जीवविज्ञान की कक्षा चल रही थी. अध्यापक छात्रों को ककून से तितली बनने की प्रक्रिया के बारे में बता रहे थे. उन के सामने एक ककून रखा हुआ था और उस में बंद तितली बाहर आने के लिए लगातार कठिन संघर्ष कर रही थी. इतने में ही अध्यापक कुछ कार्यवश थोड़ी देर के लिए कक्षा से बाहर निकल गए. छात्रों ने देखा कि तितली को अपने ककून से बाहर आने में काफी कष्ट व असहनीय पीड़ा हो रही है तो उन्होंने बालसुलभ सहानुभूतिवश ककून से तितली को निकलने में मदद करने की कोशिश की.
छात्रों ने ककून से बाहर आ रही अति नाजुक तितली को हाथ से पकड़ कर बाहर की तरफ खींच लिया. तितली बाहर तो आई किंतु इस प्रक्रिया के दौरान उस की मौत हो गई. जब अध्यापक कक्षा में वापस आए, छात्रों को मौन देख कर बड़ी हैरत में पड़ गए. किंतु पास में ही जब उन्होंने तितली को मृत देखा तो उन्हें सारी बातें समझने में तनिक भी देर नहीं लगी.
अध्यापक ने कहा, ‘‘तुम लोगों ने तितली को उस के ककून से बाहर आने में मदद कर उस की जान ले ली है. तितली अपने ककून से बाहर आने में जिस संघर्ष का सामना करती है, जिस दर्द को बरदाश्त करती है, वह उस के जीवन के अस्तित्व के लिए अनिवार्य होता है.
‘‘इस धरती पर जीवित रहने के लिए उसे वह पीड़ा सहनी ही पड़ती है. जन्म के समय के इस संघर्ष में जीवन जीने के लिए अनिवार्य गुणों को तितलियां बड़ी आसानी से सीख लेती हैं. कोई भी केटरपिलर अपने जीवन के इन कष्टों को सहन किए बिना जीवित नहीं रह सकता है. तुम लोगों ने उस तितली को उन जीवनदायी कष्टों से बचा कर उस की जान ले ली है.’’
सच पूछिए तो जीवन में कामयाबी प्राप्त करने तथा इस दुनिया में अपना अस्तित्व बनाए रखने का फार्मूला भी इस जीवनदर्शन से अलग नहीं है. इस धरती पर जन्म लेने वाले हर व्यक्ति को अपने जीवन के हिस्से के दुखदर्द तथा संताप को खुद सहन करना होता है.
सफर आसान नहीं
महान कूटनीतिज्ञ तथा राजनीतिज्ञ बेंजामिन डिजरायली कहा करते थे, ‘सफलता प्राप्त करना एक नया जीवन प्राप्त करने सरीखा होता है. जैसे एक नए जीव के जन्म के लिए प्रसवपीड़ा अनिवार्य तथा सर्वविदित सत्य है, उसी प्रकार सफलता के मुरीद व्यक्ति को जीवन की बेशुमार पीड़ाओं का सामना करना होता है.
‘सफलता बहुत संघर्ष व बलिदान मांगती है. निश्चय सुदृढ़ हो तथा अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए यदि कोई शख्स आने वाली हर मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार हो तो फिर कामयाबी पाने में कोई संदेह शेष नहीं रह जाता है.’
महात्मा गांधी के बारे में कहा जाता है कि वे अपनी पूरी जिंदगी में रोजाना 2 घंटे से अधिक कभी भी नहीं सोए. थौमस अल्वा एडीसन को अपने अनुसंधानों के समय रात और दिन का फर्क मालूम नहीं होता था. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बेतरतीब बाल तथा बढ़ी दाढ़ी के साथ घुटने तक फटे हुए पतलून में किसी ट्रेन के थर्ड क्लास कंपार्टमैंट में यात्रा करने वाले तथा अति साधारण दिखने वाले व्यक्ति के अंदर महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाइन का जादुई व्यक्तित्व भी छिपा हो सकता है?
आशय यह है कि जीवन के किसी क्षेत्र तथा मानव ज्ञान की किसी भी विधा में सफलता का सफर आसान नहीं होता. हमें हर मोड़ पर त्याग करने तथा कुरबानी देने की दरकार होती है.
त्याग काफी नहीं
किंतु केवल बलिदान तथा त्याग का होना ही सफलता की कसौटी नहीं है. अहम बात यह है कि सफलता के लिए किया जा रहा संघर्ष सच्चा है या नहीं. संघर्ष सही दिशा में किया जा रहा है या नहीं? क्योंकि समर्पण जितना सच्चा होता है, जितना सुदृढ़ होता है, सफलता उतनी ही निश्चित मानी जाती है.
यहां पर सब से अधिक जरूरी तथा विचारणीय प्रश्न यह उठता है कि संघर्ष करने तथा सफल होने की उत्कट लालसा में कहीं हम अपनों को ही नजरअंदाज तो नहीं कर रहे हैं? कामयाबी की रोशनी में चकाचौंध हो कर हम जिस अहम चीज को नकार जाते हैं वह होती है हमारी अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी का एहसास तथा कर्तव्य का भाव.
इस सच से कदाचित ही कोई इनकार कर पाए कि सफलता के लिए त्याग की जरूरत होती है, किंतु अहम प्रश्न यह उठता है कि सफलता त्याग की किस कीमत पर एवं कितनी कीमत पर?
कहानी जिंदगी की
प्रतीक की जिंदगी की कहानी उस के खुद के परिवार की खुशियों तथा निरंतर सफल होने की चाहत के मध्य की सुविधा से परे नहीं है. प्रतीक किसी मल्टीनैशनल कंपनी में काम करता था. वह अपनी महत्त्वाकांक्षा की प्राप्ति की राह में इस कदर व्यस्त हो गया था कि उस के पास अपनी पत्नी तथा बेटे के साथ अपने गम व खुशियों को बांटने का न तो वक्त होता था और न ही वह इस की कोई आवश्यकता समझता था. उस की पत्नी स्वाति को भी इस बात की हमेशा शिकायत रहती थी कि प्रतीक के पास उस के लिए कोई समय नहीं होता है. इस वजह से आएदिन परिवार में कलह तथा अशांति का माहौल रहता था. स्वाति ने कुछ दिनों के बाद इसे ही अपनी नियति मान कर प्रतीक से शिकायतें करनी बंद कर दीं.
प्रतीक के इकलौते बेटे आकाश को भी अकसर यही शिकायत रहती थी. ‘पापा, आप के पास तो मेरे लिए कोई वक्त ही नहीं है. आप तो मेरे साथ कभी खेलते भी नहीं हैं. यदि आप आज मेरे साथ नहीं खेलेंगे तो जान लीजिए, मैं कभी भी आप से बात नहीं करूंगा.’
सच पूछिए तो अपने बेटे की इन दोटूक बातों से प्रतीक के दिल को बहुत ठेस लगती थी और वह भावनात्मक रूप से थोड़ी देर के लिए परेशान हो उठता था. किंतु नौकरी की जिम्मेदारियों तथा सब से आगे बढ़ने की महत्त्वाकांक्षा के चक्रव्यूह में वह फिर से उलझ जाता.
वक्त गुजरता गया. प्रतीक व उस के परिवार के मध्य की नाराजगी धीरेधीरे उसे अपनों से दूर करती गई. सब लोगों ने उस से बातें करनी बंद कर दी. हां, उस का बेटा कभीकभी जरूर उस से आ कर चिपक जाता था, किंतु जब वह अपनी मम्मी को देखता तो शीघ्र भागने की कोशिश करने लगता. साथ रहते भी तनहातनहा रहने का क्रम कुछ दिनों तक इसी प्रकार जारी रहा.
सहसा एक दिन अपनी पत्नी के एक प्रश्न ने प्रतीक को अंदर से झकझोर कर रख दिया. ‘आखिर आप चाहते क्या हैं? आप को यदि अपनी नौकरी से इतनी ही मुहब्बत थी तो फिर आप ने मुझ से शादी क्यों की? यदि आप के पास अपनी पत्नी तथा अपने बेटे के लिए वक्त नहीं है तो फिर आप हम लोगों को छोड़ क्यों नहीं देते हैं?’
‘मैं आज जो कुछ भी कर रहा हूं,
वह तुम लोगों के सुखद जीवन के लिए कर रहा हूं. जीवन के भोगविलास तथा ऐशोआराम के लिए मेरी कोशिश केवल मेरे जीवन के लिए नहीं है, यह सब केवल और केवल तुम लोगों के लिए है,’ प्रतीक अकसर यही उत्तर दे कर अपनी पत्नी का मुंह बंद कर दिया करता था.
‘मैं मानती हूं कि आप की महत्त्वाकांक्षा में, आप के सपनों में हम सभी की सुख तथा सुविधाएं निहित हैं, किंतु सोच कर देखिए यदि मैं ही जीवित नहीं रही तो आप की शोहरत व सफलता की दुहाई देने वाले कौन होंगे? आप अपनी शानोशौकत किसे दिखाएंगे व आप किस पर गर्व करेंगे?
‘सफलता के शिखर पर पहुंच कर आप दुनिया की नजर में नाम तो कमा लेंगे, किंतु जब आप के खुद अपने ही आप के करीब नहीं होंगे तो क्या आप की वे खुशियां अधूरी तथा निरर्थक नहीं रह जाएंगी?’ प्रतीक की पत्नी ने बड़ी संजीदिगी से ये बातें कहीं.
अपनी पत्नी के आत्मदर्शन पर प्रतीक ने बड़ी गंभीरता से सोचा और आखिरकार उसे जो आत्मबोध हुआ, उस की स्निग्ध छांह में उस के मन पर वर्षों से जमी भ्रम की तपिश किसी मोम की तरह पिघलती गई और उसे अपने मन के जख्म पर किसी मरहम सरीखे ठंडक की अनुभूति हुई. उस आत्मानुभूति ने उस के जीवन की दिशा व दशा दोनों में कई अहम तबदीलियां ला दीं.
ऐसा नहीं है कि प्रतीक ने सपने देखना छोड़ दिया है. आज भी वह जीवन के वही सारे सपने देखता है, किंतु उस के पास उन सपनों को साकार करने की वो बेचैनी अब नहीं रही. परिवार की खुशियों की कीमत पर प्रतीक ने सपनों का पीछा करना छोड़ दिया. वह अब अपने बेटे के साथ खेलने के लिए तथा भागनेदौड़ने के लिए पूरा वक्त निकालता है. ऐसे में पत्नी भी खुश रहने लगी है.
परिवार की भूमिका
सच पूछें तो आधुनिक अर्थव्यवस्था की सूचना क्रांति के वर्तमान जादुई युग में जनमानस की सोच तथा जीवनशैली में जिस प्रकार के बदलाव आए हैं, उन के चलते हम ने आज यदि कुछ खोया है, तो वह है मानसिक शांति व आत्मिक सुकून. भौतिक भोगविलास की अंतहीन खोज में हम ने यदि कुछ खोया है, तो वह पारिवारिक सुखसुकून की वो स्निग्धता, जिस के कोमल एहसास में जीवन का परम सुख निहित होता है.
कदाचित इस बात से हम इनकार नहीं कर सकते कि मानव जीवन में परिवार की भूमिका उस कुशन या गद्दे की तरह की होती है, जो हमें जीवन में सफलता की ऊंचाइयों से अचानक गिरने पर हमें जख्मी होने से बचाती है. इसीलिए सफलता पाने की कोशिश में केवल संघर्ष ही अनिवार्य नहीं है, बल्कि उन अपनों के प्यार व सहानुभूति की भी दरकार होती है जिन की उपस्थिति के बिना जीवन तथा जहान की सारी खुशियां अधूरी प्रतीत होती हैं.
आप के अपने आप के सपनों के पीछे भागने की रेस में आप के साथ होंगे तो आप को एक अद्भुत ऊर्जा तथा प्रेरणा का एहसास पलप्रतिपल होगा. अपनों के प्यार को खो कर पाई गई किसी भी कामयाबी की कीमत कभी भी इतनी अधिक नहीं होती, जो आप के जीवन की भावनात्मक कमी की भरपाई कर सके.
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