श्रीजा के संघर्ष और हौसले को सलाम

मां की मौत के बाद पिता भी मुंह मोड़ ले तो बच्चों का वर्तमान और भविष्य खराब हो जाना निश्चित ही है पर बिहार की श्रीजा ने 10वीं कक्षा में 99.8′ अंक ला कर मां और बाप दोनों के अभावों में मामा के घर रह कर न केवल जीना सीखा. उसे चैलेंज के रूप में ला कर दिखाया. आमतौर पर सोच यही है कि मां और बाप दोनों के जाने के बाद चाचाताऊ या मामामौसी के यहां पले बच्चे घर में नौकरों की तरह के रह जाते हैं पर सिर्फ किसान चाचा और साधारण से मामा के बल पर श्रीजा बिहार की टौपर बन गई.

श्रीजा सिर्फ 4 साल की थी जब मां की मृत्यु हो गई और कुछ समय बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली और श्रीजा व उस की छोटी बहन को नानानानी के पास छोड़ कर कभी देखभाल तक नहीं की. मामाओं ने ही उसे पाला और पढऩे के मौके दिए.

एक युग था जब सौतेले या पराए बच्चे घरों में ऐसे ही पलबढ़ जाते थे क्योंकि बहुत से बच्चे होते थे और घर भरापूरा होता था. आज जरूरतें बढ़ गईं और कम बच्चे घर में होने की वजह से हर बच्चा पूरी अटैंशन चाहता है. आज मांबाप की ज्यादा ङ्क्षजदगी छोटे बच्चों के चारों ओर घूमती है. ऐसे में जिन के मां या बाप या दोनों न हों, वे बेहद कुंठा में रहते हैं और दूसरों के मिलते प्यार को देख कर उन्हें अपने अभाव कचोटते हैं.

आज बच्चों की जरूरतें बढ़ गई हैं. हैंड मी डाउन यानी उतारे हुए कपड़े पहनने की परंपरा समाप्त होने लगी है. मोबाइल, बदलती किताबें, कोङ्क्षचग, ट्यूटर, पीटीए मीङ्क्षटगों, पिकनिकें, स्कूल ट्रिप, फिल्म, रेस्ट्रा आदि मौजूद नहीं हैं आकर्षक हैं और हरेक को अट्रैक्ट करते हैं. ऐसे में जो उन घरों में पल रहे हैं जहां अगर छत और खाना मिल भी रहा हो तो प्यार और मनुहार का हक न मिले तो बहुत खलता है.

गनीमत है श्रीजा के मामा चंदन और उनके भाई ने श्रीजा और उस की बहन को ढंग से रखा और आज उन का स्थान समाज में ऊंचा है.

असल में पराए बच्चों को अपनाना और उन को पूरा प्यार देना, लाखों करोड़ों के दान से ज्यादा है पर हमारी संस्कृति में भाग्य में लिखा हुआ है कि मान्यता इतनी है कि सगेसंबंधी भी प्यार व सहारे के मारों की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेते हैं यह सोच कर कि चाहे अबोध बच्चे ही क्यों न हों, अगर मां और बाप न हों तो वे पिछले जन्मों के कर्मों का फल भोग रहे हैं. उन की जिम्मेदारी नहीं है.

पराए बच्चों को पालना एक अजीब सुख देता है. अपने बच्चों के साथ जब दूसरे भी हों और खुश हो तो ही जीवन संपूर्ण होता है. इसीलिए आज दुनियाभर में गोद लेने वालोंं  की कतारें लगी हैं और लोग बच्चों को गरीब इलाकों से गोद ले रहे हैं चाहे उन की शक्ल, रंग, कद अलग क्यों न हो. ये बच्चे अपने पालने वाले मांबाप से खुश रहते हैं. नाराज तो पादरी पंडे होते हैं जिन्हें लगता है कि इन बच्चों पर उन का अधिकार है और अगर वे…….., मदरसों और चर्चों में होती तो सेवा करते और उन के नाम पर भक्तों का बहका कर पैसे वसूल किया जाता. अनाथालय सदियों से अपनी क्रूरता के लिए जाने जाते हैं. सरकारों द्वार चलाए जा रहे बालगृहों में बेहद लापरवाही और सैक्सुअल शोषण होता है. मामाचाचा के हाथों फिर भी जीवन सुरक्षित है और श्रीजा ने साबित किया है कि ऐसे तनाव में प्रतिभा निखर कर आती है.

‘प्लास्टिक’ की दुनिया: मौत या दोस्त

प्लास्टिक ज़िंदगी को आसान तो बनाता है लेकिन यह तिलतिल हमें  मौत के घाट उतार रहा है. इसके जिम्मेवार हम खुद हैं. रोज सुबह के बच्चो के टिफ़िन से लेकर रात को सोने से पहले दूध पीने तक हम पूरा दिन प्लास्टिक का इस्तेमाल करते नहीं थकते.किसी न किसी  तरह उसके कणों को निगल रहे हैं हर चीज़ प्लास्टिक से बनी हुई हैं चाहे टीवी का रिमोट, फ्रिज मे रखी कंटेनर, बोतले, क्रेडिट कार्ड, चाय के कप, प्लेट ,चम्मच, बोतल बंद पानी हो हर चीज प्लास्टिक से बनी हैं

प्लास्टिक  का उत्पादन

दुनिया मे हर साल  30  करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा  होता हैं .जोकि दुनिया की जनसंख्या के बराबर हैं .सन 1950  से अबतक 800 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ हैं अब तक जितना कचरा पैदा हुआ हैं उसका सिर्फ 9% कचरा ही रीसायकल हो पाया हैं व 12%कचरा ही नष्ट हो सका  हैं और 79% कचरा पर्यावरण  मे मिल गया हैं. यही मिला हुआ कचरा हवा, पानी के जरिये हमारे ही शरीर के अंदर पहुंच रहा हैं.

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सागरों को कर रहा दूषित

प्रशांत महा सागर में प्लास्टिक का कचरा सुप की तरह तैर रहा हैं. कचरा नदियों सागर मे जा कर मिल जाता हैं .और निचे  जा कर बैठ जाता हैं जिस कारण वहां औक्सीजन की कमी होती हैं और जीव जन्तु मर जाते हैं ये ही नहीं व्हेल जैसा  विशाल प्राणी भी मौत के घाट उतर रहे हैं.

हर कोई इस बात से वाकिफ हैं की प्लास्टिक का इस्तेमाल खतरनाक हैं क्युकी न तो ये सड़ता हैं और जलाया जाये तो हवा को प्रदूषित   करता हैं. इनके जलने से जहां गैस निकलती हैं. वहीं   यह मिटटी मे पहुंच कर भूमि की उर्वरक शक्ति को भी नष्ट करता  है.

खतरनाक सिंगल यूज प्लास्टिक

सिंगल यूज़ प्लास्टिक सबसे ज्यादा नुकसानदेह है  जो सिर्फ एक बार प्रयोग मे आता है. जैसे चाय के कप ,प्लेट चम्मच पौलीथिन बैग. आपको यह जानकर हैरानी होगी की प्लास्टिक को घुलने मे  500 -1000 साल लग जाते हैं.

प्लास्टिक से होने वाली बीमारी

प्लास्टिक में अस्थिर प्रकृति का जैविक कार्बनिक एस्सटर (अम्ल और अल्कोहल से बना घोल) होता है, जिसकी वजह से कैंसर होता है प्लास्टिक को रंग प्रदान करने के लिए उसमें कैडमियम और जस्ता जैसी विषैली धातुओं के अंश मिलाए जाते हैं. जब इन मे कहानी की वस्तु रखी जाती है तो ये जहरीले तत्त्व धीरे-धीरे उनमें प्रवेश कर जाते हैं. कैडमियम की अल्प मात्रा के शरीर में जाने से उल्टियां, हृदय रोग हो सकता है और जस्ता से  इंसानी मस्तिष्क के ऊतकों का क्षरण होने लगता है जिससे स्मृतिभ्रंश जैसी बीमारियां होती हैं.

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दुनिया में 40 देशों में हैं बैन

दुनिया में 40 देशों में प्लास्टिक प्रतिबंधित हैं. जिसमे फ्रांस, चीन, इटली, रवांडा और अब केन्या जैसे देश भी इसमे शामिल  हैं.

हमारे देश मे 56 लाख टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन करता हैं जिसमे 9205  टन प्लास्टिक को रीसायकल कर दोबारा उपयोग मे लिया जा सका  हैं केन्द्र्य नियंत्रण बोर्ड के अनुसार हर रोज दिल्ली मे सबसे ज्यादा कचरा 690 टन कचरा फैंका जाता हैं व्ही छेने मे 429 ,मुंबई मे 408 टन कचरा फैंका जाता हैं .

परिस्थिति  के असंतुलन को न तो हम खुद समझ पा रहे हैं और न ही सरकार  इसके प्रति कोई ठोस कदम उठा रही हैं अब हालत यह हैं की जल संकट ,जंगलों मे आंग ,पहाड़ो मे तबही  आ रही हैं .ग्लेसियर पिघल रहे हैं गांव से लेकर शहरों  तक उदारीकरण और उपभोक्ता वाद की भेट चढ़ रहे हैं.  पर्यावरण का संकट हमारे लिये चुनौती के रूप मे उभर रहा है .वो दिन दूर नहीं जब बिना ऑक्सीजन मास्क के लोग घर से बाहर कदम भी नहीं रख पाएंगे .

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