शादी ही भली: लिव इन रिलेशनशिप के चक्कर में पड़ कर मान्या का क्या हुआ?

Serial Story: शादी ही भली (भाग-3)

अपनी सब से गहरी सहेलियों कीर्ति और अंशु की बातें सुन कर मान्या सन्न रह गई. उसी दिन से उस ने उन दोनों से अपनी दोस्ती खत्म कर ली. अपने मोबाइल से उन दोनों के नंबर भी हटा दिए. उस के बाद उन दोनों ने भी कभी मान्या से संपर्क नहीं किया.

अपने और परम के रिश्ते की वजह से इन दोनों की दोस्ती को खो देना मान्या के लिए एक बड़ा आघात था. तभी से मान्या अकेलेपन की धूप में तपती आ रही थी. ऐसे में सविताजी और रितु के प्यार और अपनेपन ने शीतल छाया का काम किया. उन के साथ बरसों बाद उसे पारिवारिक और सौहार्दपूर्ण वातावरण मिला था.

देरसवेर औफिस में भी अब बात फैलने लगी थी कि मान्या बिना शादी के परम के साथ रह रही है. लड़कियां उस से और खिंचीखिंची सी रहने लगीं. उसे अजीब नजरों से देखतीं. पुरुष सहकर्मी भी उसे लोलुप निगाहों से देखते.

फाइलें देतेलेते समय जानबूझ कर मान्या की उंगलियों को पकड़ लेते या हाथ फेर देते. उन के होंठों पर कुटिल मुसकराहट होती. उन के गंदे विचारों को समझ कर मान्या के तनबदन में आग लग जाती.

अकसर पुरुषकर्मी बेवजह बातें करने या काम के बहाने मान्या की टेबल पर आ कर बैठे रहते. मान्या औफिस के माहौल में अब घुटन सी महसूस करने लगी थी.

इधर कई दिनों से परम का भी व्यवहार बदलने लगा था. पहले वह और परम घर पर सारा काम मिल कर करते थे. लेकिन पिछले कुछ दिनों से परम हर काम के लिए मान्या से ही उम्मीद रख रहा था. छुट्टी के दिन वह चाहता कि मान्या उस का लंच पैक कर के दे. यहां तक कि महीने भर से उस के कपड़े भी मान्या ही धो रही थी. पहले परम लाड़ से रिक्वैस्ट करता था कि प्लीज मान्या मेरी शर्ट धो देना या कल मेरा लंच बना देना और अब तो परम मान्या से ये सारे काम करवाना अपना अधिकार समझने लगा था. उस के व्यवहार में हर समय पति के तौर पर हुकुम चलाने वाले भाव रहते. समर्पण की भावना की जगह उम्मीदें बढ़ने लगी थीं.

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अभी तो मान्या के लिए दूसरा धक्का इंतजार कर रहा था. कई दिनों से वह देख रही थी कि सविता आंटी और रितु उस से कटीकटी सी रहने लगी हैं. मिलने पर बात तो हंसमुसकरा कर ही करतीं, लेकिन व्यवहार में अब वह अपनापन नहीं रह गया था. घर पर आनाजाना भी कम हो गया. रितु भी अब दूरदूर रहने लगी थी. पहले की तरह सविता आंटी अब छुट्टी वाले दिन खाने पर नहीं बुलाती थीं.

एक बार फिर मान्या अकेली हो गई थी. एक छुट्टी वाले दिन परम बाहर गया था तो मान्या ने मौका अच्छा जान कर सोचा कि सविता आंटी से बात की जाए. अत: वह सविताजी के यहां चली गई.

‘‘क्या बात है आंटी आजकल रितु बाहर नहीं निकलती? उस से तो मुलाकात ही नहीं हो पाती,’’ मान्या ने कुछ देर की औपचारिक बातचीत के बाद पूछा.

‘‘रितु की परीक्षा पास आ रही है इसलिए बाहर कम ही निकलती है,’’ सविता ने जवाब दिया.

‘‘बहुत दिनों से महसूस कर रही हूं आंटी कि आप मुझ से कटीकटी सी रहने लगी हैं. क्या बात है?’’ मान्या ने फालतू समय बरबाद न कर के मन की बात पूछ ली.

‘‘देखो मान्या वैसे तो यह तुम्हारा निजी मामला है कि तुम अपनी जिंदगी कैसे जीती हो, लेकिन माफ करना एक पहचान वाले से हमें पता चला है कि तुम और परम शादीशुदा नहीं हो, बल्कि लिव इन रिलेशन में रह रहे हो. रितु कच्ची उम्र की है, मैं नहीं चाहती कि उस के मन पर इन बातों का बुरा असर पड़े,’’ सविताजी ने सामान्य स्वर में जवाब दिया.

लेकिन मान्या सन्न रह गई कि तो अब यहां भी यह सचाई पता चल चुकी है और अगर सविताजी को पता चली है तो निश्चितरूप से पूरी कालोनी भर को खबर हो जाएगी.

‘‘देखो मान्या, मैं किसी को भी बुराभला नहीं कहती. मुझे नहीं मालूम कि रितु भी बड़ी होने पर क्या करेगी. लेकिन मां होने के नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं जहां तक हो सके उसे ऐसे किसी हालात में पड़ने से बचाऊं. अभी तक तो उसे या किसी को भी मैं ने सच बात नहीं बताई है, लेकिन जैसे आज मुझे पता चला है वैसे ही कभी न कभी तो कालोनी के दूसरे लोगों को भी पता चल ही जाएगा,’’ सविताजी के स्वर में अब भी हलका सा अपनापन था.

मान्या चुपचाप सिर झुका कर सुनती रही

‘‘अब मुझे पता चला कि क्यों कभी तुम्हारे मायके या ससुराल से कोई तुम्हारे घर क्यों नहीं आता. लेकिन कब तक घरपरिवार मातापिता से कट कर रहोगी. अगर बीच रास्ते में ही परम तुम से अलग हो कर किसी और के साथ रहने लगा तो? पति तलाक दे या छोड़ दे तो पत्नी के पास फिर भी घर, समाज की सहानुभूति होती है, लेकिन तुम्हारे साथ तो कोई भी नहीं होगा. तुम बिलकुल अकेली रह जाओगी,’’ सविताजी ने समझाया.

‘‘हम आधुनिकता की चकाचौंध में अंधे हो कर समाज से टकराने की हिम्मत तो कर लेते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि पलट कर चोट हमें ही लगती है, समाज का कुछ नहीं बिगड़ता,’’ सविताजी ने प्यार और अपनेपन से मान्या का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘एक स्त्री होने के नाते मैं जानती हूं कि आज नहीं तो कल तुम मां बनना जरूर चाहोगी… और फिर सोचो कि ऐसी हालत में अपने बच्चे को जन्म दे कर तुम उसे क्या दे पाओगी? तुम उसे न पिता का नाम दे पाओगी और न घरपरिवार. तुम स्वयं भी आधीअधूरी रह जाओगी और अपने बच्चे का व्यक्तित्व भी उस की पहचान भी अधूरी कर दोगी.’’

सविताजी के पास से लौट कर मान्या धड़ाम से सोफे पर पसर गई. उस का सिर घूम रहा था. उसे कोफ्त हो रही थी कि पता नहीं किस मनहूस घड़ी में उस ने बिना शादी किए परम के साथ रहने का फैसला किया. वह अपने लिए एक कप कौफी बना लाई. कौफी पी कर दिमाग शांत हुआ तो वह बेहतर ढंग से अपनी स्थिति के बारे में सोच पाई.

आज सविताजी को पता चला है कल को कालोनी के दूसरे लोगों को भी पता चल जाएगा. फिर यह कालोनी भी छोड़ कर दूसरी कालोनी में फ्लैट तलाश करो. क्या वह सारी उम्र एक से दूसरी जगह भटकती रहेगी. कभी स्थिर नहीं हो पाएगी? यह तो किराए का घर है, इसलिए बदल भी सकते हैं, लेकिन अपना घर हो तो?

इस तरह तो वह कभी अपना घर बना ही नहीं पाएगी. जिंदगी भर भटकती रहेगी.

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आज वह समाज से कट गई है. कल को घर पर पता लगने पर परिवार से भी कट जाएगी. आज जो थोड़ाबहुत अपनापन बचा है, जीवन में कल को वह भी खो जाएगा.

और परम? क्या परम जीवन भर उस का साथ निभा पाएगा? पिछले कुछ दिनों से तो उस का व्यवहार देख कर ऐसा नहीं लग रहा. परम उसे पत्नी के अधिकार तो कभी देगा नहीं हां एक पति की तरह बन कर मान्या से सेवा और घर के सारे काम की उम्मीद अवश्य करेगा.

जब शादी न कर के पत्नी के पूरे कर्तव्य निभाने पड़ेंगे, कभी सिर दबा दो, कभी पैर दबा दो और अपनी आजादी खोनी ही पड़ेगी तो फिर शादी करने में क्या खराबी है? कम से कम वहां इज्जत तो रहेगी. घरपरिवार का साथ तो रहेगा. जिंदगी में स्थिरता तो रहेगी.

यहां तो न सिर पर छत है न पैरों के नीचे जमीन है. मैं ने खुद को अधर में लटका लिया है और अकेलेपन का दर्द अपने गले बांध लिया है. परम के साथ मेरा बस शरीर का है, यह आकर्षण खत्म हो गया तब?

मान्या कांप उठी कि नहींनहीं भाड़ में जाए यह आधुनिकता का चक्कर. उस के सिर से पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण का भूत उतर चुका था. सोचा मां का बताया हुआ दीदी की ससुराल का रिश्ता अभी भी है. लड़के वालों को वह बहुत पसंद है और वे अभी भी रुके हुए हैं.

मान्या की आंखें खुल चुकी थीं कि अधर में टंगे रिश्ते के बजाय शादी ही भली है. फिर क्या था मान्या ने तुरंत मां को फोन लगाया, ‘‘मां, मैं जल्दी घर आ रही हूं… आप उस लड़के को हां कह दीजिए.’’

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Serial Story: शादी ही भली (भाग-2)

इतनी बेइज्जती सहने के बाद वहां कौन रहता. तब परम और मान्या ने 8 दिनों में ही यहां फ्लैट किराए पर ले लिया. यहां भी 1-2 बार आतेजाते पासपड़ोस की औरतों से जब बातें होती हैं तो औरतें उसे कुछ टटोलती सी निगाहों से देखती हैं. मान्या जानती है वे उस के शरीर पर सुहागचिह्न ढूंढ़ती हैं, क्योंकि मान्या न मांग भरती न बिंदी लगाती और न ही मंगलसूत्र व चूडि़यां पहनती.

एक दिन पड़ोसिन आशा ने तो कह ही दिया, ‘‘माना कि तुम बहुत पढ़ीलिखी हो, तो भी थोड़ाबहुत तो परंपराओं का निर्वाह करना ही पड़ता है. मैं भी समझती हूं कि तुम काम पर जाती हो मंगलसूत्र नहीं पहन सकतीं. मगर मांग और माथे पर सिंदूर तो लगा ही सकती हो.’’

‘‘परम को पसंद नहीं है,’’ कह कर मान्या ने बहाना बनाया और वहां से खिसक ली थी पर वह जानती थी कि महिलाओं के समूह में देर तक उस की आलोचना चलती रही होगी.

कभी मान्या से लोग पूछते की शादी को कितने साल हो गए? कभी महिलाएं अपनापन जताने के लिए बच्चे के बारे में टोकने लगतीं, ‘‘अब जल्दी से लड्डू खिलाओ.’’

मान्या क्या जवाब दे? वह कैसे लड्डू खिला सकती है? कभी सोसाइटी की महिलाएं उस के मायके और ससुराल के लोगों के न आने पर सवाल करती हैं. बात ज्यादा बढ़ने से पहले ही मान्या और परम फ्लैट बदल लेते हैं.

10 बजे परम उठा तो मान्या 2 कप चाय बना लाई. 3-4 दिन बाद जब मान्या काम पर जाने लगी तो देखा कि सामने वाले खाली फ्लैट में कोई रहने आ गया है.

एक संडे को मान्या गैलरी में बैठी चाय पी रही थी कि कालबैल बजी. मान्या ने दरवाजा खोला तो सामने एक महिला खड़ी थीं.

‘‘मैं आप के सामने वाले फ्लैट में रहने आई हूं. आप तो कभी दिखाई ही नहीं देतीं. सोचा आज छुट्टी है मैं ही चल कर मिल आऊं,’’ महिला ने अपनेपन से मुसकराते हुए कहा.

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‘‘आइए अंदर आइए न. मैं जौब करती हूं. सुबह जल्दी औफिस चली जाती हूं और शाम लौटने तक देर हो जाती है, इसलिए मिलना नहीं हो पाता,’’ मान्या ने उन्हें अंदर बैठाया. पता नहीं क्योंकर मान्या को उन की मुसकराहट अच्छी लगी.

‘‘तुम्हारे पति?’’ महिला ने घर में एक उचटती सी निगाह डाल कर पूछा.

मान्या के मन में एक कचोट सी उठी. क्षण भर पहले उन्हें देख कर मन को जो अच्छापन लगा था वह कहीं खो गया. फिर सोचा यह सब तो होना ही है.

‘‘जी वे सो रहे हैं. पूरा हफ्ता बहुत भागदौड़ रहती है न तो संडे को देर से उठते हैं,’’ मान्या ने अपनेआप को सहज करते हुए जवाब दिया.

शुक्र है आगे उन्होंने मान्या की व्यक्तिगत जिंदगी के बारे में कोई सवाल नहीं किया. मान्या ने राहत की सांस ली. कि चलो यह तो टिपिकल इंडियन टाइप की मानसिकता वाली स्त्री नहीं लगती. मान्या के बारे में उन्होंने ज्यादा खोजबीन करने वाले सवाल नहीं पूछे. मान्या उन के लिए चाय बना लाई. उन का नाम सविता था. पहले वे किराए के फ्लैट में रहती थीं. अब सामने वाला फ्लैट खरीद लिया था. पति सरकारी नौकरी में हैं और 1 ही बेटी है, जो 12वीं कक्षा में पढ़ती है.

जातेजाते उन्होंने मान्या के हेयरकट की तारीफ की और पूछा कि क्या वे अपने पार्लर में उन की बेटी रितु के बाल सैट करवा लाएंगी. इसे मान्या ने सहर्ष स्वीकार कर लिया.

अगले शनिवार को मान्या की छुट्टी थी पर परम काम पर गया था. परम ने उठ कर अपना नाश्ता बना लिया था. लंच वह औफिस में ही करता था. मान्या ने उठ कर अपने लिए सैंडविच बना कर खाया और कौफी बना कर ड्राइंगरूम में आ कर टीवी देखने लगी. उस ने कौफी खत्म कर के कप रखा ही था कि कालबैल बज उठी. बाई होगी, सोच कर मान्या ने दरवाजा खोला तो देखा सामने एक 16-17 साल की प्यारी सी लड़की खड़ी थी.

‘‘दीदी, मैं रितु हूं. मम्मी ने आप को बताया होगा न,’’ रितु ने बड़े अपनेपन से मुसकराते हुए कहा.

मान्या ने भी मुसकराते हुए रितु का स्वागत किया और फिर उस के साथ बैठ कर बातें करने लगी. रितु बड़ी प्यारी और चुलबुली लड़की थी. जल्द ही वह और मान्या आपस में ऐसे घुलमिल गईं जैसे बरसों से एकदूसरे को पहचानती हों. मान्या को रितु की चुलबुली बातें बड़ी अच्छी लग रही थीं. ऐसा लग रहा था जैसे वह बरसों बाद खुल कर किसी अपने से बातें कर रही हो. परम के साथ रहते हुए तो पिछले 3 सालों से वह जैसे समाज से कट ही गई थी. औफिस में भी बस n2-1 दोस्त और सहेलियां ही हैं, जो उस के और परम के बारे में सच जानते हैं. उन के साथ ही कभीकभी घूमनाफिरना या बातें हो जाती हैं वरना तो वह सब से कटती ही जा रही थी.

बातों ही बातों में रितु को पता चला कि परम औफिस चला गया है और मान्या ने अभी खाना नहीं बनाया है तो रितु ने जिद की कि मान्या उन के यहां ही खाना खाए. मान्या ने संकोच के कारण बहुत मना किया, लेकिन रितु ने एक नहीं सुनी. आखिर मान्या को लंच के लिए उस के यहां जाना ही पड़ा.

सविताजी ने बड़े प्यार से रितु और मान्या को खाना खिलाया. खाना खा कर मान्या को मां की याद आ गई. सच बाई के हाथों का बना खाना और होटलों का खाना खाने में वह स्वाद कहां. मान्या को लगा कि उस ने महीनों बाद भरपेट खाना खाया है.

सविताजी, रितु और रितु के पिताजी सतीश तीनों ही बड़े मिलनसार और अपनत्व से भरे हुए लोग थे. बातें करते कब 4 बज गए पता ही नहीं चला.

मान्या रितु को पार्लर ले गई. वहां उस के बाल सैट करवा दिए. रितु बहुत खुश थी. आते समय उन्होंने मार्केट में आइसक्रीम खाई. मान्या को लगा वह अपना पीछे छूट गया बचपन जी रही है. उस शाम घर आने के बाद मान्या बहुत खुश और हलका महसूस कर रही थी.

इस के बाद लगभग हर छुट्टी वाले दिन मान्या और रितु साथ कहीं न कहीं घूमने निकल जातीं. 1 बार रितु मान्या और परम के साथ बाहर घूमनेफिरने और पिक्चर देखने चली गई, तो घर आ कर परम मान्या पर बुरी तरह नाराज हुआ, ‘‘तुम ने यह क्या फालतू की बला अपने सिर मढ़ ली है. मैं ने ऐंजौय करने के लिए तुम्हारे साथ रिश्ता जोड़ा है, ये बेकार के रिश्ते झेलने के लिए नहीं. आइंदा इस लड़की को अपने साथ मत ले चलना… तुम उस के साथ ज्यादा मेलजोल न ही रखो तो अच्छा है,’’ कहते हुए परम ने मान्या का हाथ पकड़ कर उसे बिस्तर पर अपनी ओर खींच लिया.

अपनी इच्छापूर्ति कर के परम तो मान्या की ओर पीठ कर के गहरी नींद सो गया, लेकिन मान्या की आंखों में नींद नहीं थी.

‘तो क्या अब उसे परम की इच्छानुसार चलना होगा? जिस से वह कहे उस से रिश्ता रखे जिस से वह न कहे उस से तोड़ ले,’ मान्या सोच रही थी.

यों भी इस शहर में उस की पहचान है ही आखिर किस से? जितनी सहेलियां थीं उन में से कुछ तो अपने घर लौट गईं, कुछ नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहरों में चली गईं. इस शहर में जो बची हैं उन में से भी अधिकांश शादी कर के अपनेअपने परिवार में व्यस्त हो गईं. शादीशुदा सहेलियां अब मान्या से कतराने लगी थीं.

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‘‘सौरी मान्या, अब मैं तुम्हें अपने घर नहीं बुला सकती. क्या करूं जौइंट फैमिली में रहती हूं… सासससुर हैं घर में. अकेली आओगी तो अम्मांजी तुम्हारी शादी की बात को ले कर तुम्हारे पीछे पड़ जाएंगी और परम के साथ आओगी तो सौ सवाल उठ खड़े होंगे,’’ एक दिन कीर्ति ने कहा.

‘‘अपने पति को मैं ने तुम्हारी और परम की लिव इन रिलेशनशिप के बारे में कुछ नहीं बताया है. तुम्हारे बारे में यह बात सुन कर कहीं वे मेरे बारे में भी गलत न सोचने लगें कि इस की सहेली ऐसी है तो यह भी पता नहीं कैसी होगी. सौरी यार… नईनई शादी है मैं अपने रिश्ते के लिए कोई जोखिम नहीं लेना चाहती,’’ एक दिन अंशु बोली.’’

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Serial Story: शादी ही भली (भाग-1)

मोबाइल की रिंगटोन सुन कर मान्या की नींद खुली. उस ने उनींदी सी आंखों से देखा, मां का फोन था.

‘‘हैलो मां,’’ मान्या फोन उठा कर नींद भरे स्वर में बोली.

‘‘क्या बात है मान्या बेटा, तुम्हारी आवाज भारीभारी क्यों लग रही है? क्या तबीयत ठीक नहीं है?’’ मां का चिंतित स्वर सुनाई दिया.

‘‘नहीं मां. मैं सो रही थी. आप ने इतनी सुबह क्यों फोन किया?’’ मान्या खीज कर बोली.

‘‘सुबहसुबह?’’ मां के स्वर में आश्चर्य था, ‘‘अरे, 9 बज रहे हैं.’’

‘‘ओह मां तो क्या हुआ आज छुट्टी है. एक ही दिन तो मिलता है सोने के लिए बाकी के 6 दिन तो सुबह से ले कर रात तक भागतेदौड़ते बीतते हैं. अच्छा आप बताओ फोन क्यों किया?’’

‘‘तुम्हारे लिए तुम्हारी दीदी की जेठानी के भाई का रिश्ता आया है. उन लोगों को तुम्हारा फोटो पसंद आया है. लड़का भी बहुत अच्छा है मान्या और देखाभाला परिवार है. न इस बार कोई मीनमेख निकालना और न ही फुजूल के बहाने बनाना. बस जल्दी औफिस में छुट्टी की अर्जी दे और जल्द से जल्द घर आ जा. तुम दोनों एकदूसरे को आमनेसामने देख लो और अपनी रजामंदी दे दो. हम बड़ों की ओर से तो बात पक्की ही है. लड़का जयपुर में रहता है. वहां तुम्हें भी आराम से नौकरी मिल जाएगी,’’ मां खुशी में एक ही सांस में पूरी बात कह गईं.

‘‘आप ने फिर मेरी शादी का पुराण शुरू कर दिया. मां, मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है,’’ मान्या खीज कर बोली.

‘‘2 महीने बाद 27 साल की हो जाओगी… और कब तक शादी नहीं करोगी? पहले पढ़ाई, फिर कैरियर अब और क्या बहाना बचा है? 1-2 साल और शादी नहीं की तो कुंआरे लड़कों के रिश्ते आने बंद हो जाएंगे. फिर तो तलाकशुदा या विधुर अधेड़ों के ही रिश्ते आएंगे,’’ मां गुस्से से भुनभुनाईं.

‘‘ठीक है मां 2-4 दिन में सोच कर बताती हूं,’’ मान्या ने हथियार डालते हुए कहा.

‘‘जल्द ही बताना मान्या. वे तुम्हारी दीदी के आचरण से इतने प्रभावित हैं कि तुम्हें ही अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं और साल, 6 महीने तक रुकने में भी उन्हें ऐतराज नहीं है इसलिए मैं चाहूंगी कि तुम बेवजह की अपनी जिद छोड़ दो,’’ मां के स्वर में आदेश था.

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‘‘ठीक है मां जैसा आप कहो,’’ मान्या ने टालने वाले स्वर में कहा और फोन काट दिया.

10 बज रहे थ. अब दोबारा क्या नींद आएगी… मान्या ने बगल में सो रहे परम की ओर देखा. परम रात में परम संतुष्ट हो कर अब तक गहरी नींद में बेसुध पड़ा था. मान्या ने उस के घुंघराले बालों में हाथ फेरा और फिर फ्रैश होने के लिए बाथरूम में चली गई.

हाथमुंह धो कर मान्या ने अपने लिए चाय बनाई और फिर चाय का कप ले कर गैलरी में आ कर बैठ गई. नीचे बिल्डिंग के बच्चे खेल रहे थे. लोग अपनेअपने काम से बिल्डिंग के अंदरबाहर आ जा रहे थे. 6 महीने हो गए मान्या और परम को इस बिल्डिंग में आए. अब तक उन की किसी से खास जानपहचान नहीं हुई थी. सामने वाले फ्लैट में रहने वाले 1-2 लोगों से बस हायहैलो थी. इस से अधिक पहचान बढ़ाने में न तो परम को दिलचस्पी थी और न ही मान्या को. बगल वाला एक फ्लैट अभी खाली था.

4 साल हो गए थे, परम और मान्या की मुलाकात हुए. मान्या की एक फ्रैंड के घर में गैटटुगैदर के लिए सारे दोस्त आए हुए थे. वहीं पर मान्या और परम की आपस में पहचान हुई थी. तब परम 6 महीने पहले से जौब कर रहा था और मान्या का इंजीनियरिंग का आखिरी सैम बचा था. पहली ही मुलाकात में परम और मान्या आपस में काफी घुलमिल गए. इस के बाद दोस्तों की पार्टियों में मुलाकातें होती रहीं. फिर फोन पर बातें शुरू हो गईं. बातें करते हुए दोनों कब एकदूसरे को पसंद करने लगे, पता ही नहीं चला. दोनों अकसर मिलने लगे. जब पढ़ाई पूरी करने के बाद मान्या को जौब मिली तब तक दोनों का प्यार पूरी तरह परवान चढ़ चुका था.

मान्या को भी मुंबई में ही जौब मिल गई. मान्या के मातापिता उस की पढ़ाई पूरी होते ही उस की शादी कर देने के पक्ष में थे. उन का कहना था कि जहां भी उस की शादी होगी वह अपने लिए नौकरी भी वहीं ढूंढ़ ले. जैसाकि उस की दीदी ने किया था. मान्या की बड़ी बहन ने एमबीए पूरा किया ही था कि उस के लिए अच्छा रिश्ता आ गया. मातापिता ने फटाफट उस की शादी कर दी. कुछ दिन ससुराल में ऐडजस्ट होने के बाद दीदी ने उसी शहर में नौकरी जौइन कर ली. आज दीदी जौब भी करती है और अपना घरपरिवार भी संभालती है. ससुराल में सभी उस से बेहद खुश हैं. मान्या के मातापिता चाहते थे कि मान्या भी अपनी बड़ी बहन का अनुसरण करे.

मगर मान्या थोड़े अलग विचारों वाली लड़की थी. उसे अपनी आजादी बेहद पसंद थी. वह ससुराल और रिश्तों के बंधन में बंधना पसंद नहीं करती थी. उसे सुबह से रात तक घर, परिवार, पति, बच्चों के बंधन में जकड़े रहना पसंद नहीं था.

तभी तो साल भर परम के साथ घूमतेफिरते और एकदूसरे के विचारों को जानने के बाद दोनों ने लिव इन रिलेशनशिप में साथसाथ रहने का फैसला किया. पहले मान्या ने मातापिता को जैसेतैसे राजी कर लिया कि उस की शादी की इतनी जल्दी न करें. अभी उसे जौब करने दें. बड़ी मुश्किल से मान्या के मातापिता राजी हुए. तभी मान्या और परम ने मिल कर यह फ्लैट लिया और एकसाथ रहने लगे. इस बीच 2 बार मान्या के मातापिता उस के साथ रहने के लिए मुंबई आए. तब मान्या अपना सामान ले कर अपनी सहेली के रूम में रहने चली गई. उस के मातापिता को यही पता था कि मान्या अपनी सहेली के साथ रहती है.

परम के घर से भी जब कोई आता तो वह भी अपने दोस्त के पास चला जाता. अपने फ्लैट का पता उन दोनों ने ही अपने घर वालों को नहीं दिया था, क्योंकि अगर दोनों में से किसी के भी घर से कोई इस फ्लैट पर आ जाता तो वे दोनों छिपाने की चाहे जितनी कोशिश करते घर वालों की अनुभवी नजरें ताड़ ही लेतीं कि इस फ्लैट में लड़कालड़की साथ रहते हैं. तब घर वालों को कुछ भी समझा पाना मुश्किल होता. खासतौर पर मान्या के लिए. मान्या के मातापिता उस की जौब छुड़वा कर वापस ले जाते.

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मान्या ने चाय का कप मेज पर रखा. परम अभी उठा नहीं था. जब से मान्या और परम साथ रह रहे थे यह उन का तीसरा घर था. कुछ ही महीनों बाद पता नहीं कैसे आसपास रहने वाले लोगों को पता चल जाता कि दोनों बिना शादी किए साथ रह रहे हैं और बस सोसाइटी में कानाफूसी शुरू हो जाती. पिछली वाली सोसाइटी के अध्यक्ष ने तो साफसाफ मुंह पर बोल दिया था कि हम बालबच्चेदार और इज्जतदार लोग हैं, यहां ये पश्चिम के रंगढंग नहीं चलेंगे.

आगे पढ़ें- इतनी बेइज्जती सहने के बाद…

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