रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः अजय देवगन,भूषण कुमार, किषन कुमार,एस आर प्रकाष बाबू, रिलायंस इंटरटेनमेंट

लेखकःआमिल कियान खान, अंकुष सिंह, श्रीधर दुबे व संदीप केलवानी

निर्देषकः अजय देवगन

कलाकारःअजय देवगन,तब्बू,विनीत कुमार,किरण कुमार,दीपक डोबरियाल, संजय मिश्रा,गजराज राव, आमला पौल, मकरंद देषपांडे,यूरी सूरी,अभिषेक बच्चन,अक्ष आहुजा, राज लक्ष्मी व अन्य

अवधिःदो घंटे 24 मिनट

प्रदर्षन की तारीखः तीस मार्च 2023

दक्षिण भारतीय लेखक व निर्देषक लोकेष कनगराज की तमिल भाषा की फिल्म ‘‘कैथी’’ 25 अक्टूबर 2019 को सिनेमाघरों में पहुॅची थी.25 करोड़ की लागत से बनी इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर 105 करोड़ से अधिक कमाए थे.फिर यह फिल्म ‘एम एक्स प्लेअर पर भी हिंदी में डब करके मुफ्त दिखायी गयी.जिससे प्रभावित होकर अजय देगवन ने स्वयं इस फिल्म का हिंदी रीमेक बनाने का फैसला लिया.अब अजय देवगन बतौर निर्माता, निर्देषक व अभिनेता एक्षन व रोमांचक फिल्म ‘कैथी’ का हिंदी रीमेक ‘‘भोला’ ’लेकर आए हैं.जो कि अति खराब फिल्म है.कैथी में जिस किरदार को कार्थी ने और पुलिस इंस्पेक्टर बिजौय के किरदार को नरेन ने निभाया था,उसे ही ‘भोला’’में क्रमषः

अजय देवगन और तब्बू ने निभाया है.यानी कि कैथी का पुरूष इंस्पेक्टर बिजौय का लिंग बदलकर भोला में इंस्पेक्टर डायना जोसेफ कर दिया गया.फिर भी यह फिल्म ‘काथी’ के मुकाबले काफी कमजोर है. तथा दर्षकों को बांध नही पाती है.जिन्हे कहानी की बजाय सिर्फ एक्षन देखना चाहते हैं,वह अवष्य इसे देख सकते हैं.‘कैथी’ एक रात की कहानी है और इसमें रोमांचक तत्व काफी हैं. जबकि ‘भोला’ में रोमांच का अभाव है.इतना ही नही यह फिल्म रात संे दिन तक चलती है.आखिर अजय देवगन अपने एक्यान के करतब दिन मे ंन दिखांए,यह कैसे हो सकता है.

 

 

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कहानी:

2019 की सफल तमिल फिल्म ‘‘कैथी’’ के हिंदी रीमेक वाली फिल्म ‘‘भोला’’ की कहानी उत्तर प्रदेष की पृष्ठभूमि में है और कहानी के केंद्र में पुलिस इंस्पेक्टर डायना जोसेफ ( तब्बू ) और दस साल बाद जेल से छूटा कैदी भोला ( अजय देवगन ) है.पुलिस इंस्पेक्टर डायना जोसेफ उनकी टीम ने करोड़े रूपए मूल्य की कोकीन को जब्त करने के साथ ही ड्ग्स व कोकीन के सिंडिकेट के प्रमुख निठारी ( विनीत कुमार ) सहित सिंडिकेट के कुछ सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया, जिनकी पहचान उन्हें नहीं है.डायना जोसेफ ऐसा करते हुए बुरी तरह से घायल हो जाती है.डायना जोसेफ को लगता है कि अभी तक निठारी उनकी पकड़ से कोसो दूर है.इसलिए वह निठारी के भाई, श्वत्थामा ‘आशु‘ (दीपक डोबरियाल ) को गुस्सा दिलाती है,जिससे निठारी समाने आ सके.उधर आषू गुस्से में 5 पुलिस वालों के खिलाफ इनाम की घोषणा करने के साथ ही पुलिस द्वारा जब्त अपने कोकीन को भरी प्राप्त करने के प्रयास में लग जाता है.उधर आषु भ्रष्ट एनसीबी सिपाही देवराज सुब्रमण्यम की मदद से डायना के वरिष्ठ अफसर की सेवानिवृत्ति की पार्टी में पुलिस वालों के खाने-पीने में जहर घुलवा देता है.डायना जोसेफ इस पार्टी में कुछ नही खाती,क्योंकि घायल होने के बाद वह दवाएं ले रही थी. उधर हाल ही दस साल तक जेल में कैद रहने के बाद अच्छे व्यवहार के चलते जेल से छूटने पर भोला अपनी बेटी ज्योति से मिलने अनाथाश्रम की तरफ बढ़ता है,जिसे रास्तें में पुनः पुलिस पकड़ लेती है. और अब डायना के निवेदन पर भोला अपनी बेटी के पास जाने के बदले 80 किलोमीटर दूर निकटतम अस्पताल में डायना जोसेफ के साथ ही पुलिस वालों को ट्क में में भरकर पहुॅचाने के लिए अनिच्छा से सहमत हो जाता है.रास्ते में हर कोने पर भोला,डायना जोसेफ व पुलिस कर्मियों पर मौत मंडराती रहती है.आखिर आशु और गैंगस्टर पुलिस वालों के साथ ही डायना को मौत के घाट उतारने के लिए तत्पर है.परिणामतः भोला और आषू के गैंग्स्टरों के बीच चूहे बिल्ली का खेल षुरू हो जाता है.

 

 

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लेखन व निर्देषन:

मषहूर एक्षन निर्देषक स्व. वीरू देवगन के बेटे अजय देवगन ने 1991 में फिल्म ‘‘फूल और कोटे’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था.अब तक सौ से अधिक फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं.पर 11 अप्रैल 2008 को प्रदर्षित व बुरी तरह से असफल फिल्म ‘‘यू मी और हम’’ का निर्देषन कर निर्देषन के क्षेत्र में कदम रखा था. इस फिल्म में अजय देवगन ने स्वयं अपनी पत्नी व अभिनेत्री काजोल के संग अभिनय किया था.फिर आठ वर्ष बाद अजय देवगन ने फिल्म ‘‘षिवाय’’ का निर्देषन करते हुए खुद ही अभिनय किया था.फिल्म को औसत दर्जे की ही सफलता मिल पायी थी.इसके बाद 2022 में अजय देवगन ने ‘‘रनवे 34’ का निर्देषन किया.सत्य घटनाक्रम पर आधारित इस फिल्म में अजय देवगन के साथ अमिताभ बच्चन,बोमन ईरानी और रकूल प्रीत सिंह ने भी अभिनय किया था.

मगर यह फिल्म अपनी आधी लागत वसूलने में भी नाकामयाब रही.यानी कि ‘रनवे 34’ जितनी बुरी तरह से बाक्स आफिस पर धराषाही हुई,उसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी.लेकिन अजय देवगन और उनके नजदीकी लोग हार मानने को तैयार नही है.तभी तो अब अजय देवगन ने 2019 की सफलतम तमिल फिल्म ‘‘कैथी’’ की हिंदी रीमेक फिल्म को ‘‘भोला’’ नाम से निर्देषित करने के साथ ही अपनी सफल फिल्म ‘दृष्यम’ व ‘दृष्यम 2’ की सह कलाकार तब्बू के साथ अभिनय भी किया है.फिल्म ‘‘भोला’’ देखकर दो बातें साफ तौर पर उभर कर आती हैं.पहली यह कि एक भाषा की सफल फिल्म का हिंदी रीमे करते हुए किस तरह पूरी कहानी व फिल्म का बंटाधार किया जा सकता है,इसका सबूत है ‘भोला’’.दूसरी बात बौलीवुड को दक्षिण की फिल्मों या हौलीवुड से कोई खतरा नही है.हकीकत यह है कि बौलीवुड से जुड़े दिग्गज लोग ही सिनेमा को खत्म करने पर आमादा हैं. यहां याद दिल दें कि 2016 में भाजपा सरकार ने अजय देवगन के सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए ‘पद्मश्री’ से भी नवाजा था.

वाराणसी,हैदराबाद व मंुबई में फिल्मायी गयी फिल्म ‘‘भोला’’ में कहानी, पटकथा,निर्देषन सब कुछ गड़बड़ है.फिल्म में सिर्फ एक्षन दृष्य हैं,इमोषन का दूर दूर तक अता पता नही है.षायद अजय देवगन को भी पता था कि उन्होने एक घटिया फिल्म बनायी है,इसी कारण उन्होने और उनकी इस फिल्म के कलाकारों ने फिल्म ‘‘भोला’’ के संदर्भ में बात करने की बनिस्बत देष के कुछ षहरों में ‘भोला’’ नामक ट्क दौड़ाते हुए फिल्म को नए अंदाज में प्रमोट करते हुए फिल्म को जबरदस्त सफलता मिलेगी, ऐसा दावा करते रहे. हमें लगता है कि फिल्म के प्रमोषन की इस स्ट्ेटजी को गढ़ने वाले लोग अजय देवगन को बर्बाद करने पर ही आमादा हैं.क्योंकि अनूठे ेतरीके के प्रचार के बावजूद इस फिल्म का पहले दिन की एडवांस बुकिंगी काफी कमजोर हुई है.इस  वैसे बतौर निर्देषक अजय देवगन अपनी इस चैथी फिल्म में भी मात खा गए हैं.वैसे प्रेस षो में मेरे बगल में बैठा एक पत्रकार बुदबुदा रहा था कि इस एक्षन फिल्म में सारा का तो एक्षन डायरेक्टर ने किया है.तो फिर निर्देषक ने क्या किया?

 

 

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तमिल की सफलतम फिल्म ‘‘कैथी’’ का हिंदी रीमेक करते समय इसकी पटकथा चार लोगों, आमिल कियान खान,अंकुष सिंह,श्रीधर दुबे व संदीप केलवानी ने मिलकर लिखी है.पर यह सभी मात खा गए.नकल करने पर यह हाल है,तो इनसे मौलिक फिल्म की उम्मीद करना बेकार ही है.‘नकल के लिए भी अक्ल चाहिए.’फिल्म में कहानी व पटकथा के स्तर पर काफी गड़बड़ियां हैं.भोला को जेल से रिहा होते समय पात चला कि उसकी बेटी ज्योति अनाथाश्रम में है.पर भोला की पत्नी कब गर्भवती हुई और बेटी कब पैदा हुई.फिल्म मेें वाराणसी में गंगा नदी के तट पर भोला एक डाक्टर(आमला पौल ) से विवाह करता है.और वहीं होटल में रूका है.तभी गंगा नदी में नाव पर बैठकर अभिषेक बच्चन व विनीत कुमार सहित सत्तर लोग आते हैं.भोला की पत्नी पर हमला हो जाता है. बाकी भोला संवाद में बताता है कि इन सत्तर लोगों की हत्या के जुर्म में उसे सजा हुई थी.भोला ने कभी भी अपनी दस वर्षीय बेटी ज्योति की षक्ल नही देखी है.दस वर्ष से भोला जेल में था.अब क्या समझा जाए…? इसी तरह जब भोला के पास जेल से छोड़े जाने का पत्र है,तो फिर उसे बिना किसी गुनाह के दूसरी जगह की पुलिस गिरफ्तार क्यांे करती है?फिल्म में कुछ ऐसे दृष्य भी हैं,जिनका जिक्र करने पर फिल्म के लिए स्पाॅयलर हो जाएगा.पर वह दृष्य भी गड़बड़ हैं.

कुछ एक्षन दृष्य जरुर अच्छे हैं. वैसे भी षुरू से अंत तक फिल्म में मार धाड़,खून खराबा ही है.फिल्म ड्ग्स की तस्करी या ड्ग्स गिरोह को लेकर कुछ नही कहती.इंटरवल के बाद फिल्म अधिक कमजोर हो जाती है. फिल्म के क्लायमेक्स खत्म होते जब ज्योति अपने पिता भोला से पुलिस स्टेषन में तमाम लाषों के बीच मिलती है,उस वक्त पिता पुत्री के बीच जो इमोषन होने चाहिए थो,वह उभर कर नही आ पाए.पहली बात तो ज्योति को उसके पिता से मिलवाने की जगह ही गलत चुनी गयी.उस वक्त वहां जो दृष्य था,उसका दस वर्ष की बालिका के दिलो दिमाग पर किस तरह का मनोवैज्ञानिक असर हो सकता है,इस पर लेखक व निर्देषक ने विचार ही नहीं किया. ‘‘भोला’’ में सारे मसाले भर दिए गए हैं.रोमांस भी है.गाने और आइटम सांग भी है.इतना ही नही किसी भी दृष्य में अजय देवगन मार धाड़ करते हुए थकने की बजाय एकदम तरोताजा नजर आते हैं. फिल्म को थ्री डी में भी बनाया गया है.मगर इसका थ्री डी प्रभाव नही छोड़ता है.वीएफएक्स भी काफी कमजोर है.फिल्म का पाष्र्वसंगीत इतना कानफोड़ू है कि कई दृष्यों में संवाद भी ठीक से सुनायी नही पड़ते. फिल्म में उत्तर प्रदेष की आंचलिक भाषा व लहजे में संवाद सुनकर सुखद अहसास होता है.क्रिष्चियन पुलिस इंस्पेक्टर डायना जोसेफ को षुद्ध हिंदी बोलते सुनकर कुछ लोग आष्चर्य चकित होंगे,तो कुछ लोग इसे निर्देषक की कमजोर कड़ी मानेंगे.

इस फिल्म को देखकर यह समझना मुष्किल हो रहा है कि भोला अकेले ही सौ लोगो से कैसे भिड़ जाता है? उसके अंदर यह ताकत माथे पर भगवान षंकर की भस्म लगाने से आती है,अथवा कई किलो मटन एक साथ खाने से आती है या षराब का सेवन करने से आती है? कुछ लोगों की राय में षराब का सेवन करने के बाद इंसान षारीरिक रूप से कमजोर हो जाता है.पर षराब पीने के बाद भी भोला का दिमाग तेज गति से चलता है और उसकी ताकत कम नही होती.फिल्म कहीं न कहीं धार्मिक अंधविष्वास को भी बढ़ावा देती है.फिल्म के कुछ दृष्यों पर सेंसर बोर्ड का मौन समझ में आता है.क्योकि फिल्म के कुछ दृष्य वाराणसी और गंगा नदी पर फिल्माए गए हैं.फिल्म में भोला माथे पर भस्म लगाकर गंगा आरती भी करता है. बहरहाल, फिल्म इस सूचना के साथ खत्म होती है कि भोला वापस आ गया है,जिससे निपटना है.यानी कि इसका सिक्वल भी आएगा.

अभिनयः

भोला के जटिल किरदार मंे अजय देवगन कुछ नया नही कर पाए.वह खुद को दोहराते हुए ही नजर आते हैं.ड्ग्स गिरोह के खात्मे के लिए प्रयासरत पुलिस इंस्पेक्टर डायना के किरदार में तब्बू का अभिनय ठीक ठाक है.आषु के किरदार में दीपक डोबरियाल का अभिनय जरुर आकर्षित करता है. छोटे किरदारो में किरण कुमार,विनीत कुमार, अभिषेक बच्चन, आमला पौल,गजराज राव के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं.यह सभी महज षो पीस ही रहे.

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