की पूजा नहीं होगी, वह तुम्हारे पास नहीं आएगा.”

फिर तेज कदमों से नवेली की सास कमरे से चली गईं.

नवेली का मुंह अपमान से लाल हो गया था. क्या मोहित अपनी हर बात अपनी मां के साथ शेयर करता है?

तभी मोहित की मौसी आई और खाने की थाली रखते हुए रूखे स्वर में बोली, “खाने के बाद ये लहंगा उठाकर रख देना. इतना महंगा लहंगा है. हर साल करवाचौथ पर पहन लेना.” फिर वह भी दन से चली गई.

नवेली को समझ नहीं आ रहा था कि ये कौन सा तरीका है नई बहू के स्वागत करने का. हर कोई क्यों उसे सुना रहा है? और मोहित, जिस के साथ उस ने सात फेरे लिए हैं, वह कहां छिप कर बैठ गया है?

न मोहित की बहन शिप्रा नवेली के पास आई और न ही मोहित. नवेली के पास मम्मीपापा का फोन आया था, पर वह क्या बोलती. ये शादी की जिद भी उस की अपनी ही थी. मोहित पर नवेली इतनी अधिक मोहित हो गई थी कि नवेली ने झटपट शादी का निर्णय ले लिया था.

हालांकि नवेली की मम्मी ने कहा भी था कि नवी, ये कोई शादी की उम्र नहीं है.

मगर वह अपनी जिद पर अड़ गई थी. मेरे पास कोई कंपैनियन नहीं है. मुझे एक नई फैमिली चाहिए.

नवेली एक पब्लिशिंग हाउस में काम कर रही थी. आगे पढ़ने की उस की कोई इच्छा नहीं थी. इन्हीं सब बातों को मद्देनजर रखते हुए नवेली का प्रोफाइल भिन्नभिन्न मैरिज की साइट्स पर डाल दिया गया था. इस तरह से नवेली को यह परिवार मिला था.

आज कंगना खुलने की रस्म थी. नवेली ने सी ग्रीन रंग की साड़ी पहनी थी. मोहित ने बड़े अनमने ढंग से कंगना खेला और फिर उठ कर चला गया.

रात में जब मोहित नवेली के पास आया, तो नवेली शिकायती लहजे में बोली, “कल से तो तुम ने मुझे इग्नोर कर दिया है. शादी होते ही बदल गए हो.”

मोहित गुस्से में बोला, “शादी हो गई है ना. अब पूरी उम्र साथ ही रहना है ना.”

यह सुन कर नवेली एकाएक हक्कीबक्की रह गई थी. तभी मोहित रंग बदलते हुए बोला, “नवेली, तुम ही तो बोलती थी कि तुम्हें अपने पापा जैसा पप्पी हसबैंड नहीं चाहिए.”

नवेली इस बात का कुछ जवाब नहीं दे पाई थी.

एक बार कुछ अंतरंग पलों में नवेली ने मोहित को अपने पापा के दब्बूपन और मम्मी के दबंग व्यक्तिव के

बारे में जिक्र किया था, पर उस ने कभी नहीं सोचा था कि मोहित इस बात को उस के खिलाफ ऐसे इस्तेमाल करेगा.

मधुयामिनी में भी मोहित अपने मन की करता रहा, जैसे ही नवेली ने अपनी इच्छा जताई, तो मोहित उस के जिस्म को रौंदते हुए बोला, “पहले कितनी बार ये अनुभव कर चुकी हो?”

ऐसा सुनते ही नवेली सकपका गई थी. एकाएक उस का जिस्म ठंडा पड़ गया.

“यार, तुम तो बर्फ हो एकदम, मर्द भी तो तभी सुख दे सकता है, जब औरत में दम हो,” फिर मुसकराते हुए मोहित बोला, “नवी,, तुम्हारे पापा की तरह मैं दब्बू नहीं हूं.”

सुबह मुंहदिखाई की रस्म थी. कोई नवेली के बालों की तारीफ करता, तो कोई उस की आंखों की.

अभी नवेली इन तारीफों को पचा ही रही थी कि नवेली की सास हंसते हुए बोलीं, “अरे, मोहित की दादी तो

बोल रही हैं कि नवेली की नाक मोटी है.”

नवेली भीड़ में कट कर रह गई थी.

रात को नवेली को उम्मीद थी कि शायद मोहित उसे कोई गिफ्ट देगा. वह खुद भी उस के लिए एक महंगी घड़ी लाई थी.

सीलन- भाग 1: दकियानूसी सोच से छटपटाती नवेली

नवेली ने जैसे ही फोन नीचे रखा, उस का दिल धकधक कर रहा था. मोहित की हर बात उसे दूसरी दुनिया की तरफ खींच रही थी. नवेली को विश्वास नहीं हो रहा था कि मोहित जैसा हैंडसम और इतना अच्छा लड़का उस के लिए दीवाना हो सकता है.

नवेली खुशी में गुनगुना रही थी कि तभी उस के पापा अनिल बोले, “नवी, क्या बात हुई?”

नवेली इतराते हुए बोली,  “कुछ खास नहीं. बस यों ही.”

तभी नवेली की मम्मी राशि बोली, “अरे नवी, अपनी आदत के अनुसार अपना तन, मन और धन मत न्यौछावर कर देना. थोड़ा सोचसमझ कर फैसला लेना.”

नवेली झुंझलाते हुए बोली, “मम्मी, मोहित से आप की पसंद से ही शादी कर रही हूं. अब भी दिक्कत है?”

राशि साड़ी का पल्ला ठीक करते हुए बोली, “नवी, तुम्हें कोई दिक्कत ना हो, इसलिए बोलती हूं.”

नवेली 22 वर्ष की सुंदर युवती थी. अपने मातापिता की वह इकलौती बेटी है. नवेली के मम्मीपापा बहुत ही लिबरल विचारों के हैं. उन्होंने अपनी बेटी पर कभी कोई रोकाटोकी नहीं की थी. नवेली के मम्मीपापा

अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त थे. नवेली के छोटे कपड़ों पर उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी और ना ही उन्हें नवेली के बोयफ्रैंड्स पर कोई एतराज होता था. नवेली को अपने मम्मीपापा, मम्मीपापा कम फ्रैंड्स ज्यादा लगते थे.

नवेली को अंदर से खालीपन लगता था. नवेली को एक भरापूरा परिवार चाहिए था, पर उस की जिंदगी में थी ढेर सारी फ्रीडम और अकेलापन. एक के बाद एक बोयफ्रैंड्स नवेली की जिंदगी में आते गए, मगर हर लड़के को नवेली के विचार बेहद बचकाने और भावुक लगते थे. उस के सभी बोयफ्रैंड्स नवेली की तरफ आकर्षित थे. मगर प्यार से उन्हें कोई सरोकार न था. आज की युवा पीढ़ी की तरह उन के लिए भी प्यार का मतलब था घूमनाफिरना, पार्टी  और सैक्स करना. हर लड़का कमिटमेंट से दूर भागता था.

नवेली की जिंदगी में सबकुछ था, पर नहीं था तो बस एक ठहराव.

उसी प्यार भरे ठहराव की तलाश में जब नवेली ने 22 वर्ष की उम्र में ही शादी करने की इच्छा जताई, तो

पहले तो राशि और अनिल ने ध्यान ही नहीं दिया था. मगर जब एक रोज नवेली ने खुले शब्दों में अपने मम्मीपापा से यह बात कही, तो अनिल ने शादी की वैबसाइट पर नवेली का प्रोफाइल डाल दिया था. एक हफ्ते में ही नवेली के प्रोफाइल पर 10 से भी अधिक प्रपोजल आ गए थे. हमेशा की तरह फैसला नवेली के हाथों में था.

नवेली सभी प्रोफाइल्स को चेक कर रही थी. कहीं पर हाइट कम थी, तो कहीं पर परिवार ही अधूरा था. तभी नवेली की निगाह एक प्रोफाइल पर रुक गई. खिलता हुआ गोरा रंग, ऊंचा लंबा कद, एथेलेटिक बदन, गहरी काली आंखें और बेहद प्यारी मुसकान. नाम था मोहित और वह दिल्ली में रहता था. एनुअल इनकम 70 लाख रुपए के आसपास थी.

नवेली ने अपने पापा को मोहित के बारे में बताया और फिर दोनों परिवार ने एकदूसरे के बारे में जानकारी एकत्रित कर ली थी.

नवेली के पापा की संपन्नता और नवेली का भोलापन मोहित के परिवार को भा गया था, तो वहीं मोहित की

इनकम, पढ़ाई और उस का भरापूरा परिवार नवेली को पसंद आ गया था.

मोहित के परिवार में उस के मम्मीपापा के अलावा उस की छोटी बहन शिप्रा भी थी. मगर मोहित के सभी

रिश्तेदार आसपास ही रहते थे, पूरा परिवार एक गुलदस्ते की तरह एकसाथ प्यार में बंधा हुआ था.

मोहित की बातों से नवेली को लगता, शायद उस की तलाश खत्म हो गई है. मोहित को सैक्स से अधिक वैल्यूज में इंटरैस्ट था. दोनों की फोन पर घंटों बातें होती थीं.

मोहित का परिवार जुलाई की एक अलसायी हुई दोपहर में नवेली से मिलने आया था. मोहित के पापा नवेली को बेहद सुलझे हुए लगे, तो उस की मम्मी कल्पना भी उसे बेहद ममतामयी लगी.

नवेली ने अपनी मम्मी को कभी अस्तपस्त नहीं देखा था. वह हमेशा टिपटौप रहती थीं, वही हाल उस के पापा अनिल का भी था. अकसर लोग नवेली को उन की बेटी नहीं छोटी बहन मानते थे. इस कारण नवेली को अंदर से बेहद कोफ्त होती थी. उसे मम्मीपापा जैसे दिखने वाले मम्मीपापा चाहिए थे. आज नवेली को लग रहा था कि उस का सपना शायद पूरा हो जाएगा.

नवेली ने बेहद सोचसमझ कर सफेट कुरता और पलाजो पहना था, सफेद जमीन पर लाल और हरे फूल उस कुरते के साथसाथ नवेली को भी ताजगी दे रहे थे. अपने सुनहले घुंघराले बाल उस ने यों ही खुले छोड़ दिए थे. चांदी के झुमके, आंखों में काजल और होंठों पर न्यूड लिपस्टिक सबकुछ बेहद ही मनोरम प्रतीत हो रहा था. वहीं मोहित नीली शर्ट और काली पैंट में बहुत हैंडसम लग रहा था. मोहित ने शायद आज शेव भी नहीं की थी. छोटीछोटी दाढ़ी के बाल नवेली को अपनी तरफ खींच रहे थे.

मोहित नवेली को अपने काम के बारे में बता रहा था. मोहित कह रहा था, “नवेली, मैं चाहता हूं कि तुम रानियों की तरह रहो. पैसा कमा कर लाने की जिम्मेदारी मेरी है और घरपरिवार को मैनेज करना तुम्हारी.”

नवेली आंखें बड़ीबड़ी करते हुए बोली, “तुम्हें क्या हाउसवाइफ चाहिए?”

मोहित शरारत से मुसकराते हुए बोला, “मुझे बस तुम चाहिए. तुम को मैं एक नए सांचे में ढाल लूंगा.

“मेरे विचार थोड़े पिताजी जैसे जरूर हैं, पर तुम्हें बेहद सिक्योर रखूंगा.”

नवेली की आंखों में आश्चर्य था. वह कभी भी मोहित जैसे लड़के से नहीं मिली थी.

मोहित आगे बोला, “मुझे तुम जैसी सभ्य लड़कियां पसंद हैं. मैं उन लड़कियों को नापसंद करता हूं, जो छोटेछोटे कपड़े पहन कर दूसरे लोगों को सैक्सुअली एक्साइट करती हैं.”

नवेली बोली, “मोहित, मैं तो शॉर्ट  पहनती हूं.”

मोहित बोला, “बाद में भी पहनना, मगर बस मेरे लिए.”

नवेली को लगा कि मोहित  उस को ले कर कितना संजीदा है… और लड़कों की तरह नहीं है वो.

नवेली को मोहित कुछ अलग सा लगा, मगर इस से पहले वो कुछ और समझ पाती, उस की और मोहित की मंगनी हो गई थी.

जैसे कि आमतौर पर होता है, मंगनी के बाद दिन सोना और रात चांदी हो जाती है, मगर मोहित आम लड़कों की तरह रातदिन फोन नहीं करता था. जब भी मोहित फोन करता, वो तब नवेली को दूसरी ही दुनिया में ले जाता था.

मोहित कुछ बातों में बेहद रिजिड था, इसलिए नवेली चाह कर भी मोहित से अपने अतीत की कोई भी बात नहीं बता पाती थी. मन ही मन नवेली को लगने लगा था कि वो हर स्तर पर मोहित से उन्नीस ही है. रंग, रूप, आचार, व्यवहार, हर स्तर पर मोहित उस से बीस ही है.

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