शाम है धुआं – धुआं......., ये धुआं – धुआं सा रहने दो........, दम मारों दम..... आदि न जाने कितनी ही हिंदी फिल्मों के गाने सालों से पोपुलर है, जिससे हमेशा नई पीढ़ी प्रभावित रही है और इसे ग्लैमर भी समझती रही है, लेकिन इस धुंए के पीछे उनके जीवन में आने वाली शारीरिक और मानसिक परेशानियां कई बार होते है, जिन्हें वे खुद ही सोल्व कर एक हेल्दी लाइफस्टाइल अपना सकते है, जो निम्न है.

दरअसल ट्रेडिशनल स्मोकिंग के हल्के विकल्प के रूप मानने की वजह से वेपिंग (ई-स्मोकिंग) का चलन पिछले कुछ बरसों में तेजी से बढ़ा है. खासकर, जेनरेशन-जेड के बीच इसका प्रचलन बहुत अधिक बढ़ चुका है.

इन्टरनेट की इस भागती दुनिया में आज के जेनरेशन काफी एडवांस हो चुकी है, बहुत कम लोगों को पता है कि जेनरेशन - Z क्या है. असल में ये कोई विदेशी भाषा नहीं, बल्कि आज के जेनरेशन को कहा जाता है. एक अमेरिकी संस्थान के मुताबिक वर्ष 1995 से वर्ष 2012 के बीच पैदा हुए बच्चों को जेनरेशन Z कहा जाता है.

इस बारें में डिश स्किन क्लीनिक के मेडिकल एडवाइजर, डीवीडी, एसोसिएट कंसल्टेंट, डॉ. श्वेता राजपूत कहती है कि आम सिगरेट से की जाने वाली स्मोकिंग में कमी के बावजूद, आंकड़ों से पता चलता है कि वेपिंग और स्मोकिंग  की दोनों आदतों के बीच मजबूत संबंध भी है. वेपिंग से अक्सर युवाओं को स्मोकिंग का रास्ता मिलता है और वेपिंग के शौकीन व्यस्कों में से लगभग आधे स्मोकिंग भी करने लगते हैं.

ये सही है कि स्मोकिंग के साथ सेहत के कई गंभीर खतरे जुड़े होते हैं. इनमें दिल और फेफड़ों की अनेक बीमारियों के अलावा फेफड़ों में होने वाले कैंसर के बारे में ज्यादातर लोगों को पता होता है. दि सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, केवल सिगरेट स्मोकिंग की वजह से ही रोजाना 1300 लोगों की मौत हो जाती है. इन्हें स्मोकिंग की लत न होती, तो इनकी जान भी नहीं जाती.

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