यहां ब्रेनवाश करना आसान है आज शासन न केवल वोटों से चुन कर आए नेताओं के हाथों से खिसक कर नेताओं के लिए काम कर रहे अफसरों के हाथों में चला गया है, वे अफसर अब पुराने पुरोहितों की तरह बातें भी करने लगे हैं, वहीं पुरोहित दुनियाभर की औरतों को आज 21वीं सदी में चेनों में भी बांध कर रखते हैं. ये वे पुरोहित हैं जो औरतोंआदमियों से कहते रहे हैं कि जो भी उन्हें मिला है वह उन के माध्यम से ईश्वरअल्लाह ने दिया है और जो कुछ उन से छीना गया है, वह उसी ईश्वरअल्लाह की मरजी है.

पहले भी और आज भी ये पुरोहित इस तरह ब्रेनवाश करते रहे हैं कि सारी जनता न केवल अपना अनाज, मेहनत, कपड़ा और यहां तक कि जान भी हर समाज के कुछ चुने हुए पुरोहितों को एक तरह से अपनी मरजी से दे देती थी, हर आफत के लिए खुदको दोषी मानती थी. जब से आधुनिक, तार्किक, वैज्ञानिक सोच का जन्म हुआ, आदमियों ने इन पुरोहितों की बातें काटनी शुरू कीं और राजाओं और राजपुरोहितों की चलनी कम हुई पर यह छूट औरतों को नहीं मिली. वे पहले की तरह ही धर्म की दुकानों की तिजोरियों को भी भरती रहीं और अपना शरीर भी पुजारियों को देती रहीं. अभी अफसरनुमा पुरोहितों ने भारत में कहना शुरू किया है कि देश के थोड़ेबहुत पढ़ेलिखे युवकयुवतियों को सरकारी नौकरियों की मांग नहीं करनी चाहिए.

एक अफसर संजीव सान्याल ने युवाओं को फटकारते हुए कहा कि वे क्यों अपने जीवन के कीमती साल सरकारी नौकरियों के पीछे गंवा रहे हैं जबकि उन्हें एलन मस्क या मुकेश अंबानी बनना चाहिए. यह एक तरह से वह उपदेश है कि वे तपस्या कर के इंद्र की गद्दी के लिए सबकुछ त्याग दें और उन की आंखें बचा कर चालबाज एक मनोहर आश्रम स्थापित कर लें, जिन की रक्षा का काम राजाओं का हो. संजीव सान्याल कहते हैं कि 2 वक्तकी रोटी पाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी पाने के बजाय किचन ही बनानी चाहिए जहां हजारों खाना खाएं. उन का उद्देश्य बड़ा होना चाहिए. खुद सरकारी ओहदे पर बने रहते हुए उपदेश देना वैसा ही है जैसा हर प्रवचन में पादरी या पुरोहित भव्य भवन में सोने के सिंहासन पर बैठ कर माया को मोह का नाम दे और मोक्ष को पाने के लिए त्याग की महिमा गाए.

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