कैसी हो वर्किंग प्रैगनैंट वूमन की डाइट

मां बनना हर महिला के लिए सब से सुखद एहसास होता है. गर्भ में पलने वाला बच्चा महिला को कई चीजें सिखाता है. संवेदनशील बनाता है, प्यार करना सिखाता है. यही वजह है कि कोई भी महिला गर्भवती होने पर अपना खास खयाल रखती है, क्योंकि इस समय मां बनने वाली महिला सिर्फ अपना ही खाना नहीं खाती वरन बच्चे का भी खाती है.

मां बनने वाली वर्किंग लेडी अकसर खुद को थकाथका सा महसूस करती है. 8-9 घंटे औफिस में रहने के कारण वह ज्यादा थक जाती है. उस के बाद वर्किंग महिला को घर का कामकाज भी करना पड़ता है. इसलिए पूरा दिन उस के लिए मुश्किल भरा होता है. आइए, जानें कि वर्किंग लेडी जो मां बनने वाली हो उस के लिए पूरे दिन का डाइट प्लान कैसा हो:

ऐसा हो नाश्ता

अगर आप सुबह उठते ही खाना बनाना या फिर घर का अन्य काम शुरू कर देती हैं तो यह गलत है. सुबह उठते ही सब से पहले आप ग्रीन टी पीएं. अगर आप की सुबह की शुरुआत ग्रीन टी से होगी तो आप दिन भर ऐनर्जी से भरपूर रहेंगी. उस के बाद आप सब से पहले फ्रैश हो नहा लें. यदि लंच खुद ही तैयार करती हैं तो रात को ही इस की तैयारी कर लें. अगर आप को सुबह सब कुछ तैयार मिलेगा तो खाना बनाना सिरदर्द नहीं बनेगा. खाना बनाने के बाद सब से पहले नाश्ता कर लें. नाश्ते में उबले अंडे, रोटी और सब्जी खाएं, इस के बाद अपना टिफिन तैयार करें. टिफिन में आप फ्रूट्स, नट्स और लंच रखें. दही या छाछ रखना तो बिलकुल न भूलें.

औफिस पहुंचने पर

औफिस पहुंचने पर सब से पहले पानी पीएं. पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. उस के बाद थोड़ी देर आराम करें. काम शुरू करने से पहले सेब या अनार खा लें. यह आप की सेहत के साथसाथ बच्चे के लिए भी अच्छा है. केला रखा हो तो उसे भी खा लें. इस के बाद अपना काम शुरू करें.

लंच में खाएं बढि़या खाना

लंच में दालरोटी, सब्जी, दही या छाछ जो कुछ भी आप लाई हों उसे अच्छी तरह से चबाचबा कर खाएं. खाने में जल्दबाजी न करें. खाने के साथसाथ खीरा भी खाएं. इस वक्त आप के लिए और बच्चे के लिए सलाद बहुत जरूरी है.

ईवनिंग स्नैक्स

अकसर देखा जाता है कि ईवनिंग स्नैक्स के रूप में प्रैगनैंट महिला समोसा, जलेबी जैसी चीजें खा लेती हैं. ये चीजें स्वादिष्ठ तो होती हैं, लेकिन हैल्दी बिलकुल भी नहीं. अत: आप घर से नट्स ले कर आएं और फिर उन्हें ही खाएं. अगर आप का चाय या कौफी पीने का मन है तो पी लें. दोनों के लिए फायदेमंद रहेंगे. ईवनिंग स्नैक्स के नाम पर पूरा पेट न भरें, क्योंकि रात को डिनर भी करना है.

घर पहुंचने के लिए जल्दबाजी न करें. अगर  औफिस की कैब है, तो अच्छी बात है वरना शाम के समय सड़कों पर भीड़ होती है. अत: आराम से निकलें. थोड़ी देर होगी, लेकिन आराम से घर पहुंचें, सुरक्षित पहुंचें. घर पहुंचने पर थोड़ा आराम करें. पानी पीएं. उस के बाद घर के काम करें.

डिनर में सेहतमंद खाना

डिनर में सेहतमंद खाना बनाएं. एक टाइम दाल जरूर खाएं, साथ में रोटी, सलाद, सब्जी के रूप में बेबीकौर्न, ब्रोकली, पनीर आदि खा सकती हैं.

रात का खाना खाते ही सोएं नहीं. थोड़ा टहलें. 1 गिलास दूध दिन भर में जरूर पीएं. प्रैगनैंसी के दौरान दूध आप के लिए बेहद जरूरी भी है. साथ ही डाक्टर ने आप को जो दवाएं दी हैं उन्हें याद से खा लें.

अगर आप औफिस के साथसाथ घर का काम मैनेज नहीं कर पा रही हैं तो घर में मदद के लिए मेड रख लें. सारा काम अपनेआप पर न लें. इस से आप को आराम मिलेगा.

प्रेग्नेंसी में तनाव से होता है मिसकैरिज का खतरा, जानिए क्या करना चाहिए

प्रेग्नेंसी के वक्त आपको बेहद सीवधानी बरतनी होती है. इसमें आपका खानपान, दिनचर्या और मानसिक अशांति शामिल है. हालिया अध्ययन में ये बात सामने आई कि प्रेग्नेंसी के दौरान ज्यादा तनाव में रहने वाली महिलाओं में मिसकैरिज (Miscarriage) का खतरा बढ़ जाता है.

शोधकर्ताओं का दावा है कि प्रेग्नेंसी के दौरान तनाव में रहने वाली महिलाओं में गर्भपात का खतरा 42 फीसदी अधिक हो जाता है. इससे पहले हुए अध्ययन की रिपोर्ट में यह पाया गया था कि 24 सप्ताह की प्रेग्नेंसी में होने वाले गर्भपात में 20 फीसदी मामले तनाव के कारण होते हैं. हालांकि बाद में हुए अध्ययन के बाद यह पाया गया कि आंकड़ें इससे कहीं ज्यादा हैं. क्योंकि गर्भपात के कई मामले दर्ज ही नहीं होते.

इसके अलावा रिपोर्ट में ये बात भी सामने आई कि युवावस्था से ही तनाव और अवसाद का सामना करने वाले लोगों को आगे जीवन में कई तरह की बीमारियों का खतरा तेज हो जाता है.

जानिए कैसे करें प्रेग्नेंसी में तनाव पर काबू

  • अगर आप कोई काम नहीं करना चाहती तो मना करना सीखें. टेंशन ले कर किसी काम को करना आपके और आपके बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है.
  • घर का ज्यादा काम ना करें. कोशिश करें कि अपने लिए कुछ खास वक्त निकालें. खाली वक्त में आप किताबें पढ़ सकती हैं या आराम कर सकती हैं.
  • अगर आप कामगर महिला हैं तो औफिस से छुट्टी लें और घर पर आराम कर अपना वक्त बिताएं.
  • स्वीमिंग या वौक नियमित तौर पर करें.
  • हेल्दी खाएं, संतुलित आहार आपके शरीर और मानसिक सेहत दोनों को ठीक रखेगा.
  • रात में जल्दी सोने की आदत डाल लें. आपके बच्चे के लिए ये बेहद जरूरी है.
  • दूसरों की बातों का बुरा ना माने. इस दौरान अगर लोग आपको कुछ कहते भी हैं तो उन्हें अनसुना कर दिया करें.
  • लाख कोशिशों के बाद भी आप तनाव से दूर नहीं हो पा रही हैं तो बेहतर है कि आप किसी डाक्टर या थेरेपिस्ट से संपर्क करें.

तो सूनी गोद में भी गूंजेगी किलकारी

मां बाप बनना किसी भी दंपती के लिए सब से बड़ा और सुखद अवसर होता है. शादी के कुछ समय बाद हर युगल अपना परिवार आगे बढ़ाने की चाह रखता है. 2-3 हो कर घरआंगन में बच्चों की किलकारियां सुनने को बेताब दंपती, पहले 1-2 साल कुदरती रूप से गर्भधान की कोशिश करते हैं. अगर कुदरती रूप से गर्भ नहीं ठहरता तब चिकित्सकों के चक्कर चालू हो जाते हैं.

आजकल फर्टिलिटी फैल्योर रेट दिनबदिन बढ़ता जा रहा है. बां?ापन को एक बीमारी के रूप में देखते हैं. 12 महीने या उस से अधिक नियमित असुरक्षित यौन संबंध के बाद भी गर्भधारण करने में सक्सैस न होने पर जोड़े को बांझ माना जाता है.  डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि भारत में बांझपन की दर 3.9 % और 16.8त्% के बीच है.

अगर संयुक्त परिवार में रहने वाला युगल शादी के 1-2 साल बाद भी कोई खुशखबरी नहीं देता तब घर वालों और रिश्तेदारों के सवालों का शिकार होते परेशान हो उठता है. घर के बड़ेबुजुर्गों को दादादादी बनने की जल्दी होती है. बहू के पीरियड्स आने पर कुछ सासों की भवें तन जाती हैं. एक तो गर्भ न ठहरने की चिंता ऊपर से घर वालों का व्यवहार और व्यंग्यबाणों से छलनी होती जिंदगी के प्रति पतिपत्नी उदास हो जाते हैं.

हर कुछ दिनों बाद इस मामले में पूछताछ करने वाले परिवार जन उन को दुश्मन लगने लगते हैं.तकरार की शुरुआतमगर जो दंपती अकेले रहते हैं उन को क्या बांझपन को ले कर कम परेशानी उठानी पड़ती है? हरगिज नहीं, ऐसे दंपती को लगता है जैसे पासपड़ोस वालों को छोड़ो अजनबी लोगों की नजरें भी जैसे यही सवाल करती हैं कि कब खुशखबरी दे रहे हो? दूर बैठे परिवार वाले और रिश्तेदार फोन कर के बातोंबातों में इस विषय पर जरूर पूछते हैं कि कब तक हमें दादादादी बनने का सुख प्राप्त होगा? तब पतिपत्नी आहत होते अपनों के फोन उठाने से भी कतराने लगते हैं.

बांझपन के शिकार युगलों को शारीरिक कमी की चिंता मानसिक रूप से डांवांडोल करते पूरे शरीर की व्यवस्था बिगाड़ देती है. न कह सकते हैं, न सह सकते हैं. बांझपन की वजह से तकरार की शुरुआत एकदूसरे पर शक और दोषारोपण से होती है. दोनों को खुद स्वस्थ और सामने वाले में कमी नजर आती है.कुछ मामलों में कभीकभी पति गलतफहमी का शिकार होते सोचता है कि शादी से पहले मुझे हस्तमैथुन की आदत थी कहीं उस की वजह से मुझ में कोई कमी तो नहीं आ गई? कहीं मेरा वीर्य तो पतला नहीं हो गया? कहीं शुक्राणुओं की संख्या तो कम नहीं हो गई? उस काल्पनिक डर की वजह से काम में तो ध्यान नहीं दे पाता साथ में सैक्स लाइफ पर भी उस का बुरा प्रभाव पड़ता है.

चाह कर भी न खुद चरम तक पहुंच पाता है, न ही पत्नी को सुख दे पाता है. इस की वजह से दोनों एकदूसरे से खिंचेखिंचे रहते हैं.हीनभावना से ग्रस्तऐसे ही किसी मामले में पत्नी भी खुद को दोषी सम?ाते सोचती है कि पीसीओडी की वजह से मेरे पीरियड्स अनियमित हैं. उस की वजह से तो कहीं गर्भाधान नहीं हो पा रहा या तो कभी किसी लड़की ने कुंआरेपन में किसी गलती की वजह से अबौर्शन कराया होता है तो वह बात न पति को बता सकती है न डाक्टर को, ऐसे में वह गिल्ट उसे अंदर ही अंदर खाए जाती है, जिस की वजह से अंतरंग पलों में पति को सहयोग नहीं दे पाती.

तब प्यासा पति या तो पत्नी पर शक करने लगता है या फिर पत्नी से विमुख हो किसी और के साथ विवाहेत्तर संबंध से जुड़ जाता है.कई बार संयुक्त परिवार से अलग रहने वाले युगल उन्मुक्त लाइफस्टाइल जीते हैं, जिस में आएदिन पार्टियों में आनाजाना लगा रहता है और आजकल युवाओं की पार्टियां शराब, सिगरेट और जंक फूड के बिना तो अधूरी ही होती है.

अत: अल्कोहल, तंबाकू और जंक फूड का सेवन भी गर्भाधान में बाधा डालने का कारण बन सकता है.कई बार यह भी देखा जाता है कि लाख प्रयत्न के बाद भी जब गर्भाधान में कामयाबी नहीं मिलती तब कुछ युगल नीमहकीमों या बाबाओं के चक्कर में पड़ कर समय और पैसे बरबाद करते हैं और ऐसे गलत उपचारों से निराश हो कर उम्मीद ही खो बैठते हैं.

ऐसी परिस्थिति में कुछ लोग हार कर कभीकभी प्रयत्न करना ही छोड़ देते हैं.मगर ऐसे हालात में अगर पतिपत्नी दोनों समझदार होंगे तो बांझपन के बारे में एकदूसरे पर दोषारोपण करने के बजाय खुल कर विचारविमर्श कर के डाक्टर के पास जा कर सारे टैस्ट करवा कर उचित रास्ता अपनाते हैं.

बांझपन के कारणबां?ापन के कई कारण हो सकते हैं. एक तो आज के दौर में कैरियर औरिएंटेड लड़के, लड़कियां शादी को टालमटोल करते 30-32 के हो जाते हैं. ऊपर से शादी के बाद कुछ समय घूमनेफिरने और ऐश करने में गंवा देते हैं, जबकि हर काम उम्र रहते हो जाना चाहिए यह नहीं सोचते.ऊपर से मौजूदा जीवनशैली, गलत खानपान, पर्यावरणीय फैक्टर और देरी से बच्चे पैदा करने सहित विभिन्न कारणों की वजह से बांझपन आम हो गया है.

माना जाता है कि गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग ने भी बां?ापन के बढ़ते मामलों में योगदान दिया है.बांझपन मैडिकल कंडीशन यानी एक बीमारी है जहां कई दंपती कई वर्ष तक प्रयास करने के बाद भी गर्भधारण करने में असमर्थ होते हैं. यह समस्या दुनियाभर में एक चिंता का विषय है. इस बीमारी से लगभग 10 से 15त्न जोड़े प्रभावित होते हैं साथ में ओव्यूलेशन की समस्या महिलाओं में बांझपन का सब से आम कारण है. एक महिला की उम्र, हारमोनल असंतुलन, वजन, रसायनों या विकिरण के संपर्क में आना और शराब, सिगरेट पीना सभी प्रजनन क्षमता पर प्रभाव डालते हैं.क्या कहते हैं ऐक्सपर्टडाक्टर के अनुसार प्रैगनैंट होने के लिए सही उम्र 18 से 28 मानते हैं.

इसलिए इन वर्षों के बीच बच्चे के लिए किए गए प्रयास अधिक सफल होते हैं.सब से पहले तो शादी सही उम्र में कर लेनी चाहिए और यदि शादी लेट हुई है तो बच्चे की प्लानिंग में देरी नहीं करनी चाहिए वरना प्रैगनैंसी में दिक्कत हो सकती है.पतिपत्नी की सैक्स लाइफ हैल्दी होनी चाहिए. जब तक आप बारबार मैदानएजंग में नहीं उतरेंगे तब तक आप समस्या से लड़ेंगे कैसे जीतेंगे कैसे? इसलिए प्रैगनैंसी के लिए सब से जरूरी है कि पीरियड्स के बाद जिन दिनों गर्भाधान की संभावना ज्यादा होती है उन दिनों में अपने पार्टनर के साथ नियमित सैक्स करना चाहिए.

जितना अधिक सैक्स होगा प्रैगनैंसी की संभावना भी उतनी ही अधिक बढ़ जाएगी.जब कुदरती रूप से गर्भाधान में कामयाबी नहीं मिलती तब डाक्टर दंपती के सामने कुछ औप्शन रखते हैं जैसेकि:आईवीएफ पद्धति से प्रैगनैंसीयह एक सामान्य फर्टिलिटी ट्रीटमैंट है. इस प्रक्रिया में 2 स्टैप ट्रीटमैंट किया जाता है. यदि महिला के अंडाशय में एग का सही तरह से निर्माण नहीं हो रहा है और वह फौलिकल से अलग नहीं हो पा रहा है, पुरुष साथी में शुक्राणु कम बन रहे हैं या वे कम ऐक्टिव हैं तो ऐसे में महिला को कुछ इंजैक्शन दिए जाते हैं, जिस से ऐग फौलिकल से सही तरह से अलग हो पाता है.

इस के बाद पुरुष साथी से शुक्राणु प्राप्त कर उन्हें साफ किया जाता है और उन में से क्वालिटी शुक्राणुओं को एक सिरिंज द्वारा महिला के गर्भाशय में छोड़ा जाता है. इस के बाद की सारी प्रक्रिया कुदरती रूप से होती है. इस की सफलता की दर 10 से 15त्न होती है.

कुछ मामलों में आईयूआई से सफलता मिल जाती है, लेकिन यदि समस्या किसी और तरह की है तो आईवीएफ ही सही उपचार होता है.समस्या का निवारणइन्फर्टिलिटी की समस्या से पीडि़त दंपतियों को इनविट्रोफर्टिलाइजेशन की तकनीक की सलाह दी जाती है. यह पद्धति तब उपयोग में ली जाती है जब फैलोपियन ट्यूब में किसी भी कारण से कोई रुकावट हो जाए या खराब हो जाए.

महिला के ओव्यूलेशन में समस्या होने पर आईवीएफ की मदद से गर्भधारण किया जा सकता है. टैस्ट ट्यूब बेबी तकनीक अब नई नहीं रही. अनुभवी डाक्टर से करवाया गया उपचार परिणाम जरूर देता है.कृत्रिम रूप से गर्भवती होने में थोड़ा जोखिम तो है और इन प्रक्रियाओं में कुछ जटिलताओं का भी सामना करना पड़ सकता है.

लेकिन इस का मतलब यह हरगिज नहीं कि जो महिलाएं इनविट्रो फर्टिलाइजेशन या कृत्रिम गर्भाधान से गुजरती हैं उन्हें निश्चित रूप से स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आजकल उन्नत चिकित्सा विधियों की बदौलत कृत्रिम गर्भाधान की सफलता दर में काफी सुधार आया है. इसलिए इन्फर्टिलिटी के शिकार युगलों को हारे बिना, गबराए बिना सही निर्णय ले कर सही उपचार द्वारा समस्या का निवारण करना चाहिए.

स्तन कैंसर की दवाओं में नए आविष्कारों से महिलाओं के इलाज में मिली मदद

45 वर्षीय अश्विनी (काल्पनिक नाम) बैंगलुरु की रहने वाली हैं और पेशे से डेटा एनालिस्ट हैं. उनके जीवन में तब एक अप्रत्याशित मोड़ आया जब वे अपनी त्वचा की पुरानी समस्या के लिए डॉक्टर के पास गई थीं. कुछ समय से वे अपनी समस्या से कुछ ज्यादा परेशान थीं. उन्हें जरा भी एहसास नहीं था कि डॉक्टर से उनकी यह मुलाकात उन्हें एकदम अप्रत्याशित और मुश्किल रास्ते पर लेकर जाएगी.

डॉक्टर जब उनकी जांच कर रहे थे, अश्विनी ने प्रसंगवश बताया कि उन्हें अपनी ब्रेस्ट में थोड़ी बेचैनी महसूस होती थी. डॉक्टर ने तुरंत उनकी ब्रेस्ट की जांच की और उन्हें किसी ऑन्कोलॉजिस्ट (कैंसर रोग विशेषज्ञ) से दिखाने को कहा. ऑन्कोलॉजिस्ट ने मैमोग्राम कराने को कहा और इसमें उनकी ब्रेस्ट में संदेहास्पद गांठ का पता चला. आगे की गई और जांचों में उन्हें ब्रेस्ट कैंसर होने की पुष्टि हो गई. भारत में कैंसर सार्वजनिक स्वास्थ्य की गंभीर चिंता का विषय है, जबकि ब्रेस्ट कैंसर मृत्यु का प्रमुख कारण बना हुआ है. वर्ष 2020 में सभी प्रकार के कैंसर में ब्रेस्ट कैंसर का अनुपात 13.5त्न और सभी मौतों में 10.6त्न था.

इसके अलावा ब्रेस्ट कैंसर होने के बाद पहले 5 वर्षों तक केवल 66त्न रोगी ही जीवित रह पाते हैं, जबकि विकसित देशों में यह दर 90त्न है. बीएमसीएचआरसी हॉस्पिटल, जयपुर के डायरेक्टर और एचओडी मेडिकल ऑन्कोलॉजी, डॉ. अजय बापना के अनुसार, मुख्यत: जागरूकता और प्रेरणा, इन दो कारणों से महिलायें ब्रेस्ट कैंसर की जांच नहीं करातीं. डॉ. बापना ने कहा, ‘‘अगर महिलाओं को ब्रेस्ट में निप्पल पर या आस-पास की त्वचा में बदलाव जैसी कोई असमान्यता दिखती है, तो उन्हें सतर्क हो जाना चाहिए. अगर महिला की उम्र 40 से ज्यादा है, तो उसे इस प्रकार के बदलावों के प्रति ज्यादा सावधान रहना चाहिए और तुरंत अपनी जांच करानी चाहिए.’’अदृश्य लड़ाई में दृढ़ता: अश्विनी की बायोप्सी का नतीजा एचईआर2-पॉजिटिव ब्रेस्ट कैंसर के लिए पॉजिटिव पाया गया.

ऑन्कोलॉजिस्ट ने तेज उपचार की योजना बनाई जिसमें ट्रैस्टुजुमाब (हर्सेप्टिन) और पर्टुजुमाब (पर्जेटा) मोनोक्लोकल ऐंटीबॉडीज के साथ कीमोथेरेपी और उसके बाद रेडिएशन शामिल था. चूंकि इन दवाओं को खून की नली (आईवी) में दिया जाता है, इसलिए इसमें अस्पताल और रोगी, दोनों पर भारी दबाव पड़ता है. उपचार की प्रक्रिया आम तौर पर अनेक सत्रों में पूरी होती है जिसमें6 महीनों से लेकर एक वर्ष तक का समय लगता है. चूंकि प्रत्येक स्तर में कई-कई घंटे लग जाते हैं, इससे रोगी का दैनिक जीवन बाधित होता है और काम तथा पारिवारिक दायित्वों पर बोझ पड़ता है. अश्विनी ने बताया, ‘‘प्रतीक्षा अवधि विशेषकर लम्बी थी. मेरा मतलब है कि मुझे बिस्तर पर रहना होता और बिस्तर पर ही दवायें दी जायेंगी.

लेकिन मेरे पिता, जो मेरे साथ जाया करते थे, शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित हो गए थे. वे वृद्ध हैं और उन्हें मेरा उपचार पूरा होने तक दिन भर रुकना पड़ता था. कुछ विजिट्स के लिए मेरी बेटी भी मेरे साथ आती थी और वह भी थक जाती थी. हम रात में लौटते और मैं इतनी थकी रहती कि घर का काम नहीं कर सकती थी. मेरे परिवार को हर चीज की देखभाल करनी पड़ती थी.

अश्विनी ने आगे बताया, ‘‘कैंसर का नाम सुनते ही लोग काफी डर जाते हैं. मैं उन्हें सम?ा सकती हूं, क्योंकि यह केवल बीमारी का डर नहीं होता, बल्कि यह उपचार और होने वाली जांचों के असर का डर भी होता है. यह रोगी और परिवार, दोनों के लिए सदमे वाला अनुभव होता है. बंग्लादेश की एक महिला से मेरी दोस्ती थी. उसे चौथे चरण का ब्रेस्ट कैंसर था. हम कैंसर के अपने अनुभवों और परिवार की बातें साझा किया करते. दुर्भाग्य से, मेरे बाद के अपॉइंटमेंट में मुझे उसके गुजर जाने की जानकारी मिली. इस खबर से मुझे बहुत सदमा पहुंचा था.’’ब्रेस्ट कैंसर के रोगियों के लिए भर्ती-वार्ड दुधारी तलवार होती है.

एक ओर तो यह जीवन की भंगुरता के प्रति अरक्षित करता है तो दूसरी ओर लड़ने की शक्ति की परीक्षा भी लेता है. भर्ती वार्ड में शुरुआती ब्रेस्ट कैंसर के रोगी, जिनके जीने की संभावना बेहतर होती है, उन्हें भी इस सदमे से गुजरना पड़ता है, क्योंकि उनकी आंखों के सामने कैंसर के ज्यादा गंभीर चरण वाले लोग भी होते हैं. पीड़ा का अत्यंत दुखदायी दृश्य, परिवारों की वेदना और खो चुके जीवन रोगी को भयाक्रांत और हतोत्साहित कर देते हैं.

ठीक अश्विनी की तरह ही अनेक महिला रोगी शारीरिक और भावनात्मक बोझ का सामना करती हैं जिसके कारण उनकी यात्रा ज्यादा कठिन हो जाती है. इसके अलावा, जिन रोगियों को लम्बे समय तक कीमोथेरेपी कराने की जरूरत होती है, उन्हें एक कीमो पोर्ट के माध्यम से दवा दी जाती है, जो सीधे खून के प्रवाह में जाती है. कुछ रोगी इस पोर्ट का इस्तेमाल करने से इनकार करते हैं या इससे झिझकते हैं.डॉ. बापना ने कहा, ‘‘यह प्रतिरोध चीरे या सूई चुभाने की प्रक्रिया, संक्रमण होने और कुल खर्च के डर से पैदा होता है. साथ ही, बहुत कम रोगियों को कैंसर के उपचार में हुई प्रगति की अच्छी जानकारी होती है.

दूर-दराज के इलाकों में, चुनौतियों में स्वास्थ्य देखभाल की विशेषज्ञ सुविधाओं की सीमित सुलभता और भारी वित्तीय बोझ शामिल हैं.’’उपचार में नई खोज: विगत वर्षों में कैंसर के अनुसंधान और उपचार में काफी महत्त्वपूर्ण खोज और प्रगति हुई हैं. इनसे कीमोथेरेपी की मुश्किलों और साइड इफैक्ट को कम करने में मदद मिली है. उदाहरण के लिए, फेस्गो (क्क॥श्वस्त्रहृ) एक नई नियत खुराक वाला उपचार है जिसमें ट्रैस्टूटुमाब और पर्टुटुमाब का मिश्रण है. इसे जांघ में अध:त्वचीय सूई (सबक्यूटेनियस इंजेक्शन) के रूप में दिया जा सकता है और परम्परागत आईवी में लगने वाले 6-7 घंटे की तुलना में महज 5-8 मिनट समय की जरूरत होती है.

इसे अध:त्वचीय (जांघ की त्वचा के नीचे) सूई से देने से रोगी और डॉक्टर, दोनों का समय बचता है. चूंकि, इसे प्रशिक्षित नर्स द्वारा दिया जा सकता है, इसलिए इस विधि के कारण हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स पर दबाव घट जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें कीमो पोर्ट की जरूरत नहीं होती, जिससे रोगी इसे पसंद करती हैं.जैसाकि अश्विनी ने कहा, ‘‘मेरा उपचार जब फेस्गो विधि से होने लगा, तब मैं एक घंटे में अस्पताल से वापस आने में समर्थ हो गई और थकान महसूस किये बगैर घर के काम समाप्त करने में सुविधा होने लगी. समय की बचत के कारण मेरे लिए अपनी बेटी के साथ समय बिताना, उसका मनपसंद खाना पकाना और उसके होमवर्क में मदद करना आसान हो गया.

साथ ही, मुझे अपने ऑफिस से छुट्टी लेने की जरूरत नहीं रही. मैं अस्पताल जाने के दिन को छोड़कर हर दिन काम करती थी, यहां तक कि सप्ताहांत के दिन भी. फेस्गो ने मुझे पीड़ादायक उपचार की प्रक्रिया से बचाया और कैंसर से लड़ने में अपनी इच्छाशक्ति बनाए रखने में मदद की.’’सबक्यूटेनियस इंजेक्शन से मिली सुविधा के कारण रोगियों और उनकी देखभाल करने वालों के जीवन की गुणवत्ता सुधरी है. इसका एक प्रमुख लाभ यह है कि रोगी कीमो वार्ड के बाहर उपचार प्राप्त कर सकती हैं.

यह अस्पताल में लगने वाला समय कम करता है और कीमो वार्ड के परेशानी भरे माहौल से बचने में मदद करता है. नतीजतन, रोगी में सामान्य अवस्था, आत्मनिर्भरता और निजता का एहसास ज्यादा अच्छी तरह बना रह सकता है.इस विषय में डॉ. बापना ने कहा, ‘‘मेरी सभी रोगी सबक्यूटेनियस थेरेपी से काफी खुश हैं. वे 30 मिनट में घर जाने और सामान्य दैनिक कार्य करने में सक्षम हैं.’’फेस्गो प्रक्रिया में कम से कम समय लगता है, इस प्रकार इससे हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स का समय बचता है और वे ज्यादा रोगियों के उपचार में समय देने में समर्थ हो पाते हैं.

लेकिन किसी भी मेडिकल ट्रीटमेंट की तरह लोगों को अपने लिए उपचार की सबसे बढि़या रणनीति तय करने के लिए हेल्थकेयर टीम के साथ अपनी अवस्था पर खुल कर बात करनी चाहिए. इस प्रकार कैंसर के डरावने रोग से लड़ने के लिए शीघ्र जांच के महत्त्व के बारे में जागरूकता से लेकर रोगी का समय और ऊर्जा बचाने वाले गुणवत्तापूर्ण उपचार तक एक बहुआयामी दृष्टिकोण समय की मांग है.

ऐडवांस लैप्रोस्कोपिक सर्जरी महिलाओं के लिए वरदान

पिछले कुछ वर्षों में स्त्रीरोग से जुड़े मामलों में लैप्रोस्कोपिक सर्जरी काफी प्रभावशाली साबित हुई है. इन मिनिमली इनवेसिव प्रक्रियाओं में स्त्रीरोग से जुड़े मामलों में बीमारी का पता लगाने और इलाज करने के लिए छोटे कट लगाए जाते हैं और स्पैशलाइज्ड उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है. लैप्रोस्कोपी सर्जरी ने गाइनोकोलौजी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है जिस से मरीज की रिकवरी कम वक्त में हो जाती है, निशान कम आते हैं और बेहतर परिणाम आते हैं.गुरुग्राम के सीके बिरला हौस्पिटल में ओब्स्टेट्रिक्स ऐंड गाइनोकोलौजी विभाग की डाइरैक्टर डाक्टर अंजलि कुमार ने इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी.

  1. लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी

परंपरागत रूप से हिस्टरेक्टोमी (सर्जरी के जरीए यूटरस निकालना) पेट में चीरे के माध्यम से की जाती थी, जिस में मरीज की रिकवरी में लंबा समय लग जाता था. हालांकि लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है जिस के चलते मरीज की रिकवरी तुरंत होती है, औपरेशन के बाद दर्द कम होता है और निशान भी बहुत कम होते हैं.

रोबोटिक असिस्टेड लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी जैसी ऐडवांस तकनीक से इलाज को और मजबूती मिली है.इस में जटिल शारीरिक संरचनाओं को भी डाक्टर ज्यादा आसानी से नैविगेट कर लेते हैं और औपरेशन में इस से काफी मदद मिलती है. जिन महिलाओं को यूटरिन फाइब्रौयड, ऐंडोमिट्रिओसिस या पीरियड्स के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग होती है उन के लिए यह प्रक्रिया काफी कारगर है.

2. ऐंडोमिट्रिओसिस

ऐंडोमिट्रिओसिस में यूटरस के बाहर ऐंडोमिट्रियल टिशू बढ़ जाते हैं. ये गंभीर पैल्विक पेन और बां?ापन के कारण बन सकते हैं. ऐंडोमिट्रिओसिस घावों के लिए लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया एक बहुत ही स्टैंडर्ड ट्रीटमैंट मैथड बन गया है. इस में डाक्टर ऐंडोमिट्रिओसिस इंप्लांट्स को विजुलाइज करने, उन का मैप बनाने और ठीक से हटाने के लिए लैप्रोस्कोपिक उपकरणों का उपयोग करते हैं, जिस से मरीजों को लंबे समय तक राहत मिलती है.

इस मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया से न केवल लक्षण कम होते हैं, बल्कि प्रजनन क्षमता भी प्रिजर्व होती है. महिलाओं को इस का काफी लाभ मिलता है.

3. ओवेरियन सिस्टेक्टोमी

ओवेरियन अल्सर, तरल पदार्थ से भरी थैली जो अंडाशय पर बनती है में दर्द, हारमोनल असंतुलन और फर्टिलिटी संबंधी परेशानियां होने का डर रहता है. लैप्रोस्कोपिक सिस्टेक्टोमी की मदद से डाक्टर अल्सर को हटाते हैं और स्वस्थ ओवेरियन टिशू को संरक्षित करते हैं. इस से ओवेरियन फंक्शन बेहतर होता है और फर्टिलिटी भी सुधरती है.इंट्राऔपरेटिव अल्ट्रासाउंड और फ्लोरेसैंस इमेजिंग जैसी ऐडवांस तकनीक से अल्सर की सटीक पहचान की जाती है और फिर उसे हटाया जाता है. इस प्रक्रिया में जोखिम कम रहता है. ओपन सर्जरी की तुलना में लैप्रोस्कोपिक सिस्टेक्टोमी के बाद दर्द कम होता है, मरीज को अस्पताल में कम वक्त रहना पड़ता है और वह रोजमर्रा के काम भी जल्दी करने लग जाता है.

4. मायोमेक्टोमी

यूटेरिन फाइब्रौयड के कारण पीरियड्स में बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती है, पेल्विक पेन होता है और प्रजनन संबंधी परेशानियां भी हो जाती हैं. मायोमेक्टोमी में गर्भाशय को संरक्षित करते हुए फाइब्रौयड को सर्जरी के जरीए हटाया जाता है. जो महिलाएं गर्भधारण करना चाहती हैं उन के लिए यह एक बेहतर उपाय है. लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टोमी पारंपरिक ओपन सर्जरी से ज्यादा पौपुलर है क्योंकि इस में छोटे चीरे लगाए जाते हैं, ब्लड लौस कम होता है और मरीज की रिकवरी भी तेजी से होती है.

5. रोबोटिक

असिस्टेड लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टोमी से सर्जरी काफी सटीक हुई है और इस के परिणामस्वरूप बेहतर प्रजनन रिजल्ट आते हैं.

6. ट्यूबल रिवर्सल

जिन महिलाओं की ट्यूबल लिगेशन (सर्जिकल नसबंदी) होती है, उन के लिए ट्यूबल रिवर्सल सर्जरी प्रजनन क्षमता को बहाल करने का अवसर प्रदान करती है. लैप्रोस्कोपिक ट्यूबल रीनास्टोमोसिस में फैलोपियन ट्यूबों को फिर से जोड़ा जाता है, जिस से प्राकृतिक गर्भधारण की संभावनाएं बढ़ती हैं.मिनिमली इनवेसिव सर्जरी से निशान कम आते हैं और औपरेशन के बाद मरीज को कम परेशानी होती है जिस से महिलाओं को अपनी रूटीन की गतिविधियों में जल्दी लौटने में मदद मिलती है. लैप्रोस्कोपिक तकनीक, माइक्रोसर्जिकल स्किल्स से साथ जुड़ी होती है जिस से ट्यूबल रिवर्सल सर्जरी की सफलता दर और परिणामों में काफी सुधार होता है.

ऐडवांस गाइनोकोलौजी लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के आने से प्रजनन आयु के दौरान स्त्रीरोग संबंधी तमाम परेशानियों को ठीक करने के मामलों में क्रांति आई है. मिनिमली इनवेसिव प्रक्रियाएं जैसेकि लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी, ऐंडोमिट्रिओसिस ऐक्साइशन, ओवेरियन सिस्टेक्टोमी, मायोमेक्टोमी और ट्यूबल रिवर्सल से मरीजों को ओपन सर्जरी की तुलना में काफी लाभ पहुंचा है.तेजी से रिकवरी, कम निशान और बेहतर प्रजनन रिजल्ट के चलते लैप्रोस्कोपिक सर्जरी से स्त्रीरोगों से पीडि़त महिलाओं के लिए आशा की किरण मिली है. तकनीक भी लगातार बढ़ रही है, जिस से यह उम्मीद की जा रही है कि लैप्रोस्कोपिक तकनीक आगे और भी विकसित होगी जिस से और बेहतर रिजल्ट प्राप्त होंगेऔर महिलाओं की रिप्रोडक्टिव हैल्थ में सुधार आएगा.

दबे पांव दस्तक देता है मोटापा

स्त्रियों में ओबेसिटी यानी मोटापा आज सब से बड़ी समस्याओं में से एक है, जिस से हर तीसरी महिला परेशान है. डब्ल्यूएचओ ने मोटापे को स्वास्थ्य के 10 प्रमुख जोखिमों में से एक बताया है. विश्व में 23 फीसदी से अधिक महिलाएं मोटापे की शिकार हैं. भारत तो ‘ग्लोबल ओबैसिटी इंडैक्स’ में तीसरे स्थान पर है.

महामारी का रूप ले चुका है मोटापा

देश में ओबैसिटी 21वीं सदी की मौन महामारी (साइलैंट एपिडेमिक) का रूप लेती जा रही है. भारत में मोटापे की समस्या आज चीन और अमेरिका के आंकड़ों को भी पार कर चुकी है.

मोटापे के मुख्य कारण

खानेपीने की गलत आदतें, ऐक्सरसाइज की कमी, नींद पूरी न होना और तनाव आदि मोटापे के मुख्य कारणों में शामिल हैं. कुछ महिलाओं में सिंड्रोमिक और वंशानुगत ओबैसिटी भी देखने को मिलती है.

मोटापे के दुष्प्रभाव

डायबिटीज, हाई ब्लजड प्रैशर, डिसलिपिडीमिया, औस्टियो आर्थ्राइटिस, पित्त की थैली में पथरी, श्वसन समस्याएं, प्रजनन संबंधी समस्याएं आदि मोटापे से हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कई प्रकार के कैंसर (ब्रैस्ट, ओवरी, यूटरस, पैंक्रियाज) तथा किडनी से संबंधित रोगों की संभावना तक बढ़ जाती है. किशोरवय में अत्यधिक मोटापा अवसाद का कारण भी बन सकता है.

सामान्य लक्षण

छोटेछोटे काम करने में सांस फूलना तथा पसीना आना, शरीर के विभिन्न भागों में वसा या चरबी का जमना आदि. इस के अलावा कई बार मानसिक और मनोवैज्ञानिक लक्षण जैसे आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की कमी इत्यादि देखे जा सकते हैं.

मोटापे का निदान

  •  बीएमआई की गणना.
  •  कमर की परिधि को मापना.
  • लिपिड प्रोफाइल.
  • लिवर फंक्शन टैस्ट.
  • फास्टिंग ग्लूकोस.
  • थायराइड टैस्ट.

बचाव के 10 कारगर उपाय

  •  संतुलित आहार का सेवन करें.
  • कम वसा वाले खाद्यपदार्थों का उपयोग करें.
  • रोजाना सुबह जल्दी उठ कर सैर पर जाएं.
  • नियमित रूप से दिन में कम से कम 30 मिनट तक ऐरोबिक व्यायाम करें.
  • रात को सोने से 2 घंटे पहले ही डिनर ले लें.
  • जंक/फास्ट फूड का सेवन करने से बचें.
  • मैदा, चावल और चीनी का प्रयोग कम ही करें.
  • वसा के हार्ट फ्रैंडली स्रोतों जैसे जैतून, कैनोला औयल, अखरोट के तेल का इस्तेमाल करें. बिंज ईटिंग अर्थात् एकसाथ अत्यधिक खाना न खाएं, बल्कि थोड़ीथोड़ी देर में सुपाच्य एवं हलके भोजन करें.
  • न्यूनतम 8 घंटे की पर्याप्त नींद लें. प्रैगनैंसी व प्रसव पश्चात भी कुछ महिलाओं को मोटापे की समस्या का सामना करना पड़ता है. नवजात को पर्याप्त मात्रा में स्तनपान के माध्यम से इस मुश्किल से छुटकारा पाया जा सकता है.

नवीनतम उपचार

अगर किसी महिला का वजन बहुत अधिक है तथा आहार में सुधार करने, नियमित व्यायाम एवं मोटापा कम करने वाली दवाओं के सेवन के बाद भी उस का वजन कम न हो तो वह डाक्टर से संपर्क कर वजन घटाने वाली शल्यक्रिया अर्थात बैरिएट्रिक सर्जरी का सहारा ले सकती है. यह पद्धति बहुत अधिक मोटे लोगों के लिए वरदान साबित होती है.

पीरियड्स में अब नो टैंशन

पीरियड्स के दिन किसी भी महिला के लिए आसान नहीं होते हैं. कामकाजी महिलाओं के लिए तो ये और भी मुश्किल होते हैं क्योंकि उन्हें पूरा दिन औफिस और घर का काम करना होता है. ऐसे में वे पीरियड के दर्द को भूल कर किस तरह काम कर सकती हैं, आइए जानते हैं:

  1. कौटन अंडरवियर

इस में कौटन अंडरविअर बैस्ट चौइस होती है. यह कंफर्ट के साथसाथ स्किन इरिटेशन को दूर रखने में में भी मदद करती है. फिटिंग और कवरेज एरिया भी अच्छा होता है, जो पैड को सही जगह पर रखने में हैल्प करता है. इसके दिनों शरीर में सूजन आ सकती है. इसलिए इन दिनों कौटन बेस्ड और नौनवायर्ड ब्रा ही पहनें.

2. ढीले और कंफर्टेबल कपड़े

पीरियड्स के दिनों में महिलाएं ढीले और कंफर्टेबल कपड़े पहनें. इन दिनों डार्क कलर के ही कपड़े पहनें और टाइट कपड़ों को अवौइड करें.

3. हाइजीन है मस्ट

पीरियड्स के दिनों में हाइजीन का खास खयाल रखें. वाशरूम का इस्तेमाल करने या पैड बदलने के बाद हाथों को हैंडवाश से जरूर धोएं. प्राइवेट पार्ट को साफ करते वक्त ध्यान रखें कि उसे आगे से पीछे की ओर ही धोएं. मैंस्ट्रुएशन के दौरान अगर साफसफाई का ध्यान न रखा जाए तो महिलाओं को कई बीमारियां हो सकती हैं. इन में से एक है रीप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इन्फैक्शन. इस की वजह से कई बार महिलाएं मां नहीं बन पाती हैं.

4. पीरियड्स प्रोडक्ट

पीरियड्स के दिनों में महिलाएं सैनिटरी पैड (जैविक, कौटन), टैंपोन, मैंस्ट्रुअल कप और पीरियड पैंटी का इस्तेमाल करती हैं.

पीरियड्स के प्रोडक्ट आप के पीरियड्स को आरामदायक बना सकते हैं. आप का पीरियड प्रोडक्ट आप के ब्लड फ्लो के हिसाब से होना चाहिए. जब ब्लड फ्लो ज्यादा हो तो ओवरनाइट पीरियड सैनिटरी पैड या पीरियड पैंटी का इस्तेमाल करें. जब ब्लड फ्लो कम हो या पीरियड का आखिरी दिन हो तो पैंटी लाइनर्स का इस्तेमाल किया जा सकता है.

5. पीरियड पेन रिलीफ प्रोडक्ट

ऐसे बहुत से तरीके हैं जिन से पीरियड क्रैंप्स में रिलीफ पाया जा सकता है. आजकल मार्केट में पेन रिलीफ पैचिस छाए हुए हैं.

पीरियड पैचिस नैचुरली तरीके से दर्द से राहत दिलाने में हैल्प करते हैं. इन में मैंथोल और नीलगिरी का तेल शामिल होता है, जो दर्द और पीरियड्स में होने वाली परेशानियों को कम करने में सहायक होता है.

इस के अलावा आप हिटिंग पैड का भी यूज कर सकती हैं. पानी की बोतल में गरम पानी भर कर भी अपने पेट और उस के आसपास की सिंकाई की जा सकती है. इस के अलावा पीरियड पेन रिलीफ रोलऔन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

6. बौडी स्ट्रैचिंग

अगर आप वर्किंग वूमन हैं और पीरियड्स में हैं तो अपनेआप को ऐक्टिव रखने के लिए बीचबीच में बौडी स्ट्रैच कर सकती हैं. इसे करने से बौडी रिलैक्स होती है. पीरियड्स के दौरान किसी भी तरह का वर्कआउट करने से ऐंडोर्फिन नाम का हारमोन रिलीज होता है, जो दर्द से राहत दिलाता है.

7. योग है दर्दनिवारक

योग से पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द से राहत मिलती है. योग से एकाग्रता बनी रहती है और मन भी शांत रहता है. इस से काम करने में आसानी होती है.

8. वाक का लें सहारा

पीरियड्स में दर्द से छुटकारा पाने के लिए बीचबीच में वोक कर सकती हैं. इस से आप का मूड ठीक रहेगा और आप अपने काम पर फोकस कर पाएंगी.

9. ढेर सारा पानी पीएं

पानी पीना हैल्थ के लिए बहुत ही लाभदायक है. लेकिन पीरियड्स में यह और भी ज्यादा हैल्थफुल हो जाता है. वर्किंग वूमन अपनी पानी की बोतल को टेबल पर भर कर रखें और थोड़ीथोड़ी देर में पानी पीती रहें. पूरे दिन में कम से कम 2 लिटर पानी जरूर पीएं. पानी पीने से आप खुद को डिहाइड्रेट होने से बचा सकती हैं.

10. डार्क चौकलेट ही खाएं

चौकलेट हर किसी की पहली पसंद होती है, लेकिन पीरियड्स के दौरान लड़कियों को चौकलेट खाना बहुत भाता है. अगर आप को भी पीरियड्स के दौरान चौकलेट खाने की क्रेविंग होती है तो आप डार्क चौकलेट ही खाएं. यह आप के पीरियड के दर्द को कम करने में हैल्प करेगी.

11. कैफीन युक्त ड्रिंक्स को कहें बायबाय

पीरियड्स के दौरान कौफी या कैफीन युक्त ड्रिंक्स पीने पर पेट फूलने की दिक्क्त हो सकती है, जिस से आप की प्रौब्लम बढ़ेगी.

कैफीन के अलावा कोल्ड ड्रिंक्स या सोडा वाली ड्रिंक्स का सेवन भी न करें. इस दौरान वे चीजें खाएं जिन में पानी की मात्रा ज्यादा होती है जैसे तरबूज, खीरा. क्रैंप्स को कम करने के लिए बिना कैफीन वाली चाय या ग्रीन टी पी जा सकती है.

12. पीरियड्स एप्स का करें इस्तेमाल

पीरियड ऐप्स से महिलाओं को पीरियड डेट याद रखने का झंझट नहीं लेना पड़ता. बिजी लाइफस्टाइल में कई बार महिलाएं अपनी पीरियड डेट भूल जाती हैं. इस का खमियाजा उन्हें अनसेफ सैक्स और अनवांटेड प्रैगनैंसी जैसी प्रौब्लम्स के रूप में भुगतना पड़ता है. लेकिन अब मार्केंट में ढेरों ऐसे ऐप्स मौजूद हैं जो उन की पीरियड प्रौब्लम को सौल्व कर सकते हैं जैसे पीरियड ट्रैकर, फ्लो, ग्लो, क्लू और पिंक पैड. ये ऐप्स महिलाओं के लिए काफी हैल्पफुल हैं.

13. मैंटल हैल्थ का रखें ध्यान

पीरियड्स के दिनों में महिलाओं का मूड स्विंग होता रहता है. इस में उदास होना, बिना बात के गुस्सा होना, चिड़चिड़ापन आम बात है. ऐसा हारमोनल बदलाव की वजह से होता है. अपने बदलते मूड को कंट्रोल करने की कोशिश करें ताकि इस से आप के काम पर कोई साइड इफैक्ट न पड़े और आप अपना काम बिना किसी मैंटल स्ट्रैस के कर पाएं. मैंटल हैल्थ को मैनेज करने के लिए आप सौफ्ट सौंग भी सुन सकती हैं.

इन तरीकों के अलावा कुछ बातों का ध्यान रख कर आप पीरियड के दिनों में अपने काम को आसानी से कर सकती हैं जैसे नैगेटिव लोगों से दूरी, क्रैंप्स से ध्यान हटा कर काम पर ध्यान लगाना, पीरियड के दौरान खुश रहना.

जानें कब और कितना करें मेनोपौज के बाद HRT का सेवन

महिलाओं में प्राकृतिक रूप से मेनसेज 45 से 52 वर्ष की आयु में धीरेधीरे या फिर अचानक बंद हो जाता है. यह रजोनिवृत्ति मेनोपौज कहलाती है. मेनोपौज के दौरान अंडाशय से ऐस्ट्रोजन और कुछ हद तक प्रोजेस्टेरौन हारमोन का स्राव बंद होने के कारण अनेक शारीरिक एवं व्यावहारिक बदलाव होते हैं. विशेष रूप से ऐस्ट्रोजन हारमोन का स्राव बंद होने के कारण महिलाओं में अनेक समस्याएं हो सकती हैं. रजोनिवृत्ति के बाद ये समस्याएं पोस्ट मेनोपोजल सिंड्रोम (पीएमएस) कहलाती हैं. इन में स्तन छोटे होने लगते हैं और लटक जाते हैं, योनि सूखी रहती है, यौन संबंध बनाने में दर्द हो सकता है, चेहरे पर बाल निकल सकते हैं. मानसिक असंतुलन हो सकता है, जल्दी गुस्सा आ सकता है, तनावग्रस्त हो सकती हैं, हार्टअटैक का खतरा बढ़ सकता है व कार्यक्षमता घट सकती है.

पीएमएस का समाधान

पीएमएस के कारण जिन महिलाओं का दृष्टिकोण सकारात्मक होता है और जो खुश व संतुष्ट रहती हैं, उन्हें परेशानियां कम होती हैं. उन्हें किसी उपचार की जरूरत नहीं होती है. जिन महिलाओं को हलकी परेशानियां होती हैं, वे अपनी जीवनशैली में सुधार कर, समय पर भोजन कर, सक्रिय रह कर व नियमित व्यायाम कर इन से छुटकारा पा सकती हैं. जिन महिलाओं को गंभीर परेशानियां होती हैं उन्हें इन से छुटकारा पाने के लिए डाक्टर से बचाव और उपचार के लिए ऐस्ट्रोजन हारमोन या ऐस्ट्रोजन+प्रोजेस्टेरौन हारमोन के मिश्रण की गोलियों के नियमित सेवन की सलाह दे सकते हैं. यह उपचार विधि हारमोन रिप्लेसमैंट थेरैपी यानी एचआरटी कहलाती है. लेकिन इन गोलियों के लंबे समय तक सेवन के दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं. अत: रजोनिवृत्ति के बाद इन का सेवन करते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए उन का पता होना चाहिए.

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एचआरटी के लाभ

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी के सेवन से होने वाली हौटफ्लैशेज यानी शरीर में गरमी लगने से अटैक, पसीना आना, हृदय का तेजी से धड़कना आदि लक्षणों से राहत मिलती है.

हारमोन सेवन से योनि में बदलाव नहीं होता, वह सूखी नहीं होती और मिलन के समय रजोनिवृत्ति के बाद दर्द भी नहीं होता.

स्ट्रोजन हारमोन की कमी होने से योनि में संक्रमण आसानी से होता है. अत: एचआरटी सेवन से यौन संक्रमण से बचाव होता है.

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी का सेवन मूत्र संक्रमण से भी बचाव करता है.

एचआरटी के सेवन से रजोनिवृत्ति के दौरान होने वाले मांसपेशियों, जोड़ों के दर्द, मांसपेशियों के पतला होने, शक्ति कम होने आदि समस्याओं से राहत मिलती है.

अनिद्रा, चिंता, अवसाद की समस्या भी एचआरटी के सेवन से कम हो जाती है और कार्यक्षमता बरकरार रहती है.

महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद हड्डियों की सघनता कम होने से औस्टियोपोरोसिस की समस्या हो सकती है. इस के कारण हड्डियों में दर्द होता है और वे हलकी चोट या झटके से भी टूट सकती हैं. एचआरटी सेवन से इन कष्टों, जटिलताओं की संभावना कम हो जाती है.

एचआरटी के सेवन से कार्यक्षमता, निर्णय लेने की क्षमता, एकाग्रता में कमी होने की संभावना भी कम हो जाती है.

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी के सेवन से त्वचा की कोमलता, लावण्य और बालों की चमक बरकरार रहती है.

इन के सेवन से वृद्धावस्था में दांतों, आंखों में होने वाले बदलाव भी देरी से और मंद गति से होते हैं.

अध्ययनों से पता चला है कि एचआरटी का सेवन करने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर की संभावना कम हो जाती है. उन में आंतों के कैंसर व हृदय रोग का खतरा भी कम होता है.

एचआरटी के सेवन के दुष्प्रभाव

अकेले ऐस्ट्रोजन हारमोन सेवन से गर्भाशय कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. अत: यदि गर्भाशय मौजूद है, तो ऐस्ट्रोजन प्रोजेस्टेरौन मिश्रित गोलियों का सेवन करें. यदि औपरेशन से गर्भाशय निकाल दिया गया है तो अकेले ऐस्ट्रोजन हारमोन का सेवन करें.

एचआरटी के सेवन से रक्त वाहिनियों में रक्त थक्का बनने की संभावना बढ़ जाती है. यह किसी भी अंग में फंस कर रक्तप्रवाह को बाधित कर हार्टअटैक, पक्षाघात आदि का कारण बन सकता है.

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इस के सेवन से कुछ हद तक पित्ताशय में पथरी की संभावना भी बढ़ जाती है.

एचआरटी की न्यूनतम प्रभावी खुराक रजोनिवृत्ति के दौरान और बाद में होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए सुरक्षित रूप से 5 वर्ष तक ली जा सकती है. फिर धीरेधीरे बंद कर दें.

रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए सिर्फ एचआरटी सेवन ही एकमात्र विकल्प नहीं है. रजोनिवृत्ति के दौरान और बाद में पर्याप्त मात्रा में ऐसा संतुलित भोजन करें, जिस में कैल्सियम प्रचुर मात्रा में हो. इस के अलावा मल्टीविटामिन के कैप्सूल्स और विटामिन डी का सेवन करें.

अगर आप भी करती हैं 8-9 घंटे काम तो ऐसे रखें अपनी फिटनेस का ख्याल

कौरपोरेट लाइफ की जो सब से बड़ी कमी है वह है सेहत से समझौता और बढ़ता मोटापा. जंक फूड्स, शारीरिक गतिविधि की कमी, काम का तनाव और लगातार बैठे रहने  की वजह से आप की सेहत प्रभावित हो सकती है. सारा दिन काम करने के बाद हम इतना थक जाते है और वैसे भी उस के बाद इतनी एनर्जी नहीं बचती कि हम जिम जा कर अपने शरीर का ध्यान रखें. इस सन्दर्भ में जानते हैं फिटनेस एक्सपर्ट विकास डबास से फिटनेस के कुछ खास टिप्स और ट्रिक्स ;

1. ज्यादा चाय-कौफी हो सकती है खतरनाक

देखा जाये तो हम सभी को सुबह और शाम के वक्त चाय और कौफी पीना बहुत पसंद होता है. कुछ लोगो की दिन की शुरुआत ही कौफी से होती है. पर अगर आप उन में से है जो लगातार 7 से 8 घंटे औफिस में एक जगह बैठ कर काम करती है तो चाय और कौफी पीना आप के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. चाय और कौफी में चीनी और हैवी क्रीम मिल्क का इस्तेमाल किया जाता है. दोनों ही हमारी सेहत के लिए नुकसानदायक है. इस की जगह आप ग्रीन टी या फिर ग्रीन कौफी पी सकती है जो आप को काफी फ्रेश और एक्टिव रखेगा और साथ ही साथ आप की क्रेविंग्स पर भी संतुलन बनाए रखेगा.

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2. करें तबाटा व्यायाम

तबाटा व्यायाम उन लोगों के लिए है जो प्रतिदिन निर्धारित समय पर व्यायाम नहीं कर पाते. तबाटा व्यायाम के लिए आप को बस एक कार्डियो गतिविधि चुननी है जैसे कि दौड़ना, रस्सी कूदना, या साइकिल चलाना और 20 सेकंड तक लगातार यह करना है. 10 सेकंड के लिए आराम कर के  5-7 बार यह क्रिया दोहरानी होती है.

3. फ्रूट्स है जरूरी

जितना जरूरी सही मात्रा में खाना और सोना होता है उतना ही जरुरी सही मात्रा में वेजटेबल्स और फ्रूट्स लेना भी है. हमे पूरे दिन में कम से कम 5 अलग तरह की सब्जियां और 2 तरह के फल खाने चाहिए. कोशिश करे कि आप एक सब्जी उबली हुई और एक कच्ची खाएं. फ्रूट्स की बात करे तो हमें रोज सेब, केला और पपीते का सेवन जरूर करना चाहिए. इन सभी में एंटी-औक्सीडेंट और माइक्रो-न्यूट्रीशन की काफी मात्रा होती है जो हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है .

 

4. ग्रीन टी है बेस्ट

शाम को चाय के समय हमें बाहरी तली भुनी चीजें या पैकेट्स की चीजें बिस्कुट आदि नहीं खानी चाहिए. कोशिश करें की चाय की जगह ग्रीन टी लें और किसी बिस्कुट या समोसे के बजाए रोस्टेड चना या फिर मूंगफली खाए. आप चाहे तो फ्रूट सलाद भी खा सकती है जिस में अपने मनपसंद के फ्रूट्स डाल सकती हैं. अगर आप को कुछ चटपटा खाने का मन है तो उबली हुई मूंगदाल में प्याज,टमाटर चाट मसाला डाल कर टेस्टी स्नैक बना कर ऑफिस ले जा सकती हैं. इस में फाइबर और प्रोटीन की मात्रा भरपूर होती है.

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5. नींद है जरूरी

न्यूनतम 8 घंटे की नींद शरीर के लिए बेहतर होती है. इस 8 घंटे की नींद में आप के शरीर को अच्छे से आराम करने का समय मिलता है जिस से आप सारा दिन एक्टिव फील करती है. सोते समय यह सुनिश्चित करें लें कि आप के आसपास लैपटॉप, मोबाइल फोन, गेमिंग गैजेट्स जैसी चीज़े दूर हो.

क्यों जरूरी है कैल्शियम

लुधियाना हौस्पिटल में किए गए एक ताजा अध्ययन के अनुसार 14 से 17 साल के आयुवर्ग की लगभग 20% लड़कियों में कैल्शियम की कमी पाई गई है, जबकि पहले इतनी ज्यादा मात्रा में कैल्शियम की कमी केवल प्रैगनैंट और उम्रदराज महिलाओं में ही पाई जाती थी.

इस की वजह आज की बिगड़ती जीवनशैली है. आजकल लोग तेजी से पैकेट फूड पर निर्भर होते जा रहे हैं जिस के कारण उन के शरीर को संतुलित भोजन नहीं मिल पा रहा.

महिलाएं अपने पति और बच्चों की सेहत का तो भरपूर खयाल रखती हैं, मगर अकसर अपनी फिटनैस के प्रति लापरवाह हो जाती हैं. अच्छे स्वास्थ्य और मजबूत शरीर के लिए कैल्शियम बेहद जरूरी है. इस से हड्डियों और दांतों को मजबूती मिलती है.

हमारी हड्डियों का 70% हिस्सा कैल्शियम फास्फेट से बना होता है. यही कारण है कि कैल्शियम हड्डियों और दांतों की अच्छी सेहत के लिए सब से जरूरी होता है.

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को कैल्शियम की अधिक जरूरत होती है. उन के शरीर में 1000 से 1200 एमएल कैल्शियम होना चाहिए वरना इस की कमी से कई तरह की शारीरिक परेशानियां होने लगती हैं.

कैल्शियम तंदुरुस्त दिल, मसल्स की फिटनैस, दांतों, नाखूनों और हड्डियों की मजबूती के लिए जिम्मेदार होता है. इस की कमी से बारबार फ्रैक्चर होना औस्टियोपोरोसिस का खतरा, संवेदनशून्यता, पूरे बदन में दर्द, मांसपेशियों में मरोड़ होना, थकावट, दिल की धड़कन बढ़ना, मासिकधर्म में अधिक दर्द होना, बालों का झड़ना जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं.

ऐसे में यह जरूरी है कि कैल्शियम की पूर्ति अपनी डाइट से करें न कि सप्लिमैंट्स के जरीए.

महिलाओं में कैल्शियम की कमी के कारण

मेनोपौज की उम्र यानी 45 से 50 वर्ष की महिलाओं में अकसर यह कैल्शियम की कमी सब से अधिक होती है क्योंकि इस उम्र में फीमेल हारमोन ऐस्ट्रोजन का स्तर गिरने लगता है, जबकि यह कैल्शियम, मैटाबोलिज्म में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

हारमोनल परिवर्तन:  कैल्शियम रिच डाइट की कमी खासकर डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध, दही आदि न खाना.

हारमोन डिसऔर्डर हाइपोथायरायडिज्म:  इस स्थिति में शरीर में पर्याप्त मात्रा थायराइड का उत्पादन नहीं होता जो ब्लड में कैल्शियम लैवल कंट्रोल करता है.

महिलाओं का ज्यादातर समय किचन में बीतता है, मगर वे यह नहीं जानतीं कि किचन में ही ऐसी बहुत सी सामग्री उपलब्ध हैं जो उन के शरीर में कैल्शियम की कमी दूर कर सकती है. इस के सेवन से उन्हें ऊपर से कैल्शियम सप्लिमैंट्स लेने की जरूरत नहीं पड़ती.

रागी: रागी में काफी मात्रा में कैल्शियम होता है. 100 ग्राम रागी में करीब 370 मिलीग्राम कैल्शियम पाया जाता है.

सोयाबीन: सोयाबीन में भी पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम मौजूद होता है. 100 ग्राम सोयाबीन में करीब 175 मिलीग्राम कैल्शियम होता है.

पालक: पालक देख कर नाकमुंह सिकोड़ने वाली महिलाओं के लिए यह जानना जरूरी है कि 100 ग्राम पालक में 90 मिलीग्राम कैल्शियम पाया जाता है. इस के प्रयोग से पहले इसे कम से कम 1 मिनट जरूर उबालें ताकि इस में मौजूद औक्सैलिक ऐसिड कौंसंट्रेशन घट जाता है, जो कैल्शियम औबजर्वेशन के लिए जरूरी होता है.

हाल ही में किए गए अध्ययन के अनुसार कोकोनट औयल का प्रयोग कर बोन डैंसिटी के लौस को रोक सकते हैं, साथ ही यह शरीर में कैल्शियम के अवशोषण में भी मदद करता है.

धूप सेंकना: भोजन ही नहीं बल्कि सुबह की धूप सेंकना जरूरी है, क्योंकि इस में मौजूद विटामिन डी कैल्शियम अवशोषण के लिए जरूरी होता है. विटामिन डी खून में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रण करने के लिए जिम्मेदार होता है. इस का सेवन शरीर में कैल्शियम अवशोषित करने की क्षमता को बढ़ाता है और हड्डी टूटने का खतरा कम होता है.

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