महिलाओं को होने वाले 5 सामान्‍य स्‍त्री रोग, हो सकते हैं चिंता का कारण

लगभग हर महिला अपने जीवनकाल में किसी न किसी स्त्रीरोग समस्याओं से पीड़ित रहती हैं. इनमें कुछ मामले हल्के और उपचार योग्य हो सकते हैं, तो वहीं कुछ गंभीर हो सकते हैं और जटिलताओं को जन्म दे सकते हैं.

डॉ तनवीर औजला, सीनियर कंसल्टेंट ऑब्स्टेट्रिशन और गाइनेकोलॉजिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा.

कहना है- वैसे तो अनियमित माहवारी या मासिक धर्म में होने वाली तकलीफ कुछ ऐसी आम समस्याएं होती हैं, जो महिलाओं को प्रभावित करती हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इसे हल्के में लिया जाए.

5 ऐसे स्त्री रोग है जो कि चिंता का कारण होने चाहिए.

1. ओवेरियन सिस्ट

ओवेरियन सिस्ट तरल पदार्थ से भरी एक थैली होती है जो अंडाशय पर और उसके आसपास विकसित होती है, ये विभिन्न आकार की हो सकती है और यह ट्यूमर हो भी सकता है और नहीं भी. कई महिलाएं इन सिस्ट की उपस्थिति को महसूस किए बिना भी स्वस्थ जीवन जीती हैं. इसकी काफी संभावना होती है कि ये अपने आप ही घुल जाएं, यदि नहीं, तो आपका डॉक्टर उन्हें खत्म करने में मदद करने के लिये ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव गोलियां लिख सकते हैं. वैसे भी, समय-समय पर उन पर नजर रखना जरूरी है.

2. एंडोमेट्रियोसिस

एंडोमेट्रियोसिस तब होता है जब गर्भाशय की परत के समान ऊतक गर्भाशय की दीवारों के बाहर बढ़ने लगता है. ऊतक आमतौर पर एंडोमेट्रियल ऊतक की तरह सूज जाता है और उससे खून बहता है,  लेकिन खून और अपशिष्ट उत्तक के बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता. हालांकि, यह कैंसर नहीं है, यह जख्म और स्राव पैदा कर सकता है और फैलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध कर सकता है. इससे सिस्ट हो सकते हैं जो रक्त के अवरोध का कारण बन सकता है. इसके लक्षणों में दर्द, असामान्य रक्तस्राव शामिल हो सकते हैं और गर्भधारण में परेशानी पैदा हो सकती है.

3. पीसीओएस या पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) एक ऐसी स्थिति है जो एक महिला के शरीर में हॉर्मोनल स्तर को प्रभावित करती है. शरीर में पुरुष हॉर्मोन की मात्रा एंड्रोजन की वृद्धि हो सकती है. इस समस्या वाली महिला में लंबे समय तक या कम मासिक धर्म हो सकता है और अंडाशय पर कई फोलिकल्स दिखाई दे सकते हैं, जो अंडे रिलीज करने में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं. पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को पेट पर चर्बी, मुंहासे, बालों का असामान्य विकास, मासिक धर्म की असामान्यता का अनुभव हो सकता है या बांझपन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.

4. यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआई)

हर आयु वर्ग में यह सबसे आम स्त्रीरोगों में से एक है. आमतौर पर यह योनि या मलद्वार में बैक्टीरिया की मौजूदगी की वजह से होता है, जोकि मूत्रमार्ग और मूत्राशय तक पहुंच जाता है और कई मामलों में किडनी तक भी. इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन यह प्रेग्नेंसी, इंटरकोर्स या डायबिटीज की वजह से हो सकता है. इसके लक्षणों में पेशाब करने के दौरान जलन महसूस होना, पेट में मरोड़, पीड़ादायक सेक्स और बार-बार पेशाब का आना शामिल है.

5. फाइब्रॉयड्स

फाइब्रॉएड मस्क्यूलर ट्यूमर होते हैं जो एक महिला के गर्भाशय के अंदर बन सकते हैं जो शायद ही कभी कैंसरकारी होते हैं. वे आम तौर पर स्थान, शेप और साइज में भिन्न होते हैं. यह तब होता है जब हॉर्मोन या आनुवंशिकी परेशानी पैदा करती है, यह फाइब्रॉयड्स का कारण बन सकता है. इसकी वजह से भारी मासिक चक्र होता है, पेट के निचले हिस्से में दबाव महसूस होता है, साइकिल के बीच में रक्तस्राव होता है या यौन संबंध के दौरान दर्द महसूस होता है.

हालांकि, अपने स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास समय पर जाना और अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इन समस्याओं को रोका जा सकता है.

40 साल की उम्र के बाद महिलाएं अपनी रिप्रोडक्टिव लाइफ को हैल्थी रखने के लिए क्या करें

बढ़ती उम्र के साथ विभिन्न कारणों से महिलाओं का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है. 40 की उम्र में महिलाओं का शरीर तेजी से बदलता है. एस्ट्रोजन (oestrogen) और प्रोजेस्टेरोन (progesterone) जैसे हार्मोन (hormone) की मात्रा में उतार-चढ़ाव की वजह से महिलाओ में कई शारीरिक परिवर्तन आते हैं. इसके अलावा, उनका मेटाबोलिज्म (metabolism) भी धीमा हो जाता है. अतःइन् कारणों से उत्पन्न अपने सेक्सुअल स्वास्थ्य तथा अन्य जीवनशैली आधारित रोगों के बारे में महिलाओं को अवश्य जानना चाहिए. यह आवश्यक है की 40 की उम्र के बाद महिलाएं अपने सेक्सुअल स्वास्थ्य तथा गाइनिक हेल्थ पर ध्यान दें.

डॉ क्षितिज मुर्डिया,

सीईओ और सह-संस्थापक, इंदिरा आईवीएफ, का कहना है-

भारत में महिलाओं से मल्टीटास्क (multi-task) करने की अपेक्षा की जाती है जिस वजह से वह एक साथ कई काम करने के लिए विवश होती हैं। 40 की उम्र के बाद उनपर अपने घर और परिवार के साथ अपनी नौकरी को संतुलित करने की भी ज़िम्मेदारी रहती है। यह अक्सर मुख्य कारण होता है कि वे स्वयं के स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ करती हैं , जबकि यह अति आवश्यक है की महिलाएं ध्यान दे तथा रोग के लक्षणों को जल्दी पहचाने ताकि उनका जल्द से जल्द इलाज हो पाए। इस उम्र के दौरान स्वास्थ्य का ख्याल करना महत्वपूर्ण है क्योंकि हृदय रोग, मधुमेह (metabolism), उच्च रक्तचाप (high blood pressure) और स्तन कैंसर (breast cancer) होने की संभावना बढ़ सकती है। 40 साल के उम्र के बाद महिलाओं के शरीर में काफी बदलाव आते हैं; आइए हम इन् में से कुछ के बारे में जाने:

सेक्सुअल और गाइनिक हेल्थ में क्या परिवर्तन आ सकते हैं?

  1. पेरिमेनोपौज़ (Perimenopause)

मेनोपॉज़ (menopause) – मासिक धर्म यानी की पीरियड्स (periods) की पूर्ण समाप्ति को कहते है। यह 40 की उम्र में महिलाओं को प्रभावित करता है और कई तरह के लक्षणों से जुड़ा होता है। पीरियड्स की अनियमितता, सेक्स ड्राइव में बदलाव और शारीरिक गुणवताओं में बदलाव इनमें से कुछ लक्षण हैं। पुरुष हार्मोन जैसे की टेस्टोस्टेरोन के बढ़े हुए स्तर के कारण पीरियड्स अस्थायी रूप से बंद हो सकते हैं, उनमें अनियमित ओव्यूलेशन (irregular ovulation) हो सकता है जिससे उनका गर्भवती होना मुश्किल हो जाता है, और कुछ मामलों में महिलाओं के शरीर और चेहरे पर असामान्य मात्रा मे बाल उग जाते है। कई मामलों में हार्मोन का स्तर तेजी से बदलने के कारण हॉट फ्लैशेज (hot flashes) हो जाते है जिसमें चेहरे, गले और चेस्ट पर गर्मी का अनुभव हो सकता है। इस उम्र में मूड स्विंग भी आमतौर पर महसूस होता है जिससे चिंता और डिप्रेशन की संभावनाएं बढ़ सकती है।

कुछ महिलाओं में मेनोपॉज़ जल्दी आ जाता है। इसका कारन हिस्टेरेक्टॉमी (hysterectomy) द्वारा गर्भाशय (uterus) या अंडाशय (ovaries) का हटाना को सकता है अथवा कैंसर के chemotherapy (कीमोथेरेपी) इलाज़ से अंडाशय का  छतिग्रस्थ  होना होता है ।

  1. गर्भाशय फाइब्रॉएड (Uterine Fibroids)

कैंसरमुक्त ट्यूमर को फाइब्रॉएड कहलाते हैं। यह 40 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं में अक्सर पाया जाता है। इन महिलाओं को दर्दनाक पीरियड्स का अनुभव होता है। यह पाया गया है कि मेंटस्रूअल साइकिल (menstrual cycle) के दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर में वृद्धि इन फाइब्रॉएड के विकास को बढ़ावा देती है। फाइब्रॉएड की संख्या, स्थान और आकार सभी इसके लक्षणों को प्रभावित करेंगे। उदाहरण के लिए, सबम्यूकोसल फाइब्रॉएड (submucosal fibroid) की वजह से गर्भधारण तथा पीरियड्स के समय अत्यधिक रक्त स्त्राव (blood loss) की संभावना बढ़ जाती है। यदि ट्यूमर बहुत छोटा है या महिला मेनोपॉज़ से गुजर रही है, तो हो सकता है कि वे लक्षणों को नोटिस न करें।

  1. स्तन स्वास्थ्य और कैंसर

महिलाओं में होने वाले विभिन्न प्रकार के कैंसरों में से स्तन कैंसर सर्वाधिक रूप में पाया गया है। स्तन कैंसर के अनेक कारणों में से सबसे प्रचलित कारण है बढ़ती उम्र। रिसर्च से पता चला है कि 69 मे से एक महिला को 40 से 50 की उम्र के बीच स्तन कैंसर होने का खतरा होता है और उम्र के बढ़ने के साथ इसकी आशंका बढ़ती जाती है।महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर के प्रति सतर्क रहना चाहिए। ब्लड और लिम्फ वेसेल्स द्वारा यह कैंसर स्तन के बाहर फैलता है तथा यह शरीर के अन्य हिस्सों मे भी फैल जाता है ।

इसके अतिरिक्त महिलाओ के स्तन में कैंसरमुक्त गांठ जैसे कि सिस्ट और फाइब्रोएडीनोमा विकसित हो सकते हैं। हार्मोन थेरेपी (hormone therapy) का उपयोग करने वाली पोस्टमेनोपॉज़ल (post-menopausal) महिलाओं में फाइब्रोएडीनोमा अधिक मात्रा में देखा गया है।

  1. सर्वाइकल कैंसर (Cervical Cancer)

गर्भाशयग्रीवा यानी की सर्विक्स (cervix) गर्भाशय का मुख है जो योनि और गर्भाशय को जोड़ता है। बढ़ती उम्र के साथ महिलाओ के सर्विक्स में कैंसर युक्त ट्यूमर उत्पन्न हो सकते है। अधिकतर महिलाओ में सर्वाइकल कैंसर ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (human papilloma virus) से होती है जो यौन संपर्क से फैलती है। सर्वाइकल कैंसर दो प्रकार के होते हैं—स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (squamous cell carcinoma) और एडेनोकार्सिनोमा (adenocarcinoma)। 90% मामलों में सर्वाइकल कैंसर का कारण स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा है।

इन लक्षणों को कैसे नोटिस करें और क्या करें?

–            मेनोपॉज़ की वजह से महिलाए हॉट फ़्लैश और मूड स्विंग अनुभव कर सकती है। हालांकि यह काफी आम लक्षण माना गया है, गंभीर लक्षणों के बारे में डॉक्टर से बात करके सुझाव लेना अनिवार्य है। डॉक्टर द्वारा हार्मोनल रिप्लेसमेंट थेरेपी (hormonal replacement therapy) का उपयोग मेनोपॉज़ के उपचार के रूप में किया जा सकता है। ज्यादातर मामलों में ये लक्षण समय के साथ गायब हो जाते हैं।

–            अधिक वजन वाली महिलाएं गर्भाशय फाइब्रॉएड के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। महिलाएं सर्जरी के जरिए अपने फाइब्रॉएड को हटा सकती हैं। यह तब किया जाना चाहिए जब वे स्वाभाविक रूप से या आईवीएफ के माध्यम से गर्भवती होने की सोच रही हों।

–           अगर महिलाओं को अपने स्तनों में गांठ या त्वचा में बदलाव सहित कुछ भी असामान्य दिखाई देता है, तो उन्हें डॉक्टर के पास जाना चाहिए। मैमोग्राफी या ब्रेस्ट अल्ट्रासाउंड स्तन कैंसर का पता लगाने में मदद करेगा। अगर शुरुआती दौर में पता चल जाए तो ब्रेस्ट कैंसर का इलाज आसान हो जाता है।

–            सर्वाइकल कैंसर के शुरुआती संकेत केवल एक डॉक्टर ही पता लगा सकता हैं। पैप स्मियर जांच (Pap smear test)  एचपीवी वैक्सीन (HPV vaccine) सर्वाइकल कैनवर और एचपीवी से संबंधित अन्य संक्रमणों के विकास के जोखिम को कम कर सकता है और एचपीवी टेस्ट सर्वाइकल कैंसर का पता लगा सकता है। इससे पहले कि उन्हें कैंसर में विकसित होने का अवसर मिले, ये परीक्षण शुरुआत में ही असामान्य कोशिकाओं का पता लगा सकते हैं। सर्वाइकल कैंसर के इलाज के लिए रेडिएशन, कीमोथेरेपी, सर्जरी, टार्गेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी जैसे कई विकल्प उपलब्ध हैं।

महिलाओं के अंडाशय में अंडों की संख्या और गुणवत्ता 35 साल की उम्र से कम होने लगती है। मेनोपॉज़ तक के वर्षों में उनकी प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। क्रोमोसोमल डिफेक्ट के जोखिम, मेनोपॉज की शुरुआत और ओव्यूलेशन की कमी इसमें शामिल होती है। इस वजह से महिलाओं के लिए उम्र बढ़ने के साथ बच्चे पैदा करना मुश्किल हो जाता है। जो महिलाएं 40 साल की उम्र के बाद गर्भधारण करना चाहती हैं, वे अपने अंडे फ्रीज कर सकती हैं।

इसके अतिरिक्त महिलाओं को स्वस्थ आहार लेना चाहिए, धूम्रपान और शराब पीने से बचना चाहिए और नियमित व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए। ये आदतें रिप्रोडक्टिव लाइफ को हैल्थी रखने में मदद करती हैं।

महिलाओं के शरीर में ऊर्जा उत्पन्न होने की क्षमता उम्र के साथ घटती जाती है। वे उम्र के साथ कम कैलोरी बर्न (calorie burn) करती हैं, जबकि हो सकता है शारीरिक गतिविधियां पहले जितनी ही रहती हो । इससे कम ऊर्जा का उत्पादन होता है और बची हुई कैलोरी फैट्स (fats) के रूप में जमा हो जाती है। इसलिए स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम के साथ वजन और ऊर्जा के स्तर को बनाए रखना महत्वपूर्ण है। महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं से या उनसे पूरी तरह बचने के लिए नियमित स्वास्थ्य परीक्षण करवाना चाहिए। 40 वर्ष की आयु की महिलाओं को नियमित रूप से सर्वाइकल कैंसर का परीक्षण करवाना चाहिए। स्तन कैंसर का पता लगाने के लिए उन्हें हर दो साल में मैमोग्राफी भी करवानी चाहिए। हाई रिस्क वाली महिलाएं विशेष रूप से ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) की जांच के लिए मेनोपॉज़ के बाद बोन डेंसिटी (bone density) परीक्षण कराने के बारे में सोच सकती हैं।

ब्रैस्ट फीडिंग मां और बच्चे के लिए क्यों है सही

इन दिनों कितने ही आधुनिक कपल्‍स अपने-अपने पेशेवर जीवन में इतने व्‍यस्‍त होते हैं कि वे पैरेंट्स बनने का फैसला लंबे समय तक टालते रहते हैं लेकिन आखिरकार जब वे ऐसा करने के लिए तैयार होते हैं तो बढ़ती उम्र एक बड़ी बाधा के रूप में उनकी चुनौतियां बढ़ाती है।

वर्ल्‍ड हैल्‍थ ऑर्गेनाइज़ेशन के अनुसार, भारत में करीब 3.9 से 16.8 प्रतिशत कपल्‍स को प्राइमरी इन्‍फर्टिलिटी की समस्‍या पेश आती है। नतीजा यह होता कि ये आधुनिक कपल्‍स जब गर्भधारण की ओर बढ़ते हैं, तो उनकी परेशानियों के समाधान के लिए कई नई तकनीकें और आधुनिक फर्टिलिटी इलाज पद्धतियां जैसे कि आईवीएफ, आईयूआई, एम्‍ब्रयो फ्रीज़‍िंग और ऍग फ्रीज़‍िंग वगैरह उनके सामने विकल्‍प के तौर पर उपलब्‍ध होते हैं। ये उपचार उन कपल्‍स के लिए जोखिम-मुक्‍त विकल्‍प साबित होते हैं जो देरी से पैरेंटहुड की तरफ कदम बढ़ाना चाहते हैं।

डॉ रम्‍या मिश्रा, सीनियर कंसल्‍टैंट – इन्‍फर्टिलिटी एवं आईवीएफ, अपोलो फर्टिलिटी (लाजपत नगर, नई दिल्‍ली) का कहना है-

हाल के समय में ऍग फ्रीज़ करवाने का विकल्‍प काफी लोकप्रिय हो चुका है। अब कई महिलाएं उम्र के उस मोड़ पर ही अपने ऍग्‍स फ्रीज़ करवाना पसंद करती हैं जब वे रिप्रोडक्टिव उम्र में होती हैं और गर्भधारण का फैसला बाद के लिए छोड़ देती हैं ताकि वे तब उसे चुन सकें जब वे इसके लिए तैयार हों। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि सामाजिक कारणों की वजह से बहुत सी महिलाएं अपने ऍग फ्रीज़ नहीं करवा पाती हैं, कुछ ऐसा मेडिकल कारणों के चलते करती हैं। कई बार कैंसर के उपचार के लिए इस्‍तेमाल होने वाली कुछ थेरेपी जैसे कि कीमोथेरेपी और रेडिएशन वगैरह महिलाओं के डिंबों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए भविष्‍य में गर्भधारण को आसान बनाने के लिए महिलाओं को कैंसर उपचार शुरू करने से पहले ही भविष्‍य के लिए अपने डिंबों को सुरक्षित करवाने की सलाह दी जाती है।

क्‍या हैं डिंब सुरक्षित (फ्रीज़) करवाने के लाभ 

महिलाओं के शरीर में बनने वाले संभावित डिंबों की संख्‍या जिन्‍हें फॉलिक्‍स कहा जाता है, सीमित होती है, और यह एक से दो मिलियन के बीच होती है। जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, उनकी डिंब कोशिकाओं की संख्‍या घटती है, और इस वजह से गर्भधारण अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। लेकिन यदि किसी महिला ने अपने प्रजननकाल में समय से डिंबों को सुरक्षित (फ्रीज़) करवाया होता है तो वे उम्र के बाद के पड़ाव में भी आसानी से गर्भधारण कर सकती हैं।

डिंब सुरक्षित करवाने की प्रक्रिया में डिंबग्रंथियों (ओवरीज़) को होर्मोनों से उत्‍प्रेरित किया जाता है ताकि वे एक बाद में काफी अधिक संख्‍या में डिंबों का निर्माण करें, और इन डिंबों को डिंबग्रंथियों से निकालकर लैब में भेजा जाता है जहां इन्‍हें शून्‍य से कम तापमान पर सुरक्षित तरीके से स्‍टोर किया जाता है। इस प्रकार इन फ्रीज़ किए गए डिंबों को बाद में, जबकि महिला गर्भधारण के लिए तैयार हो, इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

क्‍या है डिंब फ्रीज़ (ऍग फ्रीज़ींग) करवाने की सही उम्र 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि जैसे-जैसे महिलाओं और पुरुषों की उम्र बढ़ती है, उनकी फर्टिलिटी भी उसी हिसाब से कम होने लगती है। वे 20 से 30 की उम्र में सर्वाधिक उर्वर/प्रजननयोग्‍य (फर्टाइल) होते हैं लेकिन उम्र के तीसवें वसंत के बाद उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित होने लगती हैं और यही कारण है कि उसके बाद गर्भधारण में अधिक जटिलताएं और दिक्‍कतें पेश आती हैं।

आधुनिक दौर में कपल्‍स की जरूरतों के मद्देनज़र, कई तरह के फर्टिलिटी ट्रीटमेंट्स सामने आ चुके हैं। ऍग फ्रीज़ करवाना ऐसा ही एक तरीका है जिसमें महिलाएं अपने डिंबों को सुरक्षित रखवती हैं और बाद में जब वे तैयार होती हैं तो उनकी मदद से गर्भधारण करती हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि ऍग फ्रीज़‍िग की सही उम्र और भविष्‍य में गर्भधारण की कामयाबी के बीच सीधा संबंध है। किसी भी महिला के लिए ऐसा करवाने की आदर्श उम्र उसके रिप्रोडक्टिव वर्ष होते हैं। आमतौर पर, उम्र के तीसरे दशक के शुरुआती वर्षों को इस लिहाज़ से आदर्श माना जाता है जबकि महिलाएं आमतौर से सबसे अधिक उर्वर होती हैं और जैसे-जैसे वे उम्र के चौथे दशक के अंतिम चरण में पहुंचती हैं, उनकी फर्टिलिटी कमज़ोर पड़ने लगती है और तब उनकी डिंबग्रंथि में बनने वाले डिंबों की संख्‍या और गुणवत्‍ता दोनों प्रभावित हो चुके होते हैं। लेकिन अधिक उम्र में भी प्रेगनेंसी के लिए, अक्‍सर तीस साल की उम्र से पहले डिंबों को सुरक्षित करवाने की सलाह दी जाती है।

डिंबों को फ्रीज़ करवाना:

अधिक उम्र होने पर गर्भधारण का अधिक सेहतमंद विकल्‍प
आज के दौर में, इन्‍फर्टिलिटी एक दर्दनाक सच्‍चाई बन चुकी है जिससे कई आधुनिक कपल्‍स गुजरते हैं। लेकिन टैक्‍नोलॉजी के क्षेत्र में प्रगति होने से कई नए रिप्रोडक्टिव ट्रीटमेंट्स उपलब्‍ध हो चुके हैं, जो इन्‍फर्टिलिटी की चुनौती से उबारते हैं। ऐसा ही एक जोखिमरहित तरीका है डिंबों को फ्रीज़ करवाना जिससे अधिक उम्र में हैल्‍दी प्रेगनेंसी संभव होती है। महिलाएं अपनी व्‍यस्‍त जीवनशैली के मद्देनज़र, रिप्रोडक्टिव उम्र में अपने डिंबों को सुरक्षित (फ्रीज़) करवा सकती हैं और बाद में जब भी वे अपना परिवार शुरू करना चाहें, तब इनका इस्‍तेमाल किया जा सकता है। इस विकल्‍प्‍ के बारे में और जानकारी के लिए अपने फर्टिलिटी एक्‍सपर्ट से मिलें और ऍग-फ्रीज़‍िंग की प्‍लानिंग करें.

Breast Cancer: स्थिति, लक्षण और उपचार जानकर इस तरह रहें सुरक्षित

ब्रेस्ट कैंसर (स्तन कैंसर) हॉर्मोन, व्यवहार और पर्यावरण संबंधी अलग-अलग तरह के घटकों से जुड़ा रहा है. ब्रेस्ट कैंसर होने का सबसे संभावित कारण है व्यक्ति के जेनेटिक कोड और उनके आस-पास के परिवेश के बीच जटिल अंतःक्रिया. ब्रेस्ट कैंसर भारतीय महिलाओं को प्रभावित करने वाले सबसे प्रमुख कैंसर में से एक है. भारतीय महिलाओं को होने वाले सभी प्रकार के कैंसर में ब्रेस्ट कैंसर का अनुपात 14% है. भारत में ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों में से 60% कैंसर के बाद जीवित रहते हैं.

डॉ. मंजू गुप्ता, सीनियर कंसलटेंट और प्रसूति विशेषज्ञ बता रहीं है ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण और उपचार.

ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण

1. लिंग के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं, पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर की आशंका अधिक रहती है.

2. हमारी आयु की अवस्था से हमारे शरीर में ब्रेस्ट कैंसर के जोखिम का काफी कुछ पता चलता है.

3. परिवार में ब्रेस्ट कैंसर होने का इतिहास या कोई वंशानुगत जीन जिससे कैंसर का खतरा बढ़ता है.

4. बहुत ज्यादा विकिरण (रेडिएशन) के संपर्क में रहने से ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ सकता है.

5. अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखना और मोटा होने से ब्रेस्ट कैंसर का आपका खतरा बढ़ जाता है.

6. अधिक उम्र में रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज़) से ब्रेस्ट कैंसर का आपका जोखिम बढ़ जाता है.

7. रजोनिवृत्ति पश्चात हॉर्मोन थेरेपी. रजोनिवृत्ति के संकेतों और लक्षणों के उपचार के लिए एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के संयोजन के साथ हॉर्मोन थेरेपी चिकित्सा कराने वाली महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होने का जोखिम अधिक रहता है.

ब्रेस्ट कैंसर के अनेक रूप होते हैं, लेकिन डक्टल कार्सिनोमा सबसे अधिक बार-बार होने वाला कैंसर है. ब्रेस्ट के निकट मिल्क डक्ट्स में उत्पन्न होने वाले ट्यूमर (गाँठ) को डक्टल कार्सिनोमा कहा जाता है. वे इनवेसिव या नॉन-इन्वासिव हो सकते हैं और उनमें शरीर के दूसरे हिस्सों में फ़ैल जाने की शक्ति होती है. कोई गाँठ, स्तन के आकार में बदलाव, या निप्पल के स्वरूप में बदलाव, ये सभी ब्रेस्ट कैंसर के प्रथम चरण के संकेत हैं, जो सबसे अधिक होता है. ट्यूमर निकालने की सर्जरी के बाद कैंसर की बची-खुची कोशिकाओं को मारने के लिए आम तौर पर रेडिएशन थेरेपी (विकिरण चिकित्सा) की जाती है.

दूसरे चरण में ब्रेस्ट कैंसर इतना बढ़ गया होता है कि यह शरीर के अन्य हिस्सों में फ़ैल जाता है. इस स्थिति में ट्यूमर को जितना संभव हो उतना काट कर निकालने के लिए सर्जरी, कैंसर के बची-खुची कोशिकाओं को मारने के लिए कीमोथेरेपी, और कैंसरग्रस्त उतकों को मारने के लिए रेडिएशन थेरेपी, ये सभी उपचार योजना के हिस्से हैं.

तीसरे चरण का ब्रेस्ट कैंसर प्राथमिक ट्यूमर के स्थान से बाहर जा चुका होता है और परम्परागत उपचार से इसके ठीक होने की संभावना कम होती है.

आस-पास के कुछ उतकों को निकालने के लिए सर्जरी, किसी बचे-खुचे कैंसर कोशिकाओं को समाप्त करने के लिए रेडिएशन थेरेपी, और कोई अन्य विकल्प न होने पर कीमोथेरेपी, ये सभी संभावित उपचार हो सकते हैं.

उपचार

ब्रेस्ट कैंसर के हर मामले के लिए एक समान उपचार काम नहीं आता है, क्योंकि यह रोग की अवस्था, रोगी की उम्र, स्वास्थ्य का इतिहास, और अन्य घटकों के आधार पर अलग-अलग होता है. ब्रेस्ट कैंसर का पता चलने पर सम्बंधित रोगी के उपचार के लिए सर्जरी एक विकल्प है. उपचार के आधार पर अनेक प्रकार के ऑपरेशन उपलब्ध हैं. कुछ प्रकार की सर्जिकल प्रक्रिया में ब्रेस्ट को काट कर हटा दिया जाया है.

रेडिएशन थेरेपी (विकिरण चिकित्सा) – ट्यूमर की कोशिकाओं को रेडिएशन से मार दिया जाता है.

कैंसर की कोशिकाओं के लिए कीमोथेरेपी एक औषधीय उपचार है जो उन्हें मार देता है. हालांकि, यह उपचार आम तौर पर अन्य उपचारों के साथ-साथ किया जाता है.

हॉर्मोन थेरेपी – हॉर्मोन थेरेपी की अनुशंसा उन लोगों के लिए की जाती है जिन्हें हॉर्मोन को लेकर संवेदनशील ब्रेस्ट कैंसर है. यह उपचार ख़ास हॉर्मोनों के संश्लेषण को रोक कर क्रिया करता है, जो कैंसर की वृद्धि को धीमा कर देता है.

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अगर आपको भी है एनीमिया की प्रौब्लम तो जरुर पढ़ें ये खबर…

महिलाओं की शारीरिक रचना इस तरह की होती है कि मासिकस्राव, गर्भावस्था एवं प्रसव में बहुत अधिक रक्त उन के शरीर से बाहर निकल जाता है. ये सारी स्थितियां उन्हें एनीमिया का शिकार बना देती हैं. एनीमिया किसी भी आयुवर्ग एवं शारीरिक बनावट की महिला को हो सकता है. लेकिन इस का पता सिर्फ रक्त की जांच से ही चल सकता है.

क्या है  एनीमिया

हमारे शरीर के सैल्स को जिंदा रहने के लिए औक्सीजन की जरूरत होती है. शरीर के अलगअलग हिस्सों में औक्सीजन रैड ब्लड सैल्स में मौजूद हीमोग्लोबिन पहुंचाता है. आयरन की कमी और दूसरी वजहों से रैड ब्लड सैल्स और हीमोग्लोबिन की मात्रा जब शरीर में कम हो जाती है, तो उस स्थिति को  एनीमिया कहते हैं.

आरबीसी और हीमोग्लोबिन की कमी से सैल्स को औक्सीजन नहीं मिल पाती. कार्बोहाइड्रेट और फैट को जला कर ऐनर्जी पैदा करने के लिए औक्सीजन जरूरी है. औक्सीजन की कमी से हमारे शरीर और दिमाग की काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है.

 एनीमिया के प्रकार

माइल्ड: अगर बौडी में हीमोग्लोबिन 10 से 11 जी/डीएल के आसपास हो तो उसे माइल्ड  एनीमिया कहते हैं. इस में हैल्दी और बैलेंस्ड डाइट खाने की सलाह के अलावा आयरन सप्लिमैंट्स दिए जाते हैं.

मौडरेट: अगर हीमोग्लोबिन 8 से 9 जी/डीएल से कम हो तो सीवियर  एनीमिया कहलाता है, जो एक गंभीर स्थिति होती है. इस में मरीज की हालत को देखते हुए ब्लड भी चढ़ाना पड़ सकता है.

सीवियर: अगर हीमोग्लोबिन 8 जी/डीएल से कम हो तो सीवियर  एनीमिया कहलाता है, जो एक गंभीर स्थिति होती है. इस में भी मरीज की हालत की गंभीरता को देखते हुए ब्लड भी चढ़ाना पड़ सकता है.

एनीमिया के लक्षण

एनीमिया से पीडि़त महिला को सुस्ती, सिर में दर्द, छाती में दर्द, त्वचा में पीलापन, शरीर का ठंडा रहना, मामूली कामकाज से थकान, शारीरिक शक्ति में कमी, हांफना, रुकरुक कर सांसें लेना, दिल की धड़कन का अनियमित होना आदि शारीरिक लक्षणों से गुजरना पड़ता है.

 एनीमिया से खतरा

खून की कमी होने पर हृदय को अधिक काम करना पड़ता है. खून की कमी से हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, जिस से हृदयाघात का खतरा रहता है. खून की कमी से ही शरीर के कई अंग अपनी पूर्ण क्षमता के साथ काम नहीं कर पाते. यह शरीर को अक्षम बना देता है. शारीरिक विकास की गति थम जाती है और जीवनकाल कम हो जाता है.

महिलाओं की सारी शारीरिक गतिविधियां खून की कमी के कारण प्रभावित हो जाती हैं. खासतौर पर गर्भस्थ शिशु का विकास पूर्णरूप से नहीं हो पाता. इस से किसी भी समय गर्भपात हो सकता है.

एनीमिया की जांच व निदान

एनीमिया का पता लगाने के लिए प्रयोगशाला में रक्त की जांच ही एकमात्र उपाय है. इस में महिला के कंप्लीट ब्लड काउंट की जांच होती है. महिलाओं में इस की संख्य 11 से 15 होती है. यदि ब्लड काउंट निर्धारित संख्या से कम होते हैं तो इस का मतलब महिला  एनीमिया पीडि़त है. फिर इस का इलाज किया जाता है और संतुलित खानपान की सलाह दी जाती है. दरअसल, हमारे दैनिक खानपान में बहुत सी ऐसी वस्तुएं हैं जिन का सेवन रक्त बढ़ाने में सहायक होता है.

रक्त वृद्धि

हीमोग्लोबिन को बढ़ाने में आयरन, विटामिन सी एवं बी-12 प्रमुख व सहायक घटक हैं. हरी सब्जियां जैसे पालक, मेथी, चौलाई, मटर आदि रक्त बढ़ाने में सहायक होते हैं. साथ ही  मूंगफली, मसूर, बादाम, किशमिश, अंडा, मांस, मछली आदि में भी रक्त बढ़ाने की क्षमता होती है. लाल व बैगनी रंग के फल एवं सब्जियों में भी आयरन की मात्रा होती है.

रक्त नवनिर्र्माण में सहायक द्वितीय मुख्य घटक विटामिन सी है. यह शरीर को आयरन के अवशोषण में सहायता करता है. विटामिन सी सभी रसदार फलों जैसे नीबू, मौसमी, संतरा, आम, स्ट्राबैरी, तरबूज, खरबूजा, अमरूद, आंवला, कीवी आदि में पाया जाता है. यह टमाटर, गोभी और आलू में भी होता है. विटामिन बी-2 एवं मल्टी विटामिन अंकुरित अनाज, दलहन में पाया जाता है. ये सभी रक्त निर्माण में सहायक हैं.

किन्हें खतरा ज्यादा

जिन महिलाओं को किडनी में समस्या, डायबिटीज, बवासीर, हर्निया और दिल की बीमारी है, उन्हें एनीमिया होने का ज्यादा खतरा होता है. शाकाहारी महिलाओं या स्मोकिंग करने वाली महिलाओं को भी एनीमिया का खतरा रहता है. यदि पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो तो फौरन डाक्टर को दिखाएं, क्योंकि इस से शरीर में आयरन तेजी से कम हो जाता है.

हाल ही में किए गए एक शोध में यह बात सामने आई है कि भारत में लगभग 50% महिलाएं  एनीमिया की शिकार हैं. महिलाओं की शारीरिक संरचना के अनुसार माहवारी या अन्य कारणों से उन में रक्तस्राव होना स्वाभाविक है, पर जब यह ज्यादा मात्रा में होने लगे तो इस के रोकथाम के उपाय करना जरूरी है.

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