ऐसे पाएं सफलता

दुनिया में कामवाली हर औरत का जीवन बड़ा संघर्षमय होता है, जो घर से दूर रह कर काम करती हैं, उन के लिए तो चुनौतियां और ज्यादा होती हैं. जो कभी हार नहीं मानतीं, आमतौर पर स्वभाव से हंसमुख होती हैं, उन्हें पार्टी करना, पार्टी में जाना और घूमना बहुत पसंद होता है. उन्हें सब के दिलों पर छा जाने की कला सीखनी होती है.

कई औरतों को चुनौतीपूर्ण काम मिलता है और साथ ही मातापिता की देखभाल का जिम्मा भी. अगर जौब ऐसी है जिस में अकेले ट्रैवल करना भी जरूरी हो तो कुछ और चैलेंज आ जाते हैं.

अनिता को अपनी जौब के सिलसिले में दिल्ली से मुंबई आनाजाना करना होता था क्योंकि वह मार्केटिंग और मैनेजमैंट का दोहरा काम संभाल रही थी.

वह हिमाचल की निवासी थी और जब दिल्ली आई तो मांबाप से मिलने भी जाती. उसे कालेज में डांस करने का शौक था और किसी भी अवसर पर वह अवश्य नृत्य करती थी. अब भी किसी पार्टी में वह घंटों नाच सकती है. पहले वह दिल्ली में काम करती थी पर बाद में उसे मुंबई में एक कंपनी ने बुलाया.

पहले वह वहां 1 हफ्ता काम करती और फिर वापस दिल्ली चली आती थी. फिर वह मुंबई आ गईर् और यहीं रहने लगी. तब तक काम इतना बढ़ गया था कि बारबार आनाजाना संभव नहीं था.

जीवन एक संघर्ष है

इस तरह की चुनौतियां हर सफल औरत को कई बार ?ोलनी पड़ती हैं. शादी तो हो जाती है पर अगर काम के बोझ में जीवनसाथी के कारण तो चैलेंज बढ़ जाते हैं, खासतौर पर जब बच्चे भी हो जाएं. डिवोर्स का समय काफी संघर्षपूर्ण रहता है क्योंकि लोग इस अलगाव को समझ नहीं पाते हैं. इस में सब से बड़ी सहायता अकसर उन की मां करती है क्योंकि उन्हें पता होता है कि ऊंचनीच क्या होती है.

आमतौर पर सफल तलाकशुदा औरतें अपने पति के बारे में अधिक बताना नहीं चाहतीं और यह सही भी है क्योंकि वह एक बीता हुआ कल था जिसे उसे याद करना अच्छा नहीं लगता है. लेकिन इतना जरूर है कि जो लोग इस तरह की स्थिति से न गुजरे हों उन्हें उस की बात समझ में नहीं आती और फिर यह भी चुनौतियों की लिस्ट में जुड़ जाता है. शादी टूटने को हमेशा एक सकारात्मक रूप में लें कि झगड़े वाले विवाह से चुनौती वाला एकाकीपन ज्यादा अच्छा है.

अगर परिवार की कोई लड़की ऊंचे पद पर न हो तो वह भी इसी तरह की सफल महिला को नहीं समझ पाती. काम कर के अपने पैरों पर खड़ा होना एक ऐसा जनून है जिसे रोकना नहीं चाहिए. एक औरत को चैन तभी आने लगेगा जब वह काम में सफल होने लगेगी. यही बात बच्चों में भी आ जाती है अगर बच्चे हों तो.

आसान बनाएं काम

आज भी किसी भी अकेली महिला का काम करना मुश्किल है. आज हर दिन, हर पल सिस्टम बदलते हैं. प्रैक्टिस के चक्कर में कंपनी के रोज नए प्रयोग करती है, दखलंदाजी करती है. इसलिए काम शुरू कहीं से होता है और हो आगे कुछ और रहा होता है, जिस का आगापीछा समझना और समझना चैलेंजिंग होता है. आप जिस जौब के लिए रखी जाती हैं उस का प्रोफाइल बदल जाता है. मैनेजर की निजी जिंदगी नहीं रहती.

बच्चों के पीटीए को अटैंड करना, फिर उन के साथ घूमना, उन का खयाल रखना, मातापिता का ध्यान रखना सब सही तरीके से करना होता है. काम 9 से 6 बजे तक हो या 9 से रात के 12 बजे तक सहना पड़ता है. काम की गुणवत्ता अधिक बनी रहे यह लगातार चैलेंज होता है.

बढ़ते जाना है

हां हर सफल महिला को अपने पहरावे पर पूरा ध्यान रखना चाहिए. हर तरह के कपड़े अच्छे नहीं होते. वही पहनें जो कंफर्टेबल रखे. पार्टियों में जाएं, प्रकृति से प्यार करें.

काम में ऐक्सप्लायटेशन हो तो हल्ला न मचाएं. यह हमेशा से होता रहा है. अगर आप को किसी से कुछ खास उम्मीद है तो आप को कुछ देना होगा. खुशीखुशी दें या रोधो कर यह आप पर है. यह गारंटी भी नहीं कि आप जो चाहें वह आप को मिलेगा पर छुईमुई न बनें.

काम का चैलेंज वह क्षेत्र है जहां मरना भी पड़ता है. अगर आप का कोई गौडफादर है तो आप कामयाब. आप की सफलता आप की बहुत सी खामियों को छिपा देगी. पीछे की फुसफुसाहट को इग्नोर करना भी चैलेंज है.

अपनों के बिना फीकी सफलता

जीवविज्ञान की कक्षा चल रही थी. अध्यापक छात्रों को ककून से तितली बनने की प्रक्रिया के बारे में बता रहे थे. उन के सामने एक ककून रखा हुआ था और उस में बंद तितली बाहर आने के लिए लगातार कठिन संघर्ष कर रही थी. इतने में ही अध्यापक कुछ कार्यवश थोड़ी देर के लिए कक्षा से बाहर निकल गए. छात्रों ने देखा कि तितली को अपने ककून से बाहर आने में काफी कष्ट व असहनीय पीड़ा हो रही है तो उन्होंने बालसुलभ सहानुभूतिवश ककून से तितली को निकलने में मदद करने की कोशिश की.

छात्रों ने ककून से बाहर आ रही अति नाजुक तितली को हाथ से पकड़ कर बाहर की तरफ खींच लिया. तितली बाहर तो आई किंतु इस प्रक्रिया के दौरान उस की मौत हो गई. जब अध्यापक कक्षा में वापस आए, छात्रों को मौन देख कर बड़ी हैरत में पड़ गए. किंतु पास में ही जब उन्होंने तितली को मृत देखा तो उन्हें सारी बातें समझने में तनिक भी देर नहीं लगी.

अध्यापक ने कहा, ‘‘तुम लोगों ने तितली को उस के ककून से बाहर आने में मदद कर उस की जान ले ली है. तितली अपने ककून से बाहर आने में जिस संघर्ष का सामना करती है, जिस दर्द को बरदाश्त करती है, वह उस के जीवन के अस्तित्व के लिए अनिवार्य होता है.

‘‘इस धरती पर जीवित रहने के लिए उसे वह पीड़ा सहनी ही पड़ती है. जन्म के समय के इस संघर्ष में जीवन जीने के लिए अनिवार्य गुणों को तितलियां बड़ी आसानी से सीख लेती हैं. कोई भी केटरपिलर अपने जीवन के इन कष्टों को सहन किए बिना जीवित नहीं रह सकता है. तुम लोगों ने उस तितली को उन जीवनदायी कष्टों से बचा कर उस की जान ले ली है.’’

सच पूछिए तो जीवन में कामयाबी प्राप्त करने तथा इस दुनिया में अपना अस्तित्व बनाए रखने का फार्मूला भी इस जीवनदर्शन से अलग नहीं है. इस धरती पर जन्म लेने वाले हर व्यक्ति को अपने जीवन के हिस्से के दुखदर्द तथा संताप को खुद सहन करना होता है.

सफर आसान नहीं

महान कूटनीतिज्ञ तथा राजनीतिज्ञ बेंजामिन डिजरायली कहा करते थे, ‘सफलता प्राप्त करना एक नया जीवन प्राप्त करने सरीखा होता है. जैसे एक नए जीव के जन्म के लिए प्रसवपीड़ा अनिवार्य तथा सर्वविदित सत्य है, उसी प्रकार सफलता के मुरीद व्यक्ति को जीवन की बेशुमार पीड़ाओं का सामना करना होता है.

‘सफलता बहुत संघर्ष व बलिदान मांगती है. निश्चय सुदृढ़ हो तथा अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए यदि कोई शख्स आने वाली हर मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार हो तो फिर कामयाबी पाने में कोई संदेह शेष नहीं रह जाता है.’

महात्मा गांधी के बारे में कहा जाता है कि वे अपनी पूरी जिंदगी में रोजाना 2 घंटे से अधिक कभी भी नहीं सोए. थौमस अल्वा एडीसन को अपने अनुसंधानों के समय रात और दिन का फर्क मालूम नहीं होता था. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बेतरतीब बाल तथा बढ़ी दाढ़ी के साथ घुटने तक फटे हुए पतलून में किसी ट्रेन के थर्ड क्लास कंपार्टमैंट में यात्रा करने वाले तथा अति साधारण दिखने वाले व्यक्ति के अंदर महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाइन का जादुई व्यक्तित्व भी छिपा हो सकता है?

आशय यह है कि जीवन के किसी क्षेत्र तथा मानव ज्ञान की किसी भी विधा में सफलता का सफर आसान नहीं होता. हमें हर मोड़ पर त्याग करने तथा कुरबानी देने की दरकार होती है.

त्याग काफी नहीं

किंतु केवल बलिदान तथा त्याग का होना ही सफलता की कसौटी नहीं है. अहम बात यह है कि सफलता के लिए किया जा रहा संघर्ष सच्चा है या नहीं. संघर्ष सही दिशा में किया जा रहा है या नहीं? क्योंकि समर्पण जितना सच्चा होता है, जितना सुदृढ़ होता है, सफलता उतनी ही निश्चित मानी जाती है.

यहां पर सब से अधिक जरूरी तथा विचारणीय प्रश्न यह उठता है कि संघर्ष करने तथा सफल होने की उत्कट लालसा में कहीं हम अपनों को ही नजरअंदाज तो नहीं कर रहे हैं? कामयाबी की रोशनी में चकाचौंध हो कर हम जिस अहम चीज को नकार जाते हैं वह होती है हमारी अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी का एहसास तथा कर्तव्य का भाव.

इस सच से कदाचित ही कोई इनकार कर पाए कि सफलता के लिए त्याग की जरूरत होती है, किंतु अहम प्रश्न यह उठता है कि सफलता त्याग की किस कीमत पर एवं कितनी कीमत पर?

कहानी जिंदगी की

प्रतीक की जिंदगी की कहानी उस के खुद के परिवार की खुशियों तथा निरंतर सफल होने की चाहत के मध्य की सुविधा से परे नहीं है. प्रतीक किसी मल्टीनैशनल कंपनी में काम करता था. वह अपनी महत्त्वाकांक्षा की प्राप्ति की राह में इस कदर व्यस्त हो गया था कि उस के पास अपनी पत्नी तथा बेटे के साथ अपने गम व खुशियों को बांटने का न तो वक्त होता था और न ही वह इस की कोई आवश्यकता समझता था. उस की पत्नी स्वाति को भी इस बात की हमेशा शिकायत रहती थी कि प्रतीक के पास उस के लिए कोई समय नहीं होता है. इस वजह से आएदिन परिवार में कलह तथा अशांति का माहौल रहता था. स्वाति ने कुछ दिनों के बाद इसे ही अपनी नियति मान कर प्रतीक से शिकायतें करनी बंद कर दीं.

प्रतीक के इकलौते बेटे आकाश को भी अकसर यही शिकायत रहती थी. ‘पापा, आप के पास तो मेरे लिए कोई वक्त ही नहीं है. आप तो मेरे साथ कभी खेलते भी नहीं हैं. यदि आप आज मेरे साथ नहीं खेलेंगे तो जान लीजिए, मैं कभी भी आप से बात नहीं करूंगा.’

सच पूछिए तो अपने बेटे की इन दोटूक बातों से प्रतीक के दिल को बहुत ठेस लगती थी और वह भावनात्मक रूप से थोड़ी देर के लिए परेशान हो उठता था. किंतु नौकरी की जिम्मेदारियों तथा सब से आगे बढ़ने की महत्त्वाकांक्षा के चक्रव्यूह में वह फिर से उलझ जाता.

वक्त गुजरता गया. प्रतीक व उस के परिवार के मध्य की नाराजगी धीरेधीरे उसे अपनों से दूर करती गई. सब लोगों ने उस से बातें करनी बंद कर दी. हां, उस का बेटा कभीकभी जरूर उस से आ कर चिपक जाता था, किंतु जब वह अपनी मम्मी को देखता तो शीघ्र भागने की कोशिश करने लगता. साथ रहते भी तनहातनहा रहने का क्रम कुछ दिनों तक इसी प्रकार जारी रहा.

सहसा एक दिन अपनी पत्नी के एक प्रश्न ने प्रतीक को अंदर से झकझोर कर रख दिया. ‘आखिर आप चाहते क्या हैं? आप को यदि अपनी नौकरी से इतनी ही मुहब्बत थी तो फिर आप ने मुझ से शादी क्यों की? यदि आप के पास अपनी पत्नी तथा अपने बेटे के लिए वक्त नहीं है तो फिर आप हम लोगों को छोड़ क्यों नहीं देते हैं?’

‘मैं आज जो कुछ भी कर रहा हूं,

वह तुम लोगों के सुखद जीवन के लिए कर रहा हूं. जीवन के भोगविलास तथा ऐशोआराम के लिए मेरी कोशिश केवल मेरे जीवन के लिए नहीं है, यह सब केवल और केवल तुम लोगों के लिए है,’ प्रतीक अकसर यही उत्तर दे कर अपनी पत्नी का मुंह बंद कर दिया करता था.

‘मैं मानती हूं कि आप की महत्त्वाकांक्षा में, आप के सपनों में हम सभी की सुख तथा सुविधाएं निहित हैं, किंतु सोच कर देखिए यदि मैं ही जीवित नहीं रही तो आप की शोहरत व सफलता की दुहाई देने वाले कौन होंगे? आप अपनी शानोशौकत किसे दिखाएंगे व आप किस पर गर्व करेंगे?

‘सफलता के शिखर पर पहुंच कर आप दुनिया की नजर में नाम तो कमा लेंगे, किंतु जब आप के खुद अपने ही आप के करीब नहीं होंगे तो क्या आप की वे खुशियां अधूरी तथा निरर्थक नहीं रह जाएंगी?’ प्रतीक की पत्नी ने बड़ी संजीदिगी से ये बातें कहीं.

अपनी पत्नी के आत्मदर्शन पर प्रतीक ने बड़ी गंभीरता से सोचा और आखिरकार उसे जो आत्मबोध हुआ, उस की स्निग्ध छांह में उस के मन पर वर्षों से जमी भ्रम की तपिश किसी मोम की तरह पिघलती गई और उसे अपने मन के जख्म पर किसी मरहम सरीखे ठंडक की अनुभूति हुई. उस आत्मानुभूति ने उस के जीवन की दिशा व दशा दोनों में कई अहम तबदीलियां ला दीं.

ऐसा नहीं है कि प्रतीक ने सपने देखना छोड़ दिया है. आज भी वह जीवन के वही सारे सपने देखता है, किंतु उस के पास उन सपनों को साकार करने की वो बेचैनी अब नहीं रही. परिवार की खुशियों की कीमत पर प्रतीक ने सपनों का पीछा करना छोड़ दिया. वह अब अपने बेटे के साथ खेलने के लिए तथा भागनेदौड़ने के लिए पूरा वक्त निकालता है. ऐसे में पत्नी भी खुश रहने लगी है.

परिवार की भूमिका

सच पूछें तो आधुनिक अर्थव्यवस्था की सूचना क्रांति के वर्तमान जादुई युग में जनमानस की सोच तथा जीवनशैली में जिस प्रकार के बदलाव आए हैं, उन के चलते हम ने आज यदि कुछ खोया है, तो वह है मानसिक शांति व आत्मिक सुकून. भौतिक भोगविलास की अंतहीन खोज में हम ने यदि कुछ खोया है, तो वह पारिवारिक सुखसुकून की वो स्निग्धता, जिस के कोमल एहसास में जीवन का परम सुख निहित होता है.

कदाचित इस बात से हम इनकार नहीं कर सकते कि मानव जीवन में परिवार की भूमिका उस कुशन या गद्दे की तरह की होती है, जो हमें जीवन में सफलता की ऊंचाइयों से अचानक गिरने पर हमें जख्मी होने से बचाती है. इसीलिए सफलता पाने की कोशिश में केवल संघर्ष ही अनिवार्य नहीं है, बल्कि उन अपनों के प्यार व सहानुभूति की भी दरकार होती है जिन की उपस्थिति के बिना जीवन तथा जहान की सारी खुशियां अधूरी प्रतीत होती हैं.

आप के अपने आप के सपनों के पीछे भागने की रेस में आप के साथ होंगे तो आप को एक अद्भुत ऊर्जा तथा प्रेरणा का एहसास पलप्रतिपल होगा. अपनों के प्यार को खो कर पाई गई किसी भी कामयाबी की कीमत कभी भी इतनी अधिक नहीं होती, जो आप के जीवन की भावनात्मक कमी की भरपाई कर सके.

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कामयाबी की पहली शर्त

अगर आप को जीवन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो रास्ता कितना भी कठिन हो आप उसे तय अवश्य कर सकती हैं. एक युवती तभी सफल हो सकती है जब उसे अपनी क्षमता के बारे में पूरी जानकारी हो और अपने काम पर पूरी तरह फोकस्ड हो.

पुरुषों के साथ उद्योग के क्षेत्र में काम करना हमेशा चुनौतीपूर्ण होता जा रहा हो. अब और ज्यादा युवतियां अपना खुद का काम शुरू कर रही हैं. महिला हो या पुरुष दोनों की जर्नी शुरू में बराबर की होती है, जिस के लिए दोनों को परिवार का सहयोग जरूरी है. कई बार आप ऐसी परिस्थितियों में पड़ जाते हैं जब आप चाह कर भी वह काम नहीं कर पाते क्योंकि पिता या पत्नी या फिर भाईबहन विरोध करते हैं.

ऐसे में युवती को देखना है कि करना क्या है. कई ऐसी युवतियां हैं जिन्हें काम करने की आजादी तो है पर अगर समय से देर तक उन्हें काम करना पड़े तो उन के पति या बच्चे सहयोग नहीं देते. ऐसे में उन्हें सोचना पड़ता है कि आखिर उन के जीवन में क्या जरूरी है परिवार या कैरियर.

डबल इनकम

यही वजह है कि आज की बहुत युवतियां अच्छा कमाती हैं तो शादी नहीं करना चाहतीं जिम्मेदारी नहीं लेना चाहतीं. वे इन सुखों का त्याग अपने कैरियर के लिए करती हैं क्योंकि आज के जमाने में वित्तीय मजबूती उन के लिए परिवार से भी अधिक जरूरी है. इस का फैसला हर युवती को खुद लेना पड़ता है. डबल इनकम उन के जीवन में अच्छा सुख दे सकती है, यह उन्हें अपने पति और परिवार को समझेना पड़ता है. कई बार तो बात बन जाती है पर कई बार उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ती है.

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व्यवसायी परिवार से निकली और व्यवसायी परिवार में शादी हुई युवतियों को यह समस्या कम झेलनी पड़ती है क्योंकि ससुराल वाले समझेते हैं कि सफलता के लिए कितनी मेहनत करनी होती है और मां, सास, बहन या जेठानी साथ दे देते हैं.

अगर कोई युवती किसी अनूठे व्यवसाय में है जिस में कम महिलाएं हैं तो समस्या बढ़ जाती है. उसे पता रखना होता है कि कल क्या करना है और वह उसे करे.

हर कामकाजी युवती को हर उम्र में खूबसूरत दिखना चाहिए. जब भी समय मिले वह ‘स्पा’ में जाए. शारीरिक व मानसिक व्यायाम करे. तनावमुक्त और ऐनर्जेटिक रहे.

ऐसे मिलेगी सफलता

जो अपने खुद के बिजनैस में हैं वे अभी रिटायर्ड नहीं होते. हमेशा आगे काम करते जाना उद्देश्य होना चाहिए. नई जैनरेशन और पुरानी जैनरेशन के बीच तालमेल बैठा कर रखना जरूरी है. नई जैनरेशन हर काम को अलग तरीके से लेती है. पुरानी जेनरेशन की महिलाओं के नामों को धैर्य से सुनना चाहिए.

अपनी विचारधारा में परिवर्तन करना चाहिए ताकि मनमुटाव न हो क्योंकि कई बातें नई जैनरेशन की सही होती है जबकि कुछ बातें पुरानी. दोनों के मिश्रण से जो परिणाम सामने आता है वह हमेशा अच्छा ही होता है.

ध्यान रखें कि सफलता वह है जिस से व्यक्ति को खुशी मिले. जब भी कोई काम करें तो कैसे करना है और कितनी खुशी आप को उस से मिल रही है सोच सकेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी. सफलता एक दिन में कभी नहीं मिलती.

आज की युवतियां उद्योग के क्षेत्र में बहुत सफल हो सकती हैं क्योंकि आज की टैक्नोलौजी जैंडर नहीं पूछती.

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बदला है नजरिया

वैसे भी आज लोगों का नजरिया युवाओं के लिए बदला है. हमारे देश में अगर महिला औथौरिटी के साथ है तो उसे बहुत सम्मान मिलता है. यही वजह है कि भारत की राजनीति में भी ममता बनर्जी और प्रियंका गांधी वाड्रा जैसी महिलाएं काफी संख्या में हैं. आज उद्योगों में भी महिलाएं हैं बहुत बड़े घरानों की और नई पीढ़ी की बेटियां भी लगातार काम पर आ रही हैं.

आम महिला की तरह फैशन, ज्वैलरी, खाना सब पसंद करें. अपना फैमिनिज्म न छोड़ें. संगीत सुनें और किताबें अवश्य पढ़ें. पति और बच्चों के साथ समय अवश्य बिताएं. सासससुर और अपने मांबाप की बराबर देखभाल भी करें. 24 घंटे काम करना सफलता की पहली शर्त है.

बड़ी-बड़ी असफलताएं न होतीं …तो हैरत करती शानदार सफलताएं भी न होतीं

थामस अल्वा एडीसन बल्ब बनाने में दिन-रात एक किये हुए थे. कई महीने नहीं बल्कि एक साल से ऊपर हो चुका था; लेकिन सफलता कहीं आसपास फटकती भी नजर नहीं आ रही थी. उनके प्रतिद्वंदियों को पता था कि वह आजकल बल्ब बनाने में दिन-रात एक किये हुए हैं. लेकिन कोई सफलता नहीं मिल रही. प्रतिद्वंदियों के लिए यह एडीसन की खिंचाई का बढ़िया मौका था. एक दिन एक सज्जन पहुंच गये. थोड़ी इधर उधर की बात के बाद कहने लगे, ‘पता चला है तुम बल्ब बनाने के क्रम 500 बार असफल हो चुके हो?’

एडीसन ने कहा, ‘नहीं तो, मैं तो बल्कि 500 प्रयोगों से यह जान चुका हूं कि इस तरह से बल्ब नहीं बन सकता. यह जानकारी भविष्य के लिए बहुत काम आयेगी.’ जो प्रतिद्वंदी वैज्ञानिक एडीसन को नीचा दिखाने के ख्याल से उनके पास गये थे, एडीसन का मुंह देखते रह गये. जी, हां! अगर इस तरह की असफलताओं और उनसे हार न मानने का जज्बा नहीं होता तो शायद ही आज दुनिया इतनी खूबसूरत होती. वास्तव में दुनिया को इतनी खूबसूरत और समृद्ध बनाने में असफलाओं का भी जबरदस्त योगदान है.

अब भला यह बात कौन सोच सकता है कि आज जिस फोन के बिना दुनिया का एक पल गुजारा नहीं है, कभी इसी फोन के बारे में अमरीकी राष्ट्रपति का अनुमान था कि इसे कोई इस्तेमाल नहीं करेगा. जबकि आज स्थिति यह है कि दुनिया की आबादी करीब 8 अरब है और दुनिया में फोनों की संख्या कोई 13 अरब है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आज की जीवनशैली में फोन कितना महत्वपूर्ण हो गया है.

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लेकिन जब ग्राहम बेल ने टेलीफोन का आविष्कार किया और इसका बहुत जोर शोर से तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति रदरफोर्ड हेज(1877-81) के सामने प्रदर्शन किया तो टेलीफोन का प्रदर्शन देखकर राष्ट्रपति प्रभावित तो हुए, ग्राहम बेल की पीठ भी थपथपायी लेकिन बड़ी मासूमियत से अफसोस के भाव वाला चेहरा बनाकर कहा, ‘आविष्कार तो ठीक है किंतु इस चीज को भला कौन इस्तेमाल करना चाहेगा?’
यकीन मानिए अगर अमरीकी राष्ट्रपति की इस नकारात्मक टिप्पणी से ग्राहम बेल हतोत्साहित हो गए होते तो आज टेलीफोन की मौजूदा सपनीली दुनिया भला कहां होती? राष्ट्रपति की टिप्पणी से ग्राहम बेल थोड़े परेशान तो हुए लेकिन वो अपने भरोसे पर मजबूती से खड़े रहे कि उनका आविष्कार एक दिन दुनिया बदल देगा. आज बेल भले अपनी जिद की कामयाबी देखने के लिए मौजूद न हो लेकिन दुनिया के सामने उनकी कामयाबी का परचम फहर रहा है.

आज भले इस पर किसी को विश्वास न हो लेकिन एक जमाना था, जब रेलगाड़ी की कामयाबी को लेकर आशंकाएं थीं और ये आशंकाएं आम लोगों से लेकर कई महान तकनीकी विशेषज्ञों तक को थीं. यहां तक कि यूनिवर्सिटी कालेज, लंदन के विद्वान प्रोफेसर डाॅ. लार्डर ने भी घोषणा कर दी थी कि तेज गति से रेल यात्रा सम्भव ही नहीं है. सिर्फ इतना ही नहीं डाॅ. लार्डर के इस निष्कर्ष के चलते ब्रिटेन की पार्लियामेंट में तत्कालीन विपक्षी दल के नेताओं ने सरकार के इस रवैय्ये पर सवालियां निशान लगा दिए थे कि वह रेल के विकास पर आंख मूंदकर  विश्वास करने का जोखिम क्यों ले रही है. लेकिन ब्रिटिश सरकार अपने विश्वास पर कायम रही और इतिहास गवाह है कि उसका विश्वास किस कदर कामयाब हुआ. आज पूरी दुनिया में भूतल परिवहन का सबसे बड़ा आधार रेल यातायात ही है. भले इन दिनों कोरोना के कहर के चलते बहुत कम लोग रेल यात्रा कर रहे हों, लेकिन आज भी हर दिन अरबों टन सामान ढोया जा रहा है.

लेकिन आशंकाएं तो आशंकाएं हैं. सिर्फ रेलगाड़ी को लेकर ही नहीं हवाई जहाज को लेकर भी तमाम नकारात्मक अनुमान व्यक्त किए गए थे, जो इस धारणा के पक्ष में थे कि हवा से भारी उड़ने वाली मशीनों का निर्माण असम्भव है. प्रख्यात वैज्ञानिक एवं ब्रिटिश रायल सोसायटी के अध्यक्ष लार्ड केल्विन ने 1895 में यह भविष्यवाणी की थी. किंतु इंसान उड़ा और वह भी महज 8 साल बाद ही सन 1903 में. सिर्फ लार्ड केल्विन ने ही नहीं बल्कि महान वैज्ञानिक एडिसन भी यही मानते थे कि उड़ने वाली मशीन का निर्माण सम्भव नहीं है. भले आज इन वैज्ञानिकों का मजाक यूनान और इटली के उन शासकों की तरह न उड़ाया जाता हो जिन्होंने एक दौर में अपनी जड़ धारणाओं के चलते कई महान वैज्ञानिकों को उनकी वैज्ञानिक धारणाओं के लिए सजाएं दी थीं, मगर इनकी आशंकाएं भी जोरदार रही हैं. जिस तरह उड़ने वाली मशीन यानी विमान को लेकर इसके मूर्त रूप लेने के पहले तक तमाम जिद्दी आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं.

उसी तरह हवाई जहाज बन जाने के बाद भी उसी दुनिया के तमाम तकनीकी विशेषज्ञ यह मानने को तैयार नहीं थे कि शुरुआती दौर के हवाई जहाजों से बड़ा और उन्नत हवाई जहाज भी किसी दिन अस्तित्व में आयेगा. साल 1933 में बोइंग 247 की उड़ान देखने के बाद बोइंग के ही एक इंजीनियर ने कहा कि दुनिया में कभी इससे बड़ा विमान नहीं बनाया जा सकेगा. गौरतलब है कि उस विमान में सिर्फ 10 लोगों के बैठने की जगह थी, जबकि आज दुनिया में ऐसे सुपर जम्बो बोइंग विमानों का अस्तित्व है जिनमें 800 लोग तक एक साथ सफर कर सकते हैं. हालांकि अभी तक ये व्यवहारिक तौरपर नहीं चलाए जा रहे लेकिन इसके सफल प्रयोग हो चुके हैं. 725 से ज्यादा लोग एक साथ हवा में उड़ चुके हैं. सिर्फ यात्री विमानों को लेकर ही नहीं एक दौर था जब लड़ाकू विमानों के बारे में भी खूब मजाक उड़ाया गया था. साल 1904 में प्रोफेसर ऑफ स्ट्रेटजी मार्सेल फर्डिनांड फोच ने सार्वजनिक तौरपर यह बात कही थी कि एयरोविमान इंट्रेस्टिंग खिलौने तो जरूर हैं, लेकिन युद्ध के लिए इनका कोई खास इस्तेमाल नहीं है.

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एक व्यक्ति ही नहीं कई बार समूह का समूह अपनी नकारात्मक आशंकाओ के प्रति इस कदर आस्था रखता है कि बिना अनदेखे भविष्य की चिंता किए बड़ी से बड़ी बात कह देता है, जिसकी बाद में भरपायी करते नहीं बनती. जब एडिसन विद्युत बल्ब बनाने की अपनी परियोजना पर काम कर रहे थे, तब ब्रिटिश पार्लियामेंट के विद्वान सांसदों की एक समिति ने मजाक करते हुए कहा था कि यह चीज यानी विद्युत बल्ब, अटलांटिक के पार के हमारे मित्रों (अमेरिकी लोगों) के लिये ठीक हो सकती है, लेकिन विज्ञान एवं व्यावहारिकता की समझ रखने वालों के लिए यह ध्यान देने लायक नहीं है.

आज जिस परमाणु ऊर्जा की बदौलत दुनिया की बड़ी तादाद में बिजली की जरूरतें पूरी हो रही हैं, साथ ही जिसे अथाह ऊर्जा का स्रोत भी माना जा रहा है, उसी परमाणु ऊर्जा पर उस वैज्ञानिक को भी भरोसा नहीं था जिसने इतिहास में पहली बार परमाणु विखण्डन संभव करके दिखाया था. जी, हां! हम ब्रिटेन के महान वैज्ञानिक रदरफोर्ड की ही बात कर रहे हैं. जिन्होंने पहली बार परमाणु विखंडन में सफलता पायी थी. उनका कहना था कि इसमें निहित ऊर्जा बहुत ही कम है. अतः इसको ‘ऊर्जा स्रोत’ के रूप में नहीं देखा जा सकता. आज फ्रांस की तकरीबन 90 फीसदी ऊर्जा जरूरतें परमाणु ऊर्जा से ही हासिल हो रही हैं.

घर के लिए कंप्यूटर कौन खरीदेगा? यह सवाल भारत के किसी साधु सन्यासी का नहीं है बल्कि 80 के दशक में यह बात डिजिटल इक्विपमेंट कॉर्प के फाउंडर केन ओस्लॉन ने कहा था. उनके मुताबिक घरों में कंप्यूटर की कोई जरूरत नहीं है. जल्द ही उन्हें उनके कई साथी संगियों ने साथ देना शुरु कर दिया. उनके बाद ही एक और भविष्यवाणी थॉमस वाटसन की आ गई जो उस समय आईबीएम के चेयरमैन हुआ करते थे. उनके मुताबिक दुनिया में पांच कंप्यूटर बेचने के लिए भी मार्केट नहीं है. आज भले कोई भी कंप्यूटर के विरोध में एक शब्द न कह सकता हो, लेकिन कुछ सालों पहले दुनिया की मशहूर बहुराष्ट्रीय कंपनी औरेकल के सीईओ लैरी एलिसन ने भी पीसी को लेकर यही कहा था कि यह विचित्र मशीन है. हममें से ज्यादातर लोग भले इस बात को लेकर साफ साफ राय न बना पाए कि पीसी विचित्र मशीन है या नहीं लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आज की दुनिया में पीसी हमारी जिंदगी का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके बिना कुछ सोचा ही नहीं जा सकता.

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Success कोई मशीनी फार्मूला नहीं

क्या तकनीकी ने इंसान के निजी कौशल को शून्य कर दिया है? क्या तमाम सफलताओं का एक निश्चित तयशुदा फार्मूला है और वे उन्हें फार्मूलों के चलते मिलते हैं? क्या अब हमारे काम करने के ढंग और भावनाओं या हमारे निजी संभव का हमारी सफलता से कोई लेना देना नहीं है? कई अध्ययन मानते हैं ऐसा नहीं है. आज भी सफलता निजी, गुणों का नतीजा होती है.

दो साल पहले हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के एक अध्ययन के मीडिया में छपे निष्कर्ष बताते हैं कि सफलता आज भी व्यक्तिगत उद्यम हैं न कि तकनीकी का नतीजा. यही वजह है कि हर गतिविधि को एक नियम में ढाल देने के बावजूद सफलता सुनिश्चित नहीं है. इसे आज भी सजगता, प्रतिबद्धता, जुनून और ईमानदारी जैसे वैयक्तिक गुणों और मूल्यों से ही हासिल किया जा सकता है. इसीलिये हमारी कुछ आदतों का महत्वपूर्ण योगदान हमें अमीर बनाने या सफल बनाने में होता है.

सवाल है ये आदतें क्या हैं? इनमें पहली आदत है कि अमीर आदमी तमाम चकाचैंध के बावजूद दिन को दिन रात को रात मानता है. रात में समय से सोकर सुबह जल्दी उठता है. अमीर आदमी की हर गतिविधि में अपनी एक तयशुदा गति होती है. वह न तो कभी हड़बड़ी में होता है, न ही आत्मघाती बेफिक्री में डूबा होता है. उसकी दैनिक दिनचर्या में एक लय होती है. अमीर लोग हर रोज कुछ न कुछ नया सीखते हैं या यूं कहें कि वे हमेशा कुछ न कुछ सीखते ही रहते हैं. देखने के इस दौर में भी वे कुछ न कुछ नया पढ़ते ही रहते हैं. अमीर आदमी या सफल आदमी ही नहीं बल्कि हर सुखी और हर खुश व्यक्ति नियमित रूप से सुबह व्यायाम करता है. बिल गेट्स आज भी हर दिन सुबह जल्दी उठकर कोई प्रेरक या नयी सीख देने वाली किसी किताब के कुछ अंश जरूर पढ़ते हैं.

लेकिन सिर्फ बिल गेट्स ही नहीं ज्यादातर अमीर लोग महीने में कोई एक या दो किताब जरूर पढ़ते हैं. इसके अलावा वह नॉलेज बढ़ाने के लिए अलग-अलग तरह की पुस्तकें पढ़ना पसंद करते हैं. अमीर और सफल व्यक्ति हर दिन सुबह उठकर कुछ सौ शब्द खुद से जरूर लिखता है भले दफ्तर में एक-एक शब्द लिखने के लिए कितने ही असिस्टेंट क्यों न हों. लिखने के दौरान सबसे ज्यादा नए विचार आते हैं. हर अमीर और सफल आदमी का हर दिन का अपना शेड्यूल होता है. वह उसमें बहुत आपातकाल में ही कोई तब्दीली करते हैं. कहते हैं रतन टाटा के पहले से तय दैनिक शिड्यूल में अगर अचानक करोंड़ों के बिजनेस डील की कोई मीटिंग भी आ टपकती थी तो वे उसे भी विन्रमता से उसके लिए मना कर देते थे.

समय की पंक्चुअलिटी की बात तो हम सब लोग करते हैं. एक किस्म से यह फैशन बन गया है. यही ऐसी बातें करते हुए हम महात्मा गांधी से लेकर माओ तक को कोट करना भी नहीं भूलते मगर हकीकत में अपने निजी जीवन में सिर्फ 3-5 फीसदी लोग ही समय के पाबंद होते हैं. लेकिन यह भी एक नोट करने वाली बात है कि जितने सफल लोग होते हैं या अमीर लोग होते हैं, उनमें 95 प्रतिशत तक को समय का पाबंद पाया गया है. इससे पता चलता है कि अमीर लोग हमेशा अपने और दूसरे के समय का ध्यान रखते हैं. लेकिन समय से पाबंदगी का सम्बन्ध किसी से मिलने के समय की पाबंदी ही नहीं होती. अमीर लोगों के लिए इसके बड़े और व्यापक सन्दर्भों में मायने होते हैं.

अमीर लोग किसी को दिए हुए समय के प्रति तो संवेदनशील होते ही हैं ये दिन के उन सबसे महत्वपूर्ण घंटों की भी बखूबी पहचान करते हैं, जिनमें वे सबसे ज्यादा काम कर सकते हैं. दूसरे शब्दों में जो सबसे उत्पादक घंटे होते हैं. इसके साथ ही अमीर लोग ऐसे कामों मे कभी भी समय खराब नहीं करते जो उन्हें कोई परिणाम नहीं देते हों. वे अपने सभी काम प्लानिंग के साथ करते हैं. इसलिए वे आज की लिस्ट को आज ही खत्म कर पाते हैं यानी हर दिन के अपने टारगेट को हासिल कर लेते हैं. दुनिया के सभी अमीर या सफल लोग समय का कई हिस्सों में प्रबंधन करते हैं. ज्यादातर लोग हर दिन के अपने काम की एक लिखित सूची रखते है, जो उन्हें उनके दैनिक लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करती है.

कहते हैं सफलता का पहला राज यह है किसी एक स्रोत पर ही पूरी तरह से निर्भर न रहें. जिसे हम कर्कुलेटिव रिस्क कहते हैं वह यही है कि सारा दांव एक ही चीज पर लगाने का जोखिम मोल न लें. अमीर लोग यही करते हैं. वह आय के किसी एक स्रोत के बजाय अनेक स्त्रोत विकसित करते हैं. इसके लिए वह समय-समय पर कुछ न कुछ नया सीखते रहते हैं. हमेशा अपने को अपडेट करते रहते हैं. किसी से भी सीखने में उन्हें कोई परहेज नहीं होता. अमीर लोगों में एक सुदृढ़ टीम भावना होती है. वह कभी भी किसी काम को अकेले करने में विश्वास नहीं करते. ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलने और बातचीत करने में रुचि रखते हैं. इसीलिये वे हमेशा नए-नए प्लेटफार्म तैयार करते रहते हैं.

सफलता के लिए जरुरी है दृढ़ संकल्पी होना

इस दुनिया में अनेको  ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प के बल पर मनचाही सफलता प्राप्त  की है . बिना विचलित हुए दृढ़ संकल्प और कर्म कर अनगिनत लोगों ने आश्चर्यजनक सुपरिणाम हासिल किये हैं. किसी परेशानी, मुसीबत और बाधा से उनके कदम रुके नहीं. वे अपने संकल्प को ध्यान में रख जुटे रहे और सफल हुए. सफल होने वाले व्यक्ति किसी और ग्रह के वासी या हाड़-मांस के अलावा किसी और चीज के बने नहीं होते.

वे सिर्फ यह जानते थे कि दृढ़ संकल्प के बल पर ही अपना लक्ष्य पाप्त किया जा सकता हैं. यह भी महत्वपूर्ण है कि केवल दृढ़ संकल्प से काम चलने वाला नहीं है. लक्ष्य पाप्ति के लिए निराशा से मुक्ति पाकर हर अनुकूल-पतिकूल स्थिति में अपना उत्साह बनाए रखना, समय का एक पल भी नष्ट न करना, परिश्रम से न घबराना, धैर्य बनाए रखना, समुचित कार्ययोजना बनाकर अमल में लाना आदि पर ध्यान केन्दित करना आवश्यक है.यदि आप किसी व्यक्ति की सफलता का रहस्य पूछें तो वह यही बताएगा कि उसने “ान लिया था कि वह ऐसा कर के या बन के रहेगा, चाहे कुछ भी हो जाए और इसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े. दुनिया की कोई शक्ति उसे विचलित नहीं कर सकती. किसी व्यक्ति को हो सकता है सफलता आसानी से या संयोगवश मिल गयी हो. ऐसा अपवाद स्वरूप ही हो सकता है. इस पकार के किसी संयोग का इन्तजार में भाग्य के भरोसे  सफलता पाने की सोचना मूर्खता के सिवा कुछ और नहीं. हां, उपयुक्त अवसर को कभी छोड़ना नहीं चाहिए. इसकी पहचान अपने विवेक और दूरदृष्टि से की जा सकती है.

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इच्छाशक्ति संकल्प जैसे बहुमूल्य सिक्के का दूसरा पहलू है. यह हमारे संकल्प को दृढ़ता पदान करती है. इसलिए अपनी इच्छाशक्ति को कभी कमजोर नहीं होने देना चाहिए. इससे हमें निराशा जैसी नकारात्मक स्थिति से भी छुटकारा मिलता है. ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि और अनेकानेक संसाधनों के अलावा संकल्प करने की क्षमता भी पदान की है. संकल्प कर लेने के बाद अपने पिछले कार्यों, व्यवहार, अभ्यास, आदतों आदि पर स्वयं अपने आलोचक बनकर दृष्टि डालनी चाहिए. संकल्प कर्म के बिना व्यर्थ है. गलत ढंग से और बिना कार्य योजना के कर्म करते जाना भी व्यर्थ है. स्वयं अपने पति, अपने संकल्प के पति और अपने पयासों के पति ईमानदार रहना बेहद जरूरी है.

शिक्षा और कॅरियर ही नहीं व्यवहार व आदतों के मामले में भी संकल्प महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. संकल्प तथा कर्म से मिली सफलता किसी पैमाने से नापना व्यर्थ है. कोई सफलता छोटी या बड़ी नहीं.

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सुबह जल्दी जगना क्यों जरूरी है?

हर रोज रात को सोते समय हम अलार्म लगाते हैं, कि कल से सुबह जल्दी उठना शुरू करेंगे, लेकिन जब अलार्म बजता है तो इतना गुस्सा आता है कि मोबाइल को कहीं दूर उठाकर फेंक दें. बार-बार अलार्म को बंद कर देते हैं. घर वाले उठा उठाकर परेशान हो जाते हैं, लेकिन सुबह की नींद को खराब करने का मन नहीं करता. ये समस्या आजकल ज्यादातर लोगों की है. वे रोज सुबह जल्दी उठने की आदत डालना तो चाहते हैं, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी सफल नहीं हो पाते.

यह विषय ऐसे लोगों के लिए ही है जो चाहकर भी अपनी आदतों को नहीं बदल पाते, लेकिन सबसे पहले ऐसे लोगों के लिए ये जानना जरूरी है कि दुनिया के बेहद कामयाब लोग जैसे स्टीव जॉब्स, टिम कुक, बराक ओबामा, मार्क जुकरबर्ग से लेकर नरेंद्र मोदी तक एक बात बहुत कॉमन है कि ये लोग सुबह हर हाल में जल्दी उठते हैं.

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हालांकि इसका ये मतलब नहीं है कि सुबह देर से उठने वाले लोग कामयाब नहीं होते, लेकिन सुबह जल्दी उठने वालों और देर से उठने वालों के बीच क्या फर्क होता है? सुबह जल्दी उठने के क्या फायदे होते हैं? साथ ही सुबह जल्दी उठने की आदत कैसे डाली जाए? इस बारे में हमने बात की आगरा की मोटिवेशनल स्पीकर सुचिता मिश्रा से.

जानिए सुबह उठने के फायदे

सुबह उठने से मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है. डिप्रेशन और स्ट्रेस जैसी परेशानियां नहीं सताती हैं. तमाम शोध में ये बात सामने आई है कि सुबह जो लोग जल्दी उठते हैं, उनका एनर्जी लेवल हाई होता है, दिमाग तरोताजा यानी फ्रेश होता है. इसके अलावा सुबह का वातावरण शांत होता है. लिहाजा सुबह जल्दी उठने वाले लोग अपना काम फ्रेश माइंड से और बेहतर एनर्जी के साथ अपना काम बेहतर एकाग्रता के साथ करते हैं. इससे प्रोडक्टिविटी बढ़ती है और परिणाम बेहतर आते हैं. सुबह उठने वालों को आत्मविश्वास मजबूत रहता है.

जानिए देर से उठने वालों और जल्दी उठने वालों के बीच का फर्क

आमतौर पर हर घर में दोनों तरह के लोग मिल जाते हैं, सुबह जल्दी उठने वाले भी और देर से उठने वाले भी. जब आप उन दोनों के बीच तुलना करेंगे तो पाएंगे कि जो लोग रात में देर तक जागते हैं और सुबह देर तक सोते हैं वे उठने के बाद भी खुद को फ्रेश महसूस नहीं कर पाते.

उठने के बाद उनका एनर्जी लेवल डाउन होता है. आलसपन रहता है. उठने के बाद भी वे करीब आधे से एक घंटे का समय इधर-उधर बैठकर या लेटकर गुजार देते हैं. जबकि जल्दी उठने वाले लोगों में एक अलग एनर्जी होती है. अपने महत्तवपूर्ण काम सुबह निपटा देने के बाद भी वे थकते नहीं. याद रखिए थके हुए शरीर से आप बहुत ज्यादा काम नहीं ले सकते. अगर जबरन कोशिश की तो शरीर बीमार पड़ जाएगा. इसलिए सुबह जल्दी उठने की आदत डालिए.

देर से उठने की आदत को कैसे बदलें

सबसे पहले देर से सोने की आदत को बदलें. देर से सोने के कारण हमारे शरीर की पूरी साइकिल गड़बड़ा जाती है. इसलिए रोजाना रात को कम से कम 10 से 11 के बीच जरूर सो जाएं ताकि शरीर को छह से सात घंटे की नींद मिल सके और आप सुबह समय से उठ सकें.

हर रोज रात को सोते समय खुद को ये रिमाइंड कराएं कि आपको सुबह जल्दी उठना है. इससे आपका दिमाग अलर्ट मोड पर रहेगा और आपकी आंख खुद ही सुबह जल्दी खुल जाएगी. जब भी कोई आदत बदलने की ठाने तो उस काम को कम से कम धैर्यपूर्वक 21 दिनों तक जरूर करें, क्योंकि किसी भी नई आदत को बनने में 21 से 30 दिनों का समय लगता है. अपने दिमाग को कंफर्ट जोन से बाहर निकालने के लिए खुद को किसी कारण से जोड़िए. इससे उस काम को करने की आपकी आत्मशक्ति और मजबूत होगी.

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सबसे महत्त्वपूर्ण बात जो आपके लिए समझना बहुत जरूरी है कि जितने भी कामयाब लोग हैं. उन सभी के पास एक दिन में 24 घंटे होते हैं और हमारे पास भी, लेकिन वो किस मुकाम पर बैठे हैं और हम कहां हैं. इस बात पर कभी विचार करेंगे तो आप पाएंगे कि उन सभी का टाइम मैनेजमेंट बहुत जबरदस्त होता है. वे सभी एक एक मिनट की अहमियत को समझते हैं और उसे फिजूल बर्बाद नहीं करते. इसलिए अगर आप वाकई किसी भी तरह से कामयाब होना चाहते हैं, तो ऐसे सफल लोगों के बारे में जरूर पढ़ें ताकि आपको समय की अहमियत और उसका प्रबंधन समझ में आ सके.

सफलता के लिए पांच “स’ का करें पालन

सफलता के लिए स का पांच रूप का नित्य पालन करे, सफलता आपके कदमो में होगी. हरेक व्यक्ति को जिंदगी में कभी न कभी खास बनने के अवसर आते हैं लेकिन अक्सर वे गलतफहमी या फिर खुद को कम आंकने के कारण मंजिल नहीं पाते. जिन्दगी के हर मूड पर हर मुश्किलों को आसन करने वाले पांच ’स‘ को अपने जीवन में उतारे, और अपने जीवन को सफल बनाये.

समुचित शिक्षा:-

शिक्षा किसी को भी महान बनती है, एक श्रेष्ठ विचार के लिए शिक्षित व्यक्ति का होना आवश्यक है. अच्छी और पूरी शिक्षा सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. बदलती दुनिया, बदलती तकनीक, आइडिया, अपरच्युनिटी और इनवायरमेंट काफी अहम है. इसलिए अलग-अलग गुण हासिल करने में खुद को लचीला बनाएं. अच्छी शिक्षा कभी व्र्यथ नहीं जाती. पढ़ने और सिखाने का कोई उम्र नही होता, इसलिए आपको जहाँ भी मौका मिले ज्ञान बटोरने में कंजूसी ना कीजिये.

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सर्वर्श्रेष्ठ प्रदर्शन :-

आप जहां भी, जैसे भी काम कर रहे हैं, अपना र्सवश्रेष्ठ प्र्रदशित करें. आप जहां भी काम कर रहे हैं, गहरी जानकारी रखें. सबकुछ सीखने की कोशिश करें, भले ही आपने किसी क्षेत्र में स्पेशलाइजेशन की हो. इससे आप पूरे आत्मविश्वास के साथ काम कर पाएंगे.

समय प्रबंधन : –

समय प्रबंधन आपके हर काम को सफल बनाने में 50 प्रतिशत तक मददगार होती है. सफल और असफल लोगों के समय में काफी अंतर होता है. फुर्तीले, समय के साथ व्यवस्थित रहने वाले के कदम सफलता हमेशा चूमती है. हर काम को चुनौती के तौर पर लेना सफल लोगों का शगल होता है जिसे वे बेहतर प्रबंधन के जरिए अंजाम देते हैं. अगर जिंदगी के हर मोड़ पर सफल होना है, तो समय प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना होगा.

संवाद :-

आपका संवाद आपके सोच का दर्पण होता है. अपने विचार प्रकट करना और दूसरे के विचार सुनना अहम गुण हैं. संवाद के लिए तीन बातें महत्वपूर्ण हैं- कंटेंट, प्लानिंग और प्रजेंटेशन. किसी भी विषय पर अपनी बात रखने से पहले उस विषय का गहन अध्ययन जरूरी है. इसके बाद कंटेंट तैयार कर बोलने का अभ्यास करें. पत्र-पत्रिकाओं के अलावा किताबें पढ़ना भी एक कला है. हल्के-फुल्के उपन्यास, कथा साहित्य के साथ विभिन्न ज्ञानर्वधक चैनल से काफी जानकारियां प्राप्त की जा सकती हैं.

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संयम: –

जिंदगी के हर मोड़ पर मुश्किलों का पहाड़ो का सामना करना पड़ता है, जो हमारी सफलता हो निश्चित करती है, इसमें हमारा संयम हम सभी को एक नई शक्ति प्रदान करती है,जिसके मदद से हर समस्या को दूसरों के नजरिए से देखने समझने की कोशिश करते है. मुश्किलों के समय निम्न बातो का ध्यान रखते हुए अपने आप को सदा संयम में रखे.अपनी तारीफ खुद कभी न करें. हमेशा ऐसे काम करें कि दूसरी आपकी तारीफ करें. ऐसे मामलों में संयम बरतें. घर-परिवार से लेकर ऑफिस की छोटी-छोटी बातें को तूल न दें. दूसरों की बातें भी मानें. इस बात से कोई र्फक नहीं पड़ता, यदि आपसे जूनियर या सीनियर ने आपको कुछ कह दिया. दूसरों की छोटी-छोटी बातों को मानकर और छोटी-छोटी गलतियों को माफ कर आप उनकी नजरों में महान बनते हैं. दूसरों को खुशी देने से आप भी खुद खुश रहेंगे.

सफलता और असफलता का रास्ता एक ही जैसा है

एक बार एक बुद्धिमान व्यक्ति ने लोगों को सिखाने के लिए कि ‘कैसे अपने जीवन में दुखों से छुटकारा पाया जाए’ एक सेमिनार  का आयोजन किया. उस बुद्धिमान व्यक्ति की बातें सुनने के लिए बहुत से लोग इकट्ठा हुए. उस आदमी ने कमरे में प्रवेश किया और भीड़ को एक चुटकुला सुनाया. सभी लोग उस चुटकुले पर बहुत हँसे.

एक-दो मिनट के बाद उस आदमी ने लोगों को फिर से वही चुटकुला सुनाया तो भीड़ में से कुछ ही लोग  उस चुटकुले को सुनकर मुस्कुराए.

जब उसने तीसरी बार वही चुटकुला सुनाया तो कोई भी नहीं हंसा.

बुद्धिमान व्यक्ति मुस्कुराया और उसने कहा, “जब आप एक ही मजाक पर बार-बार हँस नहीं सकते,तो आप अपनी असफलता के बारे में सोचकर बार-बार क्यों रोते रहते हैं? ”

असफलता जीवन की एक वास्तविकता है जिसका सामना सभी मनुष्यों को अपने जीवन में कभी न कभी, किसी न किसी रूप में  करना ही पड़ता है.  इससे कोई भाग नही सकता.

अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि “ यदि कोई व्यक्ति कभी असफल नहीं हुआ  इसका मतलब उसने अपने जीवन में कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की”

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अगर आप असफल नहीं होते इसका मतलब आप अपनी लाइफ में रिस्क लेने से डर रहे है. यह आपकी लाइफ का सबसे बड़ा रिस्क है की आप कोई रिस्क नहीं ले रहे है. कोई भी व्यक्ति इतिहास में grow नही किया है बिना रिस्क लिए, रिस्क तो आपको लेना ही पड़ेगा. आगे बढ़ें और चुनौतियों को स्वीकार करें. यदि आप कुछ बातों पर गहराई से विचार करें  तो आप आसानी से अपनी असफलता को सफलता में बदल सकते हैं:

1- अपनी असफलताओ से सीख लें

बात ये नहीं है की आप असफल हुए बात तो इसमें है की आपने अपनी असफलता से क्या सीखा. “थॉमस अल्वा एडिशन बचपन से हर प्रयोग में फेल हो रहे थे .9999 प्रयोग के बाद उन्होंने इलेक्ट्रिक बल्ब बनाया.वो हर प्रयोग के असफल होने के बाद ये नहीं सोचते थे की मैं  फेल हो गया  बल्कि सोचते थे कि आज इस असफलता से मैंने क्या सीखा .उन्होंने बात- चीत के  दौरान एक रिपोर्टर से कहा की ‘मैं 9999 तरीके सीख गया  हूँ जिनसे बल्ब नहीं बनता’”.

असफलता कोई समस्या नहीं है पर अपनी असफलताओं से सीख न लेना ये बहुत बड़ी समस्या है. किसी ने सच ही कहा है कि  “समस्या समस्या में नहीं है, समस्या को समस्या समझना एक बहुत बड़ी समस्या है”

2-अपनी असफलताओं के पीछे के कारण पर पर्दा न डालें

हम अक्सर अपनी असफलताओं को स्वीकार करने से डरते हैं और अपने आप को ही बहाने बनाकर समझाने लगते है कि मेरी असफलता मेरे कारण नही बल्कि दूसरों  के कारण है.

लोगों के पास ये बताने के बहुत से कारण है की मैं असफल क्यों हुआ. कुछ कहते है की मेरे पास पैसा नहीं था, कुछ कहते है की मेरे पास ताकत नहीं थी, कुछ कहते है की मेरे पास अवसर नहीं था , कुछ कहते है की मुझे मौका ही नहीं मिला. ठीक है भले ही आपके पास साधन नहीं है पर अगर आपके पास साधन जुटाने की क्षमता है तो आपको कोई नहीं रोक सकता.

अपनी असफलताओं के बहाने मत ढूंढे क्योंकि ये कुछ समय के लिए तो आपको तसल्ली दे सकते है पर आपको आपकी सफलता से कई कदम दूर भी कर सकते हैं. जिस क्षण आप अपनी असफलता को दिल से गले लगाते हैं और अपने व्यक्तिगत विकास के लिए इसके महत्व को समझते हैं, उसी क्षण आप सफलता की ओर पहली सीढ़ी पर कदम रखते है.

3- अपने आप से पूछे

सावधान रहें कि आप अपने आप से कैसे बात करते हैं, क्योंकि आप सुन रहे हैं. अपने आप से कभी ये मत पूछे  की मैं असफल क्यों हो जाता हूँ बल्कि ये पूछे की मैंने अपनी कौन-सी  ताकत का अब तक इस्तेमाल नहीं किया .अगर आप अपना पूरा फोकस कठिनाइयों पर रखोगे तो सफल होने की संभावनाए ख़त्म होती जाएँगी.

4-असफलता से न डरे

सफलता न मिलने का सबसे बड़ा कारण है कि आपका अपने किसी भी काम में असफल होने का डर होना. अगर एक बार अपने ये मान लिया किया कि आप ये नहीं कर सकते तो आप अपने पूरे  मन से प्रयत्न नही कर पाते और बार बार असफल होते हैं और फिर यही डर आपकी सोच पर हावी हो  जाता है.

कैंसर जैसी बीमारी तो एक बार ठीक भी हो सकती है पर आपकी सोच को कोई भी बाहरी व्यक्ति नहीं ठीक कर सकता .एक बात हमेशा याद रखिये असफल होने से आप और भी ज्यादा मजबूत बनते है और आपको आपका लक्ष्य और भी ज्यादा  साफ़ नज़र आता  है.

5 -अपना कोई एक लक्ष्य बनाए

अगर आपको सफलता पानी है तो आपको अपना कोई एक लक्ष्य निर्धारित करना होगा . अपने लक्ष्य पर जी जान लगाकर मेहनत करो.बहुत सारे काम  एक साथ करने की जरूरत नहीं है. वो करो जो सही है वो नहीं जो आसान है.

6 -अपनी willpower को बढ़ाए

अपनी willpower  को जगाइए  पर साथ ही साथ अपनी emotional feeling  को भी जगाइए,क्योंकि बिना emotional feeling के willpower अधूरी है.

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Willpower का मतलब है की ‘मुझे ये करना ही पड़ेगा’ और willpower के साथ emotional feeling का मतलब है ‘मुझे ये चाहिए ही चाहिए’ .जब किसी काम में आपकी emotional feeling जुड़ जाएगी तो वह काम आपके लिए बहुत आसान हो जायेगा .

7 -सफल व्यक्तियों की सफलताओं से नहीं असफलताओं से शिक्षा लें

अक्सर लोग अपनी तुलना दूसरों से करते है वो दूसरों की सफलताओं को देखकर सोचते हैं की क्या मैं इन जैसा सफल नहीं हो सकता? पर शायद वो ये नहीं जानते या नहीं जानना चाहते की एक सफल व्यक्ति ने भी ना जाने अपने जीवन में कितनी असफलताओं का सामना किया होगा.

भारत के पूर्व राष्ट्रपति और विश्व के महान वज्ञानिकों में से एक Dr. A.P.J. Abdul Kalam ने कहा था कि “अगर आपको अपने जीवन में तेज़ी से सफलता को हासिल करना है तो success stories मत पढ़िए उससे आपको सिर्फ motivation  ही मिलेगा .अगर पढना है तो failure stories पढ़िए क्योंकि उससे आपको आपके अन्दर की कमियों के बारे में पता चलेगा और आप ज्यादा अच्छे तरीके से अपनी कमियों को सुधार सकेंगे” .

याद रखे कि जितनी जल्दी हम अपनी असफलताओं को झटकना बंद कर देंगे,और उनसे सीखना शुरू कर देंगे  उतनी ही आसानी से हम अपनी सफलता की सीढ़ी चढ़ते जायेंगे.

‘Math के एक सवाल का एक ही उत्तर होता है पर जिंदगी के एक सवाल के बहुत सारे उत्तर होते है’.

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