कहीं आप या आपके जानने वाले में तो नहीं डिप्रेशन के ये लक्षण, पढ़ें खबर

आजकल हम लोग ज़िन्दगी की भाग दौड़ में इतना व्यस्त हो गए है की हमारे पास न ही खुद के लिए समय हैं और न ही हमारे अपनों के लिए . हम शोहरत ,नाम और पैसा कमाने के पीछे इतना पागल हो गए है की हमें अपने जीवन की असली कीमत ही दिखाई देना बन्द हो गयी है. अगर हम अपनों के काम नहीं आ सके तो ये पैसा ,नाम और शोहरत किस काम की.अपनों के मन की बात जानने की कोशिश करें उन्हें नज़रंदाज़ बिलकुल न करे.कहीं हमारा इग्नोरेंस हमारे अपनों को उस अँधेरी दुनिया में न धकेल दे ,जहाँ से लौट पाना बिलकुल नामुमकिन है.तो please मेरा ये लेख पूरा पढ़े .शायद ये आपके या आपके अपनों के काम आ जाये.

आखिर क्या है डिप्रेशन-

आजकल लोग जिंदगी की भाग दौड़ में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि कुछ समय बाद ही डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. दोस्तों यह एक मानसिक बीमारी होती है जो कुछ लोगों को तो थोड़े समय के लिए ही रहती है लेकिन कई लोगों में यही डिप्रेशन एक भयानक रूप भी ले लेता है .जब डिप्रेशन बहुत बढ़ जाता है तो इस स्थिति में लोगों का मन जिंदगी से भर जाता है.

वैसे तो हर किसी की जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते हैं.हर कोई कभी न कभी दुखी और उदास महसूस कर सकता है.लेकिन, अगर आप लगातार दुख और निराशा का अनुभव कर रहे हैं तो, ये डिप्रेशन हो सकता है.

डिप्रेशन के समय इंसान यह सोचता है कि वह जिंदगी में कुछ नहीं कर सकता और वह अपनी हार स्वीकार कर लेता है. उन्हें लगता है कि अगर वो दूसरों को अपनी परेशानी बताएंगे तो वह उनका मजाक बनाएंगे .यह रवैया इंसान की दिक्कत को कम करने की जगह और बढ़ा देता है

एक रिसर्च के अनुसार, पूरी दुनिया में 35 करोड लोग डिप्रेशन के शिकार हैं. भारत जैसे विकासशील देश में भी डिप्रेशन बेहद तेज़ी से एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रहा है. भारतीय युवाओं में तेजी से डिप्रेशन के मामले देखने में आ रहे हैं.

18 से 35 साल की उम्र के बीच का हर 4 में से 1 किशोर डिप्रेशन का शिकार हो रहा है. ऐसा माना जाता है कि 2030 तक आते-आते डिप्रेशन मनुष्य की असमर्थता का दूसरा सबसे बड़ा कारण होगा. ऐसा नहीं है कि डिप्रेशन अभी की बीमारी है ,यह हमारे पूर्वजों के जमाने से चली आ रही है परंतु चिंता का विषय यह है कि 20 वीं सदी में इसका प्रभाव पहले से 10 गुना ज्यादा बढ़ गया है.

हमने ये तो जाना की डिप्रेशन क्या है ?चलिए अब जानते है ही इसके पीछे क्या कारण हो सकते है और इसके लक्षण क्या है?

डिप्रेशन के कारण-

बहुत से लोगों को कभी ये पता ही नहीं चल पाता है कि उन्हें होने वाले डिप्रेशन की वजह आखिर क्या है? ऐसे लोगों की संख्या करीब 30 फीसदी के आसपास है जिन्हें आंशिक रूप से डिप्रेशन की समस्या है.

आइये जानते है की डिप्रेशन के क्या कारण हो सकते है-

1-डिप्रेशन की समस्या अनुवांशिकी भी हो सकती है.अगर किसी व्यक्ति के परिवार में दिमाग से जुड़ा कोई disorder रहा है तो उस व्यक्ति को ये समस्या हो सकती है.

2-बचपन में घटने वाली कुछ ऐसी घटना जिसका बच्चे के दिम्माग पर गहरा असर पड़ता है,डिप्रेशन का कारण हो सकता है.

3-अगर किसी को ड्रग्स या अल्कोहल के सेवन की लत रही है तो उसमे भी डिप्रेशन होने के चांस बढ़ जाते हैं.

4- आर्थिक समस्याओं का होना भी डिप्रेशन होने का कारण हो सकता है.

5- माता-पिता की उम्मीदों पर खरा उतरने का दबाव भी डिप्रेशन होने का कारण हो सकता है.

6- किसी करीबी को खो देने के कारण भी डिप्रेशन होने के चांस बढ़ जाते हैं.

7- कभी-कभार खुद के लिए हीन भावना या अपने आप से संतुष्ट न होना भी डिप्रेशन का एक कारण बन सकता है.

8-अकेलापन ,डिप्रेशन होने का सबसे बड़ा कारण होता है. अगर कोई इंसान अपने मन की बात किसी से नहीं कह पायेगा तो वह अन्दर ही अन्दर घुटता जायेगा और जब यही घुटन इंसान के दिमाग पर हावी हो जाती है तो वह डिप्रेशन का रूप ले लेती है.

दोस्तों ये तो थे डिप्रेशन के कारण .चलिए अब जानते है इसके लक्षणों के बारे में जो की हमारे लिए जानना बहुत ही जरूरी है .

डिप्रेशन के लक्षण-

दोस्तों डिप्रेशन ऐसी समस्‍या है जिसके बारे में कोई बात नहीं करता और यही इसके समाधान में सबसे बड़ी बाधा है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन आगाह कर चुका है कि 2020 तक डिप्रेशन दुनिया की दूसरी बड़ी बीमारी बन जाएगी. लेकिन हममें से बहुत से लोग जानते ही नहीं कि डिप्रेशन को कैसे पहचानें.
आइये जानते है इसके लक्षणों के बारे में-

1-उदासी और अकेलापन महसूस होना-

दोस्तों डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति की अक्सर अकेलापन और उदासी महसूस होती है. इसमें व्यक्ति अपनी जिंदगी और अपने आसपास को लेकर बेहद उदास हो जाता है. वह बहुत नकारात्मक और खुद को बेकार महसूस करता है. उसे हमेशा ये लगता है की उसकी कोई अहमियत ही नहीं है.उसे खुद से नफरत होने लगती है. उसकी रचनात्मकता खत्म हो जाती है और वह अपने लिए भी कोई काम नहीं करना चाहता है. छोटा सा छोटा काम उसे बहुत भारी लगता है.

2- घर से बाहर निकलने की इच्‍छा न होना-

व्यक्ति का समाज से कट जाना डिप्रेशन के शुरुआती लक्षणों में से एक है.अगर समय पर इसे नहीं समझा गया तो व्यक्ति समाज से पूरी तरह से कट सकता है. इस तरह के व्यक्ति अक्सर अपने कमरे में अकेले रहना चाहते है और बाहर जाकर लोगों से घुलना मिलना पसंद नहीं करते. ये व्यक्ति अपनी भावनाएं जाहिर करना छोड़ देते है और उन्हें अपने आसपास से कोई फर्क नहीं पड़ता.

3- नींद न आना या रातों में बार-बार नींद खुलना-

अगर आपको लंबे समय से नींद नहीं आती है या रातों को बार-बार आपकी नींद उचट जाती है और फिर नहीं आती तो समझ ले की यह डिप्रेशन की निशानी है. समय रहते इसका निवारण खोजने की कोशिश करें.

4- किसी एक चीज पर फोकस न कर पाना-

अगर आप किसी एक चीज़ पर अपने आपको फोकस न कर पाए या छोटे-छोटे कामों में भी आपका concentration न हो . तो समझ ले की ये डिप्रेशन के शुरुवाती लक्षण है.

5-अक्सर नर्वसनेस feel होना या बिना किसी बात के चिडचिडापन आना-

अगर आप हमेशा अपने आप में नर्वस महसूस करें, बात करने मे बार-बार आपकी जुबान लडखडाये या इसके अलावा बिना किसी बात के मूड खराब होना भी डिप्रेशन का संकेत है.

6-खुदकुशी के ख्‍याल

एक नई स्टडी के अनुसार डिप्रेशन लोगों को मरने जैसी स्थिति में पहुंचा सकता है. इसे ‘साइकोजेनिक डेथ’ कहते हैं. जीते जी मरने की यह स्थिति अलग-अलग चरण में प्रभावित करती है और धीरे-धीरे व्यक्ति को मौत के मुंह में धकेल देती है. अगर किसी को बार बार अपना जीवन खत्म करने का ख्याल आये और लगे की अब मेरे जीवित रहने का कोई कारण नहीं है तो यह एक गंभीर डिप्रेशन के लक्षण है.अगर आपके आसपास कोई ऐसा व्यक्ति है तो आपको उसकी तुरंत मदद करनी चाहिए, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए.. दोस्तों यदि आप या आपके आस पास का कोई भी व्यक्ति ऊपर बताये गए लक्षणों में से कोई भी लक्षण महसूस कर रहा है तो तुरंत किसी मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक के पास जरूर जाए.

डिप्रेशन से बचने के उपाय-

दोस्तों ‘इलाज़ से बेहतर बचाव है’ ये तो हम सभी जानते है. जानकार कहते हैं कि अगर समय पर डिप्रेशन से गुजर रहे व्‍यक्ति से मेलजोल बढ़ाया जाए तो इससे उबरने में बड़ी मदद हो सकती है.
दोस्तों हमें आज के बारे में ही सोचना चाहिए और आज को ही बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए.
तनाव या दबाव को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप गाना सुने इससे तनाव में कमी आती है और इंसान खुद को तरोताजा महसूस करता है. इंसान डिप्रेशन को कम करने के लिए अक्सर शराब और ड्रग्स जैसी नशीली चीजों का सहारा लेता . नशीली चीजों का सेवन करने से कुछ देर के लिए तो तनाव दूर हो जाता है लेकिन धीरे-धीरे ये हमें अन्दर ही अन्दर खोखला कर देती हैं और हमारे लिए और भी घातक हो जाती है .

दोस्तों मेरे इस लेख का उद्देश्य आपको डराने का नहीं है.मै अपने इस लेख के माध्यम से सिर्फ यह कहना चाहती हूँ की ज़िन्दगी बहुत कीमती है और हमारे अपने भी.

बच्चों में डिप्रैशन से निबटना जरूरी

15 साल की रिया जब भी स्कूल जाती, क्लास में सब से पीछे बैठ कर हमेशा सोती रहती. उस का मन पढ़ाई में नहीं लगता था. वह किसी से न तो ज्यादा बात करती और न ही किसी को अपना दोस्त बनाती. अगर वह कभी सोती नहीं थी, तो किताबों के पन्ने उलट कर एकटक देखती रहती. क्या पढ़ाया जा रहा है, इस से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. हर बार उस की शिकायत उस के मातापिता से की जाती, पर इस का उस पर कोई असर नहीं पड़ता था.

वह हमेशा उदास रहा करती थी. इसे देख कर कुछ बच्चे तो उसे चिढ़ाने भी लगते थे, पर वह उस पर भी अधिक ध्यान नहीं देती थी. परेशान हो कर उस की मां ने मनोवैज्ञानिक से सलाह ली. कई प्रकार की दवाएं और थेरैपी लेने के बाद वह ठीक हो पाई.

दरअसल, बच्चों में डिप्रैशन एक सामान्य बात है, पर इस का पता लगाना मुश्किल होता है. अधिकतर मातापिता इसे बच्चे का आलसीपन समझते हैं और उन्हें डांटतेपीटते रहते हैं. इस से वे और अधिक क्रोधित हो कर कभी घर छोड़ कर चले जाते हैं या फिर कभी आत्महत्या कर लेते हैं.

बच्चों की समस्या न समझ पाने की 2 खास वजहें हैं. पहली तो हमारे समाज में मानसिक समस्याओं को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता और दूसरे, अभी बच्चा छोटा है, बड़ा होने पर समझदार हो जाएगा, ऐसा कह कर अभिभावक इस समस्या को गहराई से नहीं लेते. मातापिता को लगता है कि यह समस्या सिर्फ वयस्कों को ही हो सकती है, बच्चों को नहीं.

शुरुआती संकेत : जी लर्न की मनोवैज्ञानिक दीपा नारायण चक्रवर्ती कहती हैं कि आजकल के मातापिता बच्चों की मानसिक क्षमता को बिना समझे ही बहुत अधिक अपेक्षा रखने लगते हैं. इस से उन्हें यह भार लगने लगता है और वे पढ़ाई से दूर भागने लगते हैं. अपनी समस्या वे मातापिता से बताने से डरते हैं और उन का बचपन ऐसे ही डरडर कर बीतने लगता है, जो धीरेधीरे तनाव का रूप ले लेता है. मातापिता को बच्चे में आए अचानक बदलाव को नोटिस करने की जरूरत है. कुछ शुरुआती लक्षण निम्न हैं :

–       अगर बच्चा आम दिनों से अधिक चिड़चिड़ा हो रहा हो या बारबार उस का मूड बदल रहा हो.

–       बातबात पर  गुस्सा होना या रोना.

–       अपनी किसी हौबी या शौक को फौलो न करना.

–       खानेपीने में कम दिलचस्पी रखना.

–       सामान्य से अधिक समय तक सोना.

–       अलगथलग रहने की कोशिश करना.

–       स्कूल जाने की इच्छा का न होना या स्कूल के किसी काम को न करना आदि.

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इस बारे में दीपा आगे बताती हैं कि किसी भी मातापिता को बच्चे को डिप्रैशन में देखना आसान नहीं होता और वे इसे मानने को भी तैयार नहीं होते कि उन का बच्चा डिप्रैशन में है.

तनाव से निकालना : निम्न कुछ बातों से बच्चे को तनाव से निकाला जा सकता है–

–       हमेशा धैर्य रखें, गुस्सा करने पर बच्चा भी रिवोल्ट करेगा और आप उसे कुछ समझा नहीं सकते.

–       बच्चे को कभी यह एहसास न होने दें कि वह बीमार है. यह कोई बीमारी नहीं है, इस का इलाज हो सकता है.

–       हिम्मत से काम लें, बच्चे को डिप्रैशन से निकालने में मातापिता से अच्छा कोई नहीं हो सकता.

–       बच्चे से खुल कर बातचीत करें, तनावग्रस्त बच्चा अधिकतर कम बात करना चाहता है. ऐसे में बात करने से उस के मनोभावों को समझना आसान होता है. उस के मन में कौन सी बात चल रही है, उस का समाधान भी आप कर सकते हैं.

–       हमेशा बच्चे को लोगों से मिलनेजुलने के लिए प्रेरित करें.

–       बातचीत से अगर समस्या नहीं सुलझती है, तो इलाज करवाना जरूरी है. इस के लिए आप खुद उसे मनाएं और ध्यान रखें कि डाक्टर जो भी दवा दे, उसे वह समय पर ले, इस से वह जल्दी डिप्रैशन से निकलने में समर्थ हो जाएगा.

अपना दायित्व समझें : मातापिता बच्चे के रिजल्ट को ले कर बहुत अधिक परेशान रहते हैं. इस बारे में साइकोलौजिस्ट राशिदा कपाडि़या कहती हैं कि बच्चों में तनाव और अधिक बढ़ जाता है जब उन की

बोर्ड की परीक्षा हो. ऐसे में हर मातापिता अपने बच्चे से 90 प्रतिशत अंक की अपेक्षा लिए बैठे रहते हैं और कम नंबर आने पर वे मायूस होते हैं. ऐसे में बच्चा और भी घबरा जाता है. उसे एहसास होता है कि नंबर कम आने पर उसे कहीं ऐडमिशन नहीं मिलेगा, जबकि ऐसा नहीं है, हर बच्चे को अपनी क्षमता के अनुसार दाखिला मिल ही जाता है.

कई ऐसे उदाहरण हैं जहां रिजल्ट देखे बिना ही बच्चे परीक्षा में अपनी खराब परफौर्मेंस के बारे में सोच कर आत्महत्या तक कर लेते हैं. इस से बचने के लिए मातापिता को खास ध्यान रखने की जरूरत है :

–       अपने बच्चे की तुलना किसी अन्य बच्चे से न करें.

–       वह जो भी नंबर लाया है उस की तारीफ करें और उस की चौइस को आगे बढ़ाएं.

–       अपनी इच्छा बच्चे पर न थोपें.

–       उस की खूबियों और खामियों को समझने की कोशिश करें. अगर किसी क्षेत्र में प्रतिभा नहीं है, तो उसे छोड़ उस के हुनर को उभारने की कोशिश करें.

–       एप्टिट्यूड टैस्ट करवा लें, इस से बच्चे की प्रतिभा का अंदाजा लगाया जा सकता है.

–       उस के सैल्फ स्टीम को कभी कम न करें.

–       उस की मेहनत को बढ़ावा दें.

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–       समस्या के समाधान के लिए बच्चे से खुल कर बातचीत करें और उस के मनोभावों को समझें तथा उस के साथ चर्चा करें.

–       अपनी कम कहें, बच्चे की ज्यादा सुनें, इस से बच्चा आप से कुछ भी कहने से हिचकिचाएगा नहीं.

–       बच्चे को हैप्पी चाइल्ड बनाएं, डिप्रैशनयुक्त नहीं.

कोरोना में बढ़ा महिलाओं का तनाव, ऐसे करें बचाव

कोरोना के समय महिलाएं ज्यादा तनाव ले रही हैं जिसका असर उनकी मेंटल हेल्थ पर पड़ रहा है. लेकिन दुर्भाग्य से कई महिलाएं इस बात को न समझ पाने के कारण धीरे-धीरे डिप्रेशन का शिकार हो रही हैं. ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए. इसके विभिन्न कारण हैं जैसे कि परिवार के स्वास्थ्य को लेकर चिंता, ज़िम्मेदारियों का बढ़ना, बहुत अधिक सोचना, नींद पूरी न होना, योग व मेडिटेशन की कमी, घर से बाहर न निकल पाना, घर की अन्य समस्याओं की चिंता आदि. इसके अलावा भी कई कारण हो सकते हैं.

वैसे सामान्य दिनों में भी महिलाएं कई कारणों से मेंटल हेल्थ समस्याओं की शिकार रहती हैं. आमतौर महिलाओं को घर और ऑफिस के बीच संतुलन बनाएं रखना होता है और जब वे यह करते-करते थक जाती हैं तो वे तनाव का शिकार होने लगती हैं. वहीं परिवार के हर सदस्य की खुशी का ख्याल रखते-रखते वे अपनी खुशियों के बारे में पूरी तरह भूल जाती हैं जो भविष्य में उनके तनाव का कारण बनता है. प्रेग्नेंसी, पीरियड्स, घर में किसी की तबियत खराब हो गई है, कोई परेशान है, घर की आर्थिक स्थिति आदि कई कारणों से महिलाएं तनावग्रस्त हो जाती हैं.

तनावग्रस्त या डिप्रेशन में होने के लक्षण

  • बात-बात पर गुस्सा आना
  • चिड़चिड़ापन
  • अचानक रोने का मन करना
  • हर चीज़ में गड़बड़ी महसूस होना
  • नींद न आना
  • भूख लगने के बाद भी खाने का दिल न करना
  • बहुत ज्यादा या बहुत कम भूख लगना
  • लोगों से दूर भागना
  • ज्यादातर अकेले रहना

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समस्या से बचने का उपाय

दुर्भाग्य से मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को गंभीर होते देर नहीं लगती है. इसलिए हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना हमारी सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए क्योंकि यही एक विकल्प है जिससे इस स्थिति को जीता जा सकता है.

एक अच्छा रुटीन तैयार करें: एक अच्छा रुटीन बनाएं और हर दिन उसका पालन करें. घर के कामों के अलावा अपनी हॉबीज़ पर भी ध्यान दें. ऐसी गतिविधियों में शामिल हों जिनमें आपको दिलचस्पी भी हो और जो आपको खुश भी करते हों.

योग और मेडिटेशन करें: मेडिटेशन और योगा आपको न सिर्फ शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ रखते हैं. इसलिए हर दिन सुबह जल्दी उठकर योग अवश्य करें. इससे मस्तिष्क में खून का प्रवाह बेहतर होता है, हेप्पी हार्मोन्स रिलीज़ होते हैं और ऑक्सिडेटिव तनाव कम होता है. हल्की फुल्की एक्सरसाइज़ भी सेहत के लिए अच्छी रहेगी.

स्वस्थ आहार: आपको पौष्टिक व संतुलित आहार के साथ शारीरिक सक्रियता का पूरा ख्याल रखना है. ऐसी चीजें खाएं जिससे आपकी इम्यूनिटी मजबूत रहे. हार्मोनल स्तर में उतार-चढ़ाव के कारण कभी भूख ज्यादा लगती है तो कभी कुछ भी खाने का मन नहीं करता है. असल समस्या पर ध्यान दें, लाँग टर्म की दृष्टि के साथ सोचें और सही फैसला करें.

अच्छी नींद: किसी भी व्यक्ति को हर रोज़ 6-7 घंटों की अच्छी नींद पूरी करनी चाहिए. नींद पूरी होने से आप हमेशा तरोताज़ा महसूस करेंगी जिससे आपको तनाव से लड़ने में मदद मिलेगी.

आराम जरूरी: हमारे देश में घर का ज्यादातर काम महिलाएं ही करती हैं. यहां तक कि ऑफिस वाली महिलाओं को भी अपने घर के कामों पर भी ध्यान देना पड़ता है. परिवार की ज़रूरतों को पूरा करते करते महिलाएं अपने स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ कर देती हैं जो उनके तनाव का कारण भी बनता है. काम जरूरी हैं लेकिन पर्याप्त मात्रा में आराम करना भी जरूरी है.

बहुत ज्यादा सोचें नहीं: घर परिवार में छोटी-बड़ी बातें होती रहती हैं. हालांकि हालात खराब हैं लेकिन आपको हिम्मत से काम लेना है क्योंकि आप स्वस्थ रहेंगी तभी परिवार का ख्याल अच्छे से रख पाएंगी.

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जरूरत पड़ने पर डॉक्टर से संपर्क करने से बिल्कुल न हिचकिचाएं. इस प्रकार के तनाव या डिप्रेशन के इलाज के लिए काउंसलिंग, एंटी डिप्रेशन दवाइयां या हार्मोनल थेरेपी आदि शामिल की जाएंगी. यदि इन सब के बाद भी तनावग्रस्त महसूस करती हैं तो किसी अच्छे साइकोलॉजिस्ट से संपर्क करें.

डॉक्टर गौरव गुप्ता, साइकोलॉजिस्ट, डायरेक्टर, तुलसी हेल्थकेयर

महिलाएं क्यों हो जाती हैं डिप्रैस

रीना और नरेश की शादी को 3 साल हो गए हैं. पतिपत्नी दोनों नौकरीपेशा हैं. औफिस में काम के सिलसिले में उन्हें शहर के बाहर भी जाना पड़ता है. अभी तक सब ठीक चलता आ रहा था, लेकिन पिछले कुछ महीनों से रीना को थकान, बेचैनी और नींद न आने की शिकायत रहने लगी है. डाक्टर को दिखाने पर पता चला कि रीना तनाव में जी रही है. नौकरी के कारण पतिपत्नी को काफी समय तक अलगअलग रहना पड़ता. जब तक उस का पति साथ रहता, तब तक सब सही रहता, लेकिन जब वह अकेली होती तो उस के लिए घर के कामों और नौकरी के बीच तालमेल बैठाना मुश्किल हो जाता. वैसे भी रीना चाह रही थी कि अब वह अपना घर संभाले, परिवार बढ़ाए. मगर उस का पति कुछ समय और इंतजार करना चाह रहा था. बस इसी वजह से रीना तनाव में रहने लगी थी.

तनाव के कारण द्य आजकल की दिनरात की दौड़धूप, औफिस जानेआने की चिंता, बच्चों की देखभाल, उन की पढ़ाई की चिंता, परिवार के खर्चे आदि कुछ ऐसे कारण हैं, जो पुरुषों से अधिक औरतों को परेशान करते हैं. इन के अलावा हारमोन का बैलेंस गड़बड़ाना (माहवारी से पहले और मेनोपौज के दौरान), मौसम में बदलाव आदि भी किसी महिला के जीवन में अवसाद का कारण बनते हैं.

द्य गर्भधारण के समय से ही महिलाओं के दिमाग में बेटा होगा या बेटी की चिंता घर करने लगती है. परिवार के बड़ेबुजुर्ग बारबार बेटाबेटा कह कर उन के तनाव को और बढ़ा देते हैं, जबकि यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि औलाद के बेटा या बेटी होने के लिए किसी भी महिला को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. फिर भी हमारे समाज में अनपढ़ ही नहीं पढ़ेलिखे लोग भी बेटी होने पर दोषी मां को ही ठहराते हैं. द्य सच कहा जाए तो तनाव की शुरुआत बेटी के जन्म से ही हो जाती है और उस की उम्र के साथसाथ बढ़ती जाती है.

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द्य अच्छे पढ़ेलिखे होने के बावजूद मनपसंद नौकरी न मिलना, नौकरी मिल जाए तो समय पर तरक्की न मिलना, घरबाहर के कामों के बीच तालमेल न बैठा पाने के कारण पढ़ीलिखी युवतियां भी तनाव से घिरती चली जाती हैं. द्य मनोवैज्ञानिकों के शोधों से पता चलता है कि किसी कंपीटिशन में नाकामयाब होने पर भी महिलाएं जल्दी निराशा के कारण तनाव से घिर जाती हैं.

द्य चिंता, परेशानी और दबाव से भी तनाव पैदा होता है. यह कोई रोग नहीं है. हालात से तालमेल न बैठा पाना, परिवार और दोस्तों से जरूरत पर मदद न मिल पाना, मेनोपौज में हारमोन बैलेंस गड़बड़ाना आदि किसी भी महिला के जीवन में तनाव का कारण बन सकते हैं. शराब या अन्य नशा, अपनी किसी बीमारी का सही तरीके से इलाज न कराना आदि भी तनाव के लिए जिम्मेदार हैं. कई बार महिलाओं में रिटायरमैंट के बाद भी ये हालात पैदा हो जाते हैं. लक्षण

द्य याददाश्त कमजोर होना, उलटी की इच्छा होना, सांस लेने में परेशानी, भूख कम लगना, शारीरिक क्षमता का कम होना, काम में मन न लगना, सिरदर्द, ज्यादा पसीना आना, मुंह सूखना, बारबार पेशाब की इच्छा. इन लक्षणों की चपेट में आने वाले खुद को परिवार व समाज पर बोझ समझते हैं. वे कोशिश करने के बावजूद समस्या के हल तक नहीं पहुंच पाते और अपना विश्वास खो बैठते हैं और फिर धीरेधीरे निराशा की ओर बढ़ने लगते हैं. कैसे करें तनाव दूर

द्य जीवन में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब निराशा के साथ संघर्ष करना पड़ता है. जीवन की महानता इसी में है कि कठिनाइयों से लोहा लेते हुए अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए उत्साह से आगे बढ़ते चलें. काम इस तरह करें कि थकने के पहले ही आराम मिल जाए. उदास व थका रहना या दिखना व्यक्ति में तनाव या अपराध का भाव पैदा करता है. द्य अच्छी नींद न आने से बहुत नुकसान होता है. गहरी नींद के लिए संगीत सुनना सहायक होता है. सोने से पहले पढ़ना भी अच्छी आदत है. इस से भी अच्छी नींद आती है.

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द्य ज्यादा नाउम्मीदी हीनभावना को जन्म देती है. अपनी सोच पौजिटिव रखें. जो आप के पास नहीं है या जो आप के वश में नहीं है उस के लिए चिंता मत कीजिए. जो आप के पास है उसी में खुश रहें. द्य खानपान पर भी ध्यान देना जरूरी है. फलों व सब्जियों का सेवन रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करता है. मेनोपौज की स्टेज में महिला के शरीर में कैल्सियम की मात्रा कम हो जाती है, जिस से औस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियों के रोग होने की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए कैल्सियम और विटामिन डी अपनी डाइट में शामिल करना न भूलें. रोज व्यायाम करने की आदत बनाएं.

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