फेमिनिज्म का मतलब आदमियों को थप्पड़ लगाना या गालियां देना नहीं है- ताहिरा कश्यप खुराना

नाटकों का लेखन और निर्देशन से एक लेखिका के तौर पर पहचान बनाने के बाद ताहिरा कश्यप खुराना ने मुंबई पहुंचने के बाद कालेज में प्रोफेसर की हैसियत से पढ़ाना शुरू किया, तो वहीं लेखन भी करती रहीं. सबसे पहले ‘‘आई प्रॉमिस’’ नामक उपन्यास लिखा. उसके बाद कई कहानियां लिखीं. ‘कै्रकिंग द कोड़’और ‘माई जर्नी इन बौलीवुड’ जैसी किताबें लिखी. उन्होने रेडियो पर भी काम किया. फिर फिल्मों की पटकथाएं लिखना शुरू किया.

अपनी लिखी कहानी पर ‘‘ईरोज इंटरनेशनल’’ के लिए लघु फिल्म ‘‘टौफी’’का निर्देशन किया. अब वह लघु फिल्म ‘‘पिन्नी‘’ का लेखन व निर्देशन किया है, जो कि ‘‘जिन्दगी इन शॉर्ट एन्थोलॉजी’’ की छह फिल्मों में से एक हैं. यह फ्लिपकार्ट के डिजिटल स्क्रीन पर रिलीज हो रही है. फिल्म ‘पिन्नी’ में मुख्य किरदार नीना गुप्ता का है और उनके पति के किरदार में शिशिर शर्मा हैं.

सवाल- किताब लिखना और फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने में कितना फर्क महसूस करती हैं?

-किताब लिखना एक अलग बात है. उसमें आपके पास अपनी बात को कितने ही शब्दों या पन्ने में कहने की आजादी होती है. किताब लिखते समय हम सिर्फ एक कहानी पर फोकस नहीं करते,बल्कि हर किरदार की निजी जिंदगी, उसकी पृष्ठभूमि में भी उसकी जो छोटी-छोटी चीजें होती हें,उन पर भी ध्यान देते हैं. मसलन-किरदार कैसा खाना खाता हैं, उनकी आदतों की गहराई तक जा सकते हैं.

 

View this post on Instagram

 

He checks me out. I check him out. And we kiss…isliye merry Christmas ?? (with my skinnier half @ayushmannk )

A post shared by tahirakashyapkhurrana (@tahirakashyap) on

मगर फीचर फिल्म में हमें दो घंटे की समय सीमा के अंदर ही सब कुछ समाहित करना होता है. दो घंटे में आपको वह सब कुछ बताना है. ऐसे में फीचर फिल्म की पटकथा लिखते समय हम कहानी बताने के लिए बहुत ही छोटा क्रिस्पर जरिया अपनाते हैं. किताब में हमारे पास आजादी है. हम आराम से जितना चाहे लिखते रहें.

ये भी पढ़ें- ट्रोलर्स को माहिरा शर्मा का करारा जवाब, आलिया जैसी ड्रेस पहनने की वजह से हुई थीं TROLL

सवाल- आपने पहले किताबें लिखी हैं. अब जब आप फिल्म की पटकथा लिखने बैठती होंगी,उस वक्त भी आपका दिमाग उसी हिसाब से दौड़ता होगा,तो उस पर विराम कैसे लगाती हैं?

-सच कहूं, तो मुझे लिखना बहुत पसंद है. मैंने कई अलग-अलग चीजें लिखी हैं. मैने किताब, उपन्यास,लघु कथाएं भी लिखी हैं. मैंने अपना अभी अमैजौन के लिए जो ब्राडकास्ट किया था, उसके एपीसोड लिखे हैं. वहीं फीचर फिल्म और लघु फिल्म के लिए स्क्रीनप्ले लिखा है. यह सभी अलग -अलग फौर्मेट है. इनमें सिर्फ एक ही सामानता है ‘लिखने के प्रति प्यार’. तो मुझे लगता है यह मेरे साथ एकदम ही नेचुरल तरीके से आता है. क्योंकि मुझे लिखना बहुत पसंद है. मैं हर मीडियम और उनकी जो बाउंड्री है, उसकी रिस्पेक्ट करती हूं. मुझे यह भी पता है कि जिस भी मीडियम में लिखना है, उसकी सीमा का आदर करते हुए मुझे अपनी कहानी को सही तरीके से बताना है. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक वह पहुंच सके. मेरे अंदर यह बेंचमार्क रहते हैं कि यह करना या क्या करना है. उसी के हिसाब से अपने आप काम हो जाता है.

सवाल- आपके अंदर लेखन के प्रति प्यार कैसे उमड़ा?

-मैं लिख तो बचपन से ही रही हूं. कौलेज में मैंने नाटकों का लेखन व निर्देशन किया. फिर किताबें लिखी. पर कभी सोचा नहीं था कि यह मेरा कैरियर बन सकता है. मैं मध्यम वर्गीय परिवार से आती हूं. जहां मेरे माता पिता ने हमेशा काम किया है. तो मेरे घर के लिए फाइनेंशली स्टेबिलिटी बहुत जरूरी थी. मेरे दिमाग में था कि मुझे पैसे कमाने हैं. जबकि मेरा हमेशा से रुझान थिएटर और लेखन की तरफ ही था. पर लेखन से पैसे कमा सकते हैंं,ऐसा कभी नहीं लगा. मेरे अंदर डर था कि आखिर मैं लेखन से कितना कमा लूंगी. इसलिए मेरे दिमाग में था कि मुझे अपने आपको ग्राउंड करना है. उस ग्राउंडिंग के चक्कर में मैं एक ऐसी इंसान बन गई, जो मैं नहीं थी. मैं बहुत ज्यादा हार्ड वर्किंग हो गयी. जब मैने रेडियो पर काम किया, तो इतना अच्छा काम किया कि प्रोग्राम हेड के अवार्ड भी मिले. कौलेज में बतौर शिक्षक पढ़ाना शुरू किया, तो बाकी शिक्षकों व प्रिंसिपल से बहुत आदर सम्मान मिला.

मैं हमेशा एक दो साल के बाद नौकरी छोड़ देती थी. क्योंकि मुझे खुशी नहीं मिल रही थी. फिर बाद में मैंने एक फिलोसाफी को फॉलो किया. मैंने चैंटिंग शुरू की, जहां मुझसे कहा गया कि, ‘आप जो करना चाहते हैं करें. अपने ऊपर कभी भी शक मत करें. अपनी क्षमता पर, अपने ख्वाब पर आप बाधा ना डालें.’ जब मैंने अपने आप पर शक करना कम किया, लिखना शुरू किया. लघु फिल्म ‘पिन्नी’’की स्क्रिप्ट तो मैंने दो साल पहले लिखी थी. मेरे पास कई स्क्रिप्ट कब की लिखी हुई पड़ी हैं, क्योंकि लिखने का शौक था. किताब व उपन्यास लिखते लिखते मुझे स्क्रिप्ट नजर आने लगी. सब कुछ ‘लाइव’ होने लगा. जब मैंने सबसे पहले लघु फिल्म ‘टॉफी’ लिखी, जिसका निर्देशन भी किया. उसके बाद मैंने ‘पिन्नी’ लिखी, इसका भी निर्देशन किया. अब अपनी ही लिखी हुई एक फीचर फिल्म का निर्देशन करने जा रही हूं. ऐसे में अब मेरी चीजें दर्शकों को देखने को मिल रही हैं. जबकि मैं तो कई वर्षों से लिखती आयी हूं.

सवाल- लेखन के साथ अब आप निर्देशक बन गयी हैं. लेखक बहुत कुछ लिखना चाहता है. उसे अपने लिखे शब्दों से प्यार होता है. लेकिन निर्देशक की अपनी सीमाएं हो जाती हैं. ऐसे में सेट पर कौन हावी रहता है?

-मुझे लगता है कि मेरा जो थिएटर का बैकग्राउंड है, उससे मुझे बहुत मदद मिल रही है. मैंने थिएटर में नाटक लिखे व निर्देशित भी किए हैं. बतौर लेखक हम लिखते ही रहना चाहते हैं, पर बतौर निर्देशक मुझे पता है कि मैं सीन को खो नहीं सकती हूं. सिर्फ अपनी ईगो को सटिस्फाई करने के लिए मुझे कुछ चीजें काटने से खुद को नही रोकना है. एडीटिंग के वक्त मैं और भी ज्यादा लाचार हो जाती हूं. उस वक्त मैं सोच लेती हूं कि मेरी नजर में यह दृश्य बहुत अच्छा बना है, मगर जरुरी नही कि यह दृश्य पचास लोगों को पसंद आ जाए. तो मुझे यह भी देखना पड़ता है. जो लोग देखना चाहते हैं, मैं उस चीज को छोड़ देती हूं. मैं हमेशा एक दर्शक के नजरिए से सही निर्णय लेती हूं.

ये भी पढ़ें- पूल में दिखा सुष्मिता सेन की भाभी का HOT अवतार, पति के साथ यूं किया रोमांस

सवाल- लघु फिल्म‘‘पिन्नी’’की कहानी का प्रेरणा स्रोत?

-‘‘इसकी प्रेरणा स्रोत तो मेरी सास यानी कि मेरे पति आयुष्मान खुराना की मां हैं. मेरी सासू मां पूरे परिवार को एक साथ जोड़कर रखती हैं. वह बहुत अच्छी फैट फ्री पिन्नी बनाती हैं. इस फिल्म की कथा के लिए मैंने उनसे प्रेरणा ली है, हालांकि कुछ फिक्शन भी जोड़ा है. मगर फिल्म के सुधा के किरदार में जो मिठास है, वह मेरी सास से आई है. इसमें रूढ़िवादिता को तोड़ने का मसला भी है. महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों पर बात की है. नारीवाद पर भी कुछ कहने का प्रयास किया है.

सवाल- आपके लिए फेमिनिजम (नारीवाद) क्या है?

-मैने पहले ही कहा कि फेमिनिज्म मेरे लिए इक्वालिटी समानता है. मेरे लिए यह नहीं है कि हम महिलाएं बेहतरीन हैं. मेरे लिए फेमिनिज्म के मायने पुरूषों आदमियों को थप्पड़ लगाना या उन्हें गालियां देना बिलकुल भी नहीं है. मेरे लिए फेमिनिज्म (नारीवाद) का मतलब है कि आप उतनी ही अपॉर्चुनिटी, उतने ही प्यार से हर काहनी देखना चाहें.

आजकल हम देखें तो 10 में से साढ़े नौ कहानियां पुरूषों की होती है. मैं चाहती हूं कि हम और कहानियां देखें. ऐसा नहीं है कि औरत की कहानी होगी, तो उसमें ज्यादा ट्रेजेडी होगी. औरत फनी भी हो सकती है. नारी प्रधान कहानी में भी हंसी मजाक हो सकता है. मैं चाहती हूं कि हम लोग औरतों के यह सारे पहलुओं को देखें.

सवाल- आप दो लघु फिल्में निर्देशित कर चुकी हैं. क्या अनुभव रहे? लेखन व निर्देशन में से किसमें   ज्यादा सैटिस्फैक्शन मिला?

-मुझे तो दोनों में सटिस्फैक्शन मिला. ऐसा नहीं है कि लिखने से ज्यादा निर्देशन में सटिस्फैक्शन मिल रहा है. जिस दिन मैं पांच पन्ने लिखती हूं, उस दिन मैं इतना खुश होती हूं कि मुझे अहसास होता है कि लेखन में ही सबसे अधिक सटिस्फैक्शन है. पर मुझे लगता है कि जो मैने लिखा है, उस पर अगर मैं कुछ निर्देशित कर लेती हूं, तो उससे मुझे और ज्यादा खुशी मिलती है. इस तरह मुझे दोनों से ही बराबर खुशी मिलती है. संतुष्टि मिलती है.

 

View this post on Instagram

 

Happy Diwali from our family to yours ❤️ #chandigarhdiwali

A post shared by tahirakashyapkhurrana (@tahirakashyap) on

सवाल- जब आप लिखने बैठती हैं, तो कौन सी बात आपको लिखने के लिए प्रेरित करती हैं?आपके निजी अनुभव या कोई घटनाक्रम. . ?

-इसमें दो बाते हैं. बतौर लेखक हमारी लेखन की शुरुआत तो निजी अनुभवों के आधार पर ही होती है. फिर हम अनुभवों से प्रेरणा लेने लग जाते हैं कि आपके साथ क्या हो रहा है. तो मेरी जिंदगी में भी दोनों ही चीजों का मिश्रण है. काफी चीजें निजी अनुभव की हैं, तो वहीं काफी चीजें मैंने होते हुए भी देखा है. मुझे लगता है कि कान और आंखें दोनों चैकन्ना हो जाते हैं. क्योंकि जब आप अखबार में कुछ देखते हैं या आपके दोस्त के साथ कुछ घटित होता है, तो मैं सोचती हूं कि हां यह चीज तो मैं अपनी कहानी में डाल सकती हूं. किस संवाद को मैं अपनी कहानी का हिस्सा बना सकती हूं, इस नजरिए से सोचना शुरू कर देती हूं. हम इसी नजरिए से अपनी जिंदगी को देखने लग जाते हैं.

ये भी पढ़ें- Yeh Rishta Kya Kehlata Hai में जल्द आएगा लीप, क्या अलग हो जाएंगी नायरा-कार्तिक की राहें

समलैंगिकता पर जागरूकता फैलाएगी ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’- मानवी गगरू

डिजिटल सनसनी के तौर पर मशहूर मानवी गगरू (Maanvi Gagroo) ने बतैार हीरोईन फिल्म‘‘अमावस’’से कैरियर की शुरूआत की थी. पर बाद में वह ‘नो वन किल्ड जेसिका’ और‘पी के’ सहित कई फिल्मों में छोटे किरदार निभाते हुए नजर आयी. कुछ समय पहले मानवी गगरू फिल्म ‘‘उजड़ा चमन’’ में मेनलीड में नजर आयी थीं तो अब वह फिल्म ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ में नजर आ रही हैं. आइए पेश है उनसे खास बातचीत…

बौलीवुड की खास परंपरा है कि आपने पहली फिल्म में जिस तरह के किरदार निभाते हैं,उसी तरह के किरदार बार बार दिए जाते हैं.जब आपने छोटे किरदार स्वीकार किए,तो आपको नहीं लगा था कि आगे भविष्य में आपके साथ ऐसा ही होगा?

-ऐसा ही हुआ मेरे साथ.‘नो वन किल्ड जेसिका’ और ‘पीके’ के बाद मुझे हीरोइन की बेस्ट फ्रेंड या हीरो की बहन जैसे ही किरदार मिले.इतना ही नही मुझे हर बार उसी तरह से अभिनय करने के लिए कहा गया.कुछ भी नया करने को नही मिल रहा था.तब कुछ दिन के लिए मैने औडीशन देना बंद कर दिया. कुछ दिन आराम किया.उसके बाद जब टीवीएस की वेंब फिल्म‘‘पिच्चर’में मुझे श्रेया का किरदार निभाने को मिला,तब सारे समीकरण बदले. इसकी एक वजह यह भी है कि  वेब की वजह से फिल्में बदली.अब कंटेंट आधारित फिल्में बन रही हैं. जहां रीयल किरदार चाहिए.मतलब अब वह स्टीरियोटाइप होने का डर नहीं है. उसके बाद मैने वेब की दुनिया में काफी बेहतर काम किया.इसके अलावा फिल्म‘‘उजड़ा चमन’’में मुझे अप्सरा का मेन लीड किरदार निभाने का अवसर मिला. अब फिल्म‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’में गॉगल त्रिपाठी का किरदार निभाया है,जो कि बहुत ही अलग तरह का है.

पर आपने ‘‘नो वन किल्ड जेसिका’’ में छोटा किरदार न निभाया होता,तो आज आपका कैरियर किसी अन्य पड़ाव पर होता?

-लेकिन उस वक्त मेरे पास इसी तरह के आफर आ रहे थे.मैं अपनी तरफ से दीपिका पादुकोण बनने के लिए पूरी कोषिष कर रही थी.लोगों ने मुझे सलाह दी कि घर पर बैठने की बनिस्बत कुछ काम करते हुए अपनी प्रतिभा से लोगों को परिचित कराते रहना चाहिए.लोग चाहते थे कि मैं एक हीरोईन की तरह दुबली पतली व जीरो फिगर में नजर आउं.जिसमें मैं कभी भी फिट नहीं हुई. मेरा षरीर ‘बिकनी बॉडी’का नही रहा.लोग ऐसी हीरोईन चाहते थे जो कि बिकनी और साड़ी दोनो में हॉट लगे.मैं तो अपना फेमेनिज्म का झंडा उठाकर चल रही थी.

तो क्या फेमीनिज्म का झंडा उठाना नुकसान कर गया आपको?

-जी हां! मैं तो बॉलीवुड में काम करते हुए स्विटजरलैंड में शिफॉन की साड़ी पहनकर हीरो के साथ डांस करना चाहती थी.पर किसी ने मुझे ऐसे किरदार नहीं दिए. पर मैंने कुछ सषक्त किरदार जरुर निभाए.

सिनेमा के बदलाव और डिजिटल मीडिया से आपको फायदा मिल रहा है?

-मिल रहा है.लोग मुझे वेब सेंषेषन मानते हैं.डिजिटल मीडिया के चलते हर कलाकार,लेखक,निर्देषक व तकनीषियन को भरपूर काम मिल रहा है. इस नए माध्यम में हर कोई नए नए प्रयोग कर रहा है. अब हर प्रोडक्शन हाउस व हर चैनल का एक डिजिटल विंग है.सभी भीड़ से अलग दिखने के प्रयास में लगे हुए हैं. परिणामतः बोल्ड चीजें वेब पर ज्यादा परोसी जा रही हैं. अब हम लोग आपस में मजाक करते हैं कि आज की तारीख में अगर आपके पास काम नहीं है,तो आप बहुत ही बुरे कलाकार हैं. अन्यथा इन दिनों सभी अति व्यस्त है.

किस वेब सीरीज ने आपको ज्यादा पापुलैरिटी दी?

-टीवीएस पिच्चर्स में श्रेया का किरदार निभाकर सबसे ज्यादा षोहरत पायी.यह किरदार सही तरीके सेे डिफाइन किया गया था.इस किरदार को निभाते हुए रचनात्मक इंसान के तौर पर मुझे बहुत मजा आया था. पापुलैरिटी के हिसाब से अगर देखे तो ‘फोर मोर शॉट्स’से मिली.इस वेब सीरीज को देखकर कई लड़कियां रोईं.कुछ ने मेरे पास आकर इसमें सिद्धि का किरदार निभाने के लिए मेरा धन्यवाद अदा किया.एक लड़की ने कहा कि उसकी पूरी जिंदगी सिद्धि की तरह गुजरी.उसको भी शायद कुछ स्किन का प्रॉब्लम था.

वेब /डिजिटल में आपको जो लोकप्रियता मिली,उससे फिल्मकारों की सोच बदली. आपके प्रति उनके नजरिए में बदलाव आया?

– ऐसा हुआ.वहीं अब मेरे पास भी च्वाॅइस है.अब मजबूरी में काम करने की मेरी जरुरत खत्म हो गयी. फिल्मेकर्स का नजरिया भी बदला है. अब यह अच्छा ट्रेंड है या बुरा ट्रेंड है.मुझे नहीं पता.पर अब फिल्मकार इस बात की जानकारी रखते है कि किस कलाकार के इंस्टाग्राम पर कितने फॉलोवर्स हैं. उसके आधार पर आपको काम मिलता है. मसलन-किसी किरदार के लिए दो कलाकार उपयुक्त है, दोनो का आडीशन भी बेहतर है,तब उनमे से किसी एक का चयन उनके इंस्टाग्राम फालोअवर्स के आधार पर किया जाता है.इंस्टाग्राम के फालोअवर्स की संख्या बढ़ने पर कलाकार को चर्चित माना जाता है.तो वहीं आप विश्वास नहीं करेंगे, बॉलीवुड में एक बहुत बड़ा सेक्शन है, जो वेब व डिजिटल को महत्व नही देता. यह ओल्ड स्कूल औफ बौलीवुड है. ऐसे लोग अपनी फिल्म के रिलीज के लिए अमेजौन और नेटफ्लिक्स नाम जानते हैं.

पर सवाल यह है कि इंस्टाग्राम के फालोवअर्स कितने जायज है और उनमें से कितने भारतीय हैं,जो कि आपकी फिल्म देखने जाएंगे?

– पहले की तरह आज भी टैलेंट के आधार पर बहुत कम लोगों को काम मिलता है.पहले बाक्स आफिस के आंकड़े देखकर स्टार माना जाता था. सुना है कि उसमें भी घपले हुआ करते थे.एक बार मैने एक निर्देषक से कह दिया था कि अच्छा आप अच्छी अदाकारा नही तलाश रहे हैं.
फिल्म के फ्लौप होने पर मत कहना कि यह बहुत बुरी कलाकार है. अच्छी षक्ल सूरत के साथ अभिनय प्रतिभा भी हो यह जरुरी नही है.
आप पहले टैलेंट को नजरअंदाज करते हैं,फिर रोते हो.

कभी आपके साथ ऐसा हुआ कि कोई फिल्म आपके हाथ से सिर्फ इसलिए चली गई?

-जी हां! दो बार हुआ था.पहले षरत जी के साथ फिल्म‘‘दम लगा के हाइशा’’ के लिए मेरी बात हुई थी.उन्होंने मुझसे वजन बढ़ाने के लिए कहा.मैंने उसे कहा कि अगर आप पक्का करते हो,कि मुझे फिल्म मिलेगी,तो मैं अपना वजन बढ़ा लूंगी.पर मैं वजन बढ़ा लूं, उसके बाद आप सौरी मत कह देना. तो बात खत्म हो गयी. इसी तरह फिल्म ‘‘बैंड बाजा बारात’’ के तमिल रीमेक के लिए मुझसे बात की गयी. पर बाद में वजन को लेकर बात नही बनी थी.

फिल्म‘‘उजड़ा चमन’’में मेन लीड करने के बाद आपने फिल्म‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’में दूसरे हीरो की बहन का किरदार क्या सोचकर स्वीकार किया?

-पहली बात तो इसमें न कोई हीरो है और न कोई हीरोईन. यह फिल्म दो समलैंगिक पुरूषों की प्रेम कहानी है. दूसरी बात मुझे इसकी स्क्रिप्ट व मेरा किरदार पसंद आया. मैने यह फिल्म ‘‘उजड़ा चमन’’ के प्रदर्शन से पहले ही साइन कर ली थी. मेरी राय में इस फिल्म के बाद लोग खुलकर ‘गे’ पर बात करेंगे.

फिल्म के अपने किरदार को कैसे परिभाषित करेंगी?

-मैने इसमें अमन की बहन गौगल त्रिपाठी का किरदार निभाया है, जो कि हमेशा चश्मा पहनकर रहती है. उसकी नजर में बिना शादी उसका कोई वजूद नही है.वह चाहती है कि किसी तरह उसकी शादी हो जाए. अब उसे इस बात से फर्क नही पड़ता कि किससे और कैसे शादी होती है. इस फिल्म में हर किरदार प्यार की बात कर रहा है.

फिल्म की कहानी होमोसेक्सुअलिटी को लेकर है.इसमें आपके कैरेक्टर की कितनी अहमियत है?

-गौगल अपने परिवार की इकलौती  सदस्य है, जो अपने समलैंगिक भाई अमन को उनको सपोर्ट करती है. बाकी किसी को भी होमोसेक्सुआलिटी समझ में नहीं आता. यह सभी अमन के खिलाफ हैं. पर वह भाई के साथ है. उसे लगता है कि मेरा भाई कुछ गलत तो नहीं कर रहा. प्यार ही तो कर रहा है.

अब होमोसेक्सुअलिटी को लेकर कानून बन गया है. सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मंजूरी दे दी है. ऐसे मे अब इस फिल्म की कितनी अहमियत है?

-मेरी राय में कानून बदने के बाद बौलीवुड की यह पहली मेन स्ट्रीम फिल्म है, जिसकी आज ज्यादा जरुरत है. यह फिल्म लोगो के बीच जागरूकता पैदा करेगी. पर मैं यह दावा नही कर रही कि इस एक फिल्म से ही हर इंसान का माइंड सेट बदल जाएग.लेकिन लोगों के बीच इस पर बातचीत शुरू होगी. एक बेटा या बेटी अपने माता पिता से इस मुद्दे पर खुलकर बात कर सकेगा. दोस्तों व पड़ोसियों के बीच बात होगी. तो माता पिता को गे की स्वीकृति की लड़ाई है.

निजी जिंदगी में आपके लिए प्यार क्या है?

– मैंने लाइफ में प्यार तो बहुत सारा किया है. हर तरह का प्यार है. एक प्यार आपका आपके बेस्ट फ्रेंड के साथ होता है.एक प्यार मम्मी पापा के साथ. एक प्यार भाई व बहन के बीच होता है. मेरे लिए एक ही प्यार है.यही बात मुझे नीना गुप्ता जी ने भी सिखाया. यह सच है. पूरे संसार में एक ही प्यार है जो सच्चा है अनकंडीशनल है वह है माता पिता का बच्चों के प्रति या बच्चे को माता पिता के प्रति. क्योंकि अगर आप खून भी कर के अपने माता पिता से सच बयां करोगे तो भी वह स्वीकार कर लेंगे.उनका प्यार कम नहीं होगा. लेकिन बॉयफ्रेंड या बेस्ट फ्रेंड के साथ ऐसा नहीं होता हैं,वहां हमेशा एक षर्त रहती है.मसलन तुमने मुझे उपहार नहीं दिया? तुम उस लड़की से बात क्यों कर रहे हो? तुम ऐसा क्यों कर रहे हो ?तुम मुझे स्पेशल फील नहीं करवाते हो? वगैरह..वैसे सच यह है कि मेरा कोई ब्वौयफ्रेंड नही है.

सोशल मीडिया पर क्या लिखना पसंद करती है?

-जो भी अच्छे ख्याल आते हैं,वह सब लिख देती हूं. हमेशा पौजीटिव बातें ही करती हूं.निजी जीवन में मैं बहुत ज्यादा पौजीटिव हूं .

Shubh Mangal Zyada Saavdhan: जानें क्यों खुद को ‘गृहशोभा मैन’ कहते हैं आयुष्मान खुराना

समाज में टैबू समझे जाने यानी कि वर्जित विषयों के पर्याय बन चुके और ‘‘अंधाधुन’’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर चुके अभिनेता आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) के लिए कहानी व किरदार ही मायने रखते हैं. इतना ही नहीं आयुष्मान खुराना खुद (Ayushmann Khurrana) को ‘‘गृहशोभा मैन’’ (Grihshobha Man) कहते हैं, क्योंकि जिस तरह से ‘गृहशोभा’ पत्रिका में हर वर्जित विषय पर खुलकर बात की जाती है, उसी तरह वह अपनी फिल्मों में वर्जित विषयों पर खुलकर बातें करते नजर आते हैं. इन दिनों वह आनंद एल रौय और टीसीरीज निर्मित तथा हितेष केवल्य निर्देषित फिल्म ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ (Shubh Mangal Zyada Saavdhan) को लेकर अति उत्साहित हैं, जिसमें दो समलैंगिक पुरूषों की प्रेम कहानी है. प्रस्तुत है ‘‘गृहशोभा’’ (Grihshobha) पत्रिका के लिए आयुष्मान खुराना से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश

आप अपने आठ वर्ष के करियर में किसे टर्निंग प्वाइंट मानते हैं?

-सबसे पहली फिल्म ‘‘विक्की डोनर’’मेरे कैरियर की टर्निंग प्वाइंट थी. उसके बाद ‘‘दम लगा के हईशा’’टर्निंग प्वाइंट थी. यह फिल्म मेरे लिए एक तरह से वापसी थी. क्योंकि बीच के 3 साल काफी गड़बड़ रहे. ‘‘दम लगा के हाईशा’’के बाद ‘‘अंधाधुन’’टर्निंग प्वाइंट रही. जिसने मुझे सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्ीय पुरस्कार दिलाया. फिर फिल्म‘आर्टिकल 15’भी एक तरह का टर्निंग प्वाइंट था. इस फिल्म के बाद एक अलग व अजीब तरह की रिस्पेक्ट /इज्जत मिली. फिल्म‘‘आर्टिकल 15’’में मैने जिस तरह का किरदार निभाया,उस तरह के लुक व किरदार में लोगों ने पहले मुझे देखा नहीं था.  फिर जब फिल्में सफल हो रही हों,तो एक अलग तरह की पहचान मिल जाती है. मुझे आपका,दशकों से, क्रिटिक्स से भी रिस्पेक्ट मिल रही है. यह अच्छा लगता है.

ये भी पढ़ें- Valentine’s Day पर मोहेना कुमारी ने पति के लिए लिखा ये रोमांटिक मैसेज, 4 महीने पहले हुई थी शादी

‘‘अंधाधुन’’के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के बाद आपके प्रति फिल्मकारो में किस तरह के बदलाव आप देख रहे हैं?

-फिल्म‘‘अंधाधुन’’ ने बहुत कुछ दिया है. मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. यह फिल्म चाइना में बहुत बड़ी फिल्म बनी. बदलाव यह आया कि अब लोग मुझे अलग नजरिए से देखते हैं. मुझे रिस्पेक्ट देते हैं. अब दर्शक भी जदा इज्जत दे रहे हैं. जब मैं पत्रकारों से मिलता हूं, तो अच्छा लगता है. क्योंकि ‘अंधाधुन’ एक ऐसी फिल्म है, जिसे मैंने खुद जाकर मांगी थी.

आप अक्सर कहते है कि आप ‘गृहशोभा मैन’हैं. इसके पीछे क्या सोच रही है?

-कई लोगों ने मुझसे कहा कि मैं तो ‘गृहशोभा’ पत्रिका हूं. उनका कहना था कि मैं जिस तरह के विषय वाली फिल्में सिलेक्ट करता हूं, वह इतने निजी होते हैं, जिस पर आप खुलकर बात करने से कतराते नही हैं. पर आप ‘गृहशोभा’ पत्रिका की तरह खुल कर बात करते हैं. आप ‘गृहशोभा’ के लिए लिखते हैं,तो कितनी मजेदार लाइफ है आपकी.

आपने वर्जित विषयों पर आधारित फिल्में की, जिन पर लोग बात करना तक पसंद नहीं करते. जब आपने यह निर्णय लिया था, तो आपके घर में किस तरह की प्रतिक्रिया मिली थी?

-मेरा पूरा कैरियर रिस्क पर बना है. बाकी कलाकार जिन विषयों को रिस्की मानते हैं,उन्हीं विषयों पर बनी फिल्में कर मैंने अपना कैरियर बनाया. इस तरह की रिस्क मैं आगे भी लेता रहूंगा. मतलब मैं रिस्क ना लूं, ऐसा कैसे हो सकता है. कई लोगों के लिए समलैंगिकता विषय पर फिल्म एक रिस्क है. पर मुझे लगता है कि आज के दौर में इसकी जरूरत है.  सुप्रीम कोर्ट ने भी सेक्शन 377 को जायज ठहरा दिया है. देखिए ‘गे’ लोगो की अपनी निजी जिंदगी है.

‘‘शुभ मंगल सावधान’’ भी एक वर्जित विषय पर थी. इसके प्रर्दशन के बाद किस प्रतिक्रिया ने ज्यादा संतुष्टि दी?

-ऐसी तो कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. पर फिल्म हर किसी को बहुत अच्छी लगी थी. वास्तव में हमारी धारणा होती है कि हीरो को ऐसा होना चाहिए. मर्दांनगी को लेकर हमने अपनी एक धारणा बना रखी है, जो कि हमारे देष में बिस्तर तक की सीमित होती है. इस फिल्म में मर्दांनगी को लेकर लोगों की सोच पर एक कटाक्ष था. उस सोच पर एक तरह का प्रहार था,जो कि बहुत सफल भी रहा. फिल्म के प्रदर्षन के बाद उस पर लोगों ने खुलकर बात करना भी शुरू किया. लोगों की समझ में आया कि खांसी या जुखाम की तरह इसका भी इलाज किया जा सकता है. अब लोग इसका इलाज करने लगे है. कुछ लोग मुझसे मिले और इस विषय पर फिल्म करने के लिए मेरा शुक्रिया अदा किया. पर खुले में किसी ने कुछ नही कहा. पर मेरे पास आकर जरूर बोलते थे.

मतलब अभी भी वह टैबू बना हुआ है?

-जी हां!! अभी भी वह टैबू बना हुआ है. पर फिल्म के प्रदर्शन के बाद कुछ तो बातचीत हुई. हमने पहला कदम उठाया.

होमोसेक्सुआलिटी जैसे विषय पर अपनी नई फिल्म‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’को आप पारिवारिक फिल्म मानते हैं. जबकि इस तरह के विषय में अश्लीलता आने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं. ऐसे में बतौर कलाकार  स्क्रिप्ट सुनते वक्त आपने किस बात पर ध्यान दिया?

-फिल्म के निर्माता आनंद एल राय पारिवारिक फिल्म के लिए जाने जाते हैं. जब वह आपके साथ हों, तो आपको इतनी चिंता की जरूरत नहीं होती. जब मुझे आनंद एल राय की तरफ से इस फिल्म का आफर मिला,तो मुझे यकीन था कि वह पारिवारिक फिल्म ही बनाएंगे. इसके बावजूद मैं स्क्रिप्ट जरुर सुनता हूं. स्क्रिप्ट सुनते समय मैं इस बात पर पूरा ध्यान देता हूं कि फिल्म में क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए.  इस फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे आप परिवार के साथ बैठकर न देख सकें. वैसे भी अब तो बच्चे बच्चे को पता है कि समलैंगिकता क्या होती है. पर इसे अपनाना जरूरी है.
देखिए,समलैंगिकता ऐसा नहीं है कि आप एक दिन सुबह सोकर जगे और आपको ऐसा लगा कि मैं ‘गे’ब न जाऊंगा. ऐसा होता नहीं है. बचपन से आपकी वही सोच होती है,जो आपको पसंद है. वही आपको पसंद है. हर युवक लड़के या लड़कियां या कुछ लोग दोनों पसंद करते हैं.  लेकिन यह आपकी निजी जिंदगी है,आप जिसका चयन करना चाहें, उसका चयन करें. आपकी जिंदगी में अगर उससे फर्क नहीं पड़ता है,तो फिर दूसरों को क्या तकलीफ?

जैसा कि आपने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 377 को कानूनी जामा पहना दिया है. तो अब आपकी यह फिल्म कितनी महत्वपूर्ण हो गई है?

-मेरी राय में यह ह्यूमन राइट की बात है. ‘गे’ लोगों को ‘बुली’ किया जाता है. बचपन से इनका मजाक उड़ाया जाता है. बचपन से इनको नीची नजरों से देखा जाता है. तो हमारा और हमारी फिल्म का मकसद उनमें समानता लाना जरूरी है. यह फिल्म भी फिल्म ‘आर्टिकल 15’ की तरह से ही है. एक तरह से देखा जाए, तो यह उसका कमर्शियल वर्जन है. फिल्म ‘‘आर्टिकल 15’’में पिछड़े वर्ग को समानता दिलाने की बात है. यहां हम होमोसेक्सुआलिटी की बात कर रहे हैं. लेकिन यह कमर्शियल और पारिवारिक फिल्म है. जबकि ‘‘आर्टिकल 15’’कमर्शियल नहीं थी. वह डार्क थी. जबकि ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ कॉमेडी फिल्म है. यह फिल्म इंसानों के बीच समानता को जरूरी बताती है. फिर चाहे जैसा इंसान हो,चाहे जिस जाति का और  जिस सोच का भी हो.

फिल्म ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ की स्क्रिप्ट पढ़ने पर किस बात ने आपको इसे करने के लिए प्रेरित किया?

-सबसे पहले तो इसका विषय समसामायिक और बहुत अच्छा है. मेरी राय में होमोसेक्सुअलिटी पर आज तक कोई भी अच्छी फिल्म नहीं बनी है. जो बनी हैं, वह पूर्ण रूपेण कलात्मक रही,जो कि दर्षको तक पहुंचने की बजाय केवल फिल्म फेस्टिवल तक सीमित रही. जबकि हमारा हिंदुस्तान इस तरह की फिल्में देखने के लिए तैयार है.
दूसरी बात इस फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ते समय मुझे फिल्म ‘‘ड्रीम गर्ल’’की शूटिंग के वक्त का आंखों देखी घटना याद आयी. मैं मथुरा जैसे छोटे षहर में रात के वक्त शूटिंग कर रहा था. मैने देखा कि पार्किंग में दो लड़के एक दूसरे को ‘किस’कर रहे हैं. तो मेरे दिमाग में बात आयी कि भारत इसके लिए तैयार है. क्योंकि खुले में कभी भी लड़के या लड़कियों का ‘किस’नहीं होता है. मुंबई में ऐसा हो सकता है,पर छोटे शहरों में संभव नही. तो मैंने कहा कि हम इसके लिए तैयार तो हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कानूनन मंजूरी दे ही दी है. मैंने खुले में भी देख लिया हैं. इसलिए इसके ऊपर फिल्म बनाई जा सकती हैं. जब से मैने दो लड़को को ‘किस’करते हुए देखा था,तब से मैं ‘होमोसेक्सुआलिटी के विषय को  एक्स्प्लोरर कर रहा था. फिर मुझे पता चला कि हितेश जी इसी विषय पर फिल्म लिख रहे है,तो मैने उनसे कहा था कि स्क्रिप्ट पूरी होने पर मुझे सुनाएं. जब उन्होने स्क्रिप्ट सुनाई,तो मुझे तो बहुत फनी लगी.  इस विषय की फिल्म का फनी होना बहुत जरूरी है. अगर फिल्म गंभीर हो जाएगी,तो लोग इंज्वॉय नहीं कर पाएंगे और हम जो बात कह रहे हैं,वह वहां तक पहुंची नहीं पाएगी.  इसी विषय पर इससे पहले बनी गंभीर होने के चलते ही सिर्फ फेस्टिवल में ही दिखाई गई है. फिल्म फेस्टिवल में इस तरह की फिल्मों के दर्शक ‘गे’ समलैंगिक या समलैंगिकों के साथ खड़े रहने वाले लोग ही रहे. जबकि हमें यह फिल्म उनको दिखानी है,जो ‘गे’ समलैंगिकता के विरोध में हैं. इन तक हम तभी अपनी फिल्म को पहुंचा सकते हैं, जब हम इन्हें मनोरंजन दें. फिर पता भी नहीं चलेगा कि कैसे उन तक संदेश पहुंच जाता है. तो वही चीज हमने भी इस फिल्म के जरिए सोचा है.

ये भी पढ़ें- Mohsin Khan ने Shivangi Joshi के बिना मनाया वेलेंटाइन डे, ‘नागिन’ एक्ट्रेस ने यूं थामा हाथ

इस फिल्म के अपने किरदार को कैसे परिभाषित करेंगें?

-मैने इसमें कार्तिक का किरदार निभाया है, जो कि समलैंगिक है और उसे एक अन्य समलैंगिक युवक अमन से प्यार है.

इस फिल्म के अपने किरदार को निभाने के लिए किस तरह के मैनेरिज्म या बौडी लैंगवेज अपनायीं?

-हमने यह दिखाया है कि हाव भाव कोई जरूरी नहीं है कि लड़कियों की तरह हों. रोजमर्रा की जिंदगी में आप किसी भी आदमी को देख सकते हैं, जो समलैंगिक हो सकता है. एक नजर में आपको नही पता चलेगा कि सामने वाला समलैंगिक है. यह कटु सच्चाई भी है. यही बात हमारी फिल्म के अंदर भी है. हमने कुछ भी स्टीरियोटाइप नहीं दिखाया है कि यह हाव भाव होना चाहिए. लड़कियों की तरह बात करता है,कभी-कभी ऐसा होता भी है,पर जरूरी नहीं है.  मैं फिल्में कम देखता हूं. किताबें ज्यादा पढ़ता हूं. मैं एक अंग्रेजी किताब पढ़ रहा हूं ‘लिव विथ मी. ’यह किताब मैंने पढ़़ी है,जो कि ‘गे’लड़कों की कहानी है. इस किताब से मैंने कुछ चीजें कार्तिक के किरदार को निभाने के लिए ली हैं.

इसके अलावा भी आपने कुछ पढ़ने की यह जानने की कोशिश की है?

-जी हां!हमारी फिल्म इंडस्ट्री में भी काफी समलैंगिक लोग हैं. फैशन इंडस्ट्री में भी हैं. यॅंू तो हर जगह हैं और होते हैं. पर इस तरह के लोगों को हमारी इंडस्ट्री में ज्यादा स्वीकार किया जाता है. कॉरपोरेट में भी होते हैं,लेकिन वहां वह खुलकर आ नहीं पाते. वहां वह बंधन में महसूस करते हैं. जबकि हमारी फिल्म इंडस्ट्री बहुत खुली है. यहां आप जैसे हैं,वैसे रहिए.  यह बहुत बड़ी बात है. इस बात को मुंबई आने के बाद से तो मैं जानता ही हॅूं. आप तो मुझसे पहले से मुंबई में हैं और फिल्लम नगरी में सक्रिय हैं,तो आप ज्यादा बेहतर ढंग से जानते व समझते हैं.
जब मैं कौलेज में पढ़ रहा था,तब हमारे कौलेज में ‘‘गे’’क्लब हुआ करता था. एक दिन मुझे इस ‘गे’क्लब के अंदर गाना गाने के लिए बुलाया गया. उन्होंने मुझसे कहा कि,‘हम सभी को आपका गाना बहुत पसंद आया है. आप हमारे क्लब में आकर गाना गाइ. ’आप यकीन नहीं करेंगे,पर उनकी बात सुनकर मैं डर गया था. मैंने कह दिया था कि यह मुझसे नहीं हो पाएगा. मैं आप लोगों से नहीं मिल सकता. पर आज मैं उन्ही ‘गे’/ समलैंगिक लोगों के साथ खड़ा हूं. तो समय के साथ यह बदलाव मुझमें भी आया है. मैं चाहता हूं कि यही बदलाव देश के बाकी लोगों में भी आ सके.

बदलाव हो रहा है?

-जी हां! हमारी इस फिल्म के अंदर भी वही है कि जब दो इंसान प्यार करते हैं, भले वह लड़के लड़के हांे या लड़की लड़की हो,इस पर यदि इन दोनों की निजी एकमत है,तो इन्हें अपने हिसाब से जिंदगी जीने देना चाहिए.
हम पटना गए थे. वहां हमसे किसी पत्रकार ने पूछा यदि यह होगा तो वंश कैसे आगे बढ़ेगा? मैंने कहा कि,‘सर आपको जिंदगी जीने के लिए वंश की पड़ी है. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा?आप बच्चे को गोद ले सकते हैं?इसके अलावा अब तो  बच्चे पैदा करने के लिए कई वैज्ञानिक तकनीक आ गयी हैं,जिससे आप बच्चा कर सकते हैं. इस तरह की सोच को बदलना जरूरी है. यह सोच रातों रात नहीं बदलेगी,वक्त लगेगा. लेकिन पहला कदम हम ले चुके हैं.

आप अपनी तरफ से क्या करना चाहेंगे कि इंसानी सोच बदल सके?

-मैं तो फिल्मों के जरिए ही कर सकता हूं. मैं एक्टिविस्ट नहीं हूं. मैं हर मुद्दे पर फिल्म के जरिए ही बात करता रहूंगा. एक्टिविस्ट बनने का निर्णय आपका अपना होता है. मैं समाज में जो भी बदलाव लाना चाहता हूं,उसका प्रयास अपनी कला के जरिए ही करना चाहता हूं. मुझे लगता है कि जो आप चैराहे पर खड़े होकर नहीं कर सकते हैं,उसे आप फिल्म के जरिए ज्यादा बेहतर ढंग से कर सकते हैं. एक अंधेरे कमरे में फिल्म इंसान को हिप्नोटाइज कर लेता है. आपको अपने अंदर ले जाता है और आपको समझा देता है. फिल्म के साथ भावनात्मक रुप से आप जुड़ जाते हैं. फिल्म के जरिए रिश्ता जो बन जाता है.

इस फिल्म को देखने के बाद दर्शक अपने साथ क्या लेकर जाएगा?

-सबसे पहले तो दर्शक अपने साथ मनोरंजन लेकर जाएगा. फिल्म देखते समय बहुत ठहाके लगेंगे. इस फिल्म में दिखाया गया है कि एक छोटे आम मध्यम वर्गीय परिवार को जब  पता चलता है कि उनका बेटा ‘गे’/समलैंगिक है, तो वह इसे किस तरह से लता है. उसके इर्द -गिर्द कैसा मजाक होता है? फिर वह परिवार कैसे इसे स्वीकार करता है.

आपके लिए प्यार क्या मायने रखता है?

– मुझे लगता है दोस्ती सबसे बड़ी चीज होती है. अगर आपकी बीवी आपके दोस्त नहीं है, उनका साथ आपको अच्छा नहीं लगता,तो आपकी उनसे कभी नहीं निभ सकती. आकर्षण तो कुछ वर्षों का होता है. उसके बाद तो दोस्ती होती है. आप कितने कंपैटिबल है. आपको साथ में फिल्में देखना अच्छा लगता है या एक ही तरह की किताबें पढ़ना अच्छा लगता है या एक ही तरह के गाने सुनना अच्छा लगता है. जब तक यह ना हो तब तक प्यार नहीं बरकरार रहता. शाहरुख खान साहब ने बोला कि प्यार दोस्ती है,तो सही कहा है.

ये भी पढ़ें- BIGG BOSS13 के फिनाले के बाद पारस छाबड़ा के साथ मिलकर स्वयंवर रचाएगी शहनाज गिल

इस बार वैलेंटाइन डे की कोई प्लानिंग है?

-मैं वैलेंटाइन डे में विश्वास नहीं रखता. मुझे लगता है कि यह तो सिर्फ कार्ड और फूल बेचने के लिए एक मार्केटिंग का जरिया है. प्यार तो आप रोज कर सकते हैं,उसके लिए एक दिन रखने की क्या जरूरत है? जितने भी दिन बने हुए हैं,वह सिर्फ फूलों और केक की बिक्री के लिए बने है,इसके अलावा कुछ नहीं है.

आप लेखक व निर्देषक कब बन रहे हैं?

-अभी तो नहीं. . . जब तक लोग मुझे कलाकार के तौर पर देखना चाहते हैं,तब तक तो एक्टिंग ही करूंगा.  क्योंकि अभिनय करना बहुत आसान काम है. लेखन व निर्देषन बहुत कठिन काम है.

वेब सीरीज करना चाहते हैं?

-ऐसी कोई योजना नहीं है. पर अगर कुछ अलग व अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो,तो बिल्कुल करना चाहूंगा.

सोशल मीडिया पर क्या लिखना पसंद करते हैं?

-सोशल मीडिया पर कभी कविताएं लिख देता हूं. कभी मैं अपनी फिल्म के संबंध में लिख देता हूं. ऐसा कुछ नियम नहीं है कि क्या लिख सकता हूं. आजकल तो फिल्म ही प्रमोट कर रहा हूं.

कभी आपने यह नहीं सोचा कि किसी एक विषय को लेकर लगातार कुछ न कुछ सोशल मीडिया पर लिखते रहें?

-पहले ब्लौग लिखता था. मैं कुछ ना कुछ लिखता रहता था. पर अब समय नहीं मिलता है. लिखना तो चाहता हूं,पर समय नहीं मिलता है. क्योंकि आजकल लगातार फिल्म की शूटिंग कर रहा हूं.

NEENA GUPTA INTERVIEW: ‘बौलीवुड में टैलेंट की कद्र हमेशा से कम रही है’

38 वर्ष के अभिनय कैरियर में नीना गुप्ता (Neena Gupta) की जिंदगी में ऐसा वक्त भी आया था, जब फिल्मकारों ने उन्हे तवज्जो देनी बंद कर दी थी. तब नीना गुप्ता (Neena Gupta)  ने इंस्टाग्राम पर लिखा था कि मैं अभी भी अच्छी अभिनेत्री हूं और मुंबई में ही रहती हूं. नीना गुप्ता (Neena Gupta) की इंस्टाग्राम की इस पोस्ट के बाद उन्हें ‘‘बधाई हो’’(Badhai Ho) सहित कई फिल्में मिली और इन दिनों नीना गुप्ता (Neena Gupta)  एक बार पुनः अति व्यस्त हो गयी हैं. इन दिनों वह हितेश केवल्य निर्देशित फिल्म ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ (Subh Mangal Zyada Saavdhan) को लेकर चर्चा में हैं. इस फिल्म में नीना गुप्ता ने अपने ‘गे’ बेटे अमन (जीतेंद्र कुमार) की मां सुनयना का किरदार निभाया है.

सवाल- लोग कह रहे हैं कि सोशल मीडिया बहुत डैंजरस है. मगर आपके कैरियर की दूसरी शुरूआत सोशल मीडिया के ही चलते हो पायी. ऐसे में आप क्या कहना चाहेंगी?

-यह भी सच है कि सोशल मीडिया बहुत डैंजरस है, मगर मुझे तो सोशल मीडिया से बहुत फायदा हुआ. अभी भी हो रहा है. पर डैंजरस यूं है कि कई बार हम इमोशन में या गुस्से में कुछ लिख देते हैं, जो कि लोगों को पसंद नहीं आता,फिर हमें नुकसान हो जाता है. कई लोगों को नुकसान हुआ है. मैंने भी कुछ दिन पहले लिखा था कि ‘आई विश फिल्म ‘सांड़ की आंख’ में मुझे लिया गया होता.’तो इससे मुझे बहुत नुकसान हुआ. बात कहां की कहां फैल गयी. मैंने तो बस यूं ही लिखा था. इसलिए सोशल मीडिया का उपयोग बहुत सोच समझकर करना चाहिए.

सवाल- सोशल मीडिया पर किसी को भी ट्रोल करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है?

-यह आसान काम है. बस मोबाइल पर कुछ टाइप ही तो करना है. मेरी राय में हर किसी को सोशल मीडिया पर काफी सोच समझकर लिखना चाहिए. यदि मुझे ट्वीटर या फेसबुक या इंस्टाग्राम सूट नहीं कर रहा है, तो उससे दूरी बना लेनी चाहिए. यदि मुझे लगता है कि मेरा गुस्सा और मेरा इमोशन मेरे कंट्रोल में नही है, तो फिर सोशल मीडिया पर मत जाओ. यदि आप बैंलेंस कर सकते हो, तो लिखें. बेवजह किसी का विरोध करना या गाली देना उचित नही.

ये भी पढ़ें- 60 साल की उम्र में भी लाजवाब है नीना गुप्ता का स्टाइलिश अंदाज

सवाल- लेकिन सोशल मीडिया के चलते निर्माता व निर्देशक इंस्टाग्राम पर कलाकार के फॉलोअर्स की संख्या के आधार पर कलाकारों को काम देने लगे हैं. क्या यह सही तरीका है?

-मैं ऐसा नही मानती. इंस्टाग्राम के आधार पर फिल्म में किरदार नहीं मिलते हैं. इसके आधार पर कलाकार को ‘एड’मिलते हैं. आपको गिफ्ट मिलते हैं. आपको फ्री घूमने का मौका मिलता है. गिफ्ट वाउचर मिलते हैं. आपको फ्री एयर टिकट मिलता है.

सवाल- आप सोशल मीडिया पर क्या लिखना पसंद करती हैं?

-मैं तो बहुत कुछ लिखना पसंद करती हूं, लेकिन कई बार चाहकर भी चुप रह जाती हूं. सोशल मीडिया का मिजाज समझ नहीं पा रही हूं. मैं यदि फ्राक में अपनी तस्वीर इंस्टाग्राम पर पोस्ट करती हूं, तो इतने लाइक्स मिल जाते हैं कि क्या कहूं. मगर जब मैने ढंकी हुई तस्वीर डाली, तो कोई उसे देखना नहीं चाहता. इसके बावजूद मैने एक सीरीज लिखनी शुरू की थी, जो कि कुछ समय से बंद है, फिर शुरू करने की सोच रही हूं. मैने सीरीज शुरू की थी- ‘‘सच कहॅूं तो..’’. इसके अंतर्गत मैं तीन चार मिनट फैशन, फिटनेस सहित विविध विषयों पर बोलती थी, पर इसमें कोई उपदेश नहीं देती थी. यह लोगों को बहुत पसंद आता था. इसका रिस्पॉंस अच्छा है. मुझे लगता है कि मुझे यह सीरीज लोगों को लगातार देते रहना चाहिए. लोगों को मेरी इस सीरीज का बेसब्री से इंतजार है. जल्द शुरू करने वाली हूं. मसलन इस सीरीज में एक दिन मैने कहा कि मुझे आज भी पटरे पर बैठकर बालती में पानी भरकर स्नान करना पसंद है. इसी तरह की चीजों पर बात करती रहती हूं.

सवाल- फिल्म ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ में भी आप मां के ही किरदार में हैं?

-उपरी सतह पर वह मां नजर आती है. मगर यह आधुनिक मां है, जो कि पूरे परिवार को लेकर चलती है. ‘बधाई हो’ के बाद यह कमाल की स्क्रिप्ट मुझे मिली है. जब इस फिल्म के लेखक व निर्देशक हितेश केवल्य ने मुझे स्क्रिप्ट सुनायी, तो मुझे स्क्रिप्ट इतनी पसंद आ गयी कि मैने कह दिया कि मुझे अभी की अभी यह फिल्म करनी है. यह कमाल की स्क्रिप्ट है. जब मैने स्क्रिप्ट सुनी, तो मुझे लगा कि यह स्क्रिप्ट हंसते खेलते बहुत बड़ी यानी कि होमोसेक्सुआलिटी पर बात कह रही है. धमाल फिल्म है, पर बहुत गंभीर बात कह रही है. मेरा एक एक संवाद मीटर में बंधा हुआ है. फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में कई किरदार हैं और हर किरदार का अपना ग्राफ है, हर किरदार की अहमियत है.

सवाल- फिल्म के अपने किरदार पर रोशनी डालना चाहेंगी?

-मैंने इसमें अमन त्रिपाठी (जीतेंद्र कुमार) और गौगल त्रिपाठी (मानवी गगरू ) की मां सुनयना त्रिपाठी का किरदार निभाया है. बहुत फनी है. पति के हिसाब से चलती है, तो वहीं वह अपनी बात भी कहती है. परिवार में सामंजस्य बैठाकर रखने का प्रयास करती है. मगर डफर नहीं है. सुनयना डोमीनेटिंग या बेचारी मां नही है, बल्कि कुछ अलग किस्म की है. अंततः वह अपने बेटे के साथ ही खड़ी नजर आती है.

सवाल- बतौर निर्देशक हितेश केवल्य की यह पहली फिल्म है.उनके साथ काम करने के आपके अनुभव क्या रहे?

-इस फिल्म के वह लेखक भी हैं, इसलिए सेट पर निर्देशन के दौरान वह आवश्यक बदलाव कर लेते थे. अगर सेट पर किसी कलाकार ने कुछ कहा तो वह उसकी बात पर गौर करते थे. उनका सेंस औफ ह्यूमर बहुत अच्छा व बहुत कमाल का है.

एक दिन मेरा एक सीन कहीं खत्म नहीं हो रहा था, मतलब मुझसे नहीं हो रहा था. हर सीन का एक सुर होता है, तो वह सुर बैठ नहीं रहा था, हितेश ने देखा और उसे तुरंत ऐसा इंप्रूव कर दिया कि मैं उनकी प्रतिभा की कायल हो गयी. बतौर निर्देशक उन्हे पता रहता था कि उन्हें क्या चाहिए.

सवाल- ‘म्यूजिक टीचर सही ढंग से प्रदर्शित भी नहीं हुई? इसे डिजिटल पर दे दिया गया.

-जी हॉ! अब फिल्म बनाना आसान हो गया है, पर उसे रिलीज कर पाना कठिन हो गया है. फिल्म रिलीज करने के लिए बहुत बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है. आपको याद होगा कि रमेश सिप्पी को भी अपनी फिल्म ‘‘शिमला मिर्च’’को डिजिटल पर ही रिलीज करना पड़ा. शायद अब हमारी फिल्म ‘‘ग्वालियर’’ भी डिजिटल प्लेटफार्म यानी कि ‘नेटफ्लिक्स’ पर आने वाली है. अब सिर्फ बड़ी कंपनियां ही अपनी फिल्में ठीक से रिलीज कर सकती हैं. एक बात यह थी कि ‘म्यूजिक टीचर’ में बड़े स्टार नहीं थे. मार्केटिंग में कई चीजे होती हैं. मैं तो यह भी मानती हूं कि फिल्म ‘‘बधाई हो’’ में यदि आयुश्मान खुराना और सान्या न होती तो फिल्म को सफलता न मिलती. नीना गुप्ता और गजराज राव को परदे पर देखने कोई नहीं आता.

ये भी पढ़ें- जल्द ही Priyanka Chopra के घर गूंजने वाली है किलकारी ,आने वाला है एक नन्हा मेहमान

सवाल- फिल्म‘‘ग्वालियर’’भी अब अमैजॉन यानी कि डिजिटल पर आएगी.मगर आपने इस फिल्म में अभिनय यह सोचकर किया था कि यह फिल्म ‘‘थिएटर’’में रिलीज होगी.पर अब यह थिएटर में नहीं हो रही है.तो बतौर कलाकार कितनी तकलीफ होती है?

-कम से कम यह प्रदर्शित हो रही हैं.पर उन फिल्मों की सोचिए,जो बिलकुल प्रदर्शित नहीं होती.अब मुझे लगता है कि मैं उन फिल्मों से दूर ही रहूं, जो रिलीज नही होती.जब फिल्म रिलीज नही होती,तो बहुत तकलीफ होती है.क्योंकि मेहनत उतनी ही जाती है. फिल्म ‘‘ग्वालियर’’ की शूटिंग करने से आप समझ लें कि मेरी जिंदगी के पांच साल कम हो गए होंगे. क्योंकि 45 डिग्री के तापमान में हम लोग रिक्शा में शूटिंग करते थे. सुविधाएं भी नहीं थी. क्योंकि यह छोटी फिल्म थी. मेरे पूरे शरीर में रैशेज हो गए थे. खुजलाते हुए मैं सीन करती थी. मैं बहुत कठिन समय से गुजरी थी. पर मुझे करने में मजा आया. अच्छा भी लगा. कोई शिकायत नहीं है. फिल्म ‘ग्वालियर’ पति पत्नी की एक बेहतरीन कहानी है, जिसमें मेरे साथ संजय मिश्रा है. मगर ऐसे में आप यह उम्मीद करते हैं कि फिल्म बहुत अच्छे से ढंग से रिलीज हो और ज्यादा से ज्यादा लोग देखें, लेकिन नेटफ्लिक्स और अमैजॉन के दर्शक काफी हैं. इसलिए अब मुझे इतना बुरा नहीं लगता,पर जो फिल्में बिल्कुल रिलीज नहीं होती, उस पर बुरा लगता है.

 

View this post on Instagram

 

Afterall, ’tis the season of love! Stay tuned for #AreyPyaarKarLe, out tomorrow!

A post shared by Neena ‘Zyada’ Gupta (@neena_gupta) on

सवाल- आप एक सीरियल लिख रही थीं, जिसका निर्माण व निर्देशन करना चाहती थी. उसकी क्या प्रगति है?

-आप ‘सांस 2’ की बात कर रहे हैं. उस पर काम चल रहा है पर अब मैं इसे ‘स्टार प्लस’ के लिए नहीं कर रही हूं. पहले ‘स्टार प्लस’ के लिए किया था. अब मैं किसी अन्य चैनल के लिए कर रही हूं. इस बार मैं इसे पूर्णेन्दु शेखर के साथ मिलकर लिख रही हूं.

स्टूडियो और कारपोरेट कंपनियों के आने से सिनेमा या टीवी को फायदा हुआ है या नुकसान हुआ है?

-टीवी को तो नुकसान हुआ है पर फिल्मों को फायदा हुआ है. टीवी को बहुत नुकसान हुआ है. डिजिटल प्लेटफार्म से फायदा हुआ है. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर छोटे छोटे लोग अच्छे कंटेंट को लेकर काम कर रहे हैं. डिजिटल प्लेटफार्म के चलते अब हमें 100 करोड़ की फिल्म बनाने की बाध्यता नही रही. अब 5 करोड़ की भी फिल्म बनाएंगे, तो भी दर्शको तक पहुंच जाएगी. हर किसी को अपने टैलेंट के साथ अपनी बात कहने का मौका मिला रहा है. लोगों के लिए यह बहुत अच्छी बात है. मैंने खुद भी दो लघु फिल्में की हैं.एक लघु फिल्म ‘‘पिन्नी’’का निर्देशन ताहिरा खुराना कश्यप ने किया है, जिसकी निर्माता गुनीत मोंगा हैं. मेरी एक लघु फिल्म ‘एडीशन सिंधी’ अभी ‘मिफ’ में दिखायी गयी है. ‘पिन्नी’ बहुत अच्छी फिल्म है, मुझ पर आधारित है.

सवाल- टैलेंट और पीआर दो अलग-अलग चीजें होती हैं.इस वक्त पीआर बहुत ज्यादा हावी हो गया है.तो आपको नहीं लगता कि टैलेंट की कद्र बहुत कम हो रही है?

– टैलेंट की कद्र तो हमेशा से कम थी. कम से कम अब पीआर की वजह से थोड़ी सी बेहतर हो रही है.

‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’के बाद कहां नजर आएंगी?

-‘अमैजॉन’पर मार्च माह में एक आठ एपीसोड का वेब शो ‘‘पंचायत’’ आएगा. इसमें मेरे साथ रघुवीर यादव और जीतेंद्र कुमार हैं. मुझे लगता है कि इस साल के अंत तक औस्कर मे नोमीनेट हुई फिल्म‘‘द लास्ट कलर’’भी प्रदर्शित हो ही जाएगी.मार्च अप्रैल में ही ‘‘नेटफ्लिक्स’’पर एक अति रोमांचक वेब सीरीज‘‘मासाबा मासाबा’’आएगी.यह वेब सीरीज मसाबा के जीवन पर है. मासाबा ने खुद एक्टिंग की है. मैंने इसमें उसकी मां का किरदार निभाया है.यह भी बहुत कमाल की बनी है.इसका निर्माण अश्विनी यार्डी तथा निर्देशन ‘खुजली फेम सोनम नायर ने किया.

ये भी पढ़ें- सिद्धार्थ शुक्ला से पहले ये 12 लोग बने चुके हैं Bigg Boss के Winner

सवाल- फिल्म‘‘83’’भी कर रही है ना?

-‘83’में मैंने ‘पंगा’से भी छोटा रोल किया है, इसलिए इसका नाम नहीं लेती. इसमें मैं क्रिकेटर कपिल शर्मा(रणवीर सिंह)की मां का किरदार कर रही हूं.अब उसकी मां लंदन गई नहीं थी.सिर्फ एक दिन मैंने शूटिंग की.पर एक दिन में भी मुझे बड़ी तृप्ति हो गई.कुल आठ बार पोशाक बदली है.

60 साल की उम्र में भी लाजवाब है नीना गुप्ता का स्टाइलिश अंदाज

बौलीवुड की बिंदास एक्‍ट्रेस नीना गुप्‍ता (Neena Gupta) इन दिनों अपने ग्‍लैमरस स्‍टाइल के लिए खूब सुर्खियां बंटोर रही हैं. शॉर्ट ड्रेसेस से लेकर वन शोल्‍डर मैक्‍सी ड्रेस और खूबसूरत एथनिक ड्रेसेस पहनकर नीना अपने स्‍टाइल से सभी को इम्‍प्रेस कर रही हैं.

इन दिनों नीना ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ (Shubh Mangal Zyada Saavdhan) प्रमोशन में बिजी हैं.  एक प्रमोशनल इवेंट के दौरान जब नीना (Neena Gupta) स्टाइलिश अंदाज में पहुंची, तो लोगों उन्हें देखते ही रह गए. बढ़ती उम्र में उनका स्टाइलिश अंदाज वाकई लाजवाब था लोग उनके स्टाइल के दीवाने हो गए .

 

View this post on Instagram

 

Soch rahi hu aur role milenge kya? ? @amrapalijewels Saree @houseofmasaba @smzsofficial #shubhmangalzyadasaavdhan

A post shared by Neena ‘Zyada’ Gupta (@neena_gupta) on

आपको बता दे नीना ने प्रोमोशनल इवेंट के दौरान पिंकी कलर की साड़ी पहनी थी. साड़ी के पल्ले पर ब्रॉन्ज और गोल्डन कलर का वर्क किया गया था, वहीं इस साड़ी के साथ उन्होंने  ब्लाउज पैंटगन नेक डिजाइन का  ब्लाउज पहना हुआ था. नीना गुप्ता (Neena Gupta) की यह साड़ी उनकी बेटी मसाबा गुप्ता के डिजाइन की हुई कलेक्शन की है.  नीना (Neena Gupta) ने इसके साथ कुंदन का हार और ईयररिंग्स पहने थे, जिस पर पर्ल वर्क भी था. जो  उनकी साड़ी के पल्लू के वर्क से बहुत मैच कर रही थी. साड़ी में धमाल मचा रही हैं नीना गुप्‍ता के देसी स्‍टाइल पर लोग खूब फिदा हो रहे है.

 

View this post on Instagram

 

Intzar aur abhi

A post shared by Neena ‘Zyada’ Gupta (@neena_gupta) on

ये भी पढ़ें- Valentine’s Special: ट्राय करें ‘Naagin-3’ की एक्ट्रेस के ये 5 लुक्स

कुछ समय से नीना गुप्ता इंस्‍टाग्राम अकाउंट में एक के बाद एक खूबसूरत साडि़यों में छाई रही. नीना ने अपने इंस्‍टाग्राम अकाउंट पर प्रिंटेड साड़ी के साथ एक खूबसूरत तस्‍वीर पोस्‍ट की. इस साड़ी को  भी उनकी डिजाइनर बेटी मसाबा ने डिजाइन किया था. ब्राउन कलर की इस साड़ी में खूबसूरत प्रिंट, देवनागरी और जियमेट्रिक पैटर्न बने थे. इस साड़ी को उन्‍होंने स्‍टेटमेंट चोकर और मैचिंग चूड़ियों से कम्‍पलीट किया.

इसके अलावा नीना गुप्‍ता ने मसाबा की इस मल्‍टी-कलर्ड फ्लोरल साड़ी को ड्रॉप ईयरिंग्‍स और स्‍टाइलिश हेयर स्‍टाइल से कम्‍पलीट किया.

नीना गुप्ता नए साल की शुरूआत में फिल्म ‘पंगा’ करने के बाद वह जल्द  फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में एक खास किरदार में नजर आएंगी.

 

View this post on Instagram

 

Trying a contrast

A post shared by Neena ‘Zyada’ Gupta (@neena_gupta) on

ये भी पढ़ें- Valentine’s Special: ट्राय करें 16 साल की ‘Patiala Babes’ अशनूर कौर के ये लुक्स

आयुष्मान की gay लव स्टोरी पर बनीं फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ का ट्रेलर रिलीज, देखें यहां

‘बधाई हो’ ‘अंधाधुन’ और ‘ड्रीम गर्ल’ जैसी फिल्मों से बौलीवुड में छाने वाले टौप एक्टर आयुष्मान खुराना की मोस्ट अवेटेड फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ का ट्रेलर रिलीज हो गया है. फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान का ट्रेलर रिलीज होते ही यूट्यूब पर छा गया है. जिसमें आयुष्मान एक बार फिर नए अवतार में नजर आ रहे हैं.

आपको बता दे आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ सामाजिक मुद्दे पर आधारित कॉमेडी फिल्म है. जो ‘गे’ लव स्टोरी पर आधारित है. बच्चे के गे होने का पता चलने पर फैमिली के साथ जो स्ट्रगल होता है. वह इसमें दिलचस्प तरीके से दिखाया गया है. इस फिल्म में आपको कुछ डबल मीनिंग वर्ड्स भी सुनाई देंगे.

ये भी पढ़ें- BIGG BOSS 13: हिमांशी के ब्रेकअप पर असीम को दोषी ठहराना सलमान को पड़ा भारी, फैंस ने कही ये बात

फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ का ट्रेलर रिलीज होते ही बस कुछ ही मिनटों में 15 हजार से ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं. फिल्म के ट्रेलर में आयुष्मान खुराना नाक में रिंग पहने नजर आ रहे हैं. नीना गुप्ता और गजराज एक बार फिर अपनी कॉमेडी से दर्शकों के दिल में खास जगह बना रहे हैं और जितेंद्र भी खास अंदाज में नजर आ रहे है.

‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ फिल्म के डायलॉग्स खास है. नीना गुप्ता और गजराज का ‘मां के पास दिल होता है’ डायलॉग सोशल मीडिया पर चर्चा में है. इसके अलावा ‘हमें परिवार के साथ जो लड़ाई लड़नी पड़ती है. वो सबसे बड़ी और खतरनाक होती है’ जैसे डायलॉग्स भी प्रभावित करते है.

आयुष्मान खुराना ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर इस बारे में ट्वीट भी किया था. उन्होंने सोशल मीडिया हैंडल पर इसके पोस्टर्स भी शेयर करने के साथ कैप्शन भी दिया है, कार्तिक का प्यार होकर रहेगा अमन! इस नए पोस्टर में इसकी कास्ट दिखाई दे रही है जिसमें नीना गुप्ता, गजराज राव, जितेंद्र कुमार, मनुऋषि चड्ढा, सुनीता रजवार, मानवी शामिल हैं.

ये भी पढ़ें- शक्ति-अस्तित्व के एहसास की में आएगा लीप, अपने अस्तित्व से अनजान, हीर बढ़ा रही है नई उम्मीदों की ओर कदम

उन्होंने फिल्म के दो पोस्टर रिलीज किए हैं. पहले पोस्टर में हम आयुष्मान खुराना और उनके फिल्म में पार्टनर जितेंद्र कुमार वेडिंग चेयर पर बैठे दिख रहे हैं और पूरा परिवार उनकी ओर देख रहा है. वहीं दूसरे पोस्टर में वह दिलवाले दुलहनिया ले जाएं का क्लाइमैक्स सीन इनऐक्ट करते दिखाई दे रहे हैं.

हितेश केवल्य ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ फिल्म के लेखक और निर्देशक हैं। डायरेक्शन के फील्ड में हितेश की यह डेब्यू फिल्म है. आनंद एल राय और भूषण कुमार इस फिल्म के निर्माता हैं. यह फिल्म 21 फरवरी को रिलीज होगी. इससे पहले आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ को लोगो ने काफी पसंद किया था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें