नपुसंक बना सकता है तम्बाकू और धूम्रपान, जानें कैसे

सभी जानते है कि हमारे देश में युवाओं की आबादी अधिक है, लेकिन आज की आधुनिक जीवन शैली और केयर फ्री स्वभाव का उनपर बहुत प्रभाव दिखता है, इसमें किसी भी खास अवसर हो या नाईट क्लब, युवाओं की एक बड़ी समुदाय उस पल को अच्छी तरह से जी लेना चाहते है, ऐसे में तम्बाकू और धुम्रपान लगातार चलता रहता है. इसकी लत इतनी ख़राब होती है कि चाहकर भी इससे बाहर निकल पाना मुश्किल होता है. इस तरह के नशे इतने ख़राब होते है कि इससे इनका शरीर घर-परिवार सब धीरे-धीरे ख़त्म हो जाता है.

इस बारें में एसआरव्ही हॉस्पिटल, चेंबूर मुंबई की हेड एंड नेक ओरल ऑन्कोसर्जनडॉ खोजेमा फतेहीकहते है कि तंबाकू केलगातार सेवन से कैंसर जैसी बिमारी के साथ-साथ मनुष्य को नपुंसक भी बना देता है, क्योंकितंबाकू के सेवन से दिमाग और नर्व सिस्टम कमजोर हो जाता है, इससे इंसान के दिमाग से लेकर सेक्स लाइफ पर असर पड़ता है. अगर इन बीमारियों से बचना है,तो इसकी लत को छोड़ने की जरुरत है.

मुंह के कैंसर में लगातार वृद्धि

एक सर्वे में यह पाया गया है कि भारत में तंबाकू सेवन से मुंह के कैंसर में लगातार वृद्धि हो रही है, जिसमें 90 प्रतिशत फेफड़ों के कैंसर और अन्य कैंसर का कारण धूम्रपान ही है. दरअसल अधिक धूम्रपान से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि धूम्रपान के कारण रक्तचाप में अचानक वृद्धि से हृदय को रक्त की आपूर्ति में कमी हो जाती है, इससे दिल का दौरा या स्ट्रोक हो सकता है. इसके अलावा तंबाकू और धूम्रपान की वजह से महिलाओं में गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है, जबकि पुरुषों में नपुंसकता का कारण बनता है.

तम्बाकू है क्या

असल में तंबाकू में चार हजार से अधिक रसायन होते है. इन रसायनों में निकोटीन एक ऐसा रसायन है, जो व्यक्ति को थोड़ी देर के लिए अच्छा महसूस करवाती है. इसलिए व्यक्ति  तंबाकू का सेवन करता है,निकोटिन के अलावा फिनाईल, नायटोअमाईड, डेनझिन, कार्बन मोनोऑक्साइडआदि होते है, जिससे व्यक्ति के शरीर पर इसका असर पड़ता है, जिसमें  मुंह, होंठ, जबड़े, फेफड़े, गले, पेट, गुर्दे और मूत्राशय का कैंसर होने की संभावना रहती है.

खतरनाक होते है केमिकल्स

डॉक्टर खोजेमा आगे कहते है कि तंबाखू एक ऐसा पदार्थ है, जिसमें कई ऐसे केमिकल है, जिसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर गलत असर पडता है और उन्हें कई रोगों का शिकार बनाने के अलावा नपुंसकता की ओर अग्रसर भी करता है.खासकर युवा वर्ग को इससे बचना होगा, क्योंकि 80 प्रतिशत युवा वर्ग इस दलदल में फंस चुका है. कुछ असर निम्न है,

होती है बांझपन

तम्बाकू सेवन करनेवालों को तम्बाकू न सेवनकरने वालों की तुलना में बांझपन का सामना करना पडता है. तंबाकू की वजह से अंडे और शुक्राणू की डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है. प्रजनन समस्याओं का सामना करने वाले पुरूषों के अलावा नशे की लत वाली महिलाओं में भी गर्भ धारण करने की संभावना कम हो जाती है, क्योंकि अंडे के खराब होने के पीछे निकोटीन, कार्बन मोनोऑक्साइड और साइनाइड मुख्य कारण होता है.

शीघ्र पतन की समस्या

अधिक धुम्रपान के कारण पुरूषों में नपुंसकता बढती है, उनके सेक्सुअल लाइफ पर असर पड़ता है. धुम्रपान से पुरूषों में शीघ्र पतन की समस्या भी शुरू हो जाती है.

आती है यौन क्षमता में कमी

तंबाकू का स्वाद बढाने के लिए जिस केमिकल का उपयोग किया जाता है.उससे व्यक्ति की शारीरिक क्षमता पर असर पडता है. अधिक मात्रा में इन तंबाकू का सेवन, धीरे-धीरे उसकी यौनक्षमता में कमी आ जाती है.

इलाज करें ऐसे

इस तरह की नशे से खुद को छुड़ाने के लिए किसी संस्था या डॉक्टर की सलाह लेना आवश्यक  है, किसी प्रकार की झाड़-फूंक और पूजा पाठ से बचें, ताकि आपको सही सलाह मिले और आप धुम्रपान और तम्बाकू से खुद को छुड़ाने में समर्थ हो.

अंत में यह कहना सही होगा कि तम्बाकू और धुम्रपान से रक्त वाहिकाओं के सिकुड़ने से स्नायुबंधन की कठोरता कम हो जाती है और नपुंसकता का खतरा रहता है. लत जितनी लंबी होगी, प्रभाव उतना ही अधिक होगा. इसलिए ऐसे पुरुषों को यौन समस्याओं का खतरा भी अधिक रहता है.इतना ही नहीं, तंबाकू उत्पादों में गुटखा भी पुरुष वीर्य में पुरुष शुक्राणु की गति को धीमा कर देता है, इससे पुरुषों में भी बांझपन होता है. अपने सेक्सुअल लाइफ को हानिकारक प्रभाव से बचाने के लिए तम्बाकू के आदी पुरुषों, जिसमे खासकर युवाओं को विशेष सलाह दी जाती है कि यदि आप एक पुरुष के रूप में अच्छी जिंदगी जीना चाहते है,तो तम्बाकू और गुटखा से दूर रहे.

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चाहती हैं खूबसूरत त्वचा तो करें इन आदतों से तौबा

सुन्दर चमकता हुआ चेहरा हम सभी को भाता हैं जिसके लिए हम कई तरह के घरेलू  उपचार व  ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल भी करते हैं.  लेकिन हमें अच्छा रिजल्ट नहीं मिल पाता. नतीजतन हम उन प्रोडक्ट्स को ही गलत समझ लेते हैं लेकिन कभी आपने सोचा है कि आपकी स्किन पर आपके डेली रूटीन का कितना गलत असर पड़ सकता है. तो चलिए  आज हम आपको मिलवाते हैं आपकी उन छोटी छोटी गलतियों से जो आपकी स्किन को तो डैमेज करती ही हैं साथ में आपके आत्म  विश्वास में भी कमी लाती हैं.  क्योंकि जब हमारी  लाख कोशिशों के बाद भी हमारी स्किन पर ग्लो नहीं आता तो यह हमारे व्यवहार पर नकरात्मक प्रभाव डालता है.

  1. सुबह उठते ही कॉफी पीने से करें परहेज

बहुत से लोगों की सुबह बिना एक कप गर्म कॉफी के होती ही नहीं. लेकिन  कॉफी हमारे शरीर को डिहाइड्रेट करती है. क्योंकि इसके सेवन से जल्दी जल्दी पेशाब आता है जिस कारण हमारे शरीर में पानी की कमी हो जाती है कॉफी आपकी त्वचा के माध्यम से आपके शरीर से टॉक्सिंस को बाहर निकालने में बांधा डाल सकती  है जिस कारण  समय से पहले झुर्रियां व काले घेरे हो सकते  हैं.

2. सनस्क्रीन हैं जरूरी

अक्सर हमारी आदत होती है कि यदि हम घर से बाहर जा रहे होते हैं तब ही हम सनस्क्रीन का प्रयोग करते हैं  लेकिन त्वचा को बेजान व बढ़ती उम्र के लक्षणो से बचाने के लिए हमें घर के भीतर भी सनस्क्रीन का उपयोग करना जरूरी होता हैं बेहतर होगा की किसी अच्छी कंपनी का सनस्क्रीन अपने डेली रूटीन में अवश्य इस्तेमाल करें.

3. सही नींद है जरूरी

हमें शरारिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में हमारी नींद बहुत ही सहायक होती है इसलिए  फाइन लाइन और डार्क सर्कल से बचना है तो रोजाना 7 से 8 घंटे की नींद अवश्य लें. साथ ही कोशिश करें की सीधे सोएं क्योंकि , दाहिने या फिर बाएं तरफ करवट लेकर सोने से त्वचा पर तनाव होता है, जिस कारण फाइन लाइन्स जल्दी उभरने लगती हैं व रेशेज की समस्या भी हो जाती है.

4. धूम्रपान से बचें

धूम्रपान हमारी सेहत के लिए बेहद नुकसान दायक है।इस बात को हम सभी जानते हैं लेकिन आज कल कुछ महिलाएं तो सिर्फ खुद को मॉडर्न सोच से जोड़ने  के लिए धूम्रपान  का सेवन करती हैं लेकिन  धूम्रपान का सेवन धीरे धीरे उनकी खूबसूरती को बर्बाद कर देता है कई बार शौक के लिए किया गया सेवन लत में तब्दील हो जाता हैं जो ना सिर्फ स्किन बल्कि जीवन बर्बादी का कारण बन जाता हैं इसलिए जरूरी हैं  की नशीले पदार्थो से तौबा करें.

5. स्विमिंग या नहाते समय दें ध्यान

वैसे तो स्विमिंग हमारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होती है और गर्मियों के मौसम में स्विमिंग करना सभी को भाता हैं लेकिन स्विमिंग पूल के पानी में मौजूद क्लोरीन स्किन पोर्स में जाकर इन्हें बंद कर देता है, जिससे  स्किन इंफेक्शन और टैनिंग की समस्या होने लगती है. वहीं सर्दियों में हमें गर्म पानी बहुत सुहाता हैं लेकिन कई लोग नहाने के लिए काफी ज्यादा गर्म पानी का इस्तेमाल करते हैं। जिससे त्वचा रूखी, बेजान और खुजली की समस्या होने लगती है.

वेपिंग का त्वचा पर क्या है असर, जाने स्किन एक्पर्ट डॉ श्वेता राजपूत से

शाम है धुआं – धुआं……., ये धुआं – धुआं सा रहने दो…….., दम मारों दम….. आदि न जाने कितनी ही हिंदी फिल्मों के गाने सालों से पोपुलर है, जिससे हमेशा नई पीढ़ी प्रभावित रही है और इसे ग्लैमर भी समझती रही है, लेकिन इस धुंए के पीछे उनके जीवन में आने वाली शारीरिक और मानसिक परेशानियां कई बार होते है, जिन्हें वे खुद ही सोल्व कर एक हेल्दी लाइफस्टाइल अपना सकते है, जो निम्न है.

दरअसल ट्रेडिशनल स्मोकिंग के हल्के विकल्प के रूप मानने की वजह से वेपिंग (ई-स्मोकिंग) का चलन पिछले कुछ बरसों में तेजी से बढ़ा है. खासकर, जेनरेशन-जेड के बीच इसका प्रचलन बहुत अधिक बढ़ चुका है.

इन्टरनेट की इस भागती दुनिया में आज के जेनरेशन काफी एडवांस हो चुकी है, बहुत कम लोगों को पता है कि जेनरेशन – Z क्या है. असल में ये कोई विदेशी भाषा नहीं, बल्कि आज के जेनरेशन को कहा जाता है. एक अमेरिकी संस्थान के मुताबिक वर्ष 1995 से वर्ष 2012 के बीच पैदा हुए बच्चों को जेनरेशन Z कहा जाता है.

इस बारें में डिश स्किन क्लीनिक के मेडिकल एडवाइजर, डीवीडी, एसोसिएट कंसल्टेंट, डॉ. श्वेता राजपूत कहती है कि आम सिगरेट से की जाने वाली स्मोकिंग में कमी के बावजूद, आंकड़ों से पता चलता है कि वेपिंग और स्मोकिंग  की दोनों आदतों के बीच मजबूत संबंध भी है. वेपिंग से अक्सर युवाओं को स्मोकिंग का रास्ता मिलता है और वेपिंग के शौकीन व्यस्कों में से लगभग आधे स्मोकिंग भी करने लगते हैं.

ये सही है कि स्मोकिंग के साथ सेहत के कई गंभीर खतरे जुड़े होते हैं. इनमें दिल और फेफड़ों की अनेक बीमारियों के अलावा फेफड़ों में होने वाले कैंसर के बारे में ज्यादातर लोगों को पता होता है. दि सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, केवल सिगरेट स्मोकिंग की वजह से ही रोजाना 1300 लोगों की मौत हो जाती है. इन्हें स्मोकिंग की लत न होती, तो इनकी जान भी नहीं जाती.

वेपिंग के भी लंबे समय में दिखाई देने वाले प्रभावों के बारे में रिसर्च जारी है, लेकिन अभी तक की रिसर्च से संकेत मिलता है कि ई-सिगरेट से निकलने वाले जहरीले रसायनों से गंभीर खतरे पैदा हो सकते हैं.

स्मोकिंग और वेपिंग (सेकंडहैंड एक्सपोजर सहित यानि स्मोकिंग न करने पर भी इसके धुएं के संपर्क में आना) का असर केवल फेफड़े पर ही नहीं, त्वचा पर भी पड़ता है.

त्वचा पर वेपिंग का असर

डॉ. श्वेता आगे कहती है कि वेपिंग के दौरान, केमिकल की कुछ मात्रा शरीर में पहुंचती है, जो फेफड़ों के नाजुक टिश्यू की नमी को आसानी से सोख लेते हैं. अगर धुआं लंबे समय तक शरीर के अंदर जाए, तो अनेक जहरीले तत्वों की मात्रा तेजी से बढ़ सकती है.

इसमें धुएं के साथ शरीर के अंदर इसका काफी समय तक रहना और किस तरह का वेप प्रयोग किया गया है आदि से तय होता है कि कश कितनी देर लिया गया और इसकी मशीन को कितनी बार प्रयोग किया गया. धुएं में मौजूद कुछ संभावित रसायनों में फॉर्मेल्डिहाइड, निकोटिन और इसके यौगिक, प्रोपलीन ग्लाइकोल, टॉल्युईन, एसिटैल्डहाइड के अलावा कैडमियम, निकल और लेड जैसे ट्रेस मेटल भी हो सकते हैं, जो त्वचा के लिए हानिकारक होते है.

इस तरह के जहरीले तत्वों को सांस से अंदर लेने का त्वचा पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. त्वचा को शरीर का एक खजाना माना जाता है, जिसमे शरीर के लिए जरूरी तत्व जमा होते रहते है, ऐसे में जहरीले तत्व भी त्वचा की परतों में जमा हो जाते हैं. इनकी मात्रा बहुत अधिक होने पर ये त्वचा की कोशिकाओं के सामान्य रूप से काम करने की क्षमता कम कर देते हैं, जिसमें स्किन – बैरियर की रिपेयरिंग का जरूरी काम भी शामिल होता है.

इसका सबसे अधिक प्रभाव यह देखने को मिलता है कि समय से पहले बुढ़ापे के लक्षण दिखने लग सकते हैं. इनके लक्षणों में ड्राईनेस, त्वचा पर छेदों का बड़ा हो जाना, त्वचा का लटकना, झुर्रियां, हाइपरपिग्मेंटेशन और त्वचा की असमान संरचना आदि होते है. सिगरेट और इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट (ई-सिगरेट) दोनों में पाए जाने वाले निकोटिन के असर से खून की नलियां तक सिकुड़ सकती हैं, इससे त्वचा को खून मिलना कम हो जाता है और त्वचा की सेहत बिगड़ने लगती है. कम उम्र में झुर्रियां पैदा होने लगती है. यह असर मात्र चेहरे की झुर्रियों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरे शरीर पर दिखाई देता है.

‘एक्सपेरिमेंटल डर्मेटोलॉजी’ में प्रकाशित स्टडी से पता चला है कि निकोटिन का संबंध घाव भरने में देरी और त्वचा पर समय से पहले बुढ़ापे के लक्षणों में तेजी से होना होता है. ‘साइंस न्यूज’ ने भी इस बारे में बताया है कि निकोटिन से कोशिकाओं की गतिविधियां असामान्य हो जाती हैं, जिससे त्वचा लटकने लगती है और उस पर झुर्रियां पड़ जाती हैं. निकोटिन के अलावा, वेपिंग के दौरान चेहरे पर आने वाले भाव, जिसमे खासतौर पर मुंह और आंखों का मूवमेंट भी चेहरे पर झुर्रियां पैदा करने में योगदान देते हैं.

स्किन कैंसर का भी खतरा   

डॉक्टर कहती है कि नॉन-स्मोकर्स की तुलना में स्मोकर्स को स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा का दोगुना खतरा होता है और मेलानोमा होने का खतरा भी बढ़ जाता है. ये दोनों ही स्किन-कैंसर के सामान्य प्रकार हैं. ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित विश्लेषण के अनुसार, ई-सिगरेट में फॉर्मेल्डिहाइड का स्तर आम सिगरेट्स के मुकाबले 15 गुना तक ज्यादा हो सकता है. ये भी सही है कि  फॉर्मेल्डिहाइड कैंसर के प्रमुख कारणों में से एक है.

वेपिंग छोड़ने से त्वचा की हालत में सुधार दिखाई देता है. इससे खून का बहाव तेज हो जाता है और कॉर्बन मोनोऑक्साइड का स्तर कम होता है. साथ ही, ऑक्सीजन, एंटीऑक्सीडेंट्स और त्वचा की नई कोशिकाएं बनने की प्रक्रिया सामान्य हो जाती है. वेपिंग बंद करने से त्वचा को आगे भी किसी नुकसान का डर नहीं रहता.

त्वचा में जल्दी सुधार लाने के टिप्स निम्न है,

  • त्वचा की देखभाल के विशेष तरीके अपनाने की जरुरत होती है.
  • दिन के समय एंटीऑक्सीडेंट विटामिन-सी सीरम और उसके बाद सनस्क्रीन लगाने से भी त्वचा को अधिक नुकसान पहुंचने से बचाया जा सकता है.
  • रात के समय विटामिन-ए सीरम का प्रयोग करने से कोलेजन का फिर से उत्पादन बढ़ता है, पिग्मेंटेशन कम होता है, स्किन-टेक्सचर की कमियां दूर होती हैं और तेल का नियंत्रण होता है.
  • जिन लोगों में वेपिंग की वजह से झुर्रियां और त्वचा लटकने का असर दिखाई देने लगा है, उन्हें वेपिंग छोड़ने पर सुधार की केवल ऐसी उम्मीद ही रखनी चाहिए, जो संभव हो. त्वचा की देखभाल के तमाम प्रयासों के बावजूद, इससे होने वाले नुकसान को पूरी तरह दूर करना अधिक संभव नहीं होता. ऐसे में स्किन स्पेशलिस्ट की सलाह लेना आवश्यक होता है.

इस प्रकार त्वचा को जवां रखने का सबसे अच्छा तरीका स्मोकिंग और वेपिंग से दूर रहना है. यह साबित भी हो चुका है कि इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स से झुर्रियां, समय से पहले बुढ़ापे और सेहत से जुड़ी कई परेशानियों के होने का खतरा रहता है.

मेरे पति की स्मोकिंग से क्या फेफड़ों को खतरा है?

सवाल-

मेरे पति चेन स्मोकर थे, लेकिन अब उन्होंने स्मोकिंग काफी कम कर दी है. क्या उन के लिए फेफड़ों के कैंसर का खतरा अभी भी है?

जवाब-

स्मोकिंग, लंग कैंसर का सब से प्रमुख रिस्क फैक्टर है. सिगरेट से निकलने वाले धुएं में कार्सिनोजन यानी कैंसर का कारण बनने वाले तत्त्व होते हैं जो फेफड़ों की सब से अंदरूनी परत बनाने वाली कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त कर देते हैं. आप के पति लगातार कई वर्षों तक धूम्रपान करते रहे हैं. इस से उन के फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंच चुका होगा. इसलिए उन के लिए फेफड़ों के कैंसर की चपेट में आने का खतरा धूम्रपान न करने वालों की तुलना में काफी अधिक है. जोखिम को कम करने के लिए उन्हें स्मोकिंग पूरी तरह छोड़ने और ऐसी आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करें जिन से उन के फेफड़े स्वस्थ रहें.

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वैसे तो सिगरेट से कैंसर होने का पता 4 दशक पहले चल गया था पर फिर भी आज भी सिगरेट्स इस कदर पी जा रही हैं कि हर साल 70 लाख लोग केवल धूएं के

कारण मरते हैं. फ्रांस में 34% लोग सिगरेट पीते हैं और भारत में 14% सिगरेटबीड़ी के आदी हैं. भारत का आंकड़ा कम इसलिए है कि यहां पानमसाले और खैनी में मिला कर तंबाकू ज्यादा खाया जाने लगा है.

वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन का कहना है कि सीमा में भी तंबाकू सेवन उसी तरह की गलतफहमी है जैसी कि शराब के बारे में है. थोड़े से सेवन से कुछ नहीं होता, नितांत गलत है. सिगरेट बीमारियां तो पैदा करेगी चाहे एक पीओ या 20. हां, कम पीने वालों के पास पैसे हों तो वे इलाज करा लेते हैं.

वैसे भी कम पीने का दावा करने वाले जब तनाव में होते हैं तो धड़ाधड़ पीने लगते हैं. उन्हें फिर कोई रोक नहीं पाता. दुनिया भर में 28 हजार अरब रुपए सिगरेट से होने वाले रोगों के इलाजों पर खर्च करे जाते हैं और टोबैको कंपनियां और व्यावसायिक अस्पताल इस लत का जम कर लाभ उठाते हैं.

घर में सिगरेट न घुसे यह जिम्मेदारी औरतों की है. उन्हें प्रेम करते समय ही इस पर पाबंदी लगा देनी चाहिए. जो सिगरेट पीए वह भरोसे का नहीं क्योंकि न जाने कब वह धोखा दे जाए. फिर घर में सिगरेट पीएगा तो बाकियों यानी छोटे बच्चों तक को दुष्प्रभाव झेलना पड़ेगा.

सिगरेट पीने से मेरे लिप्स काले हो गए हैं, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं ने अपनी फ्रैंड के साथ सिगरेट पीना शुरू कर दिया था, जिस से मेरे होंठ काफी काले हो गए हैं. अब मैं ने सिगरेट पीनी छोड़ दी है. मगर होंठ गुलाबी कैसे करूं कृपया कोई उपाय बताएं?

जवाब-

आप ने बहुत अच्छा किया कि सिगरेट पीनी छोड़ दी. इस से होंठ ही काले नहीं होते बल्कि सेहत भी बहुत खराब होती है. होंठों को गुलाबी करने के लिए सब से पहले उन्हें स्क्रब करना शुरू कीजिए.

1/2 चम्मच औयल ले कर उस में चीनी को दरदरा पीस कर मिला लें. फिर इसे उंगली से होंठों पर लगा कर रोज स्क्रब करें. इस से आप की डार्क स्किन धीरेधीरे निकलनी शुरू हो जाएगी.

स्क्रब करने के बाद थोड़ी सी मलाई में चुकंदर के रस की कुछ बूंदें मिला लें. 3-4 बूंदें शहद की भी डाल लें. इस मिक्स्चर को होंठों पर 20 से 25 मिनट तक लगाएं रखें और फिर पोंछ लें. इस से आप के होंठों का रंग गुलाबी होने लग जाएगा. यह आप की सेहत के लिए भी काफी अच्छा होता है. अगर थोड़ाबहुत मुंह में भी चला जाए तो कोई टैंशन की बात नहीं है.

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चेहरा हमारे व्यक्तित्त्व का आईना होता है. यही कारण है कि हर महिला अपने चेहरे को खूबसूरत बनाने के लिए बहुत से जतन करती है. लेकिन यह भी सच है कि चेहरा तभी खूबसूरत दिखाई देता है जब त्वचा बेदाग व होंठ गुलाबी हों. फटे और टैन होंठ चेहरे की सुंदरता को फीका कर देते हैं.

इस में सब से ज्यादा चिंता की बात यह है कि महिलाएं अपने शरीर के अन्य पार्ट्स की टैनिंग को ले कर तो बहुत जागरूक होती हैं, लेकिन लिप्स की टैनिंग को ले कर बिलकुल भी अवेयर नहीं होती हैं. जानिए, होंठों की देखभाल करने के कुछ महत्वपूर्ण टिप्स :

1. कई बार होंठों पर घटिया किस्म का कौस्मैटिक यूज करने से भी होंठ टैन हो जाते हैं या फिर जरूरत से ज्यादा कौस्मैटिक के प्रयोग से भी होंठों का रंग गहरा पड़ सकता है.

2. धूम्रपान की वजह भी होंठ काले हो जाते हैं.

3. ज्यादा देर तक स्विमिंग करने से भी होंठों में कालापन आ सकता है.

4. ज्यादा कैफीन का सेवन होंठों के कालेपन का कारण बनता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- लिप्स की टैनिंग को कहें बाय-बाय

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

पैनक्रियाटिक रोगों की बड़ी वजह है अल्कोहल सेवन, धूम्रपान और गॉल ब्लॉडर स्टोन

बदलती तकनीकों से आसान हो गया है पैनक्रियाटिक रोगों का इलाज, अब न्यूनतम शल्यक्रिया एंडोस्कोपिक तकनीक होने लगी है ज्यादा कारगर और लोकप्रिय युवा कामकाजी प्रोफेशनल्स में अल्कोहल सेवन, धूम्रपान के बढ़ते चलन और गॉल स्टोन के स्टोन के कारण पैनक्रियाटिक रोगों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. पैनक्रियाज से जुड़ी बीमारियों में एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस, क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस और पैनक्रियाटिक कैंसर के मामले ज्यादा हैं. लेकिन आधुनिक एंडोस्कोपिक पैनक्रियाटिक प्रक्रियाओं की उपलब्धता और इस बीमारी की बेहतर समझ और अनुभव रखने वाली विशेष पैनक्रियाटिक केयर टीमों की बदौलत इससे जुड़े गंभीर रोगों पर भी अब आसानी से काबू पाया जा सकता है.

आधुनिक पैनक्रियाटिक उपचार न्यूनतम शल्यक्रिया तकनीक के सिद्धांत पर आधारित है और इसे मरीजों के लिए सुरक्षित और स्वीकार्य इलाज माना जाता है.

पेट के पीछे ऊपरी हिस्से में मौजूद पैनक्रियाज पाचन एंजाइम और हार्मोन्स (ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने वाले इंसुलिन सहित) को संचित रखता है. पैनक्रियाज का मुख्य कार्य शक्तिशाली पाचन एंजाइम को छोटी आंत में संचित रखते हुए पाचन में सहयोग करना होता है. लेकिन स्रावित होने से पहले ही जब पाचन एंजाइम सक्रिय हो जाते हैं तो ये पैनक्रियाज को नुकसान पहुंचाने लगते हैं जिनसे पैनक्रियाज में सूजन यानी पैनक्रियाटाइटिस की स्थिति बन जाती है.

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एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस इनमें सबसे आम बीमारी है जो गॉलस्टोन, प्रतिदिन 50 ग्राम से ज्यादा अल्कोहल सेवन, खून में अधिक वसा और कैल्सियम होने, कुछ दवाइयों के सेवन, पेट के ऊपरी हिस्से में चोट, वायरल संक्रमण और पैनक्रियाटिक ट्यूमर के कारण होती है. गॉल ब्लाडर में पथरी पित्त वाहिनी तक पहुंच सकती है और इससे पैनक्रियाज नली में रुकावट आ सकती है जिस कारण एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस होता है. बुजुर्गोंं में ट्यूमर ही इसका बड़ा कारण है. इसमें पेट के ऊपरी हिस्से से दर्द बढ़ते हुए पीठ के ऊपरी हिस्से तक पहुंच जाता है. कुछ गंभीर मरीजों को सांस लेने में तकलीफ और पेशाब करने में भी दिक्कत आने लगती है.

इस बीमारी का पता लगने पर ज्यादातर मरीजों को इलाज के लिए अस्पताल में रहना पड़ता है. मामूली पैनक्रियाटाइटिस आम तौर पर एनलजेसिक और इंट्रावेनस दवाइयों से ही ठीक हो जाती है. लेकिन थोड़ा गंभीर और एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस जानलेवा भी बन सकती है और इसमें मरीजों को लगातार निगरानी और सपोर्टिव केयर में रखना पड़ता है. ऐसी स्थिति में मरीज को नाक के जरिये ट्यूब डालकर भोजन पहुंचाया जाता है. पैनक्रियाज के आसपास की नलियों से संक्रमित द्रव को  कई बार एंडोस्कोपिक तरीके से या ड्रेन ट्यूब के जरिये बाहर निकाला जाता है. उचित इलाज और विशेषज्ञों की देखरेख में एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस से पीड़ित ज्यादातर मरीज जल्दी स्वस्थ हो जाते हैं. इस बीमारी की पुनरावृत्ति से बचने के लिए अल्कोहल का सेवन छोड़ देना चाहिए और गॉल ब्लाडर सर्जरी के जरिये पथरी निकलवा लेनी चाहिए. लिपिड या कैल्सियम लेवल को दवाइयों से नियंत्रित किया जा सकता है.

इसके अलावा क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस की डायनोसिस और इलाज में एंडोस्कोपिक स्कारलेस प्रक्रियाओं की अहम भूमिका होती है. इसमें मरीज को लगातार दर्द या पेट के ऊपरी हिस्से में बार—बार दर्द होता है. लंबे समय तक बीमार रहने पर भोजन पचाने के लिए जरूरी पैनक्रियाटिक एंजाइम की कमी और इंसुलिन के अभाव में डायबिटीज होने के कारण डायरिया की शिकायत हो जाती है. पैनक्रियाज और इसकी नली की जांच के लिए इसमें एमआरसीपी और एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड जैसे टेस्ट कराने पड़ते हैं.

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पैनक्रियाटिक ट्यूमर भी धूम्रपान, डायबिटीज मेलिटस, क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस और मोटापे के कारण होता है. इसके लक्षणों में पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, पीलिया, भूख की कमी और वजन कम होना है. ऐसे मरीजों का सबसे पहले सीटी स्कैन किया जाता है. इसके बाद जरूरत पड़ने पर ईयूएस और टिश्यू सैंपलिंग कराई जाती है. इसमें लगभग 20 फीसदी कैंसर का पता लगते ही सर्जरी कराई जाती है, बाकी मरीजों को कीमोथेरापी दी जाती है. कीमोथेरापी के बाद बहुत कम  जख्म रह जाता है और फिर मरीज की सर्जरी की जाती है. कीमोथेरापी से पहले मरीज के पीलिया के इलाज के लिए कई बार ईआरसीपी और स्टेंटिंग भी कराई जाती है. ईआरसीपी के दौरान पित्त वाहिनी में स्टेंट डाला जाता है ताकि ट्यूमर के कारण आए अवरोध को दूर किया जा सके. पैनक्रियाटिक कैंसर से पीड़ित कुछ मरीजों को तेज दर्द भी हो सकता है, ऐसे में उन्हें दर्द से निजात दिलाने के लिए ईयूएस गाइडेड सीपीएन (सेलियक प्लेक्सस न्यूरोलिसिस) कराया जाता है.

डॉ. विकास सिंगला, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के निदेशक और प्रमुख, मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित.

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