शिक्षा या दिखावा

अमीर घरों के स्टूडैंट्स को अट्रैक्ट करने के लिए साउथ कोरिया के कालेजों ने भी भारत में अपने एजेंट अपौइंट करने शुरू कर दिए हैं और जिस तरह की चमकदमक वाला साउथ कोरिया है, भारतीय स्टूडैंट्स न सिर्फ वहां पढ़ना चाहेंगे, वे भारत से पैसा ले जा कर वहां बिजनैस भी करना चाहेंगे.

साउथ कोरिया कुछ स्कौलरशिप भी औफर कर रहा है क्योंकि उसे ऐसे स्टूडैंट्स भी चाहिए जो मेहनती हैं, पढ़ाकू हैं, इंटैलीजैंट हैं और देश के जाति और धर्म के कहर से डरे हुए हैं. दक्षिणी कोरिया की आबादी अब न सिर्फ बढ़नी बंद हो चुकी है, चीन और जापान की तरह घटने भी लगी है और वे बाहर से युवाओं को बुला रहे हैं. भारत में बढ़ती बेरोजगारी, धर्म का कट्टरपन, मिसमैनेजमैंट, पौल्यूशन बहुतों को बाहर जाने के लिए अट्रैक्ट कर रहा है. अपने बच्चों को बाहर भेजना वैसे भी एक स्टेटस सिंबल है और जब कनाडा, अमेरिका, यूके्रन, इंगलैंड के दरवाजे बंद होने लगे तो साउथ कोरिया का दरवाजे खोलने का तो पुरजोर वैलकम होगा ही. साउथ कोरिया में अभी 2000 स्टूडैंट्स हो गए हैं पर यह शुरुआत है.

साउथ कोरिया इंजीनियरिंग, ह्यूमैनिटीज और आर्ट्स सब में दरवाजे खोल रहा है. साउथ कोरियाई फिल्मों का भारत में पौपुलर होने से यहां के लोगों को लगता है कि वहां की जिंदगी कुछ ज्यादा अलग नहीं होगी. साउथ कोरिया 3 लाख इंटरनैशनल स्टूडैंट्स लेने की ख्वाहिशें कर रहा है और पक्का है कि कम से कम चौथाई तो भारतीय स्टूडैंट्स ले ही जाएंगे. हमारे यहां के अमीर मांबापों के पास इतना पैसा है कि वे अपने बच्चों को एक डैवलैप्ड देश में भेज सकें.

वे तो कतर, सऊदी अरब, आस्टे्रलिया, अमेरिका के अलावा सूडान, उजबेकिस्तान, बेनेजुएला (साउथ अमेरिका), नेपाल, किर्गिस्तान, बोत्सवाना, आर्मेनिया भी भेज रहे हैं. यह बात दूसरी है कि ज्यादातर इन में से वे ही हैं जो भारत को विश्वगुरु मानते हैं और जिन में से एक लड़की को दिखा कर भाजपा ने एक फिल्म बनवाई है कि पापा मोदीजी ने तो हमें निकलवाने के लिए लड़ाई रुकवा दी. वे इस झूठ को सच मानने वालों में से हैं और जाते समय 4-5 मंदिरों के दर्शन कर के ही जाते हैं.

वे यह नहीं पूछते कि आखिर उन्हें विदेशों में पढ़ाने के लिए फौरन करेंसी आती कहां से है. यह आती है उन गरीब मजदूरों की वजह से जो सस्ता काम भारत में करते हैं या विदेशों में जा कर मजदूरी कर रहे हैं. विदेश जाने या जाने की तमन्ना रखने वाले स्टूडैंट्स यह नहीं पूछते कि 10 सालों में हर साल उन जैसों की गिनती बढ़ क्यों रही है.

रिश्तों को बिगाड़ रहा वर्क फ्रौम होम

जब से कोविड-19 के कारण वर्क फ्रौम होम शुरू हुआ और टैक्नोलौजी ने उसे बल दिया, शुरू में पत्नियों को लगा कि यह तो वरदान है पर अब जब यह कोविड के बाद भी चलता जा रहा है, घर से बाहर की विशेषता पता चलने लगी है. अब पता चलने लगा है कि वास्तव में दफ्तर में जा कर काम करने वाले पति या पत्नी असल में कितना काम करते थे, कितनी मौज करते थे.इंडस्ट्रियल या सेल्स जौब्स की छोड़ दें तो अब विशाल दफ्तरों में होने वाला काम कंप्यूटरों से ही होता है और हर डैस्क पर एक कंप्यूटर लगा होता है. कभीकभार मीटिंग कमरे में मिलते हैं, प्रेजैंटेशन देते हैं, डिस्कशन करते हैं पर कोई पहाड़ नहीं खोदा जाता, कोई सामान नहीं उठाया जाता.

असल में दफ्तरों में होता क्या है यह पतियों और पत्नियों को अब पता चलने लगा है.ब्रिक ऐंड मोर्टर कंपनियों के अलावा सारी नौकरियों में 7-8 घंटे औफिस में रहने के बावजूद वर्कर आधापौना टाइम बेकार की गप में लगाते हैं. मिनटों नहीं घंटों टौयलेट जाने के बहाने इधरउधर घूमते हैं. मीटिंगों के नाम पर समय बरबाद करते हैं क्योंकि किसी भी मीटिंग में 2-4 मिनट मिलते हैं कुछ कहने के. मीटिंग में 2-3 लोगों का काम लैक्चर    झाड़ना होता है, बाकी चुपचाप सुनते हैं और मन में खयाली पुलाव बनाते रहते हैं या ताकते रहते हैं कि किस लड़की की ड्रैस का ब्लाउज कितना गहरा है या किस लड़की के बालों में हाथ फिराने में कितना मजा आएगा.वर्क फ्रौम होम से यह पोल खोली जा रही है कि असल में दफ्तरों में कितना काम होता है.सब काम करने के बावजूद रात को 2 बजे जूम मीटिंग इंटरनैशनल बायर के साथ करने के बावजूद, कंप्यूटर पर रिसर्च करने के बावजूद, घंटों घर के सोफे पर मजे करे जा रहे हैं या जूम मीटिंग के साथ पास रखे मोबाइल पर इंडिया वर्सेज पाकिस्तान का मैच देखा जा रहा है.

दोनों पतिपत्नियों की पोलें खुलने लगी हैं कि वे वर्क फ्रौम औफिस के बाद लौटने पर शाम तक थक गए हैं. यह थकान असल में उस मौजमस्ती की थी जो दफ्तरों में की जाती थी. रेस में पूरा दिन सट्टेबाजी में लगाने और बार में8 पैग पीने या पार्टी में 4 घंटे डांस करने के बाद भी तो थकान होती है. वर्क फ्रौम औफिस से इस थकान के रहस्य पर से परदा उठने लगा है.इस से अब पतिपत्नियों में खीज बढ़ने लगी है. 24 घंटे एकदूसरे के सिर पर सवार रहो या बच्चों की चिखचिख, एक कप कौफी तो बना देना, जरा फोन सुन लेना, आज पकौड़े तो बना लेना, डिलिवरी बौय से खाना या सामान तो ले लेना जैसे वाक्य 18 घंटे गूंजते रहते हैं. मेरा साथी मेरे साथ है पर है भी नहीं. कुछ घंटों का भी काम नहीं करता/करती.

बस बातें बनवा लो.पतिपत्नी दोनों कामकाजी हैं पर जब घर से काम कर रहे हों तो बच्चों को भी एहसास हो जाता है कि काम का मतलब तो टीवी देखना, सोफे पर सोना, फालतू में मोबाइल पर गेम खेलना, टैक्सटिंग करना शामिल है. बच्चों के मौडल मांबाप असल में कितने निकम्मे हैं, यह पता चल रहा है.वर्क फ्रौम होम न केवल पतिपत्नी के रिश्तों को बिगाड़ रहा है, यह बच्चों को भी बिगाड़ रहा है. दूसरी तरफ अकेले रहने वालों को अपना घर जेल सा भी बना रहा है जहां से वह अरविंद केजरीवाल की तरह सौलिटरी सैल में रह कर ध्यान लगाने को मजबूर रहते हैं और कभीकभार मुलाकाती आता है, जेलर आता है या खाना देने वाला आता है.वर्क फ्रौम होम मानव का चालचरित्र और चेहरा बिगाड़ न दे यह डर लगने लगा है. व्हाइट कौलर वर्करों से तो ब्लू कौलर वर्कर अच्छे हैं जो फैक्टरियों, सड़कों, खेलों, खदानों में हैं जहां हरदम लोगों के चेहरे देखते हैं. सैकड़ों से हायहैलो करते हैं. पड़ोसिनों से चुगली में जो मजा आता है वह जूम मीटिंग या टैक्सटिंग से थोड़े ही संभव है.

रिस्क से अनजान यूथ के बीच बढ़ता फाइनैंस क्रेज

सोशल मीडिया में फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स के चलते यूथ में शेयर मार्केट और फाइनैंस की खासी नौलेज तो बढ़ी है पर अधिकतर इन्फ्लुएंसर्स अपनी वीडियो को ज्यादा से ज्यादा वायरल कराने के लिए इस से होने वाले खतरों को छिपा देते हैं.

एक साल पहले मेरे दूर के भाई के हाथ अपने पिताजी के 1990 में खरीदे शेयर्स का पेपर लगा, जिसे उन्होंने डीमैट अकाउंट में ट्रांसफर करा लिया. उन शेयरों की कीमत आज लाखों में है. उस के बाद उन्हें शेयर मार्केट से जैसे प्यार ही हो गया है. वे आएदिन मु?ो अपने शेयर मार्केट के स्क्रीनशौट भेजते रहते हैं और मु?ो भी इन्वैस्ट करने के लिए एनकरेज करते रहते हैं. यह हाल सिर्फ मेरे भाई का ही नहीं, बल्कि वर्तमान में अधिक्तर युवाओं का है.

मिलेनियम हो या जेनजी, भारत के युवाओं में सोशल मीडिया से ले कर लग्जरी लाइफस्टाइल के क्रेज के साथसाथ एक क्रेज और बढ़ रहा है और वह है फाइनैंस का क्रेज. इंटरनैट पर मौजूद तमाम फाइनैंशियल जानकारी के जरिए युवा फाइनैंशियल लिट्रेसी पा रहे हैं, जिस के कारण उन में इन्वैस्टमैंट का क्रेज भी बढ़ रहा है.

बचत से अलग अब वे इन्वैस्टमैंट में बढ़चढ़ कर भाग ले रहे हैं. सोशल मीडिया में आधा कच्चा जैसा भी ज्ञान परोस रहे फाइनैंस के इंफ्लुएसरों की भूमिका इस में खासी रही है. यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म इस में मुख्य भुमिका अदा कर रहे हैं. डीमैट अकाउंट खोलना हो या एसआईपी में निवेश करना हो, बैंकों की फाइनैंस स्कीम्स के बारे में जानना हो या कंपनियों में इन्वैस्टमैंट के बारे में जानना हो, छोटे से ले कर बड़ेबड़े यूट्यूबर आप को हर तरह की जानकारी दे रहे हैं बिना किसी ?ां?ाट के, जो समस्या भी बनती जा रही है.

आजकल लोग, खासकर युवा, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और टैलीग्राम के माध्यम से फाइनैंस की जानकारी पा रहे हैं. यूट्यूब पर ढेरों ऐसे चैनल्स उपल्बध हैं जो फाइनैंस की एबीसीडी फ्री में मुहैया करा रहे हैं.

कोरोना के बाद से यह क्रेज और तेजी से बढ़ा है. नौकरीपेशा हो चाहे बेरोजगार युवा, सभी इन्वैस्टमैंट के बारे में जानने में इंट्रैस्टेड हैं और कहीं न कहीं से जानकारी इकट्ठा कर निवेश कर रहे हैं. बेरोजगारी इतनी है कि अपनी सेविंग को लोग अब इन्वैस्ट कर रहे हैं.

वर्तमान में देखा जाए तो पिछले वर्ष नैशनल स्टौक एक्सचेंज (एनएसई) के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी आशीष चौहान का कहना था कि वर्तमान में 17 प्रतिशत भारतीय परिवार शेयरों में निवेश कर रहे हैं. आम लोग निवेश कर रहे हैं. म्यूचुअल फंड हो या एसआईपी या फिर शेयर, कितने ही तरीके आजकल के युवा निवेश के तौर पर अपना रहे हैं, जिस से निवेशकों की संख्या बढ़ रही है.

एनएसई के माध्यम से भारतीय शेयर बाजारों में 80 मिलियन लोग पैसा लगा रहे हैं. हालांकि, यह अभी भी आबादी का एक छोटा सा हिस्सा ही है. अधिकांश नए निवेशक पिछले 2-3 वर्षों में आए हैं. मोबाइल फोन और एप्लिकेशन के माध्यम से अधिक लोग अब शेयर बाजार के माध्यम से बचत कर रहे हैं.

कोरोना के बाद से इन निवेशकों की संख्या लागातार बढ़ रही है. गुजरात, उत्तर प्रदेश से ले कर कर्नाटक तक निवेशकों ने शेयर बाजार में खूब पैसा लगाया है. उत्तर प्रदेश में निवेशकों की संख्या में रिकौर्ड बढ़ोतरी हुई. यूपी ने 2022 में गुजरात को पीछे छोड़ा और सैकंड बिग इन्वैस्टर स्टेट बन गया. मार्च 2015 में 1.24 मिलियन के मुकाबले 2025 तक यूपी से निवेश करने वालों की संख्या 9.36 मिलियन रही.

17.4 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ महाराष्ट्र टौप पर रहा. 2024 तक महाराष्ट्र में 15.3 मिलियन शेयर बाजार निवेशक थे. इन में गुजरात के 9 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल 5.6 प्रतिशत, कर्नाटक 5.6 प्रतिशत और राजस्थान के 5.6 प्रतिशत निवशक शामिल हैं. इन 6 राज्यों से 54 प्रतिशत निवेशक हैं और यह नंबर लगातार बढ़ रहा है.

जिरोधा, ग्रो, 5 पैसे और अपस्टौक जैसे मोबाइल ऐप के माध्यम से इन्वैस्ंिटग अब आसान हो गई है. शायद शेयर मार्केट में लगातार बढ़ रहे निवेशकों का यही कारण है. स्मार्टफोन यूजर आसानी से इन ऐप्स के माध्यम से अलगअलग ब्रोकर के पास अपना डीमैट अकाउंट खोल सकते हैं और पैसा इन्वैस्ट कर सकते हैं. इन का इस्तेमाल करना भी आसान है. यही वजह है कि लोग इन का इस्तेमाल कर भी रहे हैं.

 

बहकाए भी जा रहे हैं युवा

नएनए युवा स्टौक मार्केट और इन्वैस्टमैंट के इस खेल, खासकर अपना भाग्य आजमाने में उतर रहे हैं, कभी अपनी बचत को ले कर, कभी मांबाप की जमापूंजी को ले कर तो कभी ब्याज और लोन पर पैसे ले कर. फिर अपनी जमापूंजी एक ?ाटके में डुबो देते हैं, इन्फ्लुएंसर्स के बहकावे में आकर. ये यूट्यूबर्स आप को एक दिन में घरबैठे 1,000 से 10,000 रुपए तक पैसे कमाने को इतने आसान तरीके से दिखाते हैं कि हर कोई इस में फंसता चला जाता है. हालांकि ऐसा नहीं है कि ये सब गलत ही बताते हैं लेकिन इन के वीडियोज इतने आकर्षक होते हैं कि आज का युवा इन पर आसानी से विश्वास कर लेता है.

हाल ही में सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) नें 20 लाख फौलोअर्स वाले फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स रविंद्र भारती को 12 करोड़ रुपए से अधिक की रकम लौटाने को कहा है, जोकि गैरकानूनी तरीके से कमाई गई है. बाजार नियामक सेबी की जांच से पता चला है कि यह शख्स शेयर बाजार प्रशिक्षण संस्थान के नाम पर एक गैर रजिस्टर्ड एडवाइजरी फर्म का संचालन कर रहा था.

10.8 लाख सब्सक्राइबर्स के साथ रविंद्र भारती के शेयर मार्केट मराठी और 8.22 लाख सब्सक्राइबर्स के साथ भारती शेयर मार्केट हिंदी नाम से 2 यूट्यूब चैनल हैं. वह एक फाइनैंस इंस्टिट्यूट भी चलाता है जहां वह शर्तों पर निवेश करने की सलाहें देता है.

सेबी के आदेश में कहा गया कि इन लोगों ने निवेशकों के विश्वास के साथ धोखा किया और व्यक्तिगत लाभ के लिए संस्था बना कर सिस्टम का दुरुपयोग किया. इन लोगों ने नियमकानूनों की अवहेलना करते हुए निवेशकों को 1,000 फीसदी तक की गारंटीकृत रिटर्न देने का वादा किया. यह पूरी तरह से इक्विटी मार्केट में निवेशकों के विश्वास का दुरुपयोग है. इस के बाद अब उसे 12 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान करना होगा.

इन्फ्लुएंसर्स का टारगेट पैसे ले कर प्रोडक्ट्स प्रमोट करना भी होता है, जिस के चलते कभीकभी वे ऐसे प्लेटफौर्म को प्रमोट करते हैं जो फ्रौड होते हैं और लोगों को फंसाने का काम करते हैं. यूट्यूब या फिर बाकी सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर लोगों को निवेश से जुड़ी कई गलत सूचनाएं इन के द्वारा दी जाती हैं जिस के लिए ये लोग हजारों रुपए चार्ज करते हैं. वहीं, मुख्य रूप से ये इन्फ्लुएंसर्स अपने कोर्सेज बेच कर और यूट्यूब के जरिए अधिकतर पैसा कमाते हैं.

यूथ सौफ्ट टारगेट

आज युवा ?झटपट अमीर बनना चाहता है. उसे लगता है कि शेयर मार्केट ऐसी जादू की छड़ी है जहां पैसा डालो और रातोंरात अमीर बन जाओ. नया युवा बिना जानकारी के ऐसी धारणा बनाता है. वह थोड़ाबहुत कमाया दांव पर लगाता है. यह बात इन्फ्लुएंसर्स जानते हैं. वे हिंदीभाषी युवाओं को टारगेट करते हैं, क्योंकि हिंदी भाषा में फाइनैंस पर आसान जानकारी उपलब्ध हो, ऐसा कहा नहीं जा सकता. यही कारण है कि उत्तर भारत में अचानक से डीमैट अकाउंट की संख्या में खासी बढ़ोतरी देखने को मिली है. युवा इन इन्फ्लुएंसर्स की वीडियो देखता है और आंखें बंद कर के निवेश शुरू कर देता है. जहांतहां से पैसा उठाया और लगा दिया कभी स्टौक्स में, कभी क्रिप्टो में तो कभी औप्शन ट्रेडिंग में और फिर भारी लौस उठाते हैं.

इसी का उदाहरण है वाल्ड जोकि सिंगापुर स्थित क्रिप्टो ट्रेडिंग प्लेटफौर्म था. 2021 में इसे 4 लोकप्रिय फाइनैंस इन्फ्लुएंसर पी आर सुंदर, अंकुर वारिकू, अक्षत श्रीवास्तव और बूमिंग बुल्स ने प्रमोट किया. बाद में विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार वाल्ड ने निकासी और जमा सहित अपने सभी कामों को अचानक बंद कर दिया जिस के बाद कितने ही निवेशकों के पैसे इस में फंस गए.

रिक्स छिपाने की कला इस के अलावा, इस में कोई शक नहीं कि ये फाइनैंस इन्फ्लुएंसर देश में, खासकर युवाओं में, फाइनैंस लिट्रेसी बढ़ा रहे हैं लेकिन बात तब बहकावे की आ जाती है जब ये सिक्के के सिर्फ एक पहलू की बात करते हैं. फाइनैंस और मार्केट में ये इन्फ्लुएंसर्स केवल प्रौफिट की ही बात करते हैं.

आप किसी भी इन्फ्लुएंसर के वीडियो को देख लीजिए, अंकुर वारिकू, अक्षत श्रीवास्तव या रचना रानाडे या कोई भी और इन्फ्लुएंसर, इन्हें देख कर ऐसा लगता है कि ये आप को कुछ ही महीनों में करोड़पति बना देंगे. इन की वीडियो का बड़ा हिस्सा शेयर मार्केट से होने वाले फायदे को ले कर होता हैं. ये आप को मार्केट में होने वाले बड़ेबड़े लौसेज के बारे में नहीं बताएंगे, जिन में युवा अकसर अपनी पूरी इन्वैस्टमैंट उड़ा देते हैं.

ऐसे में युवाओं के लिए जरूरी हो जाता है कि वे फाइनैंस इन्फ्लुएंसर के बहकावे में न आ कर अपने फाइनैंस को समझा कर ही इन्वैस्ट करें. सरकारों को भी चाहिए कि वे स्कूल करिकुलम से ही बच्चों में फाइनैंस की समझ विकसित करें.

यहां ब्रेनवाश करना आसान है

यहां ब्रेनवाश करना आसान है आज शासन न केवल वोटों से चुन कर आए नेताओं के हाथों से खिसक कर नेताओं के लिए काम कर रहे अफसरों के हाथों में चला गया है, वे अफसर अब पुराने पुरोहितों की तरह बातें भी करने लगे हैं, वहीं पुरोहित दुनियाभर की औरतों को आज 21वीं सदी में चेनों में भी बांध कर रखते हैं. ये वे पुरोहित हैं जो औरतोंआदमियों से कहते रहे हैं कि जो भी उन्हें मिला है वह उन के माध्यम से ईश्वरअल्लाह ने दिया है और जो कुछ उन से छीना गया है, वह उसी ईश्वरअल्लाह की मरजी है.

पहले भी और आज भी ये पुरोहित इस तरह ब्रेनवाश करते रहे हैं कि सारी जनता न केवल अपना अनाज, मेहनत, कपड़ा और यहां तक कि जान भी हर समाज के कुछ चुने हुए पुरोहितों को एक तरह से अपनी मरजी से दे देती थी, हर आफत के लिए खुदको दोषी मानती थी. जब से आधुनिक, तार्किक, वैज्ञानिक सोच का जन्म हुआ, आदमियों ने इन पुरोहितों की बातें काटनी शुरू कीं और राजाओं और राजपुरोहितों की चलनी कम हुई पर यह छूट औरतों को नहीं मिली. वे पहले की तरह ही धर्म की दुकानों की तिजोरियों को भी भरती रहीं और अपना शरीर भी पुजारियों को देती रहीं. अभी अफसरनुमा पुरोहितों ने भारत में कहना शुरू किया है कि देश के थोड़ेबहुत पढ़ेलिखे युवकयुवतियों को सरकारी नौकरियों की मांग नहीं करनी चाहिए.

एक अफसर संजीव सान्याल ने युवाओं को फटकारते हुए कहा कि वे क्यों अपने जीवन के कीमती साल सरकारी नौकरियों के पीछे गंवा रहे हैं जबकि उन्हें एलन मस्क या मुकेश अंबानी बनना चाहिए. यह एक तरह से वह उपदेश है कि वे तपस्या कर के इंद्र की गद्दी के लिए सबकुछ त्याग दें और उन की आंखें बचा कर चालबाज एक मनोहर आश्रम स्थापित कर लें, जिन की रक्षा का काम राजाओं का हो. संजीव सान्याल कहते हैं कि 2 वक्तकी रोटी पाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी पाने के बजाय किचन ही बनानी चाहिए जहां हजारों खाना खाएं. उन का उद्देश्य बड़ा होना चाहिए. खुद सरकारी ओहदे पर बने रहते हुए उपदेश देना वैसा ही है जैसा हर प्रवचन में पादरी या पुरोहित भव्य भवन में सोने के सिंहासन पर बैठ कर माया को मोह का नाम दे और मोक्ष को पाने के लिए त्याग की महिमा गाए.

यह पुरोहितनुमा अफसरशाही दुनियाभर में कहती रहती है कि अपनी इच्छाएं कम करो पर अपना कर्म पूरा करते रहो, शासन की सेवा करते रहो. आज हर घर पर शासन, सरकार, रिच कंपनियों के हाईटैक धर्मगुरुओं का भरपूर कब्जा है. बच्चों के पैदा होते ही क्रौस, ओम, अल्लाह का पाठ पढ़ाया जाता है ताकि वे जो भी करें, उन के लिए करें. जो थोड़े से इस मकड़जाल से निकल जाते हैं, उन्हें पुरोहिताई अफसरशाही अपने में मिला लेती है और कहती है कि हमारा विरोध न करो, अपनी तार्किक बुद्धि का इस्तेमाल आम जनता को बहकाने, लूटने के लिए करो. दुनियाभर में मांएं अपने बच्चों को या तो धर्मभीरु बना रही हैं ताकि वे धर्मनियंत्रित समाज में सेवक, अच्छे या मध्यम व्हाइट कौलर जौब्स या मेहनती मजदूरी वाली ब्ल्यू कौलर जौब्स करें या फिर शासकों की बिरादरी में पहुंच कर पीढ़ी दर पीढ़ी अपना विशिष्ट स्थान सुरक्षित कर लें.

भारत में यह ज्यादा हो रहा है. यहां ब्रेनवाश करना आसान है क्योंकि यहां जन्म से ही रट्टू पीर बना दिया जाता है. यहां पढ़ाई सवाल खड़े करने वाली नहीं होती. जो कहा गया उसे सच व अंतिम तथ्य मानना होता है. अब तो परीक्षाओं में सही उत्तर पहले ही दे दिए जाते हैं और 3 गलत उत्तरों में से ढूंढ़ना भर रह गया है. आज के पुरोहित अफसरों ने सरकार पर ही नहीं, टैक्नोलौजी पर भी कब्जा कर लिया है. जो तार्किक ज्ञान पाए पिता का बेटा है वह अलग से पढ़ाई करता है, सवाल पूछता है, नए विचार रखता है, शासन करने वालों की बिरादरी में घुसता है, कंपनियां चलाता है, टैक्नो इनवेंशन करता है, बाकियों को संजीव सान्याल कहते हैं कि इस बिरादरी में कुछ नहीं रखा, यह भ्रम है, माया है.

जपतप कर के इंद्र का स्थान पाने कीकोशिश न करो, जीजस न बनो, बुद्ध न बनो. आज स्थिति यह है कि लड़कियों को सुंदर चेहरों और रील्स बनाने पर लगा दिया गया है और लड़कों को कांवड़ ढोने पर. संजीव सान्याल इस बारे में कुछ नहीं कहते. उन्हें बंगालियों के अड्डों से शिकायत है जहां आपस में बैठ कर जीवन की गुत्थियों को बिना पुरोहितों की छत्रछाया में सम?ाने की कोशिश की जाती थी. वे सूखी रोटी पर 2 बूंद शहद टपका कर कहते हैं कि शहद बनाने की कोशिश करो और सूखी रोटी खाओ. वे जानते हैं कि शहद के लिए गुलाम मक्खियां रानी मक्खी के लिए फूलों से रस चूसती हैं और फिर मर जाती हैं.

रानी मक्खी शान से छत्ता संभालती है. हर देश में संजीव सान्याल हैं जो सम?ा रहे हैं कि कैसे आदर्श गुलाम बनो, मशीनी मानव बनो, कंप्यूटर प्रोग्रामर बनो, मैकैनिक बनो, डिलिवरी बौय बनो पर उन ऊंचे स्थानों के सपने भी न देखो जहां केवल पीढ़ी दर पीढ़ी वाले लोगों का कब्जा है. हर लड़की, हर युवती, हर औरत, हर पत्नी, हर मां इस ?ांसे में आ ही जाती है. अपने को टाइगर मौम सम?ाने वाली मांएं भी असल में सिस्टम के बंधे युवा पैदा कर रही हैं.

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